वर्ष २०११ हापुड़ उत्...
 
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वर्ष २०११ हापुड़ उत्तर प्रदेश के पास की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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“बदला! बदला! बदला! ओ चौन्सठी मेरा बदला!” उसने कहा और कभी हँसे और कभी रोये!

“सुन भुंडा! अब मुक्त हो जा इस जंजाल से!” मैंने कहा उसे!

“बिना बदला लिए?” उसने कहा और फिर थूका!

“हाँ! बिना बदला लिए!” मैंने कहा,

“ना! ना! कभी नहीं!!” उसने कहा!

“क्या करेगा?” मैंने पूछा उस से!

“जान से मार डालूँगा! मार डालूँगा! कच्चा खा जाऊँगा!” उसने बताया,

“किसे?” मैंने फिर से गुस्सा दिलाया उसको!

“बौगट को! बछेंद्र को!” उसने कहा और फिर से थूका!

“रहने दे! रहने दे भुंडा!” मैंने समझाया उसको!

“नहीं औघड़! कभी नहीं!” उसने गुस्से से कहा,

“अब ये संभव नहीं भुंडा!” मैंने कहा!

“न बोल ऐसा! सुन औघड़, मै बदले में तेरी गुलामी करूँगा! जैसा कहेगा वैसा करूँगा, मुझे मेरा बदला दिलवा दे औघड़! मै तेरी हाथ जोड़ता हूँ, पाँव पड़ता हूँ!” उसने कहा और फिर से करुण भाव में बोला उसने ऐसा!

“नहीं भुंडा! मेरा मार्ग ऐसा नहीं कहता!” मैंने कहा,

“एक दोस्त के लिए भी?” उसने कहा,

“नहीं” मैंने जवाब दिया,

“ओ मैय्या! मदद कर!” वो चिल्लाया!

“चिल्लाना बंद कर भुंडा!” मैंने कहा,

“तो तू बता मै क्या करूँ?” उसने पूछा,

“सब कुछ उस हिसाब करनेवाली पर छोड़ दे!” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“ओ चौन्सठी! मुझे पूरा कर देती तू!” वो फिर चिल्लाया!

“वो नहीं चाहती थी कि तू ऐसा करे! इसीलिए अधूरा रह गया तू!” मैंने समझाया उसको!

“धोखा दिया हरामज़ादों ने मुझे!” उसने दांत भींच के कहा!

“मरने दे, बे-मौत मारे जायेंगे वो भी” मैंने बताया उसको!

“मै मारूंगा उनको” उसने कहा!

“ठीक है! ठीक है! एक काम कर यहाँ से निकल और जा! जा तुझे जहां जाना है!” मैंने उसके बाल खींचते हुए कहा!

“मुझे ‘खिलंदरी’ चाहिए औघड़!” वो चिल्लाया!

“अपने आप ढूंढ!” मैंने कहा.

“नहीं! मै इसको और उसको लेके जाऊँगा!” उसने कहा,

मुझे आया अब क्रोध! मैंने आव देखता न ताव! मैंने एक दिया खींच के उसके चेहरे पर तमाचा! उसके होश उड़ गए!

“मार ले! तू भी मार ले! ओ चौन्सठी!” वो चिलाया!

“चुप कर!” मैंने डांटा उसको!

“मदद कर” उसने धीरे से गुर्रा के कहा,

“कोई मदद नहीं” मैंने भी साफ़ कहा,

“मदद कर औघड़” अब वो गुस्से से बोला,

“नहीं!” मैंने कहा,

“बहुत माया है मेरे पास! सब दे दूंगा!” उसने कहा,

“नहीं भुंडा!” मैंने कहा,

“केचांग भी दे दूंगा” उसने कहा,

“नहीं चाहिए” मैंने बताया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“रौशनी भी दे दूंगा” उसने कहा,

“नहीं ज़रुरत उसकी” मैंने कहा,

अब वो शांत हुआ, हाथ मलने लगा! गुस्से में घूरने लगा मुझे!

 

“भुंडा! अब तेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा! और जो तू करने की सोच रहा है वो मै तुझे करने नहीं दूंगा!” मैंने कहा!

“दया कर मुझ पर” उसने कहा,

“कैसी दया भुंडा? तूने अपने स्वार्थ के लिए इस परिवार को परेशान किया, तूने इस लड़के सोनू को इस्तेमाल किया, बिजेंद्र के लड़के को मारने की योजना बनाई, और फिर भी कहता है दया?” मैंने लताड़ा और उसको!

“मान जा औघड़” उसने कहा,

“नहीं, कभी नहीं” मैंने जवाब दिया उसको,

“फिर मेरा बदला?” उसने पूछा,

“मुझे नहीं मालूम” मैंने कहा,

“तू मेरे आखिरी सहारा है, मै भटक रहा हूँ औघड़” उसने कहा,

“अपने कर्मों से भटक रहा है तू” मैंने कहा,

“मेरी बात मान ले” उसने विनती की!

“नहीं!” मैंने साफ़ मना कर दिया!

“मुझे बचा ले औघड़” अब उसने फिर से रोना शुरू किया!

“बचा लेता हूँ! तू भटकेगा नहीं! केवल तेरे हाँ करने की देर है, मै तुझे मुक्त कर दूंगा, ये मेरा वचन है” मैंने कहा,

वो शांत हो गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“मै तुझे क्या समझाऊं भुंडा, तूने तो मुझसे भी अधिक दुनिया देखी है, मै क्या बता सकता हूँ तुझे?” मैंने कहा,

“मुझे मेरे बदले का मलाल रहेगा औघड़! बस!” उसने कहा,

“ऐसा नहीं होता भुंडा!” मैंने कहा,

“नहीं, मेरे दिल में काँटा चुभा हुआ है” उसने मुंह लटका के कहा,

“मुक्त होने के बाद कोई काँटा नहीं रहेगा भुंडा!” मैंने कहा,

अब वो फिर से शांत हो गया! कुछ सोचता रहा! काफी देर हो गयी, मेरे हिलाने-डुलाने के बाद भी कुछ न बोला, बस आंसू बहाता रहा!

“भुंडा?” मैंने कहा,

उसने कोई जवाब नहीं दिया!

“भुंडा?” मैंने फिर से नाम पुकारा उसका,

लेकिन कोई जवाब नहीं!

“क्या हुआ भुंडा?” मैंने पूछा,

“मै हार गया औघड़! मै हार गया!” वो रोया अब जोर जोर से!

“नहीं! तू नहीं हार भुंडा!” मैंने बताया उसको!

“कैसे औघड़?” उसने अब मुंह उठाके पूछा,

“जिसने जो किया, वो भुगतेगा, जो तूने किया वो तूने भुगता, जो उन्होंने किया वो, वो भुगतेंगे, हाँ कभी मेरे झपेटे में आ गए तो सच कहता हूँ भुंडा, तेरा बदला मै लेके रहूँगा!” मैंने कहा,

“ओ मेरे औघड़ भाई, बेटे, दोस्त! ओह! कितनी शान्ति! कितनी शान्ति मिली मुझे!” उसने हंसके कहा!

“अब मुझे और हंसा को लेजा औघड़! अब लेजा!” उसने कहा!

आखिर!!!!! आखिर में, मान गया वो कौलिक-औघड़! उसको एहसास हो गया! उसने सच्चाई कुबूल कर ली!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“कौलिक! मेरा आदर और नमस्कार स्वीकार कर!” मैंने कहा और उसके पाँव छू लिए!

“जा औघड़ जा! जो चाहेगा तुझे मिलेगा!” उसने कहा,

अब मैंने उसके हाथ पाँव खोल दिए! वो लिपट गया मुझसे! रो रो के मेरे कपडे भी गीले कर दिए उसने! मै उसकी पीठ पर हाथ फेरता रहा! अब उसके इस संसार से विदा लेने का समय आ गया था!

मित्रो! और भी अन्य बातें हुईं! भुंडा ने समर्पण कर दिया! मुझे भी सहानुभूति हो गयी थी उस से! आखिर में मैंने भुंडा और हंसा को एक छोटे मृद-भांड में डाल लिया!

सोनू बेहोश हो गया था! मैंने उसके घरवालों को अब बुला लिया था! सबकुछ समझा दिया था उनको! वो जहां हमारा धन्यवाद कर रहे थे, वहीँ रो रो के बार बार पाँव छूने के लिए नीचे झुकते रहते थे! हम उस दिन वहाँ से शाम को वापिस आ गए दिल्ली!

 

खैर! सोनू ठीक हुआ, वे सभी आये मेरे पास सोनू को लेकर! एक बार फिर से धन्यवाद किया! आज सोनू पढ़ाई कर रहा है! उसके साथ जो हुआ, उसको आजतक यकीन नहीं!

हंसा और भुंडा को मैंने युग्म-रूप में मुक्त कर दिया! भुंडा बाबा ने जाने से पहले मुझे कुछ समर्पित भी किया था! ये उसकी दी हुई दक्षिणा के स्वरुप में था!

हंसा और भुंडा अब मुक्त हो गए थे!

मेरा एक और कर्त्तव्य सही से निभ गया था!

-----------------------साधुवाद!------------------------- 

 


   
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