पिछली रात के रुके आंसू,
अब सैलाब बन कर फूट पड़े!
बहुत समझाया,
वापिस आ जाना,
जब मन करे,
आ जाना!
तुम्हारा सदैव स्वागत है मेरे देश में!
और फिर वो चली गयी!
बार बार पीछे मुड़के देखती,
और बार बार मेरा कुछ टुकड़ा ले जाती अपने साथ!
और फिर,
चली गयी वो!
मैं वापिस,
गाड़ी में बैठा,
अपनी आँखें देखीं,
शीशे में,
नम थीं!
मैं मुस्कुराया!
और सोचा,
ये प्रेम भी कितना अजीब है!
यदि यही प्रेम सबके हृदय में वास करे,
तो सम्भव है ये देवता यहीं आ कर बसने लगें!
हम वापिस हुए,
अपने स्थान पहुंचे,
काटने को आया वहाँ का कोना कोना मुझे!
वो बेरी का पेड़ पूछे उसके बारे में मुझसे!
वो मेरा हरा तकिया,
जो अब खाली था,
ढूंढें उसे!
मेरी बगिया,
खोजे उसे!
हूक सी उठती थी दिल में!
हाँ,
उसका फ़ोटो था मेरे पास,
वही देखा मैंने,
और रख दिया सम्भाल कर!
दो दिन बाद उसका फ़ोन आया,
वो सुरक्षित पहुँच चुकी थी!
लेकिन गुस्सा थी!
मैंने तीसरी बार में फ़ोन उठाया था, इसलिए!
उसकी आवाज़ सुनी तो मन प्रसन्न हुआ!
फिर ये सिलसिला ज़ारी रहा!
आज तक ज़ारी है!
इस वर्ष,
वो आएगी!
मुझे भी प्रतीक्षा है!
सरूप का कुछ पता नहीं चला!
न कुछ देख,
न कुछ पकड़!
कुछ नहीं!
वो हार मान चुका था!
जोधराज का क्या हुआ, ये नहीं बता सकूंगा….
ये मेरा देश है,
हम सबका गौरव!
इसकी सीधी-सादी सादगी में बहुत कुछ छिपा है!
ज्ञान का अथाह भंडार है इसमें!
कण कण में ज्ञान है!
हमारे विदेशी मेहमान खींचे चले आते हैं इस संस्कृति की पहचान से!
उनका आदर सदैव होना चाहिए!
यही हमारी पहचान है!
और यही हमारा गौरव!
साधुवाद!
