दिल धड़क उठा उसका!
वो भाग चला उस लड़की की तरफ!
और जो खबर मिली वो ये,
की खल्लट ने नहीं आने दिया उसे,
अब तो भभक उठा औरांग!
लड़की चली गयी खब देकर!
औरांग!
गुस्से के मारे धधकता कोयला हो गया!
उसका बस चलता,
तो गर्दन उड़ा देता उसी वक़्त उस खल्लट की!
लेकिन,
ये केवल सोच थी!
यथार्थ में,
खल्लट से भिड़ना कोई सरल कार्य नहीं था!
और वो भी तब,
जब खल्लट के घर पर ही,
उसके किसी विश्वासपात्र ने,
डाका मारा हो!
खल्लट,
किसी भी इंसान के,
सैंकड़ों टुकड़े करने में समर्थ था!
वो अकेला ही कइयों पर भारी था!
अब क्या करे वो?
लौट पड़ा वापिस!
आ गया घर अपने,
खंजर रख दिया एक तरफ,
और अपना एक हाथ,
सर पर रखते हुए,
सोचने लगा कुछ!
दिन बीतने लगे!
हफ्ता बीता!
औरांग की हालत,
मुरझाये पौधे की तरह हो गयी!
वो मिली नहीं,
और कोई खबर भी नहीं!
अब औरांग,
खल्लट से चिढ़ने लगा था!
मन ही मन,
घृणा होती थी उसे!
उसकी प्रेयसी पर,
उस खल्लट का कब्ज़ा था!
कब्ज़ा कैसे टूटे?
वो मानने को विवश थी खल्लट की हर बात!
क्यों?
उलझा हुआ रहता था बहुत!
कोई दस दिन बीते,
और उसके पास खबर आई,
वही लड़की आई!
भाग पड़ा औरांग!
एक एक शब्द सुना!
अब से कुछ ही देर में,
बौड़ा के पास मिलना था उन्हें!
बौड़ा!
खल्लट का पूजा-स्थल!
यहीं बुलाया था ऊषल ने उसे!
वो चल पड़ा,
ये स्थल,
हरा-भरा था!
खल्लट यहीं से,
सारा संचालन किया करता था!
उसकी बिना अनुमति के,
कोई प्रवेश नहीं कर सकता था वहाँ!
उसकी पत्नियां,
और उसके विश्वासपात्र,
बस वही आ सकते थे वहाँ,
बेरोक-टोक!
पहुँच गया वो वहां!
वो वहीँ खड़ी थीं!
अंदर,
एक ओसारे में.
वहीँ चला औरांग!
लड़की हट गयी,
दूर खड़ी हो गयी!
उनके बीच अब बात हुई!
खल्लट के बारे में,
बहुत कुछ बताया उसने,
की क्या किया करता है,
कैसे मारता है,
कैसे पीटता है,
कैसा दुर्व्यवहार किया करता है,
क्यों कहीं नहीं आने जाने देता,
कैसी कैसी पाबंदियां लगाई जाती हैं!
ऐसी ऐसी कड़वी बातें!
भर दिया औरांग को!
सुना सुना कर!
औरांग की भुजाएं,
फड़कें!
ज़ोर मारें!
जवान खून था!
गरम हो चला था!
और ये भी भी कह दिया,
की जल्दी ही कुछ नहीं किया गया,
तो शायद कभी न मिल पाएं दुबारा,
वो मार डालेगा किसी दिन,
उसको गुस्से में!
न मिलने वाली बात ने तो,
छुरी का काम किया!
उलीच दिया जिगर औरांग का!
सटीक वार किया था!
अबकी बार भी!
कोई चूक नहीं!
कोई कमी नहीं!
सटीक वार!
औरांग भर गया था,
जितना भरा जा सकता था,
उतना भर दिया था ऊषल ने,
औरांग को!
अब,
औरांग ने उसे,
अपना सोच हुआ निर्णय बताया!
वो चौंक पड़ी!
ऐसा?
नहीं!
टुकड़े कर देगा खल्लट!
पेड़ पर लटकवा देगा,
खाल और मांस,
जब तक हड्डियां नहीं छोड़ देंगी,
तब तक कीड़े-मकौड़ों और,
चील-कौवों का भोजन बनना पड़ेगा!
काँप गयी ऊषल तो!
और अब समझाया औरांग ने उसे!
बहुत समझाया!
न उसे समझना था,
और न वो समझी!
औरांग जो कह रहा था,
वो उसकी नीति से अलग था!
मोहरे को,
सीधा ही चलना था!
खाना नहीं बदलना था!
फिर भी!
ऊषल ने विचार करने को कह दिया,
की सोच कर बताएगी!
यदि ऐसा सम्भव है,
तो ऐसा ही सही!
बस,
कुछ देर-बदल करना होगा उसको!
इस खेल में!
बस, कुछ बदलाव!
दिन बीते,
चार दिन बीत गए,
औरांग बड़ी मुश्किल में था,
रह रह कर उसे याद आती थी ऊषल की,
और अब ऊषल के साथ साथ,
खल्लट भी नज़र आता था खड़ा हुआ!
न रात की नींद थी बाकी,
न दिन का चैन!
प्रेम-पीड़ा ने त्रस्त कर दिया था उसे,
दो दिन और बीते,
और उसी दिन,
खल्लट के सन्देश आया उसके पास,
वो चिंतित हुआ,
कि कहीं भेज न दे उसको वो,
लेकिन जाना तो था ही,
जा पहुंचा खल्लट के यहाँ,
खल्लट तैयार था,
कहीं जा रहा था,
गर्मजोशी से मिला वो औरांग से!
बिठाया,
और उसको बताया कि वो हफ्ते भर के लिए,
बाहर जा रहा है,
अब उसके डेरे का संचालन,
उसे ही करना है,
उसके साथ,
हंसा, बंसा, भम्मा आदि भी जा रहे हैं,
एक हफ्ते बाद आएंगे!
ये तो तोहफा मिला था उसको!
अब खूब लाग-लपेट की उसने!
कि चिंता न करे वो,
सब देख लेगा,
कोई दिक्कत नहीं होने देगा!
आदि आदि!
और उसी दोपहर,
खल्लट अपने साथियों संग,
चला गया बाहर!
अपने काम से,
अब यहां की सारी देख-रेख उसके हाथ में थी!
सीधा अपने घर पहुंचा वो!
आज खुश था!
अब कम से कम उसकी प्रेयसी मिल तो पाएगी!
वो भी मिल पायेगा!
थोड़ी ही देर में,
ऊषल,
उसके घर आ पहुंची!
ये तो मुंहमांगी मुराद पूरा होने जैसा था!
लिपट गया वो उस से!
चूम डाला हमेशा की तरह!
औरांग का जितना जोश वो देखती,
फौरन ही अंदाजा लगा लेती,
कि उसका खेल अब अंतिम चरण में है!
लोहा गरम है,
चोट मारने की देर है!
अब उनमे बातें हुईं,
औरांग का निर्णय,
उस पर विचार किया था उसने,
विचार तो सही था,
लेकिन वो जाएंगे कहाँ?
खल्लट को सभी जानते हैं!
वो ढूंढ निकालेगा!
चाहे कहीं भी छिप जाएँ जाकर!
और ऐसा कोई नहीं,
जो खल्लट से टकरा सके!
ये थी असली समस्या!
लेकिन इसका भी निदान किया औरांग ने!
बता दिया कि वो कहाँ जाएंगे!
वहन खल्लट कभी नहीं ढूंढ पायेगा!
उसकी देख,
सब काट देगा औरांग!
लेकिन इस से,
ऊषल का वो खेल,
बेमायनी था!
ऊषल चाहती थी कि,
औरांग उस खल्लट की हत्या कर दे!
औरांग को तो उलटी सी आ गयी थी!
ये सुनकर!
अगर वो हत्या करे भी,
तब भी वो यहां से जीवित नहीं जा सकता था वापिस!
इसके लिए योजना बनानी थी,
और योजना के लिए समय चाहिए था!
यहाँ तो कोई मदद करने से रहा,
ये मदद,
कहीं और से ही चाहिए थी,
और उसके लिए,
यहां से निकलना ज़रूरी था!
अब जो निर्णय लिया गया, वो ये था,
औरांग,
कल सुबह निकलेगा यहां से,
किसी सुरक्षित स्थान का पता निकालने के लिए,
वहाँ से,
उसको मदद के लिए,
कुछ आदमी चाहियें,
पेशेवर,
जो लड़ सकें,
भिड़ सकें,
क़त्ल-ओ-ग़ारत मचा सकें!
फिर घेरा जाएगा खल्लट को,
खल्लट से आमने सामने की लड़ाई भी हो सकती है!
इसीलिए,
वो जो आदमी चाहियें,
वे कुशल होने चाहियें,
खल्लट के आदमियों की सारी कुशलता,
तो ये औरांग जानता ही था!
जब ऐसा हो जाएगा,
तब ऊषल को खबर पहुंचा दी जायेगी,
और ऊषल को,
उस जगह पर आना होगा!
इस से खल्लट का भी नाश होगा,
और ऊषल का भी प्रतिशोध पूर्ण होगा!
अब इतना तो करना ही होगा!
ये किसी गीदड़ का शिकार नहीं था,
ये सिंह का शिकार था!
इसके लिए जाल भी बुने जाने थे,
और पकड़ भी मज़बूत रखनी थी!
ये योजना पसंद आई ऊषल को!
उसे तो अपना उद्देश्य पूर्ण करना था,
अब उसके लिए,
भले ही उसकी जान ही क्यों न चली जाए!
हो गया निर्णय!
मित्रगण!
देखिये ज़रा!
ऊषल का उद्देश्य क्या था!
और इस औरांग का क्या!
लेकिन औरांग भी तैयार था,
वो जानता था,
जब तक वो खल्लट ज़िंदा है,
वे ख़ुशी से,
और निर्भय नहीं रह सकते!
इतना विचार कर,
चली गयी थी ऊषल!
और औरांग!
अब आसमान में विचरण कर रहा था!
उसका उद्देश्य खल्लट के पीछे खड़ी,
ऊषल थी!
ये खल्लट,
खल्लट!
सबसे बड़ा रोड़ा था दोनों के बीच!
अपनी योजना के अनुसार,
औरांग अगली सुबह,
अपना घोड़ा ले,
थोड़ा सामान लाद,
चल दिया!
कहाँ चल दिया?
बेमक़सद नहीं?
उस दज्जू के पास!
जो सराय में मिला था उसे!
दज्जू उसकी मदद कर सकता था!
वो चलता रहा,
रुका बीच में,
फिर चला,
फिर सुस्ताया,
फिर चला,
फिर रात हुई,
सराय में रुका,
भोजन किया,
सो गया,
सुबह स्नान किया,
सामान लिया,
और फिर चला,
सारा दिन चला,
सारी शाम चला,
और फिर,
फिर रुका सराय में!
अगली सुबह फिर चला!
और दोपहर तक,
वो पहुँच गया,
नेहटा!
यहीं रहता था वो दज्जू!
यहाँ के लोग भी,
वैसे ही थे,
खल्लट के डेरे की तरह!
अब उसने पूछा दज्जू के बारे में,
और उसको तब ले जाया दज्जू के पास!
दज्जू ने गर्मजोशी से स्वागत किया उसका!
एक मित्र की तरह!
दज्जू का वो डेरा भी,
ज़रायमपेशा लोग थे ये भी!
सभी के सभी!
खूंखार और हिंसक!
दज्जू यहां उप-संचालक के दर्ज़े पर था,
संचाल था यौम!
खल्लट जैसा एक भीमकाय आदमी!
हत्यारा!
लूटेरा!
महाठग!
यही सब काम थे उसके!
उस समय के कई राजनैतिक,
लोगों से जानकारी थी उसकी!
इसीलिए बेख़ौफ़ रहा करता था यौम और उसका डेरा!
दज्जू ने मिलवाया यौम से उसको!
यौम हंसी-ख़ुशी मिला!
यौम,
खल्लट को भी जानता था!
खल्लट के साथ पुरानी रंजिश थी उसकी!
इसका फायदा मिलना तय था औरांग को!
अब दज्जू उसको ले गया,
उसके रहने के कक्ष में!
उसको भोजन करवाया,
जो भी चाहा औरांग ने,
सब दिया गया!
और इसी तरह,
औरांग ने उस दज्जू को,
अपने आने का प्रयोजन बता दिया!
दज्जू ने उसका साथ देने के लिए हाँ कर दी!
मित्रता हो गयी थी उनमे!
और उस समय,
मित्र का महत्त्व बहुत हुआ करता था!
जान तक दे दी जाती थी!
ऐसी थी मित्रता!
दज्जू ने यौम(महा-यौम) से सारी बात बतायी,
यौम ने मान तो लिया,
लेकिन जब तक खल्लट का मूल नाश न हो जाए,
तब तक वो उस ऊषल को यहां नहीं रहने देना चाहता था,
बात भी सही थी!
यौम नीति बनाने में,
निपुण था!
और इसी नीति के अनुसार,
ऊषल को रखना होगा,
उस स्थान पर,
जहां दज्जू की माँ रहती है!
उन भुवनिकाओं के साथ!
वहाँ किसी की पहुँच नहीं!
किसी की भी!
खल्लट हाथ रगड़ता ही रह जाएगा!
और उसको हार माननी पड़ेगी!
खल्लट का सारा सौदा,
यौम का हो जाएगा!
वाह ऊषल!
तेरी योजना से,
अब कितने लोग तलवार की भेंट चढ़ेंगे,
देखती रहना!
एक दिन रहा वहाँ औरांग!
जितना उसने माँगा था,
उस से कहीं अधिक ही मिला था उसे!
यहां आदमी भी थे,
बिलकुल उन जैसे ही!
जो लड़ सकते थे,
मर सकते थे,
मार सकते थे!
मुक़ाबला बराबर का था!
अब दज्जू और यौम से विदा ले,
अपनी योजना के दूसरे चरण में पहुंचा औरांग!
वो चल दिया,
वापिस,
दो दिन चला,
और आ गया अपने स्थान वापिस!
अब बस,
उसे बताना था ऊषल को,
कि क्या करना है आगे!
सबकुछ खल्लट के आने से पहले ही हो जाए,
तो काम बन जाए!
हाथ रगड़ता रह जाएगा खल्लट!
और फिर शायद हिम्मत ही नहीं करे वो,
उस पर हाथ डालने की!
उसी शाम,
खबर आई उसके पास,
वही लड़की आई थी,
कुछ ही देर में,
औरांग को मिलना था ऊषल से!
वो तैयार था!
ऊषल का खेल,
अब अपने अंतिम चरण में था!
प्यादा आगे बढ़ चुका था!
सही जगह ले चुका था!
बस, अब राजा को शय देना ही शेष था!
जा पहुंचा औरांग!
वो वहाँ खड़ी थी पहले से ही!
अब सारी योजना बता दी औरांग ने!
जिस प्रकार औरांग बता रहा था,
उसी पल,
ऊषल के हृदय में,
कोमलता आ गयी,
औरांग के लिए!
भेंट चढ़ा दी थी इस बेचारे औरांग की उसने,
अपने प्रतिशोध की ज्वाला में!
यदि सब ठीक हुआ,
तो जीवन भर,
अर्धांगिनी बनके रहेगी वो इस औरांग की!
यही है इस औरांग का पारितोषिक!
यही सोचा था उस समय,
ऊषल ने!
उस दिन,
पहली बार,
ऊषल की आँखों में,
आंसू आये थे!
और औरांग!
इसे अपने प्रेम की विजय मान बैठा था!
तो कुल मिलाकर,
ये निश्चित हुआ,
कि कल दोपहर में,
वे दोनों,
निकल पड़ेंगे वहाँ से,
हमेशा के लिए!
एक होने!
न कोई रोक-टोक होगी!
न किसी का कब्ज़ा!
बस प्रेम!
और प्रेम!
और कुछ नहीं!
हो गया निर्णय!
आधा घंटा पहले,
औरांग निकलेगा,
और उसके आधे घंटे बाद,
ऊषल निकलेगी,
औरांग,
उसका इंतज़ार करेगा!
फिर वे साथ हो लेंगे!
और चल पड़ेंगे आगे!
अपने सपने साकार करने!
ऊषल भी खुश थी!
और औरांग!
वो तो सबसे अधिक खुश था!
वो चली गयी वहाँ से,
और औरांग भी लौट पड़ा वापिस!
अगला दिन,
दोपहर हुई!
अपना घोड़ा सजाया उनसे,
सामान रखा,
और चल दिया वहाँ से,
हमेशा के लिए!
छोड़ दिया वो डेरा उसने!
अपने प्रेम के लिए!
वो जा पहुंचा रास्ते में,
एक जगह रुक गया,
और प्रतीक्षा करने लगा,
ठीक आधे घंटे बाद,
दो घोड़े आते दिखाई दिए,
ये ऊषल थी,
एक घोड़े पर,
और एक पर वो लड़की!
संग लायी थी वो उस लड़की को अपने!
कोई बात नहीं!
अच्छा हुआ!
नहीं तो पूछताछ में,
ये लड़की तो मारी ही जाती!
आंतें चिरवा देता उसकी वो खल्लट!
और उल्टा कर उसे,
लटका देता किसी पेड़ पर!
जब तक कि सारा खून उसके,
चेहरे और सर से टपक कर,
नीचे नहीं गिर जाता!
वे अब साथ हुए,
और निकल पड़े!
सारा दिन चले!
रुकते-रुकाते,
आराम करते,
कुछ खाते-पीते,
ऊषल ले आई थी संग अपने,
कुछ भोजन,
वही खाया उन्होंने,
और फिर चल पड़े,
रात हुई,
और फिर एक सराय में ठहरे,
सुबह फिर चले,
सारा दिन चले!
पानी पीते,
भोजन करते,
