वर्ष २०१३ जिला अम्ब...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०१३ जिला अम्बाला की एक घटना

104 Posts
2 Users
0 Likes
561 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 स्याह धुंए का सा रूप लिया था उसने,

 लोप होते हुए इस बार!

स्याह धुंआ!

 और फिर लोप!

 वो लोप!

 और धड़ाम गिरी नीचे श्रुति!

 मैंने उठाया उसको,

 उठाकर लिटाया बिस्तर पर,

 और दरवाज़ा खोल दिया,

 अनुज को आवाज़ दी,

 अनुज आया,

 श्रुति को बेहोश देख,

 घबरा गया!

 मैंने समझा दिया उसको!

 "आटा, सूखा आटा ले आओ अभी" मैंने कहा,

 "कितना?" उसने पूछा,

 "एक कटोरा" मैंने कहा,

 वो भागा बाहर,

 और ले आया आटा,

 मैए आटा लिया,

 और अभिमंत्रित किया,

 और फिर नीचे लिटाएं एको कहा श्रुति को, मैंने अनुज से,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 उसने उठाया उसको,

 और लिटा दिया नीचे,

 अब मैंने उसके शरीर के चारों और आटे से,

 मंत्र पढ़ते हुए एक रेखा खींच दी,

 और उसके शरीर पर तीन जगह आटा छिड़क दिया!

 और कटोरा वापिस दे दिया उसको,

 कुछ आटा शेष था उसमे,

 "इसको पानी में बहा दो अभी, गुसलखाने में" मैंने कहा,

 वो चला गया,

 और फिर आ गया,

 मैंने उसको फिर से बाहर भेज दिया,

 और दरवाज़ा बंद कर दिया!

 मैं अब बैठ गया,

 देखता रहा उसको,

 ज़रा सी भी न हिली वो!

 कोई मक्खी भी बैठती,

 तो भी नहीं हिलती,

 मैं ही भगाता मक्खियों को!

 आधा घंटा बीता!

 कुछ नहीं हुआ!

 फिर एक घंटा!

 और फिर भी कुछ नहीं!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 लगता था,

 चला गया था वो!

 अब तक तो लौट आना चाहिए था उसको!

 लेकिन नहीं लौटा था!

 ये अच्छी बात थी!

 ऐसे ही मान जाए,

 तो इस से बढ़िया और क्या!

 फिर दो घंटे बीत गए!

 और मैंने फिर दरवाज़ा खोल दिया,

 अनुज को बुलाया,

 वो आया,

 "पानी लाओ थोड़ा" मैंने कहा,

 वो गया,

 और ले आया पानी!

 मुझे दिया,

 मैंने पानी को अभिमंत्रित किया,

 और छिड़क दिया उस पर!

 उसके शरीर में हरकत हुई!

 और वो एक झट के साथ उठ बैठी!

 और उठते ही रोने लगी!

 फफक फफक कर!

 और मेरा दिल बैठा अब!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

ये क्या हुआ?

 मैं तो निश्चिन्त था कि वो गया!

 नहीं!

 वो नहीं गया था!

 वो तो इसको ले गया था अपने साथ!

 समझे आप मित्रगण?

 श्रुति के सूक्ष्म-शरीर को!

 अनुज ने चुप कराया उसको,

 लेकिन चुप न हो!

 जब वो ब्रह्म-पिशाच समस्त सुख दे रहा हो उसे,

 और इसी बीच उसको बुला लिया जाए,

 तो वो रोयेगी क्यों नहीं?

 ये था इसका अर्थ!

 मामला बहुत गम्भीर था अब!

 तभी!

 तभी जैसे वायु वेग चला!

 जैसे भूकम्प आया हो!

 पंखा हिलने लगा,

 रखा हुआ पानी हिलने लगा,

 और उस अंभिमन्त्रित आटे में आग लगने लगी!

 "भागो अनुज, बाहर भागो!" मैंने चिल्लाया!

 अनुज भाग छूटा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 और अगले ही पल सब शांत!

 श्रुति दांत भींचे मुझे घूरे!

 उसने अपने दोनों हाथों के पंजे फैला लिए!

 जैसे मुझ पर वार करने वाली हो!

 और अगले ही पल टकरा गयी मुझसे!

 टकराते ही,

 पछाड़ खायी उसने!

 नीचे गिरी!

 लेकिन फिर से खड़ी हो गयी!

 और अगले ही पल!

 वो ब्रह्म-पिशाच!

 फिर से प्रकट हो गया!

 "तू?" मैंने कहा,

 "हाँ मैं!" वो बोला,

 "चला जा!" मैंने कहा,

 "नहीं!" वो बोला,

 "इसको छोड़ दे" मैंने कहा,

 ठहाका!

 हंसी!

 वो नीचे उतरा!

 और श्रुति को उठा लिया,

 अपनी गोद में!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

उसके उठाते ही,

 श्रुति को,

 योनि-स्राव हुआ,

 वो टपकता हुआ फर्श पर आ गिरा!

 जहां जहां उस ब्रह्म-पिशाच पर गिरा,

 वहाँ वहाँ रक्त के छींटे बनते चले गए!

 ये शक्ति थी उस ब्रह्म-पिशाच की!

 मैंने तब आव देखा न ताव!

 ज्वालिनी-विद्या का संधान किया,

 और 'बाण-प्रहार' किया उस पर!

 धड़ाम!

 धड़ाम से नीचे गिरी श्रुति!

 गिरते ही खड़ी हुई!

 और वो ब्रह्म-पिशाच छिटका!

 दूर हो गया!

 मुझे गुस्से से देखते हुए!

 "चला जा!" मैंने कहा,

 "नहीं" वो चिल्ला के बोला,

 "जहां से आया, वहीँ को जा!" मैंने कहा,

 "नहीं जाऊँगा!" वो बोला,

 हंसी!

 ठहाका!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

अट्ठहास!

 मैं आगे बढ़ा!

 श्रुति की तरफ!

 और पकड़ लिया श्रुति को उसके गले से!

 ये देख ब्रह्म-पिशाच भड़क उठा!

 मेरे पास आ नहीं सकता था!

 "इसको छोड़ दे!" वो चिल्लाया!

 "नहीं!" मैंने कहा,

 "भस्म कर दूंगा तुझे!" वो बोला,

 "भाग यहाँ से!" मैंने कहा,

 तभी उसने 'बाण' प्रहार किया मुझ पर!

 परन्तु,

 निष्फल!

 मेरी विद्या ने नष्ट किया उसको!

 अब मैंने एक चांटा जड़ा श्रुति को!

 वो गिरी नीचे!

 और सम्भाला उस ब्रह्म-पिशाच ने उसको!

 उठा लिया!

 और फिर से,

 योनि-स्राव शुरू!

 वो मृत्यु की कगार पर थी!

 ऐसा ही रहता तो,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 जान पर बन जाती उसकी!

 मैंने फिर से,

 'बाण' प्रहार किया!

 वो छिटका!

 और श्रुति खड़ी हो गयी!

 मुझे देख,

 रोने लगी!

 बहुत तेज!

 उसकी चीख अब सबको सुनायी दी!

 बाहर सभी घबराये!

 सभी!

 मैं डटा रहा!

 नहीं छोड़ा मैदान!

फिर वो चुप हुई!

 एक दम चुप!

 जैसे कुछ हुआ ही न हो!

 डरी-सहमी सी!

 वो मुझे देखे,

 जैसे मैं कोई अनजान हूँ!

 उसका अहित करने आया हूँ!

 "श्रुति?" मैंने कहा,

 वो चुप!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"श्रुति?" मैंने फिर से कहा,

 फिर चुप!

 अब मैंने दरवाज़ा खोल दिया,

 अनुज बाहर ही खड़ा था,

 भाग कर अंदर आ गया,

 श्रुति को देखा,

 तो लपक लिया श्रुति का हाथ उसने!

 अब उसने स्राव देखा,

 श्रुति के गीले कपड़े देखे,

 फिर मुझे देखा,

 मैं जान गया!

 समझ गया!

 कि उसके मन में क्या आया होगा!

 मित्रगण!

 ये उसकी गलती भी नहीं थी,

 ऐसा होता है,

 घटिया स्तर के तांत्रिक, ओझा, गुनिया ऐसा ही किया करते हैं!

 उसने जो सोचा,

 वो उसकी समझ थी!

 अब मैंने शर्मा जी को बुलाया,

 वे आये,

 और अनुज को बिठाया मैंने,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 और फिर शर्मा जी से सारी बात कह सुनायी!

 उस स्राव के बारे में भी!

 शर्मा जी हैरत में पड़े!

 और अब अनुज भी!

 उसकी वो सोच,

 बदल गयी!

 "अनुज?" मैंने कहा,

 "जी?" वो बोला,

 "सुनो, जो मैं कहता हूँ सुनो ध्यान से" मैंने कहा,

 "जी" वो बोला,

 "इसको लाना होगा, मेरे स्थान" मैंने कहा,

 "जी" वो बोला,

 लेकिन!

 इतना आसान नहीं था श्रुति को लाना मेरे स्थान तक!

 वो ब्रह्म-पिशाच जान भी ले सकता था किसी की भी!

 अनुज के तो टुकड़े ही कर देता वो!

 किसी भी दुर्घटना में भिड़ा कर!

 "अनुज, कल सुबह ही चलो" मैंने कहा,

 "जी" वो बोला,

 "ले जाओ इसको" मैंने कहा,

 और अनुज ले गया उसको,

 उसको सहारा देकर,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

बड़ा ही खतरनाक है" शर्मा जी बोले,

 "हाँ, है" मैंने कहा,

 "करो जी इसका इलाज" वे बोले,

 "अभी तो खेल शुरू ही हुआ है शर्मा जी" मैंने कहा,

 "मतलब?" वे बोले,

 "अभी तो उसने मुझे जांचा ही है" मैंने बताया,

 "ओह!" वे बोले,

 "इसीलिए, इस लड़की को ले जाना होगा मेरे स्थान पर" मैंने कहा,

 अब तक,

 अनुज के पिता जी भी आ चुके थे,

 लंगड़ाते लंगड़ाते,

 अनुज की माता जी भी,

 अब शर्मा जी ने उनको सबकुछ बता दिया,

 वे घबरा गए,

 बुरी तरह से,

 लाजमी था,

 घबराना उनका,

 बैठे बिठाये समस्या आ गयी थी!

 "कौसानी से लगा जी वो?" उन्होंने पूछा,

 "हाँ" मैंने कहा,

 "लग कैसे गया?" वे बोले,

 "कई कारण होते हैं" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"जैसे?" उन्होंने पूछा,

 "जैसे मासिक का कोई कपड़ा इत्यादि उस वृक्ष के समीप फेंकना, उस वृक्ष के नीचे मल-मूत्र त्याग करना, थूक देना, स्नान करना, श्रृंगार करना आदि आदि" मैंने कहा,

 "ओह" वे बोले,

 "जी हाँ" मैंने कहा,

 "ठीक तो हो जायेगी न?" वे बोले,

 "प्रयास पूरा है" मैंने कहा,

 उन्होंने धन्यवाद किया!

 बहुत!

 अब मैं उठा,

 और स्नान करने गया,

 स्नान किया,

 और फिर कुछ देर आराम!

 और अब आगे की रणनीति बनायी!

 मित्रगण!

 रात्रिभर कुछ नहीं हुआ,

 मैं चाक-चौबंद था!

 कई बार नींद खुली,

 कई बार जांच की,

 सब ठीक था,

 और फिर हुई सुबह!

 नहाये धोये,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 नाश्ता किया,

 और तभी अनुज आया दौड़ा दौड़ा,

 "क्या हुआ?" मैंने पूछा,

 "उसको, उसको रक्त-स्राव हो रहा है, योनि से" वो बोला,

 मैं दौड़ पड़ा वहाँ,

 वो अपने दोनों हाथ बांधे और टांगों के मध्य दिए, तड़प सी रही थी,

 मैंने फौरन ही पानी मंगवाया,

 अभिमंत्रित किया,

 और छिड़क दिया उसके ऊपर,

 कुछ ही पलों में वो ठीक हो गयी!

 रक्त-स्राव बंद हो गया,

 बिस्तर रक्त से लाल हो चुका था,

 उसको उठाया गया,

 और बिस्तर बदला गया,

 "नहला दो इसको" मैंने कहा,

 "जी" अनुज बोला,

 और हम बाहर आ गए,

 सभी परशान थे,

 अब हमे निकलना था वहाँ से,

 जल्दी से जल्दी!

 और फिर,

 करीब एक घंटे के बाद,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

हम लोग निकल लिए वहाँ से,

 अपने स्थान के लिए,

 रास्ते में कोई व्यवधान न हो,

 इसके लिए,

 सुरक्षा-यन्त्र से सभी पोषित कर दिए थे मैंने!

 रास्ते भर वो गुमसुम रही!

 न कुछ खाया,

 न पिया,

 उचाट सी,

 और फिर,

 करीब चार बजे हम पहुँच गए अपने स्थान!

 अब मैंने उनको एक कक्ष में भेज दिया,

 और मैं और शर्मा जी,

 और अनुज के पिता जी एक कक्ष में जाकर बैठ गए,

 आज रात क्रिया करनी थी मैंने!

 और साथ में बिठाना था इस श्रुति को!

 मैं क्रिया-स्थल में गया,

 वहाँ साफ़-सफाई की,

 सामग्री आदि रखवायीं,

 और फिर आसन आदि बिछवा दिए!

 और फिर आया बाहर,

 श्रुति को देखा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

वो ठीक थी,

 कोई समस्या नहीं थी उसको,

 वो बैठ सकती थी रात में,

 ये सही था,

 आज अनुज को भी बिठाना था मैंने,

 बस दूर से देखते रहने को कहा था,

 ताकि वो जान ले,

 कि श्रुति के पीछे,

 आखिर पड़ा कौन है!

 मित्रगण!

 हुई रात!

 मैंने की तैयारियां!

 और फिर नमन किया!

 और फिर,

 अलख उठा दी!

 अलख भड़की!

 मैंने भोग दिया!

 और फिर,

 बुलवा भेजा मैंने श्रुति को!

 आया अनुज उसको लेकर!

 लेकिन,

 वो श्रुति अंदर ही न आये!


   
ReplyQuote
Page 3 / 7
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top