ये काशी की बात है, जिला काशी, मैं अपने एक जानकार रमेश जी के स्थान पर ठहरा था, वे औघड़ तो नहीं हैं परन्तु सेवा आदि के लिए उन्होंने एक स्थान बनवाया है, ये स्थान शहर से दूर स्थित है, सामाजिक कल्याण करते हैं, उनके साथ उनका बड़ा बेटा भी इसी कार्य में मदद करता है, मैं यहीं ठहरा हुआ था, यहाँ के संचालक बाबा जौहर सिंह हैं, कुशल संचालक हैं वे, और मेरी उनसे अच्छी पैठ है! हम अक्सर घंटों तक बातें करते हैं, खुशमिजाज़ हैं!
ऐसे ही एक रात हमारी महफिल सजी थी! हम आराम से बातें करते हुए खा पी रहे थे!
तभी एक सहायक आया वहाँ, उसने बोला कि कुछ लोग आये हैं, ज़रा देख लीजिये, बाबा जौहर गए और मैं वहाँ बैठा रहा, अपना धीरे धीरे मदिरापान का आनंद लेता रहा शर्मा जी के साथ! बाबा जौहर को मैं करीब पंद्रह सालों से जानता हूँ, काशी से ही, सो इसीलिए अक्सर यहाँ आ जाता हूँ ठहरने!
पंद्रह मिनट बीते और बाबा जौहर आये वापिस!
बैठे!
और फिर से दौर आरम्भ हुआ!
“कौन लोग हैं?” मैंने पूछा,
“गुवाहाटी से आये हैं, कुल छह लोग” वे बोले,
“अच्छा” मैंने कहा,
और फिर हमारी बातें होती रहीं,
हम खाते पीते रहे!
रात हुई और हम फिर अपने कक्ष में लौट आये!
सो गए!
सुबह हुई!
हम नहाये धोये,
और बैठ गए!
चाय आने ही वाली थी,
सो इंतज़ार करना था हमे!
और फिर चाय भी आ गयी!
हमने चाय पी और नाश्ता भी किया!
हो गए फारिग!
“आओ, ज़रा चलें बाहर” मैंने कहा,
“चलिए” वे बोले,
शर्मा जी और मैं अब चले बाहर,
बाहर मौसम बढ़िया था!
न सर्दी और न ही गर्मी!
हम उन पेड़ों के बीच से आगे चल दिए!
पक्षी आदि अपने गान पर लगे थे!
किस्म किस्म के गीत-गान!
परन्तु मधुर!
तभी मेरे पीछे से एक आवाज़ आई,
किसी ने कहा था, “क्षमा कीजिये”
मैंने पीछे देखा और हट गया,
ये एक विदेशी नव-यौवना थी,
उसके क्षमा बोलने के अंदाज़ से ही मुझे ऐसा अजीब सा लगा था,
जब देखा उसको तो समझ गया और हट गया,
वो प्रणाम कहते हुए आगे चली गयी,
मैंने भी प्रणाम का उत्तर दिया था,
उसने एक सफ़ेद रंग का कुरता और पीले रंग की सलवार पहनी हुई थी,
चेहरा एक बार ही हल्का सा देखा तो नैन-नक्श याद नहीं रहे,
हाँ, बदन हठीला और अच्छे कद वाला था,
वो चली गयी,
और हम भी चल दिए,
हम एक जगह जा कर बैठ गए,
और फिर लेट गए!
खुले में लेटना अच्छा लगता है मुझे शुरू से ही!
आकाश हो ऊपर और फिर प्राकृतिक सौंदर्य,
तो फिर क्या कहना!
काफी देर तक हम बैठे रहे वहाँ,
कुछ इधर उधर की बातें!
कुछ प्रश्न और कुछ उनके उत्तर!
घंटा बीत गया!
और फिर हम वापिस चले!
कक्ष में पहुंचे और फिर से आराम!
दोपहर ही तो भोजन आ गया,
भोजन किया,
और फिर हम चले बाहर!
दोपहर तो थी ही, लेकिन गर्मी नहीं थी,
ये शुक्र था!
हम फिर से वहीँ जाकर बैठ गए!
और फिर से आराम किया,
शर्मा जी कुछ पुस्तिकाएं ले आये थे,
सो वही पढ़ते रहे!
काफी देर तक हम वहीँ रहे,
फिर उठे और,
बाबा जौहर के पास चले गए!
वे भी आराम ही कर रहे थे भोजन करके,
सो बैठ गए वहाँ,
पानी पिया और फिर इधर उधर की बातें!
करीब आधा घंटा यहीं रहे,
उन्होंने शिकंजी बनवायी थी,
सो जी हमने फिर शिकंजी पी!
काले नमक, भुना हुआ ज़ीरा और नीम्बू के साथ,
थोड़ी सी चीनी, मजा आ गया!
दो गिलास पी गया मैं!
और शर्मा जी भी!
हम फिर उठे,
और चले कक्ष की ओर अपने,
अभी आधे रस्ते में ही थे कि मैंने उस विदेशी नव-यौवना को फूल तोड़ते हुए देखा,
उसने मुझे देखा,
वो हंसी,
मैं भी मुस्कुराया!
अब उसके नैन-नक्श दिखे,
हरी आँखें, सुनहरे केश और सुंदर चेहरा!
जो फूल वो तोड़ रही थी, वे गुडहल के थे,
शायद पूजा आदि के लिए होंगे!
इस तरह के विदेशी लोग आपको अक्सर मिल जायेंगे,
ज्ञान की खोज करते हुए,
ये भी शायद उनमे से एक थी!
लेकिन एक औघड़ स्थान में होना,
ये एक अलग ही बात थी!
खैर,
मुझे क्या,
जहां मरजी जाए!
हम अपने कमरे में आ गए!
आराम किया,
और सो गए!
शाम हुई,
उठे,
फिर से चाय पी,
और फिर अपने जानकारों से फ़ोन पर बात की!
बहुत फोन आये थे,
सो सुनना भी था और करना भी था!
अब घिरी शाम!
सूरज का प्रकाश हुआ ख़तम!
और लगी हुड़क!
शर्मा जी ने निकाली बोतल!
आज हम दोनों का ही कार्यक्रम था खाने-पीने का!
मैं चला ज़रा खाने का सामान लेने,
गिलास थे ही,
बस पानी ही लाना था मुझे और साथ में,
कुछ खाने का सामान!
मैं चला,
आगे पहुंचा,
और जैसे ही बाएं मुड़ा,
वही नव-यौवना वहाँ,
आ रही थी!
मुस्कुरायी,
मैं भी मुस्कुराया,
उसके हाथ में पानी था और कुछ खाने का सामान,
ज़ाहिर था,
कार्यक्रम होना था मदिरा का!
अब देखिये मित्रगण!
कहते हैं न कि किसी भी मुसीबत को हम स्व्यं ही आमंत्रित करते हैं,
सो कर ली मैंने!
“हमारे साथ?” मैंने हाथ से इशारा करते हुए कहा!
“ज़रूर क्यों नहीं!” उसने कहा,
हमारा वार्तालाप अंग्रेजी में ही हुआ था, हिंदी उसकी कैसी थी पता नहीं था अभी!
“अभी आती हूँ” वो बोली,
और चली गयी,
मैंने इतने में अपना सामान ले लिया,
वापिस हुआ तो मिल गयी वो मुझे,
और मैं उसको साथ ले,
चल पड़ा अपने कक्ष!
मैंने सामान रखा!
उसने शर्मा जी को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया!
शर्मा जी ने भी प्रणाम किया!
वे चौंके नहीं उसको वहाँ देखकर!
मैं अक्सर कई बार विदेशियों के साथ मदिरापान किया करता हूँ,
ऐसे ही स्थानों पर,
अब हम बैठे!
मैंने तीन गिलास निकाल लिए,
और रख दिए,
मदिरा परोसी और एक एक गिलास रख दिया सबके सामने,
मैं और शर्मा जी बिस्तर पर बैठे थे,
और वो कुर्सी पर!
हम सबने अपना अपना गिलास उठाया, और गटक लिया!
उसने भी, और फिर थोड़ा सलाद खाया!
अब बात आगे बढ़ानी थी!
“कहाँ से आयी हो आप?” मैंने पूछा,
“स्वीडन” वो बोली,
“अच्छा, धन्यवाद्!” मैंने कहा,
“आपका भी” वो बोली,
“किसके साथ आयी हो, कोई और भी है साथ में?” मैंने पूछा,
“नहीं, अकेली हूँ, अकेली ही आयी हूँ” वो बोली,
फिर से एक और पैग बनाया मैंने,
और दे दिया उन दोनों को,
“यहाँ किसके साथ हो?” मैंने पूछा,
“बाबा सरूप सिंह” वो बोली,
“कैसे मुलाक़ात हुई बाबा से?” मैंने पूछा,
” इलाहबाद में मिली थी मैं उनसे” वो बोली,
“अच्छा!” मैंने कहा,
फिर सलाद ली,
और चबाया एक टुकड़ा,
“तो बाबा से ज्ञान ले रही हो आप!” मैंने कहा,
“हाँ” वो बोली,
मुस्कुराते हुए!
“कितने दिन और हो यहाँ?” मैंने पूछा,
“यहाँ? काशी में या भारत में?” उसने पूछा,
“भारत में” मैंने कहा,
“हूँ अभी, पांच महीने” उसने कहा,
“अच्छा, बढ़िया” मैंने कहा,
और फिर से तीसरा पैग!
तभी मेरे दरवाज़े पर दस्तक हुई!
शर्मा जी उठे और गए दरवाज़े तक!
बाहर एक पैंतीस साल का औघड़ खड़ा था,
हाँ?” शर्मा जी ने पूछा,
“वो” उसने उस लड़की की तरफ इशारा करके पूछा,
लड़की ने देखा,
तो उठी,
और उस औघड़ से सही हिंदी में बात की,
वो चला गया!
फिर से बैठी!
“आपकी हिंदी बहुत अच्छी है!” मैंने कहा,
“सीख ली, धीरे धीरे” वो बोली,
“अच्छा किया ये तो” मैंने कहा,
“आप कहाँ से हैं?” उसने पूछा,
“मैं और ये, शर्मा जी हम दिल्ली से हैं, भारत की राजधानी से” मैं बोला,
“अच्छा! मैं वहीँ उतरी थी फ्लाइट से” वो बोली,
“अच्छा!” मैंने कहा,
फिर से एक और पैग!
“अरे हाँ! नाम क्या है आपका?” मैंने पूछा,
“एस्टेला” उसने कहा,
“अच्छा!” मैंने कहा,
अब उसने पूछा,
तो मैंने भी बता दिया!
“और एस्टेला, घर में कौन कौन हैं आपके?” मैंने पूछा,
“मैं, मेरी माँ, और एक भाई” वो बोली,
“अच्छा” मैंने कहा,
“कैसा लगा मेरा देश आपको?” मैंने पूछा,
“बहुत अच्छा, एक बात बताऊँ?” उसने कहा,
“अवश्य बताइये” मैंने कहा,
“मैं हमेशा से ही यही सोचती थी कि काश में भारत में पैदा होती, भारत से मुझे शुरू से ही लगाव है, शायद पिछले जनम में मैं भारत में ही थी, एक भारतीय!” वो हंस के बोली,
“बहुत बढ़िया! ये सम्भव है” मैंने कहा,
फिर से एक और पैग!
और फिर से सलाद!
अब मदिरा ने उसके लाल रंग को और लाल कर दिया!
हम खाते रहे और पीते रहे!
करीब डेढ़ घंटा हो गया!
और फिर से दस्तक हुई!
अब मैंने दरवाज़ा खोला,
बाहर वही औघड़ था,
दरवाज़ा खुलते ही वही औघड़ अंदर आ गया!
सीधा आया और हाथ थाम लिया उस एस्टेला का,
मुझे अच्छा नहीं लगा,
एस्टेला कसमसाई थोड़ा सा,
“आराम से भाई आराम से” मैंने कहा,
नहीं माना,
खींचने लगा,
एस्टेला नहीं जाना चाहती थी!
ये ज़ाहिर था!
उसने फिर से खींचा,
अब मुझसे रहा नहीं गया,
मैंने उस सींकची औघड़ को उसकी बाजू से पकड़ के खींच लिया,
साथ में एस्टेला भी खींचने लगी!
एस्टेला ने किसी तरह से छुड़ाया उसका हाथ,
अब मेरे हाथ में आ गया वो औघड़!
“क्या है ओये?” मैंने पूछा,
“हट जा?” वो बोला,
मदिरा पी थी उसने भी, चढ़ी हुई थी,
उसने तभी मेरा गिरेबान पकड़ने की सोची!
मैंने एक दिया कस के साले के थोबड़े पर!
नीचे गिरा!
और चिल्लाने लगा!
अब मैंने आव देखा न ताव!
दिए साले को तीन चार जूते के वार उसके मुंह पर!
नकसीर छूट गयी उसकी शायद!
खूनमखान हो गया!
लेकिन चिल्लाता रहा,
एस्टेला से बर्दाश्त नहीं हुआ, वो भाग गयी बाहर!
अब खड़ा किया मैंने उसे,
और दिया धक्का बाहर की तरफ!
जाकर गिरा बाहर!
शर्मा जी ने देखा उसको!
गिरा पड़ा था, उठने की कोशिश करता तो फिर गिर जाता!
लेकिन वो चिल्लाया!
अब चिल्लाया तो उसके साथी आये बाहर!
उसको उठाया,
और ले गए अपने साथ!
“शर्मा जी, हो जाओ तैयार!” मैंने कहा,
“तैयार हूँ” वे बोले,
और हम दोनों बाहर खड़े हो गए!
आये दो औघड़ वहाँ!
“तूने मारा उसको?” एक बोला,
“हाँ” मैंने कहा,
“क्यों?” वो बोला,
“उस बहन के ** के ये औकात मेरा गिरेबान पकड़े?” मैंने कहा,
“किसने पकड़ा?” वो बोला,
“उसी ने” मैंने कहा,
“तो जान से मार देगा?” वो बोला,
“सुन ओये, निकल जा, अभी निकल जा” मैंने कहा,
“क्या करेगा?” वो बोला,
एक तो मदिरा!
ऊपर से गुस्सा!
दिया साले को एक खींच कर!
गिर गया नीचे!
दूसरा डरा!
भाग गया पीछे!
जो नीचे गिरा था,
घूरे मुझे!
मन तो किया कि साले के एक लात जमाऊँ पेट पर खींच कर!
तभी पीछे से दो और आये, फिर से दो और!
लेकिन तब तक शोर शराब सुन कर बाबा जौहर भी आ गए!
“क्या बात है?” उन्होंने पूछा मुझसे,
अब मैंने सब बता दिया!
“क्यों आया वो औघड़ यहाँ?” जौहर बाबा ने मेरा पक्ष लिया!
और पूछा उन्ही से!
“बुलाने आया था वो लड़की को” बोला एक,
“लड़की आ जाती अपने आप?” वे बोले,
“नहीं, ये नहीं आने दे रहे थे” वो बोला,
“कैसे नहीं आने दे रहे थे?” पूछा उन्होंने,
“पहले आया था वो, तो कहा दिया बाद में आना” वो बोला,
“तो, ज़बरन घुसेगा अंदर?” वो बोले,
“कोई नहीं घुसा ज़बरन” वो बोला,
“बुला, उस लड़की को बुला” कहा बाबा जौहर ने,
“नहीं आएगी लड़की” एक आवाज़ आयी!
भारी-भरकम आवाज़!
ये था बाबा सरूप!
“बुलाओ उस लड़की को अभी” जौहर ने कहा,
“नहीं आएगी” वो बोला,
“तो हम जायेंगे” जौहर ने कहा,
“कोई नहीं जाएगा” वो बोला,
अब मैं आगे हुआ!
“सुन, बुला उसको” मैंने कहा,
“नहीं आएगी” वो बोला,
और तभी एस्टेला आ गयी वहाँ!
अब मैंने पूछा उस से कि क्या हुआ था,
सब बता दिया एस्टेला ने!
निबट गया मामला!
लेकिन खटक गए ये साले, कुत्ते, हरामज़ादे मेरी आँखों में!
मुझे घूरते हुए, चला गया बाबा सरूप!
और मुझे ले कर आ गए बाबा जौहर मेरे कक्ष में!
हम कमरे में आ गए!
उन्होंने बिठाया मुझे,
मैं बैठ गया,
फिर शर्मा जी भी बैठ गए,
वे वे भी बैठे,
“आप भी कहाँ मुंह लग गए उनके!” वे बोले,
“अरे मैं नहीं लगा, वो लड़की आयी थी मेरे साथ” मैंने कहा,
“ये बेचारी विदेशी लड़कियां आ जाती हैं झांसे में, फिर लुटने-पिटने के बाद चली जाती हैं वापिस” वे बोले,
“ये बात तो सही है, लेकिन हम केवल मदिरा ही तो पी रहे थे?” मैंने कहा,
“अब नहीं हुआ सालों को बर्दाश्त!” वे बोले,
और खुद ही मदिरा परोस दी उन्होंने गिलासों में,
और दे दी हमे!
एक उन्होंने भी ले ली!
“साला अबकी कोई बोला तो टांगें तोड़ दूंगा उसकी” मैंने कहा,
