वर्ष २०१२ जिला धौलप...
 
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वर्ष २०१२ जिला धौलपुर की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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आ?" बोला वो! कुछ न बोली वो। "आ न?" बोला वो! गंगा कुछ न बोली अब भी! "आ न गंगा?" बोला वो! गंगा पर्दा डालने को ही थी कि, "सुन? देख, मिठाई लाया हूँ तेरे लिए! बहुत दूर से! आ जा!" बोला बो! गंगा चप खड़ी रही। "देख, ये देख?" बोला वो! मिठाई थी उसके हाथों में काफी सारी "आ जा, ले ले!" बोला वो! अब गंगा पलट गयी, पर्दा डाल दिया उसने! अब रोने की आवाज़ आई उसे! उसने खिड़की और पर्दे के बीच की झिरी से बाहर झाँका, नीचे बैठा, अपने घुटनों पर हाथ रखे, रो रहा था तेजराज, मिठाई, गोद में रखे। "गंगा, तू कब समझेगी, कब समझेगी तू?" रोते हुए बोला, 

चेहरा नीचे किये हुए! "मैं अभागा हूँ गंगा, अभागा, अभागा हूँ मैं" बोला वो, हिचकी सी ली, "कोई नहीं मेरा, कोई नहीं, अकेला हूँ मैं, अकेला" बोला वौ, 

और खड़ा हुआ, मिठाई गिर गयी नीचे ज़मीन पर, सर ऊपर किया उसने, "गंगा? कब जानेगी तू?" बोला वो, फिर हंसने लगा। ज़ोर ज़ोर से! "तेजराज, मर गया!! मर गया तेजराज!" हँसते हुए बोला! 

"मरे हए का क्या प्रेम! क्या मोल!" बोला वो, 

और लौट पड़ा! हँसता हुआ,रुखा, पीछे देखा, 

और फिर रो पड़ा! "अभागा हूँ मैं, हाँ गंगा, तेरी गलती नहीं, मैं ही अभागा हूँ" वो बोला, 

और चल पड़ा वापिस, वापिस, अपने कॅए की ओर! शेष रात, टुकड़ों में काटी गंगा ने! कभी वो अंगूठी देखती, पहन लेती,उतार देती, हाथ में जकड़ लेती, आंसू आते तो पोछती भी नहीं, बह जाएँ ज़्यादा से ज़्यादा, तो सुकून मिल जाता है, इसीलिए! खाना भी छूट सा ही चला था गंगा का, माँ जानती थी सबकुछ, लेकिन क्या करे वो, किसी तरह से, वो और माला, खिला ही देती थीं उसे खाना, गंगा, गंगा में जैसे विराम लगा था! स्थिर हो चुकी थी गंगा! भूदेव और भूदेव, बस! चिंता थी उसको भूदेव की! अब तो कोई अमीन के यहां से भी कोई नहीं आ रहा था, कम से कम मालूमात तो हो जाती उस से, पता तो चल जाता उस भूदेव के बारे में! कोई नहीं आया था अभी तक अजीब से दोराहे पे आ खड़ी हुई थी गंगा! क्या करे और क्या न करे! किसको भेजे, किसको कहे, किस से खबर निकलवाए! उस दोपहर में, गंगा तैयार हुई जाने के लिए कुँए! पानी लाना तो अब बस बहाना ही था उसके लिए, उसके दिल में जो आग जल रही थी, उसको कोई पानी नहीं बुझा सकता था, कोई तर्क नहीं था जो उस से अलग हो! वो तो सूख रही थी, सूखा पड़ा हआ था उसके अंदर, अब बस वो भूदेव ही तर करे उसे तो कुछ हो! कुँए पहुंची दोनों, और गंगा, चली उस अंधे कुँए की तरफ, जैसे ही पहुंची, उसकी नज़र उस रास्ते पर पड़ी, कोई आ रहा था उस तरफ! आँखें चौड़ी हो गयीं! दिल धड़का सीने में! कलेजे में जैसे छेद हुआ, बदन में जुम्बिश दौड़ी! साँसें, बदहवास हुई उसकी! वो उस अंधे कुँए से थोड़ा सा दूर थी, पलक झपका कर, देखा कुँए को उसने! और फिर सामने, क़दम खुद ही आगे बढ़ चले, होंठ सूख गए, होंठों के किनारे, सिकड़ गए थे, दुपट्टा सर पर धरे देखे जा रही थी! उधर रास्ते के पार, माला भी यही देख रही थी, कुआँ छोड़ आई थी वो, और रास्ते पर अखड़ी हुई थी, कोई बुक्कल मारे चेहरे पर आ रहा था! कौन है ये? क्या परीक्षा खत्म? क्या भूदेव है ये? कौन है?? 


   
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श्रीशः उपदंडक
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और थोड़ी ही देर में उस घुड़सवार का घोड़ा धीमा हुआ,आ रहा था धीरे धीरे, बुक्कल हटाया उस घुड़सवार ने! नहीं, ये भूदेव नहीं था! गंगा के सीने में, बड़ा सा पत्थर पेट में गिरा! दिल, रोपड़ा! आँखें, अनुस से अब भीगें या तब, कुछ पता नहीं था! वो घुड़सवार आ गया था कुँए 

तक होंठ चिपक गए गंगा के! गला बंद हो गया उसका! आंसू आने से आँखों में, सामने का दृश्य धुंधला हो चला! वो घुड़सवार गुजरा गंगा के सामने से, नज़र न मिली, फिर वो घुड़सवार कुँए की तरफ चला, माला वहीं चली! वो उतरा, चेहरा पोंछा, और आया माला के पास, "पानी पिला दो" बोला वो, और झुक के खड़ा हो गया! गंगा को जैसे काठ सा मारा! पाँव चिपक गए ज़मीन से, भूदेव के वो शब्द, जो वो अक्सर बोला करता था पानी!' याद आ गए! कैसे पानी पिलाया करती थी वो उसे! वो कैसे पानी पिया करता था, सामने की ओर, गंगा की आँखों की झलक पाने के लिए! गंगा का नज़रें 

चुराना उस से, सब याद आ गया पल भर में! माला ने पानी पिला दिया उसे! "रोशन सेठ का गाँव यही है?" उसे घुड़सवार ने पूछा, सामने गाँव को देखते हुए, "हाँ, यही है" बोली माला, "अच्छा, इसी गाँव की है तू?" पूछा उसने, "हाँ" बोली माला, "अच्छा" बोला वो! 

चेहरा और हाथ पोंछ लिए थे उसे, अब बस जाने को ही था, "सुनो?" बोली माला, "हाँ, बोलो?" वो रुका और बोला, "क्या आप अमीन के यहाँ से आये हैं?" पूछा माला ने, "हाँ, वहीं से" बोला वो, "क्या भूदेव वहीं है?" पूछा माला ने, वो आगे आया, "भूदेव?" पूछा उसने, "हाँ भूदेव" बोली माला "भूदेव का दो महीने से कुछ पता नहीं चला था, बाद में खबर हुई की उसकी फ़ालिज पड़ी है। बोला वो! फ़ालिज? जी में कड़वाहट घुल गयी माला के! जी किया, पूछ ले पता भूदेव का! "तू कैसे जानती है भूदेव को?" पूछा उसने, 

"वो आया करता था इसी गाँव" बोली वो, "हाँ, अच्छा, अब मैं हूँ उसकी जगह" बोला वो, "अच्छा" बोली माला, 

अब घुड़सवार आगे बढ़ा, घोड़े पर बैठा और हाँक दिया घोड़ा आगे! और माला, भागी गयी गंगा के पास! "गंगा? गंगा?" बोली वो। गंगा ने देखा उसको! "भूदेव जिंदा है!" बोली वो! कमल खिल उठे! सिकुड़े होंठ फैल गए! हाँ, आंसू नहीं रोक पायी! लिपट गयी माला से, रोते रोते! बुरी तरह से रोई वो! 

और जब चुप हुई, तो माला ने सब कुछ बता दिया, भूदेव को फ़ालिज पड़ी है, घर कहाँ है उसका, ये नहीं पूछा था माला ने। गंगा भागी! उस अंधे कुँए की तरफ! जा खड़ी हुई उधर ही! "तेजराजा तेजराज?" चीखी वो! 

और तेजराज प्रकट हुआ! वो पोटली लिए हुए! घबराया हुआ सा! "तूने फ़ालिज मारी उन्हें?" बोली गंगा! कुछ न बोला वो! आँखें नीची! "बोल?" बोली माला, कुछ न बोले! "बोल?" चीखी वो! तेजराज सहमा! थोड़ा दूर हआ उस से! "तू इसे प्रेम कहता है? मुझसे मेरा प्रेम छीनता है? छीन लेगा ऐसे?" बोली गंगा! "गंगा?" बोला वो, "मत ले अपने मुंह से मेरा नाम!" चिल्ला के बोली गंगा! डर गया तेजराज! "मत ले मेरा नाम!" फिर से बोली, "नहीं लूँगा, अब कभी नहीं लूँगा" बोला धीरे से, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तूने किया न ये सब?" पूछा गंगा ने! "हाँ, किया, कितना दुःख है न तुझे उसके लिए, क्योंकि वो जिंदा है, इसलिए न? काश मेरे लिए भी तुझे दुःख हुआ होता, भले ही पल भर के लिए, लेकिन तू तो नफरत करती है मुझे, बहुत नफरत, जानता हूँ, ऐसे ही, मैं उस भूदेव से नफरत करता हूँ, वो मेरा दुश्मन है" बोला तेजराज! गंगा को गुस्सा आया बहुत! बहुत गुस्सा। भाग पड़ी उसको नोंचने के लिए! जानते हए भी की वो एक प्रेत है! वो आई तो तेजराज पीछे हुए! लेकिन डर गया था! "लानत है तुझ पर!" बोली गंगा! चुप तेजराज! "लानत है तेरे प्रेम पर!" बोली गंगा! 

अब सर उठाया उसने! "न! ऐसा न बोल! तुझे बहुत प्रेम किया है मैंने, हाथ जोड़ता हूँ, न बोल ऐसा, न बोल, मैं टूटा हुआ हूँ, टूटा हुआ, मुझे बस तेरा प्रेम ही जोड़े बैठा है, सिर्फ तेरा प्रेम" बोला वो, गिड़गिड़ाते 

गंगा गुस्से में थी, पीछे मुड़ी! "रुक, रुक! रुक जा!" बोला वो! रुक गयी! "तूने मेरा नाम लिया आज, मुझे खुशी हई बहत! ले, ये रख ले" बोला वो, गंगा ने देखा उसको, गुस्से से! "रख ले!" बोला वो! गंगा फिर से पीछे चल पड़ी! "सुन! सुन! रुक!" बोला वो! रुक गयी! फिर पीछे देखा! "तूने अच्छा नहीं किया तेजराज, अच्छा नहीं किया" बोली वो, "जानता हूँ गंगा, विवश हूँ मैं" बोला वो, "कैसे विवश?" पूछा गंगा ने, पीछे लौटते हुए! "तेरे प्रेम से विवश" बोला वो, "झूठ बोलता है तू?" बोली वो, "झूठ काहे बोलूंगा?" बोला वो, 

"सब झूठ बोलता है तू" बोली गंगा, तुनक कर, "माई की सौगंध, सच बोल रहा हूँ" सर पर हाथ धरे बोला वो! गंगा लौट पड़ी! दोभाव एक साथ कैसे संभाले उसने! एक प्रेम! और एक नफरत! वाह गंगा! तेरी कहानी भी अजीब है! बहुत अजीब! गंगा लौटी, कुँए पर आई, सामने देखा, तो लौट रहा था वो घुड़सवार वहीं! वे पानी भरते भरते रुक गयीं! वो घुड़सवार आया उधर कुँए पर, उसने गंगा को देखा, अजीब सी निगाहों से, गंगा झेंप गयी थी, स्त्री मर्दो की निगाह के पीछे के आशय को पल भर में समझ लेती है। तो समझ गयी थी गंगा भी, निगाह नीचे कर ली थी उसने! वो घुड़सवार अपने घोड़े पर बैठा गंगा को ही निहारने लगा था, गंगा की देह वैसे भी आकर्षक थी! कोई भी पुरुष होता तो उसको दो बार तो कम से कम देखता ही, और पलटे के तो निश्चय ही! "क्या नाम है तेरा?" पूछा उस घुड़सवार ने! कुछ नहीं बोली गंगा! घुड़सवार उतर गया घोड़े से अपने! "बताया नहीं तूने?" पूछा उसने, "चल अब" बोली गंगा माला से! "हाँ चल" बोली माला, वे चलने लगी, तो घड़सवार ने रास्ता रोक लिया। नीयत कोरी न थी उसकी! "तेरे से नाम ही तो पूछा है, तेरे घर का पता नहीं!" बोला वो घुड़सवार गंगा से! गंगा तो काँप गयी! सिहर गयी! ऐसा कभी न देखा था उसने! सुना तो था, लेकिन देखा नही 

था! 

"रास्ता छोडो हमारा!" बोली माला, "नाम बता इसका पहले?" बोला वो! "क्यों?" पूछा माला ने, "इसकी खूबसूरती लाजवाब है! सोना है सोना! इसीलिए पूछा! अब बता!" बोला वो! 

और तभी पीछे से आवाज़ आई। एक घुड़सवार था! सैनिक घोड़े पर। बुककल मारे! तलवार म्यान से बाहर थी उसकी! आ गया उधर ही! मज़बूत देह थी उसकी मांसपेशियां वस्त्रों से ही नज़र आ रही थीं उसकी! 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"क्या कर रहा है तू?" वो घुड़सवार बोला उस घुड़सवार से! "कु....कुछ नही" बोला वो! "रास्ता क्यों रोका है इनका?" पूछा उसने, "पता पूछ रहा था" बोला वो, "ऐसे?" वो उतरते हए बोला! "गलती हो गयी बोला वो, अब आ गया था वो घुड़सवार करीब! उस घुड़सवार के कंधे पर हाथ रखा उसने, और दिया धक्का पीछे, गिरते गिरते बचा वो! "जाओ, जाओ अपने गाँव!" बोला वो सैनिक! 

और तभी उसका बुक्कल हट गया! पहचान गयी वो उस सैनिक को! वो तेजराज था! आ गया था मदद करने! निकल आया था अपने अंधे कुँए से! "जाओ, गाँव जाओ आराम से, यहीं खड़ा हूँ मैं" बोला वो, 

और पलटा पीछे, उस घड़सवार को घोड़े पर चढ़ने को कहा, वो चढ़ गया, अब कुछ भद्दा सा कह कर, उसको जाने के लिए कह दिया। उसने तो ऐसी दौड़ लगाई की पूछो ही मत! वे दोनों चली गयीं थी, अब बीच रास्ते में थीं, गंगा ने पीछे मुड़कर देखा, कोई नहीं था वहाँ! लोप हो गया था वो, और उसका घोड़ा! माला भी घबरा गयी थी! लेकिन पहचान न सकी थी उस सैनिक को! जा पहुंची घर, और पानी रख दिया आले में, सीधा अपने कमरे में पहुंची, और भूदेव के ख्यालों में डूब गयी! उस रात, गंगा जाएगी, लगा कोई है कमरे में। उठ गयी, आसपास देखा, कोई नहीं था, फिर बाहर झाँका, खिड़की से पर्दा हटा कर, तो वही बैठा था। गंगा को देख खड़ा हो गया! वो पोटली दिखाई उसे, गंगा ने पर्दा ढक दिया, और चली बाहर की तरफ, वो उनके अहाते में ही था उस समय, पीछे की तरफ, एक पेड़ के पास,रात आधी हो चुकी ही, बाहर गाँव में श्वान भौंक रहे थे! चांदनी ही थी वहां, और कोई प्रकाश नहीं! वो जा पहुंची उसके पास, वो गंगा को देखते ही खड़ा हो गया! और बहुत खुश हुआ! गंगा आ गयी थी उसके पास! वो थोड़ा पीछे हट गया था! वो पोटली, ज़मीन पर रख दी थी उसने! फिर खड़ा हुआ! "मन्नी(मेहँदी) लाया हूँ तेरे लिए!" बोला वो! 

और कर दी एक और छोटी सी पोटली आगे! गंगा ऐसे ही खड़ी रही! मन्नी की पोटली भी नहीं देखी उसने! "तेजराज?" बोली गंगा! 

"हाँ! हाँ?" बोला वो! "तू क्यों मुझे तंग करता है?" पूछा गंगा ने, चौंक पड़ा! "कैसे?" पूछा उसने! "तेरी कोई चीज़ नहीं लूंगी मैं जानता है?" बोली वो! घबरा गया! "क्यों?" बोला वो, वो मन्नी की पोटली पीछे करते हए! "तूने फ़ालिज मारीन उन्हें?" बोली वो! चुप, चुप देखे गंगा को! 

और गंगा, हारी हुई सी, थकी हुई सी, बात करे उस से! "तुझे प्रेम नहीं करती में, मैंने एक को ही प्रेम किया है, जी-जान से, बस भूदेव" बोली गंगा! क्रोध में फफक उठा वो! भूदेव के नाम से जलता था वो! दुश्मन था भूदेव उसका! "हा तेजराज, अब कभी न आना" बोली गंगा! "न! ऐसा न कह, मैं नहीं रह सकता तेरे बिना" बोला वो, "और मैं भूदेव के बिना" बोली गंगा! चुप हो गया!! "जा! अब न आना कभी बोली वो, "जाता हूँ, नहीं आऊंगा, लेकिन ये, ये रख ले" बोला वो, "नहीं" बोली गंगा! "रख ले" बोला वो, "नहीं" बोली गंगा! "कोई हर लेगा" बोला वो, "हरने दे" बोली वो, "ऐसा न बोल" बोला वो, "फिर क्या बोलू?" बोली गंगा, "मेरा प्रेम स्वीकार ले" बोला वो, "नहीं" बोली गंगा, "मान जा' बोला वो, "न, अब जा" बोली वो, "सुन?" बोला वो, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बोल?" बोली वो, "तुझे तरस नहीं आता?" बोला वो, "तुझे आया?" पूछा, 

चुप वो! 

"तुझे आया तरस? एक निष्पाप को तूने फालिज दी, तुझे आया?" पूछा गंगा ने! "मेरा दुश्मन है वो" बोला वो, "मैं भी हूँ, मार दे मुझे!" बोली गंगा! 

चुप! डंक सा मारा उसको! "मार दे तेजराज! मार दे मुझे!" बोली गंगा! 

और गंगा ने हाथ जोड़ दिए इस बार! तेजराज पीछे हुआ! मन्नी की पोटली गिर गयी नीचे! "न! तू हाथ न जोड़! मेरा जी फटता है, न जोड़!" बोला वो! "मैं मर ही जाउंगी उनके बिना तेजराज, मर जाउंगी!" बोला वो! "न, तू नहीं मरेगी" बोला वो! "मर जाउंगी, मर जाउंगी" कहते कहते बैठ गयी नीछे! वो भी बैठा! "सुन? न बोल, ऐसा न बोल!" बोला वो! गंगा ने चेहरा उठाया! आंसुओं की धाराएं, गालों से होती हईं, गर्दन तक जा पहंची! 

आँखों के आंसुओं में, जैसे चाँद स्वयं उतर आये! झिलमिला रहे थे आंसू! तेजराज, न देख स्का वो। 

आँखें हटा ली वहाँ से! "खड़ी हो" बोला वो, 

नहीं हुई खड़ी! "खड़ी होजा" बोला वो, नहीं हुई! अब वो खड़ा हुआ! "खड़ी हो जा" बोला वो! गंगा ने चेहरा नीचे कर लिया अपना! "मेरे जी पर ज़ोर पड़ता है, खड़ी हो!"बोला वो! नहीं हुई खड़ी गंगा!! 

"चल, खड़ी हो!" बोला वो! नहीं हुई! बस, एक नज़र उस तेजराज को देखा, नफरत से! "चल उठ जा अब! उठ जा!" बोला वो! नहीं उठी, या फिर उठ नहीं सकी! जान शेष न थी उसमे अब! "उठ जा, उठ तो सही?" बोला वो! गंगा ने ऊपर देखा, उस तेजराज को, "उठ जा!" बोला वो! हल्का सा हिली, और बैठ गयी, दोनों कोहनियां अपने घुटने पर रखे। तेजराज, फिर से बैठ गया, थोड़ा सा दूर, "ले, रख ले, इसे तो ले ले!" बोला वो, उस मन्नी की पोटली को आगे सरकाते हए! गंगा ने देखा उस पोटली को, लेकिन छुआ नहीं! "रख ले, कभी तो कहना मान लिया कर मेरा?" बोला वो! नहीं सुना, अनसुना कर दिया! "इतनी ज़िद मत किया कर मेरे से, मुझे दुःख होता है, एक तू ही है, जिस से मैंने इन बरसों में बात की है जी की, तू ही ऐसा करेगी, तो मैं कहाँ जाऊँगा?" बोला तेजराज! गंगा ने देखा उसे, एक अजीब से भाव से! तेजराज ने भाव भांपा, और आँखें नीचे कर ली 

अपनी! 

"जा तेजराज, तू जा, अब लौट के न आना कभी, मैं नहीं मिलना चाहती तुझे!" बोला गंगा ने ऐसा! तेजरज खड़ा हुआ, वो मन्नी की पोटली उठायी, "ठीक है, तू ऐसा चाहती है, तो ऐसा ही सही, तूने तेरा नाम लेने से मना किया, मैंने नहीं लिया, जाने को कह रही है, ठीक है, अब नहीं आऊंगा मैं, तो लाख बुलाएगी, तब भी नहीं 

आऊंगा मैं, जा रहा हूँ मैं, अब नहीं आऊंगा, तुझसे जोत जली, तूने नहीं मानी, मेरे जी कोतू भाई,नहीं मानी, ठीक है, जा रहा हूँ, अभी " बोला वो, और चला पीछे, एक बार देखा गंगा को, और लोप हो गया! चला गया था वापिस! वहीं अपने अंधे कुँए में! जहां से आया था, वहीं चला


   
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श्रीशः उपदंडक
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गया था! गंगा उठी, और चली वापिस, अपने कमरे में आई, कमरे में आते ही देखा, सारे फूल गायब थे! अब कुछ नहीं था वहां। वो लेट गयी बिस्तर पर! मिट्टी लगी थी कपड़ों में, हाथों पर, पांवों पर, नहीं ध्यान आया कुछ ऐसा! आँखें बंद की उसने, गला ऊँधा हुआ था, कोई छेड़ता तो आंसू निकल ही आते! 

मित्रगण! पंद्रह दिन बीत गए, ऐसे ही तड़पते हुए, छटपटाते हुए, ये दिन काटे थे गंगा ने! वो कभी 

जाती कँए और कभी नहीं, घर में दो रिश्ते भी आये थे, लेकिन मना कर दिया था गंगा ने, गंगा तो अब गंगा रही न थी! किसी से बात न करती, माला से ही कुछ बतियाती तो बतियाती! घंटों बैठी रहती अकेले में, माँ-बाप दुखी रहते उसको इस हाल में देख कर! एक रोज, गंगा कुंए पर गयी थी! पानी भरने, न जाने मन में क्या आई, कि अंधे कुंए की तरफ चल पड़ी वो! न चाहते हए भी! पता नहीं, क्या कारण था! वो जा बैठी वहां! सोच में डूब गयी! घंटे से ऊपर बैठे रही वहाँ, और फिर जब दर्द बढ़ गया, तो मुस्कुरा गयी! कहते हैं न! जब दर्द हद से ज़्यादा बढ़ जाता यही तो हंसी आने लगती है! वही हुआ, और फिर जब हंसी बंद होती है, तो दिल से ऐसी कराह निकलती है कि आंसू भी साथ नहीं दे पाते उस कराह का! यही हआ गंगा के साथ! दिल से कराह निकली! मुंह से न जाने क्या क्या शब्द निकले! पता नहीं क्या क्या! गंगा भी नहीं जान पायी थी उनका मतलब! बस इतना कि एक एक शब्द, वाबस्ता था उस भूदेव से! अब नहीं बर्दाश्त हो पा रहा था उस से! वो रो पड़ी, फट पड़ी आंसू बह चले। आंसू, ऐसे कि थमने का नाम न लें। 

और तब! तब कुँए की मुंडेर की दूसरी तरफ, प्रकट हुआ वो तेजराज! दुखी सा! "न! न! मत रो! मत रोतू! मेरा जी उचटता है! मुझे माफ़ करना तू, मैं वचन नहीं निभा सका अपना, आ गया मैं, तेरे सामने आ गया! माफ़ करना! माफ़ करना तू मुझे!" खुद भी रोते हुए बोला तेजराज! गंगा ने उसे देखा। 

और नज़र फेर ली अपनी तेजराज कोई मायने नहीं रखता था उसकी कराह के लिए! "मत रो! न! मत रो!" अपने सीने का कपड़ा पकड़ते हुए बोला वो! गंगा न सुने! "मत रो! मत सता मुझे, मत सता!" बोला वो, हाथ जोड़ के! गंगा के आंसू, और बहने लगे। न रोक सकी गंगा अपने आपको! तेजराज आगे आया! दुखी सा! "सुन?" बोला वो, गंगा ने देखा उसे! आँखों में आंसू लिए हुए, 

"एक वचन और तोडूंगा मैं, इत्र नाम लूंगा मैं!" बोला वो! पाषाण सी बनी रही गंगा! "गंगा! गंगा! मैं टूट गया! मैं टूट गया गंगा! आज टूट गया मैं!" सिसकियाँ लेते हुए बोला तेजराज! गंगा उसको देखे। "गंगा! हार गया मैं आज हार गया! पहले जिंदगी से हारा मौत से हारा आज तुझसे भी हार 

गया! तेरे आंसुओं ने हरा दिया मुझे। मैं हार गया! गंगा, मैं हार गया!" बोला वो! बैठ गया उसी मुंडेर पर! "जब तू आती थी न यहां, गुनगुनाते हुए, तो तुझे देखता था मैं! बहुत प्रेम हुआ तुझसे, तेरे भोलेपन से, तेरी चंचलता से! तेरे पाँव के नीचे कंकड़ भी नहीं आने देता था मैं, हटा देता था


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैं उसे! तेरे पांवों की मिट्टी में तेरी ख़ुश्बू होती थी, मुझे बहुत अच्छी लगती थी वो खुश्बू! मैं जानता था की मैं प्रेत हूँ, लेकिन गंगा, जी के आगे विवश हो गया था मैं मुझे माफ़ कर दे गंगा! एक प्रेत की प्रीत का कोई मोल नहीं की मोल नहीं!" रोते रोते बोला वो! उठा, दौड़ा, उस दीवार तक गया, छिप गया, छिप छिप के देखता किसी को! हाथ में तलवार लिए! फिर दौड़ आता गंगा के पास! दुखी सा! फिर दौड़ जाता, लेट जाता ज़मीन पर! फिर बैठता! कुँए में कूद जाता, बाहर आता, पोटली लिए, फिर पोटली अपनी कमर में खोस । लेता! कभी लोप होता! कभी प्रकट! एक साथ दो जीवन जीने लगता था वो तेजराज! फिर 

आया गंगा के पास! "गंगा! बस ये है मेरी दुनिया!" बोला वो! गंगा चुप! "बरसों से, यहीं भटक रहा हूँ, किसी से प्रीत कर बैठा, गलती कर दी मैंने!" हंस के बोला अब! गंगा उठ गयी! सही से बैठी! तो दुपट्टा गिर गया कंधे से, हाथ बढ़ा दिया तेजराज ने, उसको उठाने के लिए, और फिर हाथ पीछे कर लिया! आँखों ही आँखों में कुछ जवाब दे ही गया था तेजराज उस पल! "मैंने कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया गंगा! किसी के साथ नहीं!" बोला वो! फिर थोड़ा करीब आया! "लेकिन, तेरे साथ किया मैंने!" बोला वो! हँसते हुए! "तेरे साथ किया मैंने बुरा! बहुत बुरा! बुरा हूँ मैं! तेजराज बुरा है! सुनो! तेजराज बुरा है!" बोला वो! चिल्ला चिल्ला कर! 

"गंगा! तू पावन है!!" बोला वो! सामने बैठते हुए! "तेरा जी, तेरा मन, सब पावन है, मैं बुरा हूँ!" बोला, अब रोया वो! हाथों में मिट्टी लिए, रोया बहुत!! "मैंने अपने जी की मान ली गंगा! बस, यही गलती हई!!" बोला वो! गंगा सब सुने! आज तेजराज गंभीर था! "मुझे माफ़ करना गंगा! माफ़ करना!" बोला वो! फिर से दौड़ कर गया वापिस!! उसी दीवार के पास! तलवार लिए, झांके वहाँ से!! पोटली बगल में दबाये! 

आया फिर भागता भागता! आसपास देखा, झुका और पोटली फेंक दी कुंए में! फिर खुद कूद गया! आया बाहर! पोटली बगल में लिए! और हाथों में, वो गुड़हल के फूल!! गंगा के पांवों में डाल दिए फूल! वो सारे के सारे! "अब जा गंगा! जा!" बोला वो! न खड़ी हई गंगा! "गंगा?" अब गुस्से से बोला वो! बेहद गुस्से से! आँखें लाल किये हुए। "खड़ी हो?" चिल्ला के बोला!! गंगा अब डर गयी थी! सहम गया थी! नज़रें न हटा सकी उस से! वो गंभीर था, गुस्से में! बहुत गुस्से में! प्रेत था वो! कब क्या कर गुजरे, पता नहीं! गंगा खड़ी हो गयी! "जा! अब जा यहां से, यहां नहीं आना अब कभी भी!" बोलाऊँगली दिखा कर! गंगा भागी वहाँ से! दौड़ पड़ी! पीछे वो भी दौड़ा! "अब नहीं आना यहां! कभी नहीं, मैं अकेला था, रहूँगा! जा!" गुस्से से बोला वो! गंगा आ गयी कुँए पर! घबराई हुई सी! वो खड़ा रास्ते के पार!! 

"जा अब? जा? नहीं आना अब! वहां, उस अंधे कुँए पर नहीं आना तू कभी! जा! नहीं आना! नहीं आना!" बोला वो! अंतिम दो शब्द, 'नहीं आना' रो कर बोला था! कंधे हुए गले से! मित्रगण! 

कोई महीना बीतने को था! और गंगा का अब स्वास्थ्य जवाब देने लगा था, सोच सोच कर, उसके मस्तिष्क में भी शिथिलता आने लगी थी, अपने आप से ही बातें करने लगी थी! माला से कभी बोली, न बोली, जमुना को झिड़क दिया करती थी, माँ और बाप से कन्नी काट लेती थी।


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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कँए पर भी आना जाना बंद सा ही हो चला था! अपने आप में मग्न सी रहने लगी थी! माला कभी बात करने की कोशिश करती और माला को घुरती रहती! न बात करती! न पहनने का होश, न अपना ध्यान रखने का होश! बेसुध रहने लगी थी! बुरा हाल हो गया था उस बेचारी गंगा का! वो निर्मल गंगा शांत और स्थिर थी, प्रवाह कुंद हो चला था! बीच बीच में, यादों और आशंकाओं के टापू दिखाई देने लगे थे! ये हाल हआ था उस गंगा 

का! 

एक रात, गंगा अपनी यादों के धागों में उलझी हुई थी। उसको पहला दिन याद आया, जब दो घुड़सवार आये थे! और फिर आखिरी, जब उसका पाँव टूट गया था, वो दुपट्टा बाँधा था उसने! उसको बिठाया था उसके घोड़े पर उन्होंने! वो चला गया था ये कह कर कि वो आएगा जल्दी! लेकिन तीन महीने बीत चुके थे! नहीं आया था वो वापिस! और अब, किस हाल में होगा वो! बहन का ब्याह कर पाया या नहीं भूदेव! बहुत याद आया उसको! उसकी आवाज़! सब याद आ गयी उसे! और रुलाई फूट पड़ी उसकी! कराह निकली थी, वही कराह! और उसी कराह में, सुध खो बैठी! और बेहोश हो गयी! झूल गए दोनों हाथ बिस्तर से नीचे! 

और तब! कोई आया कमरे में! "गंगा?" बोला कोई! गंगा बेहोश! "गंगा?" बोला कोई फिर से! गंगा न बोली कुछ! "गंगा? ओ गंगा?" बोला कोई! गंगा बेहोश थी। कुछ बोल न सकी। "चल जाग!" बोला कोई! "हूँ?" बोली वो! 

बेहोशी में ही! जाग गयी थी, लेकिन अंतर्चेतना में ही! "दुखी है?" पूछा किसी ने! न बोली कुछ! बोले भी तो क्या? "बता?" पूछा किसी ने! न बोली। बस एक सबकी। "गंगा?" बोला कोई! "हँ?" वो बोली! "तुझे तेजराज पसंद नहीं?" पूछा किसी ने! "नहीं" बोली वो! "कौन पसंद है?" पूछा उस से! 

आंसू टपक गए उसके! "वो, भूदेव?" पूछा किसी ने! होंठ बंद कर,रुलाई रोकी गंगा ने! "अच्छा।" बोला कोई! "गंगा?" बोला कोई! न बोली कुछ! "कुछ छोड़ के जा रहा हूँ मैं, देख लेना" बोला वो! 

और तभी आँख खुली गंगा की! उसके पेट पर, कुछ रखा था! गंगा झट से उठी! वो जो रखा था, उठाया, ये कपड़ा था, देखा उसे गौर से! ये! ये तो वही दुपट्टा है। वही। जो बाँधा था उस भूदेव के पाँव में उसने! उसने उठाया उसे, लगा लिया छाती से अपनी, और आंसू बह चले! तभी कुछ ध्यान आया! कौन आया था?? खिड़की की तरफ भागी वो!! पर्दा पूरा हटा दिया खिड़की से! सामने देखा!! सामने ही, खड़ा था वो तेजराज! मुस्कुराता हआ! आया खिड़की की तरफ! 

और हआ खड़ा वहीं! "गंगा!" बोला वो! गंगा चुप! चुप ही देखे उसे! "तुझे हँसते नहीं देखा बहुत दिनों से! हंस के दिखा ज़रा!" बोला वो! 

कहाँ से हँसे! कोई चाल तो नहीं ये? "गंगा? कभी तो मेरी बात माना कर?" बोला वो! 

नहीं मानी! पर्दा सरका दिया उसने! "गंगा?" बोला वो! नहीं सुना! "ओ गंगा?" बोला फिर से वो! नहीं सुना। "सुन न?" बोला वो! "गंगा! ये रख ले!" बोला वो! गंगा ने पर्दा हटाया! देखा, तो वही पोटली! "रख ले! मान जा!" बोला वो! नहीं देखा उस पोटली को गंगाने! "इतनी ज़िद्दी न


   
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श्रीशः उपदंडक
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बन गंगा?" बोला वो! ज़िद्दी तो बहुत थी गंगा! "मान जा?" बोला वो! नहीं मानी! "अछा, चल माफ़ी मांगता हूँ मैं! उस दिन गुस्सा हुआ तुझसे! ले कान पकड़ लिए!" बोला 

वो। गंगा ने देखा। कान पकड़े, उट्ठक-बैठक लगा रहा था वो! "बस? अब ठीक? मान ली गलती!" बोला वो! नहीं रिझा सका वो! गंगा ऐसे नहीं रीझती! "गंगा?" बोला वो! "मान ले, रख ले!" बोला वो! नहीं मानी फिर से! "ये तेरा ही दुपट्टा है न?" बोला वो, गंगा ने हाथ में लिए दुपट्टे को देखा! और लगा लिया छाती से! "मैं लाया ये! तेरा दुपट्टा!" बोला वो! 

ओह! गंगा का दिल दरका!! कांच पर खरोंच पड़ी! भाग ली बाहर, जहां खड़ा था वो! साँसें थार्मी!! 

"तू वहीं से आया है?" पूछा गंगा ने! "हाँ!" बोला वो!" "कैसे हैं वो?" पूछा गंगा ने! आंसू भरी आँखों और याचना के स्वर से! जो न भी पिघले, तो 

भी पिघल जाए! ऐसा स्वर! "नहीं पता" बोला वो! हँसते हए! टूट गयी। बेचारी! बैठ गयी नीचे! लेकिन दुपट्टा छाती से लगाये रखा! रोने लगी! "न,गंगा न! रो मत!" बोला वो! गंगा रोये जाए! "न! मान मेरी! मान, मत रो!" बोला वो! 

और आंसू बह निकले गंगा के! "न! न गंगा न!" बोला वो! खुद भी रोने के स्वर में बोला! 

गंगा की आँखें बहाती रहीं पानी!!! लगातार! खड़ा हुआ वो! गुस्से में पाँव पटके! "गंगा! मैंने बहुत रुलाया तुझे! बाहर रुलाया! माफ़ कर दे! माफ़ कर दे! गंगा! माफ़ कर दे!" गिड़गिड़ा गया वो! गंगा ने आंसू पोंछे! उठी! और जाने लगी! "रुक? रुक गंगा?" बोला वो! "मेरी एक बात मानेगी?" बोला वो! गंगा चुप देखे उसे! "मानेगी?" पूछा उस से! गंगा चुप! "बोल? मानेगी?" बोला वो! नहीं बोली कुछ! "आँखें बंद कर अपनी?" बोला वो। नहीं की आँखें बंद! "कर न?" नहीं की। "एक बार, गंगा! एक बार!"बोला वो! नहीं की और जाने लगी! 

"मान जा! मान जा गंगा! मान जा! मुझे मत तड़पा! मान जा!" गिड़गिड़ाया वो! नहीं मानी! और चली गयी वापिस! हाथ मलते हुए, वहीं रह गया वो! दो दिन और बीते! उस रात सो रही थी गंगा! कभी सोती और कभी जाग जाती थी! कभी रोती और कभी यादों में डूब जाती थी गंगा! उस रात कोई सुबह होने से पहले, गंगा को लगा कि जैसे उसके ऊपर किसी ने इत्र बिखेरा है! भीनी भीनी सुगंध फ़ैल उठी थी कमरे में! आँख खुल गयी उसकी। और उसको वही सुगंध आई नथुनों में। उसको समझ नहीं आया कुछ भी! खिड़की का पर्दा हटाया तो कोई नहीं था, बस तेजराज ही ऐसा कर सकता था! और अगर करता था, तो सामने नज़र भी आता था! लेकिन उस समय नहीं था वो वहाँ! वो फिर से लेट गयी! और कुछ देर बाद, आँख लग गयी उसकी! सुबह ज़रा देर से उठी, सूरज चढ़ आया था आकाश मैं! उसकी आँख खुली तो अब बाहर जाने के लिए जैसे ही बिस्तर से नीचे पाँव रखा, कुछ चुभा उसे! उसने पाँव हटाया अपना तभी! वो अंगूठी थी! उस भूदेव की दी हई अंगूठी! उसने झुक कर झट से उठाया उसे! मुट्ठी में जकड़ लिया! ये, यहां कैसे आ गयी? ये तो ऊपर टांडी पर रखी थी? छिपा करर कैसे आ गयी नीचे! सोच ही रही थी, कि माला आ गयी अंदर! गंगा को जो देखा उसने!! तो दंग रह गयी! गंगा का रूप निखर उठा था। ऐसी गंगा तो उसने कभी न देखी थी! गोरे वर्ण को चार चाँद लग गए थे! जैसे


   
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श्रीशः उपदंडक
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किसी ने घंटों साज-श्रृंगार किया हो उसका! अवाक थी माला! और तभी जमना भी आई अंदर! गंगा को देखा तो मुंह खुला रह गया! चाँद की चांदनी ने पूरा बदन ढक दिया था उसका! जमना भाग चली पीछे! और जब आई तो माँ साथ थी! माँ ने देखा तो माँ भी चौंकी! गंगा का रूप देख, माँ की आँखें खुली ही रह गयीं। वो सुगंध! कमरे में फैली थी। हैरत भरी माँ और जमना, वापिस चले गए! शायद पिता जी को बताने! इतने में माला, बिस्तर ठीक करने लगी वो! गंगा गुमसुम खड़ी थी! हाथ बंद किये अपना! "क्या हुआ गंगा?" पूछा मालाने! कुछ न बोली, ऐसे ही खड़ी रही! आई सामने माला उसके! "क्या है हाथ में गंगा?" पूछा माला ने! नहीं बोली कुछ! हाथ पकड़ा उसने गंगा का! गंगा हाथ न खोले! दोनों हाथ लगा दिए! और जब हाथ खुला तो 

अंगूठी थी वो, उस भूदेव की! "गंगा!!" बोली माला! गंगा से नज़रें मिली उस माला की तब! 

और गंगा मुस्कुरा पड़ी!! ये देख माला की आँखों में पानी उतर आया, छलाई फूट पड़ी माला की! और लग गयी गले गंगा के! आज कितने दिनों के बाद मुस्कुराई थी गंगा! जब हटी माला, तो खुश हुई। पुरानी गंगा मिल गयी थी उसे! लौट आई थी वो पुरानी, चंचल गंगा!! 

और तभी नज़र पड़ी उस दुपट्टे पर माला की! माला ने झट से उठाया वो! "गंगा? ये तो वही है न?" पूछामाला ने। "हाँ" बोली गंगा! "इसका मतलब.....गंगा! गंगा!! आज चल! आज चल ज़रा कुँए पर!!" बोली माला खुश होकर! मित्रगण! माला को न जाने क्या उम्मीद थी! न जाने क्या देखा था उसने!! 

और फिर दोपहर बीती! गंगा ने भी अपना घड़ा उठाया और माला ने भी! चल पड़ी कुँए की तरफ! पहुंचीं वहां माला ने झट से पानी खींचा कुँए से! और भरने लगी नांद! माला पता नहीं क्या सोच रही थी! बहुत खुश थी! बहुत खुश! और वो गंगा! कहीं खुश, कुछ उम्मीद सी बंधी थी उसे! और तभी नज़र रास्ते के पार, उस अंधे कुँए पर पड़ गयी! अँधा कुआँ, जैसे राह तकता था उसकी! और कोई तो आता नहीं था वहां! बस गंगा ही जाया करती थी उधर! सो चली गयी उधर!! बैठ गयी, उसी रास्ते पर, नज़रें गड़ा दीं बिछा दिए नैन! तभी मन में न जाने क्या आया उसके! "तेजराज?" बोली वो! कोई उत्तर नहीं! कोई हरकत नहीं! "तेजराज?" उसने फिर से कहा। कोई नहीं आया वहाँ! "तेजराज?" वो उठ खड़ी हुई! कोई आवाज़ नहीं!! नहीं तो अब तक प्रकट हो जाता था वो तेजराज! "कहाँ है तेजराज?" बोली वो! कोई उत्तर नहीं!! "तेजराज?" गुस्से से बोली वो इस बार! "हाँ गंगा?" आवाज़ आई। पीछे से। गंगा पीछे मुड़ी! कोई नहीं था! "तेजराज?" फिर से बोली वो! 

"हाँ गंगा! बोल?" बोला तेजराज! "सामने क्यों नहीं आता तू?" पूछा उसने "आऊंगा गंगा! गुस्सा न हो!" बोला वो! "सामने आ मेरे?" बोली वो! "कहा न गंगा! आऊंगा मैं!" बोला वो! "अभी आ?" बोली वो। "नहीं, अभी मैं नहीं, कोई और आ रहा है!" बोला वो! "कोई और? कौन?" नहीं समझ सकी वो! "तेरा भूदेव!" बोला वो! गंगा के शरीर में तो जैसे समंदर लहरा गया! समूचा बदन ठंडा हो गया! कांपने लगी वो! आँखों में से जहर जहर आंसू निकलने लगे! "जा गंगा! आ रहा है तेरा भूदेव! जा! बाट जोह उसकी! कुछ ही दूर है वो! जा गंगा! जा! मिल अपने भूदेव से!" बोला तेजराज! भागी गंगा! बहुत तेज! बहुत तेज! जा पहुंची कुँए!। "माला! माला! माला!"


   
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श्रीशः उपदंडक
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बोली गंगा! जोश में!! "क्या हुआ गंगा?" माला ने पूछा, "वो! वो भूदेव! आ रहे हैं!!" बोली गंगा! इशारा करके उस रास्ते की तरफ! दोनों भाग खड़ी हुईं उसी रास्ते पर! और बिछा दीं आँखें!!! साँसें ऐसी तेज कि धौंकनी की भी क्या बिसात!! 

और मित्रगण! कोई आ रहा था! आ रहा था कोई! घोड़े पर! दौड़ा दौड़ा! वही! वही भूदेव आ रहा था!! और करीब! और करीब! पल पल में और करीब! गंगा कांपने लगी थी! कहीं दिल बाहर ही न आ जाए सीने से! ऐसे धड़क रहा था! और फिर खुरों की आवाज़ कानों में पड़ी! हाँ! ये वही था! वही भूदेव!! घोड़ा धीमा हुआ! 

और भाग चली गंगा उसकी तरफ! बह गयी थी अपनी ही धार में! प्रवाह प्रबल हो चला था! अपने आपे से बाहर थी गंगा! घोड़ा रुका, और वो भूदेव, कूद पड़ा घोड़े से! भागा! तेज! और जा लिपटा उस गंगा से! 

तब तक माला भी आ गयी थी वहां! मित्रगण! अब कौन से शब्द लाऊँ मैं उस पल का बखान करने के लिए!! 

कोई लेखक होता! तो अवश्य ही लिखता!! मैं नहीं लिख सकता! बस जो बन पड़ा! लिख रहा हूँ! जैसे दो प्रबल जल धाराएं, नदियां मिल कर एक हो जाती हैं, वैसे ही भूदेव और गंगा! एक हो गए थे। बिरहा के दिन, घंटे, पल, अब विदाई ले चुके थे! गंगा को भींच रखा था उस भूदेव ने अपनी मज़बूत भुजाओं में! और गंगा! मोम सी कुची पड़ी थी उसकी बाजुओं में! जैसे किसी साँचे में मोम कुछ जाता है! गंगा के सर को, माथे को, चेहरे को, उन आंसुओं को चूमे जा रहा था वो भूदेव! और गंगा! कसे खड़ी थी उस भूदेव को!! और माला, खड़े खड़े आंसू बहा रही थी! "कैसी है तू मेरी गंगा?" बोला वो, रोते रोते! आवाज़ में न जाने कितने ठहराव थे! कुछ न बोल सकी गंगा!! गंगा की तो एक एक मांस-पेशी में मद आ चढ़ा था जैसे। एक एक पेशी कुंद पड़ी थी! बस आँखें उस भूदेव को देख रही थीं! भुजाएं, उसको जकड़े खड़ी थीं! जैसे सर्प-लताएँ किसी वृक्ष को जकड़ लेती हैं! उस भूदेव के स्पर्श ने गंगा को आल्हादित कर दिया था! रोम रोम आल्हादित था! "कैसी ही गंगा तू?" पूछा फिर से भूदेव ने! "मर जाती गंगा तुम्हारी बोली टुकड़ों में! एक एक टुकड़े पर, भूदेव की जान रिस जाती! अपने आंसू छोड़, गंगा के आंसू पोंछता वो! "पल पल घुट के जिया हूँ मैं गंगा! घुट घुट के! तेरे बिना!" बोला वो! 

आंसू पोंछते हए! अपने! गंगा ने फिर से सुबकी ली! और फिर से भींच लिया उस गंगा को उसने! फिर हटे वो! हाथ पकड़े, गंगा का, चला कुँए की तरफ, उसका घोड़ा भी चला अब! माला सामने ही थी! रो रही थी, आंसू पोंछ रही थी! "कैसी है माला?" बोला वो! "आप कैसे हो?" माला ने ही पूछा लिया! 

"मैं अच्छा हूँ माला! तेरी याद ने भी रुलाया मुझे माला, मेरी बहन!" बोला वो! 

और चल पड़े कुँए तक! "पानी पिला माला!" बोला भूदेव! माला ने झट से कुँए में डाल थी टोकनी! और भूदेव का घोड़ा, आ गया था नांद के पास! वो भी नहीं भूला था उस नांद को! पानी था ही उसमे, तो पानी पीने लगा! माला ने पानी निकाला और ले आई भूदेव के पास!


   
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श्रीशः उपदंडक
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भूदेव ने झुक आकर, ओख से पानी पिया! अभी भी हाथ थामे हुआ था उस गंगा का उसने! पानी पी लिया उसने! और चेहरा भी 

धो लिया। "आ गंगा!" बोला वो! 

और ले चला वो उसको रास्ते के पार! उस अंधे कुँए की तरफ! गंगा न समझ सकी कुछ! रुकी, तो भूदेव मुस्कुराया! "आ, चल गंगा!" बोला वो! गंगा चल दी! 

आ गए वे दोनों कुंए के पास तक! "गंगा! आवाज़ दे उस तेजराज को! बुला!" बोला भूदेव। गंगा न समझी कुछ! इसी तेजराज के कारण ही तो बिछड़ गए थे वे दोनों! "बुला गंगा!" बोला भूदेव! नहीं बुलाया गंगा ने! "गंगा! मुझे फ़ालिज पड़ी थी! जब मेरा पाँव टूटा था वो, कोई रग दब गयी थी मेरी, वो फ़ालिज इस तेजराज ने नहीं मारी थी, हाँ, परसों आया था मेरे पास! मुझे ठीक किया उसने! उसने कहा था, कि गंगा तड़प रही है तेरे लिए भूदेव! जैसे तू तड़प रहा है। अब तुम दोनों नहीं तड़पो! दुख होता है मुझे तुम्हारा हाल देख कर! भूदेव, परसो जाना तुम वहाँ! इंतज़ार कर रही है तेरा वो गंगा! और हाँ, वही ले गया था वो दुपट्टा जो तूने मेरे पाँव में बाँधा था!" बोला भूदेव! गंगा हैरान! सन्न! वो तो सोचती थी कि तेजराज ने ही डाली फ़ालिज! क्या क्या नहीं कहा उसने तेजराज को! और वो तेजराज, चुपचाप सुनता रहता था! नहीं बोलता था कुछ! "गंगा!ये तेजराज नहीं होता, तो शायद ही हम दुबारा मिल पाते!" बोला भूदेव! 

आँखों में आंसू आ गए गंगा के! बह चले आंसू! "आवाज़ दे गंगा!" बोला भूदेव, उसके आंसू पोंछते हुए। 

गंगा ने संभाला अपने आपको! "तेजराज!" बोली वो! 

"हाँ गंगा!" बोला वो! "सामने आ!" बोली वो! "आता हूँ, लेकिन गुस्से से मत देखना! वचन?" बोला वो! "वचन!" बोली गंगा! रुलाई रोकते रोकते! 

और आ गया तेजराज! कुँए की मुंडेर के पास खड़ा हो गया था! मुस्कुराते हुए! "बोल गंगा?" बोला तेजराज! क्या बोलती! रुलाई फूट पड़ी! "नहीं गंगा! नहीं! देख! भूदेव आ गया है। तेरे लिए!! अब न रो! न रो! अब हंसा कर! हंसा कर गंगा!" बोला तेजराज! नहीं रुक सकी उसकी रुलाई! "चुप होजा अब गंगा! रोने के दिन चुक गए! बहुत रुलाया न मैंने तुझे?" बोला वो! कुछ न बोल सकी! रुलाई रोक, न में सर हिलाती रही! "भूदेव! कभी नहीं रुलाना इस गंगा को! तू बहुत भागवान भाग्यवान) है भूदेव! तुझे गंगा मिली है! उसका प्रेम मिला है। इसे कभी नहीं रुलाना!" बोला तेजराज! गले लग गयी वो भूदेव के! "गंगा?" बोला तेजराज! देखा उसे गंगा ने! "तुने मेरी कोई बात नहीं मानी न आज तक?" बोला वो! गंगा चुप!! भूदेव चुप! "आज मानेगी?" बोला तेजराज! "बोलो तेजराज!" बोला भूदेव! "ये! ये ले ले गंगा!" बोला वो! वो! वही पोटली! जेवरों की! गंगा ने नहीं ली! "ले गंगा!" बोला तेजराज! "जा! ले ले गंगा!" बोला भूदेव! भूदेव की आँखों में झाँका उसने! "अच्छा गंगा! चल मैं ही हारा! भूदेव?" बोला वो! "हाँ तेजराज?" बोला भूदेव! "तू आ इधर!" बोला तेजराज! 


   
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श्रीशः उपदंडक
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गया भूदेव उधर, उसके पास! "ले भूदेव, मैंने तुझे दी, तू गंगा को दे दे!" बोला वो! भूदेव ने ली, और पलटा! आया गंगा के पास! "ले गंगा!" बोला भूदेव! गंगा न ले अभी भी "ले ले गंगा! तेरे लिए ही है ये!" बोला तेजराज! "ले ले गंगा! मान जा!" बोला भदेव! 

और तब, ले ली गंगा ने! जैसे ही ली पोटली, तेजराज अपनी माँ को याद कर, भाई को याद कर, सुबक उठा! जिस पोटली को वो छिपाए-छिपाए घूम रहा था, आज उतर गया था बोझ! इसीलिए रोया था वो! "एक एहसान और करना भूदेव मुझ पर!" बोला तेजराज! "एहसान? कैसा एहसान?" बोला भूदेव! "ब्याह के बाद, जब पहली बार घर आये गंगा, तो तू और गंगा मुझे मुक्त करवा देना! मैं अकेला हूँ। करवा दोगे न?" बोला तेजराज, याचना भरे स्वर से! आगे गया भूदेव! और लगा लिया गले उस तेजराज को! तेजराज ने कस लिया उसे! रोते रोते! अपने बड़े भाई की तरह! उसी की याद में! "करवा दूंगा! वचन!" बोला वो! "गंगा!" बोला तेजराज! "तुझे एक बार और दिखाई दूंगा! बस एक बार! आखिरी बार! फिर कभी नहीं!" बोला तेजराज! भूदेव आ गया था वापिस गंगा के पास तब तक! "भूदेव?" बोला तेजराज! "बहन के लिए रिश्ता आ रहा है! तैयार रह!" बोला तेजराज! "धिनमान!" बोला भूदेव! (शुक्रिया, धन्यवाद) "गंगा! अब जा! भूदेव! अब जा! बहन को ब्याह! और उसके बाद गंगा से ब्याह कर! और हाँ, इसको रोज मिलना तू! रोज! तुम्हे खुश देख, मैं बहुत खुश होऊंगा! और गंगा! अब नहीं आना अंधे कुँए पर! मारा ये तो कहना मान ही लेना! जा अब, खबर कर घर में, कि लौट आया है तेरा भूदेव!" बोला तेजराज! 

और इतना कह! लोप हो गया तेजराज! गंगा ने आवाजें दी उसे! कई बार! कई बार! 

नहीं आया लौट के! "चल गंगा!" बोला भूदेव! मित्रगण! पंद्रह दिन बाद ही भूदेव की बहन का ब्याह हो गया! भूदेव के बारे में बता दिया था घर में गंगा ने! गंगा खुश रहे, यही चाहते थे उसके परिवार वाले! भूदेव रोज आता था मिलने गंगा से! रोज! जैसे कोई नियम! और फिर कोई महीने बाद, अपनी माँ के संग आया भूदेव! रिश्ते के लिए! रिश्ता तय हो गया उनका! 

और इस तरह से, एक दिन, वे ब्याह के बंधन में भी बंध गए! ब्याह हो गया उनका! और जिस दिन डोली उठी उस गंगा की, डोली कुँए तक ही जानी थी, उसके बाद घोड़ा-गाड़ी थी! तो जब डोली पहुंची कुँए तक, तो सभी थे साथ में, वो उदयचंद! वो माला! वो जमना! और! 

और उनसे दूर खड़ा वो तेजराज! नज़रें मिलीं तेजराज से उसकी! 

और तेजराज! हाथ जोड़े खड़ा था! हाथ जोड़े! विदाई के लिए! मुस्कुराते हुए!! 

और गंगा!! गंगा पहली बार मस्कराई उसको देख कर! 

और चला फिर वो उसके पास के लिए! दूसरी तरफ से! आया, अपने वस्त्रों से एक पोटली निकाली! 

और हाथ अंदर कर दिया अपना डोली में! मन्नी! वो मेहँदी! वही थी! "मैं कहा था न गंगा! एक बार और दिखूगा! आज ही वक्त है वो! तू खुश रह!" बोला वो! 

और चला गया! लौट के नहीं देखा! जाता रहा! और लोप हआ!! कोई दस दिन बीते! और गंगा वापिस आई अपने घर! भूदेव के संग! भूदेव अपने संग एक बाबा को भी लेकर आया था,


   
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श्रीशः उपदंडक
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जिन्होंने शान्ति-कर्म करना था उस तेजराज के लिए। ताकि तेजराज, वो समय के धागों में अटका हुआ है, मुक्त हो सके! आगे जा सके! घर आये वे तो सभी खुश! सभी के लिए कुछ न कुछ लाया था वो भूदेव! और जमना तो खूब लड़ी थी गंगा 

से! कि याद ही नहीं आई किसी कि, वहीं की होके रह गयी, आदि आदि! और माला! रो रो के बुरा हाल था उसका तो! हमसाया थी गंगा उस माला का! गंगा भी खूब रोई! लेकिन माँ-बाप खुश थे! जंवाई बहुत अच्छे मिले थे उन्हें! अपने बेटे की ही तरह के! और भूदेव, भूदेव भी बहुत प्रसन्न था! उसे उसका प्रेम जो मिल गया था! बहुत कम ही ऐसे भाग्यवान हुआ करते हैं! और भूदेव, भूदेव उन्ही में से एक था! मित्रगण! दो दिन हंसी-खुशी से बीते! और फिर दो दिन के बाद, अब पूजन का मुहूर्त आया! बाबा जी ने कहा भूदेव से, सारी सामग्री लेकर आया था भूदेव! और फिर चले वो घर से! गंगा बेचैन थी बहुत! जाना चाहती थी संग! भूदेव ने बहुत समझाया था उसको, और तब जाकर वो मानी! वे दोनों पहुंच गए थे वहां पर! अब पूजन की तैयारी हुई! बाबा ने सारी तैयारियां कीं! और बैठ गए पूजन के लिए! प्रार्थना आरम्भ हो गयी और तभी, दूर, उस दीवार के पास, वो खड़ा दिखा! वो तेजराज, उस भूदेव को! भूदेव दौड़ पड़ा उस से मिलने के लिए! जैसे ही मिला, गले 

लगे दोनों "भूदेव! बस कुछ क्षणों में मैं विदा ले लूँगा! फिर तेजराज कहीं नहीं होगा! जो भी कुछ हुआ, मुझे, जानकर, या अनजाने में, मेरी वजह से, तुझे या गंगा को कष्ट हुआ हो, तो मुझे माफ़ कर देना भूदेव! माफ़ कर देना!" कहते कहते रो पड़ा तेजराज! "नहीं तेजराज! नहीं! तुम्हे कोई नहीं भूलेगा! न गंगा! और न मैं! कभी नहीं! और हाँ! तुम्हे याद रखने के लिए, मैं अपने पुत्र का नाम तेजराज ही रखेंगा! वचन दिया! तुमने कोई गलत नहीं किया! तुम्हारी जगह मैं होता, तो मैं भी यही करता! तुम्हारा बलिदान, हम कभी नहीं भूलेंगे!" बोला भूदेव! 

और तभी! तेजराज के पाँव गायब हुए! देखा दोनों ने! "मैं चलता हूँ अब! बहुत भटक लिया मैं भूदेव! बहुत! मुझे माफ़ करना भूदेव! माफ़ कर............." इतना बोलकर, लोप हो गया वो! न बोल सका पूरा वाक्य! "अलविदा तेजराज! अलविदा!" बोला भूदेव! और लौट पड़ा! पूजन समाप्त हो गया था! निबट गया था सब! अब लौट आये घर वे! मित्रगण! 

समय बढ़ता रहता है आगे! और समय बढ़ा! गाँव में तीन दिन तक, अखंड भंडारा चला! उस तेजराज की आत्मा की शान्ति के लिए। तीन माह के बाद, माला का ब्याह हो गया, ब्याह के दो महीने बाद, माला का पति सपरिवार गुजरात चला गया, माला कभी न लौट सकी फिर! जमना का ब्याह छह महीने बाद हुआ! गंगा और भूदेव ने ऐसा ब्याह किया कि पूरे गाँव ने 

देखा! अगले ही वर्ष, गंगा ने एक पुत्र को जन्म दिया! और उसका नाम भूदेव ने तेजराज ही रखा! वचनानुसार! गंगा के माता-पिता भी अकेले नहीं रहे! वो उदयचंद रहने लगा था उनके साथ! उसका ब्याह भी हो गया था! हाँ, जमना बहुत दूर ब्याही थी, और उसका संयुक्त परिवार भी बहुत दूर जा बसा था! कभी आती बरसों में! माँ गुजरी, पिता गुजरे, और उदयचंद की कोई संतान न हई, हाँ, भूदेव, अपनी माँ की मौत के बाद, दूर चला गया था! उसको भेज दिया गया था दूर, वो अमीन बन चुका था उस समय तक। समय नहीं रुकता! गंगा और भूदेव भी नहीं


   
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श्रीशः उपदंडक
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रुके। कोई नहीं रुकता! वे भी काल-गृह में प्रवेश कर गए! रह गयी जमना! जमना का भाग्य ही साथ नहीं दे पाया! पति नहीं रहा, संतान नहीं रही! लौट आई, उदयचंद के पास, उदयचंद भी काल-गृह में प्रवेश कर गया था! जमना, मथुरा चली गयी, जहां, बाबा कुंदन से टकरा गयीं वो! और बाबा कुंदन, उनकी वृद्धावस्था को देख, अपने संग ले आये! उसी जगह, जहां से उस जमना का गाँव पास ही था! तेजराज, पुत्र उस भूदेव का, कहाँ है, कुछ नहीं पता! मित्रगण! मैं उस गाँव गया था जमना को लेकर! अम्मा जमना! अब घर नहीं है उनका वहाँ! मवेशी बांधते हैं लोग उधर! हाँ, वो कुआँ मैंने देखा जहां पानी पिया करता था भूदेव! जहाँ पहली बार मिला था वो उस गंगा से! और वो अँधा कुआँ भी देखा, जहां तेजराज वास करता था! वो दीवार भी! सब वहीं हैं! लेकिन आज, भूले-बिसरे हैं! मैंने बस, इस घटना के ज़रिये प्रयास किया कि एक बार, फिर से जीवंत हो जाएँ ये कुछ किरदार! अम्मा का रख-रखाव अच्छा हो, हारी बीमारी में मुझे सूचित करें, ऐसा मैं बाबा कुंदन से कह आया था! और हाँ, वहाँ से जाने से पहले, एक बार अम्मा के चरण पड़े थे मैंने! और फिर से अम्मा से खा कि मुझे एक बार फिर, तस्वीर दिखाएँ उस गंगा की! अम्मा ने दिखाई। और गंगा! मेरे सामने जैसे जीवित हो गयी। जैसे, घोड़े पर आ रहा हो भूदेव और गंगा, ताक रही हो उसका रास्ता!! बस यही कहानी है उस गंगा की! बस यही! साधुवाद! 

 


   
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