रात को बारिश हुई थी!
खूब ज़ोरदार!
बिजली कड़की!
आंधी चली!
और हम आराम से दुबक कर एक कमरे में,
अपने अपने कंबल सम्भाल,
लेटे हुए थे!
ये स्थान वैसा नहीं था,
मतलब पक्का नहीं बना था,
तीन डाली गयी थी छत पर,
कुल मिलकर कामचलाऊ था वो बसेरा!
कहीं कहीं टूटी भी हुई थी,
सो,
तो रात को फुआर भी काफी आयीं!
अब नींद किसे आये!
कोई बैठे सोया,
कोई दुल्लर होके सोया,
और कोई एक दूसरे का सहारा लेके सोया!
मैं और शर्मा जी उस दीवार से लग कर सोये थे!
ये जगह थी असम की एक दूर दराज जगह!
किसी क्रिया के संबंध में हम यहाँ आये थे,
क्रिया तो पूर्ण हो चुकी थी,
बस वापसी करनी थी,
लेकिन दो दिन से बारिश ने लगाम कस रखी थी!
शहर जाने के सारे रास्ते बंद थे!
हम फंस के रह गए थे वहाँ!
कैसे निकलें?
क्या करें?
बस इसी जुगाड़-तुगाड़ में लगे थे!
किसी तरह सुबह हुई!
और हम बाहर निकले अपने दड़बे से!
बाहर देखा,
पानी भर गया था!
हालांकि पानी तेजी से निकल रहा था,
लेकिन पानी बहुत था,
मिट्टी पर फिसलन बहुत थी!
पाँव, ज़रा सा भी गलत पड़े तो समझो हुए धराशायी!
सम्भल सम्भल के हम निकले बाहर!
बहुत बुरा हाल था!
एल ऊंची जगह पर आये,
बारिश तो अब नहीं थी,
लेकिन दिक्कत बहुत थी!
किसी तरह से हम पहुंचे वहाँ!
अपना सामान उठा रखा था,
कंबल आदि सब घुसेड़ा हुआ था हमने बैग में!
मैं अपने एक जानकार, दादू के पास गया,
नमस्कार हुई!
और मैंने उन्हें हमे यहाँ से निकालने के लिए कहा!
उन्होंने भरोसा दिलाया,
और थोड़ी ही देर में,
एक ट्रेक्टर दिखायी दिया,
दादू ने हमको बिठा दिया उसमे,
हम बैठे,
और निकल पड़े!
सुबह के निकले, रात को पहुंचे शहर!
किसी तरह पहुँच ही गए थे!
शुक्र था!
गनीमत थी कि निकल आये थे!
अब बारिश फिर से शुरू हो गयी थी!
गाड़ी देर से चल रही थीं!
अब क्या करें?
भूख लगी हुई थी,
सो अलग!
यात्री-विश्राम-गृह में पहुंचे,
सामान रखा,
और फिर चाय पी,
साथ में वहाँ जो मिला, खा लिया!
गाड़ी रात में दो बजे के आसपास थी,
प्रतीक्षा करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था!
करनी पड़ी!
चाय, और चाय!
बस!
चाय से भी कोफ़्त सी होने लगी थी!
बस जी,
किसी तरह से हमने गाड़ी पकड़ी!
और अपनी किस्म्त का लोहा माना!
सीट का प्रबंध किया,
और चले गये लेटने!
बारिश अब भी हो रही थी!
मैंने तो अपना कंबल खोला,
चादर बिछायी,
और हो गया लमलेट!
ऐसे ही शर्मा जी,
गाड़ी कब चली,
कब नहीं, पता नहीं!
बहुत बुरा सफर गुजरा वो!
और फिर हम पहुँच गए दिल्ली!
दो दिन तो कमर सीधी करने में लग गए!
लेटो,
तो लगता था,
अभी भी गाड़ी में ही सफर कर रहे हैं!
ऐसे झटके लगते थे!
उस शाम शर्मा जी आये,
और हमारी महफ़िल सजी!
उस दिन बहुत आनंद आया!
अंग्रेजी पी थी!
वहाँ असम में तो देसी पी पी कर अगले दिन रात तक स्वाद,
याद आता रहता था!
डकारें ऐसी,
कि अब बाहर,
और अब बाहर आंतें!
बहुत बुरी थी वहाँ की देसी शराब!
हालत पतली हो गयी थी!
पेट में जब जाती,
तो सीने में शोर मचाते हुए,
आंदोलन सा करते हुए जाती थी!
और स्वाद ऐसा बकबका कि,
उस से बेहतर तो नीम का काढ़ा पी लो!
इसीलिए,
उस दिन,
इस अंग्रेजी शराब में खूब मजा आया था!
आत्मा प्रसन्न हो गयी थी!
देसी शराब से छिटके,
अपने याड़ी लोग भी,
पास आने लगे थे!
फ़ोन बजा शर्मा जी का,
ये उनके रिश्तेदार का फ़ोन था,
वे अम्बाला के पास रहते हैं,
सरकारी नौकरी है उनकी वहाँ,
उन्होंने बताया,
कि कुछ समस्या है उनके घर में,
पिछले कोई दो महीन ऐसे,
सब कुछ करके देख लिया,
लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ,
अब शर्मा जी ने बात करायी मुझसे,
मैंने बात की,
पहली ही नज़र में,
ये मुझे एक लपेट का मामला लगा,
वे आने को भी तैयार थे,
तो मैंने उनको इतवार को आने को कह दिया,
उस दिन शुक्रवार था,
समस्या उनके बड़े बेटे की नव-विवाहित पत्नी के साथ थी,
शादी को अभी छह महीने ही बीते थे!
और फिर इतवार आया,
दोपहर से पहले वे आ गए,
शर्मा जी के साथ,
उनका बेटा भी साथ था,
मैंने पानी पिलवाया उनको,
उन्होंने पिया,
और बैठे,
फिर चाय आ गयी,
चाय पी,
इन सज्ज्न का नाम रोशन है,
और उनके बेटे का नाम अनुज,
"बताइये, क्या समस्या है?" मैंने पूछा,
अब बाप-बेटा एक दूसरे को देखें,
फिर रोशन ही बोले,
"गुरु जी, अभी छह महीने हुए हैं शादी को इसकी, इसकी पत्नी पढ़ी-लिखी और सुशील है, लेकिन पिछले दो महीने से बड़ी अजीब सी बातें करती है" वे बोले,
"कैसी बातें?" मैंने पूछा,
"कहती है कि, मुझे वो बुला रहा है, सामने आता है, धमकाता है, ऐसी ऐसी बातें" वे बोले,
"अच्छा" मैंने कहा,
ये कोई लपेट का ही मामला लगता था,
काहिर, आगे बातें हुईं फिर!
अजीब सी बात थी बहुत!
"क्या कहती है? कोई दीखता है?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"क्या? मैं समझा नहीं?" मैंने कहा,
"कहती है कि कोई आता है उसके पास, और कहता है है कि जैसा मैं कहता हूँ वैसा कर, नहीं तो सब तबाह कर दूंगा, वैसे जब से ऐसा हुआ है, तब से वाक़ई में तबाही सी ही है, बेटी का एक्सीडेंट हो गया, घुटना टूट गया था, मेरी पत्नी की तबियत खराब है बहुत, रोज ही चिकित्सक के पास जाना पड़ता है, मेरी खुद की नौकरी में अड़चनें हैं, ये मात्र दो महीने में ही हुआ है" वे बोले,
"अच्छा?" मैंने कहा,
"हाँ जी" वे बोले,
"कैसा है ये, जो आता है?" मैंने पूछा,
"कहती है कि कोई राजा है, किसी पुराने जमाने का" वे बोले,
कोई प्रेत होगा,
यही लगा,
अपने आपको राजा के समान दिखा रहा होगा,
लगा होगा कहीं पीछे,
"एक बात और" अब अनुज ने कहा,
बाप बेटे ने एक दूसरे को देखा,
अनुज के पिता जी उठ गए,
मैं समझ नहीं सका,
वे एक तरफ चले गए,
मैं समझा,
कोई विशेष बात होगी,
"गुरु जी, दो महीने से वो कहती है कि वो जो आता है उसके पास, वो उसके साथ संसर्ग करने की ज़िद करता है, और ये भी कहा है कि अपने पति को दूर रखना, नहीं तो जान से मार दूंगा उसको" वो बोला,
एक प्रेत की इतनी ज़ुर्रत?
"आपके अनुसार, आपका कोई संपर्क नहीं?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वो बोला,
कमाल की बात थी!
प्रेत ऐसा क्यों कहेगा?
"क्या कोई फ़ोटो है आपके पास आपकी पत्नी की?" मैंने पूछा,
"नहीं जी" वो बोला,
"अच्छा" मैंने कहा,
मुझे ये लपेट ही लगी,
मैं और भी बातें सुनीं उनकी,
फिर अनुज के पिता जी आ बैठे,
"चिकित्सक क्या कहते हैं?" मैंने पूछा,
"कहते हैं कि कोई मानसिक सदमा है, वक़्त लगेगा ठीक होने में" वे बोले,
"कोई ऊपरी इलाज करवाया आपने?" मैंने पूछा,
"हाँ जी, लेकिन कुछ नहीं हुआ" वे बोले,
"क्या बताया?" मैंने पूछा,
"यही कि कोई हावी है उस पर, सामने नहीं आता" वे बोले,
सामने नहीं आता?
मतलब डरता है?
मैंने सोचा,
विचार किया,
और फिर एक धागा बना दिया,
"ये लो, ये बाँध देना उसके हाथ में, फिर बताना मुझे" मैंने कहा,
उन्होंने धागा ले लिया,
और भी बातें बताईं,
एक बात ख़ास थी,
वो दिन में चार बार से अधिक नहा रही थी,
श्रृंगार में व्यस्त रहती थी,
अपने आपे में नहीं थी,
ये किसी जिन्न का मामला भी नहीं था,
क्योंकि वो होता,
तो अब तक वो उन आये हुए ओझा गुनिया आदि को,
सब बता देता,
उनकी खबर भी ले लेता!
मामला अजीब तो था,
लेकिन अधिक,
ये किसी लपेट का ही लगता था!
फिर वे चले गए,
विदा ली उन्होंने,
शर्मा जी वहीँ थे,
"कोई प्रेत लगता है" वे बोले,
"हाँ, यही है" मैंने कहा,
"चलो अब पता चल जाएगा" वे बोले,
"हाँ" मैंने कहा,
फिर हमने चाय पी,
और शर्मा जी चले गए,
तीन दिन बीते,
शर्मा जी आये,
बैठे,
सामान लाये थे,
हमने शुरू किया खाना-पीना,
"आज दुर्घटना हो गयी अनुज के पिता जी के साथ" वे बोले,
"कैसे?" मैंने चौंक के पूछा,
"एक कार टक्कर मार गयी उनके स्कूटर को" वे बोले,
"कब?" मैंने पूछा,
"आज दोपहर में" वे बोले.
"ओह" मैंने कहा,
"टांग टूट गयी है उनकी, सर भी फटा है" वे बोले,
"बुरा हुआ ये तो" मैंने कहा,
"हाँ जी" वे बोले,
"वो धागा बाँध दिया है?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"तब से कैसी है वो?" मैंने पूछा,
"अनुज ने बताया कि तब से उसने कुछ नहीं कहा है, लेकिन स्थिति वैसी ही है" वे बोले,
अब ये चिंता का विषय था,
धागा बंधने के बाद तो सब सही हो जाना था,
कोई बड़ी ही ताक़त है,
लेकिन है क्या?
ये पता करना था,
और इसके लिए मुझे अपने किसी खबीस को भेजना था वहाँ,
हमने खाया-पिया,
और फिर मैं रात के समय,
गया क्रिया-स्थल में,
इबु का शाही-रुक्का पढ़ा,
हाज़िर हुआ,
उद्देश्य जाना,
और भेज दिया उसको,
वो उड़ चला,
इस से पहले मैं बैठता,
वो वापिस आ गया,
और फिर वापिस हुआ,
अब सर घूमा मेरा!
ऐसी कौन सी शक्ति है वहाँ?
कौन सी?
जो इबु को भी भेज दे?
इबु आ जाए,
बैरंग!
खाली हाथ!
जिसे मैं प्रेत समझ रहा था,
वो न तो प्रेत था,
न ही जिन्न!
तो फिर क्या?
मैं वापिस आया,
और शर्मा जी को बता दिया सब,
मामला गम्भीर हो गया,
अब केवल एक ही रास्ता था,
कि वहाँ जाया जाए,
और खुद,
देखा जाए,
यहाँ से नहीं पता चल रहा था,
न चल सकता था,
"शर्मा जी?" मैंने कहा,
"जी?" वे बोले,
"कल चलिए वहाँ" मैंने कहा,
"जी" वे बोले,
और हमारा कार्यक्रम हो गया निश्चित,
कल हम निकलने वाले थे वहाँ,
आया वो दिन,
अगला दिन,
और हम उनको फ़ोन करके,
निकल गए,
रास्ता साफ़ मिला,
और हम पहुँच गए!
अनुज मिला वहीँ,
और मैं जैसे ही घुसा घर में,
मुझे दुर्गन्ध आयी!
भयानक दुर्गन्ध!
मैं बाहर आ गया,
घर देखा,
और एक मंत्र पढ़ा,
स्व्यं को पोषित किया,
परन्तु,
ये निश्चित हो गया,
कि सामने कोई प्रबल ही शक्ति है!
उसने इसका भान करवा दिया था मुझे!
शर्मा जी समझ गए,
अनुज मिला था हमे वहाँ,
अब अंदर गए हम,
और बैठे,
पानी पिया,
और फिर अनुज के पिता से मुलाक़ात की,
चेहरे पर सूजन थी उनके,
पूरे घर में मुर्दानगी सी छायी थी!
किसी का बसेरा था वहाँ!
किसका?
बस यही जानना था,
चाय आई,
चाय पी हमने!
और फिर मैंने पूरे घर का मुआयना किया,
घर सामान्य ही था,
कुछ गड़बड़ नहीं थी वहाँ,
कोई पारलौकिक गंध,
या चिन्ह,
नहीं था वहाँ,
कोई माहिर ही था वहाँ!
बड़ा सध के खेल खेल रहा था!
अब इसी का पता लगाना था!
लेकिन था कौन ये खिलाड़ी?
जो पहुँच से बाहर था!