वर्ष २०१३ दिल्ली की...
 
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वर्ष २०१३ दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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और कुछ सरसों के दाने,
एक कागज़ में लपेट के दे दिए वो दाने,
समझा दिया कि,
हंडिया तो नदी या नहर में छोड़ देना,
और ये दाने, घर में हर जगह बिखेर देना!
साले साहब ने हंडिया पकड़ी!
और महाजन साहब ने वो दाने!
ऐसे पकड़े जैसे उनके प्राण हों वो!
माथे से छुआया उन्हें!
और संभाल कर अपनी जेब में ठूंस लिया!
और फिर अपनी पैंट की जेब से,
पैसे पकड़ा दिए,
बाबा ने गिने,
और रख लिए अपनी जेब में!
हाथ उठाकर,
आशीर्वाद दिया और उठ गए!
हो गया था काम!
अब वे दोनों चल पड़े वापिस!
बीच रास्ते में,
एक नहर पड़ी,
सो, वहाँ वो हंडिया, माथे लगा, पानी में टपका दी,
महाजन साहब ने!
और चल पड़े आगे!
और जैसे ही वो जगह पड़ी!
महाजन साहब का मुंह खुला रह गया!
उन्होंने गाड़ी एक तरफ लगवा ली!
वो औरत,
बीच रास्ते में खड़ी थी!
हाथ में उसके एक गन्ना था,
आधा छिला हुआ!
महाजन साहब को इस से पहले हृदयाघात होता,
उनकी आँखें बंद हो गयीं!
डर के मारे बेहोश हो गए!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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साले साहब को कुछ समझ ना आया!
ना तो उसने किसी को देखा,
ना ही कुछ सुना!
लेकिन जैसे ही महाजन साहब सीट पर झूले,
उनके साले साहब के होश क़ुतुब-मीनार हो गए!
बहुत हिलाया,
बहुत जगाया,
फिर छींटे मारे पानी के,
तब जाकर,
महाजन साहब को होश आया!
साले साहब ने शुक्र मनाया,
और दौड़ा दी गाड़ी आगे!
महाजन साहब बार बार,
उचक उचक कर पीछे देखते रहे!
फिर ना दिखी वो औरत!
किसी तरह से गाड़ी घर लगी!
और घर आते ही,
अब छिड़की वो सरसों!
कोई कोना ऐसा नहीं छोड़ा जहां कोई दाना ना गिरा हो!
क्या शौचालय,
क्या स्नानालय,
क्या दीवारें,
क्या रसोई,
क्या परछत्ती,
और क्या छत!
हर जगह!
अब जाकर चैन की सांस ली!
एक हफ्ता गुजर गया!
कोई अनहोनी ना हुई!
ना कपिल साहब के साथ,
ना महाजन साहब के साथ!
अब दोनों ने,
अपने दफ्तर आना जाना शुरू कर दिया था!
जब सब कुछ सही चल रहा था,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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तो सब भूल से गए थे!
कपिल साहब के कान का ईलाज,
अभी भी चल रहा था,
और महाजन साहब,
नकली दाढ़ बनवाने के लिए,
उनका नाप दे ही आये थे,
दंत-चिकित्सक के पास!
पर ये क्या?
इस समय तक तो,
जो सौदे लगभग बिलकुल पके बैठे थे,
अब एक एक करके,
निरस्त होते चले गए!
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था?
बाज़ार से क़र्ज़ उठाया हुआ था,
ब्याज लगातार जा रहा था,
अब क्या किया जाए?
बात हर जगह,
बनते बनते बिगड़ रही थी!
अब पड़ने लगे उनके गालों में गड्ढे!
अब उठने लगी खांसी उन्हें!
जहां भी बात चलती,
वहीँ बिगड़ जाती!
एक आद जगह तो कोई बात नहीं,
लेकिन अब तो छोटे सौदे भी वापिस हुए जा रहे थे!
एक हफ्ता और बीता!
तनाव बढ़ चला!
एकाएक ऐसा कैसे हो गया?
सोचा चलो जी किसी,
तीर्थ-स्थल पर चला जाए!
दोनों के परिवार,
और दोनों के साले साहब,
अपनी अपनी गाड़ी लेकर,
चल पड़े,
हरिद्वार पहुंचे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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गोते लगाए,
पूजा-पाठ की,
अपनी सभी गलतियों के लिए क्षमा मांगी!
कुल मिलाकर,
ढोंग कर,
उस परमेश्वर को भी,
सौदेबाजी में फंसाना चाहते थे!
उसी शाम की बात है!
कपिल साहब और महाजन साहब,
अपने होटल में,
अपने कमरे में बैठे हुए थे,
दोनों अकेले ही!
शाम के जाम का था इंतज़ाम!
परिवार दूसरे कमरों में थे!
महाजन साहब ने खिड़की खोली,
नीचे देखा,
तीसरी मंजिल पर कमरा था उनका,
नीचे देखा तो सांस अटक गयी!
वहीँ खड़े रहे!
कपिल साहब को अचम्भा हुआ,
कई बार पुकारा!
नाम से भी पुकारा!
और फिर खुद ही उठ कर चले!
खिड़की से बाहर झाँका!
और जैसे ही झाँका,
चीख गले में आ कर रुक गयी!
सामने एक पेड़ लगा था,
पीपल का,
उसके नीचे कुछ घड़े रखे थे,
कुछ पत्थर भी,
पटिया आदि थीं रखी हुई!
वही औरत!
वही औरत उन पटियायों पर बैठी थी,
चौकड़ी मार!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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और उन्हें ही देखे जा रही थी!
उन दोनों की तो अब बस,
छलांग मार कर,
कूदने की ही कोशिश रही होगी!
नहीं तो प्राण तो शेष थे ही नहीं उनमे!
भय के मारे,
बर्फ से मुक़ाबला करने में लगे थे!
ऐसे ठंडे!

उनकी हालत ऐसी,
जैसे किसी मछली को जल से निकाल कर,
गीली रेत पर रख दिया जाए,
उसे जल दिखाई तो दे,
पर देह साथ ना दे!
ऐसी हालत!
कंपकंपी छूट गयी!
अंत दिखाई देने लगा उनको तो अपना!
कपिल साहब ने तो फ़ौरन ही,
हाथ जोड़ लिए,
और क्षमा मांगने लगे!
उसको देख,
महाजन साहब भी,
आंसू बहाते हुए, ऐसा ही करने लगे!
अब स्थिति ये,
कि अगर ये 'देवी' मान जाए,
तो फोटो फ्रेम करवाकर,
ज़िंदगी भर पूजा करते रहें उसकी!
हर पल!
हर क्षण!
लेकिन ये तो सम्भव ही ना था!
दोनों रोते रहे!
आंसू बहाते रहे!
लेकिन देवी ना पसीजी!
किसी छिपकली की तरह से,
पेड़ पर चढ़ गयी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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डाल पर बैठ गयी!
तालियां पीटने लगी!
वो तालियां पीटे,
और यहां उन दोनों को,
यमराज के क़दमों की आहट सुनाई दे!
वो डाल पर खड़ी हुई!
और उड़ गयी ऊपर!
हो गयी लोप!
अब तो थर थर कांपें वो!
कहीं यहीं तो नहीं आ गयी?
कहीं दूसरे कान का पर्दा भी तो नहीं हो जाएगा शहीद?
कहीं बची हुई दाढ़ें, इनका अंतकाल तो नहीं आ गया?
फिर से बाहर झाँका,
वो कहीं नहीं थी!
हवा चले,
तो डर लगे!
पंखा आवाज़ करे,
तो डर लगे!
नीचे से किसी की आवाज़ आये,
तो पेट में अफारा सा उठे!
तभी दरवाज़ा खुला,
और वे चिल्लाये!
सामने कपिल साहब के साले साहब खड़े थे!
वे भी चौंक उठे!
तब सारा माज़रा कह सुनाया उन्होंने!
हाँफते हाँफते!
सारा हाल सुनकर,
अब साले साहब की भी हवा सरकी!
उनकी भी जीभ लड़खड़ा गयी!
भागकर,
खिड़की से पेड़ को देखा,
कोई नहीं था,
दो युवक आराम से,
पानी पी रहे थे वहाँ उन घड़ों से!


   
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श्रीशः उपदंडक
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साले साहब ने अब माहौल हलके करने की कोशिश की,
लेकिन हवा तो उनकी भी ख़ुश्क़ ही थी!
अब भय का सबसे बड़ा ईलाज!
क्या?
कौन सा ईलाज?
वही!
वही मदिरा!
चढ़ जाए तो किसी भी प्रेत से भिड़ लो!
वो भी भाग जाएगा ऐसी लम्बी लम्बी सुनकर!
तो वही किया जी उन्होंने!
सामान ले ही आये थे,
जल्दी जली में बना डाले तीन पैग!
पहले पैग में ही टक्कर लग जाए,
इसीलिए पटियाला में संगरूर भी शामिल कर लिया!
और दे दिए उन दोनों को!
प्यासे कुत्ते की तरह से दोनों चपड़ चपड़ पी गए!
अब जल्दी ही टक्कर लगी!
महाजन साहब उठे,
खिड़की तक गए!
और बाहर झाँका!
कोई नहीं था!
फिर कपिल साहब उठे!
वे भी गए!
बाहर झाँका!
कोई नहीं था!
अब चैन पड़ा!
फिर तो दो दो और लपेट दिए जल्दी जल्दी!
अब सांस खुली!
भय हटा!
अब अगर वो दिख जाती,
तो शायद दोनों ही चले जाते सौदेबाजी करने!
सौदेबाजी में तो दोनों थे ही उस्ताद!
तो वो रात,
आराम से काट ली!


   
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श्रीशः उपदंडक
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कुछ नहीं हुआ उस रात!
अगले दिन वापसी थी!
सो अब वापिस हुए!
लेकिन उस पेड़ को घूरते हुए!
चल पड़ी गाड़ी वापिस!
दोपहर के समय सभी ने भोजन किया,
और तभी महाजन साहब चले लघु-शंका त्याग करने!
एक खुले से स्थान पर!
तभी उनका नाम लिया किसी ने!
अपने आसपास देखा!
कोई नहीं था!
मूत्र का जो दबाव था,
वो एकदम से शांत हो गया!
वहीँ खड़े हो गए वे!
फिर से नाम लिया किसी ने!
"जीतेन्द्र! जीतेन्द्र!"
फिर क्या था!
उनके पांवों में लगे पहिये!
और दौड़ के भागे वापिस!
ये एक औरत की आवाज़ थी!
कहीं उसी की तो नहीं?
भाग लिए थे!
आपबीती सभी को सुनाई!
किसी को दबाव उठा,
किसी का दबाव पिटा!
किसी की चीख निकलते निकलते रुकी,
किसी की उलटी पेट में घुसड़ गयी!
अब भागे वहाँ से सब!
हिसाब किताब किया और निकल पड़े!
बस!
अब और नहीं!
कोई पक्का ही प्रबंध हो!
बस!
नहीं तो ऐसे ही प्राण निकल जाएंगे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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डर से!
भी से!
आशंका से!
पहुँच गए जी घर अपने!
और उसी दिन से,
प्रयास ज़ारी कर दिए किसी तांत्रिक को ढूंढने के लिए!
और इस तरह,
खोजबीन करते करते!
एक तांत्रिक बाबा मिल गया उन्हें!
नाम था उस बाबा का खैरचंद!
बाबा ने सारा क़िस्सा सुना,
अब तक की सारी कहानी सुनी!
बाबा ने एक एक बात सुनी!
और यही कहा कि घर में रहना होगा उसको एक रात,
मान ली गयी बात!
अब कौन नहीं चाहेगा,
लूत कटवाना!
उसी रात,
बाबा अपने एक चेले के साथ आ गया घर पर!
सारा सामान आदि मंगवा लिया!
और एक कमरे में जाकर,
सारा सामान आदि रख लिया!
जम कर मदिरा पी!
और सभी को मना कर दिया कि,
कोई नहीं आये बाहर!
क्योंकि उसके पहरेदार,
चौकसी पर रहेंगे!
सभी मान गए!
और ठीक ग्यारह बजे के बाद,
अपने अपने कमरों में क़ैद हो गए!
अब बाबा के मंत्र गूंजे!
उसने क्रिया आरम्भ की!
बुलाये अपने पहरेदार!
एक एक का नाम लेकर!


   
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श्रीशः उपदंडक
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जो जागे थे, वे अब जागते रहे!
जो सोये थे!
वो सोते ही रहे!
हो गया खेल शुरू!

अब बाबा ने अपना जौहर दिखाना शुरू किया!
उस चिरपोटी को बुलाना शुरू किया!
उसकी आवाज़ें आती रहीं!
गाली-गलौज करता रहा वो!
लग नहीं रहा था कि कोई,
क्रिया कर रहा है,
लग ये रहा था जैसे,
दारु ज़्यादा चढ़ गयी हो और,
अब पहाड़े पढ़ रह हो कि,
कैसे भी उतर जाए!
बहुत देर हुई!
कोई घंटा बीता गया!
कुछ शान्ति हुई!
और तभी नीचे बेड़े में जैसे कोई बोरा गिरा!
चीख सुनाई दी किसी की,
फिर कोई सीढ़ियों से भागता हुआ नीचे आया!
जो गिरा था उसको उठाया,
वो हाय हाय चिल्ला रहा था!
अब दरवाज़े खुले सभी के!
चीख-पुकार मच गयी थी!
जब सभी बाहर आये तो क्या देखा?
वो बाबा नीचे पड़ा हुआ था!
उसका हाथ और एक पाँव टूट गया था!
किसी ने उसको पहली मंजिल से नीचे,
बेड़े में फेंक दिया था!
अब तो वो मर गया! मर गया! यही चिल्ला रहा था!
चेला दुखी था!
पानी मांग रहा था,
पानी दिया गया,
बाबा ने पानी पिया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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होंठ फैट गए थे उसके,
खून बह रह था!
बाबा को उठाया गया!
वो उठा और यही कहा कि वो वापिस जाना चाहता है!
वो मार डालेगी उसको!
बस!
यही कहे जा रहा था!
अब तो घर में,
भयराज राज कर गए!
सिंहासन विराजित हो गया उनका!
जिसने बाबा को देखा,
वही भय में डूबता चला गया!
आखिर कर,
बाबा को एक नर्सिंग होम में दाखिल करवाया गया,
बाबा को अब खुद किसी बाबा की ज़रूरत थी!
फिलहाल में तो, दवा की,
उसके बाद दो तीन महीने का आराम!
और खर्च लग गया बेचारों का!
घर में अब इतना भय हो उठा कि,
कोई आवाज़ भी देता तो सिहर उठते सभी!
बड़े बुरे दिन गुजर रहे थे!
और वहां कपिल साहब के यहां,
उनकी श्रीमती जी तो,
अपने मैके जाने की ज़िद पकड़ के बैठी थीं!
बहुत मनाया गया उन्हें,
लेकिन साफ़ कह दिया उन्होने,
कि पहले घर को साफ करवाओ,
तब आएँगी वो वापिस!
और अपनी बेटियों को ले,
चली गयीं अपने घर!
अब रह गए कपिल साहब अकेले!
अब तो कपिल साहब के उड़े होश!
कोसा उस रात को उन्होंने!
और देखिये!


   
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श्रीशः उपदंडक
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सामू ने भी छुट्टी ले ली!
कपिल साहब ने झिड़का बहुत,
लेकिन वो गरीब सकुशल रहना चाहता था!
वो तो बेचारा अपनी मेहनत से ही कमाता था,
अगर शरीर ही टूट जाता तो क्या करता!
इसीलिए छुट्टी ले गया!
अब तो बेचारे ऐसे हो गए कि,
कुत्तों के झुण्ड में कोई पराये मोहल्ले का कुत्ता घिर जाए!
छिपने की कोई जगह भी न हो,
और मुंह में दांत भी न रहें!
सोचिये!
क्या करेगा वो बेचारा!
यही हालत थी उनकी अब!
आखिर निर्णय लिया,
वे भी नहीं रहेंगे उस घर में!
कहीं इस बार कुछ हुआ,
तो कूद ही पड़ना होगा किसी नदी-नाले में!
कम से कम इस से पीछा तो छूटेगा!
रोज रोज के मरने से,
एक बार का ही मरना भला!
न बीवी ही काम आई,
और न औलाद ही!
धमका और गयी,
कि जब तक घर साफ़ नहीं होगा,
वो नहीं आएगी!
मरो भाड़ में!
भागे कपिल साहब अपना घर बंद कर के!
सीधा अपने दफ्तर!
दफ्तर में अभी महाजन साहब नहीं आये थे!
हाँ, दफ्तर में काम करने वाले दो लड़के आ चुके थे,
कम से कम उनका सहारा था उन्हें!
नहीं तो अकेलापन काटने को आ रहा था!
कोई आधे घंटे के बाद महाजन साहब भी आये!
अब तो,


   
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श्रीशः उपदंडक
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आपबीती सब कह सुनाई कपिल साहब ने उनसे!
आँखें फट गयीं उनकी!
यदि उनके साथ ऐसा हुआ, तो भाग के जाना ही होगा कहीं!
हरिद्वार या काशी!
वो औरत नहीं छोड़ेगी!
उन्होंने भी कोसा उस रात को!
क्यों गए थे?
क्या ज़रुरत थी?
अरे ऐसा पैसा किस काम का?
जान पर बन आई!
धरा रह गया पैसा!
जान कब चली जाए,
कोई भरोसा नहीं!
और अब!
नहले पर दहला!
महाजन साहब ने,
कहानी सुनाई अपनी!
उस बाबा की!
कपिल साहब को तो हिचकियाँ लग गयीं!
अब बेचारे दोनों ही अकेले थे!
वही दोनों,
अब एक दूसरे का सहारा थे!
दिमाग दौड़ा ही रहे थे,
कि एक फ़ोन आया,
ये महाजन साहब के साले साहब का फ़ोन था!
वे आ रहे थे उनके पास!
कुछ बहुत ज़रूरी बात थी!
पाँव तले ज़मीन नाच गयी दोनों के!
वही!
आशंका!
कि इन्हे क्या हुआ अब?
बीस मिनट में आ गए वो!
इन साहब का नाम गोविन्द है!
गोविन्द जब आये तो चेहरे पर,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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हवाइयां उड़ रही थीं!
सांस ली उन्होंने,
सामान्य हुए!
और!
"वो जो औरत है? वो नीली साड़ी बांधती है?" पूछा गोविन्द ने!
उन्होंने पूछा,
और इधर!
महाजन और कपिल साहब का गुब्बारा फूटा!
एक दूसरे को देखा उन्होंने!
भौंचक्के!
सन्न!
सिट्टी-पिट्टी गुम!
इन्हे कैसे पता?
"ह...हाँ.....नीली साड़ी....बैंगनी सी" कपिल साहब बोले,
"गले में सफ़ेद माला है?" पूछा गोविन्द ने!
"ह... हाँ!" बोले कपिल!
इतना सुना!
इतना सुना गोविन्द ने!
और माथे पर हाथ रख लिए दोनों!
वे दोनों,
ऐसे देख रहे थे कि जैसे,
साक्षात्कार करके आये हों गोविन्द उस औरत से!
"क्या हुआ गोविन्द?" पूछा महाजन साहब ने!
हाथ हटाये,
चेहरे पर,
भय की लकीरें खिंचीं!
"आज सुबह, मेरी पत्नी ने उसको देखा" वो बोले,
क्या????????
दोनों की श्वास-नलिका सिकुड़ गयी ये सुन कर!
पेट की आँतों में,
उठा-पटक होने लगी!
पेट में अजीब सा दर्द उठा!
पानी पिया कपिल साहब ने!
"हाँ, छत पर थी वो, हाथ में एक गन्ना भी था" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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गन्ना?
अरे मर गए!
ये तो वही औरत है!
यहां तक भी आ पहुंची?
चाहती क्या है?
बड़ा बुरा हाल!

अब दो से तीन हुए!
अब वो औरत,
इन गोविन्द साहब को भी लपेटने में लगी थी!
इनके परिवार तक आ पहुंची थी!
और ये,
बहुत खतरनाक बात थी!
अब जल्दी ही कुछ किया जाना था,
नहीं तो तीन से चार,
चार से पांच!
लेकिन करें क्या?
कोई आदमी नहीं मिल रहा था ऐसा,
गोविन्द साहब ने,
अपने मामा जी को फ़ोन लगाया,
उनको सारी बता बतायीं,
वे भी घबरा गए!
लेकिन उनके पास एक आदमी था ऐसा!
ज्वाला भगत!
बहुत क़ाबिल आदमी था!
बहुत सिद्धियां थीं उसके पास!
हाँ बस,
चलने को हाँ कह दे,
उनके मामा जी यमुना नगर में रहते थे!
आखिर में बात बन गयी!
दो दिन के बाद, वे मामा जी,
उस आदमी को घर ले आये!
उसने घर को देखा,
ऊपर गया,
जांचा,


   
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