वर्ष १९९५ दिल्ली की...
 
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वर्ष १९९५ दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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नीलंचल एक्सप्रेस नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन से सुबह सुबह साढ़े 6 बजे चलती है पूरी के लिए, मैं अपने एक दोस्त के साथ इसमे सवार हुआ था, गर्मी का समय था और सुबह सुबह भी गर्मी का कहर जारी था! हम ट्रेन मे घुसे, अपने कोच मे और अपनी अपनी सीट पर बैठ गये, ट्रेन वैसे तो खाली ही थी लेकिन कुछ लोग अभी भी बाहर प्लॅटफॉर्म पर ही थे, गाड़ी छूटने मे अभी समय बाकी था करीब 10 मिनिट, हमने अपना अपना सामान अपनी सीट के नीचे रख दिया और बैठ गये, 10 मिनिट बीते होंगे कि ट्रेन चली, सभी लोग अंदर आए, हमारी सामने वाली सीट पर 2 लड़कियाँ आकर बैठीं, उनके साथ एक लड़का भी था, ट्रेन ने गति पकड़ी और चलने लगी रफ्तार पर, हमको बोकारो जाना था, मेरे दोस्त के बड़े भाई वहाँ स्टील-प्लांट मे इंजिनियर के पद पर काम करते थे, वहीं हम जा रहे थे!

करीब 2 घंटे बीते होंगे, हमारी और उनकी बातचीत शुरू हुई, मैने उनसे पूछा, कि वो कहाँ से आए हैं और कहाँ जा रहे हैं? उन्होने बताया की वो लोग अमृतसर से आए हैं और अब बोकारो जा रहे हैं! हमने भी बताया की हम दोनो दिल्ली से ही हैं और हम भी बोकारो ही जा रहे हैं! उन्होने अपने नाम भी बताए, जो लड़की हरे रंग की टी-शर्ट पहने थी उसका नाम पारूल था और जिसने सूट पहन रखा था उसका नाम शालु था, साथ आया लड़का शालु का बड़ा भाई था और पारूल उनकी कज़िन बहन थी, वी तीनों ही एक अच्छे पढ़े-लिखे और परिवार से संबंध रखते हैं, मालूम पड़ता था!

खैर, हमारी बात-चीत आगे बढ़ी, 6-7 घंटों की यात्रा मे हम आपस मे घुल मिल गये थे! इधर-उधर की बातें होती रहीं, प्लेयिंगकार्डस भी खेले, उनके साथ लंच भी किया! कभी कभार जब ट्रेन अधिक देर के लिए रुकती तो हम बाहर भी आ जाते थे, कभी वो नहीं उतरते थे और अंदर ही रहते थे,लेकिन हमारी नज़रें उन पर और उनकी नज़रें हम पर पड़ती रहती थी! मैं कभी कभी पारूल को देखता तो वो अपनी नज़रें बचाती और फिर वापिस देखने लगती!

ये भदोही स्टेशन की बात होगी, जब हम ट्रेन मे बैठे थे तो हमारा पानी ख़तम हो गया था, कोई पानी वाला आ ही नही रहा था, मुझे भी प्यास लगी थी और पारूल को भी! ट्रेन भदोही स्टेशन पर रुकी, मैं उठा और उनसे पूछा, वहाँ से पारूल भी उठी की वो भी पानी लाएगी,मैने कहा की मैं उनके लिए पानी ले आता हूँ कोई बात नही,तब पारूल ने कहा की वो थक गयी है, थोड़ा बाहर भी घूम लेगी, मैने उसको अपने साथ लिया, उसको अपने आगे रखा और कोच से बाहर आ गया, अब जहाँ पानी मिल रहा था वहाँ काफी भीड़ थी, मैं आगे बढ़ा और जाकर किसी तरह से पानी ले लिया, 2 बोतल, एक उसके लिए और एक अपने


   
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श्रीशः उपदंडक
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लिए, उसने पैसे देने को कहा तो मैने मना कर दिया, तभी अचानक गाड़ी चल पड़ी, हम बाहर ही थे, अब मैने उसका हाथ पकड़ा और भागा कोच की तरफ! लेकिन वहाँ काफी भीड़ थी! फिर भी मैने उसको खींच-खांच के एक दूसरे कोच मे चढ़ा दिया और खुद भी चढ़ गया! उसने मुझे देखा और मैने उसको! हम वहाँ से अपना रास्ता बनाते हुए, मैने अभी तक उसके कंधो पर हाथ रखा हुआ था, कभी कभी मैं उसको पूरी तरह से छू भी जाता था, ऐसे करते करते वापिस अपने कोच मे आ गये! मेरे दोस्त ने उनकोसमझा दिया था की हमने गाड़ी पकड़ ली है!

फिर रात हुई! बातें करते करते, हुँनेहमने खाना खाया और अपने अपने बर्थ पर चढ़ गये! अब बोकारो सुबह सुबह आता है वहाँ! मैने कहा की हम तो पहली बार जा रहे हैं, कहीं सोते ही ना रह जाएँ इसीलिए जब वो उतरें तो हमे भी जगा लें, हम भी उतर जाएँगे! उन्होने कहा की ठीक है जगा देंगे, तो हमने चैन की साँस ली! उसके बाद थोड़ी देर और बातें हुई तो पारूल ने, थोड़ी देर बाद, बोकारो का फोन नंबर शालु से लिया और हमे दे दिया, हमने भी अपना नंबर दे दिया, ये लेंड़ लाइन नंबर थे. उसके बाद हम सो गये!

सुबह हमको उसके भाई ने उठाया कि बोकारो आ गया! हम उठे और फिर उनका धन्यवाद किया, स्टेशन पर उतरे और फिर विदा ले अपने अपने रास्ते हो लिए!

हम दोनो दोस्त वहाँ 7 दिनो तक रहे, आखिरी दिन ध्यान आया नंबर का,तो मैने एक पी.सी.ओ. से नंबर डायल किया, पता चला ये नंबर नही मिल सकता, नंबर अजीब सा था कोई मेक्स नंबर था, मुझे समझ नही आया और मैने फोन रख दिया! मैने सोचा वो लड़की मज़ाक कर गयी शायद!

उसी दिन दिल्ली की ट्रेन पकड़ी और फिर वापिस हम दिल्ली आ गये! दोस्त अपने घर और मैं अपने घर!

कोई महीना बीता, एक दिन मेरे यहाँ फोन बजा, मैने फोन उठाया, तो दूसरी तरफ कोई लड़की थी, उसने कहा, "हेलो?

"हेलो" मैने जवाब दिया,

"क्या मैं रेन्टी से बात कर सकती हँ?" उसने पूछा,

"हाँ बोल रहा हूँ, लेकिन आप, कौन हैं?" मैने पूछा,

"मैं पारूल बोल रही हूँ" उसने कहा,

"पारूल? कौन पारूल?" मुझे हैरत सी हुई, मैं पहचान ना सका,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"आप भूल गये शायद" उसने कहा,

"आप याद दिलाइए तो?" मैने कहा,

"हम ट्रेन मे मिले थे, याद आया?" उसने कहा,

"ट्रेन मे मिले थे?" मैने याद करने की कोशिश की

"बड़ी कच्ची याद-दाश्त है आपकी" उसने कहा,

"अच्छा, आप बताइए कब मिले थे" मैने पूछा,

"बोकारो, नीलांचल एक्सप्रेस? याद आया?" उसने कहा,

मुझे अचानक से याद आया! अच्छा! वो पारूल, अमृतसर वाली!

"हाँ! हाँ! याद आ गया!! सॉरी, मुझे याद ही नही रहा!" मैने कहा,

"हाँ बड़े शहरों मे रहने वाले लोग छोटे शहरों मे रहने वाले लोगों को नही पहचानते!" उसने हंसते हुए कहा!

"सच मे सॉरी पारूल!" मैने कहा,

"आप अभी कहाँ हो?" उसने पूचछा,

"मैं घर मे ही हूँ" मैने बताया,

"अच्छा, एक बात बताइए, आपके घर से तिलक नगर कितना पड़ेगा?" उसने पूचछा,

"यही कोई 30-35 किलोमीटर" मैने बताया,

"ओह! तब तो काफी दूर होगा" उसने कहा,

"कोई काम है क्या? और हाँ ये तिलक नगर कहाँ से आया बीच मे, आप कहाँ हो अभी?" मैने पूछा,

"मैं तिलक नगर से ही बोल रही हूँ, मेरे मामा जी यहीं रहते हैं, मैं वहीं हूँ" उसने कहा,

"अच्छा! अच्छा! और बोकारो से कब आए वापिस?" मैने पूचछा,

"अभी कल ही आई हूँ वहाँ से" उसने बताया,

"अच्छा! अच्छा!" मैने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर थोड़ी देर शांत रह कर उसने कहा, "एक बात कहूँ?"

"हाँ, बताइए, कहिए?" मैने कहा,

"आप यहाँ आ सकते हैं अभी?" उसने पूछा,

"वहाँ, हाँ आ सकता हूँ, कहाँ मिलॉगी वहाँ?" मैने पूछा,

"मेन मार्केट के पास एक स्टोर है, वहाँ" उसने कहा, उसने मुझे उस स्टोर का नाम बताया जहाँ उसको मिलना था!

"ठीक है मैं एक घंटे तक आता हूँ" मैने कहा और बाय बाय कहने के बाद मैने फोन काट दिया! मैं एक घंटे मे वहाँ पहुँच गया, वहीं गया तो पारूल को पहचान लिया! वो अकेली ही थी वहाँ! मुझे देख मुस्कुराइ और मैं भी!

"कैसी हो! वहाँ से तो मोटी हो कर आई हो!" मैने कहा!

"क्या मैं मोटी हो गयी हूँ?" उसने अपने आप को देखते हुए कहा,

"हाँ, पहले से तो मोटी हो गयी हो" मैने बताया और वो हंस पड़ी!

उसके बाद हम एक रेस्टोरेंट मे बैठे, कॉफी वगैरह ली तो उसने मुझे बताया की वो अमृतसर मे बी.डी.एस कर रही है, मैने भी अपने बारे मे बता दिया! करीब आधे घंटे हम वहाँ बैठे तो उसने चलते हुए मुझे अपना अमृतसर वाला घर का नंबर दे दिया! मैने नंबर रखा और फिर वापिस आ गया!

3 दिन बीते, मैने कोई फोन नहीं किया, अगले दिन उसका फोन आया, मैने बात की, और उसके बाद उसके फोन आने लगातार जारी हो गये! दोस्तो, मेरे मन मे ना उसके लिए कोई प्यार था और ना ही कुछ और, मैं तो उस मीटिंग को भी फॉर्मल ही जान कर गया था मिलने! कभी मैं फोन नहीं उठाता तो अगली बार गुस्सा करती! ज़िद करती! एक दिन मे 30-30 बार फोन! वो शायद मेरे साथ प्यार मे पड़ गयी थी, मुझे लगा ऐसा कुछ!

अब मुझे खीझ सी होने लगी थी! मुझे भी फोन करने पड़ते थे! ना करता तो वो गुस्सा करती!

एक बार वो मामी और घरवालों से झगड़ा कर आई, मुझे करोल बाग बुलाया और उसने मुझे बताया की वो अपना घर छोड़ आई है! मुझे बड़ी हैरत हुई! मैने उसको समझाया, बहुत समझाया, समझाते समझाते शाम हुई, फिर रात! फिर मैं उसको घर ले आया मजबूर होकर, वो अपने घर ना जाने की जिद पकड़े बैठी थी! मेरे घर पहुंची तो वो बहुत खुश हुई! तब मैने चुपके से उसके पिताजी को फोन कर दिया की वो मेरे पास है, घबराएँ नही, आप


   
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श्रीशः उपदंडक
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आ जाएँ या उसके मामा जी को भेज दें, वो सकुशल और सुरक्षित है! वो लोग आए, उसके मामा मामी, मैने बहुत समझा-बुझा के उसको वापिस भेज दिया! उसके मामा मामी ने पुलिस मे रिपोर्ट करा दी थी! साथ मे 2 पुलिस-वाले भी आए थे! मैने सब कुछ जस का तस उनको बता दिया था! उसके पिताजी को मेरी ये खुहारी बेहद पसंद आई, हालाँकि मैने उनको कभी नही देखा था! वो वापिस अमृतसर पहुंची और फिर से फोन आने शुरू! अब वो अपने मम्मी पापा से भी बातें कराने लगी थी मेरी! लेकिन मैं अब सच मे परेशान हो गया था!

एक बार की बात है, मेरे पास किसी अंजान का फोन आया की वो मुझसे मिलना चाहते हैं, मेरे पूछने पर उन्होने बताया कि वो पारूल के पिताजी हैं, मेरे तो पाँव तले जमीन निकल गयी! फिर भी मुझे जाना ही पड़ा! एक तो बुजुर्ग और दूसरे उन्होने मुझ से विनती की थी! मैं वहाँ गया तो पारूल भाग कर आई और मेरे गले लग गयी! मुझे बड़ी हैरत हुई! उसने मुझे अपने पापा से मिलवाया, मम्मी से, बड़ी बहन से और अपने मामा और मामी से! जबकि मैं उसने अपने घर पर मिल चुका था! खूब बातें हुई, और बाद मे खाना भी खिलाया!

ये सिलसिला चलता रहा करीब 2 सालों तक! वो मुझसे हमेशा मिलती जब भी दिल्ली आती! यहाँ चलो, वहाँ चलो, ये खाओ वो खाओ! वगैरह वगैरह! एक दिन फोन पर उसके पापा ने मुझसे बात की खुल के, मैने जो मेरे दिल मे था, बता दिया, मैं उससे प्यार नही करता! उनको झटका तो लगा लेकिन मेरी साफगोई से उनको प्रसन्नता हुई!

उन्होने ये बात पारूल को बताई, समझाई, लेकिन वो नही मानी, जिद पकड़ ली आमने-सामने मिलके मैं ऐसा कहूँ, इसको!

वो दिन भी आया और मैने ऐसा ही कह दिया! वो भड़क गयी! मुझे खींच के एक कमरे मे ले गयी और बोली, "मैने तुमसे प्यार किया है, और तुमने मेरा मज़ाक उड़ाया?"

"ठीक है पारूल, तुमने प्यार किया, कभी मुझसे पूछा?" मैने कहा,

"मुझे लगा की तुम भी मुझे प्यार करते हो, मैं इसी धोखे मे रही?" उसके आँसू निकले और ये उसने अब रोते हुए कहा,

और जब मैने उसके आँसू पोंछने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो उसने मेरे गाल पर एक तमाचा जड़ दिया! मुझे हँसी आ गयी! एक मंद मुस्कान!

अब वोरोते हुए मुझसे लिपट गयी और बोली, "ऐसा ना करो, ऐसा ना करो, मैं मर जाऊंगी, बर्दाश्त नही कर सकती मैं ऐसा, मैं मर जाऊंगी


   
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श्रीशः उपदंडक
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मेरे दिल मे भी उसके इन शब्दों के लिए सम्मान उभरा लेकिन मैने कुछ नही कहा! चुपचाप खड़ा रहा!

"बताओ मुझे? मुझसे प्यार करते हो?" उसने पूछा और मुझसे हट गयी,

"नही पारूल, कभी नही किया मैने, माइया तुमकोसमझाना चाहता था, इसीलिए तुम्हारे लेटर्स का जवाब नहीं देता था, फोन नही करता था, लेकिन तुम कभी नही समझी, मैने तुम्हे आजतक हाथ भी नही लगाया, इसीलिए कि मेरा तुम पर कोई हक़ नही" मैने कहा,

मेरा इतना कहते ही वो नीचे बैठ गयी, रोते रोते पता नही क्या क्या कहे जा रही थी! मैं चुपचाप खड़ा रहा फिर एकदम से खड़ी हुई, बोली, "मुझे आज आखिरी बार देख लो आप, आज के बाद मईआ आपको कभी नहीं मिलूंगी, मर गयी मैं आपके लिए" उसने चिल्ला के कहा, वहाँ सभी लोग आ गये, सभी ने उसको समझाया, लेकिन अब वो कुछ ना बोली, एक शब्द भी नही, इसके बाद मैने सभी से विदा ली और मैं वहाँ से चला आया,

बाद मे उसके पिता जी मिलने आए मुझसे, मेरे घर, मैने सत्कार किया उनका, उन्होने फिर से सोचने कोकहा, लेकिन मैने वही कहा जो मैं पहले कह चुका था!

दोस्तो! ये सिलसिला वहीं खतम हो गया! ना कोई फोन! ना कोई लेटर!

वक़्त बीतता रहा, 2012 आ गया, और एक दिन.......

मुझे यही पारूल, अभी एक महीने पहले दिखाई दी, वहीं अपने मामा जी के यहाँ, एक शादी मे, यहाँ मैं लड़की वालों की तरफ से आमंत्रिति था, मैने मुँह फेर लिया वहाँसे, मेरा दिल धड़कने लगा ज़ोर ज़ोर से! मैं उसको पहचान गया था!

बाद मे मालूम करने पर पता चला कि वो अमृतसर की रहने वाली है, नाम है पारूल, अब केनेडा मे रहती है, डॉक्टर है!

और आज तक शादी नही की उसने!

और ये जो घटना मैने लिखी है यहाँ, ये 1995 की घटना है!

उफ! ये मोहब्बत!

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------


   
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