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वर्ष २०१२ जिला रोहतक की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मैंने अब इबु को वहीँ मुस्तैद कर दिया और फिर एक धागा बनाया! धागा अभिमंत्रित किया और नेहा के गले में बाँध दिया! कुछ घंटों के लिए अब कोई सवार नहीं अ सकता था!

अब इबु भी वापिस हो गया!

अन!

सबसे बड़ा सवाल!

कौन है वो खिलाड़ी?

 

खिलाड़ी!

कौन है ये खिलाडी? जो परदे के पीछे से सारी चाल चल रहा है, बेहद करीने से! मानना पड़ेगा, बहुत कुशल और चालाक खिलाड़ी है! उसने नेहा कि रूह पर कब्ज़ा कर लिया है, और फिर उसको कैडि सा बना कर जगह खाली कर दी है, आये कोई भी आये! ये विद्या काहूत कही जाती है! बदला लेने की ये ज़बरदस्त कारीगरी है! अब यही खोजना था!

नेहा शांत लेटी थी, एक दम शांत, मैंने उसके माँ-बाप को अब बुला लिया अंदर, अब मैं उसको होश में लाने वाला था इसीलिए,

"नेहा?'' मैंने कहा,

वो अलसाई!

"खड़ी हो जाओ" मैंने कहा,

वो कसमसाई, अपने आप में सिमटी,

"उठो?" मैंने कहा,

वो उठ गयी, अंगड़ाई लेते हुए! हमे देख घबरा गयी! हम अनजान थे उसके लिए, उठते ही उसने अपनी चुन्नी ढूंढी जो उसको उसी माता जी ने दे दी, वो समझ नहीं पायी कि आखिर हम कौन लोग हैं और क्यों आये हैं?

"अब कैसी हो?" मैंने पूछा,

"ठीक" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मुझे तसल्ली हुई!

"नेहा, कुछ सवाल पूछूंगा, मुझे उसके सही सही जवाब देना" मैंने कहा,

अब वो अनजान को सवाल के जवाब क्यों दे?

आखिर में उसके पिता जी ने सारी बात समझायी, वो हुई तो परेशान लेकिन फिर हामी भर ली!

"क्या करती हो?" मैंने पूछा,

"चार महीने पहले नौकरी शुरू कि है एक बीमा एजेंट के यहाँ, साथ ही साथ पढ़ाई भी चल रही है" उसने बताया,

अब शर्मा जी तैयार थे कागज़ और कलम लिए, उन्होंने विवरण लिख लिया,

"कौन है ये बीमा एजेंट?" मैंने पूछा,

"अजय सक्सेना" उसने बताया,

"क्या उम्र होगी?" मैंने पूछा,

"कोई चालीस साल" वो बोली,

"कहाँ रहता है?" मैंने पूछा,

"यहीं रोहतक में" उसने बताया,

"कितने लोग काम करते हैं वहाँ और?" मैंने पूछा,

"चार लोग" उसने बताया,

"और कौन लड़की है वहाँ?" मैए पूछा,

"तीन और हैं" उसने कहा,

"शादी शुदा हैं सभी?" मैंने पूछा,

"दो हैं, एक नहीं" उसने बताया,

अब मैंने सभी के नाम लिख लिए, अर्थात शर्मा जी ने लिख लिए,

"किस के साथ अंतरंगता है तुम्हारी?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"एक लड़की मनीषा से" मैंने पूछा,

"तुमसे बड़ी है या छोटी?' मैंने पूछा,

"बड़ी है" उसने बताया,

अभी तक तो कोई संदिग्ध नहीं मिला था!

"नेहा, कोई प्रेम-सम्बन्ध है तुम्हारा?" मैंने पूछा,

अब वो चुप!

"चुप न रहो, तुम्हारी जान पर बनी है, समझ जाओ?" मैंने कहा,

अब वो चुप फिर से!

"मुझे बताओ?" मैंने कहा,

"नहीं" उसने कहा,

"झूठ" मैंने कहा,

"नहीं, कोई सम्बन्ध नहीं" उसने कहा,

"फिर से झूठ" मैंने टटोला उसको,

"विश्वास कीजिये" वो बोली,

"ठीक है" मैंने कुछ सोच के बोला,

"तुम बीमार हो?" मैंने पूछा,

"हाँ" उसने गर्दन हिलायी,

"कहीं बाहर गयी थीं?" मैंने पूछा,

"नहीं" उसने उत्तर दिया,

"कुछ बाहर खाया था?" मैंने पूछा,

"नहीं" उसने बताया,

कुछ हाथ नहीं लगा पेंच!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब कुछ नाम जो आये थे, उनकी जांच करनी थी! हो सकता था कुछ हाथ लग जाए!

"ठीक है, तुम नहा-धो कर आओ पहले" मैंने कहा,

वो उठी और चली गयी अपनी माँ के साथ!

 

मुझे एक खाली कमरा चाहिए" मैंने अशोक से कहा,

"जी" वे बोले, उठे और चल दिए, हम दोनों उनके पीछे पीछे चल दिए,

उन्होंने एक कमरा दिखा दिया, कमरा खाली था, बस कुछ सामान रखा था वहाँ, उस से कोई परेशानी नहीं थी,

"ये ठीक है" मैंने कहा,

अब शर्मा जी और अशोक को बाहर भेजा मैंने, एक चादर बिछायी और मैं कुछ पढ़ने बैठ गया, एक महाप्रेत का आह्वान किया, ये कारिंदे की तरह से काम करता है, नाम है जल्लू, जल्लू हाज़िर हुआ, मैंने उसको उद्देश्य बताया, उसने सुना और फुर्र हुआ, दूसरे ही क्षण वापिस आ गया, और उसने मुझे एक नाम बताया, गोविन्द, बस! इतना बताते ही वो लोप हो गया, भोग उधार कर गया! अब इस नाम से कुछ पता नहीं चल सकता था, हज़ारों गोविन्द होंगे, अब क्या कौन और कहाँ हैं और कैसे सम्बंधित है नेहा से, क्या पता? इसलिलिये मैंने अब सुजान को हाज़िर किया, सुजान टकराऊ है, सुनता है और समझता है, सुजान हाज़िर हुआ, और अपना उद्देश्य जान वो चला वहाँ से! अब मुझे इत्मीनान हुआ!

कुछ देर हुई!

करीब दस मिनट!

और सुजान वापिस हुआ!

और जो सुजान ने जानकारी दी वो वाक़ई हैरत में दाल देने वाली थी!

सारी गलती इस लड़की नेहा की थी!

दरअसल नेहा के एक लड़के गोविन्द से प्रेम-सम्बन्ध थे, ये मैं जानता था, उसके भाव सबकुछ बता चुके थे, और नेहा उस लड़के पर निरंतर दबाव बनाती थी कि वो शादी का प्रस्ताव लेकर अपने माँ-बाप के साथ उसके घर आये, गोविन्द का भी कोई पक्क रोज़गार नहीं था, पिता पर आश्रित था, दो बड़े भाई थे, एक अविवाहित था, पिता के व्यापार में सभी साझी थे, तो विावह


   
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श्रीशः उपदंडक
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उस समय नहीं हो सकता था, निरंतर त्रस्त रहने से गोविन्द ने ये बात अपने मामा को बताई, उसने मामा अखिल ने इस लड़की नेहा का मुंह बंद करने के लिए एक खिलाडी बाबा असद को चुना और ये लड़की उस चतुर बाबा असद के चंगुल में आ गयी! अब ये बाबा असद की चौपड़ की गोटी थी! बाबा असद इसको जब चाहे, जहां चाहे चल ले!

जड़ पकड़ में आयी तो अब उखाड़ना भी बाकी था, सो मैंने अब रणनीति बनाना आरम्भ किया! मैंने ककश से बाहर आया, शर्मा जी और अशोक वहीँ खड़े थे, मैंने शर्मा जी को अंदर बुला लिया और सारी कहानी से अवगत करा दिया! उनको भी हैरत हुई! नेहा ऐसी लगती नहीं थी!

"अब क्या किया जाए?" मैंने पूछा,

"सबसे पहले तो अशोक को खबर की जाये, फिर इस बाबा असद की खबर लीजये" वे बोले,

"हाँ, ये सही है" मैंने कहा,

अब शर्मा जी ने अशोक को बुलाकर सारी बात बता दी अशोक को! अशोक को तो घड़ों पानी फिर गया, आँखों से आंसू निकल आये!

शर्मा जी ने समझाया बुझाया!

"चलो, अब नेहा से बात करते हैं" मैंने कहा,

"चलिए" अशोक ने कहा,

अब हम नेहा के कमरे में आये, वो नहा-धो कर बैठी थी, साथ में उसकी माता जी भी! हम वहीँ बैठ गए!

"नेहा?" मैंने कहा,

"जी?" वो चौंकी,

"ये गोविन्द कौन है?" मैंने पूछा,

कपडा सा फट गया!

उसको जैसे दामिनी-पात हुआ!

"नहीं पता?" मैंने पूछा,

होंठ चिपक गए उसके!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बताओ?" मैंने कहा,

अब सबकी निगाह टकराई उस से!

"कौन है ये गोविन्द?' मैंने पूछा,

"म...मुझे नहीं मालूम" वो बोली,

"नहीं मालूम?" मैंने ज़ोर से पूछा,

"नहीं" उसने कहा,

"तुम्हारा प्रेमी नहीं वो?" मैंने अब स्पष्ट किया,

वो चुप!

"बताओ?" मैंने पूछा,

नहीं बोली कुछ!

"ठीक है, अब देखो उसका क्या हाल होता है, जैसा उसने तुम्हारे साथ किया वैसा ही उसके साथ होगा!" मैंने कहा,

प्रेम था तो घबराहट भी होनी ही थी! सो घबरा गयी!

"इसकी नौकरी छुड़वाओ, घर पर बिठाओ और आनन्-फानन में जो रिश्ता मिले इस घर से विदा करो" मैंने जानबूझकर ऐसा कहा,

"जी" अशोक ने समर्थन किया!

"जी, मैं केवल आपसे बात करना चाहती हूँ" नेहा ने कहा,

"नहीं, सबके सामने कहो" मैंने कहा,

फिर से चुप!

अब सबके सामने बात कैसे हो? संकोच जो था! माँ-बाप से छुपाओगे तो यही होगा ना? पुत्र-पुत्री को माता-पिता से और पति को पत्नी से और पत्नी को पति से कभी कुछ नहीं छिपाना चाहिए, गलती भी हो जाए तो बता देना चाहिए अन्यथा परिणाम गम्भीर ही होता है, और यही हुआ था नेहा के साथ, उसने एक तरह से दबाव बनाया गोविन्द पर, और अल्प-बुद्धि गोविन्द जब समझाने से हारा नेहा को तो उसने ये निर्णय लिया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बोलो अब?" मैंने कहा,

अब कुछ ना बोले वो!

"बताओ बेटी?" अशोक ने कहा,

माँ पास जा बैठी, सीने से लगाया और पूछा,

अब बोलने लगी नेहा!

सब क़ुबूल कर लिया उसने!

मुझे तसल्ली की साँसें आने लगीं!

'अशोक साहब?" मैंने पूछा,

"हाँ जी?" वे चौंके,

"यदि लड़के के माँ-बाप मान जाएँ विवाह हेतु तो क्या आप विवाह के लिए तैयार हैं नेहा के उस लड़के गोविन्द से?"

"मुझे कोई आपत्ति नहीं" वे बोले,

"ले देख नेहा!" मैंने कहा,

संकोच!

"ले, यदि तूने पहले बता दिया होता तो ये दिन ही नहीं आता, तू काहे परेशान होती?" मैंने कहा,

ग्लानि भावना!

"शर्मा जी, तैयार हो जाइये, अशोक जी आप भी" मैंने कहा,

"मैं तैयार हूँ" अशोक बोले,

दरअसल हमे जाना था बाबा असद के पास! बाबा असद का पता दे दिया था हमको कारिंदे ने!

अब हम चल पड़े वहाँ से! एक बात और, नेहा के पास अभी तक कोई नहीं आया था!

बाबा असद, रोहतक से थोडा दूर दिल्ली-बाय पास के समीप रहता था, हमने फ़ौरन गाड़ी स्टार्ट की और चल दिए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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घंटे भर में वहाँ पहुंचे, रास्ता साफ़ था, सीधे बाबा असद के पास पहुंचे, कोई दिक्कत नहीं हुई!

बाबा असद अपने घर में ही था, छोटा सा घर!

हम घर में घुसे, वो तखत पर बैठा था!

"आइये आइये!" वो बोला और उठा!

करीब साठ का रहा होगा वो!

हम बैठ गए वहाँ, उसने पानी मंगवा लिया, हमने पानी पिया!

"अब ठीक है लड़की?" उसने पूछा,

होश उड़े अशोक के!

"हाँ" मैंने कहा,

"चलो, बड़ी अच्छी बात है" वो बोला,

उसमे कपट नहीं था! क़तई नहीं!

"वैसे बाबा, लड़की मर जाती तो?" मैंने पूछा,

"नहीं, आप तो जानकार हैं, जब आपने छुआ तो मैं समझ गया, और हाँ मियादी कम था, केवल लपेट लगाईं थी, मैं भला क्यों मारूंगा, मैंने तो लड़के को कहा था, कि ये गलत है और तू अपने माँ-बाप से बात कर और मना उन्हें, ब्याह करना ही होगा तुझे" बाबा ने कहा,

ये सच था!

"तो उसने बात की?" मैंने पूछा,

"हाँ, उनके बड़े लड़के का भी रिश्ता तय हो गया है, अब दोनों लड़कों की शादी दो रोज आगे पीछे करेंगे वो! अब आपके पास भी आने ही वाले होंगे!" बाबा ने हंस के कहा,

मैंने यक़ीन किया!

बाबा असद ने फ़ोन किया लड़के के मामा अखिल को, और बुलवा लिया वहाँ, आधे घंटे में पहुँच जाने थे वो!

अब तक चाय और बिस्कुट मंगवा लिए थे बाबा असद ने, हमने चाय भी पी और बिस्कुट भी खाये!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"आजकल का वक़्त बहुत बदल गया है जी, हमारे वाला ज़माना नहीं रहा, अब सब अपनी अपनी मनमर्जी करते हैं, ये लड़का और लड़की अपने अपने घर में बात कर लेते तो ये नौबत कहाँ होती" वे बोले,

"सही कहा जी" मैंने कहा,

"चलो देर आये दुरुस्त आये" वे बोले,

"मैंने लड़के को समझाया था, लक बहुत घबराया हुआ था, लड़की ने ख़ुदकुशी की धमकी दी थी बेचारे को, अब मुझे ऐसा करना ही पड़ा, आप मुझे माफ़ करें, बच्ची हमारे घर में भी है, जैसी आपकी बेटी ऐसी मेरी बेटी, मैंने लड़के को धमकाया भी था, कोई चालगुरेजी की तो रूह को भी सजा दूंगा उसकी!" वे बोले,

लाख पते की बात!

आधा घंटा बीता नहीं होगा कि अखिल भी आ गए वहाँ, परिचय हुआ, बाबा असद ने हमारा ही पक्ष लिया और तज़वीज़ की कि हमको गोविन्द के माँ-बाप से मिलवा दें, बात तय हो जाये तो एक घर बसे! हमने बाबा असद को भी साथ ले लिया, वो ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गए, तैयार इसलिए कि खुद बताएं गोविन्द के माँ-बाप को कि लड़का क्या करवाने आया था अपने मामा के साथ!

और फिर वही हुआ! हम सभी पहुंचे गोविन्द के घर! गोविन्द ने बात कर ली थी अपने घर में! और अब बाबा असद ने सारी बात दोहरा दी! उसके माँ-बाप गोविन्द पर बड़े गुस्सा हुए, बेहद शालीन थे उसके माता-पिता! कुल मिलाकर बात पक्की या रिश्ता पक्का हो गया! आगे का कार्यक्रम भी पक्का हो गया!

बाबा असद को दोनों तरफ से निमंत्रण मिला, बाबा ने नेहा के तरफ से ही निमंत्रण माना और घराती हो गए!

सबकुछ निबट गया!

वर्ष २०१३ में दोनों परिणय-सूत्र में बंध गए! बाबा असद से मेरी मित्रता हो गयी! अब उनका मेरा आना जाना हैं!

नेहा और गोविन्द सभी खुश हैं!

जो मेरा कर्त्तव्य था, मैंने निभा दिया!

----------------------------------साधुवाद---------------------------------


   
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