वर्ष २०११ हापुड़ उत्...
 
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वर्ष २०११ हापुड़ उत्तर प्रदेश के पास की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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वे तीनों मेरे पास घबराए हुए और बदहवास से आये थे, एक केशव जिनकी उम्र होगी कोई सत्तर वर्ष और दूसरे, बद्री जिनकी आयु थी कोई पैंसठ वर्ष और एक महिला, सीमा, आयु कोई पचपन वर्ष, सीमा, बद्री की धर्मपत्नी थीं, ये रहने वाले हापुड़ के पास के एक गाँव के थे, उनके चेहरे और हाव-भाव से पता चलता था कि किसी गंभीर समस्या की वजह से ही वो मेरे पास आये हैं, मैंने उन्हें आराम से बिठाया और पानी पिलवाया, वो थोडा अब संयत हुए!

सबसे पहले बद्री ने कहना आरम्भ किया, “गुरु जी, मेरा नाम बद्री है, मै एक किसान हूँ, ये मेरे बड़े भाई हैं केशव, हमारे पास हमारी पैत्रिक खेती हैं और हम लोग अपनी खेती ही करते हैं, मेरे दो लड़के हैं, और एक लड़की, बड़ा लड़का, बिजेंद्र, सी.आर.पी.ऍफ़ में जवान है, आजकल वो नीमच में है, उस से छोटी लड़की है गीता, इन दोनों का ब्याह हो चुका है, और फिर एक छोटा लड़का है सुनील, लेकिन हम उसको सोनू बोलते हैं, उम्र है उसकी कोई चौबीस साल”

“अच्छा जी” मैंने कहा, शर्मा जी भी उनकी बातें गौर से सुन रहे थे,

“मेरे बड़े भाई के तीन लड़की हैं और एक लड़का, सभी का ब्याह हो गया है, हम दोनों का संयुक्त परिवार है, किसी तरह की कोई शिकायत नहीं है जी” वे बोले,

“अच्छा” मैंने गौर से सुना और ध्यान में डालता गया उनकी बातें!

“गुरु जी, बात आज से कोई तीन महीने पहले की है, मेरा लड़का सोनू एक रात को उठ बैठा और जोर जोर से रोने लगा, हम भी उठ गए, हमने पूछा कि क्या बात है? काहे को रो रहा है? तो उसने बताया कि यमदूत आये थे और बोल रहे थे कि तेरे घर में तेरे बड़े भाई के लड़के का लड़का अपनी आयु पूरी कर चुका है, और हम तुझे ये बताने आये हैं, आने वाली दिवाली से तीन रोज पहले हम उसके प्राण हरके ले जायेंगे” वो बोले,

“अच्छा? यमदूत आये थे, सोनू के पास, बताने!” मैंने आश्चर्य से कहा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हाँ जी, उसने यही बताया हमे? हमने सोचा कोई सपना आया होगा, समझा-बुझा के सुला दिया, जब वो सुबह उठा तो फिर से रोने लगा, कारण वही बताया, उसने एक काम और किया जी” उन्होंने कहा,

“क्या काम?” मैंने पूछा,

“उसने ये भी बता दिया कि सोनू के बड़े भाई के हाथ में सरिया लग गया है रात में, आर-पार हो गया है, और वो छुट्टी आ रहा है” वे बोले,

“अच्छा?” मुझे आश्चर्य हुआ सुनकर!

“हाँ जी, और फिर हमने उसको फ़ोन मिलाया, और जी, हमारे तो होश उड़ गए, जो सोनू ने बोला था वो सच था!” उन्होंने कहा.

अब मुझे भी हैरत हुई ये सुनकर!

“अच्छा! फिर, लड़का आ गया आपका बड़ा?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, लड़का अगले दिन आ गया!” वे बोले!

“अच्छा!” मैंने कहा!

“जी सारी बातें हमने बतायीं अब बिजेंद्र को, बिजेंद्र को भी झटका लगा! ये क्या चक्कर है? उसने प्यार से बातें कीं सोनू से, सोनू ने उसे एक बात और नयी बता दी!” वे बोले,

“क्या?” मैंने पूछा!

“ये बताया कि जो उनका दोस्त है राजेश, उसकी बीवी मरने वाली है ट्रक के नीचे आके, हाथरस में” उन्होंने बताया,

“क्या?” अब मुझे उत्सुकता ने जैसे कोड़ा मारा हो!

“हाँ जी” उन्होंने कहा,

“फिर?” मैंने पूछा,

“जी गुरु जी, यही हुआ, तीसरे दिन तो फ़ोन आ गया राजेश का, कि उसकी बीवी ट्रक के नीचे आ गयी है, मर गयी वहीँ के वहीँ” वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“ओह!” मेरे मुंह से फूट पड़ा!

“और गुरु जी, बिजेंद्र तो चला गया हाथरस, और यहाँ इसने मचाया रौला! बोल वापिस बुलाओ, वापिस बुलाओ भाई को” उन्होंने बताया,

“अच्छा, फिर?” मैंने कहा,

“गुरु अब तक की सारी बातें सच मान कर हमने जी वापिस बुला लिया उसे, और साहब पता चला कि जिस वैन में वो जा रहा था वो अलीगढ में जाते ही आग के गोले में बदल गयी!” उन्होंने बताया,

अब मुझे भी झटके पे झटके लगने शुरू हो गए थे!

“अच्छा जी, फिर आगे क्या हुआ?” मैंने पूछा,

“गुरु जी, तब हम गए अपने गाँव के पंडित जी के पास, सारी बातें बतायीं, वो बोले ये तो कोई हवा का चक्कर लगता है, उन्होंने एक लाला भगत का पता बता दिया, जी हम जा पहुंचे लाला भगत जी के पास” वे बोले,

“अच्छा! फिर?” मैंने पूछा,

“लाला भगत ने बताया कि हमारे कुल-देवता नाराज हैं, पूजा करनी पड़ेगी शमशान में, तो गुरु जी हमने ग्यारह हज़ार रुपये दिए उनको” वे बोले,

‘अच्छा, पूजा हुई?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, लेकिन कुछ न हुआ” वे बोले,

“ओह, फिर?” मैंने पूछा,

“जी हम गए दुबारा लाला भगत के पास, लाला भगत जी ने कहा कि वो स्वयं देखना चाहेंगे उस लड़के को, और जी एक दिन वो आ गए गाँव, हमारे घर” वे बोले,

“अच्छा! फिर?” मैंने पूछा,

“लाला भगत के आते ही सोनू बड़ा हंसा, बड़ा हंसा!” वे बोले,

“क्यों?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“सोनू बोला अरे ये किसे ले आये, इसकी जलेबी-समोसे की दुकान न चली साहिबाबाद में तो ये भगत बन गया! और गुरु जी ये बात सच्ची निकली!” उन्होंने बताया!

 

अब बद्री चुप हुए तो केशव बताने लगे,” गुरु जी, पूरे घर में अफरा-तफरी मच गयी, इस से डर लगने लगा कि कहीं कुछ अंट-शंट न निकाल दे मुंह से, इस से बच के ही रहने लगे हम सब, एक दिन मुझसे कहने लगा सोनू कि ताई के पेट में जो रसौली है वो फट जायेगी, ऑपरेशन करा लो जल्दी, उसने कहा और यहाँ उसकी ताई को दर्द होना शुरू हुआ, हम घबराए अब, उसी दिन ले गए जी अस्पताल, डॉक्टर ने बताया कि सही समय पर आ गए नहीं तो रसौली फट जाती पेट में ही और ज़हर बन जाता पूरे शरीर में, जान पर बन आती उसके! अब बताओ ऐसी ऐसी बातें करता है, लगता है हमारे कोई देवता आ गए हैं उसके अन्दर!”

“कभी आपने पूछा कि उसको ये बातें बताता कौन है?” शर्मा जी ने पूछा अब,

“हाँ जी, पूछा, बताया उसने कि एक आदमी और दो औरतें आती हैं उसको बताने के लिए” बद्री ने बताया,

“अच्छा, एक आदमी और दो औरतें!” मैंने अचरज से कहा,

“हाँ जी” बद्री ने कहा,

“कमाल है” मेरे मुंह से निकला!

“और तो और, कहने लगा एक दिन कि गीता का गर्भपात हो जाएगा आज, वो गिर गयी है सीढ़ी से और गुरु जी ऐसा ही हो गया!” बद्री ने बताया!

“ओह!” मेरे मुंह से निकला अचानक से!

“ऐसी बातें करता है जैसे कोई बाबा जी है और अब तो बाबा जी बनके घूमता है, लोग भी उसको अब बाबा जी कहने लगे हैं, बदल गया है बिलकुल, हमे तो अब जैसे अपना चेला मानने लगा है, कि ऐसा करो, वैसा करो नहीं तो ऐसा होगा वैसा होगा” केशव ने बताया,

“अच्छा! अब बाबा जी बन गया है!” मुझे अब थोड़ी हंसी सी आई!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“तो कहीं और किसी को नहीं दिखाया आपने उसको?” शर्मा जी ने पूछा,

“हाँ जी, एक को और लाये थे ये तांत्रिक बाबा थे रुद्रपुर के” केशव ने बताया,

“अच्छा? फिर?” मैंने पूछा,

“वो आये तो सोनू अपने कमरे में लेटा था, बाबा के आते ही खड़ा हो गया और बाबा से नज़रें मिलाने लगा, फिर बोला कि बाबा अगर जान प्यारी है तो भाग जा यहाँ से, बाबा भी तैयार थे उन्होंने भी कहा कि तू जो भी है मेरा मुकाबला करके तो देख!” बद्री ने बताया,

“अच्छा!!! आगे?” अब मुझे और उत्सुकता हुई!

“सोनू ने कहा कि बाबा भाग जा यहाँ से, नहीं ओ जान जायेगी तेरी, लेकिन बाबा भी अड़ गए, बोले कि जिसके बाप में दम हो मुझे हाथ तो लगा के दिखाए?” बद्री ने कहा,

“वाह! फिर?” मैंने पूछा,

“जी फिर सोनू आगे आया और लिपट गया उनसे, हाथापाई हो गयी, हम सभी ने बीच-बचाव भी किया, लेकिन उसमे तो जैसे हाथी भर की ताक़त आ गयी थी जी, उसने बाबा का चिमटा उठाके बाबा के सर में दे मारा, सर फट गया बाबा का, बाबा नीचे बैठ गए, कुछ न कर सके, फिर उनको उठा के हमे नर्सिंग-होम ले जाना पड़ा, बाबा को चौदह टाँके आये थे जी” बद्री ने बताया,

“फिर?” मैंने पूछा,

“फिर भी बाबा ने कहा कि उसका मुकाबला वो एक बार फिर करेंगे और दो दिनों के बाद आयेंगे वापिस, कुछ तैयारी करने के बाद” बद्री ने बताया,

“अच्छा! फिर? बाबा आये दो दिनों के बाद?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, आये थे, लेकिन उस दिन सुबह सुबह सोनू ने हम सबको बुलाया और बोला कि अगर वो बाबा यहाँ आया तो अबकी बार जान जायेगी उसकी, पहले


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैंने उसको छोड़ दिया था, आज नहीं छोडूंगा, आज जान से मार दूंगा उस बाबा को, वो नहीं जानता मै कौन हूँ” केशव ने बताया अब,

“ओह! फिर? क्या कभी उसने बताया कि वो है कौन?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, कह रहा था, ‘छब्बीस कोस का घेरा, वहाँ वास है मेरा’, ऐसा बोलता रहता है अक्सर” बद्री ने बताया,

“छब्बीस कोस का घेरा, वहाँ वास है मेरा?” मैंने बुदबुदाया और इसकी कड़ियाँ जोड़ने लगा, ये मंत्र का एक हिस्सा है, ये मंत्र गोरखी-मंत्र है, तभी मै समझ गया कि वो कौन है! हाँ पकड़ लिया था उसको मैंने! लेकिन अभी भी शंका थी, शंका का निवारण मात्र उस से मिलके ही किया जा सकता था, खैर मैंने आगे की कहानी सुनने के लिए फिर से बद्री से प्रशन किया!

“अच्छा, बाबा आये वहाँ, फिर क्या हुआ?” मैंने पूछा,

“अबकी बाबा अपने साथ चार चेले लाये अपने साथ और फिर बाबा ने सोनू को आवाज़ दी, सोनू बाहर आया, उसने बाबा को देखा कर कहा कि उस दिन तुझे छोड़ दिया, आज तू इने चेलों के साथ यही मरेगा!” बद्री ने कहा,

“अच्छा? फिर?” मैंने पूछा,

“फिर तो जैसे सोनू के दुश्मन हो गए वो सारे, सोनू एक लाठी ले कर टूट पड़ा उनपर, बाबा का कोई बस न चला उस पर, आखिर में भाग गए वहा से सब!” केशव ने बताया,

“ये कैसी तैयारी थी बाबा जी की?” मैंने पूछा,

“पता नहीं जी, लेकिन बाबा फिर कभी पलट के न आये वहाँ दुबारा, और यहाँ सोनू ने हम सबको धमकियां दे डालीं कि अगर उस से बिना पूछे कोई काम किया, या किसी को बुलाके लाये तो जान से मार के यहीं ज़मीन में गाड़ देगा सबको, ऐसा सुनकर तो जी हमारे पाँव तले ज़मीन खिसक गयी” बद्री ने बताया अब!

“ह्म्म्म! मामला विचित्र और गंभीर है” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“और हाँ गुरु जी, उस दिन के बाद से रोज शराब और मांस खाता है, गाँव से बाहर जाकर ले आता है, खुद पकाता है और खाता है, घर के छोटे बालकों को भी खिलाता है, और बड़े भाई के लड़के बिजेंद्र से कहता है कि तेरा तो बुलावा आ गया है, जितना खाना है भर पर खा ले” बद्री ने बताया,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“गुरु जी हम बड़े परेशान हो गए हैं, कभी मुझे लात मारता है, कभी अपनी माँ को, कभी ताऊ को मारता है, घर की औरतों को हम उसके सामने नहीं जाने देते, गाली-गलौज करता है, क्या करें हम? आपके बारे में हापुड़ वालों ने बताया था, तभी हम आये हैं यहाँ बड़ी उम्मीद से” बद्री ने बताया!

“और कोई विशेष बात?” मैंने पूछा,

“गुरु जी, उसकी कही हुई सारी बातें सच हुई हैं, हमे तो अपने पोते की चिंता हैं, बिजेंद्र और और बीवी बड़े परेशान हैं, गुरु जी अब क्या होगा उसका? बचा लीजिये गुरु जी, बचा लीजिये” बद्री ने हाथ जोड़ कर कहा,

“न घबराइये, जो मदद मै कर सकता हूँ, अवश्य ही करूँगा” मैंने कहा,

“अब आप बचा लीजिये हमे गुरु जी, न जाने क्या हो गया है उसको? जिंदगी नरक बना के रख दी है उसने हमारी” केशव ने बताया,

“अच्छा, एक बात बातू? आप लोग यहाँ आये हो, ये भी पता चल गया होगा उसको?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, अब देखो घर जाके क्या करता है” बद्री ने बताया,

“आप एक काम कीजिये, मै आपको एक कागज़ देता हूँ, घर जाने से पहले इसको जला देना, और फिर शाम को मुझे फ़ोन करके बता देना कि क्या हुआ? मैंने कहा,

“जी ठीक है” बद्री ने कहा,

तब मैंने एक कागज़ लिया और उस पर एक यन्त्र बना दिया, तामसिक-यन्त्र, और उनको दे दिया,

“ये लीजिये” मैंने कागज़ देते हुए कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“जी” बद्री ने कहा और कागज़ जेब में रख लिया!

“गुरु जी, आप कब आयेंगे?” उन्होंने पूछा,

“मै आज रात जांच करूँगा, फिर आपको कल सुबह फ़ोन कर दूंगा कि हम कब आ रहे हैं” मैंने बताया,

“जी ठीक है” बद्री ने कहा,

उसके बाद वे तीन वहाँ से उम्मीद के साथ चले गए! मै इस परिवार की हालत समझ सकता था, काफी परेशान हो चुके थे ये लोग!

तभी शर्मा जी ने प्रश्न किया, “गुरु जी? ये क्या अजीब सा मसला है?’

“हाँ शर्मा जी, ये है तो अजीब ही” मैंने जवाब दिया,

“क्या घर का कोई देवता है उसके ऊपर?” उन्होंने पूछा,

“सौ प्रतिशत नहीं!” मैंने बताया,

“वो कैसे?” उन्होंने पूछा,

“यदि ऐसा होता तो वो बिजेंद्र के बेटे को बचाता किसी भी संकट से” मैंने बताया,

“हाँ हाँ! सही बात है” उन्होंने गर्दन हिला के कहा,

“वो मीट मांस-मच्छी और शराब पी रहा है, इसका मतलब ये कोई और ही है, कोई ताक़तवर खिलाड़ी!” मैंने बताया,

“खिलाड़ी?” उन्होंने चकित होंके पूछा,

“हाँ! जो भविष्य भी बता रहा है, कभी अच्छा और कभी बुरा!” मैंने कहा,

“हाँ, परन्तु यमदूत? उसने कहा?” शर्मा जी ने पूछा,

“ये उसके स्वयं के ख़याल हैं” मैंने बताया,

‘अच्छा!” उन्होंने कहा,


   
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“हाँ! और एक बात और, वो अब बाबा बना घूमता है, ऐसा ही बताया ना?” मैंने पूछा,

“हाँ, कह तो यही रहे थे वो” वो बोले,

“बस, अब यहीं आके कहानी टेढ़ी हो जाती है, कहानी में तीन शाखाएं आ जाती हैं” मैंने बताया,

“वो कैसे?” उन्होंने पूछा,

“यहाँ आके ये समझ नहीं आता कि उसमे है कौन? देवता नहीं है, परन्तु हो भी सकता है, मान लिया जाए तो एक प्रतिशत, फिर कोई प्रेत भी नहीं है, प्रेत हमेशा नहीं रहता साथ, और फिर वो खाना भी स्वयं पकाता है और खाता है, ये क्या वजह हुई?” मैंने अचरज ज़ाहिर किया!

“हाँ, बड़ी अजीब सी स्थिति है इस सोनू की, वाकई में” वो बोले,

“और ये बातें हमे उस से मिलके ही पता चल सकती हैं” मैंने कहा,

“हाँ, ठीक है, कल चलना है? उन्होंने पूछा,

“हाँ, मै आज रात ज़रा देख लेता हूँ, और कल उनका फ़ोन भी आ जाएगा कि क्या हुआ उनका उनके घर पहुँचने के बाद!” मैंने कहा,

“हाँ, वैसे कागज़ किसलिए दिया था आपने?” उन्होंने पूछा,

“हाँ ये सवाल पूछा आपने काम का! बताता हूँ! ये दरअसल मेरी एक जांच है, या तो सोनू उनसे पूछेगा नहीं कि कहाँ गए थे, या फिर जमकर लड़ाई करेगा, गाली-गलौज करेगा उनसे, लेकिन हाथापाई नहीं करेगा!” मैंने बताया,

“मतलब?” उन्होंने पूछा,

“मैंने उनको दक्खन-वासिनी का यन्त्र दिया है! इसका नाम सुनकर बड़े से बड़े प्रेतादि मैदान छोड़कर भाग जाते हैं!” मैंने बताया!

“ओह!” उन्होंने कहा,

उसके बाद शर्मा जी चले गए वहाँ से, और मै विश्राम करने चला गया, आज इसीके बारे में सोचना था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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रात हुई, मै क्रिया में बैठा, अलख उठाई और अलख भोग दिया, फिर मैंने अपना एक खबीस हाज़िर किया! खबीस हाज़िर हुआ! मैंने खबीस को भोग दिया और सोनू का मुआयना करने भेज दिया! मात्र दो मिनट में आ गया वापिस खबीस! खाली हाथ! मैंने उसे वापिस भेज दिया! परन्तु चिंता की रेखाएं मेरे चेहरे पर उभरने लगीं!

 

जब खबीस वापिस आया खाली हाथ तो मै समझ गया था कि कोई प्रभावशाली शक्ति है जिसके ‘व्यापक-तेज’ से खबीस वापिस आ गया है! अब मित्रगण, ऐसे में ये निर्णय करना कि सामने वाला क्या है, कौन है? और बिना तैयारी किये बिना ये सदैव जानलेवा सिद्ध होता है, मेरे सामने भी यही स्थिति आ खड़ी थी, अब मुझे अपने मंत्र और विद्याएँ जागृत करनी थीं, अतः मैंने अलख में भोग दिया और महाजाप आरम्भ किया! फिर महानाद किया और मै अब क्रिया में बैठ गया! ‘त्रं त्रं’ के जाप से वो स्थान गूँज पड़ा! आसपास विचरते भूत प्रेत जहां थे वहीँ शिथिल हो गए! मै निरंतर जाप करता रहा! मैंने कलुष-मंत्र, जम्भक, विक्राला, तेहुष, त्रिशाला आदि मंत्र व विद्याएँ जागृत कर लीं!

जब मै वहाँ से उठा तो रात्रि के तीन बज चुके थे, शमशान में महाशांति पसरी थी! पारलौकिक प्राणियों का आवागमन हो रहा था! मै वहाँ से उठा और स्नान करने चला गया, स्नान के पश्चात में शर्मा जी के पास आया, वे उठ गए, उन्होंने छूटते ही पूछा,” गुरु जी कुछ पता चला?”

“नहीं शर्मा जी” मैंने बैठते हुए कहा,

“ओह!” उन्होंने कहा,

“वहाँ कोई बड़ी शक्ति जागृत है शर्मा जी” मैंने बताया,

“बड़ी शक्ति?” उन्होंने विस्मय से पूछा,

“हाँ को प्रलापी शक्ति है वहां अवश्य ही” मैंने बताया,

“हलकारा गया था?” उन्होंने पूछा,

“हाँ, गया था, लेकिन खाली हाथ आया वहाँ से” मैंने बताया,

“ओह! इसका मतलब मामला गंभीर है” उन्होंने कहा,


   
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“हाँ, बेहद गंभीर” मैंने भी हाँ में हाँ मिलाई उनकी!

“अब आगे क्या करना है?” उन्होंने पूछा,

“ये तो कल ही पता चलेगा” मैंने कहा,

“अच्छा” उन्होंने मूक स्वीकृति दी,

“एक काम करना आप, प्रातः काल स्नानादि के पश्चात में आपको अखंड-कमलबद्ध और तंत्राभूषण धारण करवाऊंगा” मैंने बताया,

“जी, जैसी आपकी आज्ञा” वे बोले,

“और हाँ, हमेशा की तरह मेरे पीछे ही रहना, आगे नहीं आना, मै नहीं चाहता आपका कोई अहित हो” मैंने बताया,

“जी, अवश्य” उन्होंने कहा,

उसके बाद हम सो गए!

सुबह उठे, स्नानादि से निवृत हुए तो मै उनको क्रिया-कक्ष में ले गया, वहाँ मैंने उनको सशक्त कर दिया, पट्टिकाएं और अखंड-कमलबद्ध बाँध दिया और तंत्राभूषण भी धारण करवा दिए! फिर मैंने भी यही किया!

तभी बद्री का फ़ोन आया, उसने बताया कि सोनू ने पूछा था तो ज़रूर लेकिन कहा कुछ नहीं, गुस्सा भी नहीं हुआ, न लड़ाई झगडा भी नहीं किया उसने! ये एक अच्छी खबर थी! दक्खन-वासिनी यन्त्र ने काम कर दिया था अपना!

थोड़ी देर बाद चाय-नाश्ता कर हमने हापुड़ की और कूच कर दिया! बद्री का गाँव हापुड़ के पास ही है, कोई अधिक दूरी नहीं है, परन्तु दिल्ली-बाईपास पर आजकल इन्तहा भीड़ रहा करती है, हमे इस कारण हापुड़ पहुँचने में डेढ़ घंटा लग गया!

हापुड़ में थोडा भोजन किया और फिर बद्री को बताया कि हम वहाँ गाँव के लिए आ रहे हैं, और हम फिर गाँव के लिए निकल पड़े!


   
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हम जैसे ही गाँव में घुसे, मुझे चिता के जलने की गंध आई! ये गंध मुझे तेहुष-मंत्र के जागृत होने से आई थी, मैंने आसपास देखा, कोई शिवाना तो नहीं वहाँ? लेकिन कुछ नहीं था, बस तीन चार कुम्हारों के घर थे वहाँ!

अब हम और आगे चले, बद्री के घर में गाडी नहीं जा सकती थी, इसीलिए गाडी थोडा पेहले खड़ी कर दी हमने और फिर पैदल ही चले, रास्ते में केशव और बद्री मिल गए, नमस्कारादि हुई और फिर वो हमे अपने घर ले गए!

हम घर में घुसे, वहाँ सोनू नहीं था, पता चला कि खेतों तक गया है, आने वाला है! तब तक उन्होंने हमे दूध पिलाया, खाने के लिए भी पूछा तो हमने खाने को मना कर दिया! बिजेंद्र भी मिला और फिर वही पुरानी बातें दोहराईं!

करीब आधे घंटे के बाद सोनू घर में आया! आते ही गुस्से से मुझे देखने लगा! मै भी खड़ा हो गया! दोनों एक दूसरे को तोलते रहे!

“चल ओये! निकल ले यहाँ से” सोनू ने चुटकी बजाते हुए कहा,

तब मैंने वहाँ बैठे सभी लोगों को वहाँ से हटा दिया!

अब मैंने उसको जवाब दिया, “तेरी क्या औकात मुझे यहाँ से निकालने की?”

“तू मुझे जानता नहीं साले!” उसने गुस्से से कहा,

“तेरी माँ की **!! तू है कौन??’ मैंने भी कहा,

“आज कटेगा! आज कटेगा! आज कटेगा तू यहाँ!” उसने मुझे धमकाया!

“अपने बाप से पैदा है तो काट के देख ले बहन के **!” मैंने कहा,

“ठहर जा! ठहर! तेरा मुंह कीलता हूँ मै!” उसने कहा और आँखें बंद कीं अपनी!

उसके इस ‘कीलता’ शब्द से मै बहुत कुछ जान गया था तब तक! इसीलिए मैंने त्रिशाला-मंत्र का जाप कर डाला! उसने आँखें खोल लीं अपनी! और मेरे सामने थूक दिया! उसकी काट हो गयी थी इसीलिए वो चिढ़ गया था!


   
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अब वो भागा अन्दर अपने कमरे में! मै और शर्मा जी भी उसके पीछे भागे! उसने हमे आते देखा और कमरा बंद कर लिया अन्दर से! और अन्दर से चिल्लाया,” चला जा! चला जा यहाँ से!”

“तू बाहर तो आ? और भगा मुझे यहाँ से?” मैंने कहा,

तब शर्मा जी ने दरवाजे पर लात मारी और बोले, “अरे ओ कुत्ते बाहर तो आ?”

“गला घोंट दूंगा तेरा शर्मा, ये नहीं बचा पायेगा तुझे?” वो चिल्लाया,

“कौन किसका गला घोंतेगा, ये पता चल जाएगा अभी, आजा बाहर आजा अब” मैंने कहा,

“एक मौका दे रहा हूँ मै तुम दोनों को, भाग जाओ यहाँ से” वो गर्राया!

“हम नहीं जाने वाले, तुझमे हिम्मत है तो भगा दे!” मैंने कहा,

“तो तुम ऐसे नहीं मानोगे?” वो बोला!

“हम नहीं मानने वाले! समझा कुत्ते?” मैंने कहा,

“ठीक है, ये आया बाबा बाहर!” उसने बोला और दरवाजा खोलकर तेजी से बाहर भागा, हाथ में उसे एक दरांती थी! उसने दरांती लहराई और फिर एक चारपाई पर चढ़ गया!

वो इतनी तेज भागा था कि हमारे हाथों से निकल गया था! चारपाई पर चढ़ के वो बैठ गया आलती-पालती मारके! और जैसे तांत्रिक हवा में कुछ लिखा करते हैं वो हवा में अपने अंगूठे से लिखने लगा! फिर तेजी से चिल्लाया, “अलख!”

अब मुझे पक्का यकीन हो गया कि ये कौन है! ये कोई तांत्रिक का प्रेत है! निश्चित तौर से मालूम हो गया था! लेकिन ये किस शाखा का और इस हाल में क्यों है, और इसने सोनू को शिकार बना कर लपेट क्यूँ डाली? ये मुख्य प्रश्न थे जो जानना अत्यंत आवश्यक था!

उसने मेरी तरफ ऊँगली की और बोला, “ले तेरा काम तमाम!”


   
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उसने दुर्विक्ष-मंत्र का प्रयोग किया था! मेरा कलेजा बींधने को! मेरे कलेजे में टीस मची, मैंने एक हाथ से थाम और हवा में अंगूठे से कोहिल-मंत्र लिख दिया फिर फूंक मार दी, मंत्र जागृत हुआ और मेरे कलेजे का दर्द समाप्त हो गया! ये देख सोनू बौखला गया!

“कौन है तू?” उसने पूछा,

“बता दूंगा! पहले तू बता, तू कौन है?” मैंने भी उसके सवाल में सवाल किया!

“ह्म्म्म!” तू है टक्कर का आदमी! अच्छी विद्या सीखी है तूने! तू मेरे काम आ सकता है!” उसने मुस्कुरा के कहा!

“काम, कौन सा काम?” मैंने पूछा!

“सुन, मै तेरी उम्र से तिगुना हूँ, तेरे से बड़ा हूँ, सुन, मेरा काम कर दे!” उसने कहा,

“बता? कौन सा काम?” मैंने पूछा,

“मै अधूरा रह गया हूँ” उसने अब धीमे से कहा,

“कैसे अधूरा?” अब मुझे भी हैरत हुई!

“हाँ अधूरा!” उसने कहा और फूट फूट के रो पड़ा, कभी अपने सर पर हाथ मारे और कभी अपनी छाती पर!

“ओ चौसठ कपाली, मेरे साथ क्यूँ किया ऐसा?” वो जम के रोया!

उसने कहा, चौंसठ कपाली! अब तो कड़ियाँ जुड़ने लगी थीं! और मुझे भी विश्वास हो चला था कि मै इसको अब काबू कर लूँगा!

“क्या किया चौंसठ कपाली ने?’ मैंने पूछा,

“आ, इधर आ!” उसने मुझसे कहा और दरांती फेंक दी ज़मीन पर और चारपाई पर खिसक कर जगह बना दी!

मै बिना डर के उसकी चारपाई पर बैठ गया!

“बोल?’ मैंने कहा,


   
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“मेरा नाम जानना चाहता था न? मै हूँ भुंडा बाबा! कौलिक हूँ!” उसने बताया!

वो अब मुझ पर विश्वास करने लगा था!

‘अच्छा! भुंडा बाबा! क्या हुआ था?” मैंने पूछा,

“मै चौंसठ कपाली का साधक हूँ” उसने कहा, और फिर जेब से एक बीड़ी निकाल ली, फिर सुलगाई और चिलम की तरह से खींचने लगा!

“अच्छा!” मैंने कहा,

“मेरा गुरु था बछेंद्र नाथ!” उसने कहा और एक बार और बीड़ी खींची चिलम की तरह!

“मेरा गुरु मेरे ताऊ का लड़का था” उसने बताया,

मै सुनता रहा!

“उसने मुझे तैयार किया, सांचे में ढाल दिया” उसने कहा और फिर आकाश में देखते हुए खो गया! और फिर तेजी से बोला, “अलख!”

“लेकिन बछेंद्र नाथ हरामजादा निकला!” सुने कड़वा सा मुंह बनाया और बछेंद्र नाथ का नाम लेकर ज़मीन पर थूक दिया!

साफ़ था! वो इस बछेंद्र नाथ से घृणा करता था बहुत!

“क्या किया बछेंद्र नाथ ने?’ मैंने पूछा,

“तू खेड़क का गुप्त मंदिर जानता है?” उसने मुझसे पूछा,

बड़ा ही गुप्त प्रश्न पूछा था उसने! मै भी सकपका गया!

“हाँ जानता हूँ” मैंने कहा,

“हाँ! जानता होगा!” ये कह के उसने मेरे बालों में हाथ फेरा!

“वहाँ एक जोगन रहती थी हंसा!” उसने बताया और फिर इस हंसा जोगन के बारे खो गया!

मैंने झकझोरा उसे!


   
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