आराम करते,
घोड़ों को पानी पिलाते,
और फिर चलते,
फिर रात हुई,
फिर सराय में ठहरे,
और सुबह फिर चले!
और आ गए नेहटा!
यौम का डेरा!
वहाँ पहरेदार मिले,
उनको जानता था औरांग!
और अंदर प्रवेश कर गए!
अब दज्जू से मुलाक़ात हुई!
दज्जू बहुत प्रसन्न हुआ!
दज्जू ने उन्हें ठहराया,
स्नान आदि का प्रबंध किया,
और फिर भोजन आदि का!
उसके बाद आराम!
बहुत यात्रा की थी उन्होंने!
मित्रगण!
अब सच में,
ऊषल उस औरांग से,
प्रेम करने लगी थी!
हालांकि उसने,
इसका इज़हार अभी तक नहीं किया था!
दिल से तो नहीं!
केवल मुंह से,
वो भी अपने खेल के मुताबिक़!
लेकिन उस रात!
उस रात औरांग पर,
मेह बरसा ऊषल के प्रेम का!
कच्ची मिट्टी पक गयी!
प्रेम पक गया!
वो अंकुर अब,
पौधा बनकर पेड़ बनने जा रहा था!
ऊषल ने,
सौंप दिया अपना प्रेम उसे!
स्वीकार कर लिया उसे!
औरांग!
सबसे भाग्यशाली समझ रहा था अपने आपको,
उस रात!
मिलन हुआ था!
अगन कुछ समय के लिए,
ठंडी पड़ गयी थी!
और ऊषल,
ऊषल अब प्रेम में लिप्त थी औरांग के!
दोनों,
प्रेमी हो गए थे अब!
पक्के!
स्थायी!
अब तो मौत ही अलग करती उन्हें!
या फिर वो,
खल्लट!
वे एक दिन रुके वहाँ!
यौम से भेंट हुई!
यौम ने उनको सभी मदद देने का वचन दिया!
यौम,
क्रूर था!
लेकिन वचन का पक्का!
तब मित्रगण!
वचन का मोल होता था!
आज की तरह नहीं!
कि सच को नकार दिया जाए!
अपने को भी न पहचाना जाए!
अब मतलबी दुनिया है!
वचन का क्या मोल!
लेकिन पहले,
वचन के ऊपर,
जंग छिड़ जाती थी!
प्राण चले जाते थे,
लेकिन वचन नहीं!
अगले दिन,
यौम के अनुसार,
उनको जाना था,
उस भुवनिकाओं के पास!
जहां वो ऊषल और वो लड़की,
सुरक्षित रहेंगे!
वहां तक,
किसी की पहुँच नहीं!
और रहा खल्लट,
ओ उसे भी गिरा दिया जाएगा!
यहां सब तैयार है!
सभी आदमी तैयार हैं!
और यही हुआ!
दज्जू उन महिलाओं को छोड़ने,
औरांग के साथ,
चल पड़ा,
एक दिन चले,
एक रात चले!
और फिर वहां आये,
जहां आज मैं खड़ा था!
इस स्थान पर!
आज के मेवात के स्थान पर!
वे आ गए,
पुरुषों को प्रवेश नहीं था वहां!
दज्जू की माँ थी वहाँ,
वो मिलने आई,
दज्जू ने सारा हाल सुनाया,
माँ ने,
उस ऊषल को,
और उस लड़की को,
उस डेरे में,
सम्मिलित कर लिया!
दज्जू ने,
सब समझा दिया था माँ को!
और उसी दिन,
वे दोनों वहीँ से,
वापिस हो लिए!
जाते हुए औरांग चिल्ला के बोला था!
'मैं आऊंगा! ज़रूर आऊंगा!'
इतना सुन,
ऊषल के आंसू निकल पड़े थे!
शायद,
उसको भान था,
कि खेल का अंत कैसा होगा!
पता नहीं, ये औरांग,
अब कभी,
वापिस आये या न आये!
वे वापसी चल दिए!
अब जंग होनी थी!
अब दज्जू ने टोह ली,
उस खल्लट की,
खल्लट के विषय में,
एक एक तार खोल के रख दिए औरांग ने!
वे चलते रहे!
और पहुँच गए यौम के पास,
जो कि अब तैयार था,
जंग लड़ने को!
उस खल्लट से!
औरांग और दज्जू,
चल दिए थे वापिस!
एक बात की शान्ति थी औरांग को,
कि अब ऊषल, गिरफ्त से बाहर थी उस,
खल्लट की!
और आगे की रणनीति अब बैठ के बनानी थी!
यूँ तो यौम बहुत कुशल था,
लेकिन फिर भी,
यौम को अगर,
उस खल्लट की जानकारी दे दी जाए,
तो और मज़बूती मिल जायेगी!
वे आ रहे थे,
यौम के पास,
वे पहुंचे,
यौम के पास,
और औरांग ने,
एक एक कमी उस खल्लट की,
बता दी उस यौम को!
यौम हंसा!
अपने जंघाओं पर हाथ मारे!
दज्जू और औरांग की पीठें सहलायीं!
यौम को जो चाहिए थे,
वो लालायित था उसके लिए!
खूब सारा खजाना!
और फिर एकाधिकार!
इस क्षेत्र में एकाधिकार!
यौम ने सारी तैयारियां कर ली थीं!
यौम तो तैयार था!
उसने पहले भी ऐसा जंग,
बहुत लड़ी थीं!
और ऐसे ही कई बार विजय प्राप्त की थी!
नौ पत्नियां थीं यौम के!
और चौदह संतानें!
वो भी,
खल्लट की तरह विख्यात था!
क्रूरता में,
खल्लट जैसा ही था!
और फिर,
एक हफ्ता बीत गया!
खल्लट की कोई खबर नहीं आई!
एक हफ्ता और बीता,
कोई खबर नहीं!
औरांग दुविधा में था,
क्या शांत हो कर बैठ गया खल्लट?
ये फिर,
ये भी कोई चाल है उसकी?
यौम निश्चिन्त था!
यहां यदि खल्लट आता,
तो बच के नहीं जा सकता था!
हज़ार के करीब आदमी थे उसके पास!
और खल्लट के पास,
मात्र ढाई सौ!
पंद्रह दिन से अधिक हो गए,
और अब दिल में कसक उठी औरांग के,
उसने दज्जू से कहा,
दज्जू राजी हो गया,
चल दिए मिले,
कम से कम चालीस साथी लेकर!
औरांग मिला अपनी प्रेयसी से!
प्रसन्न हुआ!
वो भी प्रसन्न हुई औरांग को देखकर,
आंसुओं से विदाई दी औरांग को!
मित्रगण!
दो माह बीत गए!
कोई खबर नहीं आई खल्लट की!
अब तो, यौम भी निश्चिन्त था!
इस तरह,
एक बार जब दज्जू और औरांग,
मिल कर आ रहे थे ऊषल से,
उस दिन कहर टूटा खल्लट का!
खल्लट के डेढ़ सौ आदमियों ने,
घेर लिया था उन चालीस-बयालीस आदमियों को!
दो महीने से,
खूब नज़र रखी थी खल्लट ने उन पर,
उनको आवाजाही पर!
अब पकड़े गए थे!
जंग हुई,
और दो के अतिरिक्त,
सब काट दिए गए!
और जो दो बचे,
और थे औरांग और दज्जू!
लाया गया सामने खल्लट के!
खल्लट का चेहरा तमतमाया हुआ था!
दग़ाबाज़ों का कट्टर शत्रु था ते खल्लट!
मित्रगण!
दोनों को बाँध दिता गया पेड़ों से!
पूछा ऊषल के बारे में,
जान तो सब गया था खल्लट,
अब बस बदला लेना बाकी था!
उसे क़तई उम्मीद नहीं थी कि,
उसका वो सबसे बड़ा विश्वासपात्र औरांग,
घर में ही डाका मारेगा!
और यही तो हुआ था!
अमानत में खयानत की थी,
इस औरांग ने उसकी!
औरांग की,
देह की,
हाथों की,
और पांवों की,
पेशियाँ काट डाली गयीं!
हाथों की,
कोहनी के पास से,
और पांवों की,
ऐड़ी के ऊपर से,
अब न चल सकता था,
और न हाथ ही उठा सकता था!
इतना ही नहीं!
गरम सलाखों से,
उसकी आँखें भी बींध दी गयीं!
लेकिन मुंह नहीं खोला उसने,
नहीं बताया कि उसकी प्रेयसी,
ऊषल,
कहाँ है!
खल्लट के एक ही वार से,
औरांग की आंतें नीचे झूल गयीं!
आंतें काट डाली गयीं!
तड़पता रहा औरांग!
और एक ही वार से,
औरांग का सर,
काट डाला गया!
देह के,
टुकड़े कर दिए गए!
सर काट कर,
एक झोले में रख लिया,
और लाद दिया अपने घोड़े पर!
चढ़ गया औरांग अपने प्रेम की बलि!
खल्लट ने,
उसका रक्तपान किया!
ऐसा क्रूर था खल्लट!
और अब बारी थी उस दज्जू की!
औरांग का हाल देख कर,
कलेजा फट गया था दज्जू का!
वो भय खा गया था!
और इस तरह,
वो सब बकता गया,
शुरू से आखिर तक!
तैयार हो गया,
सारा हाल बताने को!
उस ऊषल का पता बताने को!
और इस प्रकार,
खल्लट को पता चल गया उस ऊषल का!
ऊषल ने,
जिस थाली में खाया था,
उसी में छेद किया था!
अब ऊषल को,
उसके किये की,
सजा देना बाकी था!
लाद दिया घोड़े पर,
उस दज्जू को!
रस्सियों से बाँध कर!
गले में,
हाथ में,
कमर में!
खल्लट उस समय,
यमराज से कम नहीं था!
बस,
यमराज ने,
रौद्र रूप धर लिया था!
खल्लट के और साथी आ मिले!
कुछ भाड़े के भी थे!
कुल संख्या पांच सौ से अधिक थी!
अब,
वे चल पड़े,
उन भुवनिकाओं की ओर!
वहीँ!
जहां मैं खड़ा था!
खल्लट का वो हिंसक टोला,
बढ़ चला आगे,
रात चला पूरी,
और सुबह के वक़्त,
पहुँच गए वे उन भुवनिकाओं के डेरे पर!
अब उतारा दज्जू को!
दज्जू ने अपनी माँ को बुलाया,
और अब हुई खल्लट की क्रूरता आरम्भ!
एक ही वार में,
आंतें खींच लीं,
उस दज्जू की,
किरिच मार कर!
दज्जू की माँ के दो टुकड़े कर दिए,
और वो टोला,
उन भुवनिकाओं के डेरे में,
प्रवेश कर गया!
जो नज़र आया,
नज़र आई,
तलवारों की भेंट चढ़ गया,
चढ़ गयी!
क्या शिशु,
क्या बालिकाएं,
क्या स्त्रियां,
सभी!
भुवनिकाओं को,
अवसर ही नहीं मिला,
कुछ करने का,
उनके खड्ग,
रखे के रखे रह गए!
उन्हें तलाश थी उस ऊषल की,
ऊषल कहाँ थी?
पता नहीं!
कहाँ गयी?
पता नहीं!
क़त्ल-ए-आम हो गया था आरम्भ!
एक एक करके,
सारी साधिकाएं,
तलवार की भेंट चढ़ती गयीं!
लेकिन ऊषल नहीं मिली!
और जब ढूँढा,
तो कहीं नहीं मिली!
हाहाकार मचा था!
खल्लट के टोले के,
सभी घोड़े,
लाल हो गए थे!
खून के कारण!
भयानक रक्तपात हुआ था!
और फिर बारी आई,
प्रधान साधिका की,
मित्रगण!
उसने जब नहीं बताया,
तो उसकी देह के,
असंख्य टुकड़े कर दिए गए!
वो साधिका,
किसी का आह्वान ही नहीं कर सकी!
अवसर ही नहीं मिला था!
लेकिन ऊषल?
वो कहाँ गयी!
खल्लट के सर,
खून सवार था!
उसने एक एक कक्ष टटोल मारा!
और एक कक्ष में,
खल्लट को,
फांसी लगी हुई देह मिली ऊषल की!
उसकी देह को उतारा गया!
टुकड़े कर दिए गए!
और आग लगा दी गयी!
हर चीज़ तोड़ दी गयी!
और फिर सामने आई वो लड़की!
जब उसने कुछ नहीं बताया,
तो उसके हाथों की सारी उंगलियां,
पांवों के अगले हिस्से,
और जीभ,
काट दी गयी!
ऊषल!
अपने खेल में सफल तो हुई थी,
लेकिन,
आखिरी चाल में,
राजा ने बाजी पलट दी थी!
उसको मालूम था कि खल्लट का यहां आना,
ये दर्शाता था,
कि औरांग अब इस संसार में जीवित नहीं!
इसीलिए,
उसने फांसी लग ली थी!
ढाई सौ से ज़्यादा भुवनिकाएँ,
काट डाली गयी थीं!
सिर्फ एक,
एक चाल के कारण,
ऐसा रक्तपात हुआ था!
मित्रगण!
खल्लट का प्रतिशोध पूरा हो गया था!
अब सांस में सांस आई थी उसके!
वो,
हर समस्या का,
ऐसे ही समूल नाश किया करता था!
कर दिया था नाश उसने!
अब न तो औरांग ही शेष था,
और न वो ऊषल!
वे लौट चले!
अपनी तलवारें भी नहीं पोंछीं उन्होंने!
उधर,
वो यौम!
यौम चिंतित था!
औरांग और दज्जू,
नहीं लौटे थे!
ऐसा होता नहीं था!
आशंका हुई,
और यौम,
अपने बारह सौ साथियों को लेकर,
चल पड़ा उसी रास्ते पर,
जहां वे दोनों गए थे!
उसका लक्ष्य,
उन भुवनिकाओं का डेरा था!
आधे दिन के बाद,
खल्लट और यौम!
एक दूसरे के सामने हुए!
घोड़ों की लगामें कस दी गयीं!
थाम दिए गए वो!
अब सब समझ चुका था यौम!
यमराज की कृपा हुई उस पर!
त्यौरियां चढ़ गयीं!
रक्त की प्यासी तलवारें,
म्यानों से बाहर आ गयीं!
और भिड़ गए सभी योद्धा!
तलवारों से तलवारें टकराईं!
युद्ध का मैदान बन गया था वो स्थान!
वे पांच सौ थे,
और ये बारह सौ!
कहाँ ठहरते!
दो ही घंटे में,
खल्लट के सभी आदमी,
तलवारों की भेंट चढ़ गए!
और खल्लट,
पकड़ लिया गया!
यौम के सामने लाया गया!
यौम ने उसे ऐसी सजा दी,
जिसकी कल्पना कभी खल्लट ने भी न की थी!
उसके हाथ पाँव काट दिए गए,
और बाँध दिया गया कमर में रस्सी डालकर!
घोड़े के साथ घिसटने के लिए!
और जब तक,
यौम पहुंचा खल्लट के डेरे पर,
तब तक,
खल्लट की देह का मांस,
साथ छोड़ चुका था हड्डियों का!
अब तो हड्डियां भी लाल पड़ गयीं थीं!
अब हुआ क़त्ल-ए-आम यहां!
एक एक करके,
सभी काट डाले गए!
क्या बालक,
बालिकाएं,
क्या जवान,
और क्या वृद्ध!
एक एक को काट डाला गया!
अब ये डेरा,
और ये सम्पदा,
सब उसका ही था!
हो गया अंत!
अंत!
उस ऊषल का,
उस औरांग का,
उस लड़की का,
उस दज्जू का,
उन भुवनिकाओं का,
उस खल्लट का!
हंसा, बंसा सभी का!
और ये नाम,
हमेशा के लिए,
तारीख़ के सफ़ों में दर्ज़ हो गए!
वो जीभ कटी लड़की, वही थी,
ऊषल के साथ आने वाली,
वो आदमी,
जिसके बंधन मैंने काटे थे,
वो दज्जू ही था!
और ये दज्जू ही था,
जिसने ये खुलासा किया था!
मैं तो हैरान था!
सन्न था!
एक खेल ने,
कैसे एक 'साम्राज्य' को,
नष्ट कर दिया था!
खेल में तीन ही,
अहम किरदार था,
ऊषल,
औरांग,
और खल्लट!
लेकिन,
ऊषल ने कभी नहीं सोचा था,
कि कुछ अनजान किरदार भी,
शरीक हो जाएंगे!
और उसके इस भयानक खेल,
में भेंट चढ़ जाएंगे!
ऐसे किरदार,
जिसे वो जानती तक नहीं थी!
वो लड़की,
जिसकी जीभ काटी थी,
उसको सजा दी गयी थी,
कभी न बोलने के लिए!
अब सजा भोग रही थी!
दज्जू,
अपनी मित्रता के लिए,
