वर्ष २०१३ जिला अम्ब...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०१३ जिला अम्बाला की एक घटना

104 Posts
2 Users
0 Likes
561 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 तो सारा सामान मैंने यहीं सजाया!

 और फिर सहायक लौटा!

 और मैंने अब तैयारियां आरम्भ की!

 आज की रात इस क्रिया से उस ब्रह्म-पिशाच से पीछा छुड़ा ही लेना था!

मेढ़ा भी लाया गया वहाँ,

 बाँध दिया गया,

 उसका पूजन हुआ,

 नहला-धुला तो पहले ही दिया था,

 अब मैंने एक एक करके,

 सारा सामान रखा वहाँ,

 सामग्री,

 भोग,

 दीप,

 त्रिशूल अपनी दायें गाड़ा,

 चिमटा रखा,

 फिर टीका लगाया,

 फिर नमन किया,

 अघोर-पुरुष नमन,

 गुरु-नमन,

 स्थान-नमन,

 और सृष्टि-नमन!

 और फिर,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 भस्म-स्नान!

 दीप प्रज्ज्वलित किये,

 और अब,

 अब अलख उठा दी!

 अलख भोग दिया!

 और अब तैयार हो गया!

 अब वो पानी लिया मैंने,

 वही,

 श्रुति के स्नान का पानी,

 एक अस्थि ली,

 पानी में डुबोई,

 और छिड़क दिया पानी सामने!

 और अब!

 अब उस ब्रह्म-पिशाच को पुकारा!

 पानी में डुबोता अस्थि,

 और सामने भूमि पर फेंकता जाता!

 ऐसा कई बार किया,

 और फिर!

 जैसे हवा का गरम झोना सा आया!

 अलख पलटी विपरीत दिशा में!

 और अट्ठहास!

 भयानक अट्ठहास!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 खौफनाक अट्ठहास!

 वो आ गया था!

 उसका आह्वान हो चुका था!

 और फिर अट्ठहास थमा!

 और मेरे सामने,

 एक चमकता-दमकता लौह-देहधारी प्रकट हो गया!

 काले चमकते वस्त्र पहने!

 आभूषण चमक रहे थे उसके!

 कंध-शिख बड़े बड़े थे उसके!

 भुज-बंध बहुत मजबूत थे!

 डोरियाँ बंधी थीं,

 सुनहरी रंग की,

 भुजाओं में!

 केश नीचे तक लहरा रहे थे!

 मूंछें रौबदार थीं!

 लम्बी-चौड़ी मूंछें!

 वर्ण श्वेत था उसका!

 कोई भी उसको देव-पुरुष मानने की गलती कर सकता था,

 और फिर परिणाम भगतता वो!

 ऐसा कई बार होता है!

 ये महाप्रेत रूप-रंग बदल लिया करते हैं,

 मन्त्र-ईष्ट अथवा साधना-ईष्ट बन जाया करते हैं,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

और फिर परिणाम दुष्कर होते हैं!

 "हे ब्रह्म-पिशाच!" मैंने कहा,

 वो सामने आया,

 "छोड़ दे! छोड़ दे उस लड़की को! दया कर!" मैंने कहा,

 अट्ठहास!

 प्रबल अट्ठहास!

 "वो प्रेयसी है मेरी!" वो बोला,

 दहाड़ जैसा स्वर!

 सिंह के समान!

 ऐसा भीषण स्वर!

 "दया कर हे ब्रह्म-पिशाच!" मैंने कहा,

 अट्ठहास!

 फिर से अट्ठहास!

 फिर एक पल शांत हुआ!

 नीचे हुआ थोड़ा,

 भूमि से करीब दो फीट ऊपर!

 "क्या चाहता है?" उसने पूछा,

 "तू जानता है!" मैंने कहा,

 "ये सम्भव नहीं!" वो दहाड़ा!

 "हठ न कर!" मैंने कहा,

 अट्ठहास!

 फिर से अट्ठहास!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 और बंधा मेढ़ा खूंटा तोड़ने को तैयार!

 फिर रुका वो!

 "तो हट जा मेरे सामने से, क्यों प्राण गंवाता है? तेरी क्या लगती है वो?" उसने पूछा,

 "नहीं लगती कुछ भी, मान लिया, लेकिन वो इंसान है, और मैं भी, इंसान ही इंसान की मदद करता है, और वही मैं कर रहा हूँ!" मैंने कहा,

 वो हंसा!

 इस बार हलकी हंसी!

 "प्राण गँवा देगा तू इस मदद में!" वो बोला,

 "परवाह नहीं!" मैंने कहा,

 अट्ठहास!

 ताली मार कर अट्ठहास!

 तभी उसने हाथ आगे किया!

 भूमि की तरफ!

 भूमि उठी!

 और मित्रगण!

 भूमि में से धन निकल आया!

 कम से कम तीन सौ किलो!

 चमचमाता सोना!

 लाल-नीले रत्न!

 बहुमूल्य पत्थर!

 मैं एक्वाक्षी-विद्या का जाप कर,

 त्रिशूल उखाड़ा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

और भूमि से स्पर्श कर दिया!

 सब लोप!

 माया का धन लोप हुआ!

 अट्ठहास!

 फिर से अट्ठहास!

 "वाह साधक वाह!" वो बोला,

 सीना चौड़ा हो गया मेरा!

 गर्व होने लगा!

 जब एक ब्रह्म-पिशाच आपके सामर्थ्य को ऐसा बोले,

 तो सीना चौड़ा होगा ही!

 "साधक!" वो बोला,

 मैं खड़ा हो गया!

 "वो मेरी प्रेयसी है, उसको छोड़ और कुछ भी मांग ले, अभी दे दूंगा!" वो बोला,

 लालच!

 बरगलाहट!

 युद्ध-नीति का एक चरण!

 "नहीं चाहिए मुझे!" मैंने कहा,

 "नहीं?" वो गरजा!

 "नहीं!" मैंने कहा,

 "नहीं?" उसने फिर से पूछा,

 "नहीं!" मैंने फिर से उत्तर दिया!

 तभी वो लोप हुआ!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 अट्ठहास करता हुआ!

 और उसी क्षण मेरे सामने,

 एक सुंदरी प्रकट हुई!

 समक्ष आयी!

 बहुत सुंदर थी वो!

 "मैं इरावती हूँ!" वो बोली,

 ब्रह्म-पिशाचिनी इरावती!

 सिद्धि-दायक इरावती!

 विघ्नहर्ता इरावती!

 "हठ न करो, और मैं इसी क्षण से तुम्हारी सेविका हूँ!" वो बोली,

 "नहीं!" मैंने कहा,

 वो हंसी!

 और हंसी!

 और फिर लोप!

 फिर से अट्ठहास!

 प्रबल अट्ठहास!

 "साधक, मान जा, चला जा, चला जा!" वो बोला,

 "नहीं" मैंने कहा,

 "मुझे क्रोधित न कर!" वो बोला,

 "मुझे कोई प्रभाव नहीं पड़ता!" मैंने कहा,

 अट्ठहास!

 "अरे मूर्ख! न जाने ऐसी कितनी का मैं ग्रास कर चुका हूँ! इसका भी ग्रास करूँगा!" वो बोला,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 "मैं नहीं करने दूंगा!" मैंने कहा,

 अट्ठहास!

 "ठीक है!" वो बोला,

 अब मैं हुआ चौकस!

 कपाल उठा लिया,

 त्रिशूल गाड़ दिया!

 और तभी उसने अपने हाथों से मुद्रा बनायी!

 और किये मेरे समक्ष!

 नील-रेखा सी खिंची चली आयी!

 मैंने कपाल से रोका उसे,

 मंत्र पढ़ते हुए!

 नील-रेखा ध्वस्त हुई!

 और भूमि में समा गयी!

 फिर से एक श्वेत रेखा,

 फिर से कपाल आगे,

 फिर से पिंड बना उसका,

 और फिर से भूमि में समायी!

 द्वन्द आरम्भ हो चला था!

अब द्वन्द शुरू हो चुका था!

 उसके पास अपनी शक्तियां थीं,

 नैसर्गिक,

 और मेरे पास अर्जित!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 वो पीछे हुआ,

 दहाड़ा!

 और फिर से प्रहार!

 मैंने फिर से कपाल पर अवशोषित कर लिया वो प्रहार!

 उसने कई प्रहार किये!

 लेकिन मैंने सभी अवशोषित किये!

 वो चकित था!

 गुस्से में था!

 मैंने तब वो स्नान का पानी उठाया,

 मंत्र पढ़े,

 और एक दो बूँद भूमि पर गिराया!

 चीख उठा वो!

 गुस्से में!

 अब मैंने कूर्माक्षी विद्या का संधान किया,

 अलख पर बैठा,

 और फिर अलख भोग दिया!

 धुआं सफ़ेद हो उठा!

 चक्र से उठने लगे!

 और मैंने फिर त्रिशूल से भूमि को स्पर्श किया!

 भूमि पर धुंआ बिछता चला गया!

 वो पीछे होता रहा!

 और पीछे!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 अगर छू जाता तो पछाड़ खा जाता!

 इसीलिए,

 वो उड़ चला!

 और फिर मैंने त्रिशूल लहराया,

 खड़ा हुआ,

 आकाश की ओर त्रिशूल किया,

 धुआं चला आकाश की ओर!

 और वो लोप हुआ!

 मेरे पीछे प्रकट हुआ!

 चिंतित सा!

 मैं घूमा!

 और मंत्र पढ़ते हुए,

 त्रिशूल भूमि से छुआ दिया!

 वो फिर से लोप हुआ!

 और फिर इतने में विद्या शांत हुई!

 लौट आयी!

 और मैं बैठ गया,

 अलख के सामने!

 मंत्रोच्चार में डूबा!

 वो इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाला था!

 वो माहिर था!

 प्रबल मायावी था!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 हठी था!

 और अब,

 क्रुद्ध भी था!

 फिर से अट्ठहास!

 और फिर से प्रकट हुआ!

 सिंह जैसा स्वर उसका!

 दहाड़े!

 मेरे चारों ओर!

 लेकिन नज़दीक न आये!

 नज़दीक आता,

 तो मैं महा-शंड के संधान से बाँध लेता उसको!

 वो मुझे गिराना चाहता था,

 और मैं,

 मात्र उसको जाने के लिए कह रहा था,

 हमेशा के लिए!

 लेकिन वो नहीं मान रहा था!

 डटा हुआ था!

 और मैं भी!

 "साधक?" वो बोला,

 मैं खड़ा हुआ!

 त्रिशूल उखाड़ कर!

 "समय शेष है, जा चला जा!" वो बोला,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 "नहीं" मैंने कहा,

 "मारा जाएगा" वो बोला,

 "परवाह नहीं" मैंने कहा,

 "अब तक क्रीड़ा कर रहा था मैं!" वो गरजा!

 "मैंने भी विशेष कुछ नहीं किया!" मैंने कहा,

 अट्ठहास!

 रौद्र अट्ठहास!

 मेढ़ा रेंक पड़ा!

 खूंटे से ही भिड़ने लगा!

 रेंके!

 भागे!

 चक्कर लगाए!

 मैं बैठा!

 और अब चतुःषण्डा का जाप किया!

 इस विद्या से वो टकराता तो बल आधा ही रह जाता उसका!

 मैंने महानाद किया!

 अलख भोग दिया!

 और खड़ा हो गया!

 अजीमण-मुद्रा बनाते हुए,

 मैंने भूमि पर थाप दी!

 वो पल में ही लोप हुआ!

 शान्ति!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 परम शान्ति!

 विद्या का जैसे चक्र फ़ैल गया!

 मुझे लपेटे हुए!

 तभी जैसे आकाश फटा!

 और लोथड़ों की बारिश सी हुई!

 विद्या प्रभाव से टकराते हुए वे राख हुए!

 और उस राख से मैं ढक सा गया!

 काला हो गया पूरा!

 हाथ से साफ किया मैंने,

 केशों में फंस गयी राख!

 बस नेत्र और दांत ही सफ़ेद दिखायी दें!

 खैर!

 मैंने फिर से महानाद किया!

 और थाप दी!

 भूमि जैसे काँप उठी!

 मैं चिल्लाया!

 और अब मदिरापान किया!

 अब आया औघड़ रंग में!

 भरा कपाल करोरा!

 और खींच मारा!

 सीधा कंठ के नीचे!

 अब इसको पाठ पढ़ाना था मुझे!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 बहुत मान-मुलव्वत कर ली!

 मैं बैठ गया अलख पर!

 और कपाली का आह्वान करने लगा!

 उच्च महा-पिशाचिनी कपाली!

 तभी मेरे सामने कुछ गिरा!

 मैंने देखा!

 ये एक मस्तक था!

 कटा मस्तक!

 मैंने उठाया उसको!

 केश से पकड़ कर उठाया,

 ये अनुज का था!

 चेतावनी!

 हाँ!

 चेतावनी!

 वो मार डालेगा अनुज को!

 मामला अब गम्भीर था!

मैंने मस्तक उठाया, और फेंक दिया सामने,

 लुढकता हुआ वो सामने गिर गया,

 गर्दन मेरी तरफ हो गयी!

 मैंने मिट्टी की एक चुटकी ली,

 अभिमंत्रित की,

 और उछाल दी सामने!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

मस्तक गायब!

 माया का नाश हुआ!

 फिर से!

 एक ज़बरदस्त अट्ठहास!

 खौफनाक अट्ठहास!

 और फिर एक और मस्तक गिरा!

 ये मेरे प्रियजन का था!

 उसका अर्थ था,

 कि वो उसे भी मार देगा!

 मैंने फिर से एक और चुटकी ली,

 अभिमंत्रित की,

 और उछाल दी सामने,

 मस्तक गायब!

 अब मैं खड़ा हुआ!

 उसका अट्ठहास ज़ारी था!

 वो ठहाके मारे जा रहा था!

 बस!

 अब बहुत हुआ!

 मैं आगे बढ़ा!

 रुका!

 और चिल्लाया!


   
ReplyQuote
Page 6 / 7
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top