वर्ष २०१२ जिला अलवर...
 
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वर्ष २०१२ जिला अलवर की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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संध्या बीत चुकी थी! उस शाम कोई छह बजे शर्मा जी का फ़ोन आया था मेरे पास कि उनके साथ एक उनके जानकार आने वाले हैं, वे किसी समस्या से ग्रस्त हैं करीब नौ महीने से, समस्या ख़तम ही नहीं हो पा रही है, अब वे उनके पास आये हुए हैं, हो सके तो उसका निदान हो जाए तो अच्छा रहे, मैंने हां कर दी थी, मित्रगण, यदि आप समर्थ हैं किसी की मदद करने के लिए तो अवश्य ही मदद करनी चाहिए, यही इंसानियत है और यही सबसे बड़ा मज़हब! ध्यान रहे, 'वो' कभी नहीं आता सामने मदद के लिए, उसके पास फुर्सत नहीं! उसके एक कुत्ते का भी ख़याल रखना है, एक बिल्ली का भी और एक चूहे का भी! और एक छोटे से कीड़े का भी! सो, वो नहीं आता, हाँ, किसी को ज़रिया बनाता है, और ज़रिया बनना बड़े ही सौभाग्य की बात है! समर्थ होते हुए भी यदि न कही तो फिर आपको कहीं भी कोई ज़रिया नसीब नहीं होने वाला! इसी बात से डरना चाहिए! और मैं सदा डरता हूँ ऐसे ही!

खैर,

संध्या जब पईयाँ-पईयाँ आगे बढ़ी, तो रात अपना घूंघट उठा-उठा के देखने लगी! और तभी शर्मा जी आ गए वहाँ, कोई पौने आठ का समय रहा होगा वो! वे आये और गाड़ी लगायी, साथ में माल-मसाला भी ले आये थे, हमेशा की तरह! सीधा मेरे पास ही आ गए, दो सहायक मिले तो उनको बेटा कह कर ज़रा कुछ बर्तन और सामान लाने को कह दिया, सभी सहायक मेरा इंतज़ार करें न करें, शर्मा जी का अवश्य ही करते हैं! अब क्यों, ये वही जानें! शर्मा जी के साथ एक दरम्याने क़द के कोई पचास-पचपन वर्ष के सज्ज्न रहे होंगे, चेहरा बुझा-बुझा और चिंताएं साफ़ झलक रही थीं उनके चेहरे से! नमस्कार हुई और फिर हम अंदर आ बैठे, इतने में एक सहायक बर्तन आदि लेकर अंदर आ गया, साथ में गिलास और पानी भी ले आया था! उसने रखा और चला गया!

"गुरु जी, ये हैं श्रीमान राजकुमार जी" शर्मा जी ने परिचय करवाया,

"अच्छा!" मैंने कहा,

"ये जिला अलवर के पास रहते हैं, वैसे सरकारी नौकर है, घर में संयुक्त परिवार है इनका, इनसे बड़े भाई और दो छोटे भाई भी सपरिवार सहित रहते हैं, घर में कोई कमी नहीं, खेती-बाड़ी सब है, लेकि अब ये एक समस्या से बहुत परेशान हैं" शर्मा जी बोले,

"बताइये कुमार साहब?" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"गुरु जी, मेरे घर में दो बड़ी बेटियां हैं और एक बेटा, सबसे बड़ी बेटी का ब्याह हो चुका है, छोटी का ब्याह करते लेकिन हम बहुत परेशान हैं" वे बोले,

"कैसे?" मैंने पूछा,

"क्या बताऊँ गुरु जी" वे बोले,

चुप हुए,

शायद शुरुआत ढूंढ रहे थे!

"गुरु जी, आज से कोई नौ महीने पहले की बात है, मेरी सबसे बड़ी लड़की नीतू अपने ससुराल से आयी हुई थी घर पर, उसके साथ मेरी बीच वाली लड़की मीता जिसे बोली में हम मीतू बोलते हैं, का बेहद लगाव है, दोनों बहनों में बहुत प्यार है शुरू से, गुरु जी, होली बीत चुकी थी, और नीतू घर आयी हुई थी, सो दोनों बहनें खूब बातें करतीं और खूब घूमा करतीं, नीतू अपनी माँ से कहती भी थी कि अब उसके हाथ भी पीले कर देना चाहिए, ऐसी ही बातें चलती रहतीं, घर में खूब खुशियां थीं गुरु जी!" वे बोले,

"अच्छा, ऐसा फिर क्या हुआ?'' मैंने पूछा,

"नीतू अपने घर चली गयी थी ख़ुशी ख़ुशी, हम भी खुश थे, उसके साथ अच्छा समय बिताया था, लेकिन गुरु जी, उसके जान एके कुछ दिन बाद, एक रात की बात है, मीतू की माँ ने उसके कमरे में से कुछ आवाज़ें आती सुनीं, वो वहाँ तक गयीं, लेकिन अंदर कोई न था, ऐसा ही लगा, उन्होंने उसका दरवाज़ा खुलवाया, दरवाज़ा खोला मीतू ने, अंदर देखा, अंदर कोई नहीं था!" वे बोले,

"अरे! ये कैसे?" मैंने पूछा,

"मीतू की माँ ने ये मुझे बताया, मैंने कहा कि कोई वहम हुआ होगा, रात के दस बज रहे थे, पूरा गाँव आराम से सो रहा था, सो मैंने उसको भी जाकर सोने को कह दिया, वो चली गयी" वे बोले,

"अच्छा!" मैंने कहा,

"लेकिन गुरु जी, मीतू की माँ ने गलत नहीं कहा था, उसके कमरे से आवाज़ें आती थीं!" वे बोले,

"क्या? आपने सुनीं?" मैंने पूछा,

"हाँ गुरु जी" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"कैसी थीं आवाज़ें?" मैंने पूछा,

"जैसे दो आदमी कमरे में बैठे हों, और उनमे से एक बार बार दुसरे को समझा रहा हो और फिर ज़ोर से शश! चुप रहने को कह रहा हो!" वे बोले,

"आपने यही सुना?' मैंने पूछा,

"हाँ गुरु जी" वे बोले,

"कब?" मैंने पूछा,

"वो दिन इतवार का था, मैं घर देर से आया था, अपनी मित्र-मंडली में ही बैठा था सो खाते-पीते देर हो गयी थी, मैं जब घर में आया तो उस समय रात के ग्यारह बज रहे थे, मैं सीधा लघु-शंका त्याग करने गया, और जब वापिस आया तो मैंने मीतू के कमरे में से कुछ आवाज़ें सुनीं, जैसे कोई मीतू को समझा रहा हो, कि ऐसा न हो, वैसा न हो, कभी ऐसा नहीं करना आदि आदि, मैंने तभी उसका दरवाज़ा खड़काया, दरवाज़ा मीतू ने खोला, और हैरत से मुझे देखते हुए बोली कि क्या हुआ पापा? मैंने सुना नहीं और सीधा कमरे में घुस गया, लेकिन वहाँ कोई भी नहीं था!" वे बोले,

"अच्छा?? क्या आपने मीतू से पूछा?" मैंने पूछा,

"हाँ, कई बार, लेकिन उसने यही काह कि वहाँ कोई नहीं था, वो तो सोयी हुई थी?" वे बोले,

"बड़ी अजीब सी बात है ये तो" मैंने कहा,

अब शर्मा जी ने पैग बनाने शुरू कर दिए!

मैंने अपना गिलास उठाया,

एक मंत्र पढ़ा,

हमेशा की तरह,

और फिर गिलास उठाकर पी गया!

उन्होंने भी अपने अपने गिलास उठकर खाली किये!

समस्या अभी तक तो मुझे उनके घर में ही लगी थी, लेकिन अभी और बातें भी होनी थीं, सो मैंने फिर से उनसे बातें कीं, वे खोये हुए थे वहीँ, उन्ही क्षणों में, दिनों में!मैंने मांस का एक टुकड़ा


   
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श्रीशः उपदंडक
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उठाया और खा लिया, उन्होंने भी आनंद लिया उसका! शर्मा जी ने फिर से एक और पैग बना दिया! हमने वो भी खाली कर दिया! और फिर और बातें शुरू हो गयीं!

 

"अच्छा फिर कुमार साहब?" मैंने पूछा,

"जी, वे आवाज़ें अक्सर आती रहतीं, हमे चिंता हुई, हैरत ये कि मीतू इस बात से अनजान थी, हमने कई बार पूछा उस से, लेकिन वो कुछ नहीं बता पायी" वे बोले,

"बात तो हैरत की ही है" मैंने कहा,

"गुरु जी, एक रात की बात है, हमने मीतू को एक अलग कमरे में सुलाया, और मीतू के कमरे में उसका भाई सोया, उस रात कोई आवाज़ नहीं आयी, कुछ नहीं हुआ, फिर हमने यही करना शरू किया, और लगने लाग कि इस समस्या का अंत हो गया है, लेकिन.." वे बोलते बोलते रुक गए,

"लेकिन क्या?" मैंने पूछा,

"एक रात को मेरी आँख खुली, मुझे फिर से आवाज़ आणि शुरू हुईं, मैं खड़ा हुआ, चप्पलें पहनीं और बाहर चला, आवाज़ें एकदम साफ़ साफ़ आ रही थीं, जैसे कोई दीवार के पीछे ही खड़ा हो और बातें कर रहा हो, मैं बाहर गया, मीतू के कमरे तक, उसका दरवाज़ा खुला था, मैंने अंदर देखा, अंदर मीतू नहीं थी, मैं घबरा गया, फिर मैं बाथरूम तक भी गया कि शायद वहाँ हो, लेकिन वहाँ की बत्ती बुझी हुई थी, मतलब कि वो वहाँ नहीं थी, मैं फिर से वापिस हुआ कमरे की तरफ, अब भी नहीं थी मीतू वहाँ, मैंने आवाज़ें दीं उसको, तभी मेरी पत्नी भी जाग गयी, वो भी आयी, मेरा लड़का भी आ गया, दुसरे भाई और भतीजे भी जाग गए, उन सबने ढूँढा उसको, छत पर भी, लेकिन वो कहीं नहीं थी, हम सब घबरा गए बहुत गुरु जी" वे बोले,

"तो कहाँ थी वो लड़की?" मैंने पूछा,

हम बहार दरवाज़े तक भागे सभी, बहार का दरवाज़ा खुला था, वो बाहर ही गयी थी, हमने बाहर जाकर उसको तलाश" वे बोले,

"अच्छा! फिर?" मैंने पूछा,

"गुरु जी, करीब पंद्रह मिनट के बाद वो हमको आती दिखायी दी, गुरु जी, रात के दो बजे थे, घुप्प अँधेरा था वहाँ और वो आराम आराम से टहल कर आ रही थी, मैं दौड़ पड़ा उसकी तरफ, उसका हाथ पकड़ा, वो एकदम ठंडी थी, मैंने पूछा उस से कई बार कि कहाँ गयी थी, उसने कोई


   
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श्रीशः उपदंडक
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उत्तर नहीं दिया, हाँ, उसकी चुन्नी में एक पोटली से बंधी थी, वो उसको ही संभालकर ला रही थी!" वे बोले,

"पोटली? कैसी पोटली?" मैंने पूछा,

हैरत हुई मुझे ये सुनकर!

"वो घर में अंदर घुसी, किसी से बात नहीं की और अपने कमरे में घुस गयी, बैठी, हम सब भी वहाँ आ गए, उसने गुनगुनाते हुए वो पोटली खोली, गुरु जी!" वे बोले और रुके,

खांसकर गला साफ़ किया, मैंने पानी दिया उनको उठाकर, उन्होंने पानी पिया,

"क्या था पोटली में?" मैंने पूछा,

"गुरु जी, उसमे गरम गरम चावल थे और कुछ मिठाई, बालूशाही और कुछ जलेबियाँ!" वे बोले,

"क्या?" मैंने पूछा,

"हाँ गुरु जी, गरम गरम चावल, उसके हाथ भी नहीं जल रहे थे, भाप उड़ रही थी उनसे, उसने उनको कहाँ शुरू किया, हमने रोका तो उसने हमको ही पकड़ कर धक्का देना शुरू कर दिया!" वे बोले,

"अच्छा?" मैंने पूछा,

"हाँ गुरु जी, वो खाने लगी, और घर के छोटे बालक-बालिकाओं को नाम ले ले कर बुलाने लगी कि आओ और मिठाई खा लो, हम उस दिन बहुत डर गए थे, आखिर वो मिठाई और चावल लायी कहाँ से? गाँव में न कोई जागरण था, न कोई शादी-ब्याह? और वो भी रात को दो बजे?" वे बोले,

"हैरत की बात तो है ही" मैंने कहा,

"अब हमे यक़ीन हो गया कि उस लड़की के साथ कुछ न कुछ गड़बड़ हो रहा है, हम सब ने यही माना, और उसका इलाज करवाने के लिए अब भाग-दौड़ी शुरू की" वे बोले,

"अच्छा, कौन आया फिर?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"गुरु जी, गाँव में एक ओझा रहता है, बदरी, वो झाड़-फूंक किया करता है, हम उसके पास गए और उसको सारी बात बताई, उसने इलाज करने के लिए हाँ कह दी, और फिर वो अगले ही दिन आ गया घर हमारे" वे बोले,

"अच्छा!" मैंने कहा,

"हाँ जी, उसने लड़की से कुछ बात की, लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया, तब उसने कुछ पढ़कर कुछ फेंका उसके ऊपर, उस लड़की ने खड़ी हो कर चांटा मर दिया उस ओझे को, वो भाग गया वहाँ से डर कर! बाद में उसने बताया कि ये काम उसके बस का नहीं, कोई बहुत ही बड़ी ताक़त के लपेटे में है वो लड़की, उसका कहीं और इलाज करवाइये" वे बोले,

"अच्छा!" मैंने कहा,

"अब ओ गुरु जी, और डर गए हम, बहुत भय बैठ गया, क्या हो गया लड़की को बैठे बैठे? पूरा परिवार और पूरा घर जैसे सकते में आ गया, फिर से किसी को ढूँढा, तो जी एक और आदमी पता चला, वो आदमी अलवर में रहता था, हम उसके पास गए, उसने हमारी बात सुनी और कहा कि वो इलाज कर देगा उस लड़की का, और जी को तीन दिनों के बाद वो हमारे घर आ गया, उसने लड़की को देखा, उस से बातें भी कीं, लेकिन इस बार लड़की बिलकुल ठीक थी! उस आदमी ने वहाँ गहर में कुछ कीलें पढ़कर गाड़ दीं और कहा कि अब कोई नहीं घुस सकेगा घर में और लड़की को कहीं भी बाहर न जाने दें और अकेला बिलकुल भी नहीं छोड़ें" वो बोले,

"ऐसा किया?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, लड़की ठीक होने लगी, हमे लगा कि अब कोई समस्या नहीं है उसके साथ, लेकिन ऐसा नहीं हुआ गुरु जी" वे बोले,

"क्यों?" मैंने पूछा,

"एक रात की बात है, उसकी माँ उसके कमरे में ही सोती थी, लेकिन उस रात वो लड़की आधी रात को अपनी माँ को सोता छोड़ चली गयी घर से बाहर, और कोई एक घंटे के बाद आयी" वे बोले,

"एक घंटे के बाद?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, उसकी माँ की आँख खुली, उसने देखा कि मीतू नहीं है अपने बिस्तर पर, उसने ढूढ़ा उसको और फिर मुझे जगाया, मैंने भी ढूँढा, सभी जाग गए फिर, सभी बाहर दौड़े, लेकिन


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसका कोई पता नहीं था, तब मेरे एक भतीजे को मीतू आती दिखायी दी, उसके हाथ में फिर से एक पोटली थी" वे बोले,

"फिर से?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, वो चुपचाप, हम सबको अनदेखा कर अपने कमरे में चली गयी, पोटली खोली और उसमे से कुछ पूरियां और सब्जी, मिठाई निकालीं और फिर उसने दुबारा से आवाज़ें दीं बालकों को और खाने लगी!" वे बोले,

अब मामला बेहद उलझा हुआ लग रहा था! लड़की का ऐसे जाना और फिर पोटली में खाना लाना, वो भी रात बीते, बड़ा ही अजीब सा मामला था!

"फिर?" मैंने पूछा,

"गुरु जी, उसके माँ ने पूछा कि खाना कहाँ से लायी? तो वो बोली, उसका न्यौता आया था, पंगत लगी थी वहाँ, सो उसको वहाँ खिलाया गया और फिर घर के लिए खाना बाँध दिया गया" वो बोले,

"कहाँ से लायी थी? ये नहीं पूछा?" मैंने पूछा,

"पूछा था गुरु जी!" वे बोले,

"क्या बोली वो?" मैंने पूछा,

"यही बताया कि वो खाना मलखान की हवेली से लायी थी" वे बोले,

"मलखान की हवेली?" मैंने पूछा,

"हाँ जी" वे बोले,

"कहाँ है ये मलखान की हवेली?" मैंने पूछा,

"कहीं नहीं! पूरे गाँव में तो कहीं नहीं" वे बोले,

"कहीं आसपास?" मैंने पूछा,

"नहीं गुरु जी" वे बोले,

मलखान की हवेली! कमाल था! रहस्य था बहुत गहरा! दिमाग सन्न रह गया ये सुन कर!

 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"लेकिन इस मलखान की हवेली के बारे में किसी को तो पता ही होगा?" मैंने पूछा,

"हमने मालूम किया, लें आसपास के गाँव में भी कोई ऐसी और इस नाम की हवेली नहीं है गुरु जी" वे बोले,

"अच्छा, वैसे वहाँ हवेलियां बनी हुई हैं?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, रजवाड़ों और सेठों की हवेलियां हैं, लेकिन उनके अब तो खंडहर ही बचे हैं" वे बोले,

"अच्छा!" मैंने कहा,

"और कुछ पूछा आपने उस से?" मैंने पूछा,

"गुरु जी, पूछने पर नहीं बताती, अपना जी करे तो बताती जाती है" वे बोले,

"कुछ और बताया उसने?" मैंने पूछा,

"नहीं, अपने आप ही बड़बड़ाती रहती है, कभी कोई नाम, कभी कोई नाम, हमे समझ नहीं आता कुछ भी" वे बोले,

"समझ गया मैं" मैंने कहा,

"बहुत परेशान हो गए हैं हम" वे बोले,

"समझ सकता हूँ मैं" मैंने कहा,

"क्या उम्र होगी उसकी?" मैंने पूछा,

"बाइस की हो चुकी है" वे बोले,

"सेहत कैसी है उसकी?" मैंने पूछा,

"सेहतमंद है" वे बोले,

"बात करती है सभी से?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, लेकिन बालक-बालिकाओं से ज्य़ादा" वे बोले,

"गड़बड़ तो है कहीं न कहीं" मैंने कहा,

"गुरु जी, ये तो हम सबको पता है, लेकिन कुछ हो सकता है उसका?" उन्होंने पूछा,

"हो तो सकता है, मुझे देखना पड़ेगा उसको" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तो गुरु जी, कृपा करो हम पर, आ जाओ घर किसी दिन" वे बोले,

"शर्मा जी, इस शनिवार को कोई काम तो नहीं?" मैंने पूछा,

"नहीं गुरु जी" वे बोले,

"तो चलें इस शनिवार?" मैंने पूछा,

"चलिए गुरु जी" वे बोले,

"मेहरबानी गुरु जी आपकी" कुमार साहब बोले,

"कोई बात नहीं, देख लेते हैं क्या मुसीबत है उस लड़की के साथ" मैंने कहा,

और फिर से खाने-पीने का दौर शुरू हो गया!

"अच्छा, एक बात बताइये?" मैंने पूछा,

"जी?" वे बोले,

"जिस रात वो बाहर जाती है, उस दिन कोई ख़ास दिन होता है क्या?" मैंने पूछा,

"समझा नहीं?" वे बोले,

"मेरा मतलब सोमवार, मंगलवार या फिर अमावस या पूर्णिमा?" मैंने उदाहरण देते हुए समझाया,

"कभी गौर नहीं किया जी" वे बोले,

"आपको करना चाहिए था!" मैंने कहा,

"उसकी माँ को पता होगा जी" वे बोले,

"वैसे अब भी जाती है?" मैंने पूछा,

"हाँ जी" वे बोले,

"आप रोकते नहीं?" मैंने पूछा,

"जब रोकते हैं तो रुक जाती है" वे बोले,

"क्या?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ जी, हम रोकते हैं तो रुक जाती है, फिर नहीं जाती" वे बोले,

"कमाल है!" मैंने कहा,

"हाँ जी" वे बोले,

"और कुछ बात जो बताना चाहेंगे?" मैंने पूछा,

"यही कि सभी ने यही बताया है कि कोई बहुत बड़ी ताक़त है इस लड़की के पीछे, लेकिन क्या ये कोई नहीं बता पाया" वे बोले,

"पता चल जाएगा ये भी" मैंने कहा,

"आपकी कृपा होगी गुरु जी" वे बोले,

"आपकी बड़ी लड़की आती है?" मैंने पूछा,

"हाँ जी" वे बोले,

"पहले जैसे ही मिलती है मीतू उससे?" मैंने पूछा,

"नहीं गुरु जी, मीतू अपनी अपनी हांकती है अब, उसकी बहन बहुत परेशान है उसको लेकर, मेरे दामाद ने भी एक आदमी को भेजा था उसका इलाज करवाने के लिए, लें उस से भी कुछ न हुआ" वे बोले,

"मुझे लगता है, समस्या आपकी बेटी में नहीं है" मैंने कहा,

"जी??" उन्होंने हैरत से पूछा,

"हाँ, समस्या कहीं बाहर है, कोई ले जाता है उसको, कौन? ये ढूंढना है" मैंने कहा,

"आपने कहा, बताया कि आवाज़ें सुनीं थीं आपने?" मैंने कहा,

"वो तो आज भी आती हैं" वे बोले,

"अच्छा, वो आवाज़ें ही शायद उसका बुलावा है" मैंने कहा,

उन्होंने माथे पर हाथ रखा अपने!

"इसीलिए ये समस्या कहीं बाहर है" मैंने कहा,

"गुरु जी, बचा लो इस लड़की को!" वे बेचारे रुआंसे होकर बोले,


   
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"चिंता न कीजिये, जो बन पड़ेगा, वो ज़रूर करूँगा" मैंने कहा,

"ज़िंदगीभर आपके एहसान तले रहेंगे गुरु जी हम" वे बोले,

"कोई एहसान नहीं है इसमें!" मैंने उनके हाथ पर हाथ रखते हुए कहा,

"हमारे लिए तो एहसान ही है" वे बोले,

अब तक शर्मा जी ने प्याला बढ़ा दिया था सामने, सो मैंने प्याला उठाया और गटक गया! फिर वे भी गटक गए!

'आते हैं हम इस शनिवार कुमार साहब" मैंने कहा,

"मैं घर पर ही मिलूंगा आपको" वे बोले,

"ठीक है" वे बोले,

"एक काम और, आप अपने गाँव का और घर का पता लिखवा दीजिये शर्मा जी को" मैंने कहा,

"अभी लीजिये" वे बोले,

उन्होंने पेन निकाला और शर्मा जी को दिया, अब शर्मा जी ने अपनी छोटी डायरी में उनके गाँव का नाम और पता लिख लिया, और मुझे दे दिया, मैंने रख लिया,

अब शर्मा जी खड़े हुए, समय काफी हो चुका था,

"अब चलेंगे हम गुरु जी" वे बोले,

"ठीक है" मैंने कहा,

"सुबह कुछ मंगाना हो तो बता दीजिये" वे बोले,

"नहीं, कुछ भी नहीं" मैंने कहा,

अब कुमार साहब ने नमस्ते की, मैंने भी की और उनको हिम्म्त बंधाई, और फिर बाहर तक उनको छोड़ने भी गया!

वे चले गए!

और अब उलझा मैं!


   
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जो कहानी मैंने सुनी थी, वो अजीबोगरीब थी! कुछ रहस्य था जो छका रहा था सबको! क्या था वो, यही जानना था, इसीलिए मैं अपने क्रिया-स्थल की ओर मुड़ गया! मैं अपने क्रिया-स्थल में घुस गया, वहाँ मुझे अब अपना कारिंदा हाज़िर करना था, कुछ शुरूआती जानकारी मिल जाती तो काम बन सकता था, रहस्य सुलझाने के लिए एक डगर मिल जाती, इसीलिए मैंने भोग-थाल सजाया और फिर सुजान का रुक्का पढ़ दिया! झम्म से सुजान हाज़िर हुआ! मैंने उसको अब उसका उद्देश्य बता कर वहाँ से रवाना कर दिया, सुजान उड़ चला और और मैं वहाँ अपने आसन पर बैठ गया, करीब दस मिनट गुजरे होंगे कि सुजान वहाँ हाज़िर हुआ! उसने जो बताया उस से कुछ मदद नहीं मिली, हाँ, वो एक काम कर आया था, वो मलखान की हवेली ढूंढ आया था! उसने कुछ निशानियाँ भी बतला दीं, इस से काम बन सकता था! सुजान हवेली में नहीं घुसा था, नहीं तो मुझे पूरा ब्यौरा अवश्य ही देता, इसका मतलब वो रहस्य उस हवेली में ही था! अब क्या रहस्य था वो इसी हवेली से ही पता चल सकता था! ये हवेली बकौल सुजान उस लड़की के घर से कोई दूर नहीं थी, वो बियाबान में बनी थी और वो स्थान अब बीहड़ था! इसीलिए कुमार साहब को पता नहीं चला था! अलवर के कई गाँवों के आसपास और जंगलों में ऐसी इमारतें आज भी मौजूद हैं, ऐसी ही कोई हवेली थी ये! मैंने सुजान को भोग दिया और सुजान झम्म से फिर गायब हो गया! चलो, कुछ तो मदद मिली! अब इसके सहारे ही आगे बढ़ना था! अब मैं क्रिया-स्थल से बाहर आया और फिर सोने चला गया!

सुबह शर्मा जी ज़रा देर से आये, वे कुमार साहब को बस-अड्डे छोड़ने गए थे, वे जब आये तो बैठे और फिर मुझसे पूछा, "गुरु जी, कुछ पता चला?"

अब मैंने उनको जो पता चला था मुझे, बता दिया, वे भी हैरान रह गए!

"तो ये हवेली वहीं है!" वे बोले,

"हाँ" मैंने कहा,

''लेकिन ये लड़की वहाँ पहुंची कैसे?" उन्होंने सवाल किया,

"यही तो जानना है!" मैंने कहा,

"अच्छा!" वे बोले,

तब चाय आ गयी,

हमने चाय पी,

"परसों शनिवार है" वे बोले,


   
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"हाँ, चलते हैं सुबह" मैंने कहा,

"ठीक है, मैं कल यहीं ठहर जाऊँगा" वे बोले,

"ठीक है" मैंने कहा!

हमारी कुछ और बातें भी हुईं,

इसी दौरान मैंने उनसे पूछा, "आप कैसे जानते हैं इन कुमार साहब को?"

"वो हाजी साहब नहीं हैं? उन्होंने बताया इनको, इन्होने मुझे उनकी बाबत फ़ोन किया, मैंने हाँ कर दी, फिर हाजी साहब का भी फ़ोन आ गया कि ज़रा देख लें, क्या मुसीबत है" वे बोले,

"अच्छा! कोई बात नहीं" मैंने कहा,

"हाजी साहब तो हमारे पुराने और अज़ीम दोस्त हैं!" वे हंसते हुए बोले!

"यक़ीनन!" मैंने कहा,

"अब मैं चलूँगा, कुछ काम है, आता हूँ शाम को" वे खड़े हुए और बोले,

"ठीक है" मैंने कहा और मैं बैठा रहा!

वे चले गये वापिस!

तभी मेरे पास एक और औघड़ आ बैठा, वो दूसरे पक्ष का था, कुछ बातें हुईं उसके और मेरे बीच और फिर वो चला गया!

शाम हुई,

शर्मा जी आये,

साथ में सामान लेते आये थे!

रोज़मर्रा की तरह!

हम बैठे,

सहायक बर्तन, गिलास और पानी ले आया था, हम शुरू हुए!

"आज फ़ोन आया था कुमार साहब का" वे बोले,

"क्या कह रहे थे?" मैंने पूछा,


   
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"कह रहे थे कि एक आदमी और आया था देखने के लिए लड़की को" वे बोले,

''अच्छा, फिर क्या कह गया?" मैंने पूछा,

"यही कि लड़की को कोई भारी शय सता रही है, इस हिसाब से ये ज्यादा जियेगी नहीं" वे बोले,

"बद्तमीज़ इंसान! साल नौटंकीबाज होगा!" मैंने कहा,

"पता नहीं जी, कह रहा था कि उसके पास कोई सिद्ध शक्ति है, उसने बताया है" वे बोले,

"अगर है तो ठीक क्यों नहीं करता?" मैंने पूछा,

"कह रहा था कि लड़की को ग्यारह दिन घर से दूर रखना होगा, उसके स्थान पर" वे बोले,

"कुत्ता कहीं का! ऐसा होता है क्या?" मैंने गुस्से से कहा,

"कुमार साहब ने भी मना कर दिया!" वे बोले,

''अच्छा किया!" मैंने कहा,

"वैसे हो क्या सकता है? ये भारी शय?" उन्होंने पूछा,

"देखकर ही बता सकता हूँ" मैंने कहा,

"सुजान ने नहीं बताया कुछ?" उन्होंने पूछा,

"नहीं" मैंने कहा,

"चलो कोई बात नहीं, परसों ही सही" वे बोले,

"हां" मैंने कहा,

तभी वही औघड़ फिर आ गया!

"बैठ भाई कन्ना!" मैंने कहा,

वो बैठ गया,

"शर्मा जी, इसको ज़रा एक बड़ा सा बना कर दे दो" मैंने कहा,

उन्होंने एक बड़ा सा पैग बना के दे दिया उसको!


   
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उसने ले लिया!

"ये भी ले ले कन्ना!" मैंने कहा और एक टुकड़ा मानसा का दे दिया उसको! उसने ले लिया!

"क्या बात है? साहू नहीं है वहाँ?" मैंने पूछा,

"साहू गये हुए हैं" वो बोला,

"कहाँ?" मैंने पूछा,

"आगरा" वो बोला,

"लालमन के पास?" मैंने पूछा,

"हाँ जी" वो बोला,

"जाने दे, तू यहाँ आ जाया कर!" मैंने कहा,

उसने अपना गिलास खाली कर दिया!

हम भी लगे रहे!

आखिर में बोतल ख़त्म हो गयी, अब दूसरी खोल ली! कन्ना गज़ब का खिलाड़ी था, एक के बाद एक जल्दी जल्दी कर पैग पर पैग चढ़ाये जा रहा था!

"अब बस कर!" मैंने कहा,

उसने सलाम सा ठोका और उठकर चला गया!

"साहू का आदमी है ये?" शर्मा जी ने पूछा,

"हाँ, साहू है नहीं यहाँ, इसीलिए आ गया!" मैंने कहा,

"कोई बात नहीं!" वे बोले,

"अकेला रह गया है बेचारा!" मैंने कहा,

"कोई बात नहीं, यहाँ आ जाया करेगा!" वे बोले,

"मैंने इसको सुबह ही कह दिया था!" मैंने कहा,

"अच्छा किया गुरु जी!" वे बोले,


   
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