"और तुम! तुम डटे रहना! बहुत आयेंगे ऐसे, मुझसे बाबा! अपना प्रायश्चित करने, जो मेरी तरह पैंसठिया में बंधे हैं, बिना भविष्य जाने!" वे बोले,
फिर उन्होंने अपनी कुछ वस्तुएं मुझे सौंप दीं, वो मेरे पास आज भी हैं!
"मैं चलूँगा, मेरी यात्रा समाप्त हुई आज" वे बोले,
"बाबा ठहरिये, यहाँ वास कीजिये" मैंने कहा,
"नहीं! अब नहीं, अब थक चुका हूँ मैं, मुझे अपने गुरु के क़र्ज़ से मुक्त होना है" वे बोले,
"बाबा यहाँ एक मंदिर बनेगा! आपके लिए!" मैंने कहा,"मेरे लिए नहीं, उनके लिए, जिनसे ये सारी कहानी आरम्भ हुई थी! मेरा आशीर्वाद उन्हें, वे अपने लोक लौट जायेंगे सकुशल!" वे बोले,
और मेरे देखते ही देखते धुंए के सामान गायब होते चले गए बाबा!
बस नाम रह गया!
बाबा सोनिला सपेरा!
नमस्कार उन्हें!
वे लोप हुए तो नाग-पुरुष दुमुक्ष और उर्रुन्गी मेरे समक्ष प्रकट हुए! उनकी प्रसन्नता से बड़ा कोई खजाना नहीं लगा मुझे! धनपति कुबेर का खजाना भी फीका ही लगा!
"आपके ऋणी रहेंगे हम सर्वदा!" दुमुक्ष ने कहा!
मैं शांत रहा!
उर्रुन्गी ने नमस्कार के मुद्रा में हाथ जोड़े!
"विलम्ब न कीजिये, अपने लोक को वापिस हो जाइये इसी क्षण!" मैंने मुस्कुरा के कहा,
"हम प्रत्येक नाग-पंचमी पर भ्रमणशील रहते हैं कई साधकों के पास! हम आपके पास भी आयेंगे!" वे दोनों बोले,
"मेरे पास नहीं हे दुमुक्ष! यहाँ एक नाग-मंदिर बनेगा, आप उस पर आशीष रखें!" मैंने कहा,
"अवश्य!" वे बोले
----------------------------------साधुवाद---------------------------------
- अहोभाग्य जो मानव श्रेष्ठ मूल्यों से अवगत कराया आपने, कोटिशः नमन आपके श्री चरणों में 🌹🙏🏻🌹
कैसे कैसे खेल है पैसाठीया के चक्कर मे कितने ही उलझे है, जब सच का सामना होता है, तब गुरु का ऋण याद आ जाता है, और पहुच जाते है यही जहा से चालू होते है