दो मोटरसाइकिल भागी जा रही थीं! एक के पीछे मैं और एक के पीछे शर्मा जी बैठे थे! तभी एक जगह दोनों मोटरसाइकिल रुकीं, ये बड़ा निर्जन सा मैदान था ये, जंगली झाड़-झंखाड़ और केवल खजूर के पेड़, कोई खेत-खलिहान भी नहीं! कोई छायादार पेड़ भी नहीं! इस मैदान से दूर जाती एक सड़क, जिस पर एक आद बैलगाड़ी या बुग्घी दिख जाए तो पता चले कि आसपास ही कोई गांव है! नहीं तो सुनसान जंगल! शहरी आदमी तो दिशा ही भूल जाए यहाँ!
"यहाँ आया था दिनेश?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" दिनेश के पिता जी अवधेश जी बोले,
"क्या करने आया था वो?" मैंने पूछा,
"अक्सर तो नहीं आता था, कभी कभार आया करता था" वे बोले,
"क्या करने?" मैंने पूछा,
"जी आपको बताया था, वो लड़का गम्भीर स्वभाव का है, अक्सर अपने मित्रों के साथ यहाँ आ जाया करता था, कहता था कि यहाँ का माहौल शांत है"
"अच्छा" मैंने कहा,
अब मैंने वहाँ जांच की, मैंने अपने और शर्मा जी के नेत्र पोषित किया कलुष-मंत्र से और फिर देख डाली, वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था, कुछ भी नहीं!
मंत्र वापिस लिया!
"ठीक है, अब घर चलो" मैंने कहा,
"कुछ पता चला?" उसके पिता जी ने पूछा,
"नहीं, यहाँ तो कुछ नहीं" मैंने कहा,
वे मायूस से हो गए!
फिर से मोटरसाइकिल स्टार्ट हुईं और दौड़ पड़ीं घर की तरफ दिनेश के!
ये बात है उत्तर प्रदेश के एक गाँव, जिला गाज़ियाबाद की, ये जून का महीना था, गर्मी का क्या आलम था ये तो मैं बयान भी नहीं कर सकता! एक शाम शर्मा जी मेरे पास एक व्यक्ति को लाये, साथ में उनके उनका ज्येष्ठ पुत्र सुरेश था, वे दोनों बड़े मायूस और घबराये हुए थे, शर्मा जी ने परिचय करवाया और फिर मैंने उन्हें पानी पिलवाया, और उसके बाद उनसे पूछा, "कहिये अवधेश जी, क्या समस्या है?"
"गुरु जी, मेरे दो पुत्र हैं सुरेश बड़ा है और इस से छोटा है दिनेश, अभी उसने स्नातक की परीक्षा पास की है, बड़ा बेटा मेरे साथ मेरी दूकान पर काम करता है, इसकी शादी हो चुकी है, एक बड़ी बेटी थी, उसका भी ब्याह कर दिया गया है" वो बोले,
'अच्छा" मैंने कहा,
"गुरु जी, कोई तीन महीने पहले की बात है, एक दिन दिनेश घर देर से आया, अपने कमरे में गया और फिर तेज तेज रोने लगा, हमने सोचा कि क्या बात हो गयी? उसके पास गये तो उसने अपना दरवाज़ा बंद कर रखा था अंदर से, हमने दरवाज़ा खोलने को कहा तो तो उसने दरवाज़ा नहीं खोल, हम सभी परेशान" वे बोले,
'फिर?" मैंने पूछा,
"बड़ी मिन्नतें कीं और तब जाकर उसने दरवाज़ा खोला, हमने जब उस से पूछा तो वो बोला, कि मैं कहाँ रोया? मैं तो आराम से सो रहा था? और वाक़ई उसके चेहरे से लग नहीं रहा था कि वो रोया है अभी?" वे बोले,
कमाल था!
"फिर?" मैंने पूछा,
"अब जो हमने सुना था वो सच था, भ्रम होता तो मुझे होता, लेकिन वहाँ तो घर के सभी लोगों ने सुना था! तो ये भ्रम नहीं था" वे बोले,
"फिर?" मैंने अब जिज्ञासा से पूछा,
"हम कमरे से आ गए वापिस" वे बोले,
अब उन्होंने पानी पिया,
"जी उसी रात की बात है, मैंने उसके कमरे में से आवाज़ें सुनीं! जैसे दो लोग बतिया रहे हों, मैं वहाँ गया तो कमरे में अँधेरा था! लेकिन आवाज़ आ रही थी, कोई जैसे गीत सा गा रहा था और
दूसरा सुन रहा था, हूँ हूँ करके, मैंने दरवाज़ा खटखटाया, बड़ी मुश्किल से दरवाज़ा खोला उसने!" वे बोले,
"फिर?" मैंने पूछा,
"कमरे की लाइट जलाई, वहाँ कोई नहीं था" वे बोले,
"अच्छा?" मैंने कहा,
"जी" वे बोले,
और तब जेब से उन्होंने दिनेश का फ़ोटो दिखाया मुझे, सीधा साधा सा लड़का था दिनेश!
"अच्छा फिर?" मैंने पूछा,
"फिर जी कुछ नहीं हुआ कोई हफ्ते भर और एक दिन" वे बोलते बोलते रुक गए!
मैंने उनके बोलने का इंतज़ार किया!
"फिर? क्या एक दिन?" अब मैंने पूछा,
"जी एक दिन शराब पी कर आया वो! और सभी को गाली-गलौज करने लगा, बोला 'सालो कुत्तो, मार डालूंगा! सबको मार डालूंगा' और जी हम घबराये अब!" वे बोले,
"लाजमी है" मैंने कहा,
"उस रात अपने कमरे में गया, कमरा बंद किया और सारी रात गालियां देता रहा!" वे बोले,
"फिर?" मैंने पूछा,
"जी फिर अगले दिन उसकी माँ ने कहा कि कोई हवा का चक्कर है, किसी को बुलाओ, तो जी मैं अपने एक जानकार के पास गया, वे मुझे ले गए एक गाँव, वहाँ से एक भगत को लाये" वे बोले,
"फिर?" मैंने पूछा,
तभी मेरे फ़ोन पर घंटी बजी!
ये मेरे एक जानकार थे, मैंने बात की और फ़ोन रख दिया!
'फिर?" मैंने पूछा,
"जब भगत आया तो वो वहाँ नहीं था" वे बोले,
"कहाँ गया था?" मैंने पूछा,
"पता नहीं जी" वे बोले,
"फिर?" मैंने पूछा,
"फिर जी रात को आया वो! आते ही भगत को उसका नाम लेकर गाली गलौज की उसने! भगत की एक न चली और उसने उसे लात घूंसे मारके भगा दिया जी" वे बोले,
बड़ा ही अजीब सा मामला था दिनेश का!
"अच्छा, भगत भाग गया, फिर, उसके बाद?" मैंने पूछा,
"अब जी समस्या खड़ी हो गयी थी, ये हवा का ही चक्कर था, मुझे जैसे यकीन आ गया, लेकिन जी वो लड़का दिनेश तो जैसे हाथ ही न रखने दे" वे बोले,
"फिर?'' मैंने पूछा,
"तो जी दिनेश के मामा हैं एक ओम, हमने उनको समस्या बताई, वे एक बाबा को जानते थे जी, बाबा पहुंचे हुए थे, ऐसा बताया ओम ने, सो जी, हमने उन्हें कैसे भी लाने को कह दिया, और जी दो दिन के बाद ओम उन बाबा को ले आये" वे बोले,
"अच्छा!" मैंने कहा,
"फिर जी, जब वो आये तो दिनेश अपने कमरे में ही था, वो वहीँ से चिल्लाया, कि भाग जाओ यहाँ से, ऐसा कर दूंगा, वैसा कर दूंगा, किसी को नहीं छोडूंगा! हम डर गये जी!" वे बोले,
"तो बाबा जो आये थे वे क्या बोले?" मैंने पूछा,
"बाबा ने कहा कि हवा का चक्कर है, ये पता लगा लिया है, अब वे लड़के को देखेंगे, तो जी हम चले लड़के के कमरे के पास, उसका दरवाज़ा खटखटाया, आवाज़ें दीं, लेकिन अब वो दरवाज़ा ही न खोले, तब बाबा ने कहा कि वो खुद ही दरवाज़ा खुलवाएंगे, और जी उन्होंने कुछ पढ़ा, कुछ मंत्र पढ़े और फिर दिनेश को आवाज़ दी, तो जी दिनेश ने झट से दरवाज़ा खोल दिया!" वे बोले,
"अच्छा! फिर?" मुझे उत्सुकता हुई!
"बाबा अंदर गए, हम भी अंदर गए, दिनेश बिस्तर पर बैठा था, बाबा भी बैठ गए, नज़रों से नज़रें मिलाईं और उन्होंने पूछा कि कौन है वो? दिनेश हंसने लगा और बोली कि उसकी विद्या का आदर कर रहा है नहीं तो अभी हड्डियां तोड़ कर बाँध देता पुलिंदा, बेहतर है कि वो जाएँ वहाँ से, जैसे आये हैं वैसे ही, उसने हाथ जोड़ कर कहा!" वे बोले,
"अच्छा! कमाल है!" मैंने कहा,
"हाँ जी, यही हुआ!" वे बोले,
"फिर?" मैंने पूछा,
"फिर जी बाबा ने आराम से उस से बातें कीं, कुछ पूछा और फिर बाहर आ गए, क्या बातें हुईं समझ नहीं आया जी हमें तो" वे बोले,
"तो बाबा क्या बोले?" मैंने पूछा,
"बाबा ने बताया कि वे पूजा करेंगे उस लड़के के लिए, लड़के से गलती हो गयी है कोई बहुत बड़ी और पूजा जल्दी से जल्दी ही करनी होगी" वे बोले,
"तो पूजा करवायी?" मैंने पूछा,
"हाँ जी, कुल सात दिन पूजा हुई, और सात दिनों तक दिनेश बिलकुल ठीक रहा, हमने सोचा कि पूजा से सब ठीक हो गया, लेकिन जी, आठवें दिन से फिर से वही हाल, गाली-गलौज और तोड़-फोड़ शुरू" वे बोले,
"तो ये बात आपने बाबा को बताई?" मैंने पूछा,
"हाँ जी, बताई, लेकिन बाबा जी बोले, कि अब वो कुछ नहीं कर सकते, लगता है गलती कोई बड़ी ही है, और वो इसका तोड़ नहीं कर पाएंगे, इसमें दिनेश की जान का जोखिम है, ये सुनके तो हम जी बहुत डर गए" वे बोले,
"ऐसा कहा उन्होंने?'' मैंने हैरत से पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"अच्छा, उसके बाद?" मैंने पूछा,
"हम सब घबरा गए थे, क्या करते कोई आदमी ऐसा ढूंढ रहे थे जो इसका इलाज कर सके, लेकिन जो मिलता वही मना कर देता" वे बोले,
"समझ सकता हूँ मैं" मैंने कहा,
"एक बार सुबह की बात है, सुबह मेरे बेटे की पत्नी घर का काम काज कर रही थी, तभी दिनेश टकरा गया उस से और इतनी भद्दी भद्दी गालियां दीं उसने कि बेचारी डर गयी और अपने घर चली गयी, तबसे अपने घर में ही है, दरअसल वो पेट से है, हमने सोचा यहाँ रहेगी तो कहीं कोई मुसीबत न हो जाए, सो उसको उसके घर भिजवा दिया" वे बोले,
"ये तो ठीक किया आपने" मैंने कहा,
"गुरु जी, हम बहुत परेशान हैं, इलाज कोई कर नहीं पाता, जाता वो है नहीं कहीं, मार-धाड़ के अलावा, गाली-गलौज के अलावा और कुछ नहीं करता, शराब पीता है, और सबको गालियां देता फिरता है, सब जान गए हैं कि इस पर कोई हवा का चक्कर है, अब हम क्या करें?" वे बोले, परेशान से!
"एक बात बताइये?" मैंने पूछा,
"जी पूछिए?" वे बोले,
"नहाता-धोता है?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"खाना कहाँ खाता है?" मैंने पूछा,
"कभी घर में कभी बाहर" वे बोले,
"कोई दोस्त है उसका?" मैंने पूछा,
"पहले तो थे, अब कोई नहीं आता" वे बोले,
"अच्छा" मैंने कहा,
"ठीक है, आप मुझे अपने गाँव का पता, और अपना फ़ोन नंबर लिख दीजिये मैं, आपको बताता हूँ कि कब आउंगा" मैंने कहा,
"बहत बहुत धन्यवाद जी आपका" वे बोले,
उन्होंने पता लिख कर दे दिया, मैंने नोट कर लिया और अब वे विदा ले चले गए! और मैं सोच में पड़ा कि आखिर ये मामला है क्या??
वे चले गए, फ़ोटो मुझे दे गए, और जो ज़रूरी जानकारियां थीं वो भी दे गए, अब मुझे दिनेश के बारे में पता करना था! शर्मा जी वहीँ बैठे थे, सहायक एक चाय और ले आया, सो हम चाय पीते पीते बातें करने लगे, शर्मा जी ने कुर्सी से पुश्त लगाईं और फिर पीछे होते हुए बोले," ये क्या चक्कर हो सकता है गुरु जी?"
"ये तो देख कर ही पता चल सकता है" मैंने कहा,
"वैसे क्या लगता है?" उन्होंने पूछा,
"कोई लपेट है" मैंने कहा,
"अच्छा" वे बोले,
"लेकिन बाबा जो आये थे, उन्होंने बताया था कि कोई गलती कर बैठा है ये लड़का" मैंने कहा,
"हाँ, यही बताया था" वे चुस्की लेने से पहले बोले,
"अब क्या गलती, ये नहीं पता" मैंने कहा,
"और वो बतायेगा भी नहीं" वे बोले,
"हाँ" मैंने कहा,
"तो इसका मतलब वहाँ जाना होगा" वे बोले,
"हाँ" मैंने कहा,
"ठीक है, क्योंकि वो कहीं जाता भी नहीं यदि उसके पिताजी कहीं ले भी जाएँ तो" वे बोले,
हाँ और लपेट भी तगड़ी है, मुझे लगता है" मैंने कहा,
"हाँ, लगता तो ऐसा ही है" वे बोले,
"चलो देखते हैं" मैंने कहा,
तब शर्मा जी ने चाय पी और वे वो भी शाम को आने को कह गए, मैं अपने दैनिक-चर्या में लग गया!
शाम हुई,
शर्मा जी आये, बैठे और मुझसे बोले, "दोपहर बाद फ़ोन आया था अवधेश जी का"
"अच्छा? क्या कह रहे थे?" मैंने पूछा,
"पूछ रहे थे कि कब तक आयेंगे हम?" वे बोले,
"मैं उनकी विवशता समझ सकता हूँ" मैंने कहा,
"जी हाँ" वे बोले,
"ठीक है, आप उनको कल का कह दीजिये" मैंने कहा,
"ठीक है, हाँ किसी का भला हो" वे बोले,
और उन्होंने तभी फ़ोन कर दिया अवधेश जी को और बता दिया कि कल हम आ रहे हैं वहाँ, उनके गाँव!
रात हुई!
और हमारा मदिरा का दौर शुरू!
"मुझे लगता है, वहाँ कोई ज़बरदस्त ही चीज़ है कोई, भगत भाग गया, बाबा ने मना कर दिया!" शर्मा जी बोले,
"हाँ! यही देखना है!" मैंने कहा,
"देखते हैं कल!" वे बोले,
"हाँ, कल चलते हैं" मैंने कहा,
और भी बातें हुईं, फिर शर्मा जी वहीँ सोये, मैं भी सोया उस रात, कोई क्रिया नहीं की!
और अब हुई सुबह!
तैयार हुए हम!
और फिर करीब नौ बजे हम कूच कर गए अवधेश जी के गाँव के लिए, उनको अपने आने की इत्तला कर दी थी हमने, वे हमे वहीँ मिलने वाले थे और बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे!
करीब ढाई घंटे में हम उनके गाँव पहुंचे, गाँव आधुनिक ही था, नाम का ही गाँव था, पक्के मकान, आदि सब था वहाँ! आधुनिक वस्तुएं, गाड़ियां आदि!
अवधेश जी वहीँ मिले!
परेशान से!
नमस्कार हुई उनसे!
"कहाँ है वो लड़का, घर पर है?" मैंने पूछा,
"नहीं जी, अभी भाग है, कह रहा था दो आदमी आ रहे हैं, इनको सबक सिखाना है, गर्रू को बुलाना है" वे बोले,
"गर्रू?" मैंने पूछा,
"हाँ जी, गर्रू" वे बोले,
"ये गर्रू कौन है?" मैंने पूछा,
"पता नहीं जी" वे बोले,
अब वे अंदर ले गये हमे, उसका कमरा दिखाया, कमरा सामान्य ही था, कुछ बदलाव नहीं था न ही कोई लोच आदि भूत-प्रेत की!
"कहाँ भागा है वो?" मैंने पूछा,
"जी एक ही जगह जाता है वो" वे बोले,
"चलो, वहीँ चलो!" मैंने कहा,
अब दो मोटरसाइकिल स्टार्ट हुईं, वहाँ कार का रास्ता नहीं था सो इसीलिए मोटरसाइकिल ही ली गयीं! और हम उन पर बैठ दौड़ चले!
रास्ता बेहद ही खराब था! टूटा-फूटा! शायद बन रहा था दुबारा! पत्थर पड़े थे वहाँ सड़क के! और फिर हम एक मैदान से भाग में आ गए!
अब हम वहीँ मैदान में पहुंचे! वहाँ कुछ नहीं था! सो वहाँ से वापिस चले! और वापिस घर आये, घर में अवधेश जी के बड़े भाई भी आ गए थे, उनका बेटा अशोक भी आ गया था, घर में चाय बना ली गयी थी और मेहमान-नवाजी के लिए जो कर सकते थे वो किया, हमने चाय पी और फिर रोती हुईं दिनेश की माता जी आ गयीं वहाँ, "गुरु जी, मेरे बेटे को बचा लीजिये, कोई गलती कर बैठा है अनजाने में" वे बोलीं,
"आप चिंता न करें, आने दें दिनेश को" मैंने कहा,
करीब आधा घंटा बीता होगा कि दिनेश घर में घुसा! गुस्से में! हाथ में एक मोटा सा डंडा लिए!
"कहाँ है साले?" वो चिल्लाके बोला और हमारे पास दौड़ा, हम सतर्क हो गए! तभी अवधेश के बेटे और उसके ताऊ के लड़के ने पकड़ लिया दिनेश को! वो झुंझलाया और मुझे देखकर उसने थूका!
"चला जा! चला जा ओये?" वो गुस्से से बोला,
वो उनकी बाजुओं में कसमसा रहा था! कि कब छूटूं और कब वो हम पर डंडा भांजे! मैंने उसकी आँखों में देखा, आँखें सुर्ख़ लाल!
"ओये? सुन रहा है? चला जा यहाँ से?" वो चिल्लाके बोला,
"बिठाओ इसको" मैंने कहा,
अब वो बैठे ही न!
गाली-गलौज करे!
न माने किसी की!
सभी समझाएं उसको!
लेकिन नहीं माना!
मन तो मेरा किया कि भंजन-क्रिया कर दूँ उसकी! सारी हेकड़ी अभी निकाल दूँ उसकी! लेकिन ये उसकी गलती नहीं थी! ये कोई और था!
"क्या नाम है तेरा?" मैंने पूछा,
कुछ न बोला, बस गाली-गलौज!
"बात?" मैंने पूछा,
कुछ नहीं!
कोई जवाब नहीं!
बस गाली-गलौज!
"नहीं मानेगा?" मैंने कहा उसको!
चेताया दरअसल!
वो फिर से गाली दे!
अब मैंने वहाँ से उसकी माता जी को हटाया और भेज दिया,
"इसको कमरे में ले चलो" मैंने कहा,
वो चिल्लाये! जैसे कोई क़त्ल करने वाला हो उसको!
आखिर सभी ने खींच के उसको कमरे में ले जा कर बिठा दिया! और जैसे ही मैं आया कमरे में वो फिर से गाली-गलौज करने लगा!
अब मैंने एक मन्त्र पढ़ा! और मंत्र से अपने हाथ को फूंक कर उसके बाल पकड़ लिए! बहुत तेज चिल्लाया वो! बदन अकड़ गया उसका! आँखें ऊपर चढ़ गयीं उसकी! उलटी हो गयी उसको! और फिर बेहोश!
उसे बेहोश होते देख सभी घबराये! मैंने समझा दिया कि उसे कुछ नहीं हुआ, बस उसके अंदर जो था वो निकल के भागा है!
लेकिन सभी डर गए!
घर के बाहर मजमा सा लग गया!
कोई पौने घंटे-घंटे के बाद होश आया उसको और वो 'माँ! माँ!' कहते हुए चिल्लाया! उसकी माँ तड़पी! लेकिन मैंने नहीं आने दिया अंदर!
उसने मुझे देखा, घूर कर!
अपने पिता को देखा!
फिर सभी को देखा!
फिर कोहनियां मोड़ के बैठ अगय कुर्सी पर!
अब चुप था वो!
"दिनेश?" मैंने कहा,
उसने मुझे देखा!
"तेरा नाम दिनेश है?" मैंने पूछा,
वो चुप, केवल घूरे!
"कौन है तू?" मैंने पूछा,
कुछ न बोले वो!
"बता?" मैंने पूछा,
"बालक होने वाला है, खाके जाऊँगा!" वो बोला,
बालक?
समझा! सुरेश का बालक!
अब मुझे न जाने क्यों गुस्सा आ गया! और मैंने उसके बाल पकड़ के उसको उठाया और एक झन्नाटेदार झापड़ लगा दिया उसको!
वो नीचे गिरा!
और हँसते हुए उठ गया!
"तू नहीं रोक पायेगा!" वो बोला,
"क्या करेगा?' ' मैंने पूछा,
"सबको मारूंगा! सबको मारूंगा!" वो बोला,
इस से पहले कि मैं उस पर हाथ उठाता वो मुझ पर झपट पड़ा! काटने के लिए, नोंचने के लिए लेकिन उसको फिर से पकड़ लिया, लेकिन मेरी कमीज फट गयी इस ज़द्दोज़हद में!
"अभी समझाता हूँ तुझे, रुक जा!" मैंने कहा,
मैंने अपनी माला को हाथ लगाया और अपने एक महाप्रेत को हाज़िर किया! उसे केवल मैं और वो दिनेश ही देख सकते थे! उसको देखा दिनेश 'बचाओ! बचाओ!' कहता हुआ पलंग पर पागलों की तरह भागने लगा!
जैसे कोई पागल व्यक्ति! सुधबुध से बाहर!
"पकड़ लो इसको" मैंने कहा,
एकदम से झप्पटा सा मार उसको दबोच लिया!
"छोड़ दो मुझे!" वो चिल्लाया!
"पकडे रहो" मैंने उनसे कहा,
"छोड़ दो, मर जाऊँगा मैं, मर जाऊँगा" वो बोला,
"क्या हुआ?" मैंने पूछा,
"मर जाऊँगा, मर जाऊँगा" वो बोला,
"तू तो मारने आया था रे?" मैंने पूछा,
"गलती हो गयी" वो बोला,
"छोड़ दो इसको" मैंने कहा,
उन्होंने छोड़ दिया!
"हाँ, अब बता क्या नाम है तेरा?" मैंने पूछा,
"किशन चंद" वो बोला,
उसके मुंह से नाम सुनकर सभी हैरान!
"किसी किशन चंद को जानते हो आप?" मैंने दिनेश के पिता जी से पूछा,
"नहीं गुरु जी" वे बोले,
"कहाँ से आया है?" मैंने पूछा,
"ऊंचे गाँव से" उसने बताया,
"कौन सा ऊंचा गाँव?" मैंने पूछा,
अब उसने जो बताया मुझे समझ नहीं आया!
"और कौन है यहाँ?" मैंने पूछा,
"मुझे छोड़ दो" उसने हाथ जोड़े!
"छोड़ दूंगा" मैंने कहा,
"छोड़ दो" उसने कहा और उकडू बैठ गया!
"बता किशन, किसने भेजा?" मैंने पूछा,
"किसी ने भी नहीं भेजा!" उसने कहा,
ये झूठ तो बोलती हैं चीज़ें, सो जांचना था!
"सच बता, नहीं तो बहुत बुरा हाल करूँगा" मैंने कहा,
हाथ जोडूं, सच कहा" वो बोला,
"फिर कैसे आया इसपर?" मैंने पूछा,
"ये लाया" वो बोला,
"ये लाया?"
"हाँ" वो बोला,
"कैसे?" मैंने पूछा,
उत्तर देने की बजाय अब रोने लगा वो!
गिड़गिड़ाने लगा!
"बता? कैसे लाया वो?" मैंने पूछा,
तभी वो रोया, और बदन को ऐसे किया जैसे कोई मार रहा हो उसको!
मैंने मंत्र पढ़ा और उसके बाल पकड़ कर उसकी कमर पर दो थाप दीं, किशन बाहर चला गया, उस लड़के का बदन ऐंठता हुआ!
अब फिर से बिस्तर पर गिर पड़ा दिनेश!
उसके साथ ही मेरा महाप्रेत भी लोप! समय-आबंध इतना ही था उसके लिए!
सभी हैरान!
अवाक!
बोलती बंद!
कोई बीस मिनट गुजरे!
उसके बदन में ऐंठन हुई!
और वो उठ बैठा!
अपनी जीभ से अपने होंठ चाटता हुआ!
"कौन?" मैंने पूछा,
कोई जवाब नहीं!
"कौन?" मैंने पूछा,
वो लेट गया!
मुंह फेर लिया!
और पाँव हिलाने लगा!
"ओये! मैंने पूछा कौन?" मैंने कहा,
वो मुड़ा, मेरी तरफ देखा और बोला,"बहुत खेल खेल लिया? अब चल, हट यहाँ से"
"खेल देखेगा?" मैंने पूछा,
अब वो हंसा!
"देखेगा?" मैंने पूछा,
"है तेरे बसकी?" उसने पूछा,
"बताता हूँ" मैंने कहा,
अब मैंने मन्त्र पढ़ा और फिर से उसके बाल पकडे,
वो चुप,
और शांत!
फिर एक दम से मेरा हाथ हटा दिया उसने!
"हाँ? खेल लिया?" उसने पूछा,
