वर्ष २०१३ दिल्ली की...
 
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वर्ष २०१३ दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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वो गाड़ी सरपट भागे जा रही थी!
घर के लिए देर हो चुकी थी,
इसीलिए, गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ी हुई थी,
रात्रि का कोई,
एक बजे का समय रहा होगा वो,
हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी,
थोड़े थोड़े अंतराल पश्चात,
गाड़ी के वाईपर चला दिया करते थे वो!
गाड़ी में,
दो लोग सवार थे,
एक महाजन साहब और दूसरे कपिल साहब,
गाड़ी कपिल साहब चला रहे थे,
साथ में बैठे महाजन साहब,
आराम से सिगरेट पी रहे थे!
छल्ले बना रहे थे वो!
गाड़ी में हलकी रौशनी थी,
मद्धम रौशनी में,
वे दोनों,
आराम से बतियाते हुए आगे बढ़े जा रहे थे,
ये रास्ता दिल्ली-आगरा राज-मार्ग था!
गाड़ियां सरपट भागे जा रही थीं!
बड़े बड़े ट्रक, बसें सब,
आगे निकलने की होड़ में शामिल थे!
अब ये दोनों भी शामिल हो गए थे,
आगरा से दिल्ली आना था उन्हें,
रास्ता कहीं तो बियाबान और कहीं,
आबादी वाला हो जाता था!
आसपास के सभी खोमचे,
बंद थे उस समय!
बस सड़क पर ही इंसान अपनी अपनी गाड़ी में,
दौड़े भागे जा रहे थे!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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महाजन साहब और कपिल,
इनका ज़मीन का व्यवसाय था,
उसी सिलसिले में,
न्यू-आगरा आये थे वे लोग!
अभी कोसी बहुत दूर था उनसे,
घर करीब तीन बजे तक ही पहुँचते,
यदि रफ़्तार ऐसी ही बनी रही तो!
दोनों मदिरा के नशे में,
धुत्त थे!
सिगरेट पीते और हंसी-ठिठोली करते!
गाड़ी करीब सौ, एक सौ दस की रफ़्तार पर होगी उनकी!
भागे जा रहे थे!
तभी एक तीव्र-मोड़ पड़ा,
गाड़ी धीमी की कपिल साहब ने,
और तभी!
तभी जैसे कोई आने जाने वाले सड़क के बीच बने,
डिवाइडर से अचानक ही उनकी गाड़ी के सामने से होता हुआ गुजर गया!
गाड़ी में ब्रेक लगे!
पहिंये चीख उठे!
सड़क की चर्म छिल गयी!
गाड़ी ने संतुलन सा खोया,
और सीधी बाएं हाथ की तरफ आ रुकी!
दोनों के दिल छाती से निकल कर,
जबड़े में आ गए थे!
महांजन साहब ने बाहर झाँका,
वो एक औरत थी!
औरत ही लगी थी!
और दे दी गालियां!
"बहन की **! मरेगी क्या? तेरी माँ को **!" आदि आदि गालियां!
दोनों ने दरवाज़ा खोला,
गाड़ी की रौशनी पड़ रही थी वहाँ,
जहां वो औरत खड़ी थी!
दोनों दौड़ पड़े उधर!
वो औरत, छिप कर पेड़ के पीछे हो गयी खड़ी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो वहाँ पहुंचे!
कोई नहीं था वहाँ!
कहाँ गयी?
अभी तो यहीं थी?
फिर से दोनों हो गए शुरू गालियां देने में!
उन्होंने ऊपर देखा,
वो औरत ऊपर बैठी थी!
एक पेड़ की डाल पर!
गुस्से में!
दिमाग नहीं चल सका उनका!
गालियां भांजी उन्होंने!
कपिल साहब तो ऊपर ही चढ़ने लगे!
और जैसे ही चढ़े,
वो औरत नीचे कूदी!
सामने आई,
और कस के एक झापड़ दिया महाजन साहब के गाल पर!
दाढ़!
दो दाढ़ जड़ छोड़ गयीं!
भयानक दर्द हुआ!
अपने गाल पर हाथ रखे हुए,
नीचे बैठ गए!
मुंह से फव्वारा छूट पड़ा खून का!
अब मुड़ी वो कपिल साहब की तरफ!
और वो!
वो मूढ़ बुद्धि कपिल साहब!
कपिल साहब अपनी मर्दानगी के जोश में,
आगे आ गए उसके!
उस औरत ने,
कस के एक झापड़ दिया कपिल साहब को!
कपिल साहब तो!
हवा में उछल गए!
गाड़ी के पास जा गिरे!
उनके कान का पर्दा,
फट गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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खून बहने लगा!
नकसीर छूट गयी उनकी!
और वो औरत!
पल भर में सड़क पार कर,
चली गयी वहीँ!
जहां से आई थी!
अब ये दोनों!
नीम-बेहोश बेचारे!
खूनमखान हो गए!
कपड़े लत्ते सब खून से सराबोर हो उठे!
अब उतरा नशा उनका!
ये कौन थी?
भूत?
भूत का विचार आया,
तो नाड़ा ढीला हुआ उनका!
भागे गाड़ी की तरफ!
और कर दी स्टार्ट गाड़ी!
दोनों रुमाल लगाए बैठे थे!
कपिल साहब को तो अब बस,
एक ही कान का सहारा था!
रुलाई फूटने ही वाली थी उनकी तो!
जान निकल गयी थी उन दोनों की उस समय!
अब भगाई गाड़ी!
दर्द असहनीय था!
भयानक पीड़ा थी उन्हें!
लेकिन!
खेल अभी खत्म नहीं हुआ था!
वो औरत!
वो औरते उन्हें उस रास्ते में,
फरीदाबाद तक,
करींब बीस बार दिखाई दी!
कई बार सड़क किनारे खड़े हुए,
कभी पत्थर फेंकते हुए!
कभी बीच रास्ते में खड़े हुए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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भय के मारे,
घास से कांपने लगे थे!
फरीदाबाद रुके!
भागे अस्पताल!
करवाया इलाज!
फ़ोन कर ही दिया था घर पर,
कुछ रिश्तेदार भी थे,
वहाँ फरीदाबाद में,
घंटे भर में ही,
सभी जुट गए!
अब क्या बताएं?
जो बताया,
उस पर यक़ीन ही नहीं किया किसी ने!
कौन यक़ीन करता!
डॉक्टर्स?
कभी नहीं!
खैर इलाज ज़रूरी था!
इलाज करवाया अब!
सुबह के वक़्त,
हाय हाय करते,
वे अपने अपने परिजनों के साथ,
चल दिए अपने शहर दिल्ली!
बड़ी ही,
भयानक रात गुजरी थी वो!
जान बच गयी,
यही शुक्र था!
नहीं तो क्या पता,
वहीँ क़त्ल कर देती वो!
हफ्ता बीत गया!
अब ज़ख्म भरने आरम्भ हो चुके थे!
कपिल साहब की,
नाक की हड्डी में,
दरार आ गयी थी!
उनको समय लगना था अभी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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नाक सूजने के कारण,
उनका स्वर भी बदल गया था!
कोई भी पूछता,
वे वही बताते,
कोई यक़ीन नहीं करता उनका!
बेचारे!
गालियों का ये नतीजा!

कुछ समय बीता, दो हफ्ते हो गए!
ज़ख्म भरने लगे थे!
हाँ, कपिल साहब का कान का पर्दा खत्म हो गया था,
कभी कभी कान, रिसता भी था,
नाक की हड्डी,
अब ठीक थी!
स्वर भी ठीक था,
महाजन साहब की,
बची अब दो दाढ़ें,
सारे जबड़ा-विभाग का कार्य करने में,
जुट गयीं थीं!
दाढ़ों का दर्द तो चला गया था,
लेकिन ज़ख्म अभी हरे ही थे!
इसीलिए दलिया-खिचड़ी ही खा रहे थे बेचारे!
एक दोपहर की बात है,
कपिल साहब,
चादर ओढ़ कर सो रहे थे!
अकेले ही,
अपने कमरे में,
उनकी पत्नी बाहर गयी हुईं थीं,
बेटा और बेटी आपने विद्यालय,
घर में वो और उनका एक नौकर,
सामू ही था!
सीढ़ी करवट सो रहे थे कपिल साहब!
दिन के कोई दो बजे होंगे,
तभी उनके चेहरे पर,
कुछ पानी की बूँदें सी गिरीं!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उन्होंने अलसाये हुए से ही,
वो बूँदें साफ़ करने के लिए,
हाथ चलाया,
लेकिन ये क्या?
वो बूँदें तो,
जैसे जम गयीं थीं!
जैसे मोम ठंडा हो कर जम जाता है!
वे चौंक के उठे!
अपनी चादर देखी,
चादर पर छींटे पड़े थे!
जैसे कि खून के छींटे!
सांस फूल गयी उनकी तो!
वो दर्द,
जो जा चुका था,
फिर से भड़क गया!
कान में फिर से उसी झापड़ की,
आवाज़ याद आ गयी!
कान गरम हो गए!
उन्होंने सामू को आवाज़ दी!
सामू दौड़ा दौड़ा आया!
अंदर आया तो चौंका!
चादर तो क्या,
कमरे की हर वस्तु पर,
शीशे पर,
अलमारी पर,
मेज़ पर,
फर्श पर,
छत पर,
दीवारों पर,
यही छींटे पड़े हुए थे!
खून के जमे हुए छींटे!
खून जम गया था वहां!
सामू की तो जीभ बाहर आ गयी!
डर गया बुरी तरह से!


   
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श्रीशः उपदंडक
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और कपिल साहब!
कपिल साहब के तो प्राण उड़कर,
आँखों के सामने नाचने लगे!
साँसें ऐसे चलने लगी जैसे,
कोई भाप का इंजन!
पसलियों में जोड़ न होते,
तो दिल सामने वाली मेज़ पर आकर,
धड़क रहा होता!
छाती खोलकर!
अब सामू से कहा सफाई के लिए,
सामू को तो सांप सूंघ गया था!
वो हर जगह को देख रहा था!
बेचारा!
मालिक का आदेश माना उसने,
और पोंछने लगा पोंछे से!
और तभी कपिल साहब की पत्नी आ गयीं!
जब उन्होंने देखा,
और सुना,
तो लगीं भाग-दौड़ी करने!
इसे फ़ोन कर,
उसे फ़ोन कर,
झाड़ा करने वाले को बुलाओ!
तांत्रिक को बुलाओ!
अपने भाई को फ़ोन किया,
अपनी बहन को फ़ोन किया,
और शाम तक,
पूरा कुनबा आ गया घर!
अब जिसने भी सुना,
देखा,
भय के मारे,
किल्ली मार बैठा!
ऐसा कैसे हो सकता है?
कौन कर सकता है ऐसा?
ये तो ऊपरी मामला लगता है!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब बोलने वाले कई,
करने वाला कोई नहीं!
तब जाकर,
कपिल साहब के एक बहनोई आये सामने,
उन्होंने बताया कि,
मथुरा के पास एक गाँव में,
बाबा अर्जन रहते हैं!
उनके पास जाया जाए तो,
तो अब देर कैसी!
दौड़ पड़ी गाडी मथुरा के लिए!
कपिल साहब साथ में थे ही!
जब वो जगह आई,
तो भय के मारे नाभि बाहर को झाँकने लगी उनकी!
खैर!
गाडी सरपट दौड़ गयी!
और जा पहुंची एक गाँव में!
यहां थे बाबा अर्जन!
जा पहुंचे उनकी शरण में!
बाबा अर्जन जी अपने चेरे-चपाटों के साथ,
बैठे थे एक बढ़िया से कमरे में!
टीवी चल रहा था!
अंग्रेजी पहलवानों की कुश्ती चल रही थी!
पांवों में पड़ गए सभी के सभी!
कपिल साहब के बहनोई ने आज का सारा वाक़या,
कह सुनाया,
अब बाबा जी ने,
कपिल साहब से सारी बात सुनी!
और जब कपिल साहब ने,
हादसा सुनाया महाजन साहब और अपना,
बाबा ठहाके मार कर हंस पड़े!
चिरपोटी कह दिया उस औरत को!
अर्थात,
आवारा प्रेत!
और कुछ पढ़ कर,


   
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श्रीशः उपदंडक
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दाने दिए सरसों के,
घर में बिखेरने को!
और एक हंडिया दे दी,
मिट्टी से भरी!
और अपना आशीर्वाद!
हंडिया तो नदी में गिरा देनी थी!
और दाने घर में हर जगह बिखेर देने थे!
अब कपिल साहब ने,
पैसे पकड़ा दिए बाबा जी को,
बाबा जी ने गिने,
और रख लिए जेब में!
और फिर वे सब,
वापिस हुए, दिल्ली जाने के लिए,
एक नहर आई,
हंडिया टपका दी गयी!
और फिर वही जगह आई!
कपिल साहब को उस झापड़ की आवाज़ याद आ गयी!
और फटाफट भाग लिए वहाँ से!
गाड़ी दौड़ पड़ी!
दिल्ली के लिए!

तो वे लोग पहुँच गए अपने घर!
और जैसा बाबा अर्जन ने कहा था,
वैसा ही किया गया,
घर की कोई भी जगह ऐसी ना छोड़ी,
जहां उस सरसों का दाना ना गिरा हो!
अलमारी के पीछे,
छत की दीवारों में बनी,
झिर्रियों में!
हर जगह!
स्नानालय और तमाम ऐसी जगह,
जहां भले ही कोई आता जाता हो!
हो गए सुरक्षित!
अब वो चिरपोटी क्या बिगाड़ेगी उनका!
आएगी तो मार खा के ही जायेगी!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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कोई समझे ना समझे,
लेकिन कपिल साहब,
ये जानते थे की ये काम उसी औरत का है!
जिसने जबड़ा सुजा दिया था उनका,
एक ही झापड़ में!
मन में भी बैठा था!
और घर से निकलने का मन नहीं था उनका!
हाँ, इस घटना के बारे में,
उन्होंने महाजन साहब को बता दिया था,
और सतर्क रहने को कहा था,
कोई इंतज़ाम हो जाए तो बढ़िया, नहीं तो बाबा अर्जन का,
पता तो दे ही दिया था!
आगे उनकी मर्ज़ी!
ये खबर महाजन साहब ने सुनी,
तो पेट में मरोड़ सी उठ गयी!
वो दो दाढ़ें जो अब स्वर्गवासी हो चुकी थीं,
उनकी कब्र जाग उठी थीं!
मारे दर्द के पसीने छूट गए!
जीभ, बार बार उनकी कब्र पर हाज़िरी दे रही थी!
उसी रात की बात है,
महाजन साहब सो रहे थे,
संग उनके उनकी श्रीमति जी भी थीं,
कोई तीन बजे का वक़्त रहा होगा वो,
उनकी श्रीमति जी के ऊपर की चादर हटी,
उन्होंने, फिर से ऊपर कर ली,
चादर फिर से हटी,
उन्होंने फिर से खींच ली,
फिर से ऐसा हुआ,
उन्होंने फिर से खींच ली,
जब बार बार ऐसा हुआ,
तो आँख खुली!
क्या देखा!
चादर,
हवा में उठी हुई थी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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जैसे किसी ने ओढ़ी हुई हो!
और कोई हो उस चादर में,
चादर में,
बाल लटके हुए थे,
जो की,
उन श्रीमति के पेट तक आ रहे थे!
अब तो हौला उठा!
और मारी चीख!
चीख ऐसी कि,
महाजन साहब जैसे ही जागे,
बिन कुछ सोचे समझे,
उस चीख में अपनी चीख भी घुसेड़ दी!
चादर भम्म से नीचे गिरी!
श्रीमति जी तो होश खो बैठीं और बेहोश हो गयीं!
महाजन साहब को जैसे कोई अजगर सूंघ गया!
वे पत्थर से बन गए थे!
घर के सभी लोगों ने,
उनके कमरे के दरवाज़े पर,
हाथ मारने शुरू किये,
मम्मी! पापा! मम्मी! पापा!
साहब! साहब!
सभी!
और महाजन साहब!
जैसे गूंगे हो गए थे!
संग बहरे भी!
ना सुनते कुछ बने,
और ना कहते कुछ बने!
जब बहुत चिल्ल-पुकार हो गयी,
और श्रीमति जी को देखा,
तो होश आया!
दौड़ कर दरवाज़ा खोला,
सभी अंदर!
बेटे, और बेटी दहाड़ उठे!
रोने लगे अपनी मम्मी को ऐसे देखकर!


   
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श्रीशः उपदंडक
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बहुत पूछा कि क्या हुआ!
लेकिन कोई जवाब नहीं!
कोई एक शब्द नहीं!
आखिर घर की नौकरानी ने,
पानी के छींटे मारे श्रीमति जी के मुंह पर,
हरक़त हुई और आँखें खुलीं!
आँखें जैसे ही खुलीं,
सभी को देखकर,
फिर से चिल्ला पड़ीं!
जो उन्होंने देखा था,
सहसा याद आ गया उन्हें!
बस फिर क्या था!
किसी हॉरर मूवी का,
सैट तैयार था वहाँ!
गूंगे-भरे वे महाजन साहब!
भय की मारी और ख़ौफ़ज़दा वो,
श्रीमति जी,
ख़ौफ़ज़दा लोग!
जिन्हे अभी तक ये भी,
आभास नहीं था कि,
हुआ क्या था!
अब पूछा बड़ी हिम्मत करके,
उनके बेटे ने!
एक एक टूटे-फूटे शब्दों में,
वो सारा हाल सुनाया!
सबके चेहरे का रंग,
पीला पड़ता चला गया!
सुबह के साढ़े चार बज चुके थे,
लेकिन घर में सन्नाटा पसरा था!
आँखें फाड़ते हुए वे महाजन साहब,
उस चादर को देख रहे थे!
अपने पांवों की उँगलियों को,
बचा रहे थे कि कहीं,
छू ना जाएँ वो!


   
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श्रीशः उपदंडक
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सुबह हुई!
अब हालात कुछ सामान्य ही थे,
कोई डरावना सपना होगा,
यही समझाया उनके बेटे और बेटी ने!
माहौल को हल्का तो करना ही था,
सो कर दिया!
भय को भगाने के लिए,
कारण तो चाहिए ही!
को तर्क ऐसा जिस से उस घटना का,
सम्बन्ध बैठ जाए!
तालमेल हो जाए!
ऐसा ही हुआ,
सपना देखा होगा उन्होंने!
कोई बुरा और भयावह सपना!
लेकिन!
महाजन साहब को तो अब,
काठ मार ही चुका था!
वो सब समझ गए थे कि,
ये किस कारण से हुआ है,
सुबह ही उन्होंने,
अपने साले साहब को बुला लिया,
और चल पड़े कपिल साहब के घर के लिए,
वहाँ पहुंचे,
कपिल साहब तो वैसे ही,
भय की चौसर खेल रहे थे!
महाजन साहब ने जो बताया,
उस से और दम घुट गया उनका!
उनके चौसर के पासे,
उछलते ही रहे!
वे दोनों,
फिर से उसी दृश्य में खो गए!
उस औरत का सड़क पर आना,
उनका ब्रेक लगाना,
गाली-गलौज करना!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसको ढूंढना,
उसका पेड़ से कूदना!
और एक एक झापड़ खाना!
सब याद आ गया,
दस के पहाड़े की तरह!
कुल मिलकर बात ये तय हुई,
कि अब महाजन साहब अपने साले साहब के साथ,
बाबा अर्जन के पास,
अर्जी लगाने जाएंगे!
और दौड़ लिए वहां से,
बिना चाय आदि लिए!
गाड़ी दौड़ चली!
भाग चली संकट-मोचन बाबा अर्जन के पास!

पहुँच गए बाबा अर्जन के पास दोनों!
महाजन साहब तो बुक्का फाड़कर रो पड़े!
आपबीती सब सुना दी!
अपनी दाढ़ों की वो खाली जगह,
वो भी दिखा दी!
बाबा अर्जन और उनके चेले,
ठहाका मार के हँसे!
उस चिरपोटी के बारे में बताया,
कि ऐसी छोटी-मोटी हवाएँ तो,
आती-जाती रहती हैं!
इसमें डरना क्या!
छोटी-मोटी?
यहां तो जान पर बनी है!
आज तो श्रीमति जी पहुँच जातीं परम-धाम!
तभी तो भाग कर आये हैं यहां!
पाँव पड़ गए वो बाबा के,
बाबा ने दो तीन हाथ जमाये पीठ पर,
एक आद मंत्र पढ़ा!
और अपने एक चेले को इशारा किया,
चेला अंदर गया,
और एक हंडिया ले आया,
मिट्टी से भरी,


   
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