हम यहाँ पहुंचे!
और मैं मिला सभी से वहाँ!
एस्टेला मेरा हाथ थामे मेरे साथ ही साथ थी!
हमने खाना खाया और फिर थोड़ी बहुत मदिरा भी पी!
और फिर हम वापिस हुए!
पहुंचे अपने डेरे!
उसके कमरे में पहुंचे!
“चलो, आराम करो अब” मैंने कहा,
“मुझे नींद नहीं आएगी” वो बोली,
“एस्टेला?” मैंने कहा,
“नहीं आएगी तो नहीं आएगी!” उसने बोला,
ज़िद!
“ठीक है” मैंने कहा,
और फिर मैं लेट गया!
दरवाज़ा बंद कर दिया उसने!
और वो भी आकर लेट गयी!
मेरी बाजू पर सर रख कर!
मैं उसके बालों से खेलता रहा!
उसने टांग रखी मेरे ऊपर,
और मुझे देखा!
मैंने देखा,
मैं मुस्कुराया!
और खींच लिया उसे अपने पास!
सट गयी!
मैंने लपेट लिया बाजुओं में उसे!
उसके बदन की छुअन बहुत, बहुत खतरनाक थी!
मैं संयत हुआ!
आँखें बंद कर लीं!
उसका सर मेरी बाजू पर ही था!
मैं हाथ फिराता रहा उसके सर पर!
और फिर आ गयी नींद!
सो गया मैं!
और वो भी सो गयी!
वर्ष २०१२ काशी की एक घटना – Part 2
Posted on December 2, 2014 by Rentme4nite
सुबह हुई!
मैं उठा!
एस्टेला तो नहा-धो के तैयार बैठी हुई थी!
मुझे ही देर हुई थी उठने में!
घड़ी देखी, तो आठ का समय था!
उसने नमस्कार की!
दोनों हाथ जोड़कर!
उसके हाथ जोड़कर जो नमस्कार मुद्रा बनती थी,
वो तो हम भारतीय लोगों की भी नहीं बनती!
लम्बी लम्बी उंगलिया,
और गोर गोरे हाथ!
प्राकृतिक रंग नाखूनों का,
चमकते हुए नाखून,
लम्बे लम्बे!
बहुत सुंदर मुद्रा बनती थी!
मैं बैठा,
“मुझे क्यों नहीं जगाया?” मैंने पूछा,
“आप खर्राटे मार रहे थे, नींद गहरी थी, इसीलिए नहीं जगाया!” वो बोली,
मैं मुस्कुराया!
वो भी!
आज उसने एक टी-शर्ट पहनी थी,
सफ़ेद रंग की,
कसी सी,
सच कहूं, तो मुझे अच्छी नहीं लगी,
कोई भी देखता उसको अगर कहीं से भी गुजरती तो!
“सुनो?” मैंने कहा,
“हाँ?” वो बोली,
“ये टी-शर्ट बदल लो, मुझे अच्छी नहीं लग रही!” मैंने कहा,
वो मुस्कुरायी,
और चली गयी गुसलखाने,
फिर आयी वापिस,
अब कुरता पहना था!
ये ठीक था!
“मुझ पर अच्छी नहीं लग रही थी वो?” उसने पूछा,
“नहीं, अच्छी नहीं लग रही थी” मैंने कहा,
अब मैं क्या बताता उसको!
“कुरता अच्छा लगता है तुम्हे” मैंने कहा,
“ठीक है” वो बोली,
फिर मैं उठा,
अंगड़ाई ली,
“आता हूँ अभी” मैंने कहा,
और चला गया बाहर,
आया शर्मा जी के पास!
और स्नान करने चला गया,
हुआ फारिग!
“चाय पी?” मैंने पूछा,
“हाँ” वे बोले,
“ठीक” मैंने कहा,
और फिर मैं चला आया बाहर,
दो चाय लीं,
और आया एस्टेला के पास,
चाय दी उसको,
उसने ली,
और हमने चाय पी फिर,
“आज मुझे ले जाओ घुमाने” उसने कहा,
“कहाँ?” मैंने पूछा,
“जहां मर्ज़ी” उसने कहा,
अब कहाँ ले जाऊं?
चलो, घाट ठीक है!
“ठीक है” मैंने कहा,
चाय पी हमने,
और फिर हम निकले बाहर!
शर्मा जी के पास आये उसके कक्ष को ताला लगाकर!
और फिर उनको बता कर हम चल पड़े घाट की तरफ!
वहाँ पहुंचे,
उसको घुमाया मैंने,
उसको बहुत अच्छा लगा!
चहकती रही वहाँ!
नटखट सी हो गयी थी!
फिर कुछ खाया हमने वहाँ!
उसको उस में मिर्चें लग गयीं!
लेकिन खा लिया उसने!
मैंने रुमाल दिया उसको!
आँखों से पानी निकल आया था!
नाक पर पसीने आ गए थे!
मुझे हंसी आ गयी उसको देखकर!
वो भी हंसी!
हम करीब दो घंटे रहे वहाँ,
फिर नाव ली और उसमे बैठे,
उसको बहुत अच्छा लगा!
पानी में हाथ डालकर उछालती रही पानी!
मैं उसको बार बार बड़े बड़े कछुओं से सावधान होने को कहता रहा!
लेकिन उसने नहीं सुनी एक भी!
अपनी मर्ज़ी करती रही!
साथ में बैठे लोग भी हंसते रहे!
फिर हम वापिस उतरे!
वो बहुत खुश थी!
बहुत खुश!
मुझे उसे साथ बिताए ये घंटे आज भी याद हैं!
हम आये वापिस!
उसने एक मंदिर देखने की ज़िद पकड़ ली!
अब मंदिर ले गया उसको,
उसने देखा, और हाथ जोड़कर प्रणाम भी किया उसने!
वो थोडा दूर खड़ी थी, और मैं पीछे,
मैं देख रहा था उसको!
बहुत प्यारी लग रही थी!
वो कुरता और वो चुस्त पाजामी, काले रंग की, बहुत सुंदर! बहुत सुंदर!
एक तो उसकी कद-काठी लम्बी है, ऊपर से तंदुरुस्त भी है!
हरी आँखें और सुनहरे बाल!
एक दम नज़रें पकड़ने वाली!
सभी लोग देख रहे थे उसको!
फिर, नंगे पाँव भागी आयी मेरे पास!
अब जूते पहनने थे हमे!
उसके गोरे सफ़ेद पाँव मैले हो गए थे!
रुमाल से साफ़ किये मैंने!
और फिर हमने जूते पहन लिए,
आ गए बाहर!
और फिर सवारी पकड़ कर चल पड़े वापिस!
अपने डेरे पहुंचे,
उसका कक्ष खोला,
और अंदर गए!
लेट गयी जाते ही!
मैं बैठ गया!
“कितना बढ़िया माहौल है वहाँ का! बहुत अद्भुत!” वो बोली,
“हाँ, पावन माहौल है” मैंने कहा,
फिर मैंने जूते खोल दिए अपने,
उसने भी खोल दिए!
“खाना?” मैंने पूछा,
“अभी नहीं” वो बोली,
फिर लेट गयी!
मैं बैठा रहा!
“जब जाओगी वापिस तो याद करोगी मुझे?” मैंने पूछा,
मैंने मज़ाक में ही पूछा था!
‘नहीं, भूल जाउंगी, जहाज में चढ़ते ही!” उसने कहा,
“बहुत बढ़िया!” मैंने कहा,
“मेरी याद आएगी?” उसने पूछा,
“नहीं, जैसे ही जहाज में चढ़ोगी, भूल जाऊँगा!” मैंने कहा,
वो हंस पड़ी!
खिलखिलाकर!
“सच में भूल जाओगे?” उसने पूछा,
“हाँ” मैंने कहा,
“सच में?” वो पूछते हुए उठ खड़ी हुई!
“नहीं” मैंने कहा,
गम्भीर!
मेरे पास आयी!
बैठ गयी!
“मैं भी नहीं भूलूंगी! हमेशा याद रहोगे मुझे!” उसने कहा,
मैं मुस्कुराया!
“फिर कब आओगी?” मैंने पूछा,
“मुझे भेजो ही मत” उसने कहा,
मैं फिर से हंसा!
बताओ? कब आओगी?” मैंने पूछा,
“चार पांच महीने बाद, नहीं रहा गया तो बहुत जल्दी ही!” उसने कहा!
”सच?” मैंने पूछा,
“सच” उसने कहा,
मेरे कंधे पर सर रख लिया उसने!
मुझे भी लगाव हो चला था उस से!
अच्छी लगती थी वो मुझे उस समय, मेरे साथ,
मैंने गर्दन में हाथ डाल दिया उसके!
खींच लिया अपनी तरफ!
उसने मुझे देखा,
मैंने भी देखा,
उसकी हरी आँखें फैलीं!
कभी मेरी दोनों आँखों को देखती,
कभी एक को,
कभी दूसरी को!
उसकी लहराती आँखें,
बहुत सुंदर हैं!
सच में!
उसकी सुनहरी पलकें!
सुनहरी भौंहें!
बहुत सुंदर!
मैंने तभी अपना चेहरा नीचे किया,
उसने आगे,
आमने सामने हुए,
मैं देखता रहा,
वो और आगे हुई,
उसकी साँसें टकरायीं मुझसे!
मेरी उस से!
और फिर,
होंठ छू गए!
एक दूसरे से!
ये पल बहुत ख़ास होता है!
मन में चोर बलिष्ठ हो जाता है!
जैसे विवेक को पक्षाघात हो जाता है,
उस समय!
उसकी आँखें बंद हुईं!
और साँसें तेज!
अपने दांतों से मेरा नीचे का होंठ पकड़ लिया उसने!
मैंने उसको खींचा अपने अंदर!
उसकी साँसें भड़क उठीं!
सच कहूं, तो….
मैं दोगुना भड़का था!
नहीं छिपाऊंगा!
फिर एकदम से,
मैं जैसे जागा!
संयत हो गया!
मैंने प्रतिक्रिया करना बंद कर दिया,
वो समझ गयी!
पीछे हो गयी!
अब नहीं देखा मुझे!
स्त्री-लज्जा!
मैंने फिर से खींचा उसको,
खिंची चली आयी!
आँखें बंद किये!
वो चुपचाप आ गयी मेरी बाजुओं में!
सारा बदन ढीला छोड़ दिया उसने!
मेरे सीने पर वजन पड़ा उसका!
“खाना खाओगी?” मैंने पूछा,
“अभी नहीं” उसने कहा,
“फिर कब?” मैंने पूछा,
“थोड़ी देर बाद” वो बोली,
“कमज़ोर हो जाओगी, फिर वहाँ लोग कहेंगे कि कमज़ोर हो कर आयी है लड़की भारत से!” मैंने कहा,
हंस पड़ी!
मैं उठा अब!
और बाहर गया!
सहायक को कहा,
सहायक ने खाना लगा दिया,
मैंने दो थालियां ले लीं,
और चल पड़ा कमरे की तरफ,
वहाँ पहुंचा,
और थालियां बिस्तर पर रखीं!
“आओ” मैंने कहा,
वो आयी!
“लो हो जाओ शुरू” मैंने कहा,
और फिर हम दोनों ही शुरू हुए,
उसको अरहर की दाल और गाजर का अचार बहुत पसंद आया!
मुझे और दाल लानी पड़ी उसके लिए!
कच्चा आम पड़ा था उसमे,
तो स्वाद लाजवाब था!
खाना खा लिया हमने फिर!
और बर्तन रख दिए एक जगह,
हाथ-मुंह धोये,
और बैठे फिर!
उसे और मुझे डकार आयीं खाने की!
मैं मुस्कुराया!
वो भी!
“दिल्ली चलोगी तो खिलाऊंगा यही दाल तुम्हे, गाजर के अचार के साथ!” मैंने कहा,
“बहुत स्वाद थी ये दाल” वो बोली,
“वहाँ खाना!” मैंने कहा,
“अच्छा, अब आराम करो, मैं आता हूँ बाद में” मैंने कहा,
और चला आया वहाँ से,
सीधा कमरे में शर्मा जी के,
वे लेटे हुए थे!
“घुमा लाये?” उन्होंने पूछा,
“हाँ” मैंने कहा,
“पसंद आयी जगह?” वे बोले,
“हाँ, नाव बहुत पसंद आयी उसको!” मैंने कहा,
“चलो बढ़िया हुआ!” वे बोले,
“आपने खाना खा लिया?” मैंने पूछा,
“हाँ, खा लिया” वे बोले,
फिर मैं लेट गया!
अब आँखें भारी हो रही थीं!
मैं सो गया फिर,
करीब एक घंटे के बाद,
दरवाज़ा खटखटाया एस्टेला ने,
शर्मा जी ने खोला,
नमस्कार की,
और मुझे जगा दिया!
मैं जागा,
“हाँ?” मैंने पूछा,
“मेरे पास आओ” वो बोली,
मैं उठा,
अलसाया हुआ सा,
और चल पड़ा उसके साथ!
हुए कमरे में दाखिल,
मैं लेट गया!
नींद आ रही थी!
उसने दरवाज़ा बंद कर दिया,
और लेट गयी!
रख दिए पाँव मेरे ऊपर!
“क्या हुआ?” मैंने पूछा,
“कुछ नहीं” वो बोली,
ऐसे जैसे गुस्सा हो!
“क्या हो गया?” मैंने पूछा,
“आप सो जाओ, कुछ नहीं हुआ” उसने कहा,
मैंने करवट बदली!
उसको देखा,
आँखें बंद!
“अरे हुआ क्या?” मैंने पूछा,
“मैं अकेली थी, और आप वहाँ सो रहे थे आराम से” वो बोली,
“अच्छा, गलती हो गयी” मैंने कहा,
मुस्कुरा गयी!
आँखें बंद किये हुए ही!
“चलो सो जाओ अब” मैंने कहा,
उसने अपनी करवट बदली,
और सट गयी मुझसे!
अपनी कमर चिपका दी मुझसे,
मैंने हाथ रखा, और आँखें बंद कीं!
पता नहीं कब नींद आयी!
सो गए हम!
जब आँख खुली,
तो पांच बजे थे!
मैं उठा,
उसके हाथ हटाये!
वो जाग गयी!
चिपक गयी मुझसे!
मैं फिर से लेट गया,
लेटना पड़ा,
“उठो अब?” मैंने कहा,
“नहीं” उसने कहा,
“उठो?” मैंने कहा,
“नहीं” उसने कहा,
