अब मैंने सारी बात बतायी उन्हें!
उन्हें बहुत गुस्सा आया!
मुझे भी आया!
"अब कल देखते हैं, चलते हैं" मैंने कहा,
अब उनको चैन कहाँ!
मैंने समझाया बुझाया! और फिर हम दोनों खर्राटे मार सो गए!
कब नींद आयी पता ही नहीं चला!
अब सुबह हुई!
आज कुंडली बांचनी थी!
नूरा बंगाली की कुंडली!
दशा तो उसी दिन खराब हो गयी थी जिस दिन मैं पहली बार अस्पताल में गया था! अन्तर्दशा उस दिन जिस दिन मुझे पता चला, और आज प्रत्यंतर-दशा भी खराब होने वाली थी!
गोचर बांच लिया था! नव-ग्रह वेध लग चुका था!
मैं स्नानादि से फारिग हुआ और उसके बाद चाय आदि से भी!
दस बजे शर्मा जी आ गए! और हम निकल गए नवीन साहब के पास, इत्तला उनको कर ही दी थी!
करीब एक घंटे में हम पहुँच गए नवीन साहब के घर! अब अमित ठीक था, उसका शरीर अब साथ देने लगा था! मुझे ख़ुशी हुई! चाय मंगवाली गयी सो हमने चाय पी!
"चलिए नवीन साहब!" मैंने कहा,
"जी चलिए गुरु जी" वे बोले,
"हम जहां जा रहे हैं वहीँ से अंत होता है इस सारी समस्या का, आप अपनी पत्नी को भी साथ में ले लें, उनकी भी आवश्यकता पड़ेगी उनको भी सच्चाई से अवगत कराना है" मैंने कहा,
"जी" वे बोले और अपनी पत्नी को लिवा लाये, और हम उनको ले अब चल पड़े नूरा बंगाली की तरफ!
अब गोचर-दशा खराब थी नूरा बंगाली की!
हम यातायात के बीच से होते हुए, रुकते हुए, चलते हुए पहुँच गए एक जगह! ये झुग्गी का सा इलाका था, यहीं रहता था वो बाबा नूरा! नूरा बंगाली!
वहाँ एक खोमचे पर पूछताछ की तो पता चल गया नूरा बंगाली का! हम चल पड़े, एक जगह रुके, वहाँ बीच में नाला सा था, वहीँ रुके, अब गाड़ी नहीं जा सकती थी अंदर, सो हमने गाड़ी वहीँ रोक दी, नवीन साहब को साथ लिया और उनकी पत्नी को को वहीँ बिठा दिया!
अब हम चले नूरा बंगाली के अड्डे पर!
बेहद गन्दा सा इलाका था, हर तरफ गंदगी के ढेर लगे थे! लेकिन इस भागती दौड़ती दुनिया में ज़िंदगी यहाँ भी रहने को मजबूर है! पेट की आग कुछ नहीं देखती!
हमने एक बुज़ुर्ग से पूछा, उनसे बता दिया, और हम फिर से आगे चले,
और फिर एक जगह हम पहुँच गए!
यही थी जगह उस नूरा बंगाली की!
ये पक्की ईंटों से बनी एक झुग्गी सी थी! और झुग्गियों से बढ़िया बनी थी!
हम अंदर गए, अंदर दो लड़के मिले, उनसे पूछा, तो उन्होंने सामने बनी एक झुग्गी की ओर इशारा किया, वहाँ एक सीढ़ी थी, लकड़ी की, उसी सीढ़ी को चढ़कर ऊपर जाना था और वहीँ था ये नूरा बंगाली!
मंजिल मिल गयी थी!
हम ऊपर चढ़े, ऊपर एक आदमी सोये हुए था, उम्र होगी कोई चालीस-पैतालीस बरस!
हमरी खटपट से जाग गया वो, सोचा कोई मिलने वाला आया है, सो बैठ गया, मूंछों में हाथ मारते हुए!
"नूरा बंगाली आप ही हैं?" शर्मा जी ने पूछा,
"हाँ जी" वो बोला,
"कुछ काम है आपसे" शर्मा जी ने कहा,
"हाँ जी बोलो" वो बोला,
"बाबा जी एक काम है" शर्मा जी ने कहा,
"एक क्या, आप काम बोलो, वैसे कहाँ से आये हैं?" उसने पूछा,
"अजी आये तो यहीं से हैं पास में से, काम बहुत ज़रूरी है" वे बोले,
"बताओ क्या काम है?" उसने एक टांग पर दूसरी टांग रखते हुए पूछा,
"जी एक आदमी बहुत तंग कर रहा है हमको, करीब तीन महीने से" शर्मा जी ने बताया,
"पूरी बात बताओ" वो बोला,
अब शर्मा जी ने मिर्च-मसाला लगा कर एक कहानी पेश कर दी!
नूरा ने कान खोलकर और आँखें फाड़कर कहानी सुनी!
"अब बताइये, काम हो जाएगा न?" शर्मा जी ने कहा,
"हाँ, हो जाएगा, एक फ़ोटो और एक कपडा चाहिए होगा उस आदमी का" वो बोला,
"मिल जाएगा" शर्मा जी ने कहा,
"ठीक है, ले आओ, मैं काम कर दूंगा" उसने कहा,
"काम पक्का होगा न?'' शर्मा जी ने पूछा,
"बिलकुल पक्का" वो बोला,
"देख लो" शर्मा जी ने हंस के कहा,
"हाँ! पक्का!" वो बोला,
"कहीं अमित की तरह तो नहीं?" शर्मा जी ने कहा,
"अमित? कौन अमित?" वो चौंका!
"वही, जिसका बदल किया था तुमने मनोज के लिए?" शर्मा जी ने कहा,
अब वो चौंक पड़ा!
"याद आया?" शर्मा जी ने पूछा,
"आया" वो बोला,
"वो बच गया" शर्मा जी ने कहा,
"बच गया?" उसे यक़ीन नहीं हुआ!
"हाँ!" शर्मा जी ने कहा,
"आपको उन्होंने ही भेजा है क्या?" वो सकपकाया अब!
"नहीं जी" शर्मा जी ने कहा,
और अब खड़े हुए वो!
मैं भी खड़ा हुआ!
नवीन साहब भी!
और मैं समझ गया कि नूरा का अब धतूरा बनने वाला है!
और तभी शर्मा जी ने एक लात जमाई नूरा की छाती में! जैसे छप्पर फटा! वो पीछे गिर पड़ा! उठने की कोशिश की तो एक और लात जमाई उसके चेहरे पर! उसने भागने के कोशिश की, तो मैंने पकड़ लिया उसको उसके बालों से! और एक रसीद किया साले को उसकी गुद्दी पर!
"छोड़ दो! छोड़ दो!" वो मरमराया!
"छोड़ दूँ? तुझे?? हरामज़ादे!" शर्मा जी ने कहा और एक दिया उसके सर पर करारा सा चांटा!
"मेरी क्या गलती?" उसने कहा,
"गलती? साले तू आदमी ही गलत है, तूने एक मासूम की जान लेने की कोशिश की है, कुत्ते वो तो हम आ गए बीच में वक़्त रहते, नहीं तो तू मार ही डालता उसको!" शर्मा जी ने कहा,
"माफ़ कर दो, माफ़ कर दो, हाथ जोड़ता हूँ!" उसने कहा,
अब हाथ जोड़े उसने!
"माद**! थोड़े से रुपल्ली के लिए किसी की जान का सौदा करता है? तेरी माँ का *****!!" कहा और एक लात और जमा दी उस पर!
अब रो पड़ा वो!
सामने चांडाल को देखकर कांपने लगा! दूसरों को मौत देने वाला खुद कांपने लगा!
"शर्मा जी, छोड़ दो, अब रहने दो" मैंने कहा,
सोची-समझी राजनीति!
"छोड़ दूँ? इसको?? साले को काटूंगा आज, फिर पुलिस में ले जाउंगा इसको, अब नहीं बचेगा ये मेरे हाथों से!" वे बोले,
"ठहरिये तो!" मैंने उनको रोका!
सोची-समझी चाल!
"चल बैठ जा यहाँ" मैंने कहा,
वो बैठ गया!
कांपते कांपते!
"एक बात बता, तेरे पास कौन आया था अमित के लिए?" मैंने पूछा,
"जी मेरे पास मनोज की माँ आयी थी" वो बोलता गया!
"बदल करवाने?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वो बोला,
"और तूने कर दिया?'' मैंने पूछा,
"जी काम है ये तो" वो बोला,
"आज के बाद तू कुछ करने लायक नहीं रहेगा बंगाली!" मैंने कहा और एक खींच के जड़ दिया उसको!
अब वो हुआ बावरा!
रो रो के हाल खराब!
"शर्मा जी उठाओ इसको!" मैंने कहा,
हम उठाते, वो पहले ही उठ गया!
"चल बे?" शर्मा जी ने लात मारते हुए कहा उसको हलके से,
वो उठ गया,
पहले मैं सीढ़ी उतरा, फिर नवीन साहब और फिर बंगाली और फिर शर्मा जी! अब नीचे लोग खड़े हो गए थे! अब उसको लेकर हम चल पड़े गाड़ी की तरफ! वो घिघियाई बिल्ली की तरह खिलौने सा चल पड़ा!
"बैठ बे अंदर!" शर्मा जी ने कहा,
वो डर गया, कि पुलिस के पास ले जा रहे हैं!
"चल?" मैंने कहा,
अब बैठा वो अंदर!
"तेरे को मनोज के यहाँ ले जा रहे हैं" मैंने कहा,
उसकी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे!
अब शर्मा जी ने गाड़ी दौड़ा दी मनोज के घर की तरफ!
घर पहुंचे!
मोम सा पिघलने लगा नूरा बंगाली!
'बुला अंदर से?" शर्मा जी ने कहा,
अब बुलाये नहीं वो!
आखिर शर्मा जी ने ही घंटी बजाई!
दूसरी बार में दरवाज़ा खुल गया!
सामने एक लड़की थी, शायद मधु!
उसने अमित के माता-पिता को पहचान लिया!
और नमस्ते की!
फिर हम अंदर चले गए,
नूरा बंगाली को लेकर!
मधु हमको अंदर ले गयी और बिठाया, फिर अपने माता-पिता को बुलाया, नूरा को हमने वहीँ बिठा लिया था, वो तो ऐसा हो रहा था जैसे पिचका हुआ गुब्बारा! लगा जैसे सारे जहां का दर्द टूट पड़ा हो उस पर!
तभी माता-पिता आये अंदर!
नूरा को देख नूर रवां हो गया मधु की माता का!
गिरते गिरते बचीं!
हाँ, मधु के पिता जी दिल खोल के मिले!
वे भी अनजान थे!
बेहोश सी हुईं मधु की माता ने नूरा से नज़रें मिलाईं और नूरा ने नज़रें मिला कर ज़मीन में धंसा दीं!
क्या करे नूरा!
जो किया वो हुआ नहीं, जो नहीं सोचा था वो हुआ!
"अब कैसा है मनोज?" नवीन साहब ने पूछा,
"इलाज चल रहा है, जैसा डॉक्टर्स कह देते हैं चल रहा है, अभी बैड से उठना सम्भव नहीं हुआ है उसके लिए" वे बोले,
"हो जाएगा, चोट भी काफी गम्भीर थीं उसकी, अब समय तो लगता ही है" नवीन साहब ने कहा,
अब तक पानी आ गया, मधु लायी थी पानी!
वो भी पानी रख वहीँ खड़ी हो गयी!
कुछ पल शान्ति!
"हाँ भी नूरा, बता भाई साहब को कि क्या हुआ?" शर्मा जी ने कहा नूरा से!
नूरा ने मुंह में बचा-खुचा थूक गटका और नज़रें बचाते हुए गला साफ़ किया!
"बता भी नूरा" शर्मा जी ने कहा,
फंसे हुए सियार सा वो!
क्या कहे!
"नहीं बतायेगा?" शर्मा जी ने कहा,
अब बोलना शुरू किया नूरा ने!
बीच में मधु के पिता जी ने कुछ प्रश्न किये लेकिन उनको बाद में उत्तर देने के लिए रोक लिया! कह गया सारी बात नूरा!
अब बुरा हाल मधु की माता का!
क्या कहे!
रुलाई फूट पड़ी उनकी!
गलती माने, सर धुनें!
और मित्रगण!
अब वहाँ जो हुआ होगा वो आप स्व्यं सोच सकते हैं!
किया-कराया सामने आ गया!
नूरा ने कसम खायी ज़िंदगी में ऐसा काम करने की!
बहुत रोया वो!
गलती मान ली उसने!
तो मित्रगण ये थी कहानी अमित की!
आज अमित ठीक है,
मनोज भी अब थोडा-बहुत चलने लगा था, उम्मीद है दो-चार महीने में ठीक हो गया होगा!
नूरा ने फिर कभी कोई गलत काम नहीं किया उसके बाद! मुझ से कई बार मिला है वो! आज सुधर गया है!
हैरत तो इस बात की है कि एक अच्छा-ख़ासा समझदार इंसान भी अवनीति के मार्ग पर चलने लगता है! सबकुछ जानते हुए भी! वही, मैं, मेरा! मैं का फेर!
फंस के रह गया है आज का इंसान इस फेर में!
सम्यक बुद्धि रखिये!
सदैव!
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