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वर्ष २०१२ काशी की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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वर्ष २०१२ .......सर्दी की वो कडकडाती रात! धुंध का आवरण समस्त शमशान पर पड़ा हुआ था! ऊपर से चलती शीत-लहर! तेज बहती वायु का क्रंदन-राग! चिता से उठे अंगार और चिता के लकड़ियों को कुरेदते ये अघोरी! चिताग्नि का ताप की सुकून दे रहा था! चिता के चारों ओर बैठे अघोरी और उनके गुनिया लोग! साथ साथ चलती मदिरा और मांस! शमशान में बैठे कुते दम हिला रहे थे की कोई टुकड़ा उनकी तरफ भी न जाने कब आ जाए! कुल मिला कर यहाँ ९ लोग थे, २ मुख्य अघोरी, २ गुनिया लोग और २ ही सेवक! २ आधुनिक लिबास पहने २५-२६ वर्ष की महिलायें और एक अधेढ़ उम्र का व्यक्ति! ये महिलायें अपनी गाडी में बैठी थीं और ड्राइविंग सीट पर वो अधेड़ व्यक्ति! ये शमशान है काशी का! वैसे काशी से कुछ दूर अलग! मुझे यहाँ रात्रि २ बजे बुलाया गया था, और ये मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे, मै थोडा देर से पहुँच था, करीब आधा घंटा! हमेशा की तरह मेरे साथ शर्मा जी थे, वहाँ ३ चिताएं जल रही थीं, जहां ये मुख्य अघोरी, दीना नाथ और बाबू नाथ बैठे थे, ये एक जवान पुरुष की चिता थी, लाश पूरी तरह से जल चुकी थी, मांस का नामो-निशाँ नहीं था, हाँ पिंजर की हड्डियां दृश्यमान थीं!

तभी बाबू नाथ ने उस चिता में से बायीं टांग की एक हड्डी निकाली, उसको नदी में जा कर बुझाया और अपने सामने रख लिया! उस पर शराब और रक्त के छींटे चढ़ाए! और उसका आधा रेत में गाड़ कर उस पर एक गेंदे की माला चढ़ा दी!

जब मै वहां पहुंचा तो दीना नाथ उठ के खड़ा हुआ और मुझे प्रणाम किया! मैंने भी प्रणाम किया! बाबू नाथ ने भी बैठे बैठे प्रणाम किया!

मैंने बाबू नाथ से कहा, "जाओ जा के उस लड़की को बुलाओ यहाँ जिसकी कोख बंद है!"

"जी अभी लाया बुला के" वो उठा और वहाँ कड़ी कार तक चला गया, वापिस आया तो साथ में उसके साथ बाकी दोनों भी आ गए, मैंने उनको पीछे ही रहने को कहा, मेरे सामने वो आ खड़ी हुई,

"नाम बताओ अपना?" मैंने पूछा,

"रजनी" वो बोली,

"उम्र बताओ अपनी" मैंने कहा,

"२७ साल" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"पति का नाम बताओ" मै बोला,

"हरेंदर रावत" उसने बताया,

"ब्याह हुए कितने दिन हुए?" मैंने सवाल किया,

"७ साल" उसने जवाब दिया

"कभी गर्भ ठहरा?" मैंने पूछा,

"जी कभी नहीं" वो बोली,

"डॉक्टर्स से इलाज करवाया?" मैंने कहा,

"हाँ, कई बार, कोई लाभ नहीं हुआ" उसने जवाब दिया,

"पति कहाँ है तुम्हारा? वो नहीं आया?" मैंने पूछा,

"जी नहीं" वो बोली,

"क्यूँ? उसका आना ज़रूरी है!" मैंने समझाया,

"उन्होंने मना किया" वो बोली,

"फिर मै कुछ नहीं कर सकता, उसको लेकर आओ पहले" मैंने ये कह के वहां से निकलना बेहतर समझा और मै दीना नाथ के पास आके बैठ गया वो महिला रजनी पलटी और फिर जा के उस अधेढ़ से बातें करने लगी, इधर मै दीना नाथ और बाबू नाथ से बोला, " आप लोगों को मैंने कई बार कहा है, शादीशुदा औरत के साथ उसके पति का होना ज़रूरी है, यदि वो साथ ही रहती है तो, लेकिन तुमने इसको ऐसे क्यूँ बुलाया, बिना इसके पति के?"

"जब या से बात करी तब बोल्या कै आदमी संग आवेगा, हरामन की ल्याई न!" बाबू नाथ ने कहा,

"अब मै चलता हूँ, खामखाँ दिमाग खराब करा दिया तुमने भी!" ये कह के मै वापिस चल पड़ा, लेकिन जैसे ही मै उनकी गाडी के पास से गुजरा तो उस अधेड़ आदमी ने मुझे आवाज़ देकर कहा, "सुनिए, गुरु जी, सुनिए ज़रा?"

मै रुका और वो मेरे पास आया, " क्षमा कीजियेगा गुरु जी" वो बोला,

"जी बोलिए?" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जी ये रजनी मेरी साली है छोटी, और वहाँ मेरी पत्नी बैठी हुई है, गुरु जी, इसका आदमी नहीं आएगा, वो पहले ही मना कर चुका है इसके साथ अब और कहीं जाने को" उसने बताया,

"अब और? मै समझा नहीं?"

"गुरु जी, हम इसको लेके पता नहीं कहाँ-कहाँ नहीं गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ आज तक" उसने बताया,

मैंने एक नज़र रजनी पर डाली और फिर उस व्यक्ति से कहना शुरू किया, "देखिये आप एक काम कीजिये, मेरा नंबर ले लीजिये, और परसों जहां मै कहूँ वहाँ आ जाइए आप" मैंने कहा, मैंने उसको अपना नंबर उसको बता दिया उसे अपनी डायरी में वो नोट कर लिया,

"जी रजनी को भी लाऊं?" उसने पूछा,

"नहीं इनकी ज़रुरत नहीं है, आप अकेले ही आ जाइए" मैंने कहा

हमारी बातें समाप्त हुईं और उसने और रजनी ने मुझे नमस्कार किया, मैंने भी नमस्कार का उत्तर दिया!

वो लोग वहाँ से निकले तो मै भी शर्मा जी के साथ वहाँ से निकल आया. ठीक एक दिन बाद रजनी के जीजा का फ़ोन आ गया, मैंने उसको शाम ४ बजे के बाद का समय एक आश्रम में मिलना का दे दिया, वो आश्रम मेरे यहाँ से अधिक दूर नहीं था, मै भी वहाँ पहुँचने कि तैय्यारी करने लगा, इसी तरह मै ४ बजे तक वहां पहुँच गया, शर्मा जी भी मेरे साथ ही थे, साढ़े ४ बजे रजनी के जीजा वहां पहुँच गए, हमारा पुनःपरिचय हुआ और उन्होंने अपना नाम दिनेश बताया, वो एक ऑटो-स्पेयर-पार्ट्स का व्यवसाय करते थे वहीँ कशी में, अब कि बार मैंने उनसे सारी समस्या विस्तार में जानने का आग्रह किया, उन्होंने बताया, "मेरा नाम दिनेश है, मेरी साली से तो आप मिल ही चुके है, दरअसल मेरा उसके साथ एक बेटी का तरह से सम्बन्ध रहा है, कोई साली कि तरह नहीं, रजनी भी मुझे अपने बड़े भाई या पिता समान का ही मान देती है, रजनी कि शादी आज से कोई ८ साल पहले यहीं के एक रहने वाले अनिल नामक व्यक्ति से हुई थी, उसका भी अपना आटे-दाल का व्यवसाय है, परिवार कुल मिला के अच्छा लगा था हमे तो विवाह कर दिया गया था, लेकिन शादी के तीन साल बाद भी उसकी कोई संतान नहीं हुई,सभी को चिंता हुई और आप तो जानते है है कि घर कि बुज़ुर्ग स्त्रियाँ ताने वगैरह मारने से बाज नहीं आतीं, ऐसा ही रजनी के साथ हु, कई बार तो बात इतनी बिगड़ी कि सम्बन्ध टूटने कि नौबत आ गई, लेकिन किसी तरह से बात संभली और हमने, उसके पति ने नहीं, रजनी का इलाज करवाया, कई जगह दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, आखिर हम उसको लेके लखनऊ गए, वहाँ पता चला कि रजनी के गर्भाशय में कोई न ठीक होने वाला दोष है और वो


   
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श्रीशः उपदंडक
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संतानोत्पत्ति नहीं कर सकती, हमने जब उनसे पूछा कि क्या रोग है तो उन्होंने कहा कि ये एक दुसाध्य रोग है, आप कहीं भी चले जाइए, इस रोग का कोई उपचार नहीं, हमारे तो पाँव तले ज़मीन निकल गयी, यही बात अगर रजनी के ससुराल वालों को पता लग जाए तो वो उसका त्याग कर देंगे, और जिंदगी खराब होगी रजनी की, ऐसी ही सिलसिलों में मै कई पंडितों, ज्योतिष जानकारों से, ओझा, भगत और कई तांत्रिकों से मिला, पैसा पानी की तरह बहाया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ, तब मुझे बाबूनाथ के बारे में बताया गया, बताया कि वो अघोरी है, और अघोर में हर किस्म का इलाज संभव है, बाबूनाथ ने मुझसे २५,००० रुपये लिए और उसने कहा कि एक गुरु जी आये हुए हैं दिल्ली से, वो मान जायेंगे तो आपका काम हो जाएगा, बस गुरु जी, मै इसीलिए बाबूनाथ के यहाँ बीती परसों रात वहाँ आया था, ये मेरे सौभाग्य की आपने मेरी बात सुन ली, गुरु जी, मुझे आपको देख के न जाने क्यूँ लगता है की हमारी समस्या का निदान आपके ही हाथों में है"

मुझे ये समस्या अत्यंत विदारक एवं सत्य प्रतीत हुई, मैंने दुबारा गौर किया तो मुझे लगा की इस समस्या का निवारण आवश्यक ही नहीं वरन परम-आवश्यक है! मैंने कहा," दिनेश जी, मैंने आपकी समस्या सुनी, मै आश्वस्त हो गया हु, और आपके कर्तव्यबोध से अभिभूत हूँ! आप निश्चिन्त रहिये,लेकिन उस से पहले मुझे रजनी को देखना होगा, आप एक काम करें, आप कल रजनी को ले कर आयें मेरे पास, मै कुछ संदेह दूर करना चाहता हूँ उस से"

"ठीक है गुरु जी, जैसा आप कहें, आप मुझे बताइये कब आना है?" उसने कहा,

"दिनेश जी आप कल रजनी को मेरे पास १ बजे ले आयें" मैंने बताया,

"ठीक है,जैसा आप कहो" उसने कहा,

"ठीक है, कल मिलते हैं हम" ये कह के मै उठा और दिनेश के साथ बाहर आ गया,

दिनेश ने मेरा धन्यवाद कहा और अपनी गाडी में बैठ गया, और मै शर्मा जी के साथ अपनी गाडी में! अगले दिन दिनेश का फ़ोन आया, उसने बताया की वो रजनी को लेकर एक बजे वहीँ आ जाएगा, मैं उसको सलाह दी कि वो वहाँ न जाकर, जहाँ मै ठहरा हुआ था, वहाँ आ जाए, उसने हामी भरी और एक बजे मिलना निश्चित हो गया!

एक बजे करीब, उसने फ़ोन किया, मैंने उसको वहाँ, जहां मै ठहरा था, तक का रास्ता बताया और उनको ऊपर अओने को कहा, वो ऊपर आ गए, रजनी ने लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उस रात मै उसको अधिक नहीं देख पाया था, लेकिन आज मैंने उसको देखा, गौर-वर्ण, उन्नत देह, घने स्याह केश, उन्नत मुख-पटल, आज रजनी स्त्री-सौन्दर्य से दमदमा रही थी,उनको मैंने वहाँ बिठाया और पीने के लिए पानी मंगवाया, उन लोगों ने पानी पीया, तो मैंने शर्मा जी से


   
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श्रीशः उपदंडक
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कहा की वो दिनेश को ज़रा बाहर ले जाएँ, क्यूंकि मुझे रजनी से कुछ व्यक्तिगत प्रश्न करने थे, शर्मा जी दिनेश को लेकर बाहर चले गए, मैंने रजनी से पूछा," रजनी जी, सबसे पहले आप ये निश्चित कर लें कि जो मै आपसे पूछूंगा, एक तो, आप उनका उत्तर बिना संकोच के और बिना घबराहट के और बिना झूठ बोले देंगी"

रजनी ने मेरी आँखों से आँखें हटायीं और नीचे कर लीं, और अपनी गर्दन सहमति में हिलाई और धीरे से बोली, "हाँ गुरु जी"

"आपकी सही उम्र?" मैंने पूछा,

"जी २८ वर्ष" उसने कहा,

"क्या बचपन में कभी गंभीर रूप से बीमार हुई थीं आप?" मैंने कहा,

"जी कभी नहीं" उसने जवाब दिया,

"कभी विवाह से पूर्व कोई शारीरिक सम्बन्ध थे आपके किसी से?" मैंने प्रश्न किया,

वो थोडा सकपकाई और बोली, "जी हाँ, हमारे किरायेदार के लड़के से सम्बन्ध थे"

"क्या उम्र होगी उसकी और आपकी उन दिनों?" मैंने फिर सवाल किया

"मेरी उम्र १८ वर्ष थी और उसकी कोई ३५ वर्ष" उसने घबरा के जवाब दिया,

"वो शादीशुदा था?" मैंने पूछा,

"जी हाँ" उसने कहा,

"उसकी बीवी भी वहीँ थी? उसके साथ?" मैंने पूछा,

"हाँ, वहीँ रहती थी वो, उसके साथ" उसने फिर से संकोचवश उत्तर दिया,

"अच्छा, एक बात और बताओ, इस बारे में किसी को कभी पता चला?" मैंने पूछा,

"जी नहीं, कभी किसी को नहीं" उसने जवाब दिया,

"क्या कभी इस दौरान कोई गर्भपात जैसी कोई बात हुई?" मैंने कहा,

"जी नहीं, कभी नहीं" उसने उत्तर दिया

"इसका अर्थ ये हुआ कि आपका शारीरिक सम्बन्ध अब तक दो पुरुषों से हुआ है, एक विवाह से पूर्व और एक आपके पति महोदय से, है ना?" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जी गुरु जी" उसने फिर से संकोचवश कहा,

"अच्छा, एक बात और बताओ मुझे, क्या आपके पति महोदय 'पूर्ण पुरुष' हैं?" मैंने पूछा,

"हाँ, हैं" उसने जवाब दिया,

"और कोई ऐसी विशेष बात जो आप बताना चाहती हों? अपने या अपनी पति महोदय के बारे में?"

मैंने पूछा,

"जी, करीब ५ सालों से मेरे पति महोदय, मेरी जेठानी के साथ ही सहमती जताते हैं, उनकी हाँ में हाँ मिलाते हैं, और उनके साथ मुझे लगता है कि.................." वो ये बोल के चुप हो गयीं,

"देखिये ये मेरा विषय नहीं, जो मै जानना चाहता था, उसी से सम्बंधित विषय में यदि आप कुछ बताना चाहें तो बताएं, मेरा ये आशय था" मैंने जवाब दिया,

उसने थोडा विस्मित सा चेहरा बनाया और बाहर की तरफ झाँका, "क्या आप जाना चाहती हैं?" मैंने पूछा,

"जी.........जी नहीं" उसने जवाब दिया,

"देखो रजनी, मुझे सारे तथ्य मालूम होने चाहियें ताकि कहीं कोई त्रुटी ना रहे और कोई चूक ना हो जाए, समझीं आप?" मैंने उसको समझाया,

"जी" उसने फिर से गर्दन हिला के हाँ कहा,

"आपको माहवारी सही होती है, समय पर या फिर आगे-पीछे?" मैंने पूछा,

"सही समय पर होती है गुरु जी" उसने जवाब दिया,

"डॉक्टर्स के अनुसार आप संतानोत्पत्ति नहीं कर सकतीं?" मैंने पूछा,

"हाँ गुरु जी, तब से मै और डर गयी हूँ, ना जाने क्या होगा" उसने इस बार मुझे देखते हुए कहा,

"डरो नहीं आप, घबराओ नहीं" मैंने हिम्मत बंधाई उसकी,

मै तब उठा और जाके दरवाज़ा बंद कर दिया, लेकिन कुण्डी नहीं लगाई, मै पलता और फिर मैंने रजनी से कहा, "रजनी, ज़रा खड़े हो जाओ"


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो थोडा संकुचाई लेकिन खड़े हो गयी, मैंने कहा, "मुझे अपनी नाभि दिखाओ, और मेरे समीप आओ"

उसने अपनी साड़ी थोड़ी खिसकाई और अपनी नाभि दिखाई, मैंने अपना अंगूठा उसकी नाभि में डाला और स्पंदन महसूस करने लगा, उसके गर्भाशय में अवश्य ही गड़बड़ थी, ये मुझे पता चल गया, मैंने उस से कहा कि, " रजनी, आपके गर्भाशय में अवश्य ही कोई गड़बड़ है, उसका स्पंदन नहीं चल रहा"

"अब क्या होगा गुरु जी?" उसने मासूमियत से ये सवाल किया,

"मै देखता हूँ कि क्या किया जा सकता है" मैंने उसको जवाब दिया,

"एक बात और बताओ रजनी, आपको शमशान आने के लिए किसने राजी किया?" मैंने पूछा,

"जी मेरे बड़ी बहन ने, उस दिन वो आयीं थी ना? वो मेरी बड़ी बहन हैं, पूनम, उन्होंने ही मुझे वहाँ आने को कहा था, इसीलिए मै वहाँ आई थी" उसने बताया,

"ठीक है, तुम एक काम करो, सामने लेट जाओ, मै अभी तुम्हारे गर्भाशय की जांच करता हूँ" मैंने कहा,

वो लेट गयी, मैंने तब अपना नाहर प्रेत प्रकट किया और उसको उसके अन्दर प्रवेश करा दिया, वो थोडा छटपटाई, फिर शांत हो गयी, २ मिनट में नाहर वापिस आया और बोला, "बंद बंद शूल बंद"

इसका अर्थ ये था कि उसके गर्भाशय को बाँधा गया है! लेकिन किसने?

रजनी कड़ी हुई, अपने पेट को पकड़ा और कहा, "गुरु जी, मेरे पेट में दर्द हो रहा है" और वो ऐसा कह के वहीँ बैठ गयी, मैंने तब जल को अभिमंत्रित करके उस पर छींटे छिड़क दिए, वो थोड़ी देर में ही ठीक हो गयी, उसके बाद मैंने दिनेश और शर्मा जी को अन्दर बुलाया, दिनेश से कहा कि वो रजनी को ले जाएँ, जब आवश्यकता होगी उनको फ़ोन करके बुला लेंगे, दिनेश ने प्रणाम किया और रजनी ने भी, और वहाँ से चले गए,

तब शर्मा जी ने पूछा, "क्या गड़बड़ है इसके साथ गुरु जी?"

"है, गड़बड़ है, और भारी गड़बड़ है! इसका गर्भाशय बाँधा गया है और हैरत की बात ये की अगर कुछ किया जाए तो ये तड़पती है!" मैंने कहा,

"अर्थात?" उन्होंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अर्थात, जिसने भी ये किया है, वो 'कारीगर' काफी खेला-खाया है, वो ये जानता है कि ये अपना इलाज करवाएगी, गाहे-बगाहे कोई हमारे जैसा भी मिलेगा! और हम कुछ करेंगे तो ज़रूर! अब करेंगे तो भुगतेगी ये, यानी कि इसको असहनीय पीड़ा होगी!" मैंने जवाब दिया!

"ओह! तो अब गुरु जी?" उन्होंने पूछा,

"मै आज रात अलख में ये पता करूँगा कि आखिर ऐसा वो 'कारीगर' कौन है और इसका इलाज कैसे किया जाए शर्मा जी!" मैंने जवाब दिया,

उसके बाद मै शर्मा जी के साथ बाहर चला गया और जाके फलाहार किया! मै उस रात अलख में बैठा, अलख-भोग दिया और फिर कार्य आरम्भ किया, अपना कारिन्दा हाज़िर किया और उसको भी उसका भोग दिया! कारिन्दा उड़ा और चला गया! ५ मिनट के बाद हाज़िर हुआ! उसने बताया कि रजनी कि कोख एक औरत रीसा ने की है, ये औरत अब इम्फाल में है, ये एक औघड़ तैतिल की बीवी है! ये औरत जब ७ साल पहले यहाँ आई थी तो इसकी कोख बंधवा दी गयी थी! और इसकी कोख बंधवाने वाला कोई और नहीं इसी का पति किशन है!

ये बात बड़ी हैरत में डालने वाली थी! भला एक पति अपनी पत्नी की कोख क्यूँ बंधवायेगा? इसके पीछे कोई साजिश अवश्य ही है, मैंने सोचा!

खैर, जो भी साजिश थी वो बाद में देखी जानी थी, फिलहाल में तो रजनी की कोख खोलनी थी! मैंने तब एक 'मुखबिर चुड़ैल' को रीसा के पास भेजा, और उसको रीसा की पूरे १० घंटे की जानकारी देने के लिए कहा, ये 'मुखबिर चुड़ैल' उड़ चली और पहुँच गयी रीसा के पास! वहाँ एक गूलर के पेड़ पर जा बैठी और रीसा की जानकारी एकत्रित करने लगी! मै भी अलख से उठा, नमस्कार किया और सोने चला गया!

करीब २ बजे ये 'मुखबिर चुड़ैल' मेरे पास आई, उसने मुझे विस्तार से बताया, "रीसा की उम्र ४५ वर्ष है, ३ कन्या संतान हैं उसके, उसका पति तैतिल औघड़ है, जिसकी की उम्र ६२ वर्ष है, वो वहाँ नहीं है पिछले ११ महीनों से, वो नेपाल में गया है अपने भाई के पास, रीसा कई महाप्रेतों को अपना सर्वांग दान देती है, बदले में उनसे अभय-सिद्धि प्राप्त करती है! पिछली रात्रि भी उसने अपने को एक 'छलावे' को योनि-भोग करवाया है और वो छलावा उस पर आसक्त है!" इतना कह के मैंने उसको मान्दिल्य में पुनःधारण कर लिया!

अब मुझे इस रीसा से हिसाब चुकता करना था! मुझे ना चाहते हुए भी उसकी मंझली लड़की को 'लपेट' में लाना पड़ा! रीसा को जब ये पता चला तो उसने उस 'लपेट' से बातें कीं, 'लपेट' ने सिलसिलेवार सारी बातें बता दीं और उसको छोड़ दिया! रीसा को जो मै कहना चाहता था वो कह दिया! रीसा घबराई नहीं! वो अन्दर अपने स्थान पर गयी, संपूर्ण तैयारी की! और अपने


   
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आसक्त छलावे को मेरे पास दौड़ा दिया! मुझे हंसी आई! उसका छलावा जब आया तो उसकी हालत ऐसी हुई जैसे की शेरों के बीच एक मेमने की होती है! मैंने उसको कहा, कि मै उसको मारूंगा नहीं, बस रीसा से कह के उस रजनी कि कोख का बंधन खोल दे! छलावे को जैसे नई जान मिली हो! वो दौड़ा और उसने जाके सारी बात रीसा को बतायी! रीसा कोई वो रजनी याद आ गयी! उसने अब अपने समस्त वस्त्र उतारे, चिता-भस्म में स्नान किया और योनि-पुष्टिकरण करके एक महाप्रेत जंगाल प्रकट किया! जंगाल ने पहले रीसा से रमण किया और अट्टहास करता हुआ, रीसा के कहे अनुसार मेरे पास आने के लिए रवाना हुआ! मैंने तब जंगाल का सामना करने के लिए, उडूपा-महाप्रेत को प्रकट किया! जंगाल के आते ही उडूपा ने उसको पकड़ा और अपनी चोटी में बाँध लिया! रीसा के होश उड़ गए! लेकिन उसने हार नहीं मानी! उसने अपनी योनि-स्राव के द्रव्य से भूमि पर तीन त्रिभुज बनाए! एक एक त्रिभुज में भुना मानव-मांस रखा! और फिर उसने अपने औघड़ पति से सीखे तंत्र का प्रयोग किया! उसने मंत्र पढ़े और तब वहाँ 'रोहितांग-अष्टभुजाधारी' कपाल-मसान को प्रकट किया! मैंने उसकी प्रशंसा की! कपाल-मसान ने भी उस से रमण किया और हो गया रवाना अपने लक्ष्य की तरफ! वो मेरे समक्ष प्रकट हुआ! उसके आठों हाथों में शस्त्र सुशोभित थे! तब मैंने कपाल-वाहिनी को प्रकट किया! कपाल-वाहिनी एक अमोघ शक्ति है, ये रोहितांग-अष्टभुजाधारी की माँ होती है! रोहितांग थम गया! तब मैंने उसको कपाल-वाहिनी द्वारा क़ैद कर लिया!

वहाँ रीसा ने इस बीच अपने पति औघड़ के पास इसकी खबर करवा दी, वो अपना कमंडल, त्रिशूल आदि लेकर मुझसे भिड़ने के लिए तैयार हुआ! उसने अलख उठायी और अपना पेशाब,थूक,वीर्य,मल और रक्त लेकर अलख में भोग दिया! मै समझ गया कि ये शाशांग-औघड़ है! जब ये औघड़ क्रिया में किसी मारण हेतु बैठते हैं तो अरि-दमन करके ही रहते हैं अन्यथा मृत्यु का स्वयं वरन करते हैं! उसको अलख में बैठा देख मै भी वहाँ के गुप्त-स्थान में दौड़ा दौड़ा गया! वहाँ अलख उठी हुई थी, मैंने शर्मा जी से कह के वहाँ से समस्त सेवक हटवा दिए और सामग्री का बैग लेकर, पूर्णतया नग्न होकर, भस्मी-भूत होकर अलख भोग दिया, मैंने शर्मा जी को वहाँ से हटा दिया और कहा की विश्वेश्वर से कह के तीन तरह का मांस एक एक थाल आप मेरे पास ले आइये! वो भागे और थोड़ी देर बाद तीन थाल ले आये! वो बाहर चले गए जैसा मैंने उनको कहा था! मैंने मानव-चर्म का बना आसन लगाया और उस पर बैठ गया! मनुष्य के कपाल, हाथों के जोड़ की अस्थियाँ, रीढ़ की हड्डी के ११ जोड़ और गले की हंसुली-अस्थियाँ बैग से बाहर निकाल लीं, अब मै भिड़ने के लिए तैयार हो गया!

उस औघड़ ने अपना एकत्रित वीर्य-पात्र और रक्त-पात्र अलख के सम्मुख रखे और मंत्रोचारण आरम्भ किया! उसने मानव-अस्थि, टांग वाली, लेकर अलख पर ११ बार रक्त के छींटे दिए!


   
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भयानक आवाज़ हुई! एक कन्या उत्पन्न हुई, ना तो उसके आँखें थीं ना ही नाक! केवल मुंह और बाहर लटकती पीली जीभ! और कद मात्र २ फीट! ये परादंश-कन्या थी! इसको औघड़ ने सिद्ध किया हुआ था! उसने उस कन्या को वीर्य-पान कराया! उसका आकार बढ़ने लगा! चेहरे पर आँखें और नाक आ गयीं थी अब! नाक में अस्थियाँ पिरोये, कान में अस्थियाँ पिरोये वो कन्या अब २० फीट की हो गयी! ये परादंश-कन्याएं राक्षस और गान्धर्वों के मेल से उत्पन्न होती हैं!

अब औघड़ ने भूमि पर अपने रक्त से कुछ लिखा! परादंश-कन्या ने उसको चाटा और वहाँ से उड़ चली! मेरे पास परादंश-कन्या का जवाब था! तब मैंने सुर्तांश-अक्षयिका कन्या उत्पन्न की! ये कन्या मानव अस्थियों से सुसज्जित, मानव रक्त से लीपी हुई होती है! केवल मानव का ही मांस भक्षण करती है! वो भी स्त्रियों का ही केवल! सुर्तांश-अक्षयिका को मैंने रक्त-पात्र दिया उसने उसका भोग लिया और दौड़ पड़ी परदंध-कन्या से भिड़ने!

परादंश-कन्या ने जब इसको देखा तो औघड़ के पास वापिस आई और कन्या बन, वहीँ गिर पड़ी! औघड़ के होश उड़ गए! वो खड़ा हुआ और अपने को मरघट-मंत्र से सुरक्षित किया! मेरी सुर्तांश-अक्षयिका वापिस आई और लोप हो गयी!

औघड़ खड़ा हुआ और मंत्र पढने लगा! उसने अपना त्रिशूल अपनी अलख में डाला और फिर उसको अपने वक्ष पर दाग लिया! जले मांस को वहाँ से छील कर अलख में डाला और 'ढोम्र-मंत्रोचारण' करने लगा! आशय स्पष्ट था! वो कपाल-रुद्रा यक्षिणी का आह्वान कर रहा था! उसने कपाल-रुद्रा को भी प्रसन्न कर रखा था! वाह! कपाल-रुद्रा को सिद्ध करने के लिए ७ वर्ष का समय लगता है! अब वो उसको दांव पर लगाने वाला था! मैंने यहाँ पर वज्र-भंजनिका गान्धर्व-गणिका का आह्वान किया! बेला के फूलों की बरसात हुई! तीक्ष्ण-नयनी, नग्न, वज्र-भंजनिका गणिका प्रकट हुई! यदि उसका स्वरुप कोई साधारण मनुष्य देख ले तो उसको शुष्क-वीर्य रोग उत्पन्न हो जाता है, अर्थात उसकी वंश-लता का संपूर्ण नाश! वैशाख-मास की नवमी को जिस तालाब में गुलाबी कमल-पुष्प होते हैं, रात्रि के तीसरे चरण में वहाँ ये अपनी सहोदारियों के साथ स्नान करने आती है! यही इनको प्रसन्न करने का समय होता है! यदि काम-क्रीडा में आपने इसको स्खलित किया तो ये प्रसन्न होती है, असफल होने पर साधक की ह्रदय-गति रुकने से तुरंत मृत्यु निश्चित है!

उधर, कपाल-रुद्रा प्रकट हुई और पलक झपकते ही मेरे समक्ष प्रकट हुई! गले में १११ नर-मुंड धारण किये, मानव-चक्षु-बिम्ब-माला पहने वो अत्यंत रौद्र रूप में थी! लेकिन मेरी वज्र-भंजनिका के दृश्यमान होते ही लोप हो गयी!

अब औघड़ समझ गया की सामने वाला भी कोई विशेष औघड़ है! उसने अपनी अलख में अपने केश तोड़कर जलाए, भस्म बनायी और अपनी जिव्हा का रक्त उसमे मिला कर भूमि पर फेंका!


   
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और मंत्रोचारण करने बैठ गया! यहाँ मैंने अपनी वज्र-भंजनिका को प्रणय-मुद्रा में आलिंगन किया और उसको वापिस भेज दिया! उस औघड़ ने जब ये देखा की उसकी शक्तियां प्रभावहीन हो रही हैं तो उसने वहाँ एक स्त्री को बुलवाया! स्त्री आई उसने उस स्त्री पर मंत्र पढ़े और उसको वहीँ लिटा दिया, उसको नग्न करके उसकी छाती पर बैठ गया! अब उसने अपना त्रिशूल उठाया और एक अट्टहास किया! उसके ऐसा करने का कारण स्पष्ट था! वो अब मरने-मारने पर आमादा था! मैंने शर्मा जी को बुलाया और उनसे एक स्त्री को यहाँ भेजने को कहा! उन्होंने फ़ौरन वहाँ एक सेविका को भेज दिया, मैंने उसको शुद्ध करके वहा लिटाया और एक शक्ति उसके अन्दर प्रविष्ट करा दी, वो निढाल हुई और मैंने उसको नग्न करके उसके वक्ष पर बैठ गया! अब मै भी उस औघड़ को उसीके तरीके से पस्त करना चाहता था!

उस औघड़ ने उस स्त्री के केश पकडे और मंत्रोच्चारण आरम्भ किये, यहाँ मैंने भी इस सेविका के साथ ऐसा ही किया! तब वो औघड़ वहाँ से उठ कर अपने सामान की तरफ गया और वहाँ से एक स्त्री का कटा हुआ हाथ लाया! ये हाथ उसने अपने त्रिशूल पे लटकाया और त्रिशूल को ज़मीन पर मारता रहा! मै समझ गया कि वो कैराल-महापिशाच को प्रकट करना चाहता है! मैंने तब इन्द्राक्ष-महापिशाच का आह्वान किया! वो प्रकट हुआ! ये महापिशाच अत्यंत भयानक और भक्शल प्रवृति के होते हैं! उधर उस औघड़ से समक्ष कैराल-महापिशाच प्रकट किया! और मेरी तरफ इशारा कर दिया! वो द्रुत-गति से मेरे समक्ष प्रकट हुआ! लेकिन उसके कंठ-माल टूट कर गिरने लगे! इन्द्राक्ष-महापिशाच ने उसको पकड़ के अपनी कमर में बाँध लिया! ये देख उस औघड़ के होश फाख्ता हो गए! मैंने अपने महापिशाच को उस औघड़ के पास भेजा! वहाँ जाते ही उसने उस औघड़ को सर से उठाकर ऊपर फेंका! वो औघड़ करीब ३० फीट ऊपर उछला छप्पर फाड़ता हुआ और छप्पर फाड़ता हुआ फिर अन्दर गिरा! अब कि महापिशाच ने उसको उसकी छाती में एक लात मारी! अब कि वो औघड़ झोंपड़े की फूस-सरकंडे से बनी दीवार को फाड़ता हुआ बाहर गिरा! उसको बाहर देख कर उसके जानकार वहाँ उसको देखते ही उसकी तरफ दौड़े! उसकी हड्डियां टूट चुकी थीं! नाक, कान और मुंह से खून बह रहा था! महापिशाच पलटा और मेरे पास प्रकट हुआ! मैंने उसको उसका भोग दिया! और उस सेविका से रमण किया! फिर वो वापिस चला गया!

औघड़ का खेल समाप्त हो चुका था! अब मैंने अपना ध्यान रीसा कि तरफ किया! रीसा की पाँव तले ज़मीन खिसक गयी! उसने फ़ौरन एक चाक़ू लेकर अपना हाथ काटा और रक्त के छींटे भूमि पर छिडके! कोख-बंधन समाप्त हो चुका था!

मै काफी थक चुका था! वहीँ गिर गया! कोई ३ घंटे के बाद मै उठा! सेविका वहीँ बैठी हुई थी! मैंने उसे उसके वस्त्र पहनने को दिए और उसके कपडे पहनते ही वो बाहर चली गयी! मैंने वस्त्र उठाये और पहने! और मै बाहर आ गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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शर्मा जी बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रहे थे, मुझे सकुशल देख वो मेरे गले लग गए! वो मुझे स्नान-कुण्ड तक ले गए! मैंने स्नान किया और फिर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया, मैंने शर्मा जी से कहा कि वो दिनेश को फ़ोन करके कह दें कि कल रात्रि वो रजनी को लेकर उसी शमशान पहुँच जाएँ, हम उनसे अब वहीँ मुलाक़ात करेंगे, शर्मा जी ने फ़ोन कर दिया और कल रात का कार्यक्रम निर्धारित हो गया! अगली रात्रि को दिनेश अपने साथ रजनी को ले आया, मैंने उसकी नाभि फिर देखि, नाभि में गर्भ का स्पंदन आ चुका था! मैंने तब रजनी से कहा, "रजनी, अब तुम संतानोत्पत्ति करने में सक्षम हो गयी हो!" मेरा ऐसा कहते ही वो विस्मयकारी भाव से मेरी ओर पलती और मेरे पांवों में गिर गयी! उसकी आँखों से अश्रु-धारा फूट पड़ी! दिनेश की आँखों में भी आंसू भर आये! वो भी मेरे पाँव छूने के लिए बढ़ा तो मैंने उसको उठा लिया! मैंने कहा, "दिनेश जी, मै आपके पित्रवृत व्यवहार से, रजनी के लिए, देखकर अत्यंत प्रसन्न हूँ! आपका ये स्नेह प्रशंसा योग्य है!

तब मैंने दिनेश को सारी बातें बता दीं, किसने, क्यूँ ऐसी शर्मनाक क्रिया करवाई थी! उसको भी ये सुनकर हैरत हुई, मैंने उसको ये सब रजनी को न बताने के लिए कहा! मैंने तब रजनी को बुलाया!

और धीरे से पूछा, "रजनी, तुम मुझे अपने पति और जेठानी का नाम बता दो"

उसने मुझे नाम बता दिए! मैंने तब दिनेश से कहा, " दिनेश जी, आज से दस महीने बाद मुझे खुशखबरी दे देना!" इसके बाद मैंने रजनी के ऊपर सदा सुखी और गर्भ-सरंक्षण क्रिया कर के, और साथ की साथ रजनी के पति और उसकी भाभी के बीच उच्चाटन क्रिया भी कर दी! फिर उनसे विदा ली! जाते जाते मेरे बहुत मना करने पर भी मुझे २१,००० रुपये मेरे हाथ में थमा कर चले गए!

मै काशी में एक हफ्ते और ठहरा और उसके बाद दिल्ली वापस आ गया! ३ महीनों के बाद दिनेश का मेरे पास फ़ोन आया की रजनी को गर्भ ठहर गया है! रजनी के पति ने नया मकान ले लिया है और उसका उसकी भाभी के प्रति मोह-भंग हो गया है! रजनी को अब प्रेम करने लगा है!

फिर उसके नियत समय पर एक पुत्र जन्मा! और उस पुत्र के नामकरण संस्कार में मै, शर्मा जी के साथ सम्मिलित हुआ! आज रजनी और उसका पति प्रेम-पूर्वक रह रहे हैं!

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------

 


   
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