वर्ष २०१२ काशी की ए...
 
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वर्ष २०१२ काशी की एक घटना – Part 1

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श्रीशः उपदंडक
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मैं मुस्कुराया!

 

मैंने बहुत समझाया उसको,

उसका डर हटाने की बहुत कोशिश के!

लेकिन डर, डर तो जैसे चिपक गया था उसके ज़हन में!

“एस्टेला? मत घबराओ, तुम्हे कुछ नहीं होगा!” मैंने कहा,

“मुझे आपकी चिंता है” वो रोते रोते बोली!

मैं मुस्कुराया!

“मुझे भी कुछ नहीं होगा!” मैंने कहा,

वो उठी, और मेरे करीब आ गयी!

मैंने देखा,

और हाथ पकड़ कर बिठाया उसको!

“अब सो जाओ!” सुबह मिलते हैं” मैंने कहा,

मैं उठा और लिटा दिया उसको,

और आ गया बाहर,

“दरवाज़ा बंद कर लेना” मैंने कहा,

दरवाज़ा भिड़ा दिया मैंने,

और चल दिया अपने कमरे की तरफ,

कमरे में पहुंचा,

शर्मा जी जागे थे,

मैं बैठ गया,

“क्या हुआ? क्यों बुलाया था बाबा जौहर ने?” उन्होंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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वही आया था, एक और औघड़ के साथ” मैंने कहा,

“वो सरूप?” उन्होंने पूछा,

“हाँ” मैंने कहा,

“लड़की लेने?” उन्होंने पूछा,

“हाँ, और फिर चुनौती दे गया है!” मैंने कहा,

“कौन दे गया? वो सरूप?” उन्होंने पूछा,

“नहीं! उसके साथ आया वो बाबा जोधराज!” मैंने कहा,

“अच्छा!” वो बोले,

“कोई बात नहीं देख लेंगे” मैंने कहा,

“कब?” उन्होंने पूछा,

“इस दशमी के दिन” मैंने कहा,

“यानि कि छह दिन बाद!” वे बोले,

“हाँ” मैंने कहा,

“पता करते हैं इस जोधराज के बारे में कल” वे बोले,

“हाँ, करते हैं” मैंने कहा,

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई!

मैं उठा,

दरवाज़ा खोला,

ये एस्टेला थी!

मासूम सी!

दरी-सहमी!

“क्या हुआ एस्टेला?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मेरे गले लगी वो!

और रोने लगी!

“आओ, आओ मेरे साथ” मैंने कहा,

और ले गया उसको उसीके कमरे में,

बिठाया!

रो रही थी!

“यहाँ रोने आयी हो वहाँ से?” मैंने पूछा,

कुछ नहीं बोली!

खड़ी हो गयी!

हाथ में हाथ डाल लिए,

और मुझे देखा,

अब मैं भी खड़ा हुआ!

लग गयी गले!

रो पड़ी!

“मुझे माफ़ कर दो, माफ़ कर दो!” बोलती रही!

एक न सुनी!

एक बात भी नहीं!

“मेरी वजह से आपको परेशानी हुई, दुश्मनी हो गयी आपकी, मेरी वजह से, माफ़ कर दो, माफ़ कर दो!” बोलती रही!

अब मैंने भी उसको पकड़ लिया!

उसकी पीठ पर हाथ फिराने लगा,

उसके सर पर भी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर बहुत देर बाद वो चुप हुई!

मैंने बिठाया उसे!

पानी पिलाया!

आंसू पोंछे!

हरी हरी आँखों में आंसू अच्छे नहीं लगे!

मैं मुस्कुराया!

“इतनी सुंदर आँखों में आंसू कितने गंदे लगते हैं!” मैंने कहा,

फिर वो मुस्कुरायी!

मैं भी मुस्कुराया!

“अब नहीं रोना!” मैंने कहा,

“हूँ” बोली वो!

“मेरे देश में आयी हो! ये देश प्रेम का देश है! हंसो! खाओ पियो! लेकिन रोना नहीं! ठीक?” मैंने कहा,

हंस पड़ी वो!

“चलो सो जाओ अब!” मैंने कहा,

“आप भी यहीं सो जाओ” उसने कहा,

“डर लग रहा है?” मैंने पूछा,

“नहीं” उसने कहा,

“तो मिलते हैं सुबह?” मैंने कहा,

“यहीं सो जाओ न?” उसने कहा,

“नहीं” मैंने कहा,

फिर से गुस्सा हो गयी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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ठीक है जाओ, मरने दो मुझे” वो बोली,

मुझे हंसी आ गयी!

उसने गुस्से से देखा मुझे!

फिर मेरा कॉलर पकड़ कर नीचे बिठा लिया!

“ये देखो, बहुत जगह है, सो जाओ यहीं” उसने कहा,

अब मानना पड़ा!

“ठीक है!” मैंने कहा,

वो खुश सी हुई!

और दरवाज़ा बंद कर दिया अंदर से!

घड़ी देखी, साढ़े ग्यारह बजे थे!

मैंने कमीज़ उतारी और लेट गया!

उसने बत्ती बुझाई और फिर लेट गयी मेरे पास!

मुझे नशा था!

गड़बड़ हो सकती थी!

बड़ा मुश्किल समय था वो!

मैंने की आँखें बंद!

और ली करवट!

और सोने की कोशिश करने लगा!

बाहर जलती हुई बत्ती से खिड़की से अंदर आ रही थी रौशनी,

थोड़ा बहुत प्रकाश था कमरे में!

उसने भी मेरी तरफ करवट ले ली!

खुल गयीं मेरी आँखें!


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर बंद कर लीं!

थोड़ा सा समय बीता!

उसने अपना हाथ रखा मेरे ऊपर,

मैं चुपचाप लेटा रहा!

दुमई सांप की तरह!

शांत!

एकदम शांत!

फिर वो और आगे आयी!

अब मैं सीधा हो गया!

मैंने देखा उसे!

उसकी हरी आँखें चमक पड़ीं!

“नींद नहीं आ रही?” मैंने पूछा,

“नहीं” वो बोली,

“आँखें बंद करो, आ जायेगी” मैंने कहा,

उसने आँखें बंद कर लीं,

और बोलती रही, बोलती रही कि नहीं आयी नींद!

मुझे हंसी आ गयी!

“चुप” मैंने कहा,

वो चुप हो गयी!

फिर धीरे से फुसफुसाई” नहीं आयी नींद!”

मैं फिर से मुस्कुराया!

“आपको आ गयी नींद?” उसने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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नहीं” मैंने कहा,

“तो बातें करो मुझसे?” उसने कहा,

मैंने करवट बदल ली!

पीठ कर ली उसकी तरफ!

उसने अपनी ऊँगली का नाखून चुभो दिया मेरे!

मैंने करवट बदली!

“मुझे तो सोने दो?” मैंने कहा,

“मुझे सुलाओ पहले” वो बोली,

“कैसे सुलाऊँ?” मैंने पूछा,

“बातें करो मुझसे” उसने कहा,

“क्या बात?” मैंने पूछा,

“मुझे क्या पता?” उसने कहते हुए मेरी छाती पर ऊँगली चुभो दी!

अब क्या कहूं उसको मैं!

मैं हंस पड़ा!

“चलो, अपने घर के बारे में बताओ” मैंने पूछा,

“बता दिया है” वो बोली,

“अच्छा” मैंने कहा,

आँखें बंद कर ली मैंने,

उसने फिर से ऊँगली चुभो दी!

मेरी छाती में!

“नींद आ गयी?” उसने पूछा,

“हाँ” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“सो जाओ फिर” उसने कहा और करवट बदल ली!

शुक्र है!

अब सो तो जाऊँगा!

मैंने आँखें बंद कर लीं,

करवट बदल ली!

कोई बीस मिनट बीते!

उसने करवट बदल ली!

फिर से मेरे ऊपर हाथ रखा,

मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की!

फिर उसने अपनी एक टांग रख ली मेरे ऊपर,

मैंने फिर से कोई प्रतिक्रिया नहीं की,

वो और करीब आ गयी!

मैंने लेटा रहा!

और नींद आ गयी!

मेरी बीच में नींद खुली,

वो सो रही थी!

विश्वास से!

यक़ीन से!

मेरे ऊपर यक़ीन से!

मैं भी सो गया!

मुझे उस लड़की पर तरस आया था!

अकेली थी यहाँ!


   
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श्रीशः उपदंडक
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और कोई भी फायदा उठा सकता था उसका!

इसको इतना ज्ञान नहीं था!

इसकी संस्कृति अलग है हमसे!

मेरे साथ सोयी थी!

बहुत बड़ा विश्वास था ये उसका!

बहुत बड़ा!

 

वो सो चुकी थी!

इत्मीनान से!

मैंने देखा उसका इत्मीनान!

देखा उसकी बंद आँखों में!

चलती हुई साँसों में!

उसके शरीर में!

जो था मेरे करीब!

मैंने करवट बदली,

उसकी तरफ मुख किया,

और अपना हाथ, उसके ऊपर रख दिया,

उसने अपने हाथ से,

मेरा हाथ पकड़ लिया,

नींद में ही!

कोई ऐसे,

इतनी जल्दी,


   
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श्रीशः उपदंडक
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कैसे यक़ीन कर सकता है किसी पर?

कैसी अनजान पर?

लेकिन!

उसने किया था!

मुस्कुराया मैं!

और फिर आँखें बंद कर,

इंतज़ार करता रहा,

सोने का!

और सो गया!

सुबह हुई!

और मैं जागा,

घड़ी पर नज़र डाली,

बड़ा काँटा नौ पर था और छोटा सात पर!

बहुत समय हो गया था,

एस्टेला अभी भी सोयी हुई थी,

मैंने उसके हाथ सही किया,

और उठ गया,

अंगड़ाई ली, और बैठ गया वहीँ!

फिर गुसलखाने गया,

कुल्ला किया,

हाथ-मुंह धोये!

और फिर बैठ गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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एस्टेला ने करवट बदली!

और उसकी नज़र पड़ी मेरे ऊपर,

मुस्कुरा गयी!

अभी नींद में ही थी!

आँखें बंद कीं उसने,

और फिर खोल लीं!

उठी!

बैठी!

और दोनों हाथ जोड़कर!

नमस्कार की!

मैंने भी की!

“कैसी आयी नींद?” मैंने पूछा,

“बहुत बढ़िया!” वो बोली,

अंगड़ाई लेते हुए!

“चलो, तुम नहाओ-धोओ, मैं आता हूँ अभी” मैं उठते हुए बोला,

“जल्दी आना!” वो बोली,

“हाँ, हाँ” मैंने कहा,

और निकल आया कमरे से!

सीधा कमरे में गया अपने!

शर्मा जी जागे थे!

अब मैं सीधा गया स्नान करने,

स्नान किया और फिर वापिस आया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“चाय?” मैंने पूछा,

“मैंने तो पी ली” वे बोले,

“अच्छा, चलो मैं आता हूँ अभी” मैंने कहा,

“आ जाइये” वे बोले,

और मैं बाहर चला गया,

सीधा चाय लेने,

चाय ली,

और वापिस हुआ फिर,

सीधा एस्टेला के कमरे में गया!

वो स्नान करके ही आयी थी!

हलके नीले रंग का एक कुरता पहना था उसने,

बाल खुले थे!

बहुत सुंदर लगी मुझे वो!

मैंने चाय दी उसको,

उसने चाय ली,

और बैठ गयी!

हम चाय पीने लगे,

चाय पी,

“एस्टेला, आज दिन में जाना है मुझे यहीं पास में” मैंने कहा,

“मैं भी चलूंगी” वो बोली,

बाल बांधते हुए अपने,

“क्या करोगी? परेशान हो जाओगी” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“नहीं, मैं चलूंगी” वो बोली,

“ठीक है, चलना” मैंने कहा,

फिर मैं उठा,

और आ गया बाहर,

सीधा अपने कमरे में,

“अब पेट कैसा है?” मैंने पूछा,

“अब ठीक है” वो बोले,

“चलो ठीक है” मैंने कहा,

और लेट गया मैं फिर से!

अब बजे कोई साढ़े ग्यारह!

“आओ, चलते हैं” मैंने कहा,

“चलिए” वे बोले,

हम निकले,

और लिया साथ में एस्टेला को,

वो तैयार थी,

और हम निकल गए वहाँ से!

बाहर आये,

सवारी पकड़ी और अपने एक जानकार के पास गए,

उनसे बातें हुईं,

जोधराज के बारे में कुछ पता चला,

वो पहुंचा हुआ था, ये पता चला!

यानि कि राह कठिन थी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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कोई बात नहीं!

एस्टेला के लिए,

ये भी करना था!

और एक बात और,

वो प्रबल था!

अत्यंत प्रबल!

और अब मुझे,

प्रबंध करना था एक घाड़ का!

जो पता चला था,

उसके अनुसार वो घाड़ से ही अपनी शक्ति का परिचय देता!

मैं वापिस हुआ वहाँ से!

रास्ते में ही कुछ खाया हमने!

और फिर सीधे अपने डेरे आ गए!

और अब!

मैंने सब कुछ बता दिया एस्टेला को!

वो बेचारी बहुत डरी!

मैंने समझाया उसे!

बहुत समझाया!

अभी पांच दिन थे,

इसीलिए मैंने अपने एक जानकार से एक घाड़ और उचित स्थान के बारे में बातचीत की,

उसने हामी भरी और कहा कि प्रबंध हो जाएगा!

एक चिंता हटी अब!


   
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श्रीशः उपदंडक
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दोपहर बाद का समय था!

भोजन कर ही लिया था हमने,

मैं एस्टेला के साथ बैठा था कमरे में उसके!

उसके घर परिवार की बातें हो रही थीं,

मैंने उसका भय कुछ हद तक निबटा दिया था!

ये ठीक भी था!

हंसी-मजाक चल रहा था!

तभी मेरा फ़ोन बजा,

मैंने देखा,

ये वहीँ से था,

काशी से ही,

मेरे एक जानकार का,

आज दावत थी वहाँ,

इसीलिए निमंत्रण दिया था उन्होंने!

मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया!

बता दिया मैंने एस्टेला को भी!

फिर हुई शाम,

सात बजे!

और हम निकल पड़े!

पहुंचे वहाँ!

शर्मा जी नहीं आये थे, वे वहीँ रुक गए थे,

पेट की वजह से परहेज रखा था उन्होंने!


   
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