वर्ष २०१३ जिला गाज़ि...
 
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वर्ष २०१३ जिला गाज़ियाबाद की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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"जी ऊपर है एक कमरा" वे बोले,

"चलिए' मैंने कहा,

और मैंने अपना बैग उठाया और अवधेश जी के साथ ऊपर के कक्ष में आ गए, कक्ष ठीक था, यहाँ मई सामान आदि एकत्रित कर सकता था,

वे गए और मैं अपने कार्य में लगा!

 

मैंने अब वस्तुएं एकत्रित की और कुछ अन्य सामग्रियां भी, ये आवश्यक थीं, फिर एक विशेष माला, जो धारण कर ली मैंने, और फिर शर्मा जी को बुला लिया मैंने अंदर, अवधेश जी भी आ गए, उन्होंने चाय आदि मंगवा ली थी, वही हम पीने के लिए बैठ गए, कुछ बातें करते रहे गाँव आदि के बारे में और मैंने पूछा उनसे, "अजः कब तक आ जाएगा?"

"वे निकल गए हैं लेने, चार बजे तक आ जाना चाहिए" वे बोले,

"ठीक है, आते ही मुझे सूचित करें" मैंने कहा,

"अवश्य" वे बोले,

चाय आदि के बर्तन वापिस ले गए वे और अब मैं आराम करने के लिए लेट गया, तभी शर्मा जी जो कुर्सी पर बैठे थे, बोले, "आज ही कम निबट जाएगा इसका?"

"हाँ उम्मीद है आज ही निबट जाए" मैंने कहा,

"निबट जाए तो अच्छा है" वे बोले,

"हाँ, कोशिश भी यही है" मैंने कहा,

"हाँ" वे बोले,

"हाँ जी, फिर हम भी चलें यहाँ से' मैंने कहा,

"इसको मैं समझा के जाऊँगा, कि आगे से कभी ऐसा काम न करे, इस बार तो बचाव हो गया, अगली बार हो सकता है कोई न आये" वे बोले,

"हाँ, थोडा सख्ती से कहना, समझ में आना चाहिए" मैंने कहा,

"वो मैं समझा दूंगा" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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"ठीक है" मैंने कहा,

और फिर मैं सो गया, शर्मा जी भी सो गए, थक गए थे, कुछ न करने से भी थकान हो जाया करती है! और यहाँ तो सुबह से बैठे ही थे, मौसम भी आलस से भरा हुआ था, सो नींद की खुमारी चढ़ गयी और नींद आ गयी!

करीब पांच बजे अवधेश जी आये, उन्होंने शर्मा जी को जगाया, वे जागे, अजः का प्रबंध हो गया था, अब शर्मा जी ने मुझे जगाया, मैं जाग गया,

मैं बैठा, अंगड़ाई ली, अवधेश जी सामने ही बैठे थे,

"गुरु जी अजः का प्रबंध हो गया है" वे बोले,

'अच्छा, चलिए, मैं देखता हूँ उसको" मैंने कहा,

"चलिए" अवधेश जी बोले,

और हम उस अजः को देखने गए, मैंने जांच की, अजः ठीक था, स्वस्थ और चपल, यही चाहिए थे उस समय!

संध्या गहरा गयी, अँधेरा छा गया!

अब हुईं तैय्यारियाँ आरम्भ!

मैं अजः समेत वहीँ गया, मेरे साथ अवधेश जी, उनका बेटा दिनेश और शर्मा जी थे, अब मैंने काजल निकाला, खावक खींचा और फिर कुछ मंत्र पढ़े, और फिर दिनेश को बुलाया, उसके कुछ केश काटे और वहाँ खावक के परे फेंक दिए, उस से क्षमा याचना करवायी और फिर मैंने ध्यान लगाया, कुछ देर बाद मैं सुकून में आया! काम हो गया था! मुझे आभास हो गया!

दिनेश अब सुरक्षित था!

अब मैंने उस अजः का क्या करना था, ये अवधेश जी को बता दिया और निर्देश दिया कि अगले चौबीस घंटे में इसका भोग लगा दिया जाए! उन्होंने हामी भर ली! अब गाँव में ऐसे कई स्थान होते हैं जहां ऐसा होता है, उनके गाँव में भी ऐसा स्थान था!

अब शर्मा जी ने दिनेश को दो टूक लहजे में समझा दिया! समझदार लड़का समझ गया!

उसके बाद हम वहाँ से उसी रात अपने शहर के लिए निकल पड़े, उन्होंने बहुत रोका, लेकिन हम रुक न सकते थे, कुछ क्रिया शेष थी, जिसका मैंने यहाँ वचन लिया था, वही पूर्ण करनी थी!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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आज दिनेश बिलकुल ठीक है, पढ़ाई में भी ठीक ही चल रहा है! आता है कभी कभार अपने पिता जी के साथ मिलने!

मित्रगण! कभी भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिसके बारे में ज्ञान पूर्ण न हो, अधपका ज्ञान सदैव मृत्यु को वरण कवाता है! कम आज कम मौत से मिलवा तो देता ही है! यही किया था दिनेश ने! लेकिन उसने सही वक़्त पर प्रायश्चित कर लिया और बच गया! नहीं तो उसकी मौत शर्तिया थी!

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------

 


   
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