मैं रुका,
और अश्रा को देखा,
माला अभी भी थी!
हम फिर चल पड़े आगे,
और पहुँच गए उन पत्थरों तक,
वहीँ गाड़ी खड़ी थी!
सामान रखा गाड़ी में,
और सभी एक एक करके बैठे,
मैं भी बैठा, और मेरे संग अश्रा बैठी,
अभी भी मन में बहुत सवाल थे,
खो-खो खेल रहे थे सारे सवाल!
मैं इंजन चालू किया,
और बत्तियां जलाईं,
और अब पीछे की गाड़ी,
कीट-पतंगे झपट पड़े बत्तियों पर!
अब गाड़ी बढ़ा दी मैंने आगे,
और चल दिए,
वो गाँव पीछे छूटता चला गया!
कोई एक घंटे में,
सामान्य रास्ता आ गया,
अब चल दिए थोड़ी गति पकड़ कर,
और कोई दो घंटे के बाद,
हम भरत सिंह के खेतों तक आ पहुंचे थे,
कोई समस्या नहीं आई थी!
आराम से ही आये थे,
अब भरत सिंह के घर की ओर चले,
घुप्प अँधेरा था वहाँ,
बस गाड़ी की बत्तियां ही अँधेरे को चीर रही थीं!
हम आ गए भरत सिंह के घर!
उसी दोपहर बाद गए थे,
उसी रात आ भी गए!
किसी को ये बताऊँ,
तो सलाह दे देगा मानसिक-चिकित्सालय जाने की!
इसीलिए,
चुप रहना ही बेहतर था!
हम घर पहुँच चुके थे,
अब गाड़ी खड़ी की,
और अंदर चले,
घर के लोग जाग गए थे,
पानी पिया,
और फिर हाथ-मुंह धोये!
जो आज देखा था, वो अकल्पनीय तो था ही,
दिमाग को जंग लगाने वाला भी था!
अपनी अपनी चारपाई पर लेट गए,
अश्रा अंदर चली गयी!
नींद नहीं आई सारी रात,
वही सब आँखों के आगे घूमता रहा!
नकुश!
उसकी आवाज़!
महिष,
उसकी आवाज़!
वे सभी लोग!
वे वस्तुएं!
वो बाग़!
वो गाँव!
सब!
किसी तरह उलझे-पुलझे रात काटी,
और सुबह आई!
अब नहाये-धोये!
चाय-नाश्ता भी किया!
अश्रा पास आ बैठी मेरे,
माला उतार दी थी उसने!
कोई एक घंटे का बाद भोजन किया,
और फिर आधा घंटा आराम!
अब वापिस जाने की सोची!
मैं बाबा नेतनाथ से मिला,
भरत सिंह से मिला,
मन्नी से मिला,
बाबा के चरण छुए!
उनके कारण ही ये सब सम्भव हो पाया था!
आखिर में हमने विदा ले ली,
भरत और मन्नी हमे छोड़े आये,
बाबा नेतनाथ अभी यही रुकने थे,
उन्हें यहां से आगे दुर्गापुर जाना था!
हम आये मुख्य सड़क तक,
वहाँ से बस पकड़ी,
और फिर स्टेशन आ गए!
अब इलाहबाद जाना था!
फिर बस पकड़ी,
और इलाहबाद आ गए!
इलाहबाद में दिन भर रहे,
और रात्रि समय भोजन करने के पश्चात,
हमने दिल्ली की गाड़ी पकड़ ली!
अश्रा मेरे साथ दिल्ली ही जा रही थी!
हम अगले दिन दिल्ली पहुँच गए!
वहाँ से सीधे अपने स्थान पहुंचे हम!
स्टेशन से यहां तक आने में पूरे चार घंटे लग गए!
बड़ा बुरा हाल था यातायात का!
वहाँ पहुंचे,
और ढेर हुए!
शर्मा जी दूसरे कक्ष में जा लेटे!
न नहाये, न धोये!
सीधा बिस्तर पकड़ लिया!
और जब नींद खुली,
तो पांच बजे का समय था!
अश्रा सो रही थी!
मैं जाकर नहाने चला गया!
शर्मा जी नहा चुके थे!
मैं जब कक्ष में आया तो अश्रा भी जाग चुकी थी!
मैंने एक सहायिका को बुलाया,
वो अश्रा को ले गयी,
स्नान के लिए!
अश्रा ने स्नान कर लिया था, वो आई और बैठी!
अपना श्रृंगार करने लगी!
मैं शर्मा जी के कक्ष में चला गया!
शाम हो ही चुकी थी!
और कई दिनों से,
कड़वा पानी नहीं पिया था!
प्यास लगी थी!
सहायक से सामान आदि मंगवाया और खोल ली हमने,
हर रोग को हरने वाली बूटी!
रात नौ बजे तक, हम निफराम हो गए!
अब मैं चला अपने कक्ष की ओर!
मदिरा से तो निबट लिया था,
पछाड़ दिया था उसे!
अब अश्रा से निबटना था!
बहुत तंग किया था मुझे उसने!
अब मेरी बारी थी!
मैं अंदर गया!
वही गाउन पहना था उसने!
जो उस रात होटल में पहना था!
पहली बार मुझे देख,
आँखें नीची कीं उसने!
ये समर्पण था!
अब सिंह के सामने, बोटी रखी हो,
तो बोटी तो बोटी, हड्डी तो हड्डी!
वहाँ की मिट्टी भी चाट जाए!
अब बोटी चबाने का वक़्त आ चुका था!
और अश्रा!
अश्रा तो वैसे ही गोल-बोटी थी!
मित्रगण!
अश्रा एक माह मेरे संग रही!
एक माह के बाद,
लाख समझाने के बाद,
मैं उसको छोड़ आया!
तब भी वहां तीन दिन रहा!
उसके बाद, उसका मेरा सिलसिला,
कभी नहीं टूटा!
आज तक नहीं!
कुछ समय के बाद,
अश्रा फिर से आएगी दिल्ली!
अश्रा हर पल मेरे संग रही!
मुझे भी बहुत अच्छा लगा उसको संग रखना!
और वो गाँव!
वो नहीं भूल सकता कभी!
कभी भी नहीं!
वो पंद्रह मिनट में,
बीस घंटे कैसे गुजर गए,
ये मैं आज तक नहीं समझ सका!
बाबा नेतनाथ इस वर्ष मार्च में,
देह-त्याग कर गए,
मैं अंत्येष्टि में शामिल नहीं हो सका,
मैं तेरहवीं में गया था वहाँ,
बाबा नेतनाथ से कुछ नहीं सीख सका,
ये मलाल जीवन भर सालेगा मुझे!
परन्तु,
उनका सान्निध्य मिला,
ये भी किसी उपकार से कम नहीं!
बाबा नेतनाथ अविवाहित ही रहे,
कोई संतान नहीं थी,
उनका डेरा आज मन्नी संचालित करता है!
मन्नी!
ये मन्नी ही था जिस कारण मैं वहाँ,
जा सका!
मन्नी मेरा आज बहुत अच्छा मित्र है!
-------------------साधुवाद! -------------------
