वर्ष २०१३ पश्चिमी उ...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०१३ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक घटना

152 Posts
1 Users
0 Likes
1,466 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

निर्माण की उम्मीद नहीं है!
तो,
वो छड़ी मैंने,
दे दी थी उनको,
उन्होंने रख ली थी अपने पास,
और हम आगे चले गए,
वहां से, एक खाली जगह आ गए,
और वहाँ से हम
अब, अट्कन के लिए चले!
रास्ते में,
एक कुआँ मिला!
पुराना कुआँ!
अब तो बेचारा, खत्म था!
कोई पानी नहीं!
बस झाड़ियाँ ही झाड़ियाँ!
वो कुआँ अब इतिहास के गर्त में धसके जा रहा था!
एक न एक दिन, ढक देगी वक़्त की गर्द उसे, नामोनिशान मिटा देगी इसका!
कभी पूरा गाँव इस पर जुटता होगा,
पानी चलता होगा इसमें, चहल-पहल रहती होगी,
औरतें बतियाती होगीं इधर!
मवेशी पानी पीते होंगे! और आज, आज तरस रहा है!
कोई नहीं आता अब उसके पास, शायद बरसों बाद,
आज हम ही आये थे उस तक, अंदर झाँका तो पत्थर पड़े थे,
जंगली झाड़ियाँ उगी थीं दीवारों पर! कीड़ों ने बिल बना रखे थे!
"सूखा है!" बोले वो,
"हाँ, होगा!" कहा मैंने,
और झाँक कर देखा उसमे, सूखा था! 
"आओ!" कहा मैंने,
हम हटे वहां से,
और चले अब दायीं तरफ,
पानी पिया सबसे पहले,
ऊपर चीलें चक्कर लगा रही थीं!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

उधर ही वो मृत-मवेशी डाले जाते थे, उसी के लिए!
"चलो उधर" कहा मैंने,
"चलिए" बोले वो,
और थोड़ी देर में ही, वो अट्कन का चबूतरा दिखाई दिया!
चले हम उधर!
पहुंचे!
"यहीं आये थे हम कल!" कहा मैंने,
"हाँ!" बोले वो,
"और आज देखो, उजाड़ है!" कहा मैंने,
"बिलकुल उजाड़!" बोले वो,
"इंसान भी न जाने कहाँ कहाँ जा बसता है!" बोला मैं,
"उस समय ये एक चलता गाँव होगा!" बोले वो,
"हाँ!" कहा मैंने,
तभी सामने दो पेड़ दिखाई दिए,
वे शीशम के पेड़ थे,
"आना ज़रा?" बोला मैं,
"चलो" बोले वो,
और हम उन पेड़ों के पास चले,
वहां भी पिंडियां बनी थीं!
और छोटे छोटे चबूतरे बने थे!
"ये किसलिए बनती हैं?" पूछा उन्होंने,
"ये पितृ-स्थल है!" कहा मैंने,
"ओह! अच्छा! नमन इन्हें!" बोले वो,
मैंने भी नमन किया,
वे पितृ थे, पितृ किसी के भी हों,
पूज्नीय होते हैं, अतः, उन्हें प्रणाम किया हमने!
तभी शर्मा जी के नज़र पड़ी एक जगह,
"वो क्या है?" बोले वो,
"कहाँ?" कहा मैंने,
"वो उधर?" बोले वो,
मैंने देखा,
एक पेड़ था वहां, और उस पेड़ से कोई स्त्री लटकी थी,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

हाथ चला रही थी अपने,
"आओ!" कहा मैंने,

अनुभव क्र. ९३ भाग ६
और हम भाग चले उधर ही!
वो एक स्त्री ही थी,
उसको एक डाल से ऐसे बाँधा गया था कि,
लग रहा था कि किसी ने सजा दी है उसको!
उसको उसके केशों को, आधा आधा बाँट कर, सर बाँध दिया गया था उसका,
उस डाल से, वो हाथ चला रही थी,
पाँव चलाती थी,
थी कोई आठ फ़ीट ऊपर,
देख नहीं पा रही थी नीचे,
मैंने जूते उतारे अपने, बैग शर्मा जी को दिया,
अपना खंजर मुंह में पकड़ा,
और चढ़ने लगा पेड़,
पेड़ पर गांठें थीं, आराम से चढ़ गया,
फिर आया डाल पर,
और उसके केश खोलने की कोशिश की,
नहीं खुले, कस के बांधे गए थे,
काटने ही पड़े,
जैसे ही कटे, वो धम्म से नीचे गिर गयी!
गिरते ही, बैठी, शर्मा जी को देखा,
मैं भी नीचे आ गया तभी,
उसने सांस ली, अंदर बहुत देर तक!
फिर बाहर छोड़ी, और एक भयावह तरीके में, चीख मारी!!
"चुप?" मैंने चिल्लाया,
वो हुई चुप!
हुई खड़ी!
और देखे हमें!
"कौन है तू?" पूछा मैंने,
न बोले कुछ,
गरदन इधर उधर झुका,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

हमें ही देखे,
उसका इरादा ठीक नहीं था!
मैंने भांप लिया था, झट से तवांग-मंत्र लड़ा लिया,
और शर्मा जी का हाथ पकड़ लिया मैंने,
हो गए वो भी पोषित!
वो कभी अपने बाएं कंधे पर सर रख लेती, आँखें फाड़ कर,
कभी दायें कंधे पर!
और अचानक ही, उछली और मारा झपट्टा मुझ पर!
मैं तैयार था! मैंने लात की आगे और रोक दिया उसे!
मंत्र की जद में आई, और अकड़ पड़ी!
चिल्ला भी न सकी!
मैं लपका उसकी तरफ,
पकड़े उसके बाल!
और दिया झटका एक तेज!
"कौन है तू?" पूछा मैंने,
"तम्मा! तम्मा!" बोली वो!
अब हाथ जोड़े! हँसे, रोये, फिर हँसे, फिर रोये!
फिर बैठ गयी वो, मैंने बाल नहीं छोड़े उसके!
तम्मा एक स्थानीय चुड़ैल होती है,
जहां अवयस्क दबाये जाते हैं, उसका भक्षण किया करती है,
ये स्थानीय है, क्षुद्र तांत्रिक इसका भी पूजन करते हैं!
इसको संसर्ग बहुत पसंद है, उसके लिए कुछ भी करने को तैयार है!
इसका इन बंजारों से कुछ लेना देना नहीं था,
शायद इसको इसीलिए बाँधा गया था यहां!
मैंने पढ़ा तामेक्षिका मंत्र, और खींचा उसे! किया खड़ा!
और छुआ दिया हाथ अपना! हवा! हवा हो गयी!
चली गयी भटकने अंधेरों में!
अब न आती बाहर कभी!
"ये तो बला थी!" बोले वो,
"हाँ! इसीलिए बाँधा गया होगा इसको!" कहा मैंने,
"इसके कटे बाल झट से आ गए थे!" बोले वो,
"तम्मा चुड़ैल होती है!" कहा मैंने,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

उसके बाद, अपने हाथ धोये,
पानी पिया,
और एक जगह आकर बैठ गए!
हवा चल रही थी गरम!
कभी कभी धूल भी उठ जाती थी,
पानी भी गरम हो चला था,
हलक तर करना था बस,
बार बार पी लिया करते थे!
वहां हम मुआयना कर रहे थे,
तभी एक टूटा सा कक्ष दिखाई दिया,
"आओ, वहां चलें" कहा मैंने,
"चलिए" बोले वो,
और हम चल पड़े,
उस कक्ष तक आये,
उसमे तो गड्ढे हुए पड़े थे,
जैसे सामान निकाला गया हो उसमे से,
"कोई हाथ साफ़ कर गया!" बोले शर्मा जी,
"नहीं, वे ही ले गए होंगे" बोला मैं,
"वे कौन?" पूछा मुझसे,
"वही, बंजारे!" कहा मैंने,
"अच्छा!" बोले वो,
हम बाहर आये,
जैसे ही आये, पीछे की दीवार भड़ाक से गिरी नीचे!
हम पीछे हटे,
धूल-धक्क्ड़ हो गया था!
जब हटा तो सामने एक और कक्ष दिखा,
"आना ज़रा?" बोला मैं,
"ये कच्ची हैं दीवारें!" बोले वो,
"दूर रहो इनसे बस!" बोला मैं,
और हम अंदर चले फिर,
उस कक्ष में आये,
छत न थी उसकी,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

दीवारें थीं,
और उन दीवारों में,
लकड़ी की खूंटियां ठुकी हुई थीं!
कम से कम बीस होंगी वो!
"ये, सामान के लिए?" बोले वो,
"हाँ" कहा मैंने,
"मिट्टी से बनी हैं दीवारें" बोले वो,
"मिट्टी और गोबर से" कहा मैंने,
"हाँ!" बोले वो,
"आओ बाहर" बोले वो,
"चलो" कहा मैंने,
और हम आ गए बाहर,
बाहर आये, तो ठीक सामने,
दो पहलवान खड़े थे! लट्ठ लिए! हमें ही घूरते हुए!
वो पहलवान ही थे, पट्ठे! कद्दावर, लठैत! ऐसी लाठी बजाएं कि एक ही लाठी में घुटना टूट के अलग हो जाए टांग से! उनके बदन की ऐसे मांस-पेशियों से भरे थे! सीने और कंधे चौड़े! गरदन सांड जैसी मज़बूत! कोई हाथापाई में तो उनसे आज का पहलवान भी नहीं भिड़ सकता था! ऐसी हड्डियां बिखेरते कि उठानी मुश्किल पड़ जातीं! तो हम, अब तवांग मंत्र के सरंक्षण में थे! तो अब डर नहीं था उनसे! 
तो हम चल पड़े उनके ही पास!
उन्होंने अपने लट्ठ कर लिए आगे,
हम जा पहुंचे उनके पास,
उनकी आँखें छोटी हुईं,
और हुए पीछे, लट्ठ कर लिए पीछे,
"कौन हो तुम?" बोला एक,
"हमारी छोडो! तुम कौन हो?" बोला मैं,
"हम पहरेदार हैं यहां के" बोला वो,
"अच्छा! हमसे क्या काम?" पूछा मैंने,
"बहुत देर से टहल रहे हो?" बोला वो,
"हाँ, कल ठावणी है न?" पूछा मैंने,
"हाँ, है!" बोला एक,
"कल आये थे हम, पता चला, धीमणा कल आएगा!" बोला मैं,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"अच्छा, कल आये थे तुम?" बोला वो,
"हाँ!" कहा मैंने,
"फिर तो कोई बात नहीं!" बोला वो,
और हंस पड़े दोनों ही!
"आओ जी" बोला वो,
"कहाँ?" पूछा मैंने,
"तीमन का समय है, आ जाओ बस!" बोला वो,
तीमन मायने भोजन!
चलो जी! ये भी बढ़िया!
"चलो भाई!" कहा मैंने,
और हम चल पड़े उनके साथ साथ!
वो एक मैदान सा पार कर, आगे चले,
वहां एक झोंपड़ा था,
कल जैसा ही,
अंदर गए,
उन्होंने अपने साफे उतार लिए,
और हमें बिठा दिया नीचे,
ये सब प्रेत माया है मित्रगण!
सब असली है! उस क्षण तो सब असली!
पानी लाया गया, मिट्टी के बर्तन थे वो,
एक छोटी सी कुलिया में लाये थे पानी,
पानी पिया हमने, ठंडा, शीतल पानी!
फिर एक और आया,
नंगे पाँव,
धोती पहने,
गले में लाल धागा पहना था,
और कुछ नहीं,
रंग सांवला था उसका,
लेकिन आँखें बड़ी रौबदार थीं,
देह बड़ी मज़बूत!
मेरी जांघ,
और उसकी भुजा, बराबर!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

उसने हाथ वाला पंखा लिया,
और झलने लगा पंखा, हमारे लिए!
"क्या नाम है?" पूछा मैंने,
"दानू जी" बोला वो,
मैं मन ही मन हंसा!
जी!
ये एक इंसान के लिए नहीं,
उस मंत्र के लिए था!
ये भय था,
ये प्रेत, भय से करते हैं ऐसा!
हाँ, हैदर साहब, वो सूबेदार साहब, उनकी बात अलग है!
वे तो अपने स्वाभाव से ही, अलग थे,
मुझे बहुत याद आते हैं वो!
उनके बोलने का अंदाज़!
इज़्ज़त के वो अलफ़ाज़!
सब अलहैदा ही थे!
और ये, ये प्रेत तो,
छाती में हाथ डाल, दो-फाड़ कर दें इंसान का!
तो ये तीमन,
मेरी विद्या के लिए था!
खैर, उनकी नीयत ठीक थी,
और फिर,
जो आपकी इज़्ज़त करे,
आप कैसे गलत ठहराओगे उसे!
मुझे एक दृष्टांत याद है सदा!
याद रखता हूँ ऐसे दृष्टांत!
अमल करता हूँ उस पर, कम से कम, कोशिश तो कर ही सकता हूँ!
वो दृष्टांत ये है कि,
एक बार इब्न-ए-मरियम(जीसस),
चंदा एकत्रित कर रहे थे, अपने पिता के नाम पर,
कि उसका कोई स्थल बने!
सभी ने अपने अपने हिसाब से चंदा दिया,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

किसी ने बोरी,
किसी ने, पोटली,
किसी ने मुट्ठीभर,
एक वेश्या आई उधर,
उसने एक ताम्बे का सिक्का दिया,
एक आने का भी सौवां हिस्सा,
सभी दांत फाड़ हंस पड़े,
उसका सिक्का वापिस करने लगे!
उसका मज़ाक उड़ाने लगे,
तब उस इब्न-ए-मरियम ने कुछ फ़रमाया,
कि तुम किस पर हँसते हो?
इस औरत पर?
या?
अपनी मूर्खता पर?
तुमने जो बोरी दी,
जो पोटली दी,
जो मुट्ठीभर दिया,
वो तुम्हारी बचत का था!
तुमने बाकी अपने लिए रखा!
लेकिन इस औरत ने,
जिस से आज ये खाना खा सकती थी,
अपना पेट काट कर,
ये ज़क़ात दी!
ज़क़ात किसकी बड़ी हुई?
बोरे वाले की?
पोटली वाले की?
या मुट्ठीभर वाले की?
किसकी?
इस औरत की!
इसकी ज़क़ात, सबसे बड़ी!
तो मित्रगण!
जो आपको इज़्ज़त दे,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

उसका अपमान कभी न करें!
अमीर आपको,
मिठाई,
गोश्त,
गद्देदार बिस्तर,
शराब,
शबाब,
सब देगा!
लेकिन एक गरीब,
अपनी खून की कमाई की,
अपने बच्चों, बीवी, अपना पेट काटकर,
आपको रोटी देगा!
तो बड़ा कौन?
अमीर?
या वो गरीब?
किसकी रोटी हज़म होगी?
उस, उस गरीब की!
तो मित्रगण!
गरीब, संसार के राजा हैं!
उन्होंने सबकुछ,
पहले ही दे दिया था उसको!
और गए ज़मीन पर,
किसके सहारे?
मात्र उसके!
और उसने, उन गरीबों का वो धन,
इन अमीरों को दे दिया!
ये है वास्तविकता!
कभी भी,
किसी निर्धन का उपहास न कीजिये,
उसका उपहास किया,
तो समझो उसका उपहास किया!
आँखें न मूंदों!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

सच्चाई का सामना करो!
एक श्वान,
आपको जब देखता है, अपनी पूंछ हिलाकर,
तो वो, कुछ आशा रखा है आपसे,
कि आप,
उसको, कम से कम आज तो पेट भर ही देंगे!
वो भविष्य पर नहीं चलता!
वो वर्तमान पर चलता है!
मात्र मनुष्य, अपना भविष्य संवारने हेतु,
वर्तमान खराब करता है!
कारण?
अज्ञान! कुंठित-बुद्धि!
हम तो, मित्रगण, इन श्वानों से भी गए गुजरे हैं!
तभी, बाहर आहट हुई, और............
बाहर आहट हुई थी, जैसे कोई आया था, जो हमारे साथ आये थे, वे बाहर ही थे, उन्हीं से बात हो रही थी उनकी! वो पंखा झलने वाला भी बाहर झाँक रहा था, उन्ही को देख रहा था! मैंने भी झाँक कर देखा बाहर, वे चार आदमी थे, शायद तीमन लेकर आये थे, मैं हो गया पीछे, और वे दोनों आ गए अंदर, झोले में से, भोजन निकाल, फिर एक बड़ी सी तश्तरी, उसमे रोटियां रख दीं, साबुत प्याज, हरी मिर्च, और आलू की सूखी सब्जी, साथ में, अचार भी, मिर्च का अचार! फिर एक आदमी घड़ा ले आया, उसमे पानी था, एक छोटा सकोरा, उसमे पानी भर दिया, रख दिया साथ में ही,
"लो जी!" बोला वो,
जैसे खानाबदोश एक साथ बड़ी सी थाली में खाना खाए करते हैं, ऐसे खाना लगाया गया था, आजकल की तरह अलग अलग नहीं! मैंने और शर्मा जी ने एक एक रोटी उठायी, और खान एलगे सब्जी के साथ, मिर्च का अचार बड़ा ही तीखा और लाजवाब था! अदरक डाली गयी थी, या यूँ कहें भरी गयी थी उन मिर्चों में पीस कर! सब्जी भी बहुत स्वादिष्ट थी! आलू ऐसे थे, जैसे मक्खन! हम जहां छोटे छोटे टूक बनाते थे, वे एक रोटी को तीन बार में ही खा जाते थे! हमारा तो एक रोटी में ही पेट भर गया था! आज की चार रोटियों के बराबर एक रोटी थी वो!
"बस? इतना ही?" बोला एक,
"बस! इतना ही ठीक है!" कहा मैंने,
"दिन पड़ा है पूरा, खा लो!" बोला रोटी देते हुए,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"अब बस!" कहा मैंने,
फिर पानी दिया गया हमें!
हमने पानी पिया उस सकोरे से!
पानी बड़ा ही शीतल और मीठा था!
शर्मा जी ने भी पिया था,
उन्होंने भी भोजन कर लिया था,
आठ से ज़्यादा रोटियां खा गए थे वे,
सारा सामान खत्म हो गया था!
फिर एक उठा, बाहर गया, वो धूप में रखा, एक लोटा लाया,
"लो!" बोला एक,
मैंने ओख लगाई,
एक घूँट पिया,
मुंह कड़वा हो गया!
ये घोटा था अफीम का!
शर्मा जी ने भी पिया एक घूँट!
अफीम ऐसे दवा का काम करती है,
भोज पचाती है, गर्मी को मारती है, लू नहीं लगने देती!
मैंने तो फिर से पानी पिया था दुबारा!
शर्मा जी ने भी पिया!
और उसके बाद, हमने विदा ली उनसे,
वो दिन ढलने तक आराम करने को कह रहे थे,
लेकिन हम नहीं रुके,
और चल पड़े वापिस,
"इनका खाना देखा?" बोले वो,
"हाँ!" कहा मैंने,
"तभी तो बिजार हो रखे हैं!" बोले वो,
"मशक्क़त करते हैं ये!" कहा मैंने,
"हाँ! और अफीम का घोटा!" बोले वो,
"वो तो पक्का है इनका!" कहा मैंने,
हमने फिर वो गाँव पार किया,
और उस रास्ते से चले आये वापिस,
अफीम का एक घोंट अब,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

कमाल दिखाने लगा था अपना!
जम्हाई आने लगी थीं!
बस अब तो चारपाई मिले और देह तोड़ें उसमे अपनी!
आये गाड़ी तक, किशन जी सो गए थे, जागे,
और हम चले वापिस,
उनको थोड़ा-बहुत ही बताया हमने!
अब खेत पर पहुंचे,
हाथ-मुंह धोये,
और पकड़ी चारपाई!
सो गए, खर्राटे शुरू हो गए हमारे तो!
हम जागे शाम को सात बजे!
अब ताज़गी आ गयी थी!
स्नान करने का मन था, स्नान किया,
फिर गन्ने चोखे हमने!
शाम को कार्यक्रम किया,
भोजन किया, और देर रात को, फिर सो गए!
सुबह जल्दी ही उठ गए थे हम!
थोड़ा घूमे फिर, जंगल फिर आये!
आकर स्नान किया, और फिर चाय पी, नाश्ता किया,
दोपहर को भोजन किया हमने,
और फिर आराम किया!
आज रात को जाना था वहाँ!
अभी बहुत समय था,
किशन जी को कस्बे तक जाना था,
हम भी चल पड़े उनके साथ,
समय कट जाता और क्या,
वहाँ कुछ खाया-पिया,
चाय पी, और एक पेड़ के नीचे बैठे रहे,
दाढ़ी भी बनवा ली थी हमने,
दो घंटे के बाद,
हम वापिस चले,
कुछ औजार लिए थे उन्होंने,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

कुछ पर धार लगवायी थी,
चार बजे तक लौट आये थे वापिस,
आराम किया,
शाम को,
भोजन कर लिया था,
और फिर रात के समय,
हम अपना सामान लेकर,
चल पड़े उस कुमारगढ़ी के पोखर के लिए!
कलुष लड़ाया,
तवांग चलाया,
और एवंग भी लड़ा लिया,
एवंग ऐच्छिक कार्य करता है!
आज हवा तेज चल रही थी,
आकाश में बादल बने हुए थे,
चन्द्र महाशय का कुछ अता-पता नहीं था!
छोटा बैग उठाया,
उन दोनों को समझाया,
और हम चल पड़े अब उस बरगद के पेड़ की ओर!
जैसे ही पहुंचे,
औरतों का गीत सुनाई दिया,
जैसे कई औरतें मिलकर,
गीत गा रही हों!
कुछ एक शब्द समझ में आये,
हम रुक गए,
उस छोटे से मंदिर पर,
औरतें खड़ी थीं,
जैसे कोई उत्सव हो उस रात,
हम वहां से पलट लिए,
पोखर की तरफ चले,
वहाँ चले,
तो स्त्रियां स्नान कर रही थीं,
अब वहाँ रुकना पड़ा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

अब बीच में से स्थान ढूँढा,
झाड़ियों से बचते हुए,
चल पड़े आगे,
गीत के स्वर अभी भी आ रहे थे!
हम चलते रहे आगे,
और आ गए रास्ते पर,
दूर था गाँव,
इक्का-दुक्का दीये दीख रहे थे!
बिन्दुओं की तरह,
हम आगे बढ़ते रहे,
मृत-मवेशी मिले,
उनको पार किया,
और फिर वो टीला आया,
वहां से बाएं मुड़, पार किया उसे,
और अब गाँव के रास्ते हुए,
अब लोग मिलने लगे थे,
जो भी देखता, 'राम राम जी' ज़रूर करता!
हम भी करते!
इस तरह से वो गाँव भी पार कर लिया!
चले आगे,
वो हौदी पड़ी,
वो पेड़ पड़े,
वो कुआँ भी आ गया!
उसको पार किया,
और ठीक सामने,
मशालें जलती दिखाई दीं!
फिर बंजारे दिखे,
घोड़े खड़े हुए थे वहाँ!
हमने पार किया उन्हें,
पहरेदार मिले,
पहचान गए हमें,
और जाने दिया अंदर!


   
ReplyQuote
Page 6 / 11
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top