वर्ष २०१२ बुलंद शहर...
 
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वर्ष २०१२ बुलंद शहर उत्तर प्रदेश की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण! ये अनुभव है तो बहुत छोटा लेकिन है बहुत बढ़िया और मजेदार!, सोचा आपको ये कहानी सुना ही दूँ! सन २०१२ की बात है, मेरे पास एक बार दो व्यक्ति आये, बुलंद शहर, उत्तर प्रदेश से. उनके साथ एक लड़का भी था, कोई उन्नीस-बीस वर्ष का, नाम था वरुण! जो व्यक्ति आये थे उनमे से एक वरुण के पिताजी और दूसरे उनके मित्र थे, ठेठ गाँव के वासी थे, किसान थे वे लोग! उनको मेरे ही किसी परिचित ने ही भेजा जा, शर्मा जी से पहले फ़ोन पर बात हुई थी इसी के बाद वे लोग यहाँ आये थे, लड़के का बुरा हाल था, इस से पहले कि मुझे कुछ बताता उसके आंसूं निकल पड़े! लड़का चुप ही न होए! तब उसके पिता जी ने ही कहना आरम्भ किया, बोले, "गुरु जी, ये मेरा बीच वाला लड़का है, इस से एक बड़ी लड़की है जिसका ब्याह अभी महिना भर पहले ही हुआ है, और इस से छोटा भी एक लड़का है, हम जिला बुलंदशहर के निवासी हैं, ये कहानी बड़ी अजीब सी है, इस लड़के वरुण ने भी ये कहानी हमको काफी समय बाद बताई है, हमको भी बड़ी हैरत हुई इसकी कहानी जानकर!" इस से पहले कि अब वो बोलें, लडकें ने रुमाल से अपने आंसूं पोंछे और उनकी बात काट कर बोला," गुरु जी मै बताता हूँ आपको सारी बात, कि कहानी है क्या, गुरु जी, एक बार कि बात है, एक बार काफी जोर से बरसात हुई थी, मूसलाधार बारिश, मुझे अपने विद्यालय जाना था, गुरु जी विद्यालय मेरे घर से कोई १० किलोमीटर पड़ता है, तो मै साइकिल से विद्यालय जाया करता था, उस दिन मै अवकाश भी नहीं ले सकता था, क्यूंकि उस दिन विज्ञान की परीक्षा थी, अतः जाना आवश्यक था, मै घर से निकला, रास्ते में पानी भरा था, कीचड काफी थी, कभी-कभार मुझे साइकिल उठानी पड़ती थी और पानी या कीचड से पार होना होता था, गाँव से बाहर आकर एक पुलिया पड़ती है, मै वहीँ उसी पुलिया को पार किया करता था, लेकिन उस बार उस बरसाती नाले में पानी लबालब भरा हुआ था, बैग मैंने पीछे लटका रखा था, मुझे वहाँ साइकिल उठानी थी, सो मैंने साइकिल उठायी, जैसे ही साइकिल उठायी तो मेरा बैग उस से टकराया और मेरा खाने का डब्बा नीचे निकल कर गिर गया, मैंने साइकिल रखी और खाने का डब्बा उठाया, उसमे पानी भर गया था, सब्जी खराब हो गयी थी, रोटियां गीली हो गयीं थी तो मैंने उसमे से खाना निकाल कर रास्ते के एक तरफ रख दिया, और खाली डब्बा अपने बैग में रख लिया! अब मैंने साइकिल उठायी, और आगे बढ़ा, वहाँ पानी गहरा मालूम पड़ा, और आगे बढ़ता तो बैग भी खराब हो जाता, भीग जाता, क्या करूँ? तभी मेरी नज़र पुलिया पर बैठे एक आदमी पर पड़ी, वो मुझे ही देख रहा था, उसने मुझसे कहा, "क्या हुआ? मै आऊं क्या?" मुझे मदद की आवश्यकता थी तो, मैंने भी कहा, "हाँ जी, मदद कीजिये, परीक्षा में जाना है, देर हो


   
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श्रीशः उपदंडक
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जायेगी, आप मेरा ये बैग पकड़ लीजिये" मैंने उस से कहा, वो आया और उसने मेरा बैग पकड़ लिया और मैंने अपनी साइकिल उठायी, और दोनों ही पानी में से निकल कर पार हो गए! मैंने उसको धन्यवाद दिया, उसने भी मुस्कुरा कर कहा, "कोई बात नहीं, परीक्षा में जाना है, आराम से जाओ!" उसके बाद वो आदमी वहाँ से चला गया, मै अपने रास्ते हो गया, मै विद्यालय पहुंचा, परीक्षा दी, अच्छी परीक्षा हुई थी! मै बाहर आया, और भी छात्र वहाँ बैठे थे, अपना अपना खाना खा रहे थे, मुझे ये ख़याल ना रहा कि मेरा खाना तो पानी लगने से खराब हो गया था, मैंने अपने डब्बा बाहर निकाला! तभी मुझे ध्यान आया कि डब्बा तो खाली है! लेकिन तभी! तभी मुझे लगा कि डब्बा खाली नहीं है, वो भारी था! काफी भारी! मैंने खोल कर देखा तो उसमे सब्जी थी, वही सब्जी! रोटियां थीं! वहीँ रोटियाँ! वो भी एक दम गरम! लेकिन खाना तो मैंने वहाँ एक तरफ रख दिया था? ऐसा कैसे हुआ? एक पल के लिए मुझे डर सा लगा, लेकिन भूख लगी थी, सो मैंने खाना खा लिया! मै वापिस चला, लेकिन सारे रास्ते मेरा दिमाग घूमता रहा! मै बार-बार सोचता रहा कि ऐसा कैसे हुआ? लेकिन कोई हल न निकला उसका! मै सोचते सोचते वापस अपने गाँव की तरफ चलता रहा! रास्ते में फिर वही पुलिया पड़ी, फिर से मैंने साइकिल उठायी और आगे चला, तभी मैंने देखा कि सुबह वाला आदमी अब भी वहीँ बैठा है! वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था, मैंने पुलिया पार कर ली, साइकिल नीचे रख दी, तभी वो आदमी आया और बोला, "कैसी रही तुम्हारी परीक्षा?" मैंने कहा कि बहुत अच्छी! और फिर मैंने उसको कहा, "दोस्त अगर तुम न मिलते तो मै परीक्षा में देर से पहुँचता, पेपर ना दे पाता पूरा, आपका बहुत बहुत धन्यवाद" वो ये सुन मुस्कुराया! मैंने उस से हाथ मिलाया और आगे बढ़ गया! तभी उसने मुझे पीछे से आवाज़ दी, "खाना खा लिया था?" मेरे होश उड़ गए! साइकिल में ब्रेक लगाए! मैंने पीछे मुड के देखा, वो वहीँ खड़ा था और मुस्कुरा रहा था! मैंने वापिस मुड़ा, उस तक गया और पूछा, "आपको कैसे पता मेरे खाने के बारे में?" "मुझे मालूम था, तुम्हारा खाना पानी में गिर गया था, खराब हो गया था, मैंने दूसरा खाना डाल दिया उसमे!" उसने कहा, "तुमने डाल दिया?" कैसे, मुझे हैरत हुई, "मै कुछ भी कर सकता हूँ मेरे दोस्त! तुमने मुझे दोस्त कहा था, इसीलिए बता रहा हूँ, किसी और को न बताना नहीं तो कभी दुबारा नहीं मिलूंगा! करो वादा? नहीं बताओगे न? तभी बताऊंगा मै कौन हूँ?" उसने कहा, "नहीं बताऊंगा, वादा!" मैंने कहा, "मै एक जिन्न हूँ, मेरा नाम सोहेल है!" उसने कहा, सुनते ही झटका लगा! एक जिन्न! मेरा दोस्त! "अब तुम जाओ घर, घर पर मेहमान आये हैं" उसने कहा, मैंने उस से हाथ मिलाया और मै गाँव की ओर चल पड़ा, घर पहुंचा तो वाकई घर में मेहमान आये थे! ये मेहमान मेरी बड़ी बहन का रिश्ता लाये थे, बात चल निकली थी, लेकिन मैंने अधिक गौर न किया मै सीधे अपने कमरे में जाके लेट गया, और मुझे फिर से मुझे उस जिन्न के ख़याल आने लगे! मुझे बताया गया था, कि भूत-प्रेत, जिन्नादी से हमेशा दूर रहना चाहिए, लेकिन ये जिन्न सोहेल तो मेरा दोस्त बन गया था! सारा बचा दिन और सारी रात उसके ही


   
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श्रीशः उपदंडक
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ख़याल आते रहे! आखिर में नींद आ गयी! मै सो गया! सुबह उठा तो नहा धो कर मैंने जल्दी से दूध पिया और एक डोल में दी गिलास दूध डाला और अपने दोस्त सोहेल के लिए लेके अपनी साइकिल से निकल पड़ा! किसी तरह से वहाँ पहुंचा, वो वहीँ पुलिया पर बैठा था, मुझे देख खड़ा हो गया और फिर मैंने उस से हाथ मिलाया, वो मेरे गले लगा! मुझ से बोला, "कहीं जा रहे हो दोस्त?" "नहीं तो मै तो आपके पास ही आया था" मैंने कहा, "तो ये बर्तन?" उसने पूछा, "आपके लिए दूध लाया था, लो पी लो!" मैंने कहा, "मेरे लिए घर से दूध लाये हो दोस्त तुम?" उसने पूछा, "हाँ!" मैंने कहा, "ओह! मेरे दोस्त! मै कैसे शुक्रिया करूँ तुम्हारा!" उसने कहा, फिर उसने डोल उठाया! और डोल खोल दिया! सोल में दूश की जगह मावा आ गया! मुझे बड़ी हैरत हुई! फिर उसने आधा मावा मुझे दिया और आधा खुद खाया! "तुम रहते कहाँ हो दोस्त?" मैंने पूछा, "बहुत दूर, बहुत दूर मेरे दोस्त, तुम नहीं जानते वो जगह" उसने बताया, "फिर भी, कहाँ?" मैंने पूछा, "मै हिन्दुकुश की पहाड़ियों में, यालासार में रहता हूँ, मेरा परिवार है वहाँ" उसने बताया, "अच्छा! अफगानिस्तान में" मैंने हैरत से पूछा, "हाँ, इंसानों ने मुल्क बना दिया हैं, हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता" उसने हँसते हुए कहा, "अच्छा, और परिवार में कौन कौन है तुम्हारे?" मैंने पूछा, "मै, मेरे अब्बू-अम्मी, दो बड़े भाई, दो छोटी बहनें हैं" उसने बताया. "तो तुम सीधा वहीँ से आते हो?" मैंने पूछा, "नहीं, मै आजकल यहीं रहता हूँ, यहाँ मेरे रिश्तेदार हैं, पिसावा के पास" उसने कहा, "अच्छा!" मुझे फिर हैरत हुई! "आज विद्यालय नहीं जाओगे?" उसने पूछा, "नहीं आज अवकाश है मेरा" मैंने बताया, "अच्छा! तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?" उसने पूछा, "मै, मम्मी-पापा, एक बड़ी बहन, बस!" मैंने बताया, "उस दिन घर में मेहमान आये थे, बहन की शादी के लिए?" उसने पूछा, "हाँ, मम्मी-पापा बहुत परेशान हैं बड़ी बहन की शादी के लिए, बात चलती है लेकिन शादी नहीं हो पाती कहीं भी" मैंने बताया, "अब नहीं होंगे परेशान! वो जो आये हैं ना? यही पक्का कर लेंगे रिश्ता!" उसने कहा, "अच्छा!! सच में?" मैंने पूछा, "हाँ दोस्त! मै कभी झूठ नहीं बोलता, न कभी मजाक ही करता हूँ, जो कह दिया वो पक्का!" उसने बताया, "धन्यवाद मेरे दोस्त" मैंने उसको कहा, वो मुस्कुराया! "अब तुम पिसावे से आये हो?" मैंने पूछा, "नहीं, मै वहाँ से नहीं आया, पीछे देखो, ये दो खजूर के पेड़ हैं न? यहीं रह रहा हूँ" उसने पीछे दो खजूर के पेड़ों की तरफ इशारा करके बताया, मैंने वहाँ देखा वहाँ कुछ भी नहीं था, बस वही दो पेड़! "मुझे तो कुछ नहीं दिखाई दे रहा वहाँ? कहाँ?" मैंने कहा, तब उसने मेरी आंख्ने अपने हाथों से बंद कीं, और फिर खोलने को कहा, उन दो खजूरों के पेड़ पर एक झोंपड़ा सा बना हुआ था! "अच्छा! वाह दोस्त वाह!" मैंने कहा, "अच्छा, सुनो अभी तेज बारिश होगी, तुम वापिस घर जाओ, आज खबर आ जायेगी बहन के लिए, अब वापिस जाओ, आराम से!" उसने कहा, फिर मैंने उसको धन्यवाद किया और वहाँ से निकल आया, मेरे घर आते ही ताबड़तोड़ बरसात हुई! और हाँ, उसी दिन फ़ोन पर इत्तला आ गयी कि लड़की लड़के वालों को पसंद है! मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा! ये सब मेरे दोस्त सोहेल ने किया था! बहन


   
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श्रीशः उपदंडक
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का रिश्ता पक्का हो गया था! शादी चार महीनों के बाद होनी निश्चित हुई थी! मै सोहेल से लगातार मिला रहा! वो मुझे बे-मौसम के भी फल खिलाता था, जैसे बड़े बड़े आम, संतरे, केले, और अंगूर कई अजीब खरबूजे, मेवे, पिस्ते आदि आदि! फिर एक दिन परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ, मै प्रथम श्रेणी से पास हो गया था! मैंने सबसे पहले ये खबर अपने दोस्त सोहेल को दी, सोहेल खुश हो गया! "वाह मेरे दोस्त! तुमने परीक्षा अव्वल दर्ज़े से पास की है, आज तो दावत होनी चाहिए!" उसने कहा, "दावत?" मैंने पूछा, "लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं" मैंने कहा, "तुमसे किसने मांगे पैसे?" उसने कहा, "पास मै हुआ हूँ, दावत देना मेरा फ़र्ज़ है" मैंने कहा, "जब नौकरी पर लग जाओ, पैसे कमाने लगो तो मुझे दावत दे देना, अभी तुम्हारी जगह मै दावत देता हूँ! घर जाओगे तो सभी दावत मांगेंगे, फिर वापिस आओगे खरीदारी करने! क्या फायदा!" उसने कहा, "लेकिन?" मैंने संशय जताया, "कोई लेकिन नहीं! यहाँ सबसे अच्छी मिठाई की दुकान कहाँ है, ये बताओ मुझे ज़रा!" उसने कहा, "दुकान तो शहर में पड़ती है, शहर यहाँ से पैंतीस-चालीस किलोमीटर दूर है, मै वहाँ कैसे जाऊँगा? और फिर पैसे भी नहीं हैं मेरे पास?" मैंने मायूसी से कहा, "मेरे होते हुए चिंता दोस्त?" उसने हंस के कहा! "नहीं तुम्हारे होते हुए चिंता कैसी!" मैंने भी हंस के कहा, "ठीक है, अपना बैग खोलो, देखो क्या है उसमे?" उसने कहा, मैंने बैग खोला! खोला तो बड़ी हैरत हुई! उसमे पांच-सौ के बीस नोट थे! कुल दस हज़ार! "ये कैसे दोस्त?" मैंने हैरत से पूछा, "बस! ऐसे ही, दोस्त हूँ तुम्हारा! भला चाहता हूँ! अब मिठाई लेने चलते हैं, चलो!" उसने कहा, "लेकिन पैतीस-चालीस किलोमीटर जाना और आना, ये कैसे संभव है दोस्त?" मैंने कहा, "अरे भाई! तुम केवल साइकिल चलाओ, बाकी मुझ पर छोड़ दो!" उसने कहा, फिर मैंने साइकिल चलाई, वो मेरे पीछे बैठ गया! साइकिल मुझे लगा अपने आप चल रही है, बस मैंने पाँव रखे हुए हैं! मुझे ऐसा ही लगा! मेरा दोस्त पीछे बैठा हंस रहा था! ये उसीकी करामात थी! हम शहर गए! मैंने मिठाई खरीदी, उसने मुझे कपडे भी खरीदवा दिए! और फिर हम वापिस आ गए! "लो मेरे दोस्त अब सभी को दावत देना!" उसने वापिस वहीँ खजूर के पेड़ों की तरफ उतरते हुए कहा, "तुम भी तो खाओ, सबसे पहले!" मैंने कहा और एक मिठाई का डब्बा खोल दिया, उसने एक बर्फी उठा ली और खा ली! "बस एक?" मैंने कहा, "दोस्त! दोस्ती में क्या एक और क्या कुछ भी नहीं! बस दिल में प्यार होना चाहिए!" उसने कहा, "सही कहा दोस्त! बिलकुल सही कहा आपने!" मैंने कहा, "ठीक है अब तुम जाओ, दो सभी को दावत!" उसने कहा! "ठीक है, मै चलता हूँ अब" मैंने कहा, तो उसने मुझे गले से लगा लिया! उसके बाद में सारा सामान घर ले आया! घर में मिठाई बाँट दी, आसपास वालों के भी यहाँ! मम्मी-पापा ने मिठाई के बारे में और कपड़ों के बारे में पूछा तो मैंने कहा, कुछ अध्यापकों और कुछ मित्रों ने ये सब दिया है! वो भी खुश हो गए! समय बीत रहा था, मेरे और सोहेल का मिलना-जुलना बदस्तूर जारी रहा! वो मुझे कभी कुछ तो कभी कुछ दे ही देता! एक बार उसने कहा कि वो तीन दिनों के लिए घर जा रहा है, कुछ काम है, तीन दिनों बाद वो वहीँ


   
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श्रीशः उपदंडक
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मिलेगा मुझे, उसने मुझसे गले लग के विदा ली और चला गया, मै भी घर आ गया,लेकिन मेरा मन नहीं लगता था उसके बिना, उसकी याद आती थी, मै उसी पुलिया पर आकर बैठ जाता था,लेकिन मेरा दोस्त वहाँ नहीं था, मुझ से उसके बिना एक घंटा नहीं कटता, अभी भी दो दिन बाकी थे! मै सुबह पुलिया पर आता और शाम को जाता था! उसका इंतज़ार करता रहता! तीन दिन बीते किसी तरह! मै चौथे दिन वहाँ आया! वो वहीँ पुलिया पर बैठा हुआ था! मुझे देख दौड़ कर आया! और मेरे गले लग गया! बोला, " तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लग रहा था दोस्त, बहुत याद आई तुम्हारी, तुम्हारे बारे में मैंने सभी को बता दिया है वहाँ!" "मुझसे भी नहीं रहा गया दोस्त! एक एक पल कटता नहीं था मुझसे, मै यहाँ सुबह आता और शाम को जाता! अब तुम आ गए हो तो मेरी जान में जान आई!" मैंने कहा, उसके बाद मेरा उस से मिलना-जुलना दुबारा शुरू हो गया, हम खूब बातें करते, वो भी बताता मै भी बताता! एक बार की बात है, बहन की शादी पास आ रही थी, पिता जी ने कुछ रकम मेरे मामा जी से भी मांगी थी मेरी बहन की शादी के लिए कोई २ लाख रुपये, उस वक़्त मामा जी ने हाँ कर दी लेकिन शादी से कोई एक हफ्ता पहले मामा जी दुर्घटनाग्रस्त हो गए, उनकी टांगों पर चोट लगी थी, काफी पैसा लग गया, फिर भी मामा जी ने एक लाख रुपये का प्रबंध कर ही दिया, लेकिन पैसा अब भी चाहिए था, हम गरीब आदमी हैं, खेती से ही गुजारा करते हैं, एनी कोई व्यवसाय नहीं है, मेरी मम्मी-पापा के चेहरे पे चिंता के भाव झलक गए, कहाँ से इतनी जल्दी पैसा उपलब्ध हो, मुझे भी ये पता चला, मुझे भी दुःख हुआ, मै क्या कर सकता था, कुछ नहीं, खैर, मै अगले दिन फिर सोहेल से मिला, उसने मुझे देखा और बोला, "क्या बात है दोस्त? परेशान लग रहे हो?" "हाँ दोस्त, परेशान हूँ मै" मैंने बताया, "कैसी परेशानी? मुझे बताओ?" "क्या बताऊँ?" मैंने धीरे से कहा, "मै तुम्हारा दोस्त हूँ, कह दो कि नहीं हूँ?" उसने कहा, "हाँ हो तुम मेरे दोस्त!" मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा! और सारी परेशानी उसको बता दी! "बस?? इतनी सी परेशानी? क्या दोस्त!" उसने कहा, "इतनी सी? ऐसा न कहो? मजाक न करो?" मैंने कहा, "मैंने कहा था न दोस्त! मै मजाक नहीं करता! अब एक काम करना, पिता जी से बोलना, कि पिताजी एक बार फिर से अपने बैग से पैसे निकाल कर गिनें! बस!" "उस से क्या होगा दोस्त?" मैंने पूछा, "तुम कहना तो? एक बार कहना!" उसने कहा, "ठीक है, मै कह दूंगा!" मैंने कहा, "बस! अब सारी चिंताएं छोड़ दो तुम! वैसे कब है शादी बहन की?" उसने पूछा, "सत्रह तारीख को इसी महीने, आज बारह हो गयी है" मैंने कहा, "कोई बात नहीं! तुम देखना शादी कैसी होगी!" उसने कहा, "धन्यवाद दोस्त!" मैंने उसका धन्यवाद किया और घर चला गया, अगले दिन फिर मै घर में ही बैठा था, शादी की तैयारियां हो गयीं थी, न्योते बांटे जा रहे थे, कुछ जगह मुझे भी न्योते देने थे, शादी के कार्ड बांटे जाने थे, मेरे दोस्त ने अपने करामात से सारे कार्ड बंटवा दिए! शादी से दो दिन पहले मैंने पिताजी से कहा कि वो अपना बैग एक बार निकाल कर पैसे गिन लें! मेरे पिता जी ने पैसे गिने, उनके हिसाब से साढ़े तीन लाख रुपये होने


   
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श्रीशः उपदंडक
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थे बैग में, लेकिन जब उन्होंने गिने तो वो दस लाख हो गए थे! उनके होश उड़ गए! उन्होंने मम्मी को बुलाया और सारी बात बतायी, फिर उन्होंने मुझसे पूछा, "ये पैसे इतने कैसे हुए बेटे?" "बस पिता जी, मुझे किसी ने कहा कि पिताजी से कहो कि पैसे गिन लें" मैंने जवाब दिया, "किसने, कौन है वो?" वो घबराए, "है मेरा एक दोस्त पिताजी, मै इस से अधिक नहीं बता सकता" मैंने कहा, "कौन है बेटा वो, मुझसे भी मिलवाओ?" उन्होंने जिद पकड़ ली, "नहीं मिलवा सकता पिता जी, उसने मना किया है" मैंने बताया, "नहीं ऐसा नहीं हो सकता, ये चमत्कार कैसे हुआ? मै नहीं मानता, या तो वो कोई सिद्ध पुरुष है या कोई भूत-प्रेत, कौन है वो?" उन्होंने फिर पूछा, फिर मै वहाँ से उठ के भाग गया! उनको चिंता लग गयी! ये बात मैंने सोहेल को बता दी! सोहेल ने कहा, "कोई बात नहीं दोस्त! चिंता न करो! तुम्हारी खातिर मै उनसे भी मिल लूँगा, चिंता न करो, बाकी मै समझा दूंगा!" अब मेरी चिंता ख़तम हो गयी थी, मै पिताजी को अब जवाब दे सकता था! आर फिर ऐसे ही दो दिन बीते गए! बरात घर पर आ गयी! खाना आरम्भ हो गया! प्रबंध और खाना देख कर सभी चकित रह गए! सबने वाह वाह की! अब लड़के वालों को सामान दिखाया जाना था, और जैसे ही पिता जी ने सामान वाला कमरा खोला, सभी की आँखें फटी की फटी रह गयीं! बेशकीमती कपडे, साड़ियाँ, अतुलनीय जेवर, घर का सारा सामान वहाँ मौजूद था! यहाँ तक की लड़के के घरवालों का भी सामान भरा पड़ा था! सभी चकित रह गए! इतना सारा और महंगा सामान! पिताजी ने मुझे देखा! और मै पिताजी को देखकर मुस्कुराया! खाना बढ़िया चल रहा था! लज़ीज़ था! तभी मुझे हलवाई ने आकर बताया कि मिठाई कम पड़ गयी है, सभी ने दो दो बार मिठाई खायी है, और मिठाई बनाने का समय नहीं है, अब क्या किया जाए? मै भी घबराया! अब क्या किया जाए? मई पिता जी को ढूँढने चला, तभी मैंने सोहेल को अपने नीम के पेड़ पर बैठे पाया, एक दम मायूस, मुझे देख वो नीचे उतरा, और एक अलग जगह जाने को कहा, मई वहाँ गया, वो मुझसे बोला,"ये कैसी दोस्ती है मेरे दोस्त! कैसी दोस्ती निभायी है तुमने!" "क्या हुआ? मुझे बताओ तो?" मैंने चौंक के पूछा, "बहन की शादी थी, सभी को बुलाया और मुझे भूल गए! वो मेरी भी तो बहन है न?" उसने कहा, "ओह! हाँ......हाँ.....मै कहना भूल गया, माग कर दो" मैंने कहा, "जब मै घर गया था तो मेरे अब्बू ने कहा, आदमजात से दोस्ती नहीं करना, वो कभी अपने वायदे पर कायम नहीं रहता, जिस थाली में खाता है उसी में छेड़ करता है, वही तुमने किया मेरे साथ, शादी कैसी होती है ये मै दिखाता सभी को, तुमको! बस एक बार न्योता तो दे देते मुझे!" उसने कहा, "ऐसा मत कहो दोस्त" मैंने कहा तो उसने मेरी बात काट दी और बोला, "मत कहो मुझे दोस्त अब, अब दोस्ती ख़तम, आज से मै तुमको कभी नहीं मिलूंगा, मै वापिस जा रहा हूँ, हाँ मिठाई कम पद गयी है न? जाओ दूसरा कमरा खोल लेना, पांच गाँवों की मिठाई है उसमे" उसने उस कमरे की तरफ इशारा करके कहा, 'सुनो, मेरी बात सुनो सोहेल" मैंने कहा, "अब अलविदा! तुमने मेरा दिल तोड़ दिया, अब मै जा रहा हूँ, कभी नहीं आऊंगा, अलविदा"


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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उसने कहा, वो गायब हो गया, और मै बदहवास! मैंने हलवाई को वो कमरा खोल लेने को कहा, हलवाई ने कमरा खोल तो वहाँ बेहतरीन मिठाई थी! उसके भी होश उड़ गए! लेकिन सारी मिठाई बाँट दी गयी! विवाह संपन्न हो गया! उसके बाद मै वहाँ पुलिया पर गया, सुबह से शाम था बैठता रहा, आवाजें देता रहा लेकिन वो नहीं आया! कभी नहीं आया" वरुण ये बता कर फिर चुप हो गया! और सिसकने लगा! मैंने कहा, "अब आप मुझसे क्या चाहते हैं?" "जी मै एक बार उस से मिलना चाहता हूँ"" वरुण ने रोते रोते कहा, "अब आप नहीं मिल सकते, मै चाहूँ तब भी" मैंने स्पष्ट किया तीनों चौंके! "क्यूँ साहब?" वरुण के पिताजी बोले, "देखिये, जिन्न अपने वायदे के पक्के होते हैं, उसने कहा की वो दुबारा नहीं आएगा, तो इसका मतलब नहीं आएगा" "एक बार कोशिश कर लीजिये गुरु जी" वरुण ने कहा, "कोई फायदा नहीं होगा,वो नहीं आएगा, तुमने गलती की, अब भुगतो" मैंने कहा, इतना सुन वो और तेज रोया! "कोई तरीका नहीं?" वरुण के पिता जी बोले, "नहीं, कोई तरीका नहीं" मैंने बता दिया, काफी देर समझाने के बाद वे तीनों अपना सा मुंह लेके वहाँ से चले गए! वरुण आज भी उन्ही खजूर कपड़ों के नीचे आकर बैठता है, उसका नाम पुकारता है, बार बार रोता है, लेकिन सोहेल फिर कभी नहीं आया! और ना ही आएगा!

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------

 


   
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(@thakur-rajesh)
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सादर साष्टांग दंडवत प्रणाम प्रभुश्री, सच है हम मानव ही एहसान फ़रामोश होते हैँ, कोई और शय नहीं, यही होता है की कई बार, अधिकानशतः, हम किसी शक्ति से उनके आगे, उनके चरणों में गिर गिर के कुछ वर, मनोतियाँ या इच्छाएं मांग लेते हैँ किन्तु ज़ब शक्ति वो इक्षित वर, वस्तु, या पदार्थ प्रदान कर देती है तो मनुष्य उन शक्तियों का अहसान चुकाना भूल जाता है, और उक्त शक्ति प्रदत्त दंड का भागी बनता है, सौभाग्य से कोई विरला आप समान किसी पूर्ण योग्य गुरूजी के शरण और चरणों का आश्रय प्राप्त कर पता है तभी पुनः अपने सुख और सौभाग्य को प्राप्त कर पता है, आपजे श्री चरणों में कोटिशः प्रणाम 🌹🙏🏻🌹


   
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