रह गए मैं,
और शर्मा जी वहाँ,
"जिन्नाती मामला लगता है ये" वे बोले,
"हाँ, वही है" मैंने कहा,
"फंस गयी ये लड़की तो" वे बोले,
"हाँ! फंस ही गयी!" मैंने कहा,
"अब पता नहीं माने या न माने" वे बोले,
"कोशिश तो करनी होगी" मैंने कहा,
"हाँ" वे बोले,
"चलते हैं कल, देख लेते हैं" मैंने कहा,
"हाँ कल सुबह ही निकलते हैं" वे बोले,
"ठीक रहेगा" मैंने कहा,
"मैं आज यहीं रुक जाता हूँ" वे बोले,
"हाँ, ठीक है" मैंने कहा,
"ये तावडू के आसपास जिन्नाती आबादी बहुल में है" वे बोले,
"हाँ, कई गाँव हैं वहाँ" मैंने कहा,
"कोई हो गया होगा आशिक़!" वे बोले,
"यही बात है" मैंने कहा,
"चलो, कल देखते हैं" वे बोले,
"हाँ" मैंने कहा,
और मैं उठकर,
अंदर आ बैठा,
वे भी आ गए,
तभी भूरा भी आ गया,
पूंछ हिलाता,
"पानी चाहिए?" मैंने पूछा,
पंजे रख लिए उसने मेरे ऊपर,
"चल आ" मैंने कहा,
और वो चल पड़ा मेरे साथ,
बाल्टी में पानी नहीं था,
इसीलिए आया था,
मैंने पानी भरा,
तो पी लिया पानी,
और खिसक लिया,
अपने साथियों के पास!
मैं फिर से अंदर आ गया, और लेट गया!
शर्मा जी,
अपने फ़ोन पर,
कबीरवाणी सुनने लगे!
मैं भी सुनने लगा!
और फिर आँख लग गयी!
सो गया मैं तो!
अगले दिन,
सुबह आठ बजे तक,
हम नहा-धोकर,
नाश्ता आदि कर,
तैयार हो गए थे,
एक पूजन कर,
हम वहाँ से निकल लिए,
दिल्ली का भारी यातायात निकाला किसी तरह,
गुड़गांव पहुंचे,
और यहाँ से अब,
सीधा अलवर के लिए चले,
अलवर शहर में ही रहा करते थे,
ये किशोर साहब,
काफी ज़मीन थी उनके पास,
पुश्तैनी व्यवसाय था उनका,
घर में, किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी,
सुख था घर में,
दोनों भाई,
एक ही मकान में रहा करते थे,
और दोनों के परिवार भी,
हम करीब साढ़े तीन घंटे में,
अलवर पहुँच गए थे,
वहाँ से,
फ़ोन किया किशोर साहब को,
वे हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे,
और हम पहुँच गए उनके घर,
जब मैं पिछली बार आया था तो,
दो मंजिला घर था,
अब एक मंजिल और डाल दी थी,
अपनी ज़रुरत के हिसाब से,
खैर,
हम घर में घुसे,
और घुसते ही,
मुझे तेज गुलाब इत्र की सुगंध आयी!
जैसे गुलाब का इत्र,
फेंक दिया गया हो वहाँ,
या पीपा फट गया हो उसका!
बड़ी तेज महक थी,
नाक में और गले तक जा पहुंची थी,
आखिर मुझे छींक आ ही गयी!
पानी पिया अब,
और फिर चाय आदि आ गयी,
कुशलक्षेम आदि पूछी गयी,
और फिर आराम किया हमने!
करीब घंटे बाद, किशोर जी आये,
भोजन की पूछी,
तो अब हम भोजन करने,
नीचे चले गए!
भोजन किया!
और तब मैंने किशोर जी से,
उस लड़की के बारे में पूछा,
"आइये" वे बोले,
और अब हम दोनों ही,
उनके साथ चले,
कमरा बंद था उस लड़की का,
उन्होंने दस्तक दी,
कुछ ही देर में दरवाज़ा खुला,
भूतिया अंदाज़ में,
पल्ल्वी ने दरवाज़े की चिटकनी खोल दी थी,
और खुद अपने बिस्तर में जा लेटी थी,
तभी दरवाज़ा अपनी मनमानी से खुला,
धीरे धीरे!
भूतिया अंदाज़ में!
"आइये" वे बोले,
और हमने अंदर प्रवेश किया!
इत्र का भड़ाका उठा!
यहीं से आ रही थी उस इत्र की महक!
"पल्ल्वी?" आवाज़ दी उन्होंने अपनी बेटी को!
तो वो,
चौंक के उठी!
उठते ही,
मुझे घूरा!
जैसे मैं कोई शत्रु होऊं उसका!
हाँ, उसका बदन,
भर गया था अब!
मांसल हो गयी थी,
गाल फूल गए थे!
शरीर में कहीं भी,
हड्डी का तो अता-पता भी नहीं था!
लिपस्टिक लगा रखी थी,
गहरे गुलाबी रंग की!
कोई उसका,
बड़े क़रीने से ख़याल रख रहा था!
"पापा? कौन हैं ये? ले जाओ इनको वापिस, मैंने नहीं मिलना" वो बोली,
"पल्ल्वी?" चिल्लाये किशोर साहब उस पर,
"क्या है? नहीं मिलना?" वो बोली,
"तमीज से बात कर?" हाथ उठाते हुए बोले वो!
"ले जाओ इनको अभी" वो बोली,
चुटकी बजाते हुए!
"होश में तो है?" वे बोले,
"आप नहीं हो होश में पापा!" वो बोली,
बदतमीज़ी से!
अब था नहीं गया किशोर साहब से,
वो गए उसके पास,
उसकी माँ को आवाज़ दी,
वो दौड़ीं आयीं,
किशोर साहब ने उनको सबकुछ बता दिया,
माँ बैठ गयी बेटी के पास,
लेकिन वो माने ही नहीं!
बहुत गुस्से में थी वो!
मैं समझ सकता था,
उसके गुस्से का कारण!
मैंने तभी कलुष-मंत्र चलाया,
और नेत्र खोले,
दृश्य ही बदल गया वहाँ का!
गुलाब के फूल पड़े थे वहाँ!
ताज़े,
सुर्ख लाल रंग के!
बड़े बड़े,
और वो लड़की,
चमक रही थी!
असरात थे उसमे उस जिन्न के!
मैं खड़ा हुआ,
और गया उस लड़की के पास,
जैसे ही गया,
वो रोने लगी!
डरने लगी!
अपनी माँ से चिपक गयी!
"पल्ल्वी?" मैंने कहा,
उसने सर हटाया अपना,
और मुझे देखा,
मैंने उसको देखा,
जिन्नाती असरात से उसकी आँखें,
भक्क काली और नीलिमा लिए हुए थीं!
"मैं तुमको नुक्सान पहुंचाने नहीं आया!" मैंने कहा,
"जाओ यहाँ से" वो बोली,
"ऐसे नहीं जाऊँगा!" मैंने कहा,
उस लड़की ने,
पास रखा अपना फ़ोन,
मुझ पर फेंक मारा,
मेरे माथे से लगा वो,
लेकिन मैं खड़ा रहा,
उसके माँ बाप अब लताड़ने लगे उसको!
समझाने लगे!
लेकिन न उसने समझना था,
और न ही वो समझी!
वो अब घूरने लगी थी मुझे!
खा जाने वाली निगाहों से!
"किशोर जी?" मैंने कहा,
"जी?" वे आये मेरी तरफ और बोले,
"आप दोनों चले जाइये यहाँ से, कितना भी शोर हो, नहीं आइये अंदर" मैंने कहा,
अब वे दोनों,
उस लड़की को समझा कर,
चले गए,
इतने में,
मैंने,
शर्मा जी के नेत्र पोषित कर दिए!
अब लड़की रोई!
चिल्लाई!
मम्मी-पापा!
चिल्लाती रही!
"लड़की?" मैंने कहा,
वो सहमी,
मुझे देखा,
"कौन है वो?" मैंने पूछा,
वो घबरायी अब!
डर गयी!
इधर उधर देखने लगी!
"बता?" मैंने पूछा,
नहीं बोली कुछ,
बस, घूरती रही!
"बता?" मैंने कहा,
नहीं बताये कुछ भी!
"नहीं बताएगी?" मैंने पूछा,
चुप!
"ठीक है! देख तू अब!"
अब मैंने अपनी जेब में रखा,
अपना छोटा बैग निकाला,
भस्म थी इसमें!
मैंने अभिमत्रित की ये भस्म!
और उस लड़की के ऊपर,
ज़ोर से फेंक मारी!
लड़की तो बैठी रही!
पर सारी बत्तियां बंद हो गयीं!
पंखा भी बंद हो गया!
अँधेरा हो गया कमरे में,
बस रौशनदान से छनता,
प्रकाश ही आ रहा था अंदर!
लेकिन मुझे घूरती जाए वो!
गुस्से में भड़कती जाए वो!
कोई नहीं आया!
कोई प्रकट नहीं हुआ!
हैरान था मैं!
मैंने फिर से भस्म निकाली!
अभिमंत्रित की,
और फिर से फेंक मारी!
अबकी लड़की कराह पड़ी!
लेट गयी,
पसलियां पकड़ कर,
तड़पने सी लगी!
और यही मैं चाहता था!
कि,
अगर ये परेशान होगी,
तो इसका आशिक़ ज़रूर आएगा!
और हुआ भी ऐसा!
प्रकाश फूटा!
और एक सजा-सजीला नौजवान जिन्न प्रकट हुआ!
काले बाल उसके,
चौड़ा सीना,
मज़बूत भुजाएं,
नीले रंग के वस्त्रों में!
पांवों में,
लाल रंग की जूतियां पहने!
सुंदर!
बहुत सुंदर!
पौरुष का परम!
करीब आठ फीट ऊंचा!
गोरा-चिट्टा!
कसा हुआ चेहरा!
सुतवां नाक उसकी!
हलकी लोहरेदार दाढ़ी उसकी,
सुनहरी सी!
महक आये,
गुलाब की महक!
उस पर तो कोई भी लड़की,
स्त्री रीझ जाती!
ईमान डोल जाता उसका!
यक़ीनन!
उसने आते ही,
उस लड़की को छुआ,
लड़की ठीक!
फिर वो मेरी तरफ पलटा,
मेरी तरफ!
"चले जाओ यहाँ से, इसी वक़्त!" वो बोला,
"मैं नहीं जाऊँगा! बल्कि तू जाएगा!" मैंने कहा,
"जानता है मैं कौन हूँ?" वो बोला,
"हाँ जिन्न है तू!" मैंने कहा,
"अबरार! अबरार नाम है मेरा!" वो बोला,
"अच्छा! अबरार!" मैंने कहा,
"इसे क्यों तंग कर रहा है तू?" उसने पूछा,
"मैंने तंग नहीं किया!" मैंने कहा,
"फिर किसने किया?" उसने गुस्से से पूछा,
"तूने! तूने तंग किया इस लड़की को!" मैंने कहा,
"क्या बकता है?" वो बोला,
"बक नहीं रहा मैं अबरार! सच कह रहा हूँ! तेरी जात अलग है, और हम आदमजात! तू आतिश है! तेरा इस आदमजात लड़की से कैसा मेल-जोल?" मैंने समझाया उसको!
"मैं कुछ नहीं जानता! ये माशूका है मेरी!" वो बोला,
"फिर से सोच ले! नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा!" मैंने कहा,
वो हंसा!
"तू! तू बतायेगा मुझे मेरा अंजाम!" वो बोला,
"हाँ, मैं!" मैंने कहा,
"तेरी क्या औक़ात?" वो बोला,
"सोच ले अबरार! फिर से सोच ले!" मैंने कहा,
"चल! दफा हो जा! कभी नहीं टकराना! खाक़ कर दूंगा तुझे उसी लम्हे!" वो बोला,
धमकी दी उसने मुझे!
मैं हंसा!
बहुत तेज हंसा!
अब वो,
आया धनक के मेरी तरफ!
जैसे ही आया,
रुक गया!
मेरे तंत्राभूषणों की गंध मिली उसको!
"क्या हुआ अबरार?" मैंने पूछा,
उसने उस लड़की को देखा,
उसके चेहरे पर,
हाथ फेरा,
और हाथ फेरते ही,
वो लुढ़क गयी बिस्तर पर!
सो गयी थी!
"बताता हूँ" वो बोला,
और गायब हुआ!
मैं समझ गया था कि खान गया है वो!
किसी आलिम जिन्न को लेने!
ताकि वो भिड़ सके मुझसे!
कुछ ही पल बीते,
और वहाँ अबरार के साथ,
एक और जिन्न हाज़िर हुआ!
ये ही आलिम था!
सफ़ेद वस्त्रों में!
कद्दावर जिन्न!
टोपी लगाए!
जैसे साफ़ा बाँधा हो!
उस साफे की लट,
पीछे तक लटकी थी!
मुझे घूर के देखा उसने!
"क्या यही है वो?" उसने पूछा अबरार से!
"हाँ! यही है!" वो बोला,
"कौन है तू?" वो आलिम बोला!
''आदमजात हूँ! आदमजात!" मैंने कहा,
"दफा हो यहाँ से ओ आदमजात!" वो गुस्से से बोला!
मैं हंसने लगा!
"तुम आलिम हो न?" मैंने पूछा,
"हाँ, हूँ? तो?" उसने पूछा,
"ये ही इल्म सीखा है?" मैंने पूछा,
"कैसा इल्म?" उसने पूछा,
"धमकाना!" मैंने कहा,
और हंसने लगा!
"खामोश!" आलिम चिल्लाया!