वर्ष २०१२ अलवर रोड़ ...
 
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वर्ष २०१२ अलवर रोड़ की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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उस रात भी काम ज़ारी था वहाँ, बड़ी हेलोजन लाइट लगायी गयीं थीं वहाँ, काम था एक भवन का निर्माण, ये एक खाली जगह में बनवाया जा रहा था, दूर दूर तक ऐसे ही विशाल भवन बने हुए थे, ये एक फार्म-हाउस का भवन था, काम जोर-शोर से चल रहा था! मशीन काम पर लगी थीं! काम को चलते कोए दो महीने बीत चुके थे, अब वहाँ पर तीसरी मंजिल का लेंटर डाला जा रहा था! काम निर्विघ्न रूप से ज़ारी था!

मध्य रात्रि कोई दो बजे दो मजदूर चिल्लाते हुए वहाँ आये! उन्होंने चिल्ला चिल्ला के आसमान सर पर उठा लिया, ठेकेदार आया दौड़ा दौड़ा, देखा दोनों मजदूर घायल थे! सर फट गया था दोनों का, एक की बाजू टूट गयी थी शायद! जिसकी बाजू टूटी थी वो नीचे गिर पड़ा! आनन्-फानन में भीड़ इकट्ठी हो गयी वहाँ पर! जो मजदूर खड़ा था उसकी बोलती बंद थी! वो भी नीचे बैठ गया, ठेकेदार ने देरी न कर उनको अपनी जीप में डाला और अस्पताल की ओर दौड़ लगा दी, दोनों को भर्ती करा दिया गया, अब काम रुक गया था वहाँ पर!

मजदूरों को अस्पताल में जब भर्ती किया गया तो जो मजदूर होशो-हवास में था उसने एक बड़ी अजीब सी बात बताई थी, उसके अनुसार वो दोनों लघु-शंका निबटाने गए थे वहाँ एक जगह, तभी किसी ऊंचे पहाड़ से आदमी ने आकर उनको उठाया और दो बार पटकी मारी! वो आदमी बोला तो कुछ नहीं बस तेज तेज जैसे गुर्रा रहा था! उसकी इस बात पर किसी को भी यकीन नहीं हुआ, और जिसको हुआ उसने इसको प्रेत-बाधा ही माना! अब तो वहाँ भय का माहौल हो गया था! काहिर, उन दोनों का इलाज कराया गया! उन दोनों के बताये स्थान का एक बार मुआयना करवाया गया ठेकदार के द्वारा! लेकिन दिन में तो वहाँ सबकुछ सामान्य ही था, बस थोड़े बहुत पत्थर पड़े थे वहाँ! और कुछ भी नहीं था वहाँ! खैर, काम शुरू हुआ जी अब वहाँ दुबारा!

कोई हफ्ता बीता होगा कि एक रात एक मजदूर की पत्नी वहाँ गयी लघु-शंका के लिए, और फिर उसकी वहाँ से जोर से आवाज़ आई, ‘बचाओ! बचाओ!” सभी भागे वहाँ! वहाँ गए तो देखा वहाँ वो खून से लथपथ पड़ी थी! कपडे फाड़ दिए गए थे, नाक-मुंह से खून बह रहा था! उसको उठाया गया और ठेकेदार ने फ़ौरन जीप में डाल उसको भी अस्पताल पहुंचाया! जब उस से पूछताछ की गयी तो उसने भी वहीँ सब बताया जो कि उन दोनों मजदूरों ने बताया था! एक ऊंचा पहलवान जैसा आदमी! पूरा गंजा और पहाड़ जैसा! उसने ही उठा के फैंका था उसे वहाँ से!

अब तो वहाँ भय व्याप्त हो गया! मजदूरों में कानाफूसी आरम्भ हो गयी! प्रेत का डर सताने लगा सभी को! आखिर में ठेकेदार ने स्वयं जांचने की सोची! उसने अपने दो साथी लिए, पहले


   
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श्रीशः उपदंडक
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उस रात भी काम ज़ारी था वहाँ, बड़ी हेलोजन लाइट लगायी गयीं थीं वहाँ, काम था एक भवन का निर्माण, ये एक खाली जगह में बनवाया जा रहा था, दूर दूर तक ऐसे ही विशाल भवन बने हुए थे, ये एक फार्म-हाउस का भवन था, काम जोर-शोर से चल रहा था! मशीन काम पर लगी थीं! काम को चलते कोए दो महीने बीत चुके थे, अब वहाँ पर तीसरी मंजिल का लेंटर डाला जा रहा था! काम निर्विघ्न रूप से ज़ारी था!

मध्य रात्रि कोई दो बजे दो मजदूर चिल्लाते हुए वहाँ आये! उन्होंने चिल्ला चिल्ला के आसमान सर पर उठा लिया, ठेकेदार आया दौड़ा दौड़ा, देखा दोनों मजदूर घायल थे! सर फट गया था दोनों का, एक की बाजू टूट गयी थी शायद! जिसकी बाजू टूटी थी वो नीचे गिर पड़ा! आनन्-फानन में भीड़ इकट्ठी हो गयी वहाँ पर! जो मजदूर खड़ा था उसकी बोलती बंद थी! वो भी नीचे बैठ गया, ठेकेदार ने देरी न कर उनको अपनी जीप में डाला और अस्पताल की ओर दौड़ लगा दी, दोनों को भर्ती करा दिया गया, अब काम रुक गया था वहाँ पर!

मजदूरों को अस्पताल में जब भर्ती किया गया तो जो मजदूर होशो-हवास में था उसने एक बड़ी अजीब सी बात बताई थी, उसके अनुसार वो दोनों लघु-शंका निबटाने गए थे वहाँ एक जगह, तभी किसी ऊंचे पहाड़ से आदमी ने आकर उनको उठाया और दो बार पटकी मारी! वो आदमी बोला तो कुछ नहीं बस तेज तेज जैसे गुर्रा रहा था! उसकी इस बात पर किसी को भी यकीन नहीं हुआ, और जिसको हुआ उसने इसको प्रेत-बाधा ही माना! अब तो वहाँ भय का माहौल हो गया था! काहिर, उन दोनों का इलाज कराया गया! उन दोनों के बताये स्थान का एक बार मुआयना करवाया गया ठेकदार के द्वारा! लेकिन दिन में तो वहाँ सबकुछ सामान्य ही था, बस थोड़े बहुत पत्थर पड़े थे वहाँ! और कुछ भी नहीं था वहाँ! खैर, काम शुरू हुआ जी अब वहाँ दुबारा!

कोई हफ्ता बीता होगा कि एक रात एक मजदूर की पत्नी वहाँ गयी लघु-शंका के लिए, और फिर उसकी वहाँ से जोर से आवाज़ आई, ‘बचाओ! बचाओ!” सभी भागे वहाँ! वहाँ गए तो देखा वहाँ वो खून से लथपथ पड़ी थी! कपडे फाड़ दिए गए थे, नाक-मुंह से खून बह रहा था! उसको उठाया गया और ठेकेदार ने फ़ौरन जीप में डाल उसको भी अस्पताल पहुंचाया! जब उस से पूछताछ की गयी तो उसने भी वहीँ सब बताया जो कि उन दोनों मजदूरों ने बताया था! एक ऊंचा पहलवान जैसा आदमी! पूरा गंजा और पहाड़ जैसा! उसने ही उठा के फैंका था उसे वहाँ से!

अब तो वहाँ भय व्याप्त हो गया! मजदूरों में कानाफूसी आरम्भ हो गयी! प्रेत का डर सताने लगा सभी को! आखिर में ठेकेदार ने स्वयं जांचने की सोची! उसने अपने दो साथी लिए, पहले


   
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श्रीशः उपदंडक
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पसलियाँ कड़क गयीं दोनों की! मजदूर भागे भागे आये वहाँ! दोनों ही बेहोसी कि सी हालत में थे! सर फट गए थे! खून बह बह कर कपड़ों पर रिस रहा था! उनके तीसरे साथी ने फ़ौरन उनको जीप में डलवाया और ले चला अस्पताल!

 

तो मित्रगण! ठेकेदार साहब को पता चल ही गया कि न तो वो दोनों मजदूर झूठ बोल रहे थे और न ही वो औरत! ठेकेदार साहब की छह और उसके साथी की चार पसलियाँ टूट गयीं थीं! उसके साथी का एक टखना भी टूट गया था! अब वहाँ जैसे भगदड़ सी मच गयी! मजदूर कतराने लगे काम करने से वहाँ! ठेकेदार का स्थान अब उसके छोटे भाई नरेन्द्र ने लिया! मजदूरों को समझाया-बुझाया और फिर आम-सहमति से वहाँ एक पूजा करने की योजना बनायी!

अगले दिन एक पंडित जी बुलाये गए! पंडित जी को जब सबकुछ बताया गया तो पहले तो वो घबराए लेकिन फिर मान गए! पंडित जी आये और एक हवन आरम्भ किया गया! करीब दो घंटे के हवन के पश्चात् हवन की राख और जल उस स्थान पर डाल दिए गए! सबके मन को असीम शांति मिली! चलो शान्ति-कर्म हो गया अब प्रेत-शांति हो गयी है, इसिलए अब कुछ न होगा!

और फिर उसी दिन से कार्य आरम्भ हो गया! उस दिन सच में कुछ न हुआ! न ही दिन में और न ही रात को! दरअसल वहाँ जाने का कोई जोखिम उठाना ही नहीं चाहता था! इसीलिए किसी ने भी हिम्मत न दिखाई! अब काम अनवरत रूप से चलता रहा! कोई पंद्रह दिन बीत गए! लेंटर डाल दिया गया था! सबने राहत की सांस ली!

एक रात की बात है, एक मजदूर बीनू शराब पीकर वहाँ गया! शायद नशे में रास्ता भटक गया था! वहाँ उनसे एक आदमी देखा! लम्बा-चौड़ा! पहलवान! छाती ऐसी चौड़ी जैसे कि एक कार! मजबूत देहधारी! बीनू का सारा नशा काफूर हो गया! कंपकंपी छूट गयी! डर के मारे हिल भी न सका! वहीँ जड़त्व मार गया उसको! उसने मन ही मन ध्यान लगाया अपने ईष्ट का! लेकिन वो आदमी वहाँ से हटा नहीं, बल्कि खड़ा हो गया! बीनू ने जैसे ही अगली सांस ली वो भाग वहाँ से चिल्लाता हुआ!

वहाँ बैठे लोग फिर घबराए! बीनू वहाँ जाके गिर पड़ा! भय से पीडित था! बेचारे के मुंह से शब्द भी नहीं निकले! आखिर में उसने धीरे धीरे उस आदमी के बारे में बताया! ये आदमी वही था जिसने पहले वहाँ लोग पीटे थे! वही पहाड़ जैसा ऊंचा आदमी! मजबूत पहलवान! बीनू काँपता रहा उस दिन!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब आया नरेंदर वहाँ!

“बीनू? ओ बीनू?” नरेंदर ने पूछा,

“जी……..जी…” बीनू ने कांपते कांपते कहा,

“क्या हुआ?” उसने पूछा,

“जी…वही…..” उसने इशारा करके कहा,

“कौन वही?” उसने पूछा,

“वही…..पहलवान” उसने डरते डरते कहा,

“पहलवान?” नरेंदर ने पूछा,

“हाँ…जी..” बीनू ने बताया,

तब नरेंदर उठा और उसी जगह चला, सभी ने रोक उसको लेकिन वो नहीं माना और चला गया!

“कौन है यहाँ?” नरेंदर ने टोर्च की रौशनी मारते हुए कहा,

“कौन है, कौन डरा रहा है इधर?” नरेंदर चिल्लाया,

लेकिन कोई हरक़त नहीं हुई,

“हिम्मत है तो मेरे सामने आ?” नरेंदर चिल्लाया,

“अरे आ न? मुझे मारके दिखा?” नरेंदर ने कहा,

दरअसल जब नरेंदर के भाई के साथ वो दुर्घटना हुई थी इसी जगह, तभी उसने एक ताबीज़ धारण कर लिया था! इसीलिए नहीं डर रहा था वो ऐसी किसी भी भूत प्रेत से!

“अरे आ न पहलवान?” नरेंदर ने अपना ताबीज़ अपनी कमीज़ के बाहर निकाला!

“मुझे मार के दिखा, कुत्ते की औलाद?” नरेंदर के नशे ने अब सारी हदें तोड़ डालीं!

तभी ज़ोरदार धम्म की आवाज़ हुई! ऐसी आवाज़ जैसे कोई बहुत ऊपर से ज़मीन पर कूदा हो!

अब नरेंदर सहमा! उसने इधर उधर टोर्च की रौशनी मारी! कोई न दिखा उसको! लेकिन भय छा गया! और नशा! नशा तो जैसे रिस गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“कौ……कौन है?” नरेन्द्र ने कहा!

कोई आवाज़ नहीं आई वहाँ!

नरेन्द्र को लगा कि भाग लेना चाहिए वहाँ से अब! और जैसे ही वो भाग, किसी ने उसको उसके बालों से पकड़ा और ज़मीन से कोई छह-सात फीट ऊपर उठा दिया! मारे भय के किल्ली निकल गयी उसकी अब!

“माफ़ कर दो! माफ़ कर दो! गलती हो गयी” नरेंदर घबरा के बोल अब!

तब तक काफी मजदूर आ गए थे वहाँ, हवा में नरेंदर को लटके देख बस मूर्छित होने की ही देर थी! कई तो वापिस भाग लिया वहाँ से और कई हिम्मतवाले वही खड़े रहे!

तभी नरेंदर गिर जाकर एक अस्थायी दीवार पर! दीवार ढह गयी वहाँ! किसी ने फेंक के मारा था उसको! नरेंदर को अधिक चोट नहीं लगी थी! हाथ-पाँव और सर सुरक्षित थे उसके! वो उठ के खड़ा हुआ और भाग अपनी गाड़ी की तरफ! उसको भागता देखा भागे मजदूर भी वहाँ से! अब नरेंदर भी उस पहलवान की पिटाई का गवाह बन चुका था!

 

अब वहाँ के मजदूर भाग खड़े हुए, कोई काम नहीं करना चाहता था, उस दिन तक का हिसाब मांग रहे थे वो, अगर जान बचेगी तो और काम आ जाएगा! जब जान ही नहीं होगी तो काम कैसा? नरेंदर ने ये बातें अपने बड़े भाई को बताएँ, वो पहले से ही इलाज करा रहा था, और अब नरेंदर के साथ भी वैसा ही हुआ था! शुक्र था कि जान बच गयी थी नरेंदर की! और हाथ पाँव भी नहीं टूटे थे! लेकिन नरेंदर ने अपने भाई को अब मजदूरों वाली समस्या से अवगत कराया, बोला, “भाई साहब, लगता है मुसीबतों के दिन शुरू हो गए हैं हमारे”

“मै क्या कहूँ नरेंदर, पता नहीं वहाँ है कौन?” उसने कहा,

“उसके कारण धंधा ख़तम हो रहा है भाई साहब, वहाँ है तो कोई न कोई पका” नरेंदर ने कहा,

“क्या करूँ नरेंदर मै?” ठेकेदार ने कहा,

“एक काम करते है, कोई मुल्ला-मौलवी लाते हैं, कोई तांत्रिक आदि” नरेंदर ने कहा,

“देख लो, काम पूरा करना है, दो महीने और हैं नरेंदर, कहीं जेब से न लग जाएँ” ठेकेदार ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“भाई साहब, मै कल ढूंढता हूँ कोई आदमी ऐसा” नरेन्द्र ने कहा,

“देख लो भाई” उसने कहा,

तब नरेंदर उठा, और अपने एक दोस्त के पास पहुंचा, वो गद्दी लगाया करता था, कहते थे कि सवारी आती है उस पर, दोस्त ने कहा, कि कल सवारी आएगी, कल पूछ लेना!

अब थोडा इत्मीनान हुआ नरेंदर को!

और फिर नरेंदर ने सवाल किया, “वहाँ क्या है जी?”

सवारी ने कुछ न बताया! नरेंदर ने कम से कम दस बारी पूछा, लेकिन कुछ न हुआ! अब झटका लगा नरेन्द्र को!

जब सवारी उतरी तो नरेन्द्र ने अपने दोस्त से पूछा, “यार अखिल, कुछ भी नहीं हुआ”

“क्यों? क्या जवाब आया?” अखिल ने पूछा,

“कोई जवाब नहीं” नरेन्द्र ने बताया,

“ओह……शायद तुमने सही नहीं पूछा, या थाल में पैसे नहीं चढ़ाए होंगे!” अखिल ने कहा,

खाई दोस्तों, कुछ न हुआ! वो लालची अखिल कुछ मदद न कर सका नरेन्द्र की! एक दिन और बीता, फिर उसके पास एक फ़ोन आया उसके एक मित्र का, पता लगा कि कामा-वन के एक गाँव में एक बाबा हैं, वो करते हैं ऐसा काम! अब दौड़ा नरेन्द्र अपने दोस्त के साथ वहाँ! पहुंचा उस गाँव! बाबा जी से मुलाक़ात हो गयी! उसने सारा किस्सा सुना दिया बाबा जी को!

“ओह! लगता है कोई जिन्न है वहाँ” बाबा ने कहा,

“हमे तो पता नहीं जी” नरेन्द्र ने कहा,

“कोई बात नहीं, हम देख लेनेगे” बाबा ने कहा,

“कोई खर्च बाबा?” नरेद्र ने पूछा,

“हाँ, आप अभी दस हज़ार दे दीजिये बाकी काम होने के बाद” बाबा ने कहा,

नरेन्द्र ने दस हज़ार दे दिए बाबा को तभी!

“बस! अब आप न कीजिये चिंता!” बाबा ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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नरेन्द्र को सुकून हुआ ये सुनके!

“अब कोई भी हो, हम देख लेंगे” बाबा ने कहा,

“बाबा जी कब तक?” नरेन्द्र ने हाथ जोड़ के पूछा,

“मै आ रहा हूँ कल” बाबा ने बताया,

“कल ही हो जाएगा काम?” उसने पूछा,

“हाँ! हाँ! कल ही पकड़ लेंगे उस पहलवान को हम!” बाबा ने कहा,

अब आई सांस में सांस नरेद्र के!

“बाबा जी बस, आपका ही सहारा है अब” नरेन्द्र ने कहा,

“घबराओ नहीं!” बाबा ने कहा,

“कोई किसी चीज़ की आवश्यकता हो तो बताइये बाबा जी?” नरेन्द्र ने पूछा,

“वैसे तो कुछ नहीं, अगर पड़ी तो आपको बता देंगे हम” बाबा ने कहा,

“बचा लो बाबा जी” नरेद्र ने कहा,

“आप आ गए तो समझ लो बच गए!” बाबा ने कहा,

“आपका आशीर्वाद!” नरेद्र ने कहा,

“चिंता न करो!” बाबा ने विश्वास बढ़ाया!

“हम तो डरे बैठे हैं जी” नरेद्र ने कहा,

“काहे का डर?” बाबा ने कहा,

“जी पहलवान का” नरेन्द्र ने कहा,

“अरे! पहलवान गया भाड़ में!” बाबा ने कहा!

और फिर विश्वास जीत लिया बाबा जी ने!

 


   
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श्रीशः उपदंडक
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और फिर अगले दिन बाबा जी आ गए! उनके साथ उनका एक चेला भी आया! नरेन्द्र ने झटपट से बाबा जी को वो जगह दिखा दी जहां वो पहलवान दिखाई देता है, जिसने लोगों को मारा-पीटा है! बाबा जी ने अपने चेले के साथ जाकर वो जगह देखी, फिर वहाँ का एक चक्कर लगाया! फिर कुछ जौ के दाने भूमि पर मारे! और फिर चक्कर लगाया! और फिर वहीँ एक जगह एक पत्थर पर बैठ कर ध्यान में केन्द्रित हो गए! करीब पांच मिनट के बाद आँखें खोलीं, और फिर नरेन्द्र से कहा,”नरेन्द्र, यहाँ एक भयानक शक्ति है”

“भयानक?” नरेन्द्र घबराया,

“हाँ” बाबा ने बताया,

“अब फिर बाबा?” नरेन्द्र ने हाथ जोड़ कर पूछा,

“मै लडूंगा उस से” बाबा ने कहा,

“अच्छा!” अब नरेन्द्र मुस्कुराया!

“आप एक काम कीजिये, एक बोतल शराब मंगवाइये और कुछ मांस साथ में, मै आज रात यहीं क्रिया करूँगा” बाबा ने कहा,

“जैसी आज्ञा बाबा जी” नरेन्द्र ने कहा,

उसके बाद बाबा ने वहीँ अपना डेरा लगा लिया, रात होने में औत क्रिया करने में चंद घंटे ही शेष थे! अतः बाबा ने सारा प्रबंध करना ही उचित समझा!

सारा सामान मंगवा लिया गया, बाबा ने कहा की क्रिया के समय उनके पास कोई न आये, नहीं तो कोई भी अनर्थ हो सकता है, ये बात सख्ती से कही उन्होंने! अब जान का जोखिम कौन उठाएगा? इसीलिए सभी मान गए और हट गए वहाँ से!

अब रात होते ही बाबा ने क्रिया आरम्भ की! क्रिया कोई २ घंटों तक चली! बाबा और उसके चेले ने शराब मांस आदि का भोग लिया और तत्पर हो गए! फिर बाबा खड़े हुए अपना लौह-दंड लेकर और उस जगह चले जहां वो पहलवान दिखाई देता था!

आये उस मैदान में, घुप्प अँधेरा था वहाँ! केवल अलख की रौशनी ही थी वहाँ! बाबा आगे बढे और चिल्लाये,” कौन है वहाँ?”

कोई नहीं आया!

“कौन है?” बाबा ने जोर से कहा,


   
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कोई नहीं आया!

“सामने आता है या नहीं?” बाबा चिल्लाए!

कोई नहीं आया!

अब बाबा और आगे बढे, ज़मीन के मध्य आ गए! और बोले, “अरे मै खड़ा हूँ यहाँ! सामने तो आ मेरे?”

कोई नहीं आया!

“हिम्मत नहीं?” बाबा हँसे!

कोई नहीं आया फिर भी!

“हा हा हा हा! पहलवान! तेरे जैसे मैंने कई तोड़ के रख दिए, तेरी क्या बिसात!” बाबा ने अपना लौह-दंड हवा में घुमाते हुए कहा!

लेकिन अब भी कोई नहीं आया!

“हमारी शक्ति से कोई नहीं बच सका!” बाबा ने नाद किया!

“हिम्मत है तो आजा सामने, या मै खींचू तुझे?” बाबा ने चुनौती दी!

और तभी!

तभी ज़मीन पर किसी के कूदने की आवाज़ आई ‘धम्म’! ये आवाज़ बाबा के पीछे आई थी! बाबा ने पीछे देखा, वहाँ कोई नहीं था!

“कौन है?” बाबा ने पूछा,

कोई हरक़त नहीं हुई!

“कौन है? सामने आ मेरे?” बाबा ने फिर से चुनौती दी!

और फिर!

फिर एक लम्बा-चौड़ा आदमी वहाँ प्रकट हुआ! बाजुओं में चमड़े के पट्टे जैसे भुज-बंध धारण किये हुए! गंजा! बलिष्ट देह! बाबा की छाती के बराबर उसकी एक कलाई थी! हाँ, उसका चेहरा स्पष्ट नहीं दिखाई दे रहा था! केवल काला स्याह चेहरा! वो बाबा से पंद्रह फीट दूर खड़ा था!


   
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बाबा ने हिम्मत दिखाई! बोले, “कौन है तू?”

उस आदमी ने कुछ न कहा, वो यथावत खड़ा रहा!

“बता? कौन है तू?” बाबा ने अपना लौह-दंड उसको दिखाते हुए कहा!

और तब जैसे कोई पेड़ चीरा जाता है, ऐसी आवाज़ हुई!

बाबा ने आँखें फाड़ के देखा उसको!

अब बाबा ने मंत्र पढना आरम्भ किया! वो आदमी आगे बढ़ा कोई पांच फीट! और फिर एक ही झटके में उसने बाबा के सामने आके बाबा को उसके गले से पकड़ के उठा लिया! बाबा की घिग्घी बंध गयी! अब चेला आया बाबा को बचाने एक जलती हुई लकड़ी लेकर, उस आदमी ने एक लात मारी उसको खींच कर, वो गिरा कोई पच्चीस फीट दूर जाकर! और उठ न सका! वहीँ हाथ-पाँव मारता रहा!

और यहाँ!

यहाँ बाबा की जान पर बन आई थी!

 

अब उनकी मदद करने वाला भी कोई नहीं था वहाँ! न ही कोई आने वाला था! सभी को मना जो कर दिया गया था! उस आदमी ने बाबा को वैसे ही पकड़ कर सारा मैदान घुमा दिया! बाबा का दम घुटने लगा तो उस आदमी ने उसको ज़मीन पर छोड़ दिया! ज़मीन पर छोड़ते ही, बाबा ने जोर जोर से साँसें लीं! अपने आसपास देखा, वो कहीं नहीं था, अब बाबा भागा उलटे पाँव! जान बच गयी थी, यही क्या कम था! वो भागा अपने चेले की तरफ, चेला वहाँ लेटा हुआ कराह रहा था, बाबा ने उसको उठाया और फिर सहारा देकर खड़ा किया, उसका एक हाथ टूट गया था और पाँव का अंगूठा भी टूट गया था, इतना भीषण प्रहार था उस आदमी का!

बाबा धीरे धारे नरेन्द्र के पास आया चेले को लेकर, उनकी ऐसी हालत देख कर नरेन्द्र के होश फाख्ता हो गए! पास बैठे सभी लोगों को जैसे काठ मार गया!

“ये क्या हुआ बाबा?” नरेन्द्र ने खड़े होकर पूछा,

“इसको अस्पताल ले जाओ अभी फ़ौरन” बाबा ने अपने चेले की तरफ इशारा करते हुए कहा,


   
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तब नरेन्द्र के एक साथी ने फ़ौरन उसको अपनी गाड़ी में डलवाया और दो आदमियों को साथ ले भागा अस्पताल!

“क्या है वहाँ बाबा जी?” नरेद्र ने घबरा के पूछा,

“कोई पहलवान है, बड़ा खतरनाक, उसी ने हाल किया हमारा ऐसा, जान बच गयी बस किसी तरह” बाबा ने अपनी गर्दन को सहलाते हुए कहा,

“अब क्या होगा बाबा?” नरेन्द्र ने पूछा,

“छोड़ दो ये जगह अभी” बाबा ने समझाया,

“छोड़ दें?” नरेन्द्र को जैसे यकीन नहीं हुआ,

“हाँ, जान बचानी है तो छोड़ दो” बाबा ने फिर समझाया,

“लेकिन बाबा हमारा पैसा लगा है यहाँ? कोई और नहीं है जो इसको पकड़ सके?” नरेन्द्र ने पूछा,

“मेरी जानकारी में तो नहीं है” बाबा ने कहा,

“ओह!” नरेन्द्र ने कहा,

“एक न एक दिन जान जायेगी किसी की यहाँ, देख लेना, मान जाओ छोड़ दो ये जगह” बाबा ने समझाया,

ये सुनके तो नरेन्द्र के पसीने छूट गए!

अब बाबा ने नरेद्र से कहा,” मुझे मेरे चेले के पास ले चलो”

“चलो बाबा” नरेद्र ने कहा,

और फिर वो बाबा को लेकर चला गया उनके चेले के पास अस्पताल!

अब बाबा का किस्सा हो गया ख़तम!

अगले दिन नरेन्द्र ने ये बात अपने भाई को बताई, भाई परेशान हो गया सुन कर, आखिर में उसने ये बात मालिक को बता दी, मालिक अगले दिन आ गया वहाँ, इनका नाम अरविन्द है, अरविन्द को सारी बातें बता दी गयीं, अरविन्द को तो जैसे बेहोशी आने लगी सारी कहानी सुनके!


   
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अरविन्द और उसके बड़े भाई ने अपनी कुछ ज़मीनें बेच कर और कुछ ऋण लेकर ये ज़मीन खरीदी थी, एक फार्म-हाउस बनाने के लिए, अब न जाने ये क्या बला आ गयी थी!

अरविन्द ने ये बात अपने बड़े भाई जगदीश से कीं, जगदीश भी घबराए! वहाँ सारे किये हुए उपाय विफल हो गए थे! वहाँ इस पहलवान ने सबकी नींद हराम कर दी थी, जहां ये पहलवान था वहाँ वो स्थान मुख्य था उस फार्म-हाउस के लिए, उसको छोड़ा भी नहीं जा सकता था!

बड़ी अजीब सी स्थिति हो गयी थी अब तो! आगे कुआँ और पीछे खाई!

अरविन्द को अपने एक मित्र का ध्यान आया, वो रेवाड़ी में रहता था, उसके चाचा जी काफी अच्छे मान्त्रिक थे, उसने उनकी सलाह लेना उचित समझा! उसने अपने मित्र को फ़ोन किया और उसी दिन रवाना हो गया रेवाड़ी!

रेवाड़ी पहुंचा, फिर अपने मित्र के यहाँ! मित्र ने चाचा जी से मिलवाया, चाचा जी को सारी बातों से अवगत कराया गया, तब चाचा जी ने कह दिया, वो एक बार स्वयं देखना चाहेंगे वो जगह,जहां ये पहलवान रह रहा है!

“अरविन्द? जो बाबा आये थे, उन्होंने कुछ बताया कि वो बला आखिर है क्या?” चाचा जी ने पूछा,

“नहीं जी, बाबा जी ने नहीं बताया” अरविन्द ने मना किया,

“ह्म्म्म! ठीक है, मै देखता हूँ उसको” वो बोले,

“जी ठीक है, आप कब तक आयेंगे वहाँ?” अरविन्द ने पूछा,

“मै अभी अपने गुरु से आज्ञा लेता हूँ, फिर हम कल शाम तक आ जायेंगे वहाँ” चाचा जी ने बताया,

“जी ठीक है” अरविन्द ने धन्यवाद किया उनका!

अब मित्रगण, वहाँ काम बंद हो गया था, अधिकतर मजदूर भाग खड़े हुए थे वहाँ से! भय का माहौल हो चला था वहाँ! और वैसे भी ऐसी भुतहा कहानियाँ छिपाए नहीं छिपतीं!

खैर, अगले दिन शाम को आ गए चाचा जी! अपने साथ सामान लाये थे सारा! सात्विक-मान्त्रिक थे वो सो मांस-मदिरा का तो प्रश्न ही नहीं उठता था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“मुझे वो जगह दिखाओ अरविन्द” उन्होंने कहा,

तब नरेन्द्र अरविन्द के कहने पर उनको वो जगह दिखाने चला गया!

“ये तो काफी बंजर सा इलाका है अरविन्द” चाचा जी ने जगह को देखकर कहा.

“हाँ जी, यहीं दीखता है वो पहलवान” नरेन्द्र बीच में ही बोला,

“कोई बात नहीं, मै देख लूँगा उसको” उन्होंने कहा और अपना झोला खोलने लगे!

 

मान्त्रिक ने अब वहाँ कुछ फूल निकाले और उनको अपने हाथ में अभिमंत्रित करके उस स्थान में ग्यारह जगह गाड़ दिए! और फिर ग्यारह जगह पवित्र-जल के छींटे छिड़क दिए! उस समय शाम के सात बजे थे, उसके बाद उस मान्त्रिक ने एक वेदिका बनायी और अपने साथ अरविन्द को भी बिठाया, मालिक का होना आवश्यक था वहाँ! मान्त्रिक ने सारी तैयारी कर ली थी!

अब बजे रात के नौ! मान्त्रिक ने वेदिका में सामग्री डाली, एक आसन बिछाया और फिर अपना कार्य पूजा-अर्चना का आरम्भ कर दिया! वायुमंडल में मंत्र-ध्वनि गूँज उठी! वेदिका में लगातार सामग्री डाली जा रही थी! सुगंधी से वातावरण सुगन्धित हो गया था! मान्त्रिक ने मंत्रोच्चार आरम्भ किया! अब! घोर मंत्रोच्चार!

ये मंत्रोच्चार निरंतर दो घंटे तक चलता रहा! उसके बाद मंत्रोच्चार समाप्त हुआ! बल-शोधन कार्य सम्पूर्ण हुआ! अब मान्त्रिक उठा और गले में फूलों के हार डाल कर चल पड़ा उस मैदान में! एक जगह जा कर खड़ा हो गया! फिर कुछ मंत्र पढ़े और फिर बीच में खड़ा हो गया! जेब से एक दिया निकाला, उसमे कोई तेल डाल जेब में से शीशी निकाल कर और फिर बाती डाल कर उसको प्रज्ज्वलित कर दिया! वो अब खड़ा हुआ!

“हे प्रेतात्मा? तुम कौन हो?” मान्त्रिक ने पूछा,

कोई नहीं आया!

“मै तुम्हारा कोई अहित नहीं करूँगा” मान्त्रिक ने चारो तरफ देख कर कहा,

लेकिन कोई नहीं आया!

“हे प्रेतात्मा, मेरे समक्ष आओ” मान्त्रिक ने कहा,

लेकिन अब भी कोई नहीं आया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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तब मान्त्रिक ने और मंत्र पढ़े! लेकिन किसी का भी आने का एहसास न हुआ! तब मान्त्रिक ने थोडा तेल अभिमंत्रित करके भूमि पर एक जगह छिड़का और फिर एक घेरा बना लिया, घेरे में स्वयं खड़ा हो गया!

“हे प्रेतात्मा मेरा अनुनय है तुम प्रत्यक्ष हो जाओ” मान्त्रिक ने कहा,

कोई हरक़त नहीं हुई!

“मुझे विवश न करो प्रेतात्मा” मान्त्रिक ने जेब से फूल निकाल कर ज़मीन पर फेंके!

परन्तु तब भी कुछ न हुआ!

“प्रेतात्मा! मेरे समक्ष आओ” मान्त्रिक ने कहा,

कोई नहीं आया!

अब मान्त्रिक के सब्र का बाँध टूटा!

“हे प्रेतात्मा, मैंने विनीत निवेदन किया, तू नहीं आई, अब देख मै कैसे प्रत्यक्ष करता हूँ तुझको!” मान्त्रिक ने क्रोध से कहा,

तब मान्त्रिक ने अपनी जेब में से एक डिब्बी निकाली, इसमें भस्म थी, पवित्र भस्म! उसने डिब्बी खोली और उस भूमि पर डाल दी!

तभी!!

तभी वहाँ आवाज़ आई जोर की ‘धम्म’! जैसे की कोई भारी भरकम इंसान वहाँ कूदा हो! मान्त्रिक किसी की आमद भांप गया! उसने कहा, “तुम जो कोई भी हो, अपना परिचय दो मुझे”

कोई नज़र नहीं आया!

“मुझे डरा मत ओ प्रेतात्मा! सामने आ!” मान्त्रिक ने कहा,

कोई नहीं आया, केवल गुर्राने की आवाजें आयीं वहाँ!

“तो अब सुन! अब मै तुझे **** कह कर बंधवाउंगा!” मान्त्रिक ने कहा,

अब मंत्री के **** के मंत्र पढने आरम्भ किये!

“ले प्रेतात्मा! अब देखा तू” मान्त्रिक ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब मान्त्रिक घेरे में बैठा, कामिया-सिन्दूर निकाला, माथे पर टीका किया! और फिर जेब से भस्म निकाली! और जैसे ही भस्म नीचे डालनी चाहि, तभी उसको उसके घेरे में ही किसी ने उसकी पीठ पर एक ज़ोरदार लात जमा दी! मान्त्रिक कलाबाजी खाते हुए जा गिरा एक अंधियारी जगह पर! मान्त्रिक घबराया अब! मुंह से मंत्र नहीं फूटे! अब आया सामने उसके वो आदमी! उसको देख मान्त्रिक की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे! मान्त्रिक जैसा ही उठा, उसके चेहरे पर एक घूँसा पड़ा, जबड़ा टूट गया! अब तो शब्द भी न निकले उसके मुंह से! बेचारा मान्त्रिक! वो आदमी वहाँ आया, और उसके बहते हुए खून को देख वो आदमी पलट गया वहाँ से!

अब जब अरविन्द को ये पता चला तो जैसे उसके अन्दर सिल्ली घुस गई बर्फ की! मान्त्रिक को अस्पताल पहुंचा दिया गया! मगर अफ़सोस, तीसरे दिन उसकी मौत हो गयी, कारण था उसका कलेजा फटना!

अब तो जैसे हिम्मत जवाब दे गयी अरविन्द की और उसके भाई की! नरेन्द्र को तो जैसे सांप सूंघ गया!

और फिर मित्रो! ये कहानी आई मेरे पास अरविन्द के बड़े भाई के द्वारा, वो शर्मा जी के किसी रिश्तेदार के परिचित थे! इसीलिए वो एक दिन मेरे पास आ गए! मैंने सारी कहानी सुनी,वही कहानी जो मैंने ऊपर लिखी!

 

ये कहानी सुनकर एक बात तो तय थी, वो प्रेतात्मा जो भी थी, वो न तो कोई जिन्न थी, न कोई राक्षस और न ही कोई गन्धर्व या यक्ष! यदि जिन्न होता तो जो बाबा पहले आये थे उनकी क्रिया से उस पर अवश्य ही असर पड़ता, मारने-पीटने की बात तो दूर! राक्षस होता तो अब तक कोई भी जीवित नहीं बचता उसके हाथों, वो इंसान को दो भागों में चीर देता, बचने का तो सवाल ही नहीं! गंधर्व या यक्ष होते तो वहाँ कभी कोई निर्माण कार्य आरम्भ ही नहीं होता! ये कुछ और ही है, कुछ ऐसा जिस से मेरा सामना कभी नहीं हुआ! और अब तक की घटनाओं के अनुसार उस से बच जाना भी कठिन ही था, वो तांत्रिक-मान्त्रिक को पीट-पाट चुका था! फिर मुझे अपने दादा श्री के एक मित्र अघोरी सिब्बा की एक बात याद आई, एक और शक्ति होती है, जिसे पहलवान कहा जाता है, ये देह से पहाड़ जैसा रूप तो धारण करता ही है, अनेक रूप भी बदलता है, भयानक होता है, ताक़तवर होता है, वक़्त बीतने के साथ साथ और ताक़त में इज़ाफ़ा होता जाता है, ये अक्सर गाँव देहातों के जंगलों में अथवा वहाँ की सीमाओं में वास करता है, इस से भूत-प्रेत और महाप्रेत आदि भी नहीं टकराते! इसको आम भाषा में छलावा कहा जाता है! कई किस्से मैंने भी सुने हैं, जब में छोटा था तो मेरे मामा जी ने स्वयं इस से


   
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