लगता था जैसे कि,
उस देव-कन्या से कुछ चुरा लिया था उसने!
"प्रणाम!" मैंने कहा,
"प्रणाम" उसने भी कहा,
तभी एक लड़की पानी ले आयी,
हमने पानी पिया तब,
और गिलास रख दिए,
"कहाँ से आये हैं?" उसने पूछा,
"काशी से" मैंने कहा,
"आप काशी के तो नहीं लगते?" वो बोली,
"मैं दिल्ली से हूँ और ये भी" मैंने कहा,
"अच्छा, प्रयोजन बताइये" उसने पूछा,
"बाबा गौरांग से मिलना है" मैंने कहा,
"वो तो यहाँ नहीं है" वो बोली,
"हाँ, पता चला मुझे वो काशी गए हैं" मैंने कहा,
"हाँ" वो बोली,
फिर कुछ पल शान्ति,
"क्या प्रयोजन है? बताया नहीं आपने?" उसने पूछा,
अब कैसे बोलूं?
सीधा ही बोल दूँ?
नहीं नहीं!
युक्तिपूर्ण तरीक़े से काम लेना होगा!
"मुझे बाबा पांडु ने भेजा है" मैंने कहा,
उसके चेहरे के भाव बदल गए!
क्रोध तो नहीं,
बस अजीब ही भाव थे!
"किसलिए?" उसने पूछा,
"वो चाहते हैं कि वो देव-कन्या मुक्त हो जाए" मैंने कहा,
"अच्छा! तो आप आये हो ये सन्देशा लेकर!" वो बोली,
"हाँ, मुझे ही भेजा है" मैंने कहा,
"तो जैसे आये हो, वैसे ही वापिस चले जाओ!" वो बोली,
बस!
काम ख़तम!
हो गयी बात!
हम खड़े हो गए!
उसने देखा हमको!
"बैठो" उसने कहा,
अजीब तो लगा,
लेकिन बैठ गए हम!
"बाबा पांडु के गुरु ने स्वयं ही दिया था वो पात्र, समझे?" उसने कहा,
"नहीं! ऐसा नहीं है" मैंने कहा,
"तो फिर कैसा है?" उसने पूछा,
"आपके ये गुरु गौरांग चुरा के ले आये उसको!" मैंने कहा,
वो हंस पड़ी!
"चुरा के लाये?" उसने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
"नहीं! लड़ कर लाये!" वो बोली,
मैं चौंका!
"किस से लड़ कर?" मैंने पूछा,
"बाबा पांडु से लड़ कर!" वो बोली,
अब आया समझ!
लेकिन ये तो बताया ही नहीं?
अब कैसे यक़ीन किया जाए?
खैर,
"समझे?" उसने कहा,
"हाँ, समझ गया" मैंने कहा,
"कहाँ ठहरे हो?" उसने पूछा,
"कहीं नहीं, सीधा यहीं आये हैं" मैंने कहा,
"कहाँ ठहरोगे?" उसने पूछा,
"पता नहीं" मैंने कहा,
उसने अपना फ़ोन लिया,
और एक जगह फ़ोन किया,
बात की,
हमारा ही ज़िक्र था उसमे,
फ़ोन बंद कर लिया,
और मुझे देखा,
"यहाँ से जब निकलोगे तो प्रह्लाद लिखा होगा एक जगह, वहाँ चले जाना, वहाँ आपको योगेश मिलेगा, बस, वहीँ रुक जाना" वो बोली,
अजीब बात थी!
अभी तो भगा रही थी!
और अब?
"एक बात पूछूं?" मैंने कहा,
"मैं जानती हूँ, उत्तर है कि मैं चाहती हूँ कि आप एक बार बाबा गौरांग से मिल कर सारी बात जान लो" वो बोली,
हाँ!
यही तो पूछना चाहता था मैं!
उत्तर मिल गया था मुझे!
"धनयवाद!" मैंने कहा,
"कोई बात नहीं!" वो बोली,
और हम भी खड़े हुए,
और वो भी!
हम बाहर आये कक्ष के,
और जूते पहने,
उसको देखा,
मैं मुस्कुराया!
वो भी!
और फिर प्रणाम कर,
वहाँ से वापिस हो लिए हम!
अब पहुंचे वहीँ उस स्थान पर,
एक जगह प्रह्लाद लिखा था,
अंदर गए,
योगेश से मिले,
और वो फिर हमको एक कक्ष में ले आया,
अच्छा कक्ष था ये!
और फिर हमने सामान रखा!
और योगेश बाहर गया!
मैं लेट गया!
शर्मा जी भी!
तभी योगेश पानी ले आया,
और अब हमने पानी पिया!
और वो फिर चला गया!
"शर्मा जी?" मैंने कहा,
"हाँ?" वे बोले,
"लड़ कर लाया ये गौरांग!" मैंने कहा,
"लाया होगा!" वे बोले,
"तो अब क्या किया जाए?" मैंने पूछा,
"आप बात करो बाबा पांडु से?" वे बोले,
हाँ!
ये ठीक था!
मैंने पांडु बाबा से बात की,
और उन्होंने किसी भी लड़ाई के बारे में मना कर दिया!
और कौन सच बोल रहा था?
आद्रा?
या फिर बाबा पांडु?
क्या किया जाए?
तो हम अब आराम कर रहे थे!
अभी कोई घंटा ही बीता होगा,
कि योगेश आया,
अपना फ़ोन लेकर,
और मुझे दे दिया,
ये आद्रा थी,
बात की मैंने अब,
"पहुँच गए न?" उसने कहा,
"हाँ, आराम से" मैंने कहा,
"ठीक है, कुछ चाहिए हो तो योगेश से कह देना आप" वो बोली,
"हाँ, धन्यवाद!" मैंने कहा,
और फिर फ़ोन मैंने योगेश को दे दिया,
योगेश फ़ोन को,
कान पर लगाए, चला गया बाहर,
फिर आ गया,
"कुछ भोजन करना है क्या?" उसने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
चला गया वो फिर!
दस मिनट के बाद,
एक सहायक आया वहाँ,
दो थालियां लेकर!
मैंने थाली ले ली एक,
और एक शर्मा जी ने!
फिर वो बाहर चला गया,
और पानी ले आया जग में, साथ ही दो गिलास भी,
हम भोजन करने में जुट गए अब!
भोजन कर लिया हमने,
और बर्तन रख दिए नीचे,
पानी पिया,
और अपने अपने कंबल खोले अब!
और लेट गए!
लेटे तो जम्हाइयां आने लगीं!
और फिर सो गए हम!
बाहर नाम-मात्र को ही धूप थी!
और अब ठंड बढ़ने लगी थी!
अब मैं तो गया सो!
शर्मा जी ने भी अपना कंबल ताना और वे भी सो गए!
कौन आया,
कब बर्तन उठे,
कुछ नहीं पता!
जब आँख खुली,
तो पांच बजे थे,
अँधेरा सा हो गया था बाहर,
बत्तियां तो नहीं जली थीं,
लेकिन कहीं कहीं किसी कक्ष में जल गयी थीं!
मैंने अब शर्मा जी को भी उठा दिया,
अलसाये से, वे भी उठ गए!
अब मैंने दरवाज़ा खोला कक्ष का,
तो एक सहायक आता दिखायी दिया,
चाय लाया था,
वाह!
अंदर आया और दो कप में चाय डाल दी उसने,
और फिर चला गया!
अब चाय पी हमने!
अदरक वाली चाय थी!
मजा आ गया!
आना ही था!
सर्दी में अगर गरम गरम चाय मिल जाए, वो भी अदरक वाली,
तो क्या कहने!
हम फिर से बैठ गए,
यहाँ वहाँ की बातें करने लगे!
अब हुई शाम!
याद आये जाम!
लगी हुड़क!
मैंने एक सहायक को बुलाया,
वो आया,
अब मैंने उस से पानी और,
साथ में कुछ लाने के लिए कहा,
वो समझ गया कि,
पानी रंगना है हमको!
मुस्कुराया और चला गया!
फिर आया!
जग में पानी, दो गिलास,
और साथ में कुछ सलाद,
सलाद के नाम पर, टमाटर और प्याज,
नमक छिड़का हुआ और एक नीम्बू!
मैंने कुछ और माँगा उस से लाने के लिए,
तभी योगेश आ गया अंदर!
उसने सहायक को समझाया और सहायक चला गया!
"माल है?" उसने पूछा,
"हाँ, है" मैंने कहा,
"अच्छा" वो बोला,
"आओ बैठो?" मैंने कहा,
"आप करो काम! मैं रात में करूँगा!" वो बोला,
"अरे दो दो हो जाएँ साथ!" मैंने कहा,
वो हंसा!
और फिर बैठ गया!
सहायक आ गया!
अब लाया था वो कड़क माल!
खुशबूदार!
एक गिलास और मंगा लिया योगेश ने!
और हमने अब शुरू किया मदिरा का चीर-हरण!
"आप कहाँ से आये हैं?" उसने पूछा,
"दिल्ली से" मैंने कहा,
"बड़ी दूर से!" वो बोला,
"हाँ" मैंने कहा,
"आप आद्रा जी को कैसे जानते हैं?" उसने पूछा,
अब मैंने उसको सारी बात बतायी!
वो चौंका!
"बाबा गौरांग से मिलने आये हो आप?" उसने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
"बहुत क्रोधी है ये बाबा!" वो बोला,
मैं चौंका!
"क्रोधी?" मैंने पूछा,
"हाँ" वो बोला,
"कैसे?" मैंने पूछा,
"अपनी मर्जी करता है! मुझे उसी ने भगाया था वहाँ से" वो बोला,
"अच्छा!" मैंने कहा,
"हाँ" वो बोला,
अब मैंने उस से पूछा, बाबा पांडु के बारे में, असली कहानी के बारे में!
तो अब पता चला कि,
बाबा पांडु सही हैं!
गौरांग बाबा ही चुरा के लाया था वो पात्र!
आ गयी समझ कहानी अब!
पर अब एक बात और!
आद्रा क्यों झूठ बोल रही थी?
ये बात पूछी अब मैंने योगेश से!
योगेश ने बताया कि उसको मालूम ही नहीं है!
आद्रा को केवल वही मालूम है,
जो उसको बताया है बाबा गौरांग ने, बस!
कुछ भी हो,
कहानी में पेंच था अभी!
और भी बातें खुलीं अब!
"ये आद्रा यहाँ कैसे है?" मैंने पूछा,
"आद्रा के पिता का ही स्थान है वो" वो बोला,
"अच्छा! और गौरांग यहाँ बाद में आया है?" मैंने पूछा,
"हाँ, कोई चार बरस पहले" वो बोला,
"और आद्रा के पिता?" मैंने पूछा,
"देहांत हो गया है उनका" वो बोला,
"अच्छा.." मैंने कहा,
"तो वो पात्र जो है, वो आद्रा के पास है, है न?" मैंने पूछा,
"हाँ" वो बोला,
"गौरांग ने दिया है?" मैंने पूछा,
"आद्रा के पिता ने" वो बोला,
"अच्छा! गौरांग ने वो पात्र आद्रा के पिता को दिया होगा, और आद्रा को उसके पिता ने दिया होगा!" मैंने कहा,
"हाँ!" वो बोला,
"समझ गया!" मैंने पूछा,
"इसीलिए गौरांग यहाँ है!" मैंने कहा,
"हाँ" वो बोला,
"आद्रा का कोई भाई नहीं है?" मैंने पूछा,
"है" वो बोला,
"कहाँ?" मैंने पूछा,
"काशी में" वो बोला,
"ओह! तो ये गौरांग वहीँ गया है!" मैंने कहा,
"हाँ!" वो बोला,
गौरांग ने जाल फैला रखा था!
"क्या गौरांग साधना में बिठाता है आद्रा को?" मैंने पूछा,
"नहीं" वो बोला,
"फिर?" मैंने पूछा,
"आद्रा स्व्यं ही बैठती है" वो बोला,
अच्छा! ये है बात!
"अच्छा! उस देव-कन्या के सरंक्षण में!" मैंने कहा,
"हाँ, और गौरांग भी ऐसा ही करता है!" वो बोला,
अब मुसीबत थी!
यदि द्वन्द हुआ,
तो ये गौरांग पराजित नहीं किया जा सकता सरलता से!
समझ गया!
योगेश ने बहुत जानकारी दी थी!
बहुत सटीक!
बस अब मिलना ही शेष था!
और फिर मुझे निर्णय लेना था!
कि क्या करना है आगे!
यदि द्वन्द हुआ,
तो मुझे सहायता लेनी पड़ेगी,
सहायता,
बाबा दादू नाथ से!
वे सम्भाल लेंगे इस देव-कन्या का प्रहार!
कहानी फिर से उलझ गयी थी!
किस ओर जा रही थी,
अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल था!
योगेश ने सब कुछ बता दिया था!
जैसे उसने बाबा गौरांग की पोल खोल दी हो!
उस रात हमने खाया-पिया और फिर अपने अपने कंबल तान सो गए!
नींद बहुत बढ़िया आयी!
अंग्रेजी के ज़ेड आकार में सो रहे थे हम!
ठंड ऐसी थी कि जहां ज़रा सा सूराख दीखता ठंड को,
तो वहीँ से सेंध लगा लेती थी!
सुबह हुई!
और हम जागे!
खिड़की से बाहर झाँका,
धुंध तो खो-खो खेल रही थी!
लगता था कि,
बादल वहीँ उतर आये हैं!
हमे ही ताड़ रहे हैं!
रात भर प्रतीक्षा की है उन्होंने!
मैंने दरवाज़ा खोला,
कंबल लपेटा ही हुआ था,
टोपी के महीन सूराखों से ठंड की,
सिलाईयां खोपड़ी में घुस गयीं!
कान ठंडे हो गए!
मुंह से धुंआ छूटा,
साँसें लेते हुए!
शर्मा जी भी आ गए बाहर,
ठंड के मारे सिहर उठे!
फ़ौरन ही सिगरेट सुलगा ली उन्होंने,
धुंध को साथी मिला,
वो धुंआ,
सिगरेट का धुंआ!
मैं तो अंदर आ बैठा,
फिर कुल्ला-दातुन करने गुसलखाने गया,
निवृत हुआ,
पानी ने तो सारी शत्रुता निकाल ली!
ठंड का साथी हो गया था वो!
हमसे अब बग़ावत कर दी थी उसने!
खुल कर!
मैं सीधा अपने बिस्तर पर आया,
और, कंबल में दुबक कर बैठ गया!
शर्मा जी भी,
उस सिगरेट को अपने अपने जूते से कुचलते हुए आये अंदर,
और गुसलखाने चले गये!
दो चार भजन के से स्वर आये,
गुसलखाने से!
ये पानी से युद्ध था उनका!
इसीलिए शक्ति अर्जित की थी उन्होंने!
आ गए वापिस!