वर्ष २०१२ नॉएडा के ...
 
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वर्ष २०१२ नॉएडा के एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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Joined: 2 years ago
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रात दस बजे,

शहज़ाद हाज़िर हुआ अकेला! दमकता हुआ! अपने संग जिन्नाती फूल लिए, बड़े बड़े सुलतान गुलाब लिए! उसने मुझे देख सर हिलाया और मैंने उसे! वक़्त वही से चलना शुरू हुआ जहां से उस दिन रुका था!

निवि चहक उठी!

शहज़ाद ने निवि को देखा! उसके करीब आया,

निवि उठी और उसकी कमर तक ही आयी वो! कैसे बेमेल में!

देखा था मैंने अपनी आँखों से!

फैंसला हो चुका था!

बस होठों से तस्दीक़ होना बाकी था!

"आपने समझाया मेरी मेहबूबा को?" शहज़ाद ने पूछा,

"जितना समझा सकते थे" मैंने कहा,

"तब तो आप हार गए आलिम" उसने कहा,

"आपकी मुहब्ब्त के आगे" मैंने कहा,

"मैंने आपको लाख समझाया था, मान जाते तो एक माह की जुदाई न होती, मुझसे पूछिए जुदाई का वो आलम" उसने कहा,

"मैं समझ सकता हूँ" मैंने कहा,

अब गले से लगा लिया शहज़ाद ने उसे!

निवि लिपट के खूब रोई!

शहज़ाद आंसू पोंछता रहा उसके!

मैं ऊपरवाले पर हंस रहा था! अरे! देख! नीचे आके देख! अपने बन्दे देख! उनके करम देख! बेमेल मेल देख!

फिर और हंसा!

क्या देख! तू तो सब जानता है!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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Topic starter  

तेरी रजा के बगैर क्या होता है!

सांस अंदर जाए और वापिस ही न आये!

माफ़ करना!

इंसान हूँ, इंसानी फ़ितरत है!

हार!

हाँ!

हार गया मैं!

क्या करूँ!

हारना पड़ा!

जज़बातों से हार गया मैं!

कोमल मुहब्ब्त के फोकी रुई से बने हलके जज़्बात मुझ पर बहुत भारी पड़े!

हाँ............

सही कहा तूने शहज़ाद!

हार गया मैं!

हार गया एक आलिम!

हाँ.......

हार क़ुबूल!

"आलिम?" शहज़ाद ने कहा,

"हाँ?" मैंने पूछा,

"शुक्रिया" उसने कहा,

"किसलिए?" मैंने पूछा,

"जानबूझकर हारने के लिए!" वो बोला,

मैं चुप! जैसे मानों पानी में डूब गया होऊं मैं!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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मैं जानबूझकर नहीं हार शहज़ाद! तुम्हारी मुहब्ब्त ने हराया मुझे!" मैंने कहा,

"नहीं! आप अगर चाहते तो मुझे फ़ना कर देते, नामोनिशान मिटा देते मेरा! है या नहीं?" उसने पूछा,

मेरा चुप रहना ही बेहतर था!

सो चुप रहा!

और तभी शेख साहब हाज़िर हुए!

मैंने सलाम किया!

सलाम क़ुबूल हुआ!

मैं हंसा!

वे भी हँसे!

बातचीत हो गयी!

और फिर मेरा दोस्त गवाह हाज़िर हुआ!

मेरे पास आया और मेरा माथा चूमा!

"कभी भी याद करना, मैं दर पर हाज़िर हो जाऊँगा" उसने कहा,

चुप मैं!

मैं चलने लगा तो शहज़ाद ने रोक लिया!

"मौका मिले तो कभी मेहमान नवाजी का मौका दीजियेगा" वो बोला,

मैंने हाँ में गर्दन हिलायी!

"मैं बिछ जाऊँगा, मेरे ऊपर से मेरी दहलीज पर करना" उसने कहा,

मैं हल्का सा हंसा!

और कमरे से बाहर!

मैंने बता दिया कि अब निवि निवि नहीं!

जिसने रोना है रोये जिसने हंसना है हँसे!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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Topic starter  

वक़्त बीत चला!

इक्कीस नवंबर २०१२ की रात को निवि ऐसी सोयी कि कभी उठी ही नहीं! केवल उसकी देह ही उठी!

अब कुछ भी कहो!

शहज़ाद ले गया,

या,

वो खुद चली गयी!

फैंसला उसका था!

हाँ, मैंने कभी शहज़ाद को नहीं बुलाया, न मेहमान ही बना उसका, हालांकि मुझ पर दबाव बनाया गया निवि के परिवार द्वारा, लेकिन मैं नहीं झुका! तंत्र खेल नहीं!

हाँ, मेरा गवाह दोस्त ज़रूर आया! दो बार, मिलने के लिए, और न ओ मैंने और न कभी उसने निवि का ज़िकर किया

----------------------------------साधुवाद---------------------------------

 


   
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