वर्ष २०१३ मेवात हरि...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०१३ मेवात हरियाणा की एक घटना!

208 Posts
1 Users
0 Likes
1,714 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

पहले श्रुति और केशव को भेजा वहाँ से,
वे गाड़ी में जाकर बैठ गए,
अब मैंने अपने नेत्र पोषित किये,
शर्मा जी के भी,
तीन चुटकियों के बाद,
नेत्र खोल देने थे,
चुटकियाँ मारीं,
और नेत्र खोल दिए!
आसपास देखा,
सब ठीक था,
भूमि में बड़े बड़े पत्थर थे!
और कुछ नहीं था!
तभी शर्मा जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा,
और सामने हाथ किया,
बड़ा ही अजीब सा नज़ारा था वो!
ऐसा लग रहा था कि,
भूमि में से प्रकाश निकला रहा है!
सफ़ेद!
चमकदार प्रकाश!
हम वहीँ के लिए चल पड़े,
ये जगह काफी आगे थी!
हम उन झाड़ियों से बचते हुए,
आगे बढ़ते रहे!
तभी भूमि में पानी हिलता हुआ दिखाई दिया!
हम रुक गए!
और फिर धीरे से आगे बढ़े!
सामने एक हौदी सी बनी थी!
ये पानी इसी में से रिस रहा था!
हौदी पूरी भरी थी!
और प्रकाश इसके पीछे से आ रहा था!
उसके पीछे क्या है,
ये जानने के लिए,
हम अब थोड़ा घूम कर गए,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

और जब वहाँ पहंचे, तो,
एक कुआँ सा दिखा!
कुआं था वो!
काफी बड़ा कुआं!
प्रकाश इसी में से आ रहा था!
हम आगे गए!
भम्म!
भम्म! दो बार बड़ी ही तेज आवाज़ हुई!
लगा जैसे कि,
कुँए में पानी भरा है, और उसमे,
बड़े बड़े दो पत्थर गिरे हों!
दृश्य बड़ा ही हैरतअंगेज था वो!
वो हौदी!
वो कुआँ!
पुराने ज़माने के गवाह थे वो!
लेकिन भूमि में दबे हुए!
लेकिन,
ऐसा तो कुछ भी नहीं था कि,
जिस से कोई भी समस्या हो,
जैसा कि श्रुति ने बताया था,
ऐसा कुछ भी नहीं था वहाँ,
अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं मिला था!
और अगले ही पल,
एक और हैरतअंगेज नज़ारा देखा!
वो हौदी,
जो कुछ क्षण पहले,
पानी से लबालब थी,
अब सूख गयी थी!
जहां पानी भरा था,
वहाँ अब,
कंकड़-पत्थर थे!
सारे सूखे ही सूखे!
अब हम कुँए तक गए!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

कुँए में झाँका,
कुँए में पानी था!
काले रंग का दिखाई दे रहा था!
बड़ा ही भयानक दृश्य था वो!
तभी कुँए का शांत पानी हिला!
उसमे भंवर सी उठी!
पानी घूमा अपने केंद्र की ओर,
बहुत तेजी से!
इतनी तेज के देखने वाले को ही चक्कर आ जाए!
झन्न के सी आवाज़ हो रही थी वहाँ!
उस कुँए से आ रही थी!
वो पानी बहुत तेजी से,
ऊपर की ओर उठा!
हम पीछे हुए!
तीव्रता से!
वो अपनी किनारी तक आया!
छपाक से बूँदें उठीं!
और हमारे मुंह पर पड़ीं!
फ़ौरन ही पोंछी!
और तभी फिर से झन्न की आवाज़ हुई!
और आवाज़ होते ही,
वो पानी नीचे बैठने लगा!
बहुत तेजी से!
हम आगे हुए,
पानी को नीचे जाते हुए देखा,
वो नीचे जाए जा रहा था,
भंवर खाता हुआ!
करीब पचास मीटर पर,
वो पानी रुक गया!
शांत हो गया!
फिर से झन्न की आवाज़ आई!
बहुत तेज!
और पानी और नीचे चला गया!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

और अब आँखों से ओझल हो गया!
ये क्या हो रहा था?
ऐसा कभी नहीं देखा था!
ये पहला वाक़या था मेरा!
कोई भी कुआं ऐसा नहीं देखा था मैंने!
और तभी मेरी नज़र पड़ी नीचे,
कुछ हिल रहा था!
मैंने शर्मा जी को भी दिखाया!
उन्होंने भी देखा,
कुछ हिल तो रहा था, सच में!
लेकिन क्या?
कुछ साफ़ नहीं दिख रहा था!
हाँ, इतना ज़रूर कि,
कोई कुँए की दीवार से चिपका हुआ,
ऊपर की तरफ आ रहा था!
हम नज़रें गड़ाए वहीँ देखते रहे!
एकटक!
चुपचाप!
और जो आ रहा था ऊपर,
उसे देखकर तो पाँव के तलवों में पसीना आ गया!
ये दो शिशु थे!
दोनों ही बीच में से चिरे हुए!
उनका आधा हिस्सा पीछे की तरफ लटक रहा था!
उन्हें देखकर तो,
जी मिचला सा गया!
पेट तक चिरे हुए थे वो!
अपनी आँतों में लिपटे हुए!
आंतें दीवारों से रगड़ रही थीं!
वे ऊपर आ रहे थे!
धीरे धीरे!
और हम खड़े हुए,
उन्हें ही ताक रहे थे!
अब उनके खिलखिलाने की आवाज़ें आने लगीं!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

किलकारियाँ गूँज उठीं!
हम खड़े हो गए थे अब!
वे ऊपर आएंगे?
बाहर तक?
यही सोच रहे थे!
हम पीछे हुए!
हट गए वहाँ से!
और अब उनके ऊपर आने का इंतज़ार किया!
कोई दस मिनट हो गए,
वे नहीं आये ऊपर!
अब हमने फिर से नीचे झाँका!
वे जा रहे थे!
धीरे धीरे!
वापिस!
इसका क्या अर्थ हुआ?
क्यों तो आये?
और क्यों गए?
और फिर से झन्न की आवाज़ हुई!
कुँए का पानी भंवर खाते हुए,
तेजी से ऊपर आ रहा था!
वो हौदी!
हौदी फिर से भरने लगी थी!
हम भाग लिए वहां से!
हट गए!
एक जगह रुके!
वहां के वे कंकड़-पत्थर सब डूब गए फिर से पानी में!
अब बजे दिमाग में हथौड़े!
कानों में शोर गूँज उठा!
ये क्या रहस्य है?
क्या हो रहा है यहां?
ये कौन हैं दोनों शिशु?
इस बीहड़ में,
ये हौदी और ये कुआँ,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

कहाँ से आये?
अब खुजलाना ही था सर अपना!
यहां भी इतिहास अपना कोई,
कक्ष खोलने वाला था!
लेकिन अभी कुछ हाथ नहीं लगा था!
तभी अचानक,
फिर से झन्न की आवाज़ हुई!
और हौदी का पानी नीचे बैठने लगा!
फिर से सूख गयी वो जगह!
सूखा ही सूखा!
वो कुआं!
हम वहाँ चले अब!
उसमे भी पानी नहीं था!
वो भी सूख गया था!
फिर से पानी उठा कुँए में!
तेजी से घूमता हुआ!
और आ गया अपने मुहाने तक!
भयानक बदबू उठी!
जैस मांस सड़ गया हो!
पानी पर नज़र पड़ी!
कटे-फ़टे शव तैर रहे थे!
असंख्य शव!
हाथ अलग,
पाँव अलग,
सर अलग,
आंतें अलग,
सभी एक दूसरे में उलझे हुए!
इसमें औरतें,
मर्द,
बालक-बालिकाएं,
सभी के शव थे!
सभी घूम रहे थे उस भंवर में!
बदबू के मारे,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

नथुने फटने को पड़ रहे थे!
जिव्हा पर,
वो भयानक गंध फ़ैल गयी थी,
गला कड़वा हो गया था!
एक बात और,
उन कटे हुए सरों पर,
लाल रंग का टीका लगा था!
सभी के!
लेकिन ये हैं कौन?
किसने किया इनका ये हाल?
फिर से झन्न की आवाज़ हुई!
और पानी नीचे चला तेजी से!
हम देखते रहे उसको नीचे जाते हुए!
और इस बार!
इस बार एक खिड़की सी दिखी,
कुँए की दीवार में,
कोई पंद्रह फ़ीट नीचे!
ये पहले नहीं थी!

एक खिड़की दीख रही थी!
कोई चार गुणा चार की होगी वो,
उसमे से प्रकाश आ रहा था बाहर,
जैसे अंदर कोई आग जल रही हो!
ये पहले नहीं थी!
यहाँ कोई बड़ी ही गड़बड़ थी!
कछ न कुछ तो था ही!
लेकिन अभी तक,
कोई ओर-छोर नज़र नहीं आया था,
खिड़की का अपने आप प्रकट हो जाना,
इसका एक अर्थ था,
अर्थात कोई चाहता था कि,
हम अवलोकन करें उसका!
लेकिन कौन चाहता था?
सामने तो आये?


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

बात क्या है?
क्या चल रहा है यहां?
कुछ पता तो चले?
लेकिन आया कोई नहीं था!
बस कोई लीला दिखाए जा रहा था!
मैंने एक निर्णय लिया,
वहाँ की एक मुट्ठी मिट्टी उठायी,
और प्रत्यक्ष-मंत्र लड़ाया!
और जैसे ही,
वो मिट्टी फेंकी,
मुझे छींकें लग गयी!
छाती में भयानक पीड़ा हुई,
मैं छाती पकड़े ही नीचे बैठ गया,
अब शर्मा जी घबराये,
वे भी नीचे बैठे,
और मुझे देखा,
मेरा सर नीचे थे,
उन्होंने उठाया,
और घबरा गए,
मेरी नाक से खून बह रहा था!
उन्हों रुमाल निकाला अपना,
और मेरी नाक पोंछने लगे,
थक्के आ रहे थे!
मैंने फिर से एक चुटकी मिट्टी उठायी,
मन ही मन जाप किया,
और फेंक दी सामने,
ये एवांग-मंत्र था!
मंत्र लड़ा,
और मेरी पीड़ा शांत हो गयी!
खून बंद हो गया!
किसी ने मुझे रोका था!
प्रत्यक्ष होने से!
कि नहीं चाहता था कि वो,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

प्रत्यक्ष हो!
जिस प्रकार से,
मेरे मंत्र को फ़ौरन ही काटा गया था,
उस से पता चलता था कि,
कोई कालकूट-विद्या का ज्ञाता रहा होगा!
ये विद्या, अब लुप्तप्रायः है,
कोई जानकार हो तो हो,
मैंने तो नहीं देखा!
आज तक नहीं!
उस समय तक नहीं!
अब यहां जो भी रहस्य था,
उसका पता लगाना ही था!
तभी फिर से आवाज़ हुई!
वहीँ झन्न सी!
वो हौदी!
पानी बह निकला उसका!
और बाहर फैलने लगा!
हम हट गए वहाँ से!
और दूर खड़े हो गए!
अब तीन बातें समझ में आयीं!
पहली,
यहां कोई है! और वो जागृत है!
दूसरी,
कोई नहीं चाहता कि उसे कोई तंग करे!
तीसरी,
कोई नहीं चाहता कि उसकी इस जगह को छेड़ा जाए!
लेकिन कौन?
कौन है ये?
और वो कटे-फ़टे शव?
वो चिरे हुए शिशु?
वो सब क्या है?
कोई बलि-कर्म?
या नरसंहार?


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

ऐसे बहुत से सवाल थे,
जो दिमाग में लगातार उपज रहे थे!
हमे यहाँ आये दो घंटे बीत चुके थे,
लेकिन अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा था!
तभी फिर से आवाज़ हुई!
झन्न!
झन्न!
बहुत तेज!
कान फाड़ती हुई!
जैसे सागर निकल कर आ रहा हो इस हौदी से बाहर!
फिर से पानी सूखा!
और आवाज़ कम होती चली गयी!
अबकी बार सोचा,
हौदी में देखा जाए!
हौदी के अंदर!
हम चले उधर!
हौदी बहुत गहरी तो नहीं थी,
लेकिन थी बहुत बड़ी!
कोई आठ गुणा छह फ़ीट की तो,
कम से कम रही ही होगी!
पत्थर से बनी थी!
खुली थी!
हमने अंदर झाँका!
सूर्य का प्रकाश अंदर पड़ रहा था!
अंदर झाँका तो होश उड़ गए हमारे तो!
अंदर की बनावट ऐसी थी कि क्या बताऊँ आपको!
वो हौदी,
कोई बारह फ़ीट गहरी रही होगी,
अब नीचे जहां वो खत्म होती थी,
वहाँ कोई दीवार नहीं थी!
ऐसा मानो कि,
जैसे आप किसी मकान में बनी किसी चिमनी,
जो कि कमरे के मध्य में है,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

आप छत से उस चिमनी में झाँक रहे हों!
जैसे कोई स्तूप हो,
और उस स्तूप पर ऊपर,
मध्य में कोई छेद बना दिया गया हो!
और उसमे झाँक रहे हों!
ऐसी बनावट थी उसकी!
ऐसा तो मैंने आजतक देखा तो क्या,
सुना भी नहीं था!
तभी कुछ आवाज़ें सी आयीं वहाँ!
जैसे कोई किसी को बुला रहा हो!
किसी का नाम लेकर,
ध्यान से सुना हमने,
लेकिन समझ नहीं आया!
फिर से आवाज़ें आयीं!
इस बार स्त्रियों की,
जैसे कोई गीत गा रही हों!
ये भी समझ नहीं आया!
फिर से किसी न किसी का नाम पुकार जैसे!
नाम भी समझ नहीं आया!
हम नीचे ही देख रहे थे,
कि एक स्त्री नीचे नज़र आई,
पूर्णतया नग्न,
जवान,
देह बड़ी मज़बूत थी उसकी,
कसी हुई,
रंग गोरा था,
लेकिन बदन पर उसने अपने,
जैसे हल्दी मल रखी थी,
पीला बदन था उसका,
केश बहुत लम्बे थे,
सर पर एक बड़ा सा जूडा बनाने के बाद भी,
पाँव की पिंडलियों तक थे!
हम उसको देख रहे थे,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

वो हाथों से किसी को इशारा कर रही थी!
लेकिन हमे नहीं देख रही थी!
कम से कम सात फ़ीट की रही होगी!
बदन पर,
कई जगह त्रिपुण्ड से बने थे,
स्तन लाल रंग से रंगे थे,
अजीब सी कोई श्रृंगार-रीति थी!
तभी वहां एक और स्त्री आई,
नीचे प्रकाश था, वैसा ही जैसा,
उस कुँए की खड़की से आ रहा था,
हाँ,
तो एक और स्त्री आई वहां,
उसका बदन भी ठीक ऐसा ही था!
मज़बूत,
कसा हुआ,
सुगठित,
और स्तन भी लाल रंग से रंगे थे,
बाकी बदन पीला था,
केश खुले हुए थे उसके,
उसके कंधे ढके थे उन केशों से,
वे आपस में बतिया रही थीं!
तभी एक और स्त्री आई वहाँ,
वैसी ही,
ठीक उन दोनों जैसी,
वो आधा दीख रही थी,
इसीलिए मैंने ज़रा सा अपने आपको घुमाया,
अब नज़र पड़ी उस पर,
उसने एक स्त्री का कटा हुआ सर पकड़ा था!
और उसे बार बार हिला रही थी वो!
तभी उसकी नज़र ऊपर गयी,
उसने हमे देखा,
जैसे ही देखा,
एक गरम सा गुबार उठा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

हमसे टकराया,
और हम पीछे जा गिरे,
चोट तो नहीं लगी,
लेकिन कंकड़-पत्थरों ने,
निशान डाल दिए थे हमारे बदन पर!
हम फिर से उठे,
और धीरे से आगे गए,
नीचे देखा!
जीभ बाहर आ गयी!
कटे हुए सरों का ढेर पड़ा था वहाँ!

तभी लगा,
कि कोई आ रहा है!
हम पीछे हो गए,
तब तक पीछे रहे,
जब तक वो आवाज़ नहीं चली गयी,
फिर से झाँका,
आँखें फ़टी रह गयीं!
शिशु-मुंड रखे थे,
उनकी आँखों से रस्सी निकाल कर,
बाँध लिए गए थे एक साथ!
बदबू के भड़ाके उठ रहे थे!
दृश्य देखा न गया!
सर पीछे कर लये,
मुंह में थूक जम आया था,
अब वो फेंका,
फिर से नीचे झाँका,
अब कोई नहीं था!
फिर से किसी के बोलने की आवाज़ आई,
हमने कान गड़ा दिए नीचे,
तभी एक और स्त्री आई,
उसने भी पीले रंग को,
अपने बदन पर मल रखा था,
लेकिन उसके स्तन,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

उन पर लाल की जगह, सफ़ेद रंग था,
खड़िया सा,
पाँव भी सफ़ेद थे,
खड़िया मल रखी थी शायद!
तभी वो औरत,
बैठ गयी,
चौकड़ी मार कर,
और धीरे धीरे उसने अपना सर उठाया,
और उसकी नज़र मुझसे मिली!
मैं और वो,
एकटक,
एक दूसरे की आँखों में देखते रहे,
वो वैसे ही देखते हुए,
खड़ी हुई!
चेहरा तमतमाया उसका!
मैं समझ गया कि वो गुस्से में है!
वो कुछ फुसफुसाई!
मुझे समझ नहीं आया एक भी शब्द!
वो फिर से फुसफुसाई!
मुझे नहीं समझ आया फिर से!
उनसे मुंह खोला अपना,
सारा मुंह काला था अंदर से!
जिव्हा भी काली,
दांत भी काले,
और तालू भी काला!
उसने इतना मुंह खोला,
जितना वो खोल सकती थी!
उसके आँखें भी बंद हो गयीं!
इतना मुंह खोला!
मैं देखता रहा उसको!
और फिर वो!
ज़ोर से चिल्लाई!
कान के पर्दे फटने को हो गए!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

हम पीछे हो गए!
नीचे जैसे भगदड़ सी मच गयी थी!
अब फिर से नीचे झाँका!
वहाँ स्त्रियां ही स्त्रियां थीं!
असंख्य!
और तभी आवाज़ हुई!
झन्न! झन्न!
पानी आ गया वहाँ!
और वे स्त्रियां,
उस पानी में डूबते चली गयीं!
पानी बहुत तेजी से ऊपर आ रहा था,
इसीलिए हम हट गए वहाँ से!
पानी आ गया ऊपर तक!
लबालब भर गयी हौदी!
हम फिर कुँए तक आये!
कुँए में खिड़की अभी भी खुली थी!
ये क्या रहस्य था!
लेकिन,
जो भी था,
बहुत ही भयानक था!
एक बात समझ में आ गयी थी!
नीचे कुछ है!
कोई भवन!
कोई स्थान!
जो अभी भी जागृत है!
जहां अभी भी,
आत्माएं,
प्रेत रूप में विचरण कर रही हैं!
लेकिन ये हैं कौन?
ये था सबसे विचित्र सवाल!
अब हम हटे वहाँ से!
और चले वापिस केशव की तरफ,
मैंने कलुष मंत्र वापिस ले लिया था,


   
ReplyQuote
Page 2 / 14
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top