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कैसे कैसे खेल है पैसाठीया के चक्कर मे कितने ही उलझे है, जब सच का सामना होता है, तब गुरु का ऋण याद आ जाता है, और पहुच जाते है यही जहा से चालू होते है
बहूत समय बाद ये संस्मरण पढ़ा, जय हो
बेहतरीन संस्मरण।
@1008 बहुत ही सरल उपाय दादा, बहुत बहुत धन्यवाद।
वक्त के कैदी से हो गए ज्ञान बाबू तो, वाह ज्ञान बाबू कैसा स्वभाव रहा आप का और सब सच जानने के बाद भी उसी में जीवन गुजार रहे है।
@1008 हर कोई रमेली जैसा सरल हो जाये, तो विकट कष्ठ भी मिट जाते है, पर नजर तो लालची इंसान की ही लगती है, और परिणाम भी लालच ही भुगतता है। जय हो भैरव बाबा...
ऐसे भी शिष्य है, जो अपने गुरु की आन की खातिर, इतना बड़ा दाव भी खेलते है, और वही किया जो न्याय संगत था।
बहुत ही गूढ़ ज्ञान की बाते कही गई है, इस संस्मरण में, और सबसे बड़ा ज्ञान तो लालच के बारे में और विद्या संचालन के बारे में मिला।
बहुत समय बाद में संस्मरण पढ़ा, और वो भी बाबा बोड़ा का,बेहद जबरदस्त द्वंद,
बच्चो के लिए जरूरी है दादा, और प्रयोग विधि भी आसान है।
बहुत बहुत आभार दादा, की पुनः, प्रश्नोत्तर विभाग चालू हुआ है, अब संस्मरण पढ़ेंगे और चर्चा करेंगे।
लालच का ऐसा ही अंत होता है, कुआली ने तो अपना वादा निभाया, पर धन का लालच पूरा कुनबा ही ले डुबा।