बस वहीँ का दृश्य! बाबा का चेहरा उनका अलौकिक रूप और माहौल! रह रह कर जैसे वो टीला हमे बुला रहा था!
फिर भी, लेट गए, नींद का इंतज़ार करने लगे! और सोचते सोचते आँखों में निंदिया आ ही गयी! हम सो गए!
और फिर सुबह हुई, जैसा ज्ञात था, नींद देर से खुली, साढ़े दस बज चुके थे, अब हम नित्य-कर्मों से फारिग हुए, स्नान आदि किया फिर मजार तक गए, वहाँ साफ़ सफाई कर दी गयी थी, सो हम ऊपर आ गए, और फिर महेंद्र साहब ऊपर ही चाय नाश्ता ले आये, हम नाश्ता करने लगे और चाय भी पीने लगे, जब चाय नाश्ता कर लिया तो मैंने महेंद्र साहब से कहा, "आप आज ही सारा सामान मंगवा लीजिये, मजार के लिए"
"जी, आज ही मंगवा लेता हूँ, मैं चला जाता हूँ वहाँ खुद ही!" वे बोले,
"हाँ, ये ठीक रहेगा" मैंने कहा,
उनका बेटा ऊपर आया, नमस्ते के उसने और बर्तन उठा लिए उसने, फिर महेंद्र साहब भी उठ गए, वे जाने वाले थे सामान लेने के लिए!
और वे चले गये!
"काम आज से ही शुरू?" शर्मा जी ने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
"सही है, देरी क्यों!" वे बोले,
"सही बोले आप" मैंने कहा और लेट गया!
शर्मा जी भी लेट गये!
"कितना अद्भुत दृश्य था!" वे बोले,
"अभी वहीँ खोये हो?" मैंने पूछा,
"हाँ, वहीँ खोया हूँ!" वे बोले,
"अब बाहर आइये, अब हमारा काम ख़तम हुआ!" मैंने कहा,
"हाँ, ये तो सच कहा आपने!" वे बोले,
"अब ये मजार बन जाए तो हम भी चलें यहाँ से!" मैंने कहा,
"हाँ जी" वे बोले,
उसके बाद हम बातें करते रहे, विषय वही था, बाबा सैफ़ुद्दीन!
एक घंटा गुजर गया,
तभी महेंद्र साहब आ गए ऊपर,
बैठे,
'सारा सामान आ गया है, अब आप देख लीजिये" वे बोले,
"ठीक है, नीचे चलते हैं" मैंने कहा,
और हम नीचे चल दिए!
अब मैंने राज-मिस्त्री को सब समझा दिया कि कैसे सब करना है, आदमी समझदार था वो, वो समझ गया और मित्रगण, वहाँ काम आरम्भ हो गया, मैंने वो हसन का दिया हुआ ताबीज़ नीचे गाड़ दिया, जैसा उसने कहा था! एक चबूतरा बनाया गया, फिर उसको उसी दिशा में मजार का रूप दिया गया! और फिर बाद में उस पर पत्थर लगाया गया!
तीन दिन लगे कुल, मजार एकदम नयी हो गयी थी! हमने वहाँ सिरहाने आले बनवाये थे, जिसमे एक दिया हमेशा जलना था! ये हमने महेंद्र साहब को कहा दिया था और वो सहर्ष तैयार भी थे!
तीन दिन बीत गए थे!
तीसरी रात की बात है! मुझे सपना आया एक, लगा कि मुझे अगली रात बुलाया गया है उसी टीले पर! मैंने सपने में ही हामी भर ली थी! मेरी आँख खुल गयी! मुझे इत्तला मिल चुकी थी!
मित्रगण!
मैं अगली रात वहाँ उस टीले पर पहुंचा! शर्मा जी के साथ! वहाँ एक अलाव जल रहा था! झोंपड़ा भी वहीँ था! मैं वहाँ ढूंढ रहा था हसन को और हसन वहाँ कहीं नहीं था! मैंने झोंपड़े में देखा, वो वहाँ भी नहीं था, और तभी मेरे से थोड़ी दूर वो हाज़िर हुआ!
"आइये, मेरे साथ" वो बोला,
हम चल पड़े उसके साथ!
उसके पीछे,
वो हमे दूर ले गया, उस टीले से भी दूर! वहाँ एक ढलवां रास्ता था, जो पहले हमने कहीं नहीं देखा था! और उसके ठीक पास वही दूधिया रौशनी बिखरी पड़ी थी!
"वहाँ हैं मालिक, आज आयेंगे यहाँ, और फिर वहाँ!" उसने इशारा करके बताया!
मैं जान गया था उसका अर्थ!
"बाबा बहुत खुश हैं आपसे और उस परिवार से!" हसन ने कहा,
ये हमारा सौभाग्य था!
फिर हसन ने हमसे कुछ और बातें कीं, जो मैं यहाँ नहीं लिख सकता! कुछ गूढ़ बातें!
"अब मैं चलूँगा!" हसन ने कहा,
और हमारे देखते ही देखते वो लोप हो गया!
रह गए अब हम वहाँ!
दोनों अकेले!
और फिर भारी मन से हम वापिस चले!
नीचे उतरे और गाड़ी में बैठे!
और घर आ गए!
महेंद्र साहब को सारी बातों से अवगत करा दिया गया! और उसके बाद हमने वहाँ से विदा लेने की इच्छा ज़ाहिर की! इच्छा न हमारी ही थी और न महेंद्र साहब की, लेकिन जाना तो था ही!
और फिर अगली सुबह, बाबा की मजार के सामने माथा टेक कर और हाथ जोड़कर सभी से विदा ले ली!
वो मजार आज भी महेंद्र साहब के घर में है! महेंद्र साहब और उनका बेटा बिना नागा बाबा की सेवा किये जा रहे हैं! इसका फल भी मिला है उन्हें! बेटी की नौकरी लग गयी है सरकारी एक ऊंचे पद पर! और अब विवाह की तैयारी है, अगले वर्ष विवाह होगा! हम भी
जायेंगे वहाँ, बाबा के दर्शन करने! महेंद्र साहब की पद्दोन्नति हो गयी है! घर में खुशियों का आलम है!
वो बाबा सैफ़ुद्दीन मुझे आज भी याद हैं!
और हमेशा ही याद रहेंगे!
------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------
बाबा सेफुद्दीन साहब के क़दमों में सज़दा करता हूँ, कोटिशः धन्यवाद गुरूजी जो आपने बाबा के दर्शन कराये 🌹🙏🏻🌹