वर्ष २०१३ कोटा राजस...
 
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वर्ष २०१३ कोटा राजस्थान के समीप की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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प्रार्थना की, कि अब वो जहां भी जन्म ले,कभी इसकी याद भी न रहे! मैं आया बाबा 

खंज की खताल, बाबा यहां सेम नौ कोस दूर चले गए थे, मैं वहीं गया, वो ध्यानमग्न थे, मैंने प्रतीक्षा की, नौ रोज बाद वे जागे, मुझे देखा, और दिया मुझे कुछ! ये एक अस्थि का टुकड़ा था, जबड़े की! मुझे बताया कि ये नरसिंह की अस्थि यही, पहली बार मैं फूट फूट के रोया! बाबा ने तिलिस्म रच दिया था! कुंजी वो कपाल-अस्थि ही थी! मैंने उनके समक्ष ही, प्राण त्याग दिए! बाबा ने, मुझे इस तिलिस्म से पृथक रखा, और स्वयं समाधि ले ली, उधर, उस टीले पर! और इस प्रकार, चार बनाजरों की टोलियाँ, तीन डेरे, दो महाप्रबल साधक, एक व्यवसायी, हज़ारों लोग, सदा के लिए, इतिहास के गर्भ में समा गए! और फिर तू आया सेगुड! पुत्र! तुझमे मैंने अपना नरसिंह देखा! तुझ सा ही होता वो! इसीलिए, मैंने तुझे प्रोत्साहित किया! ताकि ये तिलिस्म भंग हो, और सबको मुक्ति मिले!" बोले वो, मैंने उसी क्षण उनके चरण पकड़ लिए! "उठ सेगुड!" बोले वो, "आ!" कहा उन्होंने, 

और तभी सब प्रकट हुए! सभी मुस्कुराते हुए, सेहतमंद! कोई कटा-फटा नहीं! 

और तब, बाबा खंज प्रकट हुए। बाबा खंज मुस्कुराये! मुझसे कुछ बात की, 

आशीर्वाद दिया, और लोप! सभी मुक्त! बस एक ही रहा! बाबा दरम्! "आप?" बोला मैं, "देख! वो देख! भोर होने को है!" बोले वो, "हाँ बाबा!" कहा मैंने, "अब मुझे भी मुक्ति दे सेगुड!" बोले वो, 

और आंसू भर लाये! लगा लिया गले! वो तिलिस्म में नहीं थे, इसीलिए रह गए थे! 

मित्रगण! मैंने उसी क्षण, मुक्ति-क्रिया आरम्भ की! 

और बाबा ने, कुछ दिया मुझे! वो घटत-बढ़त की क्रिया कुंजी! और अपने सभी माल! और उसके बाद, पहली किरण से पहले, बाबा दरम्, मुक्त हुए। समाप्त हुआ ये वीभत्स सिलसिला! सत्रह सौ तिरानवें से भटक रहे, तिलिस्म के कैदी आज़ाद हो गए! मित्रगण! छतर सिंह की खेती फल-फूल उठी! उन्होंने ग्यारह दिन तक का अखंड भंडारा किया शहर में! सबकी शान्ति के लिए! 

और अपने ही स्थान में, बाबा खंज, बाबा भैराल, राजो, बाबा दरम् और उस नरसिंह को स्थान दिया! जहां आज भी अनवरत दीये जलते हैं! ये संसार है! ये कभी अपने गुजरे क्षणों को नहीं भूलता! क्रम से, बार बार, उसके मनके पलटता है! 

ऐसा ही एक मनका इस बार पलटा, 

और बस, हम उचित समय में, दखल दे सके! ये भी रजा होगी उसकी! उसकी इच्छा! खैर, उसका वो जाने, मेरा मैंने जाना! जो उचित लगा, पूर्ण किया! वे सब, वो दृश्य कभी नहीं भूले जा सकते! फिर से कभी कोई मनका पलटा, तो अवश्य ही बुलावा आएगा! हाँ, मैं नहीं पलटूंगा!

-----------------साधुवाद!----------------- 

 


   
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