मौसम बढ़िया था उन दिनों, न सर्दी और न ही गर्मी, हाँ दोपहर में गर्मी हो जाया करती थी लेकिन आराम के समय में वो भी तंग नहीं किया करती थी! नवंबर का मौसम था वो, मुझे याद है! मैं उन दिनों बालेश्वर से आया था, काफी समय बिताया था वहाँ, सो यहाँ अब ज़रा अलक़त से महसूस होती थी! खैर, धीरे धीरे सब आदत पड़ जाती है, सो हो रहा था! उस शाम काफी सुहाना मौसम था, हवा चल रही थी शीतल और काफी सुकून वाला दिन था वो! सर्दी की छमछमाहट आने लगी थी! पेड़-पौधे भी इसके गवाह थे! पेड़ों से पत्ते लरजते हुए शाख से टूटते थे और वक्राकार घूमते हुए अर्श से फर्श पर!
उसी शाम, रोजाना की तरह, शर्मा जी आये मेरे पास, सारा माल-मसाला लाये थे! शर्मा जी ने एक सहायक दीपू को आवाज़ लगायी, दीपू आया और बिना कुछ सुने, उनको देखते ही सारा सामान लेने चला गया! थोड़ी देर बाद दीपू सारा सामान ले आया था, हमने सामान वहीँ रखवाया और फिर शर्मा जी ने उसको भी उसका एक अद्धा दे दिया! वो खुश हो गया! जैसे ही वो जाने लगा तो लिफ़ाफ़े से उन्होंने उसको और खाने का सामान दे दिया! दीपू खुश होकर चला गया!
"और सुनाइये शर्मा जी!" मैंने पूछा,
"सब बढ़िया!" वे बोले,
अब पैग बनाने शुरू किये उन्होंने!
"घर में सब कुशल-मंगल?" मैंने पूछा,
''सब ठीक ठाक" वे बोले,
अब हमने भोग देकर अपना अपन अपना पैग उठाया और गले के नीचे धकेल दिया! मदिरा को बोतल की क़ैद से मुक्ति दिला दी!
"गुरु जी? मेरे एक जानकार है, अमित साहब, यहीं फरीदाबाद में रहते हैं, आज उनका फ़ोन आया था, बड़ी अजीब सी बात बताई उन्होंने" वे बोले,
"क्या बताया?" मैंने पूछा,
"उन्होंने कहा कि उनका बड़ा लड़का आजकल बड़ा अजीब सा व्यवहार कर रहा है, किसी की सुनता ही नहीं और रोज रात को घर से बाहर जाता है, उस से कुछ पूछो तो बताता ही नहीं कुछ भी" वे बोले,
"क्या करता है लड़का?" मैंने पूछा,
"अभी तो पढ़ाई कर रहा है" वे बोले,
"कहाँ?" मैंने पूछा,
"दिल्ली में ही" वे बोले,
"अच्छा, व्यवहार का मतलब समझाइये?" मैंने पूछा,
"उनके अनुसार, वे लोग शाकाहारी हैं लेकिन वो मांस-मदिरा का सेवन करता है, घर लाता है सामान और फिर अकेले कमरे में बैठ कर रात रात भर न जाने क्या क्या करता रहता है?" वे बोले,
"हो सकता है कि खाने-पीने का शौक़ लग गया हो?" मैंने कहा,
"वो तो ठीक है, मैंने भी यही कहा था, लेकिन वो रात को बाहर जाता है, न जाने कहाँ?" वे बोले,
"अच्छा! और आता कब है?" मैंने पूछा,
"कभी दो बजे कभी चार बजे" वे बोले,
"हाँ, ये तो अजीब बात है" मैंने कहा,
"कहाँ रहते हैं? फरीदाबाद?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"और कुछ?" मैंने पूछा,
"मिलने की कह रहे थे आपसे" वे बोले,
"अच्छा, लड़के से पहले खुद बात क्यों नहीं करते वो?" मैंने पूछा,
"वो बात ही नहीं करता" वे बोले,
"अब बताइये इसमें मैं और आप क्या करेंगे?" मैंने पूछा,
"मैंने भी यही कहा, लेकिन.." वे बोलते बोलते चुप हो गए!
"लेकिन क्या?" मैंने पूछा,
"वो अब पढ़ाई करने भी नहीं जा रहा" वे बोले,
"नहीं जा रहा?" मैंने पूछा,
"हाँ" वे बोले,
"वो क्यों?" मैंने पूछा,
"पता नहीं" वे बोले,
"क्या कर रहा है ये लड़का?" मैंने खुद से ही सवाल किया,
"बात भी तो नहीं करता" वे बोले,
"ये तो समस्या है" वे बोले,
"हाँ, इसीलिए वे मिलना चाह रहे हैं" वे बोले,
"वैसे इसमें कोई ऊपरी चक्कर तो लगता नहीं मुझे, बेहतर होगा कि लड़के से बात करें पहले खुद, घर का मामला है उनके, हमारा क्या काम?" मैंने पूछा,
"बात तो सही है, लेकिन उन्होंने कहा कि एक बार मिलवा दें तो कुछ बताएँगे वे" वे बोले,
"ऐसा क्या है?" मैंने पूछा,
"ये नहीं बताया उन्होंने" वे बोले,
बड़ा अजीब सा मामला था!
"चलिए, बुला लीजिये" मैंने कहा,
"ठीक है गुरु जी" वे बोले,
"हाँ, बात कर लेते हैं" मैंने कहा,
"वैसे क्या कारण हो सकता है?" वे बोले,
"कह नहीं सकता" मैंने कहा,
"कोई क्रिया-सिद्धि में तो नहीं पड़ गया?" उन्होंने संशय जताया!
"हो भी सकता है" मैंने कहा,
"मुझे यही लगता है!" वे बोले,
"चलो एक बार बात कर लेते हैं" मैंने कहा,
"जी ठीक है" वे बोले,
उस रात हमने खाना-पीना खतम किया और फिर उसके बाद शर्मा जी वापिस चले गए! मुझे नय कोई काम नहीं था इसीलिए मैं भी पाँव पसार सो गया!
सुबह कोई ग्यारह साढ़े ग्यारह बजे करीब शर्मा जी आ गये वहाँ, साथ में उनके, उनके जानकार अमित साहब भी थे, नमस्कार हुई और फिर मैंने उनको बिठाया कक्ष में! थोड़ी देर बाद सहायक पानी ले आया और फिर उसके बाद चाय! अब हमारी बातें शुरू हुईं!
"अमित साहब, कल मैंने गुरु जी से आपके लड़के के बारे में बात की थी, अब इनको बताइये" वे बोले,
"गुरु जी, मेरा लड़का है ये गौरव, एक इस से बड़ी लड़की है, उसके ब्याह की बात चल रही है, लेकिन हम इस लड़के से बहुत परेशान हैं, घर से कट के रहता है बिलकुल" वे बोले,
"कब से कर रहा है ऐसा?" मैंने पूछा,
"कम से कम मानो तो आज छह महीने हो गये" वे बोले,
"छह महीने?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
अब उन्होंने वही सब बातें दोहरा दीं जो शर्मा जी ने बताई थीं!
"कभी बात की उस से?" मैंने पूछा,
"बात ही नहीं करता" वे बोले,
"ज़बरदस्ती बात करो?" मैंने कहा,
"जवान लड़का है, कहीं सीधा हो गया तो और इज्ज़त खराब गुरु जी" वे बोले,
"समझ गया" मैंने कहा,
"आपको क्या लगता है क्या समस्या है उसके साथ?" मैंने पूछा,
"पता नहीं जी, मैंने तो कई बार पूछा, कुछ बताता ही नहीं" वो बोला,
"घर में और किसी से बातें नहीं करता?" मैंने पूछा,
"किसी से भी नहीं" वे बोले,
"कमाल है!" मैंने कहा,
"गुरु जी एक बार देख लो लड़के को" वे बोले,
"देख लेता हूँ अमित साहब" मैंने कहा,
खुश हो गए वो!
"कभी किसी और से दिखवाया नहीं उसको?" मैंने पूछा,
"नहीं जी" वे बोले,
"आपको लगता है कोई ऊपरी चक्कर है?" मैंने पूछा,
"संदेह है जी" वे बोले,
"समझ सकता हूँ मैं अमित साहब" मैंने कहा,
"आप अपने घर का पता लिखवा दीजिये इनको" मैंने कहा,
अब उन्होंने पता लिखवा दिया!
"ठीक है, मैं परसों आता हूँ आपके घर" मैंने कहा,
"जी धन्यवाद गुरु जी" वे बोले,
इसके बाद वे लोग चले गए, शर्मा जी शाम को आने को कह गये! और मैं वापिस अपने कक्ष में लौट गया!
और फिर वो दिन आ गया, शर्मा जी सुबह ही आ गए, मैंने वहाँ चाय-नाश्ते का प्रबंध किया हुआ था, हमने चाय-नाश्ता किया और फिर हम निकल पड़े फरीदाबाद के लिए, अमित साहब को फ़ोन पर इत्तला कर दी गयी थी, अमित साहब हमे घर पर ही मिलने वाले थे, लड़का भी घर पर ही था, उस से बात करने की कोशिश की जा सकती थी, इसीलिए हम जा रहे थे वहाँ! रास्ता अधिक लम्बा तो नहीं था लेकिन यातायात के कारण एक किलोमीटर भी सही चलना सम्भव न था, रुकते-रुकाते और बत्तियों पर ठहरते, हम कोई ढाई घंटे में वहाँ पहुंचे, बल्कि ज्य़ादा ही, क्योंकि ढाई घंटे में तो हम फरीदाबाद ही पहुंचे थे! अब यहाँ से फ़ोन किया गया अमित साहब को, उन्होंने हमे और आगे आने को खा, हम और आगे बढ़ चले, तभी वहाँ एक निशानी दिखायी दी जैसा कि अमित साहब ने बताया था, वहाँ से दायें हो गए हम! और अंदर चल पड़े! यहाँ से भी करीब बीस मिनट लगे और उनके सेक्टर में आ गए हम! हमने उनके मकान का नंबर पूछा तो हमे पता लग गया, और हम अब बढ़ चले वहाँ! और इस तरह हम उनके मकान पर जा पहुंचे! वे हमे बाहर ही बैठे मिले, उन्होंने हमारी गाड़ी वहीँ लगवायी और फिर नमस्ते हुई, अब हम उनके साथ अंदर
चले! अंदर बिठाया गया हमको, हम बैठ गए, पानी आया तो पानी पिया हमने! अब उनकी बेटी और उनकी पत्नी भी आ गयीं वहाँ, नमस्ते हुई उनसे भी! तभी चाय भी आ गयी, घर में काम करने वाली महिला चाय ले आयी थी, अब हमने चाय पी! फिर कुछ बातें हुईं उस लड़के गौरव के बारे में, सबकुछ सदिंग्ध था उस लड़के के साथ, जो सुना उस से तो ऐसा ही लगा!
"क्या उम्र है लड़के की?" मैंने पूछा,
"जी तेईस साल" वे बोले,
"अच्छा, आज घर पर ही है?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"आपकी कुछ बात हुई उस से?" मैंने पूछा,
"नहीं जी" वे बोले,
"क्या बिलकुल भी बात नहीं करता?" मैंने पूछा,
"नहीं गुरु जी, कभी-कभार सामने आ जाए तो नज़र भर देख लेता है" वे बोले,
"कभी खुद भी बात नहीं करता?" मैंने पूछा,
"नहीं गुरु जी" वे बोले,
"ये तो हद है" मैंने कहा,
"बड़े परेशान है जी हम" वे बोले,
"कोई दोस्त आदि नहीं आता इसका?" मैंने पूछा,
"नहीं जी" वो बोले,
"खाना खाता है घर में?" मैंने पूछा,
"खाता था, लकिन अब तो छह महीने से सब बंद" वे बोले,
"अपना खर्च कैसे करता है?" मैंने पूछा,
"पता नहीं जी" वे बोले,
बड़ी अजीब बात थी! न तो कहीं नौकरी करता था और न ही कहीं से कोई आमदनी थी उसकी तो खर्चा कैसे करता था वो?
"आपने बताया था कि रात को अक्सर निकल जाता है बाहर और फिर देर रात गये आता है?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
अब रात में कहाँ जाता है? ये भी सवाल था? कहाँ जाता है? किसलिए जाता है? ये सभी सवाल बेहद महत्वपूर्ण थे और इनका उत्तर केवल वही दे सकता था! अब पता नहीं वो बात करे न करे? मैं कौन? ख्वामखाँ!
"अब बात न की उसने तो?" मैंने पूछा,
"कोशिश कर लेते हैं" अमित साहब बोले, बेचारे!
"चलो फिर" मैंने कहा,
अब हम उठे और चले उसके कमरे की तरफ, कमरा ऊपर बना था उसका, हम कमरे तक पहुंचे, कमरा बंद था, शायद अंदर से ही बंद था! अमित साहब ने आवाज़ लगायी पहले, एक बार, दो बार, तीन बार, कोई जवाब नहीं आया! अब उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया, एक बार, दो बार, तीन बार लेकिन कोई जवाब नहीं! अब फिर से आवाज़ दी! लेकिन कोई जवाब नहीं! अब फिर शर्मा जी ने आवाज़ दी, कई बार, कोई जवाब नहीं!
दरवाज़ा नहीं खुला! न ही कोई आवाज़ आयी! अब मैंने आवाज़ दी, कई बार, नहीं खुला दरवाज़ा, मैंने दरवाज़ा खटखटाया भी, लेकिन नहीं खुला, अब अमित साहब ने एक स्टूल लिया और उसको दरवाज़े के सामने रख कर, दरवाज़े पर बने जंगले से अंदर झाँका, अंदर नहीं दिखायी दिया वो!
अब अमित साहब ने दरवाज़ा पीटा! गुस्सा किया, गौरव को दरवाज़ा खोलने को कहा और धमकाया भी कि अगर दरवाज़ा नहीं खोला तो हम दरवाज़ा तोड़ देंगे! लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला!
अब हम हार गए!
"रहने दो, मैंने पहले ही कहा था कि अगर बात न की तो कोई फायदा नहीं होगा" मैंने शर्मा जी से कहा,
वे चुप थे! क्या कहते!
अमित साहब गुस्से से लाल थे! वे तो दरवाज़ा तोड़ने के लिए भी तैयार थे! मैंने मना कर दिया उनको! अब हम वापिस चले, और जैसे ही सीढ़ियां उतरने लगे, गौरव की आवाज़ आयी, 'पापा? पापा?' हम पीछे मुड़े और चले उस तरफ! गौरव अपना दरवाज़ा खोल कर खड़ा था, अमित साहब गए वहाँ, लेकिन गौरव ने अपने पिता को अंदर न जाने दिया! अब मुझे मामला गड़बड़ लगा!
"क्या बात है?" गौरव ने पूछा,
"बात करनी है तुझसे कुछ" वे बोले,
"मुझे नहीं करनी" वो बोला,
आव देखा न ताव! अमित साहब को गुस्सा आया और गालियां देते हुए उसको एक झापड़ रख दिया! और इस से पहले कि वो दूसरा झापड़ मारते गौरव ने अपने पिता को धक्का मार दिया! वे बेचारे नीचे गिर पड़े! उनको शर्मा जी ने उठाया, और अब मुझे गुस्सा आया! मैं सीधा गौरव के सामने खड़ा हो गया!
"ये तमीज़ है तेरी?" मैंने पूछा,
"तू कौन?" उसने पूछा,
"बता दिया तो बेहोश हो जाएगा!" मैंने कहा,
वो दरवाज़ा बंद करने लगा, मैंने बीच में पाँव फंसा दिया, धक्का-मुक्की शुरू हो गयी, अब शर्मा जी और अमित साहब ने भी दरवाज़े को धक्का दिया और दरवाज़ा खुल गया! हम अंदर आ गए! अंदर का दृश्य देखा तो लगा किसी श्मशान की कुटिया में आ गये हों! दीपक, चाक़ू, भस्म, भस्म-दान, बातियाँ, आसन और न जाने क्या क्या अटरम-शटरम!
"अब समझा!" मैंने कहा!
"क्या है ये?" अमित साहब ने देखते हुए पूछा,
"तांत्रिक-वस्तुएं! आपका बेटा तांत्रिक बन गया है! समझे आप!" मैंने कहा,
"क्या है ये सब गौरव?" उन्होंने अपने बेटे से पूछा,
वो कुछ न बोला!
"क्या है ये?" उन्होंने पूछा,
कोई जवाब नहीं!
"किसलिए कर रहा है तू ये?" शर्मा जी ने पूछा,
चुप खड़ा रहा वो!
"बता बेटा?" शर्मा जी ने पूछा,
कोई जवाब नहीं!
"अब आप समझ गए होंगे, मिल गए होंगे आपको सारे जवाब!" मैंने अमित साहब से कहा,
वे बेचारे मुंह लटका के खड़े हो गए!
"चलो अब" मैंने कहा,
खड़े रहे अमित साहब गौरव को देखते हुए!
"चलो शर्मा जी" मैंने कहा,
अब शर्मा जी ने अमित साहब को कंधे से पकड़ कर खींचा और हम बाहर आ गए, गौरव ने झट से अपना दरवाज़ा बंद कर दिया!
हम नीचे आ गए! अब अमित साहब ने सारी बात बता दी अपनी पत्नी को, वे बेचारी घबरा गयीं! गौरव तांत्रिक बनना चाह रहा था! लेकिन कहाँ से जानकारी मिली इसको? किताब से? या कोई है ऐसा आदमी इसके पास? रात को कहाँ जाता है? उसी से मिलने तो नहीं? खैर, ये उनके घर का मामला था, अभी गौरव को कोई दिक्कत नहीं थी, सो मेरा यहाँ कोई काम नहीं था, हाँ, अमित साहब को पता चल गया था जो चलना चाहिए था! हमारी बातें हुईं, लेकिन मैंने अमित साहब को कहा दिया कि गौरव को समझाना उनका काम है, उसकी माता का काम है, हमारा समझाना कोई मायने नहीं रखता! हम वहाँ से ये कह कर वापिस आ गए अपने स्थान!
हम अपने स्थान पर आ गए, जो देखा था वो समझ में आता था, गौरव ने तांत्रिक बनना चाहा था, कोई बुरी बात नहीं थी, लेकिन उसने स्थान गलत चुना था, अपना घर, कभी भी कोई समस्या आड़े आ सकती थी, जो उसके घर के लोगों को तो परेशान करती ही करती वो भी अछूता नहीं रहता! फिर भी, हम क्या कर सकते थे, कुछ और कहते उस से तो कौन सा मानना था उसको! अब तो अमित साहब ही समझाएं तो समझाएं!
"क्या कहते हो शर्मा जी?" मैंने पूछा,
"अब क्या कहूं?" वे बोले,
मुझे हंसी आयी!
"तांत्रिक बन रहा है वो!" कहा मैंने,
"हाँ जी" वे बोले,
"बनने दो चलो!" मैंने कहा,
"आ कहाँ से गयी ये बात उसके दिमाग में?" उन्होंने पूछा,
"होगा कोई कारण!" मैंने कहा,
"अच्छा-ख़ासा पढ़ाई कर रहा था, तांत्रिक बनने का भूत कैसे सवार हो गया एकदम?" उन्होंने कहा,
"पता नहीं शर्मा जी" मैंने सर के नीचे तकिया रखते हुए कहा,
"कहीं मार न खा जाए!" वे बोले,
"आपने वो सामान देखा था?" मैंने पूछा,
"हाँ?" उन्होने कहा,
"ये सामान अक्सर किताबों में नहीं लिखा होता, सबकुछ विधिवत था वहाँ, जैसा कि एक तांत्रिक करता है!" मैंने कहा,
"मतलब?" उन्होंने पूछा,
"कोई आदमी है इसके साथ ऐसा जो इसकी मदद कर रहा है!" मैंने कहा,
"अच्छा!" वे बोले,
"हाँ!" मैंने कहा,
"साला कौन हो सकता है ऐसा?" उन्होंने कहा,
"होगा कोई!" मैंने कहा,
"साले ने समझाया भी नहीं उसको?" वे बोले,
"समझाया भी हो अगर तो भी, वो लड़का अगर न माने तो?" मैंने पूछा,
"हाँ, ये भी है" वे बोले,
"अब छोड़ो!" मैंने कहा,
"सही बात है, क्या कर सकते हैं हम" वे बोले,
कुछ और बातें हुईं हमारी उसी लड़के गौरव के बारे में, फिर शर्मा जी चले गए अपने काम से, अब वे शाम को आने वाले थे! मैं भी अपने कक्ष में जाकर लेट गया और कुछ पल के लिए फिर से उस
लड़के के कमरे में खो गया! वहाँ तांत्रिक-वस्तुएं बिखरी पड़ी थीं! कोई न कोई तो उसको मार्गदर्शन दे रहा था! फिर मैंने सोचा कि अब जो हो सो हो, काहे दिमाग चलाया जाए!
शाम हुई और फिर बजे आठ!
शर्मा जी आ गए माल-टाल ले कर! सहायक को आवाज़ दी, वो आया और सारा सामान रख गया! फिर शर्मा जी ने उसको भी उसका अद्धा पकड़ा दिया, वो खुश होकर चला गया! हाँ, उसको खाने के लिए भी दे दिया था!
"आज फ़ोन आया था" वे बोले,
"अमित साहब का?" मैंने पूछा,
"हाँ" वे बोले,
"क्या कह रहे थे?" पूछा मैंने,
"उन्होंने बात की थी बाद में लड़के से" वे बोले,
और मेरा पैग मुझे पकड़ाया, हमने फिर भोग दिया और फिर अपना अपना गिलास खाली कर दिया! रख दिया नीचे!
"क्या कहा लड़के ने?" मैंने पूछा,
"उसने कहा कि वो पूजा करता है" वे बोले,
मुझे हंसी आयी!
"ऐसी कौन सी पूजा है जो घरवालों से बात करने को मना करती है!" मैंने कहा,
"फिर कहता कि उसको कोई तंग न करे, अच्छा नहीं होगा!" वे बोले,
''अच्छा! धमकी दे दी उसने आखिर!" मैंने कहा,
"हाँ, ये ही बात है" वे बोले,
"दिमाग चल गया है उसका!" मैंने कहा,
"पता नहीं! किस झमेले में फंस गया!" वे बोले,
"अब फंस गया तो फंस गया!" मैंने कहा,
फिर से अपना पैग वाला गिलास खाली किया हमने!
तभी मेरे कक्ष में वही सहायक आया, उसने कहा कि साथ वाले जो बाबा हैं वे कुछ बात करना चाहते हैं, मैंने उसको कह दिया कि भेज दें! वो चला गया!
"कौन ये शंकर?" शर्मा जी ने पूछा,
"हाँ, वही शंकर" मैंने कहा,
और तभी शंकर बाबा आ गए अंदर!
अलख-निरंजन हुआ और वे बैठ गए!
"बनाऊँ?" मैंने पूछा उनसे,
"बस हमारा भी कार्यक्रम चल रहा है!" वे बोले,
"बताइये, मुझे ही बुला लिया होता?" मैंने कहा,
"कोई बात नहीं!" वे बोले,
"बताइये?" मैंने पूछा,
"कल मुझे जाना है वाराणसी, तो यहाँ का काम भी देख लेना, मैं दो दिन बाद आ जाऊँगा वापिस" वे बोले,
"आप आराम से जाइये" मैंने कहा,
"ज़रा देख लेना" वे बोले,
"हाँ मैं देख लूँगा" मैंने कहा,
"मैं आ जाऊँगा दो दिन बाद" वे बोले,
"कोई बात नहीं" मैंने कहा,
अब वे उठे और चले गए!
"क्या देख लेना? काम?" शर्मा जी ने पूछा,
"हाँ, कोई आये जाए तो बात कर लेना!" मैंने कहा,
"अच्छा!" वे बोले,
"ये कह जाते हैं ऐसे" मैंने कहा,
"कोई बात नहीं" वे बोले,
तभी वो सहायक फिर से आया, एक बड़े से बरतन में कुछ लाया था, उसने वो वहाँ रख दिया, ये खाना था!
"बाबा ने भिजवाया है" सहायक ने कहा,
''अच्छा अच्छा!" मैंने कहा,
फिर सहायक चला गया!
"लो शर्मा जी!" मैंने कहा,
अब हम दोनों ने दो चम्मचें मंगवाईं और खाना खाने लगे!
"बढ़िया बनवाया है!" मैंने कहा,
"हाँ!" वे बोले,
फिर से एक और पैग बनाया और गले से नीचे उतार दिया!
"हाँ बात कर रहे थे आप उस लड़के की" वे बोले,
"हाँ, अब छोड़ो यार!" मैंने कहा,
"मुझे तो हैरत है वैसे अभी तक!" वे बोले,
"कोई बात नहीं, पिट-पिटा के बैठ जाएगा घर में आराम से, हाँ, कहीं अच्छा गुरु मिल गया तो सम्भव है सीख भी जाए तांत्रिक-क्रियाएँ!" मैंने कहा,
"ये तो समय ही बतायेगा!" वे बोले,
और फिर हम खाने पीने में मस्त रहे! शर्मा जी उस रात वहीँ ठहरे मेरे साथ! और भी बातें हुईं उस लड़के के बारे में!
मित्रगण!
समय बीत गया! समय बीतते देर नहीं लगती! सूर्य नित्य पूर्व से रथ पर सवार होते हैं और अस्तांचल में प्रवेश कर जाते हैं! समय-चक्र घूमता रहता है! नित्य रात्रि आती है और नित्य ही सुबह होती है! ऐसे ही समय आगे बढ़ता रहता है और हम उतने ही काल के करीब होते चले जाते हैं! दिन प्रतिदिन!
करीब चार महीने गुजर गए, अमित साहब से बातें कभी एक हफ्ते में और कभी दस दिन में हो ही जाती थीं, मैं उस लड़के के विषय में कुछ नहीं पूछता था, बस मुझे शर्मा जी बता दिया करते थे, ऐसी ही एक सुबह जब शर्मा जी आये तब उन्होंने मुझे बताया कि गौरव पिछली रात को घर से गया था रोजाना की तरह और उसके बाद से वापिस नहीं आया, उसका कमरा बाहर से बंद है, कहीं चला गया है यही बताया गया मुझे!
"गया होगा कहीं" मैंने कहा,
"अमित साहब चिंतित हैं कि कहाँ चला गया?" वे बोले,
"अब तांत्रिक बन रहा है वो, ऐसे तो उसको जाना ही होगा कहीं न कहीं!" मैंने चुटकी ली!
बस ऐसे ही हम बातें करते रहे! अपना जो नित्य का नियम था वो चलता रहा!
एक हफ्ता और बीत गया!
लेकिन लड़के का कोई पता नहीं चला! न ही कोई खबर आयी और न ही कोई फ़ोन! अब घर पर सभी हो गए चिंतित, लाजमी भी था चिंतित होना, मुझे कोई चिंता नहीं हुई, मुझे मालूम था कि किसी सिद्धि आदि के चक्कर में बाहर गया होगा! बात मेरे लिए आयी-गयी हो गयी! कोई खबर आती तो पता चल ही जाता!
एक हफ्ता और गुजर गया!
कोई खबर नहीं आयी!
और एक दिन मेरे पास अमित साहब और उनकी पत्नी आ गये मिलने, इसी सम्बन्ध में! मैंने उनकी बातें सुनीं, उनकी पत्नी की हालत खराब थी, आखिर एक माँ थीं वो! अमित साहब भी चिंता के मारे सेहत गंवाते जा रहे थे, मुझे तब ये मामला गम्भीर लगा!
"आपने दरवाज़ा खोला उसका?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" वे बोले,
"कुछ पता चला?" मैंने पूछा,
"वो अपना सामान भी ले गया है साथ" वे बोले,
"अच्छा, इसका मतलब कहीं गया है साधना करने" मैंने कहा,
"हो सकता है जी" वे बोले,
"अब आप क्या चाहते हैं अमित साहब?" मैंने पूछा,
"गुरु जी? क्या ऐसा कोई रास्ता है कि उसके बारे में पता चल जाए?" उन्होंने पूछा,
मैंने विचार किया,
सोचा,
"हाँ है" मैंने कहा,
"लग जाएगा पता?" उन्होंने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
"तो पता कर दो गुरु जी!" वे बोले और बोलते ही रो पड़े!
एक बाप का दिल फट पड़ा! पुत्र-प्रेम से गला भर आया, शब्द बाहर नहीं आये! मुझे वो दृश्य भी याद आया जब उस लड़के ने अपने इसी पिता को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया था! उनकी पत्नी भी चेहरा ढक कर रोये जा रही थीं! मेरे लिए समस्या उत्पन्न हो गयी थी! जो नहीं चाहता था वही हो गया था!
अब मैंने उनको हिम्म्त बंधाई!
समझाया, बुझाया और बता दिया कि मैं पता कर लूँगा कि लड़का कहाँ है इस समय, वे चाहें तो उसको ढूंढ सकते हैं! और ये भी बताया कि वो लड़का अपनी मर्जी से गया है तो बेहतर यही होगा कि वो अपनी मर्जी से ही आये! वे मान गए!
अपने दिल में आशा लिए वे माँ-बाप चले गये वहाँ से!
शर्मा जी वहीँ बैठे थे!
"हो गयी न समस्या?" मैंने कहा,
"अब क्या करें?" वे बोले,
"कोई बात नहीं, अब पता कर लूँगा मैं" मैंने कहा,
"कर लीजिये गुरु जी" वे बोले,
"आज ही कर लूँगा" मैंने कहा,
"वैसे गया कहाँ हो सकता है?" उन्होंने पूछा,
