वर्ष २०१२ काशी की ए...
 
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वर्ष २०१२ काशी की एक घटना – Part 1

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श्रीशः उपदंडक
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“मैं समझा दूंगा” मैंने कहा,

तभी दरवाज़े पर मारी किसी ने लात!

मैं खड़ा हुआ,

तो जौहर बाबा ने बिठा दिया,

“आप बैठो, मैं देखता हूँ” वे बोले,

उन्होंने दरवाज़ा खोला,

सामने वही नकसीर वाला औघड़ खड़ा था!

गाली-गलौज कर रहा था!

उसने बाबा जौहर को धक्का दिया और अंदर आ गया!

अब क्या था!

न हुआ बर्दाश्त!

मैंने साले के पकडे के बाल और मारा एक झटका और फेंका दीवार की तरफ!

वो गिरा वहाँ जा कर!

खड़ा हुआ तो शर्मा जी ने सम्भाली अब कमान!

दे लात! दे लात!

हम दोनों टूट पड़े उस पर!

फिर से खूनमखान हो गया वो!

और साले के पकड़ के बाल और धोती, फेंक मारा बाहर!

“बढ़िया किया!” बाबा जौहर बोले!

“साला हाथ उठाएगा हम पर?” शर्मा जी बोले!

तभी साला एक और आ गया!

आकर गुथ पड़ा मुझसे!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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नाख़ून लगे मुझे मेरी भौं पर,

फिर एक आद घूँसा दिया उसने मुझे मेरी छाती पर!

शर्मा जी आये और दिया साले के गुद्दी पर एक घूँसा!

जैसे ही पलटा,

मैए पकड़ के साले के बाल और दिए घूंसे, तमाचे!

बखेड़ा खड़ा हो गया!

साले को खींच के ले गए बाहर!

आपाधापी में मेरी कमीज़ फट गयी!

लेकिन खातिरदारी खूब की!

अब बाबा जौहर ने आवाज़ दी अपने आदमियों को!

आ गए छह आदमी!

सब ने समझ लिया मामला!

दो के हाथ में लाठी थी!

मैंने ली और चला मैं अब बाबा जौहर के साथ उस बाबा सरूप के पास!

दरवाज़ा खुला था,

घुस गये हम!

लेकिन एस्टेला नहीं थी वहाँ!

“निकल जाओ अभी यहाँ से!” बोले बाबा जौहर!

“क्या हो गया?” बोला सरूप!

“बदमाश लेकर आया है यहाँ?” बोले बाबा!

“क्या बात है?” वो खड़ा हुआ और बोला,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“वो साले हाथ उठाने आये हमारे ऊपर, बांधो बोरिया बिस्तरा और दफा हो जाओ यहाँ से, अभी इसी वक़्त!” बोले गुस्से से!

“कहीं नहीं जायेंगे हम” वो बोला,

मदिरा की बोतल उठा ली उसने!

“जाएगा तो तेरा बाप भी!” बोले बाबा!

सरूप ने ये सुना और गुथ पड़ा जौहर बाबा से!

अब मचा कोहराम!

हुई भिड़ंत!

साले को पकड़ कर हम लाये बाहर!

और फिर जो बजाया उसको और उसके साथियों को हमने!

याद होगा आज भी उन्हें!

क्या घूंसे और क्या लात!

क्या चांटे और क्या लाठियां!

भांज दिया सालों को!

जो वहाँ ठहरे हुए थे,

वे भी आ गए बाहर!

तमाशा देखने!

लिटा दिए साले हमने मार मार के सभी!

तभी भागी भागी आयी एस्टेला वहाँ!

सबको देखा तो घबरा गयी!

हाथ जोड़ने लगी!

डर गयी थी बहुत!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“कागज़ कहाँ हैं तुम्हारे?” मैंने पूछे,

“मेरे पास” घबरा के बोली वो,

“ले आओ” मैंने कहा,

वो भागी पीछे की तरफ!

शायद अपने कमरे में!

और इतने में उनके साथियों को खड़ा किया हमने!

सूज गये थे!

खड़ा नहीं हो पाये वो!

लेटे रहे,

हमने छोड़ दिया उनको,

होश में आते ही बाहर का रास्ता दिखा देना था उनको अब!

एस्टेला एक बैग ले आयी!

“आओ मेरे साथ” मैंने कहा,

वो डरी-सहमी सी चलने लगी हमारे साथ!

मैं ले आया उसको अपने कमरे में!

पानी दिया उसको मैंने,

पानी पिया उसने!

“डर क्यों रही हो?” मैंने पूछा,

इतना जो पूछा मैंने,

रो पड़ी वो!

“क्या हुआ?” मैंने पूछा,

उसने मुझे जो बताया, मुझे हंसी आयी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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लेकिन एक विदेशी के लिए ये भयानक बात थी!

उसने बताया कि बाबा बहुत शक्तिशाली है, मुर्दों से बात कर लेता है, अब जान से मार देगा वो उसको, उसकी जान खतरे में है!

अब समझाया उसे मैंने!

“वो जान लेगा तुम्हारी?” मैंने पूछा,

उसने सर हिला कर हाँ कहा!

मैं हंसा!

“उसकी ये औकात?” मैंने कहा,

उसने मुझे देखा,

विस्मय से!

“डरा रहा होगा तुमको!” मैंने कहा,

वो चुप, एकदम चुप!

“तुम भी पता नहीं कहाँ फंस गयीं!” मैंने कहा,

वो घबरा रही थी!

“शर्मा जी, पैग बनाओ” मैंने कहा,

और फिर पैग बनाये गए!

और हमने पिए,

एस्टेला,

हाथ में लिए बैठे रही!

“अरे? खाली करो?” मैंने कहा,

बड़ी मुश्किल से खाली किया उसने!

तभी एक सहायक आया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मुझे बुलाया,

“आप यहीं बैठना, इसका ख़याल रखना, मैं आता हूँ” मैंने कहा, और चल दिया उसके साथ,

सरूप बैठा था वहाँ!

गुस्से में!

बाबा जौहर के पास!

आ गया था होश उसे!

मेरे पास नहीं आया था,

नहीं तो रहा सहा भी टूट जाता!

“हाँ?” मैंने पूछा,

“वो लड़की को ले जाना चाहता है ये” वो बोले,

“बुला लेता हूँ, जायेगी तो मुझे कोई आपत्ति नहीं” मैंने कहा,

फिर,

मुझे बिठा लिया उन्होंने,

और भेज दिया सहायक को बाबा जौहर ने उसको बुलाने,

वो आयी,

बैठी,

मुझे देखा,

फिर जौहर को!

“चलो” बोला सरूप एस्टेला से,

उसने मुझे देखा,

कुछ न बोली,

“जाना है?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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कुछ न बोले!

“चलो? मैं कहता हूँ?” बोला सरूप!

“आँखें नीची कर ले पहले!” मैंने कहा सरूप से!

मुझे घूर के देखा!

“हाँ एस्टेला? जाना है? बता दो?” मैंने पूछा,

“नहीं” वो बोली,

हो गया फैंसला!

“चलेगी कैसे नहीं?” खड़ा हुआ वो,

तो मैंने टांग कर दी आगे,

हाँ, वो डर गयी!

“चला, उठ अब, साथियों को ले और निकल बाहर!” मैंने कहा,

“तू जानता नहीं कौन हूँ मैं?” उसने कहा,

“अरे होगा कहीं का मदारी!” मैंने कहा,

खड़ा हो गया!

खड़ा हुआ मैं भी!

बाबा जौहर भी!

“जा भाई जा! नहीं जा रही लड़की!” बोले जौहर!

गुस्से से देखे!

कंडा!

दहकता हुआ कंडा!

“अब निकल यहाँ से फ़ौरन” मैंने कहा,

साला कमीन इंसान हिले ही नहीं!’देखे जाए एस्टेला को!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“जाओ एस्टेला, उठो मेरे कमरे में जाओ” मैंने कहा,

वो उठी और चली गयी!

“हाँ, अब तू निकल यहाँ से, नहीं तो साले उठवा के फेंक दूंगा अभी!” मैंने कहा,

उसने थूका!

और मैंने दिया एक खींच के साले के मुंह पर!

बाबा जौहर ने बीच-बचाव कर दिया!

और निकल गया वो!

चला गया! और मैं वापिस हुआ अब!

ऐसे ज़लील इंसान हमारे देश की इज्ज़त खराब किया करते हैं! एक ये बात थी और दूसरी कि वो लड़की बहुत दूर से आयी थी, और अकेली थी!

 

भगा दिया गया उनको वहाँ से!

तूती बोलती है मेरी वहाँ! इसीलिए सालों की चपटिया लाल कर दीं लात मार मार के!

रात के साढ़े दस का समय होगा वो,

निकाल बाहर किया!

पांच लोग थे वो!

सहायकों ने उनका सारा सामान निकाल फेंका बाहर!

मैं अपने कमरे में था!

और थी साथ मेरे वो बेचारी डरी हुई एस्टेला!

मैं बैठा वहाँ!

उसको देखा,

उसकी आँखों में आंसू थे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अब रो क्यों रही हो?” मैंने पूछा,

“नहीं रो रही” वो बोली,

“अब आराम करो, समय हो गया है, तुम्हारा कक्ष ये है, आओ मेरे साथ” मैंने चाबी दिखाते हुए बोला,

मैं अपने साथ वाले कक्ष की चाबी ले आया था अपने साथ!

“आओ!” मैंने कहा,

उसका बैग लिया मैंने,

वो उठी,

और चल पड़ा उसके साथ!

कक्ष खोला,

और फिर अंदर गये,

“बैठो अब” मैंने कहा,

वो बैठ गयी,

“ऊपर देखो” मैंने कहा,

ऊपर देखा उसने,

“अब डरना नहीं, समझी?” मैंने कहा,

आँखों से ही हाँ कहा उसने!

हरी हरी आँखें!

और सुनहरी पलकें!

जैसे कोई गुड़िया!

मेरी हंसी छूटी!

“इतना डरोगी तो कुछ नहीं मिलेगा, मत घबराओ!” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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चुप, लेकिन नज़रें न हटाये!

“कहाँ खाओगी?” मैंने पूछा,

“हाँ” वो बोली,

ये विदेशी लोग अपने खाने के बारे में बहुत पक्के होते हैं! संतुलन रखते हैं, हम भारतीयों की तरह नहीं, गुस्सा या डर तो सब छूटा!

“बैठो, लाता हूँ” मैंने कहा,

“मैं भी चलूँ?” उसने कहा,

बड़ा अजीब सा सवाल था!

ऐसा डर भी क्या डर!

अभी तो हगास भी नहीं लगी होगी उस सरूप को!

“नहीं!” मैंने कहा और चला गया बाहर!

भोजन के लिए कहा,

और वापिस आया!

बैठा,

“डर गया कि नहीं?” मैंने पूछा,

मुझे देखा,

मैं जान गया कि नहीं!

“हाँ” वो बोली,

मेरी हंसी छूटी!

और वो मुझे देखे!

सहायक आया,

साथ लाया थाली,


   
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श्रीशः उपदंडक
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दो कटोरियाँ!

रख दीं वहीँ,

और चला गया!

गोभी की सब्जी और कुछ अचार!

रोटियां और कुछ सलाद!

“लो, खाओ” मैंने कहा,

और उसने खाना शुरू किया,

टूक नहीं बने उस से सही!

तो मैंने बना के दिए,

“ऐसे, ऐसे बनाओ” मैंने कहा,

फिर उसने वैसे ही बनाये!

“ठीक है, अब मैं चलता हूँ, सुबह मिलते हैं” मैंने कहा,

“हूँ” वो बोली,

और मैं बाहर गया!

सीधा अपने कक्ष में!

शर्मा जी जागे थे!

“गए साले?” वे बोले,

“हाँ!” मैंने कहा,

“चु* गयी मैय्या उनकी?” वे बोले,

“हाँ, चु* गयी!” मैंने कहा,

“बहन का ** आया था नवाब बनने, अबे बहन के ** तेरे जैसे कई नवाब उछाल दिए ** पे बिठा के!” वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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वे बोले और मैं हुआ दुल्लर हंस हंस कर!

वे भी हँसे!

“हाँ नहीं तो! बाबा सरूप! मेरे ** पे सरूप! साले तेरी रंडो से हसीन है ये! ले कर आ उसे, न साली मोमबत्ती बना दे तो बोलियो!” वे बोले,

वे बोले!

और हंसी के मारे फट पड़ा!

खांसी उठ गयी!

दारु पीकर शर्मा जी की कोई गालियां सुन ले तो ज़िंदगी बाहर हंसी आती रहेगी उसे!

वे भी हंस रहे थे!

और मुझे हंसी का दौरा पड़ा था!

“बहन का **! आया साला यहाँ! हाथ उठाएगा! तेरी मैया की माँ की **! साले सींक बना के तेरे ** के तेरी रंडो की *** में घुसेड़ दूंगा! न खाते बने, न हगते बने!” वे बोले

और यहाँ!

यहाँ तो आँखों से आंसू निकल आये!

क्या बोला था उन्होंने!

हंस हंस के मेरा बुरा हाल था!

“और पीनी है!” वे बोले,

और बैग तक गए!

बैग खोला,

मदिरा निकाली!

और चिल्लाये,

“ओ बहन के **! ले आ खाने को!”

“मैं लाता हूँ” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अरे आप नहीं, मैं जाता हूँ” वे बोले,

खड़े हुए,

और निकल पड़े!

उनकी बातें सुन मेरे पेट में गाँठ पड़ गई थीं!

आये वे!

साथ लेकर आये सहायक को!

वो भी हंस रहा था!

सुना दिया था उसको भी कोई चांदनी-चौक का जुमला!

वो भी दांत फाड़े हंस रहा था!

खैर साहब!

सामान आया,

और हमने शुरू की और मदिरा!

आज तो चीर-हरण से भी ऊपर की बात थी!

या तो हम ढेर!

या फिर मदिरा!

बनाये गिलास!

और गटक गये!

“माँ के लौ* ने मुर्गा बनाया है या कुत्ता?” वे बोले,

मुझे हंसी आयी!

“क्यों? क्या हुआ?” मैंने पूछा,

“बहन** बोटी खींचते खींचते कहीं जबड़ा न आ जाए हाथ में!” वे बोले!

फिर से ठहाका!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वे भी हँसे!

आज रंग में थे!

“अरे हाँ?” वे बोले,

“क्या?” मैंने पूछा,

“वो लड़की? गयी क्या?” वे बोले,

“नहीं, यहीं है” मैंने कहा,

“ये तो बहुत अच्छा हुआ!’ वे बोले,

“हाँ” मैंने कहा,

“इसको समझाओ, और भेजो घर” वे बोले,

सही कहा था उन्होंने!

एकदम सही!

यही करना था मुझे कल!

“खाना खाया उसने?” उन्होंने पूछा,

“हाँ” मैंने कहा,

“बढ़िया!” वे बोले,

फिर से एक पैग!तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई!

“मैं देखता हूँ” शर्मा जी ने कहा,

दरवाज़ा खोला,

ये एस्टेला थी,

अंदर आयी!

बैठ गयी!

“क्या हुआ?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मुझे डर लग रहा है” वो बोली,

“कैसा डर?” मैंने पूछा,

“वो..वो बाबा…” वो बोली,

मुझे तरस आ गया!

मित्रगण!

तरस!

“एस्टेला! डरो नहीं, समझीं?” मैंने कहा,

और फिर शर्मा जी ने मेरे बारे में बताया उसको!

वो मुझे देखे,

कभी शर्मा जी को सुने!

फिर देखे,

फिर सुने!

“बेटा, चिंता ही नहीं!” शर्मा जी ने कहा!

अब मुझे समझाना था उसे!

 

“आओ मेरे साथ” मैंने कहा,

और ले कर चला उसको उसके कमरे में.

हम पहुंचे वहाँ,

उसको बिठाया,

वो बैठी,

“क्या बात है? डर लग रहा है?” मैंने पूछा,

“हाँ” वो बोली धीमे से,


   
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