वर्ष २०१३ मेवात हरि...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०१३ मेवात हरियाणा की एक घटना!

208 Posts
1 Users
0 Likes
1,716 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

हत्या कर दी थी!
भूल न सकी थी अभी ऊषल!
सारी रात न सोया औरांग!
सोता भी कैसे!
ऊषल उड़ा ले गयी थी उसकी नींद!
और उधर ऊषल,
खुश हो रही थी अंदर ही अंदर!
अपना बदला साकार होते देख रही थी!
सारी रात उसने भी,
करवटें बदलने में ही निकाल दी!
और फिर आया अगला दिन!
मध्यान्ह समय मिलना था औरांग ने ऊषल से,
स्थान बता ही दिया था,
ये एक एकांत की जगह थी,
यहां, ऊषल के अतिरिक्त,
कोई और नहीं आ सकता था!
चल पड़ी ऊषल उसी स्थान के लिए,
पहुँच गयी,
और इंतज़ार किया,
उस मोहरे का!
एक मोहरा!
एक प्यादा!
जो काम आ सकता था,
शय देने में राजा को!
यही तो चाहती थी ऊषल!
और ठीक समय पर ही,
औरांग भी वहाँ आ गया!
ऊषल, घूंघट किया करती थी पहले,
लेकिन न तो कल था, और न आज ही किया!
आँखों में ही देखे जा रही थी औरांग को!
और औरांग,
पसीना पसीना हुए जा रहा था!
"बताओ, क्यों बुलाया?" बोला औरांग,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"बैठोगे नहीं?" बोली ऊषल,
खड़ा था, खड़ा ही रहा औरांग!
"बैठो तो सही?" बोली ऊषल,
"आप बताओ?" बोला औरांग,
"बैठो तो सही? डर लगता है मुझसे?" कटाक्ष सी मारती हुई! पूछा ऊषल ने!
बैठ गया औरांग,
लेकिन नज़रें नहीं मिलायीं,
ऊषल ने तभी,
औरांग की चौड़ी कलाई पर हाथ रखा,
घबरा कर हाथ हटा दिया उसने,
और खुद भी खड़ा हो गया,
"क्या हुआ?" पूछा ऊषल ने,
कुछ न बोला औरांग!
खड़ा ही रहा,
फिर से हाथ पकड़ा ऊषल ने उसका,
उसने हटा लिया हाथ अपना!
"प्रयोजन बताओ" बोला औरांग,
"जब तक बैठोगे नहीं, कैसे बताउंगी?" खेला दांव ऊषल ने,
"ऐसे ही ठीक है, बता दो" बोला औरांग,
हंस पड़ी!
एक, कटाक्ष भरी हंसी!
चेहरे के भाव स्थिर हो गए औरांग के!
जैसे ज़मीन में गड़ गए हों पाँव!
घुटनों तक!
अब खड़ी हुई ऊषल!
उसके कन्धों से भी नीचे ही आ रही थी!
ऐसी थी देह उस औरांग की!
मज़बूत और किसी मोटे वृक्ष के तने जैसी कठोर!
कंधे पर हाथ रखा ऊषल ने उसके,
औरांग कसमसाया,
हाथ हटा दिया,
और तभी अपने दोनों हाथों से,
कसकर हाथ पकड़ लिया ऊषल ने औरांग का!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

औरांग चित होने को था बस!
चाहता औरांग तो,
एक हाथ का झटका ही देता,
तो दीवार तोड़,
बाहर ही गिर जाती ऊषल,
लेकिन कुछ नहीं किया उसने!
जवान था औरांग!
स्त्री के स्पर्श से, चिंगारियां फूट पड़ीं उसकी देह से!
और तब पहली बार,
उसने आँखों में झाँका उस ऊषल के,
ऊषल मुस्कुरा रही थी,
और औरांग का कलेजा काँप रहा था!
हाथ छुड़ाता वो तो,
और कस कर पकड़ लेती वो!
"बताओ?" वो बोला,
"बता दूँगी! इतनी जल्दी भी क्या है?" बोली ऊषल!
तब हाथ छुड़ाया उसने,
और अपने पीछे देखा,
आसपास,
"कोई नहीं है यहाँ, कोई नहीं आएगा, घबराओ नहीं" बोली ऊषल!
कुछ राहत हुई उसे,
"बताओ?" बोला औरांग!
"अभी नहीं" बोली वो,
"तो मैं चला" बोला,
"नहीं" वो बोली,
"नहीं?" चौंक पड़ा वो!
"हाँ! नहीं!" बोली ऊषल,
फंस गया था!
फंस गया था जाल में!
फंसने लगा था!
खुद ही तो फंसा था!
निकट आई वो!
और निकट,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

कांपा औरांग!
क्या करे?
सोच में डूबा!
औरांग के गले में पड़ा और गंडा,
पकड़ लिया ऊषल ने,
और किया नीचे उसे खींच कर,
लेकिन वो!
औरांग!
नहीं झुका!
ऊषल ने और ज़ोर लगाया,
अब भी नहीं झुका!
और ज़ोर!
और अब भी नहीं!
तन कर खड़ा रहा औरांग!
आखिर वो गंडा,
टूट गया!
आ गया ऊषल के हाथ में!
देखा ऊषल ने उस गंडे को!
और अपनी कमर में खोंस लिया!
औरांग कांपा!
डरा!
किसी ने देख लिया तो?
नहीं!
"मुझे दो, मुझे दो ये!" बोला औरांग!
और ऊषल!
मुस्कुराये जाए!
इधर औरांग कटे जाए अपने भय के खंजर से!
हाथ बढ़ाया आगे उसने!
औरांग ने,
वो खींचने के लिए,
लेकिन!
नहीं खींच पाया!
डर गया था बुरी तरह!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

तब!
निकला वो गंडा उस ऊषल में!
और अपने अंगरखे में खोंस लिया!
अब दिल धड़का उसका!
एकदम से पलटा!
और भाग लिया वापिस!
बेतहाशा खौफ में!
भागा!
भागता जाए!
और जा रुका अपने कक्ष में आ कर!
अविवाहित था औरांग!
समझ नहीं पाया था स्त्री-चलन!
लेकिन वो चिंगारियां!
अभी तक उठ रही थीं!
अब फंसा दुविधा में!
ऊषल के बने जाल में!
चाल चल गयी थी ऊषल!
और फंस गया था अब,
ये बेचारा औरांग!
अपने गले को छू कर देखा,
ऊषल की जगह कोई और होता,
तो गर्दन मरोड़ देता वो उसकी एक ही हाथ से!
कर देता सर अलग उसका,
एक ही पल में!
उस दिन, दिन भर,
परेशान रहा औरांग!
दुविधा बढ़ने लगी!
क्या चाहती है ये ऊषल?
ये तो ब्याहता है?
फिर?
क्या हुआ है उसे?
कोई समस्या हो,
तो खल्लट तो है न?


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

क्यों नहीं कह देती उसे?
उसके पीछे क्यों पड़ी है?
ऐसी उहापोह!
ऐसा पशोपेश!
तिनके झड़ने लगे,
उसके बदन से!
चिरमिराहट मचने लगी थी!
और फिर संध्या हुई!
और फिर रात!
अपने कक्ष में ही बैठा था वो!
कि कोई अंदर आया,
धड़धड़ाते हुए!
वो खड़ा हुआ!
सामने ऊषल खड़ी थी!
हिचकी सी उठ गयी उसे!
सांस अटक गयी उसकी!
पसीना छूट पड़ा!
भय सताने लगा!
तभी दरवाज़ा फेर दिया ऊषल ने!
और मुस्कुराते हुए,
उसके करीब जा पहुंची!
उसके चेहरे पर ऊँगली फेरी!
चिंगारी भड़की!
लेकिन सांस न थमी!
ऊषल ने,
उसकी मज़बूत बांह पकड़ ली!
और सटा लिया अपना सर उसके सीने से!

अब बह चला था औरांग भी!
देह साथ नहीं दे रही थी!
मस्तिष्क तो मना कर रहा था,
लेकिन देह ने,
बग़ावत कर दी थी!
संभाले नहीं सम्भल रही थी!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

मचल रहा था औरांग,
ऊषल को अपनी भुजाओं में भींचने के लिए!
लेकिन!
ठहर गया!
रुक गया!
नहीं!
ये सही नहीं!
गलत है!
नियम के विरुद्ध है!
खल्लट मेरा मित्र है!
और मित्र के साथ दगा?
नहीं!
नहीं!
मैं दगा नहीं करूँगा!
हटा दिया एक झटके से उसने ऊषल को!
ऊषल,
गिरते गिरते बची!
चौंक तो पड़ी,
लेकिन अपनी चाल में,
वो ये भी जानती थी,
कि ऐसा तो होगा ही!
मुस्कुरा पड़ी!
"औरांग!" बोली ऊषल!
कामुक लहजे में!
पानी की बौछारें सी पड़ीं औरांग पर,
उसके होंठों से अपना नाम सुनकर!
उसने, ऊषल ने,
अपने अंगरखे से वो गंडा निकाला!
"मैं इसे अपने शयन कक्ष में रख दूँ?" पूछा ऊषल ने,
उस गंडे को,
अपने हाथ से हिलाते हुए!
काँप उठा औरांग!
हड्डियां तक,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

बर्फ बन बैठीं उसकी!
यदि ऐसा हुआ,
तो कहर टूट पड़ेगा!
"बोलो?" पूछा ऊषल ने,
घबराया हुआ था!
कुछ न कह सका!
"बोलो?" पूछा फिर से!
नहीं बोला कुछ भी!
मुस्कुराई वो!
गंडा,
फिर से अंगरखे में खोंसा!
और चलने लगी बाहर!
लपका औरांग!
और पकड़ लिया उसको उसके कंधे से!
दरवाज़ा भेड़ दिया औरांग ने!
"ये...मुझे दे दो!" बोला औरांग!
"ले लो!" वो बोली,
अपने वक्ष को सामने करते हुए,
अब कैसे ले?
फिर से दुविधा!
"निकालो उसे" बोला औरांग,
मिमियाते हुए!
"निकाल लो!" बोली ऊषल!
पत्थर से पड़ गए उस पर!
कीड़े से रेंगने लगे देह पर उसकी!
"निकालो?" बोली ऊषल!
मुस्कुराते हुए!
आँखें नीची कर लीं औरांग ने!
आगे आई ऊषल!
"कल, वहीँ आना, ये, दे दूँगी! वापिस!" बोली ऊषल,
हाथों में पसीना आ गया औरांग के!
नज़रें नीची किये हुए,
ऐसे ही खड़ा रहा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

और ऊषल,
इठलाते हुए,
मदमाती चाल में चलते हुए,
कक्ष से बाहर चली गयी!
ऐसे ही खड़ा रहा औरांग!
कुछ देर!
साँसें अब सामान्य हुईं!
बैठ गया!
माथे का पसीना पोंछा,
अपने गले को हाथ लगाया,
और सोच में डूब चला!
रात ऐसे ही कटी उसकी!
सीने में अगन धधक रही थी!
बेचैनी बहुत बढ़ चुकी थी!
नींद गायब थी अब!
एक तरफ खल्लट का भय!
और एक तरफ ये ऊषल!
क्या करे वो?
क्या चाहती है?
क्या?
नहीं जान पाया!
इसके उत्तर में जान की कोशिश करता,
तो उसका स्पर्श रोक लेता उसे!
चिंगारियां फूट पड़तीं!
अगला दिन भी आ गया!
जा पहुंचा नियत समय पर औरांग वहाँ!
ऊषल पहले से ही थी वहां पर!
आँखें नीची कर लीं औरांग ने!
हंस पड़ी ऊषल!
उठी!
उसके सामने आई!
उसका चेहरा देखा!
उसका शरीर देखा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

और उसकी ठुड्डी पर ऊँगली लगा,
सर उठाया उसका,
सर तो उठा,
लेकिन नज़रें नहीं!
मुस्कुराई ऊषल!
शिकार,
फंसने लगा था!
इस कामयाबी पर,
ख़ुशी छिपाए नहीं छिप रही थी उसकी!
"औरांग!" बोली ऊषल!
फिर से नाम उसका!
उसके मुंह से!
उसके होंठों से!
सिहर गया औरांग!
अब वो बैठ गयी,
"आओ, बैठो" बोली वो,
कुछ नही बोला वो!
नज़रें नीची किये हुए,
खड़ा ही रहा!
हाथ में हाथ बांधे!
"बैठो?" बोली वो!
नहीं बैठा!
अब गंडा निकाला उसने,
फिर से हिलाया,
उसे दिखाया!
अब नज़रें उठायीं उसने!
हाथ बढ़ाया उसने आगे अपना!
डर डर के!
"ये मुझे दे दो" वो बोला,
"ले लो!" वो बोली,
"लाओ" वो बोला,
"यहां आ कर ले लो!" वो बोली,
आगे बढ़ा वो!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

हाथ आगे किये हुए!
हाथ पर रखा गंडा उसने,
लेकिन छोड़ा नहीं!
ये भी एक चाल थी!
हाथ पकड़ा तभी ऊषल ने उसका,
और खींचने की कोशिश की उसे,
लेकिन औरांग की देह,
टस से मस नहीं हुई!
खूब कोशिश की उसने!
लेकिन नहीं हिला!
रत्ती भर भी नहीं!
तब वो खड़ी हुई!
उसके पास गयी!
उसको देखा!
हंसी!
और फिर से बैठ गयी!
"क्या चाहती हो मुझे?" पूछा औरांग ने!
उसने आह भरी!
एक कामुक आह!
अंगड़ाई लेते हुए!
खड़ी हुई फिर से,
और उसकी भुजा थाम ली!
खोलीं उसकी भुजाएं,
और आ गयी उन भुजाओां के बीच में,
और रख दिए उसके हाथ अपनी कमर के आसपास!
चिंगारियां फिर से फूट पड़ीं!
हलक सूखने लगा!
बदन में झुनझुनाहट होने लगी!
औरांग ने कोशिश की,
अपने हाथ छुड़ाने की,
लेकिन!
नहीं छुड़ाने दिए उसके हाथ!
अपने हाथों से,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

उसकी कमर भी पकड़ने की कोशिश की,
अब तो सिहर गया बेचारा औरांग!
हटाने लगा उसको!
लेकिन वो ऊषल!
मौक़ा नहीं छोड़ना चाहती थी कोई भी!
वो उसको,
इतना झुलसा देना चाहती थी,
कि जैसे लोहा गरम होकर,
मोम सा हो जाता है!
औरांग की देह!
फिर से बग़ावत कर बैठी!
फिर विवेक जागा!
और उसे हटाने लगा!
कोशिश की,
और हटा लिया!
पसीने पसीने हो चला था वो!
ऊषल सामने आई उसके!
गुस्से से देखा!
और खींच कर एक तमाचा जड़ दिया उसे!
भाग चली वहाँ से वो!
क्या चाल चली थी ऊषल ने!
समझ ही नहीं सका वो!
तमाचे की आवाज़ तो हुई,
लेकिन वो आवाज़ उसके दिल की धड़कन से कमतर ही थी!
अपना गाल सहलाया उसने अब!
वहीँ खड़ा रहा वो!
ऊषल का गुस्सा होना,
उसके लिए ठीक नहीं था!
और वो गंडा?
कहीं रख दिया शयन-कक्ष में तो?
अब तिहरी मार पड़ी उसे!
दुविधा अब,
तिविधा हो गयी!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

काँपता चला गया वो!
खोखला सा हो कर रह गया!
और चल पड़ा वहाँ से!
सोच में डूबा,
अपने गाल पर हाथ रखे,
आया बाहर, और एक जगह के लिए चल पड़ा!
सोच में खोया हुआ!

निकल पड़ा था औरांग कहीं!
भटक रहा था!
कभी यहां,
कभी वहां!
कभी कहीं बैठता,
कभी कही और बैठता!
फिर अपने मित्रों के पास गया,
आज मित्रों की हंसी-ठिठोली,
रास नहीं आ रही थी!
सबकुछ फीका फीका,
रसहीन लग रहा था!
मन में चिंता भी थी,
और कुछ अगन भी सुलगी थी!
ऐसे ही संध्या घिर आई!
लेकिन मन में रात थी!
रात!
काली रात!
स्याह रात!
और इस रात में,
एक ही चाँद था,
जो चमक रहा था!
वो चाँद था, ऊषल!
हाँ! वहीँ चाँद!
वही चमक रहा था!
इस चाँद की एक बात ख़ास थी,
इसकी रौशनी,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

शीतल नहीं थी!
अगन से भरी थी!
पल पल,
ये अगन, हवा खा लेती थी,
हवा, औरांग की सोच की हवा!
इसीलिए सुलग उठती थी!
और झुलस उठता था औरांग उस अगन में!
वो वहां से भी उठ गया!
और चल पड़ा तेज़ क़दमों से,
मदिरालय,
आज मदिरा ही साथ देती उसका!
गया वहां,
और चढ़ा ली!
जितनी चढ़ा सका!
और फिर हिलते-डुलते चल पड़ा वापिस!
अपने कक्ष की ओर!
सर्वत्र अँधेरा था,
बस दीप जल रहे थे, आसपास,
दूसरे घरों में,
यही दीप निशानी थे कि,
यहाँ मनुष्य बसते हैं!
आ गया अपने कक्ष में,
लेट गया!
धम्म से!
सामने नज़र गयी!
दरवाज़ा खुला था!
उठा,
चला,
दरवाज़ा बंद करने!
अभी सांकल लगाई ही थी,
कि, रुक गया!
रुक गया!
चिंगारियां फूटने लगीं!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

उतार दी सांकल!
बस भिड़ा दिया दरवाज़ा!
और जा लेटा!
अपना खंजर अपनी छाती से खोल,
एक तरफ रख दिया,
और आँखें बंद कर लीं!
मदिरा अधिक चढ़ा रखी थी,
तो नींद आ गयी जल्दी ही!
कोई आधे घंटे बाद,
दरवाज़ा हलके से खुला!
और कोई अंदर आया!
दरवाज़ा हलके से बंद भी कर दिया!
ये ऊषल थी!
इसीलिए नहीं लगाई थी सांकल उसने!
और सांकल खुली देख,
चाल भी अब खुलकर खेलनी थी उसको!
बेसुध लेटा था औरांग!
छाती पर हाथ रखे!
ऊषल,
बैठ गयी समीप उसके!
उस मोहरे को देखा!
जो राजा को शय देने वाला था!
अब चाल और गहरी करनी थी!
उसने अपने वस्त्र संभाले,
और आहिस्ता से लेट गयी उसके संग!
औरांग इस लोक से बाहर था अभी तो!
मदिरालोक में गोते लगा रहा था!
वो घूमी उसकी तरफ!
और उसके सीने पर हाथ रख दिया!
उसे पता नहीं चला!
अब उसने अपना हाथ ऊपर की तरफ किया,
गले तक,
और फिर माथे तक!


   
ReplyQuote
Page 8 / 14
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top