वर्ष २०१३ काशी के प...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०१३ काशी के पास की एक घटना

229 Posts
1 Users
0 Likes
974 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 ये स्वीकृति थी!

 बस!

 वो साथ देने को तैयार थी!

 मैं जान गया था!

 बस, अब पीछे हटना था!

 था तो ये धोखा ही,

 मैं छल रहा था उसको,

 भावनाएं भड़का रहा था उसकी,

 और ये छल मैं तो जानता था,

 वो नहीं,

 तो मैं,

 अपराधी हुआ उसका!

 मुझे अपराध-बोध ने ग्रस्त सा कर लिया,

 मैंने हाथ हटा लिया,

 छोड़ दिया उसको,

 उसकी आँखें अभी भी बंद ही थीं,

 "आँखें खोलो आद्रा!" मैंने कहा,

 अब मेरे भाव भी बदल गए थे अब,

 और स्वर भी!

 उसने आँखें खोल दी,

 मुझे देखती रही!

 उसकी भूली सूरत ने जैसे मेरे कान पर एक तमाचा जड़ा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 कंठ सूख गया मेरा,

 अपराध-बोध ने, मेरा रक्त जमा दिया,

 नहीं!

 छल नहीं करना चाहिए,

 इस से बड़ा कोई पाप नहीं,

 उसने आँखें नीचे कर लीं!

 "पानी पिला दो आद्रा!" मैंने कहा,

 वो उठी, रसोई तक गयी,

 और पानी ले आयी,

 मैंने पानी लिया,

 और पिया,

 एक बार में ही सारा पानी पी गया!

 और खड़ा हुआ मैं अब,

 अब रुका नहीं जा रहा था मुझसे,

 उसी उपस्थिति मुझे,

 किसी कांटे की भांति चुभे जा रही थी,

 "मैं चलता हूँ, काम है एक बहुत ज़रूरी" मैंने कहा,

 और मैं मुड़ा,

 कमरे से बाहर आया,

 और पीछे देखा,

 वो कमरे में ही खड़ी थी,

 बाहर नहीं आयी थी,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 दरवाज़ा बंद करने,

 "दरवाज़ा बंद कर लो" मैंने कहा,

 और मैंने दरवाज़े की चिटकनी खोल दी,

 वो आ गयी,

 नज़रें झुकाये हुए,

 और मैं बाहर सीधा,

 खुले में आया,

 तो जान में जान आयी!

 पाप करने जा रहा था मैं,

 विवेक ने बचा लिया!

 नहीं तो आज पाप कर ही बैठता!

 मेरी अंतरात्मा कैसे झिड़कती मुझे?

 मेरा अपराध-बोध कैसे मारता मुझे,

 क़तरा क़तरा!

 कैसे कहता!

 किस से कहता!

 पल भर के आवेश में,

 जीवन भर का रोष साथ लग जाता!

 मैंने अपने विवेक का धन्यवाद किया!

 और ऐसे झंझावात में लेटते, बैठते,

 कूदते, फांदते, मैं सड़क तक आ गया!

 और तभी फोन बजा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

ये आद्रा थी!

 मैंने फ़ोन उठाया,

 "चले क्यों गए?" उसने पूछा,

 "मुझे डर लगा रहा था!" मैंने कहा,

 "मुझसे?" उसने पूछा,

 "नहीं, अपने आप से!" मैंने कहा,

 "वो कैसे?" उसने पूछा,

 'बस आद्रा!" मैंने कहा,

 "बताओ तो?" उसने पूछा,

 "कुछ हो जाता तो?" मैंने पूछा,

 वो हंसी!

 "तो?" उसने हंसते हुए,

 अब इस तो क्या क्या जवाब देता मैं!

 कोई जवाब ही नहीं था!

 "छोड़ो आद्रा!" मैंने कहा,

 वो और तेज हंसी!

 और फिर,

 मैं भी हंस पड़ा!

 भड़ास निकाल ही ली मैंने!

 "अब चलता हूँ, सवारी आ गयी है" मैंने कहा,

 "ठीक है, बाद में करती हूँ" वो बोली,

 और फ़ोन काट दिया,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 अब मैंने सवारी पकड़ी,

 और चल पड़ा अपने स्थान की ओर!

 वहाँ पहुंचा, कोई बीस मिनट में,

 और सीधा अंदर गया!

 शर्मा जी सोये हुए थे,

 मैं आया तो आँख खुल गयी उनकी!

 और वे बैठ गए!

 मैं भी बैठ गया!

"भोजन कर लिया?" मैंने पूछा,

 "हाँ, आपने?" उन्होंने पूछा,

 "हाँ, कर लिया है" मैंने कहा,

 "मान गयी क्या आद्रा?" उन्होंने पूछा,

 "हाँ शर्मा जी, अब मुझे विश्वास है उस पर!" मैंने कहा,

 "ये मैं जानता था! पहले से ही!" वो बोले,

 मैं मुस्कुरा गया!

 तभी बाबा पांडु भी आ गए,

 नमस्कार हुई,

 "कैसे हो बाबा?" मैंने पूछा,

 "ठीक हूँ" वे बोले,

 उदास से,

 बहुत उदास थे वो,

 मैं उठा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

उनके पास गया,

 उनके पाँव छुए,

 उन्होंने आशीर्वाद दिया मुझे,

 "बाबा, आप उसको चुनौती भिजवा दीजिये!" मैंने कहा,

 बाबा ने मुझे देखा,

 वृद्ध नेत्रों में चमक देखी मैंने!

 बाबा खड़े हुए,

 मुझे गले से लगा लिया,

 अपने गले से,

 एक माला निकाल कर,

 मेरे गले में डाल दी उन्होंने!

 "ये मेरे गुरु की माला है!" वे बोले,

 मैंने माला उठायी गले से,

 और अपने माथे से लगा ली,

 "मैं कल भिजवाता हूँ चुनौती!" वे बोले,

 "हाँ, भिजवा दीजिये!" मैंने कहा,

 और बाबा चले गए!

 खुश होकर!

 चुनौती भेजनी थी,

 कब स्वीकार करता है वो,

 बस ये इंतज़ार था!

 और वो हलकारा बताने वाला ही था बाबा को!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 और बाबा मुझे!

 तभी फ़ोन बजा!

 ये आद्रा का था!

 मैंने फ़ोन सुना,

 "हाँ आद्रा?" मैंने कहा,

 "पहुँच गए?" उसने पूछा,

 "हाँ, आधा घंटा हो गया!" मैंने कहा,

 "डर निकल गया?" उसने पूछा,

 मैं हंसा!

 "हाँ! निकल गया!" मैंने कहा,

 "आप.." वो बोलते हुए रुक गयी,

 कहना चाहती थी कुछ,

 "हाँ? आप..क्या?" मैंने पूछा,

 "आप बहुत अच्छे हैं!" वो बोली,

 "अच्छा?" मैंने पूछा,

 "हाँ, सच में!" वो बोली,

 "डरा रही हो मुझे तुम अब!" मैंने कहा,

 "कैसे?" उसने पूछा,

 "इस से होगा क्या, जानती हो?" मैंने पूछा,

 "क्या?" उसने पूछा,

 "इस से मैं अब और करीब आउंगा तुम्हारे, और तुम्हारे आकर्षण में लिप्त रहूँगा, अब जो लिप्त रहूँगा तो मैं स्व्यं संघर्ष करूँगा अपने आपसे, जूझता रहूँगा!" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 "नहीं जूझने दूँगी आपको!" उसने कहा,

 कहा?

 पहाड़ सा टूट गया मेरे ऊपर!

 हाँ,

 दर्द तो नहीं हुआ,

 पर अंदर छिपे काम ने,

 आँखें खोल लीं!

 जैसे कुत्ते के कान खड़े हो जाते हैं, पल भर में ही,

 वैसे ही काम भी जाग गया!

 दरअसल,

 उसका लहजा बहुत 'खतरनाक' था!

 सच में,

 उसमे आकर्षण तो कूट कूट के भरा था!

 मेरा धनावेश, उसके ऋणावेश से आकर्षित होता था बार बार!

 बड़ी मुश्किल से सम्भालता था मैं अपने आपको!

 और अब उसने कहा,

 जूझने नहीं देगी!

 इसका मतलब,

 मैं टूट जाऊँगा!

 आखिर को, इंसान हूँ मैं!

 और इंसान में कई कमियां छिपी रहती हैं,

 चाहे लाख जतन करो,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

कभी न कभी सामने आती ही हैं!

 इस वक़्त,

 ऐसा ही था मेरे साथ!

 "अब कहाँ हो?" मैंने पूछा,

 "वहीँ हूँ" वो बोली,

 "मेरे यहाँ आ जाओ!" मैंने कहा,

 "मैं आ भी जाउंगी!" वो बोली,

 "तो आ जाओ न!" मैंने कहा,

 "अकेले हो?" उसने पूछा,

 "तुम्हारे लिए, अकेला भी हो जाऊँगा मैं!" मैंने हंस कर कहा ऐसा!

 वो भी हंसी!

 अब मेरी हिम्म्त बस,

 फ़ोन पर ही थी,

 उसके सामने तो मैं भीगी बिल्ली सा बन जाने वाला था!

 "आ जाऊं?" उसने पूछा,

 "आ जाओ!" मैंने कहा,

 "ठीक है" वो बोली,

 "आओ जाओ, इंतज़ार कर रहा हूँ" मैंने कहा,

 और फ़ोन रख दिया उसने!

 तो मैंने तो आग जला दी थी!

 जलायी तो थी हाथ सेंकने के लिए,

 लेकिन अब हाथ जलने ही वाले थे!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

वो आने वाली थी,

 और मैं उस ठंड में गर्मी महसूस कर रहा था!

 बैठे बिठाये,

 ले ली मुसीबत मोल!

 फिर सोचा,

 चलो कोई बात नहीं!

 आ जाने दो!

 देखते हैं!

 हो सकता है, कुछ और भी पता चले!

 अब मैंने शर्मा जी को बताया,

 "कोई बात नहीं! मैं बाज़ार घूम आता हूँ" वे बोले,

 और फिर वो चले गए!

 और मैं कमरे में बैठ गया!

 कोई बीस-पच्चीस मिनट के बाद,

 आ गयी आद्रा वहाँ!

 मैं खड़ा हुआ,

 और उसको बिठाया!

 "पानी लाऊं?" मैंने पूछा,

 "नहीं" वो बोली,

 अब मैंने दरवाज़े की कुण्डी लगा दी,

 और बैठ गया कुर्सी पर!

 और उसने अब फिर से हया की चादर ओढ़ ली!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 मैं भी चुप ही रहा!

 उसके बोलने का ही इंतज़ार कर रहा था!

 "यहाँ अभी कितने दिन हो आप?" उसने पूछा,

 "ये तो गौरांग के ऊपर है" मैंने कहा,

 समझ गयी वो!

 "उसके बाद आद्रा कहाँ है?" उसने पूछा,

 महा-प्रश्न!

 भयानक प्रश्न!

 ऐसा प्रश्न जिसका कोई उत्तर नहीं!

 "आद्रा सदैव मेरे मन में है उसके बाद भी!" मैंने कहा,

 मुस्कुरा गयी!

 "अपने खेल में खुद फंस गए न आप?" उसने कहा,

 खेल?

 कैसे पकड़ा उसने?

 कैसे जाना?

 पोल खुल गयी क्या?

 अब वो हंसी!

 "है या नहीं?" उसने पूछा,

 "कैसा खेल?" मैंने पूछा,

 "यदि वो पात्र मेरे पास होता तो आप वही मांगते न?" उसने पूछा,

 ये तो सच है!

 वही मांगता!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

पर,

 कैसे कह दूँ?

 मुंह काला हो जाएगा!

 "नहीं! ऐसा नहीं है" मैंने कहा,

 "फिर कैसा है?" उसने पूछा,

 "मैं लड़ कर ही लाता वो पात्र!" मैंने कहा,

 "मुझसे लड़ते?" उसने कहा,

 अब फंसा मैं!

 खुल ही गयी थी पोल!

 अब पैबंद छुपाने से कोई लाभ नहीं था!

 "हाँ! मैं लड़ता!" मैंने कहा,

 "मुझे पता है!" वो बोली,

 अब तो मैं ऐसे फ्क्क् पड़ा जैसे.

 रँगे हाथ चोरी करते पकड़ा गया हूँ,

 चोरी का सामान हाथों में लिए!

 "तो ये खेल है न?" उसने पूछा,

 "नहीं आद्रा! ये खेल था, अब नहीं!" मैंने कहा,

 वो मुस्कुरायी!

 "कोई बात नहीं! सब ने खेल खेल है मुझसे, पिता जी ने, गौरांग ने, भाई ने! और अब आ......." वो बोली,

 वो बोलती, इस से पहले ही,

 उसके हथों पर हाथ रख दिया मैंने!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

 "नहीं आद्रा! मैं नहीं!" मैंने कहा,

 मुझे बहुत दुःख हुआ,

 बहुत दुःख,

 सच में,

 खेल ही तो खेल था मैंने!

 और अब उस खेल में खुद ही फंस गया था मैं!

 सच ही तो कह रही थी वो!

 पर,

 सच कड़वा होता है,

 सच का एक एक शब्द, कान के परदे फाड़ देता है!

 और यहाँ तो मेरे मन में फाड़ पड़ गया था!

 ये खेल बहुत भारी पड़ा था मुझे!

 बहुत भारी!

 मैंने हाथ हटाया,

 और उसने चेहरा झुकाया,

 मैंने उसका चेहरा उठाया,

 मोटी मोटी आँखों से,

 मोटे मोटे आंसू टपक रहे थे!

 ये मेरे छल का फल था!

 आंसू उसके भले ही थे,

 लेकिन रूदन मेरा ही था वो!

 मेरा ही था!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

मैंने हाथ से उसके आंसू साफ़ कर दिए,

 "आद्रा, मुझे तक़लीफ़ नहीं दो" मैंने कहा,

 मुस्कुरायी वो,

 "सच में, नहीं दो तक़लीफ़, मैं क्षमा मांगता हूँ, क्षमा कर दो मुझे" मैंने कहा,

 गला रुंध गया मेरा ये कह कर!

 वो मुस्कुरायी,

 होंठ फैले उसके थोड़े,

 "आद्रा! तुम बहुत भोली हो! और समझदार भी!" मैंने कहा,

 उसने देखा मुझे,

 "जब स्थान अपना हो जाए, तो इत्मीनान से रहो वहाँ!" मैंने कहा,

 उसने सर हिलाया,

 "कल चुनौती देने गौरांग को, बाबा पांडु स्व्यं जायेंगे!" मैंने कहा,

 वो चौंकी!

 सन्न!

 "बाबा पांडु?" वो बोली,

 "हाँ!" मैंने कहा,

 और अब!

 अब वो मेरी तरफ थी!

 हर प्रकार से!

 हर, प्रकार से!

 अब उसने मुझे बाबा गौरांग के भेद बताये!

 उसकी प्रबलता, और कुछ कमियां!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

कुछ में वो बहुत निपुण था,

 और कुछ में मूढ़!

 हाँ!

 वो सरंक्षण में लड़ता उस देव-कन्या के,

 और इसका समाधान भी,

 मुझे दादू बाबा ने बता ही दिया था!

 बस अब देर थी तो,

 बस उसके चुनौती स्वीकार करने की!

 मैं तो ऋणी हो गया आद्रा का!

 सारी आवश्यक जानकारी मिल गयी थी मुझे!

 "एक बात पूछूं?" मैंने पूछा,

 "हाँ?" वो बोली,

 "मुझे भगाया क्यों था तुमने वहाँ से? आराम से भी तो कह सकती थीं?" मैंने हंस के कहा,

 वो हंसने लगी!

 "वो गौरांग ने कहा था!" वो बोली,

 "तुम तो नहीं चाहती थीं?" मैंने पूछा,

 "चाहती तो आपसे आज बात भी नहीं करती!" वो बोली,

 ये तो सोचा ही नहीं मैंने!

 हाँ! ये तो है ही!

 बात तो छोड़ो!

 मेरे सामने बैठी थी!

 कमरा बंद था!


   
ReplyQuote
Page 6 / 16
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top