वर्ष २०१२ अलीगढ की ...
 
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वर्ष २०१२ अलीगढ की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मार्च की बात है ये, होली जा चुकी थी और मै अपने क्रिया आदि से फारिग हो चुका था, अपने स्थान पर नहीं था, मै उस समय हरदोई उत्तर प्रदेश में था, यहाँ से मुझे फिर गोरखपुर जाना था, और वहाँ से वापिस फिर दिल्ली, मै हरदोई में करीब तीन दिन रहा और फिर वहाँ से गोरखपुर कूच कर गया, गोरखपुर में अपने एक जानकार के साथ ठहरा और करीब चार दिन तक रहा, अपने कार्य निबटा लिए थे, शर्मा जी निरंतर मेरे साथ थे मेरे इस सफ़र में! ऐसे ही एक सिलसिले में मै एक जानकार के डेरे पर गया था, ये डेरा उसका नेपाल में पड़ता है, वहाँ कई और भी साधक आये हुए थे, कुछ को मैं जानता था और कुछ को नहीं! अब विश्राम के दिन थे, इसीलिए वहाँ से मैं वापिस आया गोरखपुर और फिर अगले दिन दिल्ली के लिए रवानगी डाल दी!

दिल्ली पहुंचे तो फिर विश्राम किया, तीन-चार दिन ऐसे ही कट गए, एक रोज़ की बात है, एक श्रीमान और श्रीमती जी आये मेरे पास, उनको मेरे एक परिचित दीपक ने भेजा था, श्रीमान जी का नाम रमन और उनकी श्रीमती जी का नाम कान्ता था, अपने परिधान से वे अच्छे-खासे परिवार से सम्बन्ध रखने वाले लग रहे थे! परन्तु उनके चेहरे पर मायूसी साफ़ झलक रही थी! तब तक शर्मा जी भी आ चुके थे वहाँ, नमस्कार आदि से फारिग हुए तो मैंने उनसे उनकी समस्या के बारे में पूछा,

"जी, रमन जी, बताएं क्या बात है?"

वे चुप रहे कुछ क्षण जैसे समस्या का शुरुआती छोर ढूंढ रहे हों! फिर उन्होंने खखार कर गला साफ़ किया और बोले," गुरु जी, मेरा नाम रमन है, मेरा अपना व्यवसाय है, मैं उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ का रहने वाला हूँ, वहीं मेरा घर भी है, शहर में ही रहता हूँ, अपने परिवार के साथ, मेरे परिवार में मेरी पत्नी, कान्ता, दो लड़के अजय और संजीव हैं, दोनों ही मेरे साथ ही व्यवसाय संभालते हैं, और बड़े लड़के अजय का अभी रिश्ता तय करने की सोच रहे हैं, एक लड़की है छोटी नाम है गुंजन, अभी कॉलेज में पढ़ रही है"

वे अब फिर चुप हुए!

"जी, अब?" मैंने पूछा,

"गुरु जी आज से कोई वर्ष भर पहले की बात है, मेरे बड़े लड़के को एक जहरीले सांप ने काट लिया था" वे बोले तो मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी,

"बड़ा लड़का, यानि जय?" मैंने पूछा,

"जी हाँ जय" वे बोले,

"अच्छा, सांप ने काटा, फिर?" मैंने पूछा,

"वो अपने एक दोस्त के साथ उसके गाँव गया था, वहीं खेत की पगडण्डी पर उस सांप ने काटा था, उसके दोस्त और कुछ रिश्तेदारों ने उसको डॉक्टर को दिखाया एक अस्पताल में, अलीगढ में ही, उसका इलाज हो गया और वो ठीक भी हो गया" वे बोले,

"अच्छा, आगे?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हम उसको घर ले आये, उसने कुछ दिन आराम किया और फिर से सामान्य जीवन में आ गया, एक दिन की बात है, सुबह का समय था, अमूमन हम लोग सुबह उठ जाते हैं जल्दी ही, हम उठ गए लेकिन जय अभी तक चादर ताने सो रहा था, हमने सोचा की चलो कोई बात नहीं, आज अवकाश भी है, सोने दो" वे बोले,

"हम्म, फिर?" मैंने कहा,

अब जब नौ बज गए तो हमने उसको आवाज़ दी, लेकिन वो नहीं उठा, तब उसके छोटे भाई ने उसकी चादर हटाई, जैसे ही हटाई, वो चिल्ला पड़ा! हम भागे वहाँ, उसका रंग नीला पड़ रहा था, मुंह से झाग निकल रहे थे, जैसे की फिर से उसको किसी सांप ने काटा हो! उसकी सांसें अभी चल रही थीं, हमने फ़ौरन उसे उठाया और अस्पताल में दाखिल किया, अस्पताल में डॉक्टर्स ने भी यही बताया कि उसको किसी जहरीले सांप ने काटा है, लकिन हैरत ये कि ना कोई काटने का निशान और वो पहली मंजिल पर सोया हुआ था, सांप वहाँ कैसे आएगा?" उन्होंने बताया,

"सही बात है, फिर वो ठीक हो गया?" मैंने उत्सुकता से पूछा,

"हाँ जी, करीब तीन दिन रहा वो अस्पताल में" वे बोले,

"ओह" मेरे मुंह से निकला!

"लेकिन गुरु जी, अब चिंता का विषय ये हैं कि ऐसा अब उसके साथ हमेशा होता है, हर महीने, अमावस के आसपास" उन्होंने बताया,

"क्या??" मुझे जैसे यकीन नहीं हुआ!

"हाँ जी, उसको हर महीने अस्पताल ले जाया जाता है, हमने खूब जाँच की लेकिन कोई भी सांप आज तक नहीं दिखा हमे, ना जाने क्या मुसीबत है इस लड़के पर" वे बोले,

बात हैरान कर देने वाली तो थी ही!

"हाँ, है तो मुसीबत बहुत बड़ी" मैंने कहा,

"जी हमने फिर उसका ऊपरी इलाज भी करवाया, क्या मुल्ला-मौलवी, क्या ओझा-तांत्रिक, सभी से लेकिन कोई कुछ नहीं बता पाया" वे बोले,

"कमाल है!" मैंने कहा,

"डॉक्टर्स कहते हैं कि अब उसका शरीर भी जवाब देने लगा है, दावा कम माफिक आती है उसको, गुरु जी हम बहुत दुखी हैं, क्या करें?" वे बोले,

तभी उनकी श्रीमती जी ने उनको कुछ याद दिलाया!

"हाँ, गुरु जी एक बात और, हमने एक सपेरे को भी बुलाया था, उसने बताया कि इसको काटने वाला सांप एक देवता हैं, वो इसको मारके छोड़ेगा, चाहे और कुछ भी कर लो!" उन्होंने कहा,

"देवता है? ऐसा कहा उसने?" मैंने पूछा,

"हाँ गुरु जी" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब मै चिंता में पड़ गया! यदि ऐसा है तो ये संभव है!

"अब आप बताइये गुरु जी, कहाँ जाएँ हम, क्या करें?" उन्होंने दुखी होकर कहा,

"चिंता ना कीजिये, मैं देखता हूँ" मैंने कहा,

तब उनकी पत्नी ने उस लड़के जय की तस्वीर मुझे दिखाई, लेकिन कुछ असामान्य नहीं लगा मुझे!

"ठीक है, आप मुझे अपना पता लिखवा दीजिये" मैंने कहा,

उन्होंने पता लिखवा दिया, शर्मा जी ने लिख लिया! फ़ोन नंबर भी ले लिया,

इसके बाद वे वहाँ से चले गए!

जब वे लोग गए वहाँ से तो शर्मा जी ने जिज्ञासावश मुझ से पूछा, "ये कैसा अजीब सा वाकया है गुरु जी?"

"हाँ, मुझे भी अजीब सा ही लगता है ये" मैंने कहा,

"एक साल पहले काटा उसको, और अब हर महीने?" वे बोले,

"यही तो समझ नहीं आ रहा" मैंने कहा,

"ये तो समझ से परे है" वे बोले,

"देखते हैं क्या होता है" मैंने कहा,

"उस सपेरे की बात सच तो नहीं?" वे बोले,

"हो भी सकता है, कोई बड़ी बात नहीं" मैंने कहा,

"यदि ऐसा है तो मामला वाक़ई गंभीर है" वे बोले,

"सही कहा" मैंने कहा,

"कोई नाग-नागिन का चक्कर तो नहीं?" वे बोले,

ये उन्होंने सही सा अंदाजा लगाया था, इस परिदृश्य से इसको देखा जाये तो बात जंचती है! फिर भी शंका थी!

"लेकिन वो सांप उसने मारा तो नहीं?" मैंने कहा,

"किसी और ने मार दिया हो?" उन्होंने अंदाज़ा लगाया,

"तब जिसने मारा होगा, उस पर वार होगा" मैंने बताया,

"बात तो सही है, मैं एक बार पुछू उनसे?" उन्होंने पूछा,

"किनसे?" मैंने कहा,

"रमन से" वे बोले,

"क्या पूछोगे?" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"यही की उस गाँव में कोई सर्प-दंश का शिकार तो नहीं हुआ?" उन्होंने कहा,

बात तो सही थी! पूछने में क्या हर्ज था!

अब तक रमन रास्ते में ही होंगे अपने घर वापसी के लिए, लेकिन उत्सुकता ने जोर मारा तो शर्मा जी ने उनका नंबर मिला दिया और शंका-निवारण के लिए प्रश्न किया, रमन को इस विषय में जानकारी नहीं थी, उन्होंने अलीगढ पहुँचने पर इस विषय में जानकारी जुटाने के बाद ही बताने को कहा!

"शर्मा जी, आपका प्रश्न वैसे है औचित्यपूर्ण!" मैंने कहा,

"पता चल जाएगा, फिर आप उसी दृष्टिकोण से जाँच लीजियेगा" उन्होंने कहा,

"ये ठीक है" मैंने कहा,

"उन्होंने कहा था ऐसा अमावस के आसपास होता है, ये नहीं आया समझ" वे बोले,

"हाँ, ये भी एक रहस्य है" मैंने कहा,

"इस प्रकार का मामला अभी तक तो देखा नहीं मैंने!" वे बोले,

"और ना मैंने ही" मैंने कहा,

"आज है नवमी, यानि अभी पांच दिन बाकी हैं" वे बोले,

"हाँ" मैंने कहा,

"वैसे गुरु जी, एक बात बताइये, क्या ऐसा संभव है कि नागिन वार करे, यदि नाग की मृत्यु हो गयी हो किसी मनुष्य द्वारा?" उन्होंने पूछा,

"हाँ, संभव ही नहीं ऐसा होता है, परन्तु उसमे कुछ विशेष कारण हैं" मैंने कहा,

"कैसे और कौन से कारण?" अब उनकी जिज्ञासा बढ़ी!

"यदि नाग-नागिन प्रणयरत हों और कोई मनुष्य उनमे से किसी एक को मार दे, दूसरा यदि नागिन अपनी कल्प-अवस्था से गुजर रही हो और तीसरा यदि नाग किसी कारणवश अपना विष-त्याग 'वचन' पूर्ण करने ही वाला हो तो" मैंने बताया,

"ये कल्प-अवस्था क्या है?" उन्होंने पूछा,

"कल्प-अवस्था अर्थात बदलना स्वयं को बदलना!" मैंने कहा,

"मै समझा नहीं, क्या रूप परिवर्तन करना?" उन्होंने पूछा,

"नहीं, सर्प योनि में नागिन को एक ऐसी अवस्था भी आती है जब उसका गर्भाशय घूम जाता है, ऐसे समय में वो संसर्ग नहीं करती और फिर से जब बदलाव होता है तो वो संसर्ग के लिए लालायित होती है, ऐसे समय में यदि वो प्रणय की ललक रखती है और उस नाग की कोई हत्या कर दे तो उसका प्रतिकार लेना संभव है" मैंने कहा,

"ओह! और नाग का विष-त्याग वचन?" उन्होंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जब नाग अपने विष का संचरण करता है अनगिनत वर्षों तक तब वो मणि प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है, उसका यही संचित विष ही उसकी मणि होता है!" मैंने कहा,

"ओह! कमाल है!" वे बोले,

"सर्प-योनि बहुत ही विचित्र और सम्माननीय योनि है!" मैंने कहा,

"हाँ, हमारी संस्कृति का एक अहम् हिस्सा हैं सर्प!" वे बोले,

"हाँ! आरम्भ से ही" मैंने कहा!

"और जैसे कि उस सपेरे ने बताया, वो सर्प-देवता?" उन्होंने पूछा,

"ये भी संभव है, जब सर्प एक सहस्त्र वर्षों की आयु का हो जाता है तो उसमे दैवीय-गुण स्वतः ही समाहित हो जाते हैं!" मैंने कहा,

"ओह! ये भी एक रहस्य है!"वे बोले!

और फिर शाम हुई, शाम को रमन का फ़ोन आया शर्मा जी के पास, उस गाँव में किसी की ना तो मौत सर्प-दंश से ही थी और ना ही ऐसा कोई वार! इस खबर ने चौंका दिया हम दोनों को! जैसा सोचा था वैसा तो कतई भी नहीं था! अब समस्या का हल निकालना बड़ा मुश्किल था, तब मैंने सोचा कि एक बार क्यूँ ना इस लड़के जय से मिल लिया जाये? शर्मा जी ने भी इस बात का समर्थन किया! तब शर्मा जी ने रमन को ये सूचना दे दी कि कल हम आ जायेंगे वहाँ और स्वयं जय को देखेंगे! इस बात से वे बड़े खुश हुए!

और फिर इस तरह अगले दिन मै और शर्मा जी पहुँच गए अलीगढ, भीड़ वाला शहर है अलीगढ, आसपास के गाँवों का मुख्य केंद्र भी है ये और यहाँ का विश्वविद्यालय भी जगत-प्रसिद्ध है! हम धीरे धीरे आगे बढ़ते गए और फिर पहुँच गए रमन के घर! घर में पहुंचे, नमस्कार आदि हुई तो मैंने जय को बुलवाया, शांत स्वभाव वाला लड़का जय, काफी गंभीर सा लगा मुझे, मैंने उसका निरीक्षण किया तो कोई तांत्रिक-प्रयोग भी नहीं लगा! ये बड़े अचरज की बात थी! अब मैंने कुछ मौखिक प्रश्न किये जय से!

"जय? तुमको जिस सांप ने काटा था, क्या वो तुमने देखा था?" मैंने पूछा,

"हाँ" उसने कहा,

"कैसा था? रंग रूप में, लम्बाई में?" मैंने पूछा,

"जी यही कोई सवा डेढ़ फुट का होगा" उसने बताया,

"अच्छा , और रंग?" मैंने पूछा,

"मटमैला सा था, लेकिन चमकीला" उसने बताया,

"क्या नाग था वो?" मैंने पूछा,

"जी नहीं" उसने बताया!

उसके उत्तर से एक बात स्पष्ट हो गयी कि ये बड़ा काला नाग नहीं था! ।


   
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श्रीशः उपदंडक
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"उसका फन था क्या?" मैंने पूछा,

"जी इतना ध्यान नहीं, वैसे नहीं था" उसने बताया,

अब और स्पष्ट हो गया!

"जब उसने तुम्हे काटा था, तो क्या वो वहाँ ठहरा था या भाग गया था?" मैंने पूछा,

"जी वो ठहरा था" उसने बताया,

"अच्छा! फिर?" मैंने पूछा,

"मेरा पाँव शायद उसकी पूंछ पर पड़ गया था, इसीलिए उसने मुझे मेरे पाँव पर काट लिया था, मैंने जब देखा कि किसी ने काटा है तो तब मेरी नज़र उस पर पड़ी, उसने मुझे देखा और मैंने उसे, और फिर वो पीछे हटता चला गया, मुझे बेहोशी आने लगी, पसीने छूटने लगे, तब वहाँ मेरे दोस्त और उसके रिश्तेदारों ने मुझे अस्पताल में दाखिल करवाया" उसने बताया,

"जिस दिन तुमको काटा था उस दिन क्या वार था और क्या तारीख?" मैंने पूछा,

उसने मुझे बताया, और हैरत की बात ये कि उस दिन अमावस ही थी! बड़ा उलझा हुआ रहस्य था!

"और उस दिन के बाद से तुम्हारे साथ हर महीने ऐसा होता है" मैंने कहा,

"हाँ जी" उसने कहा,

"क्या किसी सांप के काटने का एहसास होता है?" मैंने पूछा,

"नहीं" उसने बताया,

"क्या महसूस होता है?" मैंने पूछा, "कंपकंपी उठती है, ठण्ड लगती है और फिर गहरी नींद आती है" उसने बताया,

बड़ी समस्या से गुजर रहा था ये लड़का!

"और ऐसा अक्सर अमावस के आसपास होता है, है ना?" मैंने पूछा,

"हाँ जी" उसने कहा,

"ठीक है, एक बात और बताइये, उस दिन के बाद से अपने में कोई बदलाव देखा है?' मैंने पूछा,

"हाँ जी" उसने कहा,

"क्या?" मैंने पूछा,

"मुझे सपने आते हैं साँपों के" उसने बताया,

"कैसे सपने?" मैंने पूछा,

"जैसे कि मै कहीं जा रहा हूँ, और ऊपर पेड़ से सांप गिर पड़े नीचे, मुझे घेर के खड़े हो गए" उसने बताया और रुका,

"फिर?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मै पीछे हटता हूँ तो वहाँ भी सांप" उसने बताया,

"फिर?" मैंने उत्सुकता से पूछा,

"जी फिर एक बड़ा सा सांप आता है, और सब सांप भाग जाते हैं" उसने बताया!

"बड़ा सा सांप?" मैंने हैरत से पूछा,

"हाँ जी, बहुत मोटा सांप, काले रंग का" उसने कहा,

"फिर?" मैंने फिर से पूछा,

"वो मुझे घूर के देखता है, फूँकार मारता है और वापिस चला जाता है" उसने बताया,

बड़ी अजीब बात थी ये!

"ये सपना बार बार आता है?" मैंने पूछा,

"नहीं, पर हफ्ते में तीन चार बार तो आता है" उसने बताया,

"और कोई सपना?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, एक और आता है" उसने कहा,

"क्या?" मैंने अब अपनी कमर कुर्सी की पुश्त से हटा कर बोला!

"मुझे एक कन्या दिखाई देती है, वो मेरे साथ साथ चलती है, लेकिन बात नहीं करती, मै उस से पूछता हूँ तो भी नहीं, बस अपना एक हाथ आगे कर देती है" उसने बताया,

"ओह, फिर?" मैंने पूछा,

"फिर मै उसका हाथ देखता हूँ, उसके हाथ पर एक गहरा हरा ज़ख्म होता है और वो रोने लगती है, और मेरी आँख खुल जाती है" उसने बताया,

"ओह, ज़ख़्म!" मैंने विचार किया!

"ज़ख्म कितना बड़ा होता है?" मैंने पूछा,

उसने यही कोई पांच इंच का ज़ख्म बता दिया!

अब उलझा दिमाग मेरा! पहाड़े याद आने लगे!

"कन्या दिखाई देती है, और वो अपना ज़ख्म दिखाती है, फिर रोती है और फिर तुम्हारी नींद खुल जाती है, यही?" मैंने पूछा,

"जी हाँ, यही" उसने कहा,

"अच्छा एक बात और बताओ जय, कौन सा सपना तब आता है जब तुम्हारे साथ ये ज़हर वाली घटना घटती है?" मैंने पूछा,

"जी ये कन्या वाला" उसने बताया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हम्म!" मैंने कहा,

'अच्छा वो जगह दिखाओ जहां काटा था?" मैंने उस से कहा,

उसने मुझे दिखा दिया, ये उलटे पांव के ऊपर था जहां काटा था उस सांप ने!

"ठीक है" मैंने कहा,

"जय, वहाँ तुम कितने लोग थे जब तुमको काटा गया था?" अब शर्मा जी ने पूछा,

"जी कोई तीन चार होंगे" उसने बताया,

"तुमको मिलाकर" शर्मा जी ने पूछा,

"हाँ जी" वो बोला,

"वो गाँव कितनी दूर है यहाँ से?" मैंने पूछा,

"जी कोई ग्यारह-बारह किलोमीटर होगा" उसने बताया,

"क्या करने गए थे?" मैंने पूछा अब,

"मेरे दोस्त को दवा देनी थी अपने पिताजी को आँखों की" उसने बताया,

"अच्छा" मैंने कहा,

"और जहां काटा था, वो खेत है या सड़क?" मैंने पूछा,

"जी है तो खेत ही, लेकिन भूड है वो जगह, खाली है, रेत ही रेत सा है वहाँ" उसने बताया,

"खेत के साथ?" मैंने पूछा,

"नहीं, खेत से कोई सौ मीटर आगे के तरफ" उसने बताया,

"पेड़-पाड़ हैं वहाँ?" मैने पूछा,

"हाँ जी, कीकर और ढाक के से पेड़ हैं वहाँ" उसने बताया,

काफी सवाल-जवाब हुए, लेकिन कोई काम की बात नहीं सामने आ रही थी!

"अच्छा जय, कोई पेशाब वगैरह तो नहीं किया था वहां?" मैंने पूछा,

"नहीं जी" उसने इनकार किया,

"अच्छा" मैंने कहा,

"कोई विशेष शारीरिक होते हैं आपके शरीर में जब ये घटना घटती है तो?" मैंने पूछा,

"नहीं जी" उसने कहा,

"कभी जाग कर देखा है सारी रात?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, लेकिन तब उल्टियां आने लगती हैं मुझे" उसने बताया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब तो दिमाग खराब हो चला था! कैसे पहेली है ये? क्या रहस्य है?

"डॉक्टर्स क्या कहते हैं?" मैंने पूछा,

"वे कहते हैं कि सांप ने ही काटा है" उसने बताया,

ये भी समस्या थी!

"कौन सा सांप? ये बताया कभी उन्होंने?" मैंने पूछा,

"नहीं जी, बस यही कि कोई ज़हरीला सांप होगा" उसने बताया,

अब मैंने रमन को देखा, रमन ने मुझे! वो जितना मायूस थे उतना मै हैरान!

"रमन साहब, एक गिलास पानी मंगवाइये" मैंने कहा,

जय का छोटा भाई उठा और एक गिलास पानी ले आया, और मेरे हाथ में दे दिया, मैंने पानी पर मंत्र पढ़ा एक, ये सर्प-दंश निवारण मंत्र होता है, और मैंने वो पानी अभिमंत्रित कर दिया और फिर जय को देते हुए कहा, "ये लो, इसको पी जाओ"

और जैसे ही उसने पानी का एक घूंट भरा, उसने पानी बाहर फेंक दिया! और मुंह बिचकाने लगा! जैसे निबौरियों का घोल दे दिया हो उसे!

"क्या हुआ?" मैंने पूछा,

"बहुत कड़वा है" उसने कहा!

"कड़वा?" मुझे हैरत हुई!

"हाँ जी, कड़वा" उसने कहा और थूकने चला गया!

अब मेरे दिमाग बजने शुरू हुए हथौड़े!

जय आकर बैठा पास, लेकिन बार बार मुंह बिचकाता!

"थोडा सादा पानी पियो" मैंने कहा,

वो उठा और सादा पानी पीने चला गया, वापिस आया और बैठ गया!

"क्या ये भी कड़वा था?" मैंने पूछा,

"नहीं ये नहीं था" उसने कहा,

जानते हो मित्रगण! उसे पानी क्यों कड़वा लगा? क्यूंकि कोई नहीं चाहता था कि वो ये पानी पिए! अब प्रश्न था कि ये कोई कौन है?

मैंने एक और प्रयोग किया अब! मैंने जय की माता जी से आटे के सात पेड़े बनाने को कहा, थोड़ी देर बाद ही वो बना लायीं! मैंने साथ पेड़ों में से तीन उसके हाथ में दिए, दो एक हाथ में और एक दूसरे हाथ में! फिर बाकी चार पेडे आपस में मिलाकर मैंने एक सर्पाकृति बना दी और एक थाली में रख दी! अब मैंने उस थाली पर सर्पदर्शन विद्या का प्रयोग किया, मैं चाहता था स्वयं उस सर्प को देखना! मैंने जय से उस थाली को लगातार देखने को कहा, और जैसे ही मैंने ये विद्या जागृत की, जय ने अपने पाँव अब


   
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श्रीशः उपदंडक
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कुर्सी पर ऊपर किया और उसका चेहरा पीला पड़ गया भय के मारे! सभी का मुंह फटा का फटा रह गया वहाँ जय को देख कर! जय, जैसे मानो रो ही पड़ता! उसने वो आटे के पेड़े हाथों में भींच लिए! डर के मारे कांपने लगा!

"क्या देख रहे हो थाली में जय?" मैंने पूछा,

"वो.....................वही सांप" उसने कहा,

ये सुनकर घर के सभी लोगों को जैसे विद्युत्पात हुआ!

"कैसा है ये?" मैंने पूछा,

"वही है, मुझे घूर रहा है। उसने कहा,

"नहीं काटेगा, जब तक मै हूँ यहाँ, भय त्यागो, ये बताओ, ये वही है?" मैंने पूछा,

"हाँ........हाँ....वही है, हश............हश!" उसने जैसे उस सांप को भगाया हो!

"मत भगाओ! कुछ नहीं कहेगा!" मैंने कहा,

"मुझे काट लेगा ये" उसने थाली से बिना नज़र हटाये हुए कहा!

"नहीं काटेगा!" मैंने कहा,

"इसे भगाओ यहाँ से, अभी" उसने अपने हाथ ऊपर उठाकर कहा!

"जय, ये कुछ नहीं कहेगा, ना कटेगा, ना फुन्कारेगा, मुझे ये बताओ सही सही, ये कौन सा सांप है?" मैंने पूछा,

वहाँ खड़े लोग जैसे ज़मीन में धंस गए हों!

"ये छोटा है, भूरे रंग का" उसने कहा,

"फन है?" मैंने पूछा,

"नहीं, पता नहीं" उसने थाली को देखते हुए कहा,

"ऑखें कैसी हैं इसकी?" मैंने पूछा,

"पीले रंग की" उसने कहा,

"और पूंछ?" मैंने पूछा,

"काली" उसने कहा,

"सर गोल है या तिकोना?" मैंने पूछा,

"तिकोना, हाँ ऐसा ही है" उसने कहा,

उसके पसीने छूट रहे थे डर के मारे! आटे को उसने इकसार कर दिया था!

"ठीक है, इसका गला देखो, कोई चक्र है?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब तक मैं समझ गया था कि ये कौन सा सांप है!

"हाँ, एक वलय जैसा है" उसने कहा,

"और गर्दन पर एक रेखा है?" मैंने पूछा,

"हाँ....हाँ....है" उसने डर के मारे कहा,

"गर्दन बाएं दायें घुमाता है, सामने नहीं?" मैंने पूछा,

"हाँ.....सही कहा" उसने कहा,

अब मै समझ गया! समझ गया कि ये कौन सा सांप है! ये है पद्म-नाग! वही नाग, वही नाग! जो श्री महा-औघड़ के भुज-बंध हैं!

तो इस बार पद्म-नाग से सामना हुआ था! ये अत्यंत क्रोधी और वैमनस्य रखने वाला सांप होता है! यदि इसके समक्ष सौ लोग भी हों तो भी पीछे नहीं हटता! फुकारता है कि या तो मार दो या फिर मेरा रास्ता छोडो! मै नहीं हटूंगा! ज़िद्दी और घमंडी! एक बार में कई लोगों को काट लेता है! वैसे कभी-कभार ही दिखाई देता है ये खेत-खलिहानों में!

"और क्या देख रहे हो जय?" मैंने पूछा,

"इसको हटाओ" उसने कहा और वो डरा अब!

"ठीक है" मैंने कहा और विद्या वापिस कर ली!

विद्या वापिस करते ही वो नीचे गिर गया, मैंने संभाला उसे!

अब एक सूत्र तो हाथ आ गया था! लेकिन दूसरा अभी दूर था!

"जय?" मैंने कहा,

"जी?" उसने अब होश संभाले अपने!

"यही सांप था, पक्का?" मैंने कहा,

"हाँ जी, यही था" उसने कहा,

"ठीक है जय" मैंने कहा,

"अब मै आराम करूँगा" उसने कहा,

"ठीक है, जाओ" मैंने कहा,

जय चला गया!

अब रमन आ बैठे वहाँ! और बोले, "गुरु जी, क्या देखा इसने?"

"वही जो मै जानना चाहता था" मैंने बताया,

"क्या पता चला?" उन्होंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"पद्म-नाग!" मैंने बताया,

"बाप रे!" उनके मुंह से निकला!

"इसी पद्म-नाग ने काटा है उसे" मैंने बताया,

"लेकिन ज़हर बार बार क्यूँ उभर रहा है?" उन्होंने पूछा,

"यही मै जानना चाहता हूँ" मैंने कहा,

"वैसे ठीक तो हो जायेगा ना?" उन्होंने हाथ जोड़कर पूछा,

"हो जायेगा" मैंने कहा, हालांकि मुझे अभी तक कुछ मालूम नहीं चला था, लेकिन ऐसा कह कर मैंने उनकी हिम्मत बंधा दी थी! और इस समय इसी की आवश्यकता थी!

"ठीक है रमन साहब, अब मै चलता हूँ, अमावस वाले रोज़ आऊंगा आपके पास" मैंने कहा,

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद" वो बोले,

और इसके बाद हम वहाँ से वापिस आ गए! अपने स्थान पर पहुंचे! गहन चिंतन किया और फिर मुझे मेरे एक जानकार का ध्यान आया, मैंने उनसे संपर्क साधा, और उन्होंने मुझे कुछ बताया, मै समझ गया!

और फिर आया वो रोज़ जब मुझे वहाँ जाना था, ये अमावस से एक दिन पहले का दिन था, उनके हिसाब से या तो आज अथवा अमावस के एक दिन बाद ऐसा होना था! शर्मा जी आ चुके थे और हमने सीधे वहीं की राह पकड़ी और चल दिए!

वहाँ पहुंचे, सभी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं! हमे देख उनको राहत मिली, ऐसा प्रतीत हुआ!

अन्दर जय लेटा हुआ था, भय के मारे बेचारे की हालत खराब थी, मै उसके पास गया, वो उठ बैठा! नमस्कार की!

"कैसे हो जय?" मैंने पूछा,

"अभी तक तो ठीक हूँ" उसने कहा,

"ठीक ही रहोगे" मैंने कहा,

"बचा लीजिये गुरु जी मुझे" उसने आँखों में आंसू लाकर कहा,

"चिंता ना करो जय" मैंने कहा,

"मेरी जिंदगी खराब हो गयी है गुरु जी, कोई रास्ता नहीं" उसने माथे पर हाथ रखते हुए कहा!

मै उसके इस वाक्य से द्रवित हो गया! सही बात है जाके ना फाटी पैर बिवाई, सो का जाने पीर पराई!

तब मैंने उसके गले में विष-मोचिनी विद्या का प्रयोग कर एक धागा बांध दिया और उसको बता दिया कि वैसे अब कुछ होना नहीं चाहिए, यदि हुआ तो फिर आगे की कार्यवाही आरम्भ करनी होगी!

मै सारा दिन वहीं रहा, उसको देखता रहा, अभी तक कुछ नहीं हुआ था, लगता था मेरी विद्या ने अपना काम कर दिया है! वो भी आश्वस्त सा लगा मुझे! घरवालों को भी खुशी हुई! और मुझे भी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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और फिर आई रात! अब मुझे थोड़ा तनाव हुआ, मैंने अपना बिस्तर उसी के कमरे में लगवा लिया था, मै और शर्मा जी वहीं लेटे थे, मै निरंतर उसको देखता!

रात के दो बज गए! कुछ नहीं हुआ! मुझे बहुत राहत मिली! मै अब सो गया! जय भी सो गया था अब तक!

सुबह मै उठा, उसको देखा, वो सही था! आज अमावस थी! मैंने उसको देखा तो सही था वो अब पूरी तरह से! चलो मै कामयाब हो गया था!

अब शर्मा जी भी उठे और दूसरे घरवाले भी आ गए उसको देखने! उसको सकुशल देख मेरे पाँव पड़ने लग गए! मैंने किसी तरह से हटाया उनको! जय भी बहुत प्रसन्न हुआ, उसको प्रसन्न देख मै भी प्रसन्न हुआ!

"अब ठीक रहोगे जय" मैंने कहा,

वो रोते हुए मेरे पाँव में गिर गया! मैंने उसे उठाया और बिठा दिया! कुछ परहेज बताया!

"ठीक है रमन साहब, अब हम चलते हैं, वैसे अब कुछ नहीं होगा इसको" मैंने कहा,

उन्होंने हमारा बहुत बहुत धन्यवाद किया! और फिर खाना खाने के बाद वहां से हम वापिस हुए!

रास्ते में शर्मा जी ने पूछा,"गुरु जी? कट गया संकट?"

"मुझे लगता है कि हाँ!" मैंने कहा,

"चलो! जान बची बेचारे की!" वे बोले,

"हाँ शर्मा जी" मैंने कहा,

और फिर हम आ गए वापिस अपने ठिकाने!

कुछ दिन बीते! जय ठीक था, उसे कुछ नहीं हुआ था! विष-मोचिनी ने अपना काम कर दिया था!

और फिर एक दिन..........

मेरे पास खबर आई रमन की, जय को विष तो नहीं चढ़ा था लेकिन उसकी पीठ और जांघ पर अजीब से काले निशान पड़ गए थे! ये निशान बढ़ते जा रहे थे, और उनमे भयानक जलन थी! इस खबर ने मुझे विचलित कर दिया, मैंने उसी दिन वहाँ जाने की ठानी और वहाँ पहुँच गया शर्मा जी के साथ!

जय बिस्तर पर लेटा था, उसने नमस्ते की तो मैंने उसको उठाया और उस से उसके शरीर पर पड़े निशान दिखाने को कहा, उसने कमीज़ उतारी और मैंने उसके निशान देखे, बेहद अजीब से निशान थे, जैसे कि एक गिरगिट की त्वचा, परन्तु काले दाग!

"ये कब से होना शुरू हुआ?" मैंने पूछा,

"परसों से" उसने बताया,

"कैसा लगा था उस समय, कोई दर्द वगैरह?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"खुजली हुई पीठ पर, मैंने खुजाया तो और खुजली हो गयी, फिर मैंने शीशे में देखा तो ये दाग थे" उसने बताया,

"अच्छा" मैंने कहा,

"ये बढ़ रहे हैं?" मैंने पूछा,

"हाँ जी" उसने कहा और निशान दिखाए,

अब मैंने उनसे एक चाकू मंगाया, और ज़मीन पर एक वृत्त बनाया उस चाकू की नोंक से और फिर मंत्र पढ़े, फिर मैंने उसमे उसका नाम उर्दू में लिखा और उस वृत्त को ग्यारह बार काट दिया, मै खड़ा हुआ और जय के निशान पर भी मैंने उसी चाकू की नोंक से कुछ चिन्ह अंकित किये!

"अब कमीज़ पहन लो जय" मैंने कहा,

उसने कमीज़ पहन ली,

"अब एक काम करो, यहाँ से बाज़ार जाओ और सौ ग्राम बाजरा, दस ग्राम काले तिल और सौ ग्राम ताज़ा कलेजी लाओ बकरे की" मैंने कहा,

"जी, अभी जाता हूँ" उसने कहा,

वो चला गया!

"गुरु जी, ये समस्या क्या है?" उसके पिता जी ने पूछा,

"समस्या गंभीर है" मैंने उत्तर दिया तो वो चौंके!

"जी, कैसे?" उन्होंने पूछा,

"बस यूँ समझिये कि जय की जान को खतरा है" मैंने बता दिया,

ये सुन सभी अवाक रह गए वहाँ,

"बचा लो गुरु जी, बहुत एहसान होगा!" वे अब भरे गले से बोले,

"मै भरसक प्रयत्न करूँगा, आप चिंता न करें" मैंने कहा,

"पता नहीं कौन से पाप किये हैं हमने जो ऐसा भुगतना पड़ रहा है" वे बोले,

"आप, ना घबराइये" मैंने कहा,

अब तक जय सामान ले आया था, उसने मुझे थमा दिया, मैंने एक थाली मंगवाई उनसे और ये सामान उसमे रख दिया! मै कमरे में नीचे बैठ गया और सामने जय को बिठा लिया! कमरे में मै और जय ही थे उस समय!

"जय, सपने आ रहे हैं अभी भी?" मैंने पूछा,

"नहीं गुरु जी, उस दिन के बाद से नहीं आये" उसने बताया,

अब मैंने काले तिल लिए और उनको अभिमंत्रित करके जय के ऊपर फेंके, फिर ऐसे ही बाजरा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर मैंने कलेजी ली और अपने दोनों हाथों में रखी और एक औघड़-मंत्र पढ़ दिया! कलेजी वापिस थाली में रखी!

"जय, अपनी कमीज़ उतारो अब" मैंने कहा,

उसने कमीज़ उतारी!

"अब शीशे में जा कर देखो" मैंने कहा,

वो गया और प्रसन्नता से उछल पड़ा! भागा बाहर! सभी को दिखाया! शरीर पर एक भी दाग नहीं था उसके अब! अब सभी भागे भागे आये मेरे पास!

"गुरु जी! गुरु जी!" कहते कहते मेरे पांव पड़ने लगे!

"जय, अभी समस्या का अंत नहीं हुआ" मैंने कहा,

ऐसा सुन प्रसन्नता का स्थान भय ने ले लिया!

"परन्तु घबराओ नहीं!" मैंने कहा,

ऐसा सुन थोड़ी राहत पहुंची उनको!

"जय, हमको आज शाम उस गाँव जाना पड़ेगा जहां तुमको डंसा था उस सांप ने" मैंने कहा,

"जी, चलिए" वो बोला,

अब मैंने उनको और सामान लिखवाया और जय को भेज दिया सामान लेने के लिए, जय तभी चला गया!

"वो गाँव यहाँ से कितनी दूर है?" मैंने पूछा,

"यही कोई ग्यारह-बारह किलोमीटर" रमन ने बताया,

"ठीक है, अप एक बड़ी टोर्च ले लेना साथ" मैंने कहा,

"जी" वे बोले,

"वैसे वहाँ किसलिए?" उन्होंने पूछा,

"ये सारा रहस्य वहीं खुलेगा, समझिये कि जय के प्राण हैं वहाँ" मैंने कहा,

"ओह!" वे बोले,

"हाँ जी" मैंने कहा,

"वहाँ कोई बाम्बी होगी साँपों की" जय के भाई संजीव ने कहा,

"बिलकुल होगी वहाँ" मैंने कहा,

"तो आप उसी सांप को बुलाओगे?" उन्होंने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,


   
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