वर्ष २०११ हल्द्वानी...
 
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वर्ष २०११ हल्द्वानी की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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और अगले ही पल मीना पछाड़ खा के गिरी नीचे! सभी की चीख निकली! सिद्धार्थ ने दौड़ कर माँ को उठाया और रवि ने दरवाज़ा बंद कर दिया!

"क्या हुआ?" रवि ने मीना से पूछा,

"मुझे.....मुझे किसी ने चांटा मारा" वो अपना गाल सहलाते हुए बोलीं, आँखों में पानी भर आया था चांटे की मार से!

"दिखाओ?" सिद्धार्थ ने पूछा,

रवि और सिद्धार्थ ने उनके गाल को देखा, गाल सामान्य ही लगा, लेकिन तभी वहाँ निशान उभरे बारीक! बारीक रेखाएं! और उनमे से खून छलछला गया!

अब तो जैसे कुँए में गिरे सब! बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं! कोई साधन नहीं! और पाँव टिकाने के लिए कोई तल नहीं!

'ठक ठक! ठक ठक!' फिर से दरवाजे पर दस्तक हुई! भागे सारे पीछे! बिस्तर पर सिमट गए! मीना अपनी चुन्नी से अपना गाल ढके थीं! दर्द ऐसा था जैसे किसी गहरे जख्म से चिपकी पट्टी उलीच दी गयी हो!

'ठक ठक! ठक ठक' फिर से दस्तक हुई!

सभी शांत! शांत जैसे किसी तूफ़ान आने से पहले शांति होती है!

घड़ी में समय देखा रवि ने, चार से ऊपर का समय था! सूर्यदेव का रथ अभी तो जुटा भी नहीं होगा! अभी तो सारथि भी सो रहे होंगे! बड़ी विकट स्थिति थी! उनका बस चलता तो स्वयं ही उस दिन सूर्य-रथ जोड़ देते! उस दिन सुबह पहले ही सही!

कुछ क्षण बीते!

कुछ नहीं हुआ तब तक! लगा कोई जीना चढ़ चुका है! वापिस हो चुका है! अब साँस में सांस आई सबके! गहन रात में गहन भय! फिर भी डर के मारे सिमटे रहे सभी के सभी! घड़ी की बैटरी या तो ख़तम हो गयी या फिर उसकी मशीन खराब हो गयी है! आगे ही नहीं बढ़ रही! और अगर बढ़ भी रही है तो सेकंड, मिनट हो गए हैं! ऐसा लगा सभी को!


   
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श्रीशः उपदंडक
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और मित्रगण! किसी तरह से सूर्य महाराज ने अपने आने की सूचना दी जैसे पक्षियों को! बाहर से वाहनों के गुजरने के शोर से और पक्षियों की चहचाहट से वे सभी वापिस लौटे अपने संसार में!

"सुबह हो गयी मम्मी?" पारुल ने पूछा,

"हाँ बेटा" मीना ने कहा, अब तक दवा लगा ली थी उन्होंने गाल पर,

"पापा, हम नहीं रहेंगे यहाँ अब, एक भी दिन" सिद्धार्थ ने कहा,

"आज बुलाओ किसी को बेटे" रवि की माता जी ने कहा,

"हाँ, आज बुलाता हूँ" वे बोले,

अब मीना उठी! दरवाज़ा खोला! खोलते ही जलने की दुर्गन्ध से सामना हुआ! बाहर गैलरी की बत्ती जलाई, गैलरी में राख़ जैसी गंदगी पड़ी थी, कहीं अधिक, कहीं अल्प!

"आशा?" मीना ने कहा,

"आई!" आशा ने कहा, और उठी, किसी तरह हिम्मत करके!

"सफाई कर यहाँ की" मीना ने कहा,

"जी" आशा ने कहा, लेकिन उसको गैलरी पार करने में और वहाँ से झाड़ू लाने में ऐसा डर लगा जैसे जलते हुए अंगार के ऊपर से चलना हो!

रवि ने झटपट हाथ-मुंह धोया और धूप-बत्ती की घर में! हर कमरे में! आशा ने सफाई की और फिर अपने दूसरे कामों में लग गयी!

चाय आई! सभी ने चाय पी! आशा भी वहीं आ गयी!

"बीबी जी, एक आदमी है हमारे यहाँ जो ऐसा काम करता है" आशा बोली!

सभी की निगाह आशा पर टिकी! अब अँधा कहा चाहे! दो आँखें!

"कहाँ?" रवि ने पूछा,

"यही, हमारे गाँव में" आशा ने कहा,

"चल आज फिर" रवि ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"चलिए" उसने कहा,

अब जाकर शांति मिली सभी को!

"वो हटा देगा इनको यहाँ से?' मीना ने पूछा,

"हाँ जी, सारा गाँव वहीं आता है उसके पास, जब भी किसी को हवा या ऐसी कोई परेशानी होती है तो" आशा ने कहा,

"ठीक है, मै भी चलती हूँ" मीना ने कहा,

आनन-फानन में काम निबटाये गए उस समय और फिर रवि, मीना आशा को गाड़ी में बिठा ले गए उसके गाँव! गाँव कोई पंद्रह किलोमीटर दूर था, गाँव में सबसे पहले वो अपने घर गयी, वहाँ से अपने भाई को लिया और पहुंचे उस ओझे के पास! ओझा उस समय वहाँ नहीं था, जंगल फिरने गया था, थोडा इंतज़ार करना पड़ा!

और फिर वो आ गया! उनका संकट-मोचन ओझा आ गया!

ओझा आया! खखार कर गला साफ़ किया, कुछ पूजा-पाठ सी की और फिर अपनी गद्दी पर विराजमान हो गया! रवि ने रटे रटाये पहाड़ों की तरह सारी बात और घटनाएं कह सुनायीं! ओझा बीड़ी खींचते खींचते सुनता रहा! ओझे ने उनके घर का मानचित्र बना लिया अपने दिमाग में! कुछ प्रश्न पूछे और रवि ने उत्तर दिए उनके!

"दिन में भी हो रहा है ऐसा?" उसने पूछा,

"हाँ जी" रवि ने कहा,

"राख़, हूँ?" उसने पूछा,

"जी" रवि ने कहा,

"और जले की दुर्गन्ध?" उसने पूछा,

"हाँ" रवि ने कहा,

"आप दोनों ने देखा उनको, है ना?" ओझे ने अपनी ऊँगली से इशारा किया रवि और मीना की तरफ,

"हाँ जी, हम दोनों ने" रवि ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अच्छा" उसने कहा,

उसने एक कागज़ पर नाम लिखे सभी के और ज़ेब में रख लिया!

"ठीक है, मै आज दोपहर को आऊंगा आपके घर" उसने कहा,

"दोपहर को? आप अभी चलिए?" मीना ने कहा,

"अभी?" उसने पूछा,

"हाँ" रवि ने उत्तर दिया,

"अभी तो नहीं, कुछ 'उठाना पड़ता है हम लोगों को" उसने बताया,

"कितनी देर लग जायेगी?" रवि ने पूछा,

"कोई एक घंटा" उसने कहा,

"कोई बात नहीं, हम इंतज़ार कर लेंगे" रवि ने कहा,

"ठीक है जी" ओझे ने कहा,

अब ओझा उठा और चला गया अन्दर, कुछ 'उठाने' मतलब कि अपनी शक्तियां जागृत करने!

और यहाँ वे सब इंतज़ार करने लगे! करीब सवा घंटे के बाद ओझा आया बाहर!

"चलिए" उसने कहा,

वे सब एक दम से उठे!

"चलिए जी" वे बोले,

चल पड़े सब, गाड़ी में हुए सवार, और गाड़ी दौड़ी अब सरपट घर की ओर!

घर पहुंचे! ओझा घर में घुसा! रुका! बाहर आया और फिर घर का एक चक्कर लगाया, घर तीन तरफ से खुला था, घर का चक्कर लगाने के बाद फिर से घर में घुसा! अन्दर आकर बैठा गया!

"बहुत खतरनाक है ये घर तो" उसने कहा,

ये सुन पाँव तले जमीन खिसकी घर में सभी के!

"जी?" रवि ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ जी, बहुत खतरनाक घर है ये" उसने कहा,

"क्या है जी यहाँ?" रवि ने पूछा, ।

"यहाँ तीन प्रेत हैं, मैं महसूस कर रहा हूँ" उसने बताया,

"अब?" रवि ने पूछा,

"एक काम करना पड़ेगा, आप लोग एक दिन के लिए घर छोड़ दीजिये, मै और मेरा एक साथी यहाँ रहेंगे चौबीस घंटे, तब भगायेंगे उनको यहाँ से" उसने कहा,

अब सभी ने मुंह ताके एक दूसरे के! कहाँ जाएँ? हाँ, क्लिनिक में जा सकते हैं, वहाँ हो सकता है इंतजाम, एक ही रात की तो बात है!

"ठीक है जी" रवि ने कहा,

"ठीक है, मैं बुला लेता हूँ अपने साथी को यहाँ" ओझे ने कहा,

"जी" रवि ने कहा,

वो वहाँ से चलने को तैयार हुए और ओझे ने अपने साथी को फ़ोन किया बुलाने के लिए, रवि आदि घर के लोगों ने अपना ज़रूरी सामान उठाया और तैयारी करने लगे वहाँ से जाने की! तभी रसोईघर में बर्तन गिरे! ओझा भागा वहाँ! जेब से सरसों के दाने निकाले और पढके मारे रसोईघर में! शांत हो गया सब कुछ!

"वो गुस्सा हो गए हैं, आप जाइये यहाँ से!" ओझे ने कहा,

अब मची जैसे भगदड़! आनन-फानन में सभी निकले घर से, सिद्धार्थ ने अपनी दादी का हाथ थामा और बाहर आ गया! रवि ने गाड़ी स्टार्ट की, जैसे तैसे गाड़ी में बैठे सब! वे निकले वहाँ से! ओझा भी बाहर आ गया!

वे लोग क्लिनिक पहुंचे और वहाँ उस ओझे का साथी आ गया, सामान लेकर! जिन्दा मुर्गा और ना जाने क्या क्या! ओझे ने अपनी साथी को सब कुछ बताया और फिर वे दोनों अन्दर घुसे घर में! घर में घुसते ही बाहर का दरवाज़ा बंद हो गया! अपने आप! ओझा समझ गया कि अब खेल शुरू हो चुका है!

"बिसन, थाल सजा" ओझे ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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बिसन ने थाल सजा दिया, उसमे बंधा हुआ जिन्दा मुर्गा रखा, सरसों, उड़द और शराब रखी फिर अगरबत्ती सुलगा दी! ओझा बैठा और मंत्र पढ़े उसने! आँखें खोलीं!

"कौन है?" ओझे ने कहा,

ओझे ने सरसों मरी फेंक कर!

"सामने आओ मेरे" ओझा बोला!

कोई नहीं आया!

"आते हो या खिंचवाऊं?" ओझे ने धमकी दी!

कोई नहीं आया!

"ठीक है, रुक जाओ फिर" ओझे ने कहा,

उसने अब मुर्गा उठाया और उसके बंधन खोले, तभी सामने से एक धुंए जैसा गुबार उठा!

"कौन है?" ओझे ने पूछा,

सामने अब गुबार ने धीरे धीरे एक मनुष्य-आकृति लेनी शुरू की! ओझे और बिसन की आँखें वहीं टिक गयीं! आकृति पूर्ण हुई! वो एक मर्द था, साढ़े छह फुटा कम से कम! जला हुआ, उसका चेहरा, हाथ, बाल सब जले हुए थे, जले हुए इंसानी मांस की दुर्गन्ध फैल गयी वहाँ!

"कौन है तू?" ओझे ने पूछा,

कोई जवाब नहीं!

अब जैसे ही वो आदमी आगे बढ़ा, ओझे ने सरसों मारी फेंक कर! वो वहीं ठहर गया!

"कौन है तू?" ओझे ने पूछा,

"रतन सिंह" वो बोला,

"यहाँ क्या कर रहा है?" ओझे ने पूछा,

"ये मेरा घर है" उसने कहा,

"तेरा?" ओझे ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ, मेरा" उसने कहा,

"नहीं, तेरा नहीं है!" ओझे ने कहा, ।

"मेरा घर है" उसने जवाब दिया!

"अच्छा! और कौन कौन हैं यहाँ तेरे साथ?" ओझे ने पूछा,

"मेरी पत्नी और मेरी बहन" उसने कहा,

"कब से हो यहाँ?" ओझे ने पूछा,

"शुरू से" उसने कहा,

"कब शुरू से?" ओझे ने पूछा,

"पहले से" उसने कहा,

"अच्छा! सुन अब ये घर तेरा नहीं है! अब तू जा यहाँ से" ओझे ने कहा,

"क्यों? मेरा घर है ये" उसने कहा,

"अब नहीं है" ओझा बोला,

वो आदमी आगे बढ़ा, ओझे ने सरसों फेंक के मारी, वो वहीं रुक गया!

"अपनी बीवी और बहन से बोल यहाँ से जाएँ तुम लोग" ओझे ने कहा,

"तू भगाएगा?" उसने कहा,

"हाँ" ओझे ने कहा,

"भगा के देख ले" उसने कहा,

अब ओझे ने मंत्र पढ़े! वो आदमी आगे बढ़ा! ओझे ने सरसों फेंकी! वो नहीं रुका! सरसों आरपार हो गयी!

बाहर का दरवाज़ा अपने आप खुल गया!

अब ओझे और बिसन की जान पर बनी! ओझे ने फिर से अभिमंत्रित सरसों फेंकी! कुछ न हुआ! ओझा और बिसन खड़े हुए, ओझे ने फिर से मंत्र पढ़े तब तक वो आदमी सामने आया, दोनों को एक एक


   
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श्रीशः उपदंडक
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लात जमाई! बिसन तो गिरा सामने जाकर दरवाजे के पास और ओझा गिरा दहलीज़ के पास! ओझा किसी तरह से खड़ा हुआ, मुर्गा भागा वहां से जान बचा कर, उस आदमी से नहीं बल्कि ओझे और बिसन से! बिशन खड़ा हुआ! बिसन को एक और लात जमाई उसने, चीख निकली उसकी और वो भी ओझे के पास आ गिरा! दोनों किसी तरह से उठे और भागे वहाँ से लडखडाते हुए! बाहर सड़क पर आ गए! आज तो हाथ-पाँव टूटते टूटते बचे थे! कम से कम जान तो बच गयी थी! ओझे ने झटपट फ़ोन निकाला जेब से! फ़ोन मिलाया सीधा रवि को और सारी बात सुना दी, सारी बात सुनकर रवि के साथ साथ सभी के होश भाग खड़े हुए! ओझे ने तो उसी क्षण से नाता तोड़ लिया रवि से! ओझे का किस्सा यहीं ख़तम!

अब फंसे रवि साहब! क्या करें! आगे कुआँ पीछे खाई और बगल में दुधारी तलवारें! तब रवि ने फ़ोन मिलाया अपने एक जानकर को, सारी बात बताई! उसे यकीन नहीं आया! खैर, वो एक आदमी को जानता था जो ऐसा काम करता था, सौभाग्य से वो था भी वहीं, उनके जानकर ने रवि को तभी घर जाने को कहा, वो उस आदमी को घंटे भर में ला रहे थे! रवि के पांवों में पसीना तो आया लेकिन फिर वही, मरता क्या नहीं करता! जाना तो था ही, घर खुला पड़ा था! ये एक और चिंता थी! घंटा बीता, अपने जानकार से बात की फ़ोन पर और फिर रवि चले घर की ओर!

घर पहुंचे, उनके जानकार भी पहुँच गए! अपने साथ एक आदमी को लाये थे, गले में मालाएं धारण किये हुए! पहुंचा हुआ लगता था, रवि ने अपने उस उद्धारकर्ता को सारी बात कह सुनायीं! उसने सारी बातें ध्यान से सुनी! और उसने अपना नाम बलराम बताया!

"आइये मेरे साथ" उसने कहा,

बड़ी हिम्मत करके रवि अन्दर घुसे, अन्दर हाल पड़ा था, सरसों पड़ी थी!

"जी यहीं हैं वो प्रेतात्माएं" रवि ने डर के मारे कहा!

"कोई बात नहीं, आप घबराएं नहीं" उसने कहा,

अब उसने मुआयना किया घर का, एक एक कमरा, गुसलखाना और छत! लगातार मंत्रोच्चार करते हुए!

"अभी तो यहाँ कोई नहीं है। उसने कहा,

ये सुनकर राहत पहुंची रवि को!

"मै कील देता हूँ घर, अब नहीं आयेंगे वो" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"आपकी बहुत कृपा होगी!" रवि ने कहा, अब बलराम ने जेब से चाकू निकला और सबसे पहले बाहर का दरवाज़ा कीलित किया, फिर एक एक कमरा और फिर छत!

"लीजिये सारा घर कीलित है अब" उसने कहा,

"बहुत बहुत शुक्रिया" रवि ने कहा और जेब से कुछ पैसे निकाल कर दे दिए बलराम को, बलराम ने ना-नुकुर तो की लेकिन फिर रख लिए!

"अच्छा जी अब चलेंगे हम" बलराम ने कहा,

"अच्छा जी" रवि ने कहा, चाबियाँ उठायीं घर की और घर बाहर से बंद किया और चल दिए बाहर, बाहर उनके जानकर भी थे, धन्यवाद आदि हुआ और दोनों अपने अपने रास्ते चल पड़े!

खुशी हुई रवि को, गाड़ी भगाई सरपट और पहुंचे क्लिनिक!

"क्या हुआ?" मीना ने पूछा,

"चलो घर चलो अब!" रवि ने खुश होके कहा!

"हो गया काम?" सिद्धार्थ ने पूछा,

"एक पहुंचे हुए आये थे उन्होंने ही किया है, सारा घर कीलित कर दिया है, अब कोई नहीं घुस सकता वहाँ!" रवि ने कहा!

"शुक्र है!" सिद्धार्थ ने कहा!

"भला हो उनका!" मीना ने कहा,

"अब चलो यहाँ से!" रवि ने कहा!

सभी उठे और अपना अपना सामान उठाया! क्लिनिक को ताला लगाया और चल पड़े खुशी खुशी घर के लिए!

घर पहुंचे एक नयी स्फूर्ति के साथ! सभी अपने अपने कमरे में चले गए! मीना धम्म से लेटी अपने बिस्तर पर! और रवि भी!

"क्या क्या होता है इस दुनिया में" रवि ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ, मुझे यक़ीन नहीं था इस से पहले" मीना ने कहा,

"मुझे भी नहीं था, लेकिन अब देख लिया" रवि ने कहा,

अब खड़ी हुई मीना, वहाँ से बाहर गयी, गुसलखाने की तरफ! बत्ती जलाई, जल गयी, सब कुछ ठीक था, कोई गड़बड़ नहीं हुई! बड़ी तसल्ली हुई! फारिग हुईं, वापिस आयीं, आशा के पास पहुँची,

"आशा?" मीना ने आवाज़ दी.

"जी?" आशा ने कहा,

"ज़रा चाय बना ले" मीना ने कहा,

"अभी बनाती हूँ" आशा ने कहा और रसोईघर के लिए चल पड़ी!

अब मीना पहुँची पारुल के कमरे में! लेटी हुई थी पारुल!

"कैसी है बेटा?" मीना ने पूछा,

"ठीक, नींद आ रही है" उसने कहा,

"ठीक है, सो जा" मीना ने कहा,

अब पहुंची सिद्धार्थ के कमरे में!

"कैसा है बेटे?" मीना ने पूछा,

"ठीक हूँ मम्मी" उसने कहा और अपने कपड़े निकाले अलमारी में से!

अब वापिस कमरे में आयीं अपने!

"सब कुछ ठीक लग रहा है" मीना ने कहा,

"ठीक ही रहेगा अब" रवि ने कहा!

"ऐसा ही हो" मीना ने कहा और हाथ जोड़े ऊपर देख कर!

चाय आ गयी! चाय पी उन्होने!

और फिर आई रात! रात करीब दो बजे..........


   
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श्रीशः उपदंडक
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रात दो बजे जैसे कोई छत पर कूदा, लम्बे लम्बे डग भर कर जैसे छत की पैमाइश का रहा हो, एक बार और । धम्म की आवाज़ आई, लगा कोई दूसरा इन्सान भी कूदा हो, और फिर तीसरी बार भी ऐसी ही आवाज़ हुई! नीचे सोते सभी लोगों की आँखें खुल गयीं! निंदिया साथ छोड़ गयी! सभी के दरवाजे खुले और सभी भागे रवि के कमरे की तरफ! रवि ने भी तेजी से दरवाज़ा खोल दिया और सभी आ गये उसमे, सिद्धार्थ अपनी दादी को भी ले आया! आवाजें ऊपर से ही आ रही थीं! तभी ऊपर के दरवाज़े के ऊपर किसी ने दस्तक दी, लगा दरवाज़ा खुल गया, हालांकि उसमे ताला लगा था, अब तीन इन्सान एक एक करके जीने से नीचे उतरने लगे! वो आदमी बीच बीच में हँसता तो औरतें भी हंसने लगती! फिर वो डांटने लगता उन दोनों को! ऐसा लगभग आधे घंटे होता रहा! मीना ने रवि की ओर देखा, और रवि ने मीना को! बलराम का कीलन टूट गया था अथवा सही ढंग से नहीं हुआ था! कुछ भी हुआ लेकिन अब स्थिति भयानक थी! तभी उनमे से एक औरत चिल्लाई! वो आदमी हंसा! और फिर दूसरी औरत भी चिल्लाई! तब उस आदमी ने जैसे चांटा मारा उसे! दोनों औरतें खामोश! रवि ने रौशनदान को देखा, जो दरवाज़े के ऊपर था, वहाँ शीशा जड़ा था, देखा वहां की बत्ती कभी जलती और कभी बंद होती! अब हुई उनके दरवाजे पर दस्तक! अब रूह कांपी सबकी! वो प्रेतात्माएं फिर से लौट आयीं थीं!

फिर से दस्तक हुई और फिर आई उस आदमी की आवाज़!

"चले जाओ यहाँ से" वो आदमी बोला!

आवाज़ सुनकर सभी एक दूसरे से चिपक गए मथ गए!

"चले जाओ" वो आदमी बोला,

उसने ऐसा कम से कम दस बार कहा!

"भाग जाओ यहाँ से!" अब एक औरत की आवाज़ आई! आवाज़ बहुत ही कर्कश थी!

"ये मेरा घर है, मेरा!" वो आदमी बोला!

मीना और रवि ने मन ही मन एक दूसरे को देखते हुए जैसे ये निर्णय कर ही लिया कि वो अब नहीं रहेंगे इस घर में! बस सुबह हो जाये!

तभी रौशनदान पर किसी औरत का सर दिखा! सर के पीछे का भाग! वो हंसी और उसका सर उस रौशनदान से टकराता! पारुल ने आँखें भींची अपनी और अपनी मम्मी में सिमट गयी! और तभी कमरे की बत्ती गुल हुई! अब तो जैसे मरने वाली हालत हुई! तभी वे तीनों वहाँ से पलटे! तीनों ही जीना चढ़


   
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श्रीशः उपदंडक
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गए! वापिस छत पर गए । और फिर सब शांत हो गया! चले गए थे वो वहाँ से, कमरे में सभी की रुकी हुईं साँसें अब चल पड़ी फिर से!

"ये तो फिर वापिस आ गए" मीना ने कहा,

"हाँ" रवि ने फुसफुसाहट में जवाब दिया!

"पापा बेच दो ये घर" सिद्धार्थ ने कहा!

रवि असमंजस में डूब गए! इतना आसान भी तो नहीं है घर बेचना!

तभी कमरे के बाहर कुछ हरकत सी हुई, सभी की नजरें कमरे की खिड़की पर टिक गयीं! रवि उठे और धीरे धीरे चलते हुए, खिड़की तक आये, पीछे पीछे मीना भी आयीं, बाहर सड़क पर एक हैलोजन-लैंप जल रहा था, उसके आसपास कीट-पतंगे जश्न मना रहे थे! उसी का प्रकाश उनके घर के बागवानी वाले स्थान पर आ रहा था!! रवि ने एक ओट से पर्दा हटाया, बाहर झाँका, वे तीनों वहीं खड़े थे, हालांकि उनके चेहरे नहीं दिख रहे थे पर वहां तीन इंसान खड़े हैं, ये साफ़ था! रवि एक झटके से पीछे हट गए! उनके दिल की धडकनें स्वयं उनके कानों में सुनाई देने लगी!

"क्या हुआ?" मीना ने इशारे से पूछा,

रवि ने बाहर देखने के लिए इशारा कर दिया!

अब मीना ने पर्दा हटाया, और एक ओट से खिड़की की नीचे बैठ कर, बाहर झाँका, वहाँ वे तीनों खड़े थे! कलेजा उनका हलक में आ गया! घड़ी देखी, तीन बज रहे थे! फिर से वही दुष्कर स्थिति! फिर से सुबह का इंतज़ार! माथे पर हाथ रखे वो वहीं बैठ गयीं! दरवाज़े पर फिर से दस्तक हुई! मीना ने फ़ौरन पर्दा हटाया और बाहर झाँका, बाहर अब केवल वो दो औरतें ही थीं, इसका मतलब वो आदमी अब यहाँ था, बाहर गैलरी में, उनके कमरे के दरवाज़े पर!

"चले जाओ यहाँ से!" बाहर से उस आदमी की आवाज़ आई!

सभी के दिल धड़के द्रुत-गति से!

"भाग जाओ!" वो बोला,

उसके हर वाक्य से कमरे में और भय का अँधेरा छा जाता था!

"ये मेरा घर है!" वो आदमी बोला और दरवाजे पर जोर का घुसा मारा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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क्या गुजर रही होगी उस परिवार पर जिसने ये घटना स्वयं देखी थी!

"भाग जाओ!" वो आदमी बोला,

फिर से घुसा मारा उसने!

"जान से मार दूंगा!" अब उसने धमकी दी!

और ऐसा सुनकर सबके मुंह खुले के खुले रह गए! शरीर के प्राण जैसे एड़ियों में आ गए! पाँव हिलाना भी मुश्किल हो गया!

"एक एक को जान से मार दूंगा!" उस आदमी ने कहा,

फिर जैसे वापिस भागा वो, जीने पर चढ़ा और छत पर पहुंचा! शांति हुई, शान्ति लिखना उपयुक्त नहीं यहाँ, सन्नाटा पसरा! भयावह सन्नाटा! घड़ी देखी, चार बजने वाले थे! मीना ने पर्दा हटा के देखा, वो आदमी अब वहीं आ गया था, उन औरतों के पास! और फिर वहाँ से चलते हुए वे तीनों अँधेरे में गुम हो गए!

अब हुई शान्ति!

"मै और बर्दाश्त नहीं कर सकती" मीना ने सर हिला कर कहा!

"मै क्या करूँ? जो जैसा बता रहा है, मै कर रहा हूँ" रवि ने ऐसा कह कर अपनी विवशता जताई!

"कुछ पक्का इंतजाम कीजिये इनका, ऐसे तो मार ही देंगे ये किसी न किसी को एक दिन" मीना ने कहा, और आशंका जताई!

"हाँ ये आशंका तो है ही" रवि ने भी समर्थन किया मीना का!

किसी तरह से भोर हुई! अब जाकर चलने-फिरने लायक हुए सब! लेकिन कमरे से बाहर जाने में डर लग रहा था! और तब! तभी मीना ने दिल्ली में रहने वाले अपनी बड़े भाई अशोक से इस सन्दर्भ में बात की, वो भी घबराया! परन्तु अशोक शर्मा जी का जानकार है, अशोक ने शर्मा जी से संपर्क साधा और शर्मा जी ने मुझ से!

उस परिवार की विवशता देख मेरा दिल भी पसीज गया, मैंने त्वरित निर्णय लिया, मैंने आवश्यक सामग्री, तंत्राभूषण तैयार कर लिए, अपने ख़बीसों को भोग दिया और उनको मुस्तैद कर दिया! और


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसी दिन करीब ग्यारह बजे मै और शर्मा ही हल्द्वानी के लिए कूच कर गए! मीना से शर्मा जी ने संपर्क कर लिया था और अपने आने की सूचना उनको दे दी गयी थी!

अब हम हल्द्वानी की इन प्रेतात्माओं से साक्षात्कार करने वाले थे! उसी रात्रि को!

हम करीब सात बजे हल्द्वानी पहुंचे! बस अड्डे पर लेने आये थे रवि, संयत स्वभाव वाले और उस समय बेहद चिंतित थे! उन्होंने रास्ते में ही सारी बातें बता दी! शुरू से लेकर आखिर तक! भय के मारे डॉक्टर साहब का ही स्वास्थय बिगड़ गया था! बस अड्डे से काफी दूर था उनका घर हमे करीब एक सवा घंटा लग गया वहाँ पहुँचने में! आखिर में हम उनके घर आ गए, रास्ते में उन्होंने अपना क्लिनिक भी दिखाया हमे, घर पहुंचे तो मै गाड़ी से उतरा, उतरते ही आभास हो गया वहाँ किसी की मौजूदगी का! कोई भयानक प्रेत! ये घर निश्चित रूप से प्रेतग्रस्त था! उनकी जद में था, इसमें कोई संदेह नहीं था!

हम घर में घुसे, मनहूसियत पसरी थी वहाँ, सन्नाटा पसरा था अपने पूरे पाँव पसारे! मैंने वहाँ रह रहे सभी लोगों को देखा, उनसे मिला, ये देखने के लिए कि कोई उनके असरात की चपेट में तो नहीं? मुझे ऐसा नहीं दिखा, सब ठीक थे, बस बेहद डरे हुए थे सभी के सभी! मैंने सभी के कमरे देखे जांच की और फिर छत की भी जाँच की! फिर मै नीचे आ गया! वहाँ गया जहां वो बाहर दो जगह नज़र आये थे, मैंने वहाँ की गहन जांच की, प्रेतों के आने का एक निश्चित मार्ग होता है, और उनका ये मार्ग छत से होकर आता था!

अब तक कॉफ़ी आ चुकी थी सो कॉफ़ी पी हमने और फिर मैंने रवि से पूछा, "कब खरीदा आपने ये मकान?"

"कोई दो महीने हुए हैं" वे बोले,

"पहले कौन रहता था यहाँ?" मैंने पूछा,

"पता नहीं, डीलर ने बताया था कि ये मकान खाली पड़ा था कोई साल भर से, दाम भी सही थे तो मैंने ये देख कर कि मकान बढ़िया है, तो ले लिया" वे बोले,

"हम्म! तो आपने मकान के साथ साथ यहाँ की बलाएँ भी ले ली!" मैंने कहा,

"हमे तो कुछ मालूम ही नहीं था" वे बोले,

"चलिए कोई बात नहीं, मकान वाक़ई अच्छा है" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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"हम तो इसको बेचने की सोच रहे हैं। वे बोले,

"नहीं, फिर से कोई और परिवार फंसेगा यहाँ" मैंने कहा,

"तो क्या करें?" वे बोले,

"मै देखता हूँ, आप निश्चित रहिये" मैंने उनके हाथ पर हाथ रख कर कहा!

"जी जीवन भर हम आपके ऋणी रहेंगे" वे हाथ जोड़कर बोले!

"कोई बात नहीं, मैं देखता हूँ" मैंने कहा,

"हम बहुत दुखी हो चुके हैं उसने" अब मीना ने कहा,

"जानता हूँ" मैंने कहा,

"ना तो क्लिनिक ही चला पा रहे हैं और ना घर में चैन से रह पा रहे हैं" मीना ने दुखी होकर कहा,

"अब सब ठीक हो जायेगा, ना घबराएं अब" मैंने कहा,

मेरे शब्दों से उनकी हिम्मत बंधी!

"कौन से कमरे के दरवाजे पर दस्तक होती है?" मैंने पूछा,

"जी वो वाला, वो मेरा कमरा है" उन्होंने उस तरफ इशारा करते हुए कहा,

"ठीक है, आप मुझे एक कमरा दें" मैंने कहा,

"जी आइये" वे उठे और बोले,

हम दोनों उठे और उनके पीछे गए, ये कमरा सिद्धार्थ के सामने वाला कमरा था,

"ये ठीक है?" उन्होंने पूछा,

"हाँ, ठीक है" मैंने कहा,

वहाँ मैंने अपना बैग रख दिया!

"अमूमन कितने बजे दस्तक होती है?" मैंने पूछा,

"जी करीब दो बजे से" उन्होंने बताया,


   
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