"हाँ! सौम्या! कैसी हो!" मैंने पूछा,
कुछ नहीं बोली वो!
अब मैंने उसकी माँ की तरफ देखा, उन्होंने मुझे देखा!
"इस से कहिये कि मुझे जवाब दे" मैंने कहा,
उसकी माँ ने उसको समझाया, लेकिन इस बार भी उसने हाथ झटक दिया उनका!
"हाँ सौम्या, कैसी हो?" मैंने पूछा,
अब वो गुस्से में लाल हुई!
आँखें फाड़ ली उनसे अ[नि जितनी फाड़ सकती थी!
ये देख अब उसके माँ-बाप सिहरे!
और मैं मुस्कुराया!
"कौन है तू?" मैंने पूछा,
"तुझे मतलब?" अब एक मर्दाना आवाज़ आयी उसके गले से!
ये सुन अब उसके माँ-बाप एक दूसरे से चिपके! गला अवरुद्ध हो गया, होंठ मुंह के अंदर हो गए! और गोपाल जी तो जैसे कांपने ही लगे!
"मतलब? तू इस घर में कैसे घुसा?" मैंने पूछा,
"मेरी मर्जी" उसने कहा,
"अच्छा! तेरी मर्जी!" मैंने कहा,
"हाँ, मेरी मर्जी" वो बोली,
"क्या नाम है तेरा?" मैंने पूछा,
"क्यों? क्यों बताऊँ?" उसने पूछा,
"नाम क्या है तेरा?" मैंने पूछा,
"क्यों बताऊँ???" उसने कहा,
"नहीं बतायेगा?" मैंने पूछा,
"तू जान ले!" उसने कहा,
"वो तो मैं जान ही लूँगा!" मैंने कहा,
"तो जान ले!" उसने कहा,
"मतलब कि तू नहीं बतायेगा?" मैंने पूछा,
"नहीं" उसने कहा,
"शर्मा जी, ज़रा बैग दीजिये मेरा" मैंने कहा,
उन्होंने छोटा वाला बैग मुझे दे दिया,
मैंने उसमे से भस्म निकाली, हथेली पर राखी अपने और अभिमंत्रित किया!
"बताता है या पिट के बतायेगा?" मैंने पूछा,
उसने मेरी हथेली देखी!
'हाँ, बताता है?" मैंने पूछा,
वो चुप!
"बता?" मैं चिल्लाया!
"नहीं बताता" उसने धीरे से कहा,
अब मैंने आव देखा न ताव वो भस्म उसके ऊपर फेंक मारी, उसने छलांग लगाईं और पीछे गिरी बिस्तर पर! चिल्लाते हुए! ये देख गोपाल जी और रेणु जी की भी चीख निकल आयी! शर्मा जी ने उनको शांत किया, और चुप रहने को कहा!
"हाँ?" अब मैं उसके पास गया!
उसने जैसे दीवार में घुसने की कोशिश की! चिपक गयी दीवार से!
"हाँ, नाम बताता है?" मैंने पूछा,
अब वो थर थर कांपने लगी!
"मम्मी! मम्मी! पापा! मुझे बचाओ" वो धीरे से मिमियाती आवाज़ में बोली! मर्दाना आवाज़ गायब हो गयी थी!
शर्मा जी ने उन्हें फिर से चुप बैठे रहने को कहा!
"हाँ, कौन है तू?" मैंने पूछा,
"सा..सावित्री" उसने कहा,
"कौन सावित्री?" मैंने पूछा,
"सावित्री" उसने कहा,
"कौन है ये सावित्री?" मैंने पूछा उस से!
अब चुप वो!
मैंने गोपाल जी और रेणु से पूछा कि क्या वो किसी सावित्री को जानते हैं? उन्होंने मना कर दिया! अर्थात ये बाहर की चीज़ थी!
"चल, बता कौन सावित्री? और यहाँ कहाँ से आयी तू?" मैंने पूछा,
चुप कर गयी!
"नहीं बताएगी?" मैंने फिर से धमकाया उसे,
और तभी वो खड़ी हुई, बिस्तर पर खड़ी हो गई, सर नीचे झुका लिया झटके खाते हुए! और फिर इधर-उधर झूलने लगी! मैं समझ गया! एक नयी आमद है ये! ये देख गोपाल जी और रेणु जी दोनों ही बुरी तरह से घबरा गए! उन्होंने न कभी ऐसा देखा था और नहीं कभी सुना ही था! लेकिन आज ऐसा उनके घर में ही हो रहा था, वो भी इनकी लाड़ली बेटी के साथ!
सौम्या ने एक झटके के साथ चेहरा उठाया! और मुझे घूरा! फिर ठहाके मार कर हंसी! ये सब प्रेत-माया थी!
"कौन है तू?" मैंने पूछा,
उसने फिर से ठहाका लगाया!
"बता?" मैंने कहा,
फिर से ठहाका!
"नहीं बताएगी?" मैंने कहा,
अब मैंने फिर से अपना बैग उठाया, उसमे से फिर से एक चुटकी भस्म निकाली और अभिमंत्रित किया और उछाल कर फेंक मारा उसके ऊपर! भस्म के टकराते ही कई आवाज़ें निकलीं! औरतों की, मर्दों की और वो नीचे बैठ गई अपनी आँखें ढक कर! जैसे आँखों में लाल सुर्ख सलाखें घुसेड़ दी गयीं हों! वो रोई, चिल्लाई और धीरे धीरे बिस्तर पर गिर गयी!
"कौन है?" मैंने पूछा,
"माफ़ कर दो हमे, माफ़ कर दो" वो बोली! कई आवाज़ें एक साथ निकलीं उसके गले से! भर्राई हुई आवाज़ें!
"कौन हो तुम? कहाँ से आये हो?" मैंने पूछा,
कोई जवाब नहीं आया!
"जवाद दे मुझे?" अब मैंने गुस्से में आया!
उसने कोई जवाब नहीं दिया!
अब मैं आगे बढ़ा!
मैंने उस लड़की सौम्या के बाल पकडे और चेहरा अपनी तरफ खींचा, पता था ये गोपाल जी और रेणु को बुरा तो लगेगा लेकिन उस समय आवश्यकता यही थी! अब तक उन्होंने जो देखा था, उसे देखकर ऐसा नहीं लगता था कि उनको बुरा लगेगा! सो मैंने उसका चेहरा बाल पकड़ कर देखा, उसने फ़ौरन आँखें बंद कीं अपनी, और बेजान सी हो गयी!
"कौन है तू?" मैंने पूछा,
कोई उत्तर नहीं दिया!
अब मैंने महा-भंजन मंत्र पढ़ा, उसने तभी आँखें खोलीं!
मैं तभी थूक अंदर गटक गया!
"हाथ जोड़े अपने और बोली, "माफ़ कर दो, माफ़ कर दो"
"मुझे बता कौन है तू? कहाँ से आया है?" मैंने पूछा,
"ये आयी थी" वो बोली,
"कौन ये?" मैंने पूछा,
"कौन ये?'' मैंने पूछा,
"ये लड़की" उसने कहा,
"तू सावित्री है?" मैंने पूछा,
"हाँ" उसने कहा,
"कहाँ आयी थी ये लड़की?" मैंने पूछा,
"इटारसी" उसने कहा,
"इटारसी?" मैंने पूछा,
"हाँ" वो बोली,
"अकेली?" मैंने पूछा,
"नहीं" उसने जवाब दिया,
"चुप कर ज़रा" मैंने कहा,
अब मैंने उसको छोड़ा, वो सहम के बैठ गयी वहाँ, इक-हल्लर हो कर!
"गोपाल जी?" मैंने पूछा,
"जी......जी?" वे अपने भय से बाहर आकर बोले,
"कौन है इटारसी में आपका?" मैंने पूछा,
"जी कोई भी नहीं" वे बोले,
"रेणु जी? क्या आपका कोई जानकार?" मैंने पूछा,
अब वो संकुचायीं!
कुछ गड़बड़ भांपी मैंने उनके उस संकुचाए भाव में!
"हाँ, रेणु जी? कोई है?" मैंने पूछा,
चुप कर गयीं!
"गोपाल जी, इनको ले जाओ यहाँ से और मुझे शीघ्र ही बताओ, कौन है वहाँ?" मैंने पूछा,
उन्होंने वहीँ पूछा उनसे, बाहर नहीं गए वे!
लेकिन उन्होंने नहीं बताया!
कोई बात छिपा रही थीं वो!
"कोई बात नहीं, अब ये ही हंगारेगी ये सब!" मैंने कहा,
"हाँ सावित्री? ये बता ये अक्लि आयी थी वहाँ?" मैंने पूछा,
"नहीं" वो बोली,
"फिर कौन था इसके साथ?" मैंने पूछा,
अब चुप वो!
"बता?" मैंने हाथ उठाने की मुद्रा बनाई!
चुप!!
"ऐसे नहीं बताएगी तू., कोई बात नहीं!" मैंने कहा,
अब मैंने फिर से महा-भंजन मंत्र पढ़ा और जैसे ही क्रियान्वित करने के लिए झुका वो बोल पड़ी!
"बताती हूँ! बताती हूँ!" उसने हाथ जोड़कर कहा,
"बता फिर?" मैंने पूछा,
"ये विक्रांत के साथ आयी थी" वो बोली,
"कौन विक्रांत?" मैंने पूछा,
"मुझे नहीं पता, सच में नहीं पता" वो रोई अब!
विक्रांत!
नाम मालूम पड़ गया था!
अब जानना था कि कौन है ये विक्रांत!
'रेणु जी, हो न हो ये विक्रांत आपको भी जानता है और आप भी इसको जानती है, इसीलिए अब आप मुझे बताओ कि कौन है ये विक्रांत?" मैंने पूछा,
अब छद्म-भांड टूट गया था!
कोई चारा शेष नहीं थी!
"एक लड़का है, इसके दफ्तर में ही काम करता है, इसी ने बताया था मुझे उसके बारे में" वे अब संकोच कर के बोलीं,
"तो आपको पता था कि ये उसके साथ इटारसी गयी है?" मैंने पूछा,
"हाँ" वे बोली,
अब गोपाल जी का पारा चढ़ा!
इसीलिए कहता हूँ मित्र, परिवार में कभी भी कोई बात छिपी नहीं रहनी चाहिए, बात का बतंगड़ बन सकता है! जैसा यहाँ हुआ, बखेड़ा खड़ा हो गया था यहाँ तो! जान पर बन आयी थी इस लड़की के!
"क्या कोई इनके बीच प्रेम-प्रसंग है?" मैंने पूछा,
"मुझे नहीं पता" अब वो खीज के बोलीं,
"आपको पता तो सबकुछ है, बस आप बताना नहीं चाहतीं" मैंने कह दिया!
"मुझे नहीं पता, सुना आपने?" वो गुस्से से बोलीं!
गुस्सा तो मुझे भी आया, लेकिन मैं चुप कर गया!
बेटी की जान पर बनी थी और वे झुंझला रही थीं! हैरत थी!
अब मैं फिर से सौम्या की तरफ बढ़ा!
"सावित्री?" मैंने पूछा,
"हूँ?" उसने कहा,
"कहाँ गया था ये लड़का विक्रांत इस लड़की को लेकर?" मैंने पूछा,
"खेड़ा" वो बोली,
"खेड़ा में किसके पास?" मैंने पूछा,
अब चुप वो!
फिर कोई रहस्य आगे खड़ा था!
लेकिन क्या रहस्य?
यही सुलझाना था!
मैंने सोचा कि घर की बात यदि घर में ही रहे तो ठीक है, बाहर तो छिछालेदारी होती ही है, सो मैंने अब गोपाल जी से पूछा, "गोपाल जी, क्या इस लड़के विक्रांत का नाम सुना है आपने?"
"नहीं गुरु जी, मैंने नहीं सुना" उन्होंने साफ़गोई से कहा,
"आप इनको बाहर ले जाएँ और इनसे पूछें, ये अवश्य ही जानती हैं" मैंने कहा,
अब गोपाल जी ने रेणु जी को उठाया वहाँ से ले गए बाहर!
अब मुझे मौक़ा मिला सांच जांचने का!
"सावित्री, कौन है ये लड़का विक्रांत?" मैंने पूछा,
कोई जवाब नहीं आया!
"सावित्री?" मैंने गुस्से से कहा,
अब भी कोई जवाब नहीं!
"अगर मुझे जवाब नहीं देगी तू तो तुझे बहुत बुरी सजा दूंगा, समझी तू?" मैंने कहा,
वो डरी अब!
सहम गयी!
"बता मुझे, कौन है ये लड़का?" मैंने पूछा,
"मुझे नहीं मालूम" उसने कहा,
रोते रोते!
"किसको मालूम है?" मैंने पूछा,
तभी उसने एक झटका खाया, और उलटी कर दी, बिस्तर पर! बदबू फ़ैल गयी वहाँ, असहनीय बदबू, उलटी भी काले रंग की थी!
लेट गयी वो!
"सावित्री?" मैंने आवाज़ दी उसे!
कोई उत्तर नहीं!
सावित्री?" मैंने फिर से जवाब माँगा!
लेकिन कोई जवाब नहीं!
और तभी वो सीना तान के और मुट्ठियां भींच के बैठ गयी, घुटनों पर! उसने मुझे घूर के देखा, मैंने भी देखा!
"कौन है तू?" मैंने पूछा,
"तू कौन है?" उसने मेरे से ही सवाल कर दिया!
मर्दाना आवाज़ में, भारी, गर्जन वाली आवाज़!
"अपना बता, कौन है तू?" मैंने पूछा,
"नहीं बताता, क्या कर लेगा?" उसने कहा,
"करूँगा तो बहुत कुछ! उस से पहले अपना नाम बता" मैंने पूछा,
"अरे जा! चला जा जहां से आया है!' वो हँसते हुए बोला,
"अच्छा! इतना बड़ा भीम है तू?" मैंने पूछा,
अब वो हंसा!
बहुत तेज!
कमरा हिला दिया उसने!
"नाम बता अपना ओ भीम?" मैंने कहा,
"सुनेगा तो ज़मीन में गड़ जाएगा ***" उसने गाली देकर कहा!
"* ***** नाम बता अपने?" मैंने फिर से कहा, हाँ, गाली देकर!
"नहीं बताता! जा! क्या कर लेगा तू?" उसने कहा,
"बताता हूँ!" मैंने कहा,
मेरा मन तो किया कि अभी इबु को हाज़िर करूँ और इन सभी सालों को छठी का दूध याद दिल दूँ, लेकिन मुझे वो रहस्य जानना था, इसीलिए ऐसा नहीं किया मैंने! हाँ, मैंने भस्म ली, और जवाल-मंत्र का जप करते हुए वो भस्म उस पर फेंक मारी! ऐसे चिल्लाया जैसे किसी ने उसको घेर कर उस पर तेल उड़ेल कर जला दिया हो! वो ऐसे कर रही थी जैसे जल गयी, हाथ पाँव ऐंठ गए उसके, अपने ही बाल खींच के तोड़ने लगी! फू-फू की आवाज़ें निकालती रही! और फिर शांत होकर बैठ गयी!
" देखा लिया? अब बता?" मैंने पूछा,
"मुझसे क्या पूछता है, रुहेला से पूछ!" वो मिमियाती आवाज़ में मर्दाना आवाज़ में बोली!
"रुहेला? ये कौन है?" मैंने पूछा,
ये एक नया नाम था मेरे लिए! दिमाग जैसे झन्ना गया! जिसे मैं लपेट सोच रहा था वो तो आगे की बात निकली! कौन है ये रुहेला? ये जानना ज़रूरी था अब!
"कौन है ये रुहेला?" मैंने पूछा,
अब वो फूट फूट के रोई!
और तभी गोपाल जी अंदर आ गए! शर्मा जी ने हाथ पकड़ के उनको बिठा दिया वहाँ! और शांत रहने को कहा! वे बैठ गए साँसें रोके और दम साधे और आँखें फाड़े!
"बता कौन है ये रुहेला?" मैंने फिर से पूछा,
वो बस रोती रही!
बस!
अब मैंने कुछ निर्णय लिया और शर्मा जी और गोपाल जी को बाहर भेज दिया, शर्मा जी समझ गए कि अब क्या होने वाला है वहाँ, वे बाहर गए दोनों और मैंने वहाँ शाही-रुक्का पढ़ दिया इबु का! धड़धड़ाते हुए इबु वहाँ हाज़िर हुआ, और मेरे इशारे पर उसने उस लड़की से तीन प्रेत खींच
निकाले, जैसे किसी के कपडे फाड़ रहा हो वहाँ वो! उसने उनको लपेटा और खड़ा हो गया, मैंने उसको वापिस किया, लड़की इस बीच बिस्तर से नीचे गिर गयी!
और मैं बाहर निकल आया!
बाहर वे सभी खड़े थे! मुझे देखा, और चौंक पड़े!
"गोपाल जी, लड़की ठीक है अब, उसकी माता जी से कह दो साफ़-सफाई कर दें, फिर मैं कुछ और करूँगा ताकि कोई आमद नहीं हो यहाँ, कहानी बेहद पेचीदा है, इस लड़की को नहलाओ-धुलाओ, और हाँ कुछ खाने को मांगे तो मत खिलाना, पानी भी नहीं देना, उलटी करे, शौच करे, करने देना" मैंने चेताया,
मैं शर्मा जी को लेकर अपने कक्ष में चला गया और वे सभी सौम्या के कक्ष में घुस गए सारे के सारे!
हम कक्ष में आये अपने!
"गुरु जी, ये रुहेला कौन हो सकता है?" उन्होंने पूछा,
"कोई खिलाड़ी है" मैंने कहा,
"वही खेल रहा है?" उन्होंने पूछा,
"लगता तो यही है" मैंने कहा,
"हम्म" वे बोले,
"जैसा मैंने सोचा था, वैसा नहीं है" मैंने कहा,
"अच्छा, लेकिन वो जो बाबा था, इलाज उसने भी किया था, तब ऐसा नहीं हुआ?" वे बोले,
"बाबा ने भांपा तो सही था, लेकिन पेश नहीं किया था किसी को भी, मैंने यहाँ पेश किये, बिना पेशी के बात नहीं खुलती" मैंने कहा,
'अच्छा" वे बोले,
"अब क्या करना है? लड़की तो ठीक है न अब?" वे बोले,
"हाँ, लड़की ठीक है अब" मैंने कहा,
"अब ये रुहेला ढूंढना है, यही न?" वे बोले,
"हाँ" मैंने कहा,
और फिर हम बैठ गए, आराम से! अपने अपने सर खुजलाते हुए, अपने अपने विचारों में!
"कौन हो सकता है ये विक्रांत गुरु जी?" शर्मा जी ने पूछा,
"कोई प्रेम-प्रसंग लगता है" मैंने कहा,
अनुभव क्र.५३ भाग २
By Suhas Matondkar on Sunday, August 31, 2014 at 1:15pm
''अच्छा! और सौम्या की माता जी ये जानती हैं?" उन्होंने पूछा,
"हाँ, यक़ीनन" मैंने कहा,
"ये तो बहुत गलत है, गोपाल जी को भी नहीं बताया" वे बोले,
"हाँ, उनसे छिपा के रखी गयी ये बात" मैंने कहा,
"ये तो बहुत गलत है" वे बोले,
"हाँ, है तो गलत ही" मैंने कहा,
'ऐसे में कोई गलती हो जाए तो बिगड़ गयी न बात?" वो बोले,
"हाँ, और कमाल है! गोपाल जी को भी नहीं पता ये!" मैंने कहा,
"कमाल है!" वे बोले,
और तभी वहाँ गोपाल जी भी आ गए!
"आइये गोपाल जी" शर्मा जी ने कहा,
वे माथे पर हाथ रख कर बैठ गए, उनको दुःख था बहुत! ये झलक रहा था!
"क्या हुआ गोपाल जी?" मैंने पूछा,
वे बेचारे रुआंसे हो उठे!
शर्मा जी ने समझाया उनको!
"क्या हुआ?" मैंने पूछा,
"गुरु जी, मेरे घर में क्या चल रहा है और ये मुझे ही मालूम नहीं, मुझसे छिपा के रखा गया सबकुछ?" वे बोले,
हम दोनों चुप हुए,
"आपने कहा न वो लड़का विक्रांत? वो लड़का इस सौम्या के दफतर में ही काम करता है, दरअसल वो उसी कंपनी के मालिक का बेटा है" वे बोले,
'अच्छा!" मैंने कहा,
"हाँ जी, मुझे अब बताया उसकी माँ ने" वे बोले,
"अब सुनिये, ये जो भी कहानी है, ये इसी सौम्या और उस लड़के विक्रांत के आसपास घूमती है, अब या तो विक्रांत इसको सुलझाए या फिर ये लड़की सौम्या" मैंने कहा,
"जी" वे आंसू पोंछते हुए बोले,
"दिल भारी मत कीजिये आप, हिम्मत से काम लीजिये" मैंने कहा,
उन्होंने हाँ में गर्दन हिलायी,
"वैसे इटारसी कितनी दूर है यहाँ से?" मैंने पूछा,
"जी कोई नब्बे या पिचानवे होगा" वे बोले,
'यानि एक दिन में आया-जाया सकता है?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"हम्म, यही हुआ होगा" मैंने कहा,
"क्या गुरु जी?" उन्होंने पूछा,
"ये सौम्या गयी होगी उस लड़के के साथ इटारसी" मैंने कहा,
अब एक बाप ने नज़रें चुराईं!
मैंने भांपा!
अब कोई बाप ऐसे में क्या करे?
कोई बाप ऐसा सुन के मरे कि न मरे?
मैं समझ सकता था! एक बाप की विवशता!
"आप घबराइये मत, मैं जांच कर लूँगा इस विषय में" मैंने कहा,
उन्होंने फिर से मायूसी से हाँ कहा,
"और क्या बताया रेणु जी ने?" मैंने पूछा,
"और कुछ नहीं" वे बोले,
"अच्छा, अब लड़की कैसी है?" मैंने पूछा,
"ठीक लग रही है, लेकिन अभी भी सोयी है" वे बोले,
"कोई बात नहीं, उसको सोने दीजिये आप, जब आराम कर ले तब मेरी बात करा देना उस से, जब तक मैं घर में हूँ कोई आने से रहा यहाँ" मैंने कहा,
उन्होंने हाथ जोड़े मेरे सामने, मैंने हाथ नीचे कर दिए उनके! अच्छा नहीं लगता ऐसा, अब घर घर माटी के चूल्हे हैं! आज आपके साथ कल मेरे साथ! सो ऐसा अच्छा नहीं लगता!
तभी उनका लड़का अक्षय आया अंदर, उसने खाने के लिए पूछा, मैंने खाने के लिए मना कर दिया, आज मन नहीं था खाना खाने का, जी उचट सा गया था, शर्मा जी ने भी मना कर दिया था, बाद के लिए कह दिया था!
फिर गोपाल जी उठ गये वहाँ से और हम लेट गए!
थोड़ी देर ही लेते होंगे कि मुझे कुछ ख़याल आया, मैंने शर्मा जी को जगाया, वो आँखें बंद किये लेटे थे,
वे जागे!
"जी गुरु जी?" वे बोले,
"चलो, एक काम करते हैं, बाबा चुन्नी लाल के डेरे पर चलते हैं, मुझे कुछ काम भी है, वहीँ करूँगा मैं" मैंने कहा,
''जी चलिए" वे उठते हुए बोले,
तब शर्मा जी ने गोपाल जी को बुलाया और उनसे गाड़ी की चाबी ले लीं, और उनको बता दिया कि हम कहाँ जा रहे हैं, उनसे रास्ता भी पूछ लिया, वो जगह हालांकि मैं जानता था, लेकिन उन्होंने एक छोटा रास्ता शर्मा जी को बता दिया था, और हम वहाँ से उसी समय निकल पड़े!
बाबा चुन्नी लाल को मैंने फ़ोन कर दिया था, वे खुश हो गए थे, थोड़े नाराज़ भी कि हमने उनको सूचित नहीं किया था आने के लिए!
जब हम बाबा चुन्नी लाल के डेरे पर पहुंचे, दो बज चुके थे! हमने अंदर जाकर गाड़ी लगायी! और बाबा के बारे में पूछताछ की, बाबा अपने कक्ष में हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे, हम अंदर गए तो खड़े उए और गले से लगा लिया, मुझसे दोगुनी उम्र के हैं बाबा चुन्नी लाल! पाँव पड़ने का मौक़ा ही नहीं दिया!
फिर उन्होंने भोपाल आने का कारण पूछा, अब मैंने सब सच सच बता दिया उनको, उन्हें भी रेणु पर बहुत गुस्सा आया! मैंने उनसे रुहेला के बारे में पूछा तो वो नहीं बता सके किसी भी रुहेला का पता! लेकिन मैंने उनको बता दिया था कि मेरे खबीस ने क़ैद कर ली थीं उसकी चीज़ें! तब उन्होंने कहा कि इस रास्ते से ये रुहेला पकड़ में आ जाएगा, लेकिन सबसे पहले उस लड़के विक्रांत और उस लड़की सौम्या का पक्ष जानना भी ज़रूरी था! यदि वे प्रेम करते हैं तो किसी को भी बीच में नहीं आना चाहिए, ये उनके परिवार का मामला है, यदि हाँ, लड़के ने कुछ करवाया है तो ये लड़का दोषी है, और उसके साथ ही साथ वो रुहेला भी! और भी काफी बातें हुईं, कई जानकारों के बारे में भी और फिर वाराणसी और इलाहबाद के बारे में भी! और फिर वही औघड़ी खेल! मांस और मदिरा! वे हमे ले गए एक कक्ष में, अपने सहायकों से सारा सामान लान एको कहा, कमरे में गद्दे बिछे थे, हम वहीँ बैठ गए और थोड़ी ही देर में वहाँ मांस-मदिरा परोस दी गयी! और हम हुए अब शुरू! रात भी रुक जाते तो कोई परेशानी नहीं होती! हमने छक कर मदिरा उड़ायी, खाना खाया और फिर वही ठिठोलेबाजी! यही है है औघड़ का रास-रंग!
औघड़ों की महफिल लगी थी, दो चार और आ बैठे थे! वे भी शामिल हो गए, कोई मच्छी लाया था तो कोई और, खिचड़ी पक गयी और हमने सब दबा दिया! छक कर मदिरापान किया और मैंने शर्मा जी से कहा कि वो गोपाल जी से कहा दें कि हम आज रात घर नहीं आ पाएंगे और उन्होंने फ़ोन करके घर पर इत्तला कर दी! अब तो जैसे छूट मिल गयी हमे, दो दिन से प्यासे थे, वो घर था, घर में जवाब बेटी थी, ऐसे किसी के घर में मदिरापान करना शोभा नहीं देता, सो उस दिन खूब जम के पी! बाबा ने कोई कमी नहीं छोड़ी और 'और लाओ!' और 'और लाओ' ही चलता रहा वहाँ! हमको रात हो गयी वहाँ! और फिर बाबा ने हमको हमारे कक्ष तक पहुंचा
