और मुक्ति-क्रिया वाला दिन भी आ गया!
उस दिन प्रकाश जी भी आ गए थे, वे अपने वचन के अनुसार सारा खर्च करने को तैयार थे, मुझे भी ख़ुशी थी, वे शर्मा जी के साथ सारा सामान खरीद कर लाये! और मुझे दिया! मैंने सामान रख लिया! वे उस शाम तक वहीँ रहे, फिर शाम के बाद चले गए! विदा लेकर! मैंने बता दिया था कि आज रात्रि वो लड़का मुक्त हो जाएगा!
उसी रात में क्रिया-स्थल में गया और फिर क्रिया हेतु सभी आवश्यक सामान वहाँ रखा! उसका प्रयोग किया और फिर उसको लड़के को मादलिया से बाहर निकाला! वो बाहर निकला, और चुपचाप शांत खड़ा हो गया!
"सुशांत! तैयार हो?" मैंने कहा,
"कृति के लिए" उसने कहा,
"हाँ! कृति के लिए, हो सकता है तुम्हारे सच्चे प्रेम ने उसको थाम रखा हो! सम्भव है वो तुम्हारा इंतज़ार कर रही हो परली पार! सम्भव है तुम दोनों एक हो जाओ फिर से!" मैंने कहा,
पहली बार!
पहली बार मैंने उसके ऊपर एक ख़ुशी का भाव देखा!
वो खुश हो उठा!
आखिर उसकी कृति से मिलने का समय जो आ गया था!
अब मैं एक्रिया को अंतिम स्वरुप दिया और फिर मुक्ति-क्रिया संपन्न करने हेतु भूमि पर एक रेखा अंकित कर दी, त्रिशूल की नोंक से! और मैं दूसरी तरफ खड़ा हो गया!
"अब आगे बढ़ो सुशांत!" मैंने कहा,
उसने मुझे देखा!
मुस्कुराया और फिर!
अगले ही पल वो आगे बढ़ा!
और लोप हो गया!
मुक्त हो गया!
मैंने उसी क्षण हाथ जोड़े और ये कामना की कि वे दोनों मिल जाएँ, उनका मिलन हो जाए! मुक्ति-क्रिया संपन्न हो गयी!
मुझे सुखानुभूति होने लगी! एक और भटकती हुई आत्मा अपने पार चली गयी थी! जहाँ अब उसे उसके निर्णय के अनुसार भेजा जाना था! यहाँ जो मेरा काम था, वो मैंने कर दिया था! मैं समस्त नमन करते हुए बाहर आया! और स्नान हेतु चला गया! फिर कमरे में आया! वहाँ शर्मा जी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे!
"क्रिया संपन्न? हो गयी मुक्ति?" उन्होंने पूछा,
"हाँ शर्मा जी" मैंने कहा,
अब वे बैठ गए,
मैं भी बैठ गया!
एक था सुशांत! मेरे ह्रदय में अंकित हो गया ये सुशांत!
मित्रगण! न जाने कैसी घड़ी थी वो कि जिसमे उस लड़की ने ऐसा निर्णय लेने का दुःसाहस किया, होगी कोई परिस्थिति ऐसी, लेकिन फंस ये गया था बेचारा!
खैर, वो भी मुक्त हुआ!
अगले दिन प्रकाश जी को मैंने खबर दे दी, वे भी प्रसन्न हुआ! उन्होंने अगले दिन घर में हवं करवा दिया, उस लड़की और उस लड़के की आत्मा की शांति के लिए!
ऐसे न जाने कितने सुशांत हैं जो भटक रहे हैं! कोई दुखी है, कोई क्रोधित और कोई शांत रह कर अज्ञात वास कर रहे हैं, अपनी अपनी सजा भुगत रहे हैं!
सुशांत और कृतिका!
एक हो जाएँ, पुनः मिलन हो जाए उनका!
यही कामना है!
----------------------------------साधुवाद---------------------------------
