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वर्ष २०१२ इलाहबाद कि घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण! ये समस्त संसार आश्चर्यों से भरा पड़ा है! ऐसे आश्चर्य जो आपने कभी देखा नहीं होगा! मित्रो! मै जब साधना से अलग जब कहीं प्रवास या यूँ कहें विश्राम करता हूँ तो ये समस्त संसार मिथ्या लगता है! जब मै XX वर्ष का था तो एक लेखक बनना चाहता था! मेरे दादा श्री उन दिनों इलाहबाद में अपने आश्रम में साधनालीन रहते थे, मुझे पित्र-सुख अल्प मात्र में मिला है, मेरे दादा श्री ने मुझे कभी पिता की कमी नहीं अखरने दी! मेरे दादा श्री को मेरा कोटि कोटि नमन! उन्होंने १०६ वर्ष की अवस्था में देह-त्याग किया था! एक माह पहले ही घोषणा कर दी थी! परन्तु तब तक मेरे दादा श्री ने मुझे पूर्णतः पारंगत कर दिया था! मित्रगण! मैं शिक्षा-ग्रहण का अभ्यर्थी हूँ! निरंतर पल, प्रतिपल कुछ न कुछ सीखता रहता हूँ! प्रकृति में ज्ञान बिखरा पड़ा है! बस, देखने वाला और ग्रहण करने वाला चाहिए! मित्रो! जिस वस्तु, कण आदि पर गुरुत्व का प्रभाव पड़ता है, वो स्थूल-तत्व है! और परम-तत्व ग्रहण करने हेतु अभ्यास अति-आवश्यक है! ऐसा नहीं कि ये दुर्लभ है, नहीं, बस लग्न और निष्ठां चाहिए! चलिए छोडिये मित्रगण! मै कोई प्रवचनी-साधू नहीं, अघोरी हूँ! जीवन का मोल जानता हूँ! भाव का आदर करता हूँ! तुच्छ प्राणी हूँ! इस संसार में जो मोक्ष-हेतु निरंतर भटक रहा है!!

 

ये घटना वर्ष २०१२ जनवरी की है, मै उन दिनों चेन्नई से लौटा था, किसी कार्य से, थकान थी सो, दो दिनों तक विश्राम किया और फिर नित्य नियमों में उलझ गया! कोई एक हफ्ते बाद मेरे पास दो महिलायें आयीं, वैसे मै महिलायों से अपने स्थान पर कदापि नहीं मिलता परन्तु इनमे से एक मेरे परिचित गुप्ता जी की धर्मपत्नी भी थी, अतः मुझे मिलना ही पड़ा!

"जी कहिये! कैसे आना हुआ आपका आज? गुप्ता जी कहाँ है?" मैंने पूछा,

"उन्होंने ही भेजा जी मुझे आपके पास" वो बोलीं, इनका नाम सीमा है,

"अच्छा, कोई बात नहीं, कारण बताइये?'' मैंने कहा,

"गुरु जी, क्या बताऊँ मै आपको, ये मेरी सबसे छोटी बहन है, नविता, शादी हुए २ साल हुए हैं लेकिन कमबख्त इसके पति ने एक और औरत कर ली है, कोई जादू-टोना करने वाली औरत, अब इसकी जिंदगी हराम कर रखी है उस औरत ने है" वो बोली,

मैंने नविता को देखा, बेचारी मुंह झुकाए बैठी थी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"क्या बात है नविता? मुझे बताओ?" मैंने कहा,

"गुरु जी, मेरा जीवन नरक बना रखा है मेरे पति ने, मारते हैं, पीटते हैं, मेरी बात सुनते नहीं,बस वो केवल उस बंगालन औरत की ही बात करते हैं, सभी ने समझाया है, कई बार मेरे घरवालों ने गुहार की है लेकिन कुछ असर नहीं पड़ा उन पर" नविता ने बताया

"सीमा जी ने बताया कि आपके पति ने एक और औरत कर ली है, ये कर ली है का अर्थ क्या है? शादी?" मैंने पूछा,

"शादी नहीं की है, लेकिन वो इनके लिए इनकी बीवी ही है, और वो बंगालन औरत के ये पति जैसे" नविता बोली,

"तो क्या वो औरत शादी-शुदा नहीं है?" मैंने पूछा,

"नहीं, विधवा है वो, ४ साल पहले उसके पति का देहांत हुआ, उसके कोई औलाद भी नहीं है" उसने बताया,

"अच्छा, तो रहती कहाँ है? कोई अन्य रिश्तेदार हैं उसके वहाँ?" मैंने पूछा,

"हाँ, उसके अन्य रिश्तेदार हैं वहाँ, उम्र में इनसे बड़ी भी है कोई ५ या ६ साल" वो बोली,

"तो इनकी आपस में मुलाक़ात कैसे हुई?" मैंने पूछा,

"कोई साल भर पहले, वो इनके शोरूम में आई थी, नौकरी करने, मेरे पति का अपना एक शोरूम है कपड़ों का, घडी इत्यादि भी रखी हुईं है, बस तब से इनमे घनिष्ठता हो गयी है" वो बोली,

"आज भी वो वहीँ नौकरी करती है?" मैंने पूछा,

"अब तो मालकिन हो गयी है शोरूम की वो गुरु जी!" उसने बताया,

"अच्छा, ठीक है, मै देखता हूँ!" मैंने कहा,

वो दोनों उठीं और नमस्कार करके चली गयीं! आरम्भ में ये प्रकरण मुझे मोहन-विद्या का लगा, लेकिन उसके लिए मुझे इन दोनों में से एक से मिलना था, अर्थात देखना था, मैंने सोचा कि क्यूँ न शोरूम पर ही चला जाए! मैंने शर्मा जी को फ़ोन किया और उनको बुला लिया, वो एक घंटे में आ गए आते ही बोले," नमस्कार गुरु जी!"

"नमस्कार शर्मा जी" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"कोई विशेष कार्य?" उन्होंने पूछा,

"हां, आप एक काम करें, गुप्ता जी से नविता के पति के शोरूम का पता ले लीजिये, हमको वहाँ जाना है, एक आवश्यक काम है" मैंने कहा,

"अभी लीजिये, अभी लेता हूँ पता" उन्होंने कहा और गुप्ता जी को फ़ोन कर दिया, पता भी ले लिया!

"लीजिये गुरु जी, ये रहा पता" वे बोले,

"ठीक है, एक काम करते हैं, हम १ बजे वहाँ चलते हैं, मुझे दोनों में से एक को देखना है, चाहे वो बंगालन औरत या फिर नविता का पति" मैंने कहा,

"जैसी आज्ञा आपकी!" उन्होंने कहा,

फिर हम थोड़ी देर बातें करके ठीक एक बजे शोरूम के लिए निकल पड़े! सवा घंटे के बाद शोरूम पहुंचे! एक भव्य शोरूम! काफी बड़ा! सुसज्जित! जिस स्थान पर ये शोरूम है वो एक व्यवसायिक क्षेत्र है! हम शोरूम में घुसे! अन्दर खचाखच भीड़ लगी थी! लोग जैसे एक दूसरे से अटे पड़े थे! नविता के पति का काम बढ़िया चल रहा है, ये पता चल रहा था!

हम एक काउंटर पर आये, एक आद कमीज़ निकलवाई, और फिर दूसरी और फिर तीसरी! शर्मा जी उस काउंटर-गर्ल को बातों में उलझाए पड़े थे, यहाँ मैंने अपनी नज़र दौड़ाई! तभी मेरी नज़र एक सुसज्जित महिला पर पड़ी, ये महिला ग्राहक तो कतई नहीं थी, क्यूंकि वहाँ के काम करने वाले कर्मचारियों से वो बातें कर रही थी! हरी साड़ी में, बंगाली रिवाज में पहनी! ऊंची कद-काठी, और गौर-वर्णी!

मैंने काउंटर-गर्ल से पूछा, "सुनिए, ये श्रीमती जी कोमल तो नहीं? पहले करोल बाग़ में थीं क्या?" मैंने उस हरे रंग की साड़ी पहने हुए उस औरत की तरफ इशारा करके कहा!

" नहीं सर, ये तो हमारी मैनेजर हैं अरिमा चटर्जी" उसने कहा,

"अच्छा, क्षमा कीजिये, भूलवश ऐसा हुआ" मैंने कहा,

"कोई बात नहीं सर!" वो बोली!

आखिर में शर्मा जी को कोई कमीज़ पसंद नहीं आई!! हम वहाँ से बाहर आ गए! आके गाडी में बैठे! शर्मा जी बोले, "लीजिये गुरु जी, हो गया काम!"


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ शर्मा जी! लेकिन कमाल है, ये अरिमा एक साल में ही यहाँ मैनेजर बन गयी!" मैंने हँसते हुए कहा,

"हाँ! लेकिन गुरु जी, बेचारी नविता का भी भला करो!" वे बोले,

"शर्मा जी, आज मै इस अरिमा का और नविता के पति का उच्चाटन-कर्म करूँगा! ये जैसे आई थी, वैसे ही चली जायेगी!" मैंने कहा,

"ठीक है गुरु जी, किसी का परिवार बच जाए, परमार्थ का काम है ये" वे बोले,

"हाँ शर्मा जी, बिलकुल सही कहा आपने!" मैंने समर्थन दिया!

उसके बाद हम रास्ते में एक जगह रुके, थोडा सामान लिया और फिर वापिस अपने स्थान के लिए चल पड़े! शोरूम वाला काम हो ही चुका था!! मैंने उसी रात नविता के पति और अरिमा का उच्चाटन-कर्म आरम्भ कर दिया, तीन दिनों के प्रयोग के बाद उन दोनों में, ऐच्छिक, उच्चाटन हो जाने वाला था! मैंने लगातार तीन दिनों तक ये कर्म किया और अब उसका प्रभाव आरम्भ होने वाला था! मैंने कर्मी समाप्त होते ही नविता को फ़ोन पर ये बता दिया और हर तीसरे दिन मुझे खबर करते रहने को कहा! उसने मान लिया!

तीसरे दिन नविता का फ़ोन आया, उसने बताया कि उसके पति कल से उदास उदास से हैं, बातें भी नहीं कर रहे है, और खाना भी नहीं खा रहे हैं सही तरह से हमेशा खोये खोये से रहने लगे हैं, शोरूम से भी जल्दी आने लगे हैं!! मैंने उसको बताया कि अब प्रभाव होने वाला है, इसीलिए वो अब मुझे १५ दिनों के बाद फ़ोन करके बताये!

१५ दिन के बाद भी कोई फ़ोन नहीं आया, लेकिन २ हफ्ते बाद नविता सीमा के साथ मेरे पास पुनः आ गयीं! नविता ने बताया कि नविता के पति ने उस बंगालन औरत को वहाँ से निकाल दिया है!

मैंने कहा, "लीजिये! हो गया आपका काम!"

"गुरु जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद, नहीं तो मुझे अपना जीवन नरक लगने लगा था, मुझे मेरी खुशियाँ लौटाने के लिए आपका धन्यवाद!" उसने हाथ जोड़ कर कहा,

"ठीक है, कोई बात नहीं, इस से एक परिवार बसता है, और भला क्या चाहिए!" मैंने कहा,

"सब आपकी कृपा है गुरु जी!" नविता ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"आप अब अपना परिवार संभालिये, अब आपके पति आपके साथ पतिवृत व्यवहार करंगे! और आपको भी अपना दाम्पत्य-जीवन उनके साथ पत्निवृत निभाना चाहिए!" मैंने कहा,

उसके बाद वो दोनों उठीं और धन्यवाद करके वापिस चली गयीं!

"लीजिये शर्मा जी! जैसा आपने कहा था वैसा कर दिया!" मैंने कहा,

"परमार्थ किया गुरु जी आपने!" वे बोले,

"एक शंका है मेरे ह्रदय में" वे बोले,

"बताइये? कैसी शंका?" मैंने पूछा,

"यदि बंगालन ने फिर से कोई मोहन-तंत्र करवाया तो? वो बाज तो नहीं आएगी?" वे बोले,

"हाँ, करवा सकती है, लेकिन मेरा उच्चाटन काटने के लिए ऐरा-गैरा कोई काम नहीं करेगा!" मैंने बताया!

"फिर तो ठीक है!" वे बोले,

"और अगर कुछ हुआ भी तो देख लेंगे!" मैंने कहा,

"हाँ, नविता तो बता ही देगी" वे बोले,

"हाँ, ऐसा-वैसा कुछ होगा तो अवश्य ही बताएगी!" मैंने कहा,

"नविता के पति ने उसको निकाला है तो हो सकता है वो न भी करे, या कर भी दे, खैर जो होगा देखा जाएगा!" वो बोले,

"हाँ, पता चल जाएगा हमे!" मैंने कहा,

उसके बाद शर्मा जी ने एक दो और जानकारों को फ़ोन किये और सामान लाने के लिए गाडी स्टार्ट करके वहाँ से चले गए!

शर्मा जी ने शंका तो सही जताई थी! मेरी शंका भी बढ़ गयी! फिर सोचा, चलो नविता तो बता ही देगी!

आधे घंटे बाद शर्मा जी सारा सामान ले आये! और हम उसी में रम गए! करीब ३ महीने गुजर गए, नविता का फ़ोन हर १५-१६वें दिन आ जाता था, सब कुछ ठीक था वहाँ! नविता के पति ठीक हो गए थे, मोहन-मुक्त हो गए थे! बंगालन का कुछ अता-पता नहीं था! वो कहाँ गयी


   
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श्रीशः उपदंडक
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किसी को मालूम नहीं था! मैंने भी चैन की सांस ली, चलो मामला आखिर में निबट ही गया! मै भी इत्मीनान से रहने लगा! इसी तरह चार महीने बीत गए!

एक दिन, मेरा फ़ोन बंद था, मै कुशांग-मंत्र जागृत करने में व्यस्त था, तो शर्मा जी के पास नविता का फ़ोन आया, कुछ गड़बड़ हो गयी थी वहाँ! शर्मा जी मेरे पास तभी आ गए, रात के पौने ग्यारह बजे थे, मै साधना से उठ चुका था, मै कमरे से बाहर आया, तो सामने शर्मा जी मुंह में सिगरेट लगाए बेचैनी से टहल रहे थे, मुझसे रहा नहीं गया, मैंने पूछा, "शर्मा जी? आप? इस वक़्त? क्या बात है?"

"गुरु जी, एक बड़ी गड़बड़ हो गयी है नविता के यहाँ" वो बोले,

"गड़बड़? कैसी गड़बड़?" मैंने पूछा,

"नविता के पति का तीन दिन पहले एक एक्सीडेंट हुआ, अस्पताल में दाखिल कराया गया, बेहोश था, होश में आने पर किसी को नहीं पहचाना उसने" वो बोले,

"एक्सीडेंट? कैसे हुआ?" मैंने पूछा,

"वो घर आ रहा था वापिस शोरूम से, रास्ते में गाडी के ब्रेक फेल हुए, गाडी सामने खड़ी एक बस से टकराई, ऐसा मुझे नविता ने बताया" वो बोले,

"हम्म! ठीक है, अब कहाँ है वो?" मैंने पूछा,

"अस्पताल में ही है अभी" वे बोले,

"ठीक है, हम कल चलते हैं वहाँ" मैंने कहा,

"ठीक है, मै आज यहीं ठहरता हूँ, कल सुबह चलते हैं, बेचारी का रो रो के बुरा हाल था गुरु जी" वे बोले,

"कोई बात नहीं, कल चलते हैं, देखते हैं" मैंने कहा,

उस रात शर्मा जी वहीँ ठहरे, हम सुबह उठे, नहाए धोये और नविता को फ़ोन किया, नविता ने बता दिया अस्पताल का पता और कमरा नंबर आदि! हम निकल पड़े!

हम अस्पताल पहुंचे, एक घंटे से अधिक लग गया हमे, हम सीधे कमरे की तरफ ही गए, नविता वहीँ खड़ी थी, हमे देख रो पड़ी बेचारी, साथ में सीमा और गुप्ता जी भी खड़े थे, मैंने गुप्ता जी से पूछा, " क्या हुआ इनको?"


   
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श्रीशः उपदंडक
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"गुरु जी, वहाँ खड़े लोगों ने बताया कि इनकी गाड़ी ने अचानक रफ़्तार पकड़ी और सामने कड़ी एक बस से टकरा गयी, शायद ब्रेक फेल हो गए हों, इनके सर में चोट आई है, कल होश आया था, लेकिन किसी को पहचाना ही नहीं, डॉक्टर्स कह रहे हैं कि दिमाग पर गंभीर चोट लगी है, उसीका ऐसा प्रभाव है, अभी इलाज चल रहा है, सब ठीक हो जाएगा"

"क्या मै उसको देख सकता हूँ?" मैंने कहा,

"अभी तो आई.सी.यू. में भर्ती है, अभी नहीं मिल सकता कोई उनसे" वो बोले,

"अच्छा ठीक है, कोई बात नहीं, बाद में मिल लेंगे उस से" मैंने कहा,

फिर मैंने नविता को अपने पास आने का इशारा किया, नविता आई तो मैंने पूछा, "घर में सब कुछ कैसा है?"

"घर में अब सब ठीक था, मेरे से भी सौहार्दपूर्ण व्यवहार कर रहे थे, मुझे ३-४ बार शोरूम भी ले गए थे, कह रहे थे कि मै वहाँ मैनेजर की तरह काम संभालूं, लेकिन उसके एक दिन बाद ही इनका एक्सीडेंट हो गया" उसने रो के कहा,

"घबराओ नहीं, मुझे पता लगाने दो, कि ये दुर्घटना आकस्मिक है अथवा कोई चाल है, मै आज रात्रि-समय इसका पता लगा लूँगा, मुझे इसके स्वास्थय के बार में बताते रहना!" मैंने कहा,

"जी गुरु जी!" उसने कहा,

इसके बाद मैंने उन लोगों से विदा ली और वापिस अपने स्थान के लिए निकल गए! मै उसी रात क्रिया में बैठा, मंत्र जागृत किये और अपना एक खबीस हाज़िर किया, कई लोग खबीस को मुवक्किल भी कहते हैं, मेरा खबीस हाज़िर हुआ, मैंने उसको उसका भोग दिया! और उसका काम उसको बताया, खबीस तभी रवाना हुआ और फिर कोई आधे घंटे के बाद हाज़िर हुआ! बकौल खबीस, ये एक दुर्घटना नहीं बल्कि ये मारण-प्रयोग था, जिसको करने वाली एक औरत है और वो औरत, जिसका कि नाम खेटकी है, जिसने ये प्रयोग किया है वो आसनसोल, पश्चिमी बंगाल में रहती है, जिसने करवाया है वो है अरिमा! इतना बता कर खबीस वापिस चला गया! बस! जिसका मुझे संशय था वही हुआ! अरिमा अपनी नीच हरकतों से बाज़ नहीं आई थी! मेरा उच्चाटन जब नहीं कटा तो मारण-प्रयोग करवा दिया उसने!

कोई भी मारण प्रयोग ६ दिनों की समयावधि उपरान्त दोहराया जाता है, ४ दिन बीत चुके थे और नविता का पति अभी हॉस्पिटल में ही था, अर्थात अगला मारण प्रयोग २ दिनों के बाद दोहराया जाएगा! इस बार ये प्रयोग अस्पताल में ही होगा! अब मेरा अस्पताल जाना आवश्यक था, मैंने उसी रात मारण-शमन क्रिया आरम्भ की और एक बोतल पानी अभिमंत्रित


   
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श्रीशः उपदंडक
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किया! वो पानी मुझे नविता को देना था, अतः में सुबह सगले दिन, शर्मा जी के साथ अस्पताल पहुंचा! मैंने वो पानी नविता को दिया और उसको समझा दिया, नविता को ये पानी दिन में तीन बार पीना था, दो दो बूँद के रूप में और अपने पति के बिस्तर में भी इसका छींटा देना था, मारण-शक्ति वापिस पलट जायेगी उस से! नविता का पति अब आई.सी.यू. से साधारण कमरे में आ गया था, हालत कुछ ठीक हो चली थी, नविता को मै समझा कर वापिस आ गया!

आज वो दिन आ गया था जब मारण-प्रयोग होना था, नविता का पति अभी अस्पताल में ही था, अतः मैंने रात्रि-समय अपना एक खबीस वहाँ तैनात कर दिया! और मै क्रियारत हो गया! रात ११ बज कर २० मिनट पर मारण-प्रयोग वहाँ से हुआ, यहाँ तक पहुंचा लेकिन मेरी ढाल से टकरा कर वापिस हो चला! अब उस औरत को पता चल गया होगा कि उसका मार्ग किसी ने रोक लिया है!

अब या तो वो मारण-प्रयोग करेगी नहीं या फिर और प्रबल-वेग से प्रहार करेगी! उस रात और कोई प्रयोग नहीं हुआ, मै करीब २ बजे क्रिया से उठा!

सुबह मैंने नविता को फ़ोन किया तो उसने बताया कि उसके पति अब ठीक से हो चले हैं, पहचान भी रहे हैं और बातें भी कर रहे हैं, ये बढ़िया खबर थी, यानि कि मै अब उस से बात कर सकता था, मैंने शर्मा जी को सारी बातों से अवगत कराया और हम सुबह १० बजे अस्पताल के लिए चल पड़े!

११ बजे करीब अस्पताल पहुंचे, नविता के पति बिस्तर पर बैठे हुए थे, गुप्ता जी और सीमा, और अन्य परिवारजन वहाँ थे, मैंने नविता से कह कर सभी को बाहर भिजवा दिया, नविता ने मेरा उनसे परिचय करवाया! मैंने नविता के पति को देखा, वो करने की हालत में थे, मैंने पूछा," एक बात बताइये, ये जो अरिमा थी, ये बंगाल में कहाँ की रहने वाली थी?"

"जी आसनसोल की" उसने बताया,

"अच्छा! ठीक है!" मैंने हाँ में गर्दन हिलाई!

"जब आपने उसे काम से निकाला तो उसने कुछ कहा था?" मैंने पूछा,

"जी हाँ, उसने कहा था, कि मै उसके साथ बहुत गलत कर रहा हूँ और एक ना एक दिन इसके परिणाम मुझे भुगतने पड़ेंगे" उसने बताया,

फिर मैंने अब तक की सारी घटनाएं उनको बता दीं और आश्वासन दिया कि चिंता न करें! अब कुछ नहीं होगा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"काम से निकाले जाने के बाद कभी उसने संपर्क साधने की कोशिश की?" मैंने पूछा,

"फ़ोन पर तो नहीं, लेकिन काम से निकाले जाने के कोई दस दिनों के बाद वो एक औरत के साथ आई थी, लेकिन मैंने उसने कोई बात नहीं की थी और उनको निकाल दिया था" उसने बताया!

"अच्छा! तो अरिमा के साथ वो औरत खेटकी ही होगी! चाल कल गयी वो आपके साथ! खैर, अब मै हूँ, मै देख लूँगा इस खेटकी का बूता! आप चिंता न करें, बस स्वास्थय लाभ करें" मैंने कहा!

इसके बाद हम वहाँ से वापिस आ गए! अब मैंने और विलम्ब करना उचित ना समझा मै उसी रात क्रिया में बैठा और अलख उठायी, अलख भोग दिया और अपना त्रिशूल अभिमंत्रित कर लिया! भूमि-पूजन किया और फिर अलख का नमन किया! क्रिया आरम्भ हो गयी थी! मैंने महा-माया प्रबल शक्ति का आह्वान किया! शक्ति प्रकट हुई और मैंने उसको खेटकी की तरफ मोड़ दिया! उसने खेटकी के स्थान पर जा कर वहाँ से शीघ्र ही वापिस लौट आई! लेकिन खटकी वहाँ नहीं थी! नहीं थी का अर्थ ये भी था कि वो किसी सुरक्षित आवरण से ढकी हुई थी! महा-माया वापिस हुई! मैंने नमन किया और वो वापिस लोप हुई! अब मुझे उसको यानि खेटकी को ढूंढना था! मैंने अब अपना इबु-खबीस हाज़िर किया, वो हाज़िर हुआ! मैंने उसको पता निकालने भेजा! पांच मिनट में वो आया वापिस! पता चला कि खेटकी वहाँ नहीं है वो दुर्गापुर चली गयी है! मैंने अनुमान लगाया कि शायद किसी की मदद लेने गयी होगी! मुझे क्रिया रोकनी पड़ी! अब नए सिरे से रणनीति बनानी थी! मै तब क्रिया से उठ गया!

मैंने अगले दिन अपने दो महाप्रेत बुलाये! और उनको खेटकी का सही पता लगाने भेजा! मेरे प्रेत दोपहर में गए थे लेकिन आये संध्या समय! उन्होंने जो बताया वो विस्मयकारी था! ये खेटकी अपने गुरु जोगिया नाथ के पास गयी थी, सारी बात बताने, जोगिया नाथ ने मेरे दोनों प्रेतों को पकड़ लिया था! और सजा दी थी! बाद में उनको छोड़ दिया था, एक धमकी के साथ कि मै उसके रास्ते से हट जाऊं! महाप्रेतों ने जो एक बात विस्मयकारी मुझे जो बतायी वो ये थी कि जोगिया नाथ को एक शाबर-कन्या सिद्ध थी! ये मेरी चिंता का विषय था! शाबर-कन्या स्वयं-सिद्ध परम शक्ति होती है! इस से लड़ने-भिड़ने का अर्थ है, मृत्यु को आमंत्रित करना! इसी शाबर-कन्या के बल पर जोगिया नाथ ने मुझे मेरे प्रेत पकड़ कर चुनौती दे डाली थी!

मैंने सारी बातें शर्मा जी को बतायीं, उनको भी चिंता हुई, मै उस से पहले किसी शाबर-कन्या वाले तांत्रिक से नहीं उलझा था! अतः मुझे अब किसी की मदद लेनी थी, सहसा मुझे अपने एक जानकार औघड़ खचेडू नाथ का स्मरण हुआ, उसने एक बार किसी शाबर-कन्या वाले एक तांत्रिक को हराया था और खाली कर दिया था! ये औघड़ असम में रहता था!


   
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मैंने उस से बात की तो उसने बताया कि शाबर-कन्या वाले तांत्रिक की एक ही कमजोरी होती है और वो कमजोरी है, शाबर-कन्या महा-प्रबल और तीक्ष्ण वार करने वाली होती है, लेकिन रात्रि में तीसरे प्रहर में ये अपनी शक्ति का पुनः संचरण करती है, यदि इसके साथ लड़ाई की जाए तो उस तांत्रिक को तीसरे प्रहर तक उलझा के रखा जाए तो इसकी कमर तोड़ी जा सकती है! उसने भी ऐसे ही दूसरे तांत्रिक की कमर तोड़ी थी!

खचेडू नाथ ने तरीका बता दिया था! इसकेलिए मुझे शीघ्र ही शक्ति-संचार करना था! अतः मै रात्रि-समय सारे आवश्यक सामान के साथ क्रिया में बैठ गया!

मैंने एक एक करके सभी आवश्यक शक्तियों का आह्वान किया और उनको जागृत एवं तत्पर किया! किसी प्रकार की चूक की सम्भावना होने पर भयानक अनिष्ट हो सकता था! मै एक एक करके शक्तियां एकत्रित करने लगा! और फिर अगली रात! संग्राम की रात! मै अपने स्थान पर बैठा और जोगिया अपने स्थान पर! हमारे बीच भूत-प्रेत का संग्राम नहीं था! बल्कि शक्ति और सामर्थ्य का संग्राम था! जो हारा वो समाप्त! जो जीता वो विजय-रत्न से सम्मानित! जोगिया ४५ वर्षीय प्रबल औघड़ था! उसने इतनी कम उम्र में यदि शाबर-कन्या सिद्ध की थी तो मुझे भी उसका लोहा मानना पड़ा था! उसका मेरे प्रेतों को पकड़ना और फिर सजा देकर छोड़ देना! इसका अर्थ स्पष्ट रूप से चुनौती के साथ साथ दम-ख़म दिखाना भी था!

मै अपने स्थान पर बैठा! आज शैव-अलख उठायी! महा-प्रसाद भोग दिया गया! मदिरा भोग से परिपूर्ण किया गया! मांस-मदिरा से थाल सजा दिए गए! मैंने अपना त्रिशूल उठाया और सिंहनाद किया! कपाल-पूजन कर क्रिया में क्रियारत हो गया! त्रिशूल के फलों पर अस्थि-माल सुसज्जित किया! ११ अस्थि-माल मैंने स्वयं धारण किये! कच्ची कलेजी के टुकड़े कर उनका हार बनाया और स्वयं धारण किया! भुजाओं पर अस्थि-बंध बांधे और कलाइयों में अभिमंत्रित-काल-रुद्राक्ष! भस्म-स्नान किया! रक्त से टीका किया! रक्त से नाभि-वरण किया! रक्त से जिव्हा-वरण किया! और रक्त के एक घूँट को विजय-मंत्र पढ़ कर गले से नीचे उतार दिया!

वहा उस औघड़ ने अपने हिसाब से समस्त तैयारियां कीं! उसे मेरे पल पल की खबर थी! जैसे की मुझे! इस तरह के संग्राम में तंत्र का एक अकाट्य नियम है, किसी के भी खबरी-खबीस पकडे नहीं जायेंगे! ना मै पकडूँगा और ना ही वो! खेटकी वहाँ तैयार थी अपना मारन पूर्ण करने को! उसने हल्दी से रंगे पीले चावल लिए, अभिमंत्रित किये और एक देसी लाल मुर्गे को खिलाये और फिर उसकी गर्दन एक ही झटके में अलग कर दी! रक्त एक लोटे में एकत्रित किया गया! और मारण-प्रयोग आरम्भ हुआ! जोगिया अपने निरीक्षण में ये सब करवा रहा था!

उसने मारण-चक्र उछल, वो वहाँ से चला नविता के पति के नाम का! मैंने उसको बीच में ही रोका! और वापिस किया! जोगिया की त्योंरियाँ चढ़ गयीं! और मुझे हंसी आ गयी!


   
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जोगिया ने अपना त्रिशूल भूमि पर तीन बार मारा! और नविता के पति का नाम लेकर एक शक्ति को रवाना किया, मैंने उसको बीच मार में रोका! शक्ति वापिस हुई! उसने फिर से तीन बार त्रिशूल मारा और फिर एक नयी शक्ति को भेजा! मैंने उसको भी वापिस कर दिया!

वो ठहाका मार के उठा! और अलख को नमन किया! दोनों हाथ ऊपर उठाये और फिर अपने एक हाथ से दूसरे हाथ की हथेली पर चीरा लगाया! रक्त की बूँदें भूमि पर गिरी! और तब वहाँ यम-करालिका प्रकट हुई! ये यम-करालिका एक मुड़े पर बैठी हुई प्रकट होती है, शरीर पर कोई त्वचा नहीं होती बस मांस के लोथड़े और आंतें इत्यादि होती हैं! मुझे घबराहट सी हुई अब! मुझे अब उसको रोकना था, मैंने महा-ताक्षिकी का आह्वान किया! ये शक्ति इसको रोकने में समर्थ है! मेरी शक्ति वहाँ से दौड़ी और यम-करालिका को वापिस जाना पड़ा! यम-करालिका के लोप होने पर जोगिया बौरा गया! मै यही चाहता था, घमंडी को और उकसाओ, उसके शिखर तक लाओ और फिर अमोघ वार करो! जब विवेक व्यक्ति का साथ छोड़ देता है तो काल उसका हरण हेतु आगे बढ़ आता है! यही अर्थ ये जोगिया नहीं समझ पा रहा था!

धीरे धीरे विवेक उसका साथ छोड़े जा रहा था!

जोगिया बैठा और मंत्रोच्चार आरम्भ किया! उसने खेटकी को वहाँ से हटा दिया! वो बार बार रक्त और मांस के छींटे अलख में डाल कर शक्ति का आह्वान कर रहा था! उसके मंत्र में अंतिम शब्द 'वाचा' था! यानि कोई अमोघ शाबर वार! मै भी तत्पर था!

उसने १० मिनट के बाद अमोघ काम्या-कन्या प्रकट कर दी! उन्मत्त कन्या! मद में उन्मत्त! शत्रु को छिन्न-भिन्न करने हेतु सदैव तत्पर! मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ! ऐसा प्रतापी औघड़ और ऐसे मलेच्छ कार्य!

उसने काम्या-कन्या का भोग उसको दिया और वो शत्रु भेदन कार्य हेतु अग्रसर हुई! यहाँ मैंने कौदंड-कन्या, एक आसुरिक कन्या उत्पन्न की और अपने प्राण-रक्षा हेतु अपने स्थान पर तैनात कर दिया! काम्या-कन्या पलक झपकते ही मेरे यहाँ प्रकट हुई! परन्तु कौदंड-कन्या को देख ठहर गयी! उसकी प्रदीप्ति अवशोषित हुई! कुछ क्षण वहाँ रह कर वो मेरे यहाँ से ही लोप हो गयी!

जोगिया हैरान! क्रोधावेश में आ करा उसने आखिर शाबर-कन्या का आह्वान किया! शाबर-कन्या उसे सिद्ध थी अतः पलक झपकते ही वो वहाँ प्रकट हो गयी! उसने उसको मेरी दिशा में भेजा! मेरी कौदंड-कन्या वहीँ कड़ी थी, शाबर-कन्या के आते ही मेरे शरीर में भयानक शूल उत्पन्न हुआ! शरीर में जैसे विद्रूप्तता आ गयी हो! श्वास बाधित हुआ! तीसरा प्रहर आने में अभी समय शेष था,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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Topic starter  

मैंने भद्रिका का आह्वान किया! भद्रिका हालांकि उसको रोकने में सक्षम नहीं थी, पर समय व्यतीत किया जा सकता था!

मै पीड़ा सहते हुए संग्राम में जुटा था! मेरी एक एक जागृत शक्ति सुप्त्प्राय होने लगी थी! और तभी शाबर कन्या का आधा शरीर लोप हुआ! वो अब शक्ति-संचार करने वहाँ से लोप हुई! मेरे शरीर की पीड़ा का अंत हुआ, मै संयत हुआ और महाप्रबल शक्ति लौह-गणिका का आह्वान किया! वो प्रकट हुई और मैंने उसको शाष्टांग प्रणाम किया और उसको उसका उद्देश्य बता दिया!

लौह-गणिका वहाँ पहुंची! जोगिया की आँखें फटी की फटी रह गयीं! उसकी अलख बुझ गयी! त्रिशूल हाथ से छूट गया! इस से पहले वो कुछ करता लौह-गणिका ने उसको हवा में उठाया और एक ऊंचे पेड़ पर जाके दे मारा! उसके प्राण-पखेरू उसके सम्मुख नृत्य करने लगे! मैंने लौह-गणिका को वापिस बुला लिया और वो अंतर्ध्यान हो गयी! मै विजयी हुआ! मैंने अपने गुरु की, और अघोर-पुरुष की वंदना की!

जोगिया बच गया था! लेकिन नीचे गिरने से उसको गंभीर चोटें आई थीं, मष्तिष्क दिग्भ्रमित हो गया था उसका! वो सबकुछ भूल चुका था! अब केवल जीवित मृतदेह शेष बचा था!

नविता के पति को स्वास्थय लाभ हुआ, उनका दाम्पत्य जीवन सुकून से बीत रहा है! अरिमा का कोई पता नहीं कहाँ है, खेटकी ने अपने गुरु की हालत देख तौबा कर ली थी!

मेरा कार्य समाप्त हो चुका था! मित्रगण! दर्प, ईर्ष्या, राग, द्वेष, लोभ, मोह, माया, अभिमान ऐसे आभूषण है, कि जब आप इनको धारण करेंगे तो ये आपकी देह को ही काटेंगे! और आपका समूल नाश कर देंगे! इनसे बचना पुन्य-संचरण है इनको अपनाना काल को आमंत्रित करना है!

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------

 


   
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