वर्ष २००८ जिला जयपु...
 
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वर्ष २००८ जिला जयपुर के पास की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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वर्ष २००८ की बात है ये, राजस्थान के एक गांव जो कि जिला जयपुर में पड़ता है, एक श्रीमान आदित्य को, जिनको कि अपना पैतृक हिस्सा प्राप्त हुआ था, हिस्से के तौर पर उनको एक पुरानी हवेली सी प्राप्त हुई थी, ये गाँव में बाहर की तरफ काफी उंचाई पर बनी थी, उसका अपने घेर ही कम से कम हज़ार गज से अधिक होगा! आदित्य ने इसके कई टूटे-फूटे हिस्सों को पुनः नवीन कराने हेतु एक कांट्रेक्टर को पैसा दिया, कुल रकम तीन लाख तय हुई थी, कांट्रेक्टर जिसका नाम देवल था, अपने आदमी लाया और फिर काम आरम्भ हो गया! देवल के आदमी उस हवेली के टूटे-फूटे हिस्सों को थोडा और साफ़ कर रहे थे, हवेली पत्थर की बनी थी, अतः पत्थर मंगवाया गया था, पत्थर तराशने का काम ज़ारी था, काम चलता रहा, कोई दस बारह दिन बीते, हवेली में कई जगह पत्थर लगा दिया गया था, लेकिन हवेली की दक्षिण भाग में लगाया जा रहा पत्थर बार बार गिर जाता था! ये बात मिस्त्री और मजदूरों ने देवल को बताई, देवल ने उनको तरीका बताया और पत्थर लगाना आरम्भ हुआ, ये स्थान को पचास फीट चौड़ा और बीस फीट लम्बा था, पत्थर लगा दिया गया, तीन दिनों तक पत्थर लगा रह और फिर जब सुबह मजदूरों ने देखा तो वहाँ से सार पत्थर टूट कर नीचे जा गिरा था! अचरज की बात थी ये! बार बार पत्थर लगाने के बाद भी वहाँ पत्थर ठहर नहीं रहा था! क्या वजह थी? किसी को मालूम नहीं था!

एक बार फिर से वहाँ पत्थर लगाया गया, लेकिन तीन दिनों के बाद फिर से पत्थर नीचे गिर पड़ा! अब तो देवल को भी चिंता होने लगी, पत्थर नीचे गिरने से कई पत्थर टूट जाया करते थे! यही चिंता का कारण था! देवल उसके बाद फिर किसी कुशल कारीगर को लाया, उसने फिर से पत्थर लगाया, पत्थर अबकी बार दूसरी तरह से लगाया गया था, सो टिक गया, लेकिन चार दिनों के बाद पत्थर फिर से ढह गया!

अब तो देवल की चिंताएं पहाड़ हो गयीं! पैसा बर्बाद हो रहा था, नफा तो छोडो लागत भी नहीं बच पा रही थी! तब उसने आदित्य से कहा कि घर के सभी लोग वहाँ आकर पूजन करें, तो संभवतः काम बन जाए! ऐसा ही किया गया, लेकिन कुछ न हुआ! हवेली हर तरह से सज-संवर गयी थी, लेकिन दक्षिण भाग ने उसको बदरंग कर दिया था!

काम चलता रहा, लेकिन वहीँ आके अटक जाता था, एक महीने का काम ढाई महीने खींच गया था! देवल को ज़बरदस्त घाटा हो रहा था! लेकिन उसके लाख प्रयास के बाद भी पत्थर नहीं टिक पा रहा था! क्या किया जाए और क्या नहीं, देवल इसी कारण से एक बार किसी ओझा के पास गया, ओझा आया और उसने अपने सामने पत्थर लगवाने के लिया कहा, जैसे ही पहला पत्थर लगा, ओझा ने मंत्र पढ़े, वहाँ पत्थर लगवाने का काम चल रहा और तीन दिनों में पत्थर


   
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श्रीशः उपदंडक
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लग गया! लेकिन ठीक उसके सातवें दिन पत्थर भडभड़ा के गिर गया! अब तो देवल के होश उड़ गए! एक बात जो उसने गौर की थी वो ये कि पत्थर रात में किसी भी समय गिरता था, सारा का सारा, जैसे कोई गिरा देता हो!

अब देवल ने ये जांचने के लिए कि ये किसी की कोई शरारत तो नहीं, वहाँ दो मजदूर छोड़े, जिनको सारी रात उन लगे हुए पत्थरों की चौकसी करनी थी! तीन रात तक पत्थर नहीं गिरे, चौथी रात को मजदूरों ने देखा की, वहाँ एक आदमी और एक औरत आये, औरत के बाल खुले थे, और कद-काठी काफी लम्बी थी, और उस आदमी के एक लम्बी काली दाढ़ी थी और हाथ में एक भाला था! ये देख मजदूर बेचारे डर के मारे चिपक गए! बोलती बंद हो गयी उनकी! भाग भी न सके!

तब उस औरत ने उस दीवार को छू कर देखा, और फिर वहाँ घूंसे बरसाए, तब उस आदमी ने अपने भाले से सारे पत्थर गिरा दिए! उसके बाद वो औरत और वो आदमी वहाँ से गायब हो गए! इतना देख वो दोनों मजदूर भागे वहाँ से! और मुख्य सड़क पर आये! और उसको पार कर भागे आदित्य के घर की ओर! घर पहुंचे, पागल ओर बदहवास हुए उन्होंने आदित्य को सारा हाल सुना दिया! आदित्य ने सुना तो सरसरी तौर पर उनकी कहानी रद्द कर दी! वजह ये कि दोनों मजदूर शराब के नशे में थे! लेकिन मजदूरों का नशा तो काफूर हो चुका था! आदित्य ने यकीन नहीं किया ओर अगली बार स्वयं देखने को कहा!

और वहाँ मजदूरों के खेमे में खलबली मच गयी ये बात सुनकर! कई मजदूरों ने मना कर दिया वहाँ काम करने से! जिन दो मजदूरों ने उनको देखा था वो तो अगली सुबह ही काम छोड़ भाग खड़े हुए थे!

देवल का दिमाग भी ये बात मान रहा था कि यही सटीक कारण है, क्यूंकि मजबूती से लगा पत्थर ऐसे नहीं तोडा जा सकता!

खैर, जब आदित्य ने ये बात देवल को बतायी तो न तो देवल उसको खारिज ही कर सका और न ही मान सका! दुविधाग्रस्त हो गया वो! हाँ वो रात को वहाँ अवश्य ही रुकेगा आदित्य के साथ ये निश्चित था!

और फिर पत्थर फिर से लगाया गया! और उसकी हर रात निगरानी हुई! चौथी रात आई! देवल टकटकी लगाए बैठा था वहाँ! आदित्य की आँख लग चुकी थी, कुछ और मजदूर भी वहाँ सो रहे थे,


   
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श्रीशः उपदंडक
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तभी बिलकुल वैसा ही हुआ! आदित्य के कंधे पर हाथ मारा देवल ने, आदित्य चौक के उठा! उनसे कोई पचास फीट दूर एक आदमी और औरत नज़र आये! सभी देखने वालों की घिग्घी बंध गयी! कंपकंपी छूट गयी!

“कौन है वहाँ?” आदित्य चिल्लाया,

लेकिन पत्थर हटाते हुए उस आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ा! जैसे उसने सुना ही न हो!

“कौन हो तुम लोग?” आदित्य ये कहते हुए आगे बढ़ा उनकी ही तरफ! और उनके पास पहुँच गया! तब तक सारे पत्थर गिराए जा चुके थे!

 

आदित्य ने उस आदमी को पकड़ना चाहा तो उस आदमी ने आदित्य को खींच के एक लात मारी! आदित्य जैसे कहीं पेड़ से गिरा हो! धम्म! ये देख सभी भागे वहाँ से! आदित्य करीब दस फीट दूर जा गिरा, पत्थरों के ढेर पर! आदित्य का सीधा हाथ टूट गया! वो चिल्लाया और रोने लगा, हाथ टूट कर झूलने लगा था! तब देवल किसी तरह हिम्मत दिखा वहाँ आया, तब तक वो आदमी और वो औरत गायब हो चुके थे! देवल ने आदित्य को उठाया अन्य मजदूरों की मदद से और उसको अस्पताल पहुंचाया!

अब आदित्य और देवल को पता चल गया कि वहाँ हवेली में पत्थर क्यूँ नहीं टिक पाते! अब आदित्य के होश ठिकाने आ चुके थे! उसका पैसा भी बर्बाद हो रहा था, वहाँ आदित्य के घरवाले भी चिंतित थे, क्या किया जाए? तब देवल ने राय दी कि किसी अच्छे तांत्रिक को बुलाया जाए और इस समस्या का अंत हो किसी तरह!

अलवर से एक तांत्रिक बाबा को बुलवाया गया! बाबा का नाम कालीचरण बाबा था! उसको सारी कहानी बताई गयी! बाबा ने सुना और फिर जयपुर जाने के लिए तैयार हो गया! बाबा के साथ उसके तीन चेले भी आये! सारा सामान मंगा लिया गया! पत्थर फिर से लगवाया जा चुका था और ये चौथी रात थी, जिस रात वो औरत और मर्द पत्थर आया करते थे पत्थर गिराने!

उस रात बाबा ने वहीँ अलख उठायी और अपनी क्रिया में बैठ गया! उसने क्रिया करने के बाद जहां वो आदमी और औरत आया करते थे वहाँ जाकर पानी गिरा दिया! अभिमंत्रित पानी! और फिर वापिस आकर अपनी अलख में बैठ गया! रात के ढाई बजे! वो औरत और आदमी आये! औरत ने नीचे पानी को देखा और फिर उस बाबा को! जो वहाँ अलख में बैठा था! उस औरत ने इशारा करके उस आदमी को दिखाया! उस आदमी ने उस बाबा को देखा और फिर


   
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श्रीशः उपदंडक
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आदमी आगे बढ़ा! बाबा ने अपना त्रिशूल उठाया और आगे किया! उस आदमी ने अपना भाला उठाया और बाबा की तरफ किया! चेले खड़े हो गए! अब बाबा भी खड़ा हो गया! उस आदमी ने उन चारों को देखा और फिर भागते हुए आगे बढ़ा! उसने अपना भाला सीधा बाबा के पेट में घुसेड़ दिया! बाबा चिल्लाया और उसके चेले भागे अब! उस आदमी ने बाबा के पेट में से भाला निकाल, उसमे आतें भी आ गयी थीं! उसने आतें हटायीं और फिर भागते हुए एक चेले की तरफ भाला फेंका! भाला उस चेले की जांघ चीरता हुआ निकल गया! वो आदमी आया और उसने भाला उठाया, और फिर वापिस उस औरत की तरफ बढ़ गया! वो औरत के पास आया और फिर से अपने भाले से पत्थर गिरा दिए! भागते हुए चेले सीधे आदित्य के घर पहुंचे, वहाँ देवल भी था, देवल को सारी बात बताई गयी, देवल फ़ौरन भाग वहाँ अपनी गाडी लेकर, उसने बाबा और उसके चेले को गाडी में डलवाया और सीधे ले जा पहुंचा अस्पताल! बाबा की हालत बहुत नाजुक थी! दोनों को दाखिल करा दिया गया!

लेकिन अब आदित्य और देवल! दोनों की हालत खराब थी! ये बाबा असफल हो गया था और अब जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था! चार दिनों के बाद बाबा की मौत हो गयी! अब ये नयी मुसीबत हो गयी थी! पुलिस का चक्कर पड़ गया था! किसी तरह से जान छुड़ाई उन्होंने!

अब तो मजदूर लोग भागे वहाँ से! देवल ने भी आना कम कर दिया वहाँ! नुक्सान तो हो ही गया था, लेकिन जान बचाना भी ज़रूरी था! सो उसने अब रूचि लेना ही बंद कर दिया! भाड़ में जाए नुक्सान या फायदा! पहले जान बचाओ अपनी! वहाँ आदित्य परेशान हो उठा था, उसकी हालत खराब थी! डर के मारे हवेली ही नहीं जाता था! अफवाहें उड़ चली थीं! क्या करे!

देवल के मामा जी यहाँ दिल्ली में सरकारी नौकरी किया करते थे, मेरे पुराने जानकार थे वो, एक बार देवल यहाँ आया तो उसी जगह का जिक्र छिड़ गया! देवल ने सबकुछ बता दिया! उसके मामा जी ने तब उसको मेरे पास भेजा! अनमने मन से वो मेरे पास आया! नमस्कार आदि हुई तो मैंने उसको बिठाया, और पूछा, “देवल, आपके मामा जी ने वो कहानी मुझे सुनाई है वहाँ की, क्या सच है वो?”

“हाँ गुरु जी, एक दम सच!” उसने कहा,

“क्या तुमने उस औरत और आदमी को देखा था? स्वयं?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, देखा था!” उसने बताया,

“अच्छा! कैसे थे वो?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“लगते तो ग्रामीण ही थे, लेकिन थे बड़े मजबूत और लम्बे” उसने बताया,

“कोई ख़ास कपडे?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, वो आदमी एक कुरता सा पहनता है, और नीचे धोती, और औरत घाघरे में आती है” उसने बताया,

“अच्छा! कोई और भी होता है उनके साथ?” मैंने पूछा,

“नहीं जी, और कोई नहीं” उसने जवाब दिया,

“हम्म! वो आदमी भाला लिए रहता है?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, चौड़े फाल वाला भाला!” उसने बताया,

“अच्छा! कुछ और जो बताना चाहो?” मैंने पूछा,

“जी वो रात ढाई बजे आते हैं, हर चौथी रात” उसने बताया,

फिर और भी बातें हुई, फिर मैंने स्वयं वहाँ जाने का निर्णय कर लिया!

 

मै अगले दिन वहाँ पहुँच गया शर्मा जी के साथ! दिन में हवेली का मुआयना किया, हवेली कम से कम तीन सौ साल पुरानी तो होगी ही! खालिस पत्थरों की बनी हुई! थोड़ी इस्लामिक-शैली भी थी इसमें, कुछ नक्काशी ऐसी ही थी, दीवारें चार चार फीट मोटी थीं कहीं कहीं! ऊंचे ऊंचे दरवाज़े और चौखटें! थिस शानदार वैसे! फिर मै वहाँ गया जहां वो औरत और मर्द आते थे! यहाँ दीवार से पत्थर हटा दिए गए थे उन्ही के द्वारा! मुझे उस बाबा के साथ क्या हुआ था ये बता दिया गया था, अर्थात पहले ही आदित्य ने चेता दिया था हमको! मैंने फिर से कहके वहाँ पत्थर चिनवाये और वहाँ एक मंत्र पढ़कर एक कंकड़ अभिमंत्रित कर मसाले में दबा दिया! और अब उन का इंतज़ार करना था, ठीक चौथी रात! देवल और आदित्य तो डर के मारे मैदान छोड़ चुके थे, अतः अब मै और शर्मा जी ही थे वहाँ! हम वहीँ ठहरे! थोडा घूमे-फिरे और वक़्त काटा! एक रात पहले मैंने चामड-विद्या प्रयोग हेतु अपना और शर्मा जी का सशक्तिकरण कर लिया!

और फिर वो रात आ गयी! मैंने तामस-विद्या, करुल-विद्या, षोडशी-विद्या जागृत की और फिर उसके बाद अपने और शर्मा जी के नेत्र कलुष मंत्र से पोषित किये! मैंने घडी देखि, घडी में रात के दो बजे थे, बस अब हम तैयार थे! मैंने और शर्मा जी ने अपने अपने तंत्राभूषण धारण किये!


   
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श्रीशः उपदंडक
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और फिर मुस्तैद हो गए! ठीक रात के ढाई बजे वो औरत और आदमी वहाँ आये और उन्होंने आपस में कुछ बातें कीं!

और फिर जैसे ही उस औरत ने उस दीवार को हाथ लगाया, उसने एक दम से झटका खाया! वो नीचे बैठी और चिल्लाने लगी! रूदन करने लगी! ये देख वो आदमी अपना भाला लिए चारों ओर नज़रें दौडाने लगा! उस औरत ने झटका इसलिए खाया था क्यूंकि मैंने एक जम्भन-मंत्र का प्रयोग कर एक कंकड़ उसमे दबा दिया था! अब उस आदमी की खोजती निगाहें मुझसे टकरायीं!! उसने मुझे देखते ही किसी सिपाही की तरह से मुस्तैदी दिखाई ओर वहाँ से नीचे उतरा! उसने अपना भाला सामने किया, उसकी वो औरत भी उसके पीछे आई!

वो धीरे धीरे अपना भाला लिए आगे बढ़ा, मै ओर शर्मा जी वहीँ डटे रहे! वो मेरे सामने आया अपना भाला मेरे पेट की तरफ किये हुए! मैंने तब यत्रालिक-मंत्र पढ़ा! अब मेरे चारों ओर एक ढाल सी बन गयी थी! उसने अपना भाला मुझे मारने के लिए पीछे किये ओर मुझ पर वार किया! लेकिन उस ढाल को वो भेद न सका! वो दोनों चकित हो गए! तब मै आगे बड़ा ओर वो पीछे हटे!

अब जहां तक पत्थरों की बात थी गिरने की वो अब ठीक था, लेकिन आगे कोई बाधा न हो इसिलए इस समस्या को समाप्त करना आवश्यक था! मैंने उस आदमी से पूछा, “कौन हो तुम दोनों?”

मेरी आवाज़ सुन दोनों ने एक दूसरे को देखा, हतप्रभ हो कर! फिर वो औरत चिल्लाई ‘वीरा!वीरा!वीरा!’

मैंने देखा जहां से ये दोनों आये थे वहाँ चार आदमी ओर आ गए! राजपूताना सिपाही! हाथों में तलवार ओर बड़ी बड़ी ढाल!

मै शांत खड़ा था! मै सशक्तिकरण से खचित था अतः भय नहीं हुआ मुझे! मैंने फिर पूछा, “कौन हो तुम लोग?”

“सैनिक” उनमे से एक बोला!

“किसके सैनिक?” मैंने पूछा,

“राव बिशन सिंह के सैनिक” उसने बताया,

“यहाँ क्या करा रहे हो?” मैंने पूछा,

“अनिया को ढूंढ रहे हैं” उसने बताया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“कौन अनिया?” मैंने पूछा,

“उसकी बेटी” उसने उस औरत की तरफ इशारा करके कहा,

“इसका क्या नाम है?” मैंने भी औरत की तरफ हाथ करते हुए कहा,

“धन्नी” उसने कहा,

“ओर वो आदमी कौन है?” मैंने उस भाले वाले आदमी की तरफ इशारा करके पूछा,

“श्योपाल” उसने बताया,

“ये कौन है? धन्नी का पति?” मैंने पूछा,

“धन्नी का अंगरक्षक” उसने बताया,

“ओर तुम कौन हो?” मैंने पूछा,

“किरोड़” उसने कहा,

“यहाँ कोई अनिया नहीं है” मैंने बताया,

“तुम जाओ, हम ढूंढ लेंगे” उसने कहा,

“मैंने कहा ना? नहीं है कोई?” मैंने कहा,

मेरे इतना कहते ही सारे आदमी मेरे सामने खड़े हो गए, धन्नी को पीछे रहने दिया,

“जाओ यहाँ से, हम ढूंढ लेंगे” उसने कहा,

“यहाँ कोई नहीं है किरोड़, मैंने कहा न?” मैंने बताया,

“वो यहीं है, इसमें” उसने उस दीवार की तरफ इशारा किया,

 

“मै देख चुका हूँ वहाँ किरोड़, वहाँ कोई नहीं है” मैंने कहा,

“नहीं, वहीँ है अनिया” उसने वहीँ इशारा करके कहा,

“मैंने सारी जगह ढूंढ ली है, वहाँ कोई नहीं मिला मुझे” मैंने बताया,

“नहीं, वहीँ है” उसने ज़िद पकड़ रखी थी,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अच्छा किरोड़, कौन लाया था उसको यहाँ?” मैंने पूछा,

“जसराज” उसने बताया,

“ये जसराज कौन है?” मैंने पूछा,

“अनिया का पिता” उसने कहा,

“अच्छा! तो वो क्यूँ लाया था उसे यहाँ?” मैंने पूछा,

“जान बचाने के लिए उसकी” उसने बताया,

“जान बचाने? किस से?” मैंने हैरत से पूछा,

“कर्णपाल से बचाने” उसने बताया,

ये तो सारी कहानी और भी रहस्यमयी और रोचक होती जा रही थी, मैंने और जानना चाहा इस बारे में!

“ये कर्णपाल कौन है?” मैंने पूछा,

“राव बिशन सिंह का सेना सरदार” उसने बताया,

“तो कर्णपाल से बचाने के लिए जसराज अनिया को यहाँ छोड़ने आया था?” मैंने पूछा,

“हाँ” उसने कहा.

“तुम कहाँ रहते हो?” मैंने पूछा,

“बूंदी-दुर्ग” उसने बताया,

एक से एक नया खुलासा हो रहा था! फिर से इतिहास के पृष्ठ खुलने लगे थे! मुझे राव बिशन सिंह के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था, कौन था, कहाँ था? आदि आदि!

“अच्छा! तो तुम सब अनिया को ढूँढने आते हो!” मैंने कहा,

“हाँ, अनिया को साथ लेके जाना है” उसने बताया,

“कहाँ जाना है?” मैंने पूछा,

“सुदर्शनगढ़” उसने बताया,


   
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“अच्छा, ये जसराज कहाँ है?” मैंने पूछा,

“वो पहुँच गए सुदर्शनगढ़” उसने बताया,

“तो तुम कहाँ से आये हो अब?” मैंने पूछा,

“सुदर्शनगढ़ से” उसने बताया,

“अनिया को लेने?” मैंने पूछा,

“हाँ” उसने बताया,

“एक बात बताओ, जसराज ने अनिया को यहाँ किसके पास छोड़ा?” मैंने पूछा,

“केतक पुजारी के पास” उसने बताया,

“यहाँ है वो पुजारी?” मैंने पूछा,

“हाँ, यहीं है वो, लेकिन मिल नहीं रहा हमको” उसने बताया,

“एक बात और, ये धन्नी और वो श्योपाल, पत्थर क्यूँ तोड़ते हैं?” मैंने पूछा,

“दम घुट जाएगा अनिया का, इसीलिए” उसने बताया,

“तो अनिया हवेली के अन्दर है या बाहर?” मैंने पूछा,

“पता नहीं, है यहीं” उसने बताया,

“तुम्हे किसने बताया कि अनिया केतक पुजारी के पास है सुरक्षित?” मैंने पूछा,

“जसराज ने” उसने बताया,

मित्रगण! पौ फटने वाली थी, अतः वे लोग पीछे हटे और फिर वहीँ से उलटे हाथ की तरफ के जंगल की तरफ मुडे और लोप हो गए! आज भी अनिया नहीं मिली उन्हें! लेकिन मेरा दिमाग उलझा गए थे! दिमाग में धाँय धाँय होने लगी थी! वो तो चले गए थे लेकिन कई रहस्य छोड़ गए थे! अब मेरे पास ये नाम थे, राव बिशन सिंह, जसराज, कर्णपाल, धन्नी, श्योपाल, अनिया, किरोड़ और केतक पुजारी! अब कहाँ खोज की जाए इनकी? पहले तो अपने आप ही जातां करना था, कहीं अटका तो फिर ‘मदद’ लेनी पड़ेगी मुझे! यही सोचा!

उसके बाद मै और शर्मा जी थोडा आराम करने हवेली में ही चले गए, इसी हवेली में ही कोई राज छिपा था! मैंने दोपहर में उठने के बाद पूरी हवेली की जांच की, लेकिन कुछ अजीब सा न


   
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श्रीशः उपदंडक
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दिखा, मै उसकी छत पर भी गया, वहाँ भी कुछ न दिखा, कोई अजीब सी वस्तु भी न दिखी मुझे! मैंने कलुष-मंत्र का भी प्रयोग किया, लेकिन तब भी कुछ न दिखाई दिया? तो फिर वो लोग यहाँ क्यूँ आते हैं? अवश्य ही इस हवेली में कोई न कोई राज तो है ही दफ़न! मै यही सोच रहा था!

और फिर मैंने इतिहास खंगाला! राव राजा बिशन सिंह मिल ही गए! राव राजा बिशन सिंह बूंदी के राजा थे उस समय सन १८०४ से लेकर सन १८२१ तक! एक सूत्र तो हाथ लग गया था! लेकिन इस से आगे जांच न बढ़ सकी! जो कुछ राव राजा बिशन सिंह के बारे में पता चला उसमे अन्य कोई नाम नहीं था! अब क्या किया जाए? अब मदद लेनी होगी!

तब मैंने उसी रात कर्ण-पिशाचिनी का आह्वान करने की सोची, उसके लिए शर्मा जी से सामग्री प्रबंध करने हेतु कह दिया! आदित्य और देवल अब खुश दिखाई दे रहे थे क्यूंकि हम उस रात मौत के मुंह से बच कर आ रहे थे!

देवल और आदित्य ने सभी आवश्यक सामग्री लाकर दे दी हमे, मै उसी रात क्रिया में बैठ गया और फिर कर्ण-पिशाचिनी का आह्वान करना आरम्भ कर दिया! एक घंटे के मंत्रोच्चार उपरान्त कर्ण-पिशाचिनी प्रकट हुई! मैंने उस से एक एक करके प्रश्न पूछे, और मुझे उनके उत्तर एक एक करके मिलते चले गए! एक एक उत्तर सुन मेरे रोंगटे खड़े होते गए!

कर्ण-पिशाचिनी के बताये अनुसार व स्वयं मेरी जांच के अनुसार राव राजा बिशन सिंह उस समय बूंदी पर राज करते थे, राव बिशन सिंह को अकसर मराठा-सत्ता वाले राज्यों से युद्धरत रहना पड़ता था, ऐसे ही एक युद्ध में राव राजा बिशन की सेना होलकर वंशीय मराठा राजा से लड़ाई में हार रही थी, युद्ध महंगा और भारी होता जा रहा था, इसी सन्दर्भ में राव बिशन सिंह की सेना का एक सेना-सरदार जो कि कभी एक सूबेदार भी था होलकर सेना के कुछ दबंग एवं क्रूर सिपाहियों की पकड़ में आ जाने वाला था, उसका नाम था जसराज और जो उको पकड़ने आ रहा था वो था कर्णपाल! जसराज को जब ये खबर मिली तो उसने अपने सिपाहियों और परिवार के लोगों को वहाँ से उसी समय निकलने की ठानी, उनका गंतव्य था सुदर्शनगढ़ जो कि आज का नाहरगढ़ कहलाया जाता है! सुदर्शनगढ़ में एक आत्मा भटका करती थी, जिसकी ये आत्मा थी उसका नाम था नाहर सिंह भूमिया! शान्ति-कर्म के अनुसार ही सुदर्शनगढ़ का नाम बाद में नाहरगढ़ रखा गया!

उस समय नाहरगढ़ आने के लिए जसराज ने पहले धन्नी अपनी पत्नी को श्योपाल के साथ पहले भेजा, वो इसलिए कि किसी को कानों-कान खबर न हो, फिर उसके पीछे उसने अपने चार मजबूत सैनिक भेजे, फिर उसने अपनी बेटी अनिया को अपने साथ लिया और और वहाँ से रवाना हो गया, जसराज के पास और कोई संतान न थी केवल इस अनिया के अलावा, जो लोग


   
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वहाँ से निकले थे वो कुल लोग थे वे सोलह! धन्नी और उसका अंगरक्षक श्योपाल वहाँ से निकले और फिर उनके पीछे पीछे चार सैनिक! वो आगे आगे थे और उनके पीछे पीछे जसराज अपनी बेटी अनिया को लेकर चल रहा था, और उसके थोडा पीछे पीछे थे उसके बाकी सैनिक!

जिस जगह ये हवेली थी आज, उस जगह इसके साथ ही एक पुराना सा खंडहरनुमा मंदिर हुआ करता था, और उस मंदिर के पास ही एक बड़ा सा कुआँ भी था, धन्नी और उसका अंगरक्षक और वो चार सिपाही यहाँ से गुजर चुके थे, और फिर उन्होंने थोडा आगे जाकर रुकने का फैसला किया, वो इसलिए कि पीछे पीछे जसराज आ रहा था अपनी बेटी को लिए! जब जसराज अपनी बेटी को लिए आ रहा था, उस समय कर्णपाल की वो एक बड़ी टुकड़ी आ चुकी थी और उस टुकड़ी ने भाग रहे जसराज के पीछे आ रहे सैनिकों को मुठभेड़ में मार गिराया! जसराज को ये पता न चला, लेकिन जब काफी देर तक उसके सैनिक नहीं आये तो किसी अनिष्ट की आशंका से, उसने अपनी उस बेटी अनिया को इसी हवेली के पास के एक मदिर के पुजारी केतक के पास छोड़ दिया और स्वयं आगे बढ़ चला! उसकी योजना थी कि यदि वो किसी तरह तेजी से नाहरगढ़ पहुँच जाए तो उसको मदद मिल सकती है और वो इस कर्णपाल से सुरक्षित हो सकता है! और यदि कुछ अनिष्ट हुआ भी तो उसकी बेटी अनिया सुरक्षित रहेगी ही क्यूंकि वो उनको मिलेगी नहीं!

लेकिन ऐसा हुआ नहीं! न तो धन्नी और न ही जसराज कभी नाहरगढ़ पहुँच सके! जब जसराज वहाँ से चला तो वो आगे रुके हुए धन्नी और अन्य सैनिकों से मिला, अनिया को साथ न देख धन्नी ने जब उस से पूछा तो उसने बताया कि वो अनिया को पीछे उस हवेली, जो कि उस समय नई नई बन रही थी, उसके पास के एक मंदिर में एक पुजारी केतक के पास छोड़ आया है, और कोई अनिष्ट अनिया के साथ न हो, इसीलिए उसने ऐसा फैसला लिया है, इतना कह वो लोग आगे बढे, लेकिन तब तक कर्णपाल और उसके सैनिक वहाँ आ चुके थे! मुठभेड़ हुई और सारे के सारे वहाँ क़त्ल कर दिए गए! कर्णपाल को पता था कि जसराज के साथ उसकी बेटी भी थी, वो इनको नहीं मिली थी, न पीछे और न यहाँ! अतः कर्णपाल ने उस रास्ते में पड़ने वाली सभी स्थानों की खोज की, वहाँ मात्र एक मंदिर और ये हवेली ही थी! मंदिर और हवेली की जांच में वो पुजारी केतक पकड़ा गया! उसने फिर भी अनिया का पता न बताया, अनिया उस समय भाग कर उस हवेली में छिप गयी थी दीवार के अन्दर, एक बड़ी सी दरार में! जहां एक शहतीर लगाया जाना था, छत पर!

कर्णपाल के सैनिकों ने पुजारी केतक को अनिया का पता न बताने पर मौत के घाट उतार दिया और फिर अनिया की खोज आरम्भ हुई! कुछ सैनिकों को छत पर पाँव के निशान दिखाई दिए!


   
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उन्होंने निशान का पीछा किया और फिर अनिया पकड़ी गयी! अपने जीवन के लिए गुहार लगाती अनिया को सैनिकों ने उसी जगह काट गिराया! और ऊपर से पत्थर भर दिए!

जसराज के पूरा परिवार और उसके विश्वस्त सैनिक मार दिए गए थे, कर्णपाल द्वारा! बस यहीं कारण था उस हवेली में उनका आना! और उस छिपी हुई अनिया को खोजना! उनको केतक पुजारी नहीं मिल रहा था! अगर मिलता तो उस रहस्य से पर्दा हटता! लेकिन ऐसा कभी न हुआ!

आत्माएं भटकती रहीं अनिया की तलाश में, अनिया की रूह को न जाने किसने पकड़ा, कहाँ गयी, कुछ न पता चला, कहाँ क़ैद है, किसके यहाँ क़ैद है कुछ मालूम नहीं!

ये कहानी मैंने शर्मा जी को बताई, उनको भी हैरत हुई! बोले, “ये है इस हवेली का राज!”

“हाँ शर्मा जी, लेकिन अभी भी कई बातें हैं हमारे सामने” मैंने कहा,

“कौन सी और?” उन्होंने पूछा,

“वो जसराज कहाँ है?” मैंने पूछा,

“हाँ, वो तो इन्ही के साथ मारा गया था न?” उन्होंने कहा,

“हाँ, लेकिन अब कहाँ है वो?”

“हाँ! गौर करने लायक बात है” वो बोले,

“एक बाप ने अपनी लड़की को वहाँ छिपाया, और आखिरी व्यक्ति वो ही था जो ये जानता था, तो आखिर वो कहाँ गया?” मैंने पूछा,

“हाँ, असली चिंता तो उसकी थी?” वो बोले,

“देखता हूँ , पता करता हूँ, नहीं तो यही बताएँगे मुझे ये राज!” मैंने कहा,

 

रहस्य गहराए जा रहा था! हम अपने अपने अनुमान लगा रहे थे! हो सकता था कि जसराज की मौत सबसे आखिर में हुई हो? या जसराज बच गया हो? यही सोच सोच के दिमाग में प्रश्न कुलबुला रहे थे! और उत्तर कहीं अँधेरे में घूम रहे थे!

दो दिन और बीते, बेचैनी से आहत थे हम! एक एक घंटा एक एक दिन समान लग रहा था! कहीं घूमने-फिरने का भी मन नहीं हो रहा था! फिर भी किसी तरह से अपना समय काटा और


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर चौथी रात के इंतज़ार की घड़ियाँ कम होने लगीं! वो दिन आ गया था, अब मैंने सारी तैयारियां आरम्भ कर दीं! सारी आवश्यक सामग्रियां इकट्ठी कर लीं और इस प्रकार से समस्त प्रबंध कर लिया! किसी तरह से दिन कटा, फिर रात आई, अब रात के ढाई बजे का इंतज़ार करना था! यही समय काटे नहीं कट रहा था! फिर भी मै और शर्मा जी आपस में बातें करते रहे और समय आगे बढ़ता रहा! और फिर ढाई बजे!

श्योपाल और धन्नी मुझे दिखाई दिए! लेकिन इस बार धन्नी ने दीवार को हाथ नहीं लगाया, बल्कि वहीँ खड़े रहे वो दोनों! आज उनके साथ न किरोड़ था और न कोई और! श्योपाल का भाला भी ऊपर ही था, हमारी तरफ नहीं!

मै आगे बढ़ा, उन दोनों की तरफ! दोनों ही शांत खड़े थे! धन्नी अबकी बार आगे आई और फिर बिना किसी भय और भाव के मुझे बोली, “अनिया को ढूंढ दो”

ये एक माँ के शब्द थे! एक माँ जो इसी कारण से इस धरा पर अटकी थी अन्य और सिपाहियों के साथ!

“मै ढूंढ दूंगा” मैंने भी कहा,

“आज ही” उसने कहा,

“ठीक है” मैंने कहा,

“कर्ना के आने से पहले” उसने कहा,

कर्ना मायने कर्णपाल!

“एक बात बताओ, ये जसराज कहाँ है?” मैंने पूछा,

“वो आने वाले हैं” अब श्योपाल बोला,

“कहाँ गए हैं?” मैंने पूछा,

“कहीं नहीं, यहीं हैं” उसने बताया,

“कहाँ? यहाँ तो नहीं हैं?” मैंने पूछा,

अब उन दोनों ने एक दूसरे की शक्ल देखी और फिर श्योपाल बोला, “वो आगे गए हैं”

“आगे? कहाँ आगे?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब फिर से उन दोनों ने एक दूसरे को देखा!

“जब तक मुझे तुम बताओगे नहीं, कि जसराज कहाँ है, मै कैसे ढूंढूंगा अनिया को?” मैंने कहा,

“जसराज आने वाले हैं” श्योपाल ने कहा,

“तुमने बात की थी उनसे?” मैंने पूछा,

“हाँ जब वो जा रहे थे तो बोले मै आ रहा हूँ अभी” उसने बताया,

“कहाँ? कहाँ जा रहे थे?” मैंने पूछा, क्यूंकि इसी में छिपा था वो रहस्य!

“कर्णपाल के आदमी आये थे तो वो मदद लेने के लिए गए थे” उसने बताया,

अब स्पष्ट हो गया! न तो धन्नी को और न ही श्योपाल को जसराज की मौत के विषय में मालूम था! वो जसराज का ही इंतज़ार कर रहे थे! वो ही अनिया का पता बता सकता था सही सही! इसीलिए वो वहीँ खड़े हो जाते थे! हवेली के अन्दर नहीं जाते थे! उन्हें इंतज़ार था जसराज का और जसराज अब कभी वापिस आने वाला नहीं था!

“जसराज मदद लेने गया था? किस से?” मैंने पूछा,

“आगे से, वहाँ उनके आदमी हैं” उसने बताया,

“अच्छा!” मैंने कहा,

धन्नी और श्योपाल को किसी सुरक्षित जगह छोड़ कर जसराज आगे बढ़ा होगा मदद लेने के लिए, लेकिन कर्णपाल के सैनिकों ने पहले धन्नी और श्योपाल को मारा होगा और फिर जसराज को! वीभत्स दृश्य होगा वो!

“श्योपाल और धन्नी, तुम दोनों अब सुनो जो मै कहता हूँ” मैंने कहा,

उन दोनों ने एक दूसरे को देखा!

“सुनो, मै पता बता दूंगा अनिया का लेकिन उसके लिए तुमको जसराज को भी लाना होगा” मैंने कहा,

“जसराज आने वाले हैं” श्योपाल बोला,

“ठीक है आने दो फिर” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैंने इतना कहा कि दोनों ही लोप हो गए! इसका कारण मै जानता था! प्रेतात्मा कारण नहीं ढूंढ पातीं! यदि कारण ढूंढ लें तो कभी नहीं भटकेंगी!

अब मैंने निश्चय किया कि इनको अब पकड़ा ही जाए! ये कुल छह लोग थे, ये दोनों और वो चार सैनिक! बिना पकडे काम नहीं होने वाला था, सच्चाई ये मानने वाले नहीं थे! अनवरत भटक रहे थे!

तब मै वापिस हवेली में चला गया! आराम किया और फिर योजना पर निर्णय किया और अमल किया! अब मुझे चौथी रात को यहाँ आना था, मै अपने चार खबीस लाने वाला था उनको पकड़ने के लिए!

अगले दिन दोपहर को मैंने आदित्य और देवल को सारी बात बताई और वापिस दिल्ली आ गया! कुछेक तैयारियां भी कीं और फिर ठीक चौथे दिन वहाँ के लिए रवाना हो गया!

रात में ढाई बजे फिर से वे लोग आये, वे दोनों अब मैंने बिना बात किये अपने दो खबीस हाज़िर किये और उनको पकड़ ही लिया! धन्नी चिल्लाई ‘वीरा! वीरा!” अब वहाँ जो और वे चारों आये उनको भी उन दो खबीसों ने धर-दबोचा! अब मै वापस आया हवेली के उस ख़ास कमरे में जहां मैंने पहले ही तैयारी कर रखी थी! अब मैंने अपने खबीसों से उनको छुड्वाया, वो ऐसे भय से भर गए कि जैसे पत्थर के बन गए हों! मेरे दोनों खबीस वहीँ खड़े हो गए! अब मैंने धन्नी को बुलाया अपने पास, धन्नी डर के मारे आगे आई, मैंने कहा, “धन्नी, तू अनिया को ढूंढ रही है न?”

“हाँ” उसने कहा,

“धन्नी, अब अनिया नहीं है यहाँ” मैंने बताया,

“यही है” उसने कहा,

“नहीं है” मैंने कहा,

“जसराज ने कहा कि यहीं छोड़ा उसने” उसने कहा,

“हाँ छोड़ा अवश्य था, लेकिन अब नहीं है” मैंने बताया,

“केतक से पूछो” उसने कहा,

“केतक भी नहीं है यहाँ” मैंने बताया,

वो सब चुपचाप सुन रहे थे!


   
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