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वर्ष २०१३ गाज़ियाबाद की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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जिस दिन मेरे पास ये खबर पहुंची उस दिन अमित अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, मैं किसी की जान अटकी थी, इस कारण से एक क्रिया छोड़ कर अस्पताल पहुंचा था, वो कक्ष में था और किसी से मिलने की अनुमति न थी, उसके माँ-बाप का रो रो कर बुरा हाल था, उसकी छोटी बहन तो एक बार गश भी खा चुकी थी, छोटा सा परिवार था नवीन साहब का, नवीन साहब ने छह महीने पहले ही अपने बेटे अमित का ब्याह किया था, उसकी पत्नी सदमे में बैठी थी और कुछ अन्य रिश्तेदार उसको समझा-बुझा रहे थे! कुल मिलाकर मातम सा था वहाँ!

मैं साढ़े ग्यारह बजे पहुंचा था वहाँ,

मुझे देखते ही नवीन साहब रो पड़े, मैं धीरज बंधवाया और उनसे कहा, "क्या बात है?"

"मेरा बेटा! बचा लो गुरु जी" वे बोले,

"बेटा? क्या हुआ उसको?" मैंने पूछा,

"तीन महीने से गर्दन में दर्द की शिकायत करता था" वे बोले,

"फिर?'' मैंने पूछा,

"उसकी हालत बिगड़ती गयी, और आज...." वे फिर रो पड़े!

"क्या हुआ?" मैंने पूछा,

"आज उसकी गर्दन नीचे झूल गयी और वो बेहोश हो गया!" वे बोले,

"नीचे झूल गयी?" मैंने हैरानी से पूछा,

"हाँ जी, उठायी ही नहीं गयी" वे बोले,

बड़ा अजीब सा मामला था!

"कबसे परेशान था वो?" मैंने पूछा,

"जी तीन महीने से" वे बोले,

"हम्म" मैंने कहा,

"गुरु जी, बचा लीजिये उसको!" वे गिड़गिड़ाये!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैंने शांत किया उन्हें!

"क्या करता है आपका बेटा?" मैंने पूछा,

"एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटेंट है" वे बोले,

'अच्छा, और कब से है?" मैंने पूछा,

"जी तीन साल से" वे बोले,

"अच्छा" मैंने कहा,

"हाँ जी"

"शादी को छह महीने हुए न?" मैंने पूछा,

तभी डॉक्टर आया स्थिति बताने, स्थिति गम्भीर बनी हुई थी, अभी तक होश नहीं आया था अमित को,

ये सुन और दुखी हो गए वे लोग!

अब, ये चिकित्सीय मामला था, मेरी क्या आवश्यकता?

फिर भी मैंने सोचा कि क्यों न एक बार देख ही लिया जाए घर जाकर, इसीलिए मैंने नवीन साहब से कहा कि एक बार घर दिखाएँ मुझे,

वे तैयार हो गए,

घर पास में ही था, हमने उन्हें गाड़ी में बिठाया, और घर चल पड़े, दस मिनट में पहुँच गए, और जैसे ही मैं घर घुसा, एक अजीब सी दुर्गन्ध आयी!

मुझे हुआ खटका!

ये कैसी दुर्गन्ध?

खैर,

अंदर देखा जाए!

हम अंदर गए,

मैंने अमित का कक्ष पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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और खोला,

खोलते ही बदबू का भड़ाका आया!

सड़ी हुई चर्बी की दुर्गन्ध!

कुछ गड़बड़ है!

पक्का कोई गड़बड़ है!

लेकिन क्या?

इसीलिए मैंने अमित का एक कपडा ले लिया और फिर जल्दी से उनको अस्पताल छोड़ा और कपडा लेकर मैं सीधे अपने स्थान पर आ गया!

जांच करने!

मैं सीधा क्रिया स्थल में पहुंचा! और सीधे ही मैंने सुजान को हाज़िर किया! सुजान हाज़िर हुआ और मैंने उसको उद्देश्य बताया! सुजान उड़ चला और वापिस में उसने मुझे एक ऐसी बात बताई कि मैं चौंक पड़ा!

 

सुजान के अनुसार अमित को ये रोग स्वतः नहीं हुआ था बल्कि उसको लग गया था, किसी की बदनीयत का शिकार हो गया था अमित, न इसमें कोई शामिल ही था और न कोई शत्रु ही था, ये रोग उसको किसी की चपेट में आने पर हो गया था, मित्रगण, कई लोग त्यौहारों आदि पर इस तरह की क्रियाएँ करवाया करते हैं, आज बहुत से लोग ऐसे ही पीड़ित हैं, जो रोग उन्हें कभी नहीं हो सकता वो रोग उनको आकर घेर लिया करता हैं, कोई भी रोग होता है तो वो अपने लक्षण दिया करता है, लक्षणों के आधार पर उसका निदान आवश्यक होता है और अमूमन कर लिया जाता है, परन्तु कई रोग ऐसे होते हैं जो अंदर ही अंदर पलटे रहते हैं, कोई लक्षण नहीं दिया करते और पकते ही पूर्ण रूप से सामने आ जाया करते हैं! तांत्रिक ऐसे रोगों को अदल-बदल दिया करते हैं एक मोटी रकम लेकर, अब मरता क्या नहीं करता, और वैसे भी जाकी न फाटी पैर बिवाई सो का जाने पीर पराई! अर्थात जिद पर बीतती है वहीँ जनता है कि क्या गुजर रही है उस पर! वो सबकुछ देकर भी रोग से मुक्ति पा जाना चाहता है, ये रोग भी हो सकता है, बरकत भी और संतान भी! आज कई स्त्रियां चिकित्सीय रूप से पूरी तरह ठीक होने पर भी गर्भाधान नहीं कर पातीं, मैं ये नहीं कह रहा कि ऐसा हर बार होता है, परन्तु अधिकाँश मैंने देखा है, स्त्री की कोख बाँध दी जाती है, संतान आना अवरुद्ध हो जाता है, व्यापार अथवा


   
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श्रीशः उपदंडक
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नौकरी पर बात बन जाती है, चलता काम रुक जाता है, बरकत ख़तम हो जाया करती है, चाहे घर में बीस हज़ार आयें या दो लाख, खर्चा लगातार वैसे ही बढ़ता रहता है, हाथ कुछ बचता नहीं और कर्ज़ा हो जाया करता है! ऐसे ऐसे कर्म करवाते हैं लोग!

इसी अदल बदल की एक कहानी है इतिहास में, बहुत कम लोग जानते होंगे आज आपको बताता हूँ, आपने मुग़ल वंश के संस्थापक ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का नाम सुना होगा, वो जवान उम्र में ही फरगाना से चल कर हिंदुस्तान को जीतने आया था, वैसे तो वो निमंत्रण पर आया था, परन्तु इस देह की सुंदरता और भूमि का उपजाऊपन देख कर उसने यहीं बसने का निर्णय लिया! ये बात उसके निमंत्रण देने वालों को नाग़वार गुजरी तो उसने भी उसी जंग हुई और कनवाह या खानवा के युद्ध में उसने उन निमंत्रण देने वालों को भी हरा दिया! और यहाँ मुग़ल वंश की स्थापना की, ये बात भी बहुत कम लोगों को मालूम है कि बाबर को औषधि-ज्ञान था, वो पढ़ा-लिखा और धर्म-भीरु इंसान था, बादशाह होते हुए भी हरम नहीं रखता था, एक ही बीवी थी उसके! साधारण तौर से ही रहा करता था, और भारत में आज कई ऐसी वनस्पतियां, फल फूल ऐसे हैं जिन्हे बार दूर दराज से लाया था यहाँ हिंदुस्तान में! आज वो सब यहाँ फल फूल रहे हैं, इनमे से एक है गुलाब का फूल! इसको बाबर ही लाया था, उसकी क़िताब तुजक-ए-बाबरी में इसका वर्णन मिलता है,

खैर, बाबर का एक ही बेटा था, हुमायूं! अपने बेटे से बहुत प्रेम करता था बाबर, ऐसे ही एक बार हुमायूं बहुत बीमार हुआ यहाँ पर, इतना बीमार की कब मौत हो जाए कुछ पता नहीं, टूट गया बाबर! उसने सारी औषधियां इस्तेमाल कर लीं, लेकिन कोई असर नहीं, हक़ीम बुलाये गए, भारी रकम के बदले, फिर मुनादी भी हुई लेकिन कोई कुछ नहीं कर सका, तब एक बंगाली तांत्रिक वहाँ पहुंचा, उसने कहा कि वो इस बालक को ठीक कर देगा, लेकिन बदल में उसे एक इंसान चाहिए, जो इसका रोग ले सके, कहने में और सुनने में बात अजीब थी, बाबर को भी ताज्जुब हुआ, लेकिन वही नहीं कि मरता क्या नहीं करता! बाबर ने हाँ भर ली, और देखिये, उसने किसी और को नहीं खुद को चुना! एक बादशाह चाहता तो किसी को भी हुमायूं का रोग दे देता लेकिन वो भी किसी का बेटा होता, किसी का पति, किसी का भाई होता! सो बाबा ने खुद को ही चुना! अब उसने तांत्रिक के कहने पर क्रिया में बैठने का मन बना लिया, तांत्रिक ने क्रिया की और फिर हुमायूं के पलंग के चौदह चक्कर लगाए, बाबर हर चक्कर के साथ अशक्त होता चला गया और हुमायूँ सशक्त!

हुमायूं बच गया! और बार बिस्तर से चिपक गया, चौदहवें रोज बाबर की मौत हो गयी! हुमायूँ के किले में आज भी एक स्थान ऐसा है जहां उस तांत्रिक की जगह है! किले की पूर्वी सीमा पर!

ये है बदल का खेल!


   
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श्रीशः उपदंडक
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ऐसा ही कुछ खेल खेला गया था अमित के साथ!

कुछ लोग अधिक पढ़लिख जाते हैं, अंधविश्वास मानते हैं इन बातों को, मैं बुरा नहीं कहता उन्हें! विज्ञान का युग है, विज्ञान का आदर होना भी चाहिए, लेकिन बिना सोचे समझे, जाने किसी की भी निंदा नहीं करनी चाहिए! कुल मिलकर एक अभ्यस्त व्यक्ति ही ये बता सकता है कि फलां मशीन में फलां गड़बड़ है! तब तो बात सही है! अन्यथा कोरी मूर्खता!

चलिए अब अमित के बारे में जानते हैं,

अमित को चपेट लगी थी, किसी ऐसे ही रोगी व्यक्ति की, लेकिन कौन? कहाँ से? ये जानना आवश्यक था बहुत नहीं तो अमित कभी भी काल का ग्रास बन सकता था! इसके लिए अब मुझे एक क्रिया करनी थी!

एक आवश्यक क्रिया!

इस से पहले कि कोई अनर्थ हो!

 

मैंने शर्मा जी से कहा, "शर्मा जी आप ज़रा नवीन साहब से बाते करें और अमित का हाल जानें, कैसा है अब?"

उन्होंने तभी फ़ोन किया और पता चला कि वो यथास्थिति में ही है, कोई असर नहीं हो रहा था उसका दवाई का,

अब स्थिति और गम्भीर हो गयी थी,

मैं अमित से बात करना चाहता था, लेकिन उसे होश नहीं था!

"चलिए नवीन साहब के पास चलते हैं" मैंने कहा,

हम उसी समय वहाँ के लिए चल दिया,

रात हो रही थी,

हम वहाँ पहुंचे और सारी बात बता दी नवीन साहब को, उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ गयी!

मैंने ढांढस बंधाया उन्हें,

"एक बात बताइये नवीन साहब" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जी गुरु जी पूछिए" वे बोले,

"अमित कहीं गया था तीन महीने पहले?" मैंने पूछा,

"नहीं जी, कहीं नहीं गया वो" वे बोले,

"कहीं बाहर, शहर से बात, या कहीं रात भर के लिए बाहर?'' मैंने पूछा,

"नहीं जी" वे बोले,

कोई ओर-छोर नहीं!

"ठीक है, मैं जांच करता हूँ" मैंने कहा,

अब धूल में लाठी भांजने वाला काम नहीं करना था, मुझे कोई ठोस कदम उठाना था ताकि वो बेचारा अमित ठीक हो सके, अभी छह महीने ही हुए थे उसके ब्याह को, उसकी बीवी पर भी क्या गुजर रही होगी मैं समझ सकता था,

"शर्मा जी, आप एक काम करें, सुबह आप कुछ सामान ले आयें जिसकी ज़रुरत है" मैंने कहा,

"जी" वे बोले,

अब हम वहाँ से निकले,

मैं कुछ नहीं कर सकता था, उस चपेट को भी नहीं रोक सकता था,

ये मेरे बस से बाहर था उस समय!

अगला दिन आया!

अमित जस का तस!

नवीन साहब और पूरे परिवार का बुरा हाल!

दस बजे,

शर्मा जी सारा सामान ले आये,

मैं तैयार था, मैंने फ़ौरन ही क्रिया-स्थल में भागा और सारी तैयारियां कीं, और फिर अलख उठाकर, बैठ गया!

शाही-रुक्का पढ़ा इबु का!


   
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श्रीशः उपदंडक
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इबु, मेरा सिपहसालार हाज़िर हुआ!

मैंने उसको उद्देश्य बताया और वो उड़ चला!

मैं वहीँ बैठ गया!

इंतज़ार में कि कहीं डोर टूट न जाए!

और फिर इबु ने मुझे खबर दे ही दी!

बहुत काम की खबर थी ये!

मैंने इबु को भोग दिया और वहाँ से उसको लपकर तेजी से वहाँ से निकल गया!

"चलो शर्मा जी" मैंने कहा,

"नवीन साहब के यहाँ?" उन्होंने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

उन्होंने गाड़ी स्टार्ट की और हम दौड़ पड़े!

अस्पताल पहुंचे!

वहाँ से नवीन साहब को लिया और रास्ते में से कुछ सामन खरीदा!

और पहुंचे सीधा मोहन नगर के एक खाली स्थान पर!

अब मैंने वहाँ पर सुजान को हाज़िर किया,

सुजान ने एक स्थान के ओर इशारा किया और लोप हो गया!

मैंने वो स्थान ढूंढ लिया!

वो स्थान खुदा हुआ था, वहाँ मिट्टी के एक ढेरी सी बनी हुई थी!

"शर्मा जी, यहाँ खोदिए"

शर्मा जी ने एक लकड़ी से वो स्थान खोदना शुरू किया!

करीब एक फीट!

और..........


   
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श्रीशः उपदंडक
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करीब एक फीट नीचे एक थैला दिखायी दिया, काले रंग का थैला, सुतलियों से बंधा हुआ, उसके आसपास की मिट्टी साफ़ की हमने, कुछ भरा गया था उसमे, बदबू का भड़ाका आया, ये सड़ा हुआ मांस था, मैंने ज़ोर लगा कर वो थैला बाहर निकाल लिया, तरल टपक पड़ा, ये शराब मिला तरल था, अब थैले को एक अलग जगह रखा, बदबू इतनी थी कि मितली आ जाए, रुमाल बाँधने पड़े मुंह पर, मक्खियों ने हमला कर दिया थैले पर!

मैंने अब सुतलियां खोलीं उस थैले की, उसके मुंह को बाँधा गया था इन सुतलियों से, कुछ खोलीं और कुछ तोड़नी पड़ी, बारहाल, थैले का मुंह खुल गया, उसमे से एक पन्नी निकली, पन्नी फाड़ी गयी तो सड़ा हुआ मांस निकला काली पन्नी में बंधा हुआ, वो अलग रख दिया, फिर कुछ और वस्तुएं निकलीं, इत्र, फूल और कुछ दिए, कुछ राई के दाने और कुछ ऐसी ही तमाम वस्तुएं, और फिर एक रुमाल निकला बंधा हुआ, मैंने रुमाल उठा लिया, हालांकि गीला था, लेकिन खोलना पड़ा, जब खोला तो उसमे से अमित का फ़ोटो निकला! उसके माथे और चेहरे पर सुइयां गाड़ी हुई थीं! अब एक बात स्पष्ट थी, किसी ने जानबूझकर उसको निशाना बनाया था, निशाना बनाने वाला चाहता तो किसी और को या किसी अजनबी को भी निशाना बना सकता था, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं था, कुछ सिक्के भी निकले, दो के और पांच के, अब मैंने उस सभी सामान को इकठ्ठा किया और कुछ कचरा डाल कर आग लगा दी, फोटो से सुइयां निकाल लीं और फिर एक मंत्र पढ़कर पानी से एक कुल्ला कर दिया, अभिमन्त्रण टूट गया! अब अमित खतरे से बाहर था!

हम वहाँ से फ़ौरन भागे नवीन साहब के यहाँ और हाथ मुंह धोये, और फिर वहाँ से सीधे अस्पताल पहुंचे, अस्पताल में एक खुशखबरी मिली! अमित को होश आ गया था, डॉक्टर ने पुष्टि कर दी थी!

ये सुनकर नवीन साहब और उनकी पत्नी की रुलाई फूट पड़ी! मैंने उन्हें बहुत समझाया और कहा कि अब अमित को कुछ नहीं होगा! बारह घंटे में अमित बिलकुल ठीक हो जाएगा! और अपने घर पर होगा! मेरी इस बात ने नव जीवन संचरण कर दिया उनमे!

अब मैंने नवीन साहब को बुलाया और गाड़ी तक ले गया! गाड़ी में बिठाया, और पूछा, "नवीन साहब मुझे, अब पता है कि किसी ने जानबूझकर अमित को शिकार बनाया है, क्या आपको किसी पर शक है?"

वे सोचने लगे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जी ऐसा तो कोई नहीं है, अमित अधिकतर घर में ही रहता है, कोई बड़ा मित्र-वर्ग नहीं उसका, कोई दुश्मनी नहीं लगती मुझे" वे बोले,

"जो फ़ोटो आपने देखा वहाँ अमित का वो फ़ोटो कहाँ का है?" मैंने पूछा,

"जी दफ्तर का ही होगा, घर का नहीं है" वे बोले,

"इसका मतलब इस मामले का लेना देना घर से ही है" मैंने शुबहा जताया!

"जी हो सकता है" वे बोले,

"हम्म" मैंने कहा,

"दफ्तर कहाँ है उसका?" मैंने पूछा,

"जी यहीं है" वे बोले,

"गाज़ियाबाद में?" मैंने पूछा,

"हाँ जी" वे बोले,

"ठीक है" मैंने कहा,

अब जितना वो बता सकते थे, बता दिया, अब शेष बातें अमित ही बता सकता था! सो अब इंतज़ार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था!

"नवीन साहब, अब हम चलेंगे, जब अमित घर आ जाए तो हमे सूचना दीजिये, बाकी बात मैं अमित से ही पूछूंगा" मैंने कहा,

"जी" वे बोले,

अब हम वहाँ से वापिस चले!

रास्ते में शर्मा जी और मैं बातें करने लगे!

"बताओ, कैसा ज़माना आ गया है" वे बोले,

"हाँ जी" मैंने कहा,

"जिस पर विश्वास करो, वही पीठ में छुरा भोंके!" वे बोले,

"यही तो होता है!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बेचारे का क्या क़सूर होगा, किसी पर विश्वास किया होगा और उसने ही इसको बना दिया शिकार" वे बोले,

"हाँ" मैंने कहा,

"कौन होगा वो?" उन्होंने पूछा,

"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता" मैंने कहा,

"अमित से ही पूछेंगे न?" वे बोले,

"हाँ, पहले इस से ही पूछूंगा" मैंने कहा,

अब ज़रा एक जगह रुके हम, ठेके पर! दो ठंडी बियर लीं और खुद को ठंडा करने लगे!

और उसके बाद चल पड़े अपने स्थान पर वापिस!

पहुँच गए!

 

हम वापिस आ गए!

रात को मदिरा का समय हुआ तो मदिराभोग किया! इस बीच फ़ोन आया नवीन साहब का, अमित को छुट्टी मिल गयी थी, अब उसकी तबियत ठीक थी, हाँ उसको सदमा पहुंचा था कि अचानक से ऐसा क्या हो गया था, किसी से अधिक बात नहीं कर रहा था, लेकिन मुझे ख़ुशी थी कि उसकी जान बच गयी थी!

ये खबर शर्मा जी ने मुझे सुनायी थी, हम दोनों ही अब खुश थे लेकिन संतुष्ट नहीं! करने वाले ने तो प्राण लेने चाहे थे, लेकिन वो है कौन? किसलिए उसने ऐसा किया? उसका फ़ोटो कैसे आया उसके पास? किसने दिया? या सवाल थे जिनका उत्तर जानना बहुत ज़रूरी था!

अब हमने सुबह का कार्यक्रम बनाया अमित से मिलने का, उस से मिलना बहुत आवश्यक था, आगे का रास्ता उस से होकर ही जाता था!

और सुबह हुई!

शर्मा जी करीब दस बजे आये वहाँ और हम निकल पड़े!


   
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करीब घंटे भर में पहुँच गए अमित के घर! वहाँ घर में अमित और उसके रिश्तेदार आदि भी आये हुए थे, नवीन साहब दौड़ते हुए आये, चेहरे पर ख़ुशी थी उनके, एक बाप से उसके बेटे की पीड़ा नहीं देखि गयी थी, सो अब खुश थे!

नमस्कार आदि हुई!

"अब कैसा है अमित?" मैंने पूछा,

"आपके आशीर्वाद से अब ठीक है" वे बोले,

"बातें कर रहा है?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, थोडा बहुत" वे बोले,

"हमको ले चलो वहाँ" मैंने कहा,

"जी चलिए" वे बोले,

हम चल पड़े!

एक कमरे में पहुंचे,

हमे देख अंदर बैठे लोग और उसकी पत्नी बाहर चले गए, मैंने दरवाज़ा भेड़ दिया, हम बैठ गए वहाँ, अमित लेटा था,

"कैसे हो अमित?" मैंने पूछा,

"अब ठीक हूँ" उसने कहा,

"क्या हुआ था?" मैंने पूछा,

"पता नहीं, गर्दन में दर्द रहता था, कल तो उठी ही नहीं, मैं बेहोश हो गया" वो बोला,

"दर्द कबसे था?" मैंने पूछा,

"जी करीब तीन महीने" वो बोला,

"अब तो नहीं है?" मैंने पूछा,

"जी नहीं" वो बोला,

चलो, अब दर्द नहीं था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अच्छा अमित, जो मैं पूछूंगा, उसका सही जवाब देना" मैंने कहा,

उसने हाँ में गर्दन हिलायी,

"क्या कोई ऐसा है जो आपसे चिढ़ता है?" मैंने पूछा,

उसने ध्यान से सोचा,

"नहीं जी" वो बोला,

"कोई ऐसा जो आपके खिलाफ रहता हो?" मैंने पूछा,

"नहीं जी" वो बोला,

"किसी से झगड़ा हुआ हो?" मैंने पूछा,

"नहीं जी" उसने कहा,

"तीन महीने पहले?" मैंने पूछा,

"नहीं जी" उसने कहा,

क्या मामला था!

"अच्छा, ऐसा कोई है आपके ऑफिस में जिसके यहाँ कोई बीमार रहता हो?" अब मैंने सीधे ही सवाल पूछा,

उसने ध्यान से सोचा!

"नहीं जी" उसने कहा,

"कोई ऐसा जो बिस्तर पर ही टिका हो?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, लेकिन वो बीमार नहीं है" वो बोला,

"कौन?" मैंने चौंक के पूछा,

"हमारे ऑफिस में एक लड़की है, मधु, उसके भाई का छह महीने पहले एक एक्सीडेंट हुआ था, तबसे वो बेड पर ही है, उठता भी नहीं, सभी परेशान हैं" वो बोला,

"क्या नाम है उसका?" मैंने पूछा,

"मनोज" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अच्छा!" मैंने कहा,

"कहाँ रहती है ये लड़की मधु?" मैंने पूछा,

"यहीं गाज़ियाबाद में" उसने बताया,

मिल गया!

जो मैं चाहता था वो मिल गया!

"क्या कभी उसके घर गये आप?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, दो बार" उसने कहा,

"कब?" मैंने पूछा,

"उस दिन पहली बार जब एक्सीडेंट हुआ था और दूसरी बार तब जब उसको खून की आवश्यकता था, कोई तीन महीने पहले" उसने बताया!

गोटियां मिल गयीं!

रास्ता भी मिल गया!

पता चल गया!

विश्वासघात!

 

अब मेरे पास नाम थे और उसका पता भी! अब बात बन सकती थी! अब मुझे देखना था कि वो कौन है जिसने ऐसा काम किया कि जिस से अमित की जान पर बन आयी! मैंने अब अमित को हिम्मत बंधाई और वहाँ से अब चल पड़ा! उन्होंने रोका लेकिन अब रुकने का कोई औचित्य बाकी नहीं था!

हम वापिस आ गए!

"देखा शर्मा जी!" मैंने कहा,

"हाँ" वे बोले,

"इंसानियत का ये नतीज होता है आजकल!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बहुत बुरा हुआ" वे बोले,

"हाँ, बहुत बुरा हुआ और अब बुरा होगा उस करने वाले कारीगर का!" मैंने कहा,

"सबक तो मिलना ही चाहिए वैसे देखा जाए तो" वे बोले,

"सबक तो मिलेगा ही" मैंने कहा,

"साले की ऐसी हड्डियां तोड़ो कि कभी ज़िंदगी में खड़ा होकर न चले" वे बोले,

गुस्से में!

"ऐसा ही करूँगा, चंद रुपयों की खातिर ऐसा घिनौना काम करते हैं ये साले, कुत्ते!" मैंने कहा,

"सही कहा, मर जाता ये बेचारा" वे बोले,

कुछ और बातें और फिर शर्मा जी चले गए!

शाम को आना था उन्हें!

संध्या हुई!

बहुत काम बाकी था!

अब सबसे पहले शाम सुहानी करनी थी मदिरा के चटख रंग से! शर्मा जी इंतज़ाम करके लाये थे शाम को ही!

अब हुआ दौर-ए-जाम शुरू!

दौर चला साहब कोई दस बजे तक!

अब क्रिया का समय था!

मैं गया क्रिया-स्थल में!

और सारा सामान रखा मैंने वहाँ!

अलख उठायी!

अलख नमन किया और भोग दिया!

और अब शाही रुक्का पढ़ा इबु का!


   
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इबु पलक झपकते ही हाज़िर हुआ!

मैंने उसको उसका उद्देश्य बताया और इबु उड़ चला!

कुछ ही देर में ले आया सारी पक्की जानकारी!

ये कारीगर था नूरा बंगाली!

नाम वैसे सुदीप था! लेकिन नूरा नाम से मशहूर था!

गाज़ियाबाद शहर के एक कोने पर रहा करता था अपने जैसे बंगालियों के साथ! नूरा ने ये काम मधु की माँ के कहने पर किया था, उसको वो अभिमंत्रित चूर्ण खाने में दिया गया था!

क्यों?

प्रयोजन स्पष्ट था! फ़ोटो मधु के पास से चुराई गयी थी! मधु को भी इस बारे में पता ना था! अतः उसको दोष देना गलत था! मधु अमित को भैय्या कह कर बुलाती थी और मधु और अमित के सम्बन्ध भी भाई बहन के पवित्र सम्बन्धों की तरह ही पवित्र थे!

तो अब इस कारीगर को पाठ पढ़ाना था! ये काम तो मैं कर सकता था लेकिन मधु की माँ को मैं कोई सजा नहीं दे सकता था, हाँ नूरा से कुबूलवा सकता था! वो भी अमित के माँ बाप के सामने!

नूरा बंगाली!

यही नाम अब कौंध रहा था दिमाग में!

मैं अब क्रिया-स्थल से उठा और वापिस अपने कक्ष में आ गया, शर्मा जी अर्ध-नींद में थे!

"सो गए क्या?" मैंने पूछा,

"नहीं तो" वे नशे की हालत में बोले,

मैं भी लेट गया!

"पता चल गया?" उन्होंने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

उन्होंने हाँ सुना और उनमे चाबी भरी! उठ के बैठ गए!

"कौन है वो मादर**! कुत्ता?" उन्होंने पूछा,


   
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