वर्ष २०११ हल्द्वानी...
 
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वर्ष २०११ हल्द्वानी की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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वो सारे एक कमरे में डरे सहमे बैठे थे! रात्रि का कोई दो बजे का समय होगा, रवि, जो कि पेशे से एक चिकित्सक थे, उनकी पत्नी मीना, वो भी एक चिकित्सक थीं, उनकी बड़ी बेटी पारुल जो कि अभी मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी, और उनका बेटा सिद्धार्थ, जो कि अभी कॉलेज में था और इंजीनियरिंग का छात्र था, रवि की माता जी, जिनकी आयु करीब पचहत्तर वर्ष होगी, सभी एक ही पलंग पर एक दूसरे की बाजुएँ भींचे बैठे थे, उनकी नौकरानी आशा भी उसी कमरे में बैठी थी, एक कुर्सी पर, घर में से अजीब अजीब आवाजें आ रही थीं, कभी रोने की, कभी हंसने की, कभी ऐसा कि जैसे कोई आदमी एक साथ कई औरतों को एक साथ डांट रहा हो! कभी कोई उसको जवाब देता और कभी किसी को मारने-पीटने की आवाजें आती! भय व्याप्त था पूरे कमरे में, सबकी नज़रें कमरे की बंद खिड़कियों और दरवाजे पर टिकी थीं! उनको भय था, भय कि कभी भी कोई दरवाज़ा तोड़ कर अन्दर आ जायेगा और फिर सब की जान पर बन आएगी! कभी खिड़कियों के पाट हिलते खडकते, कभी दरवाजे पर दस्तक होती! कभी दरवाज़े पर ऊपर और कभी नीचे! कभी दरवाज़े की कुण्डी के घुमाने की आवाज़ आती और कभी कोई दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से हाथ मारता! हर आवाज़ के साथ बेचारे एक दूसरे से चिपक जाते! समय काटे नहीं कट रहा था! एक एक पल वर्ष प्रतीत हो रहा था! घड़ी के कांटे जैसे जाम हो गए थे! उनमे से मात्र उनकी माता जी के अलावा और किसी को इस घटना का कारण नहीं पता चल रहा था, केवल उनकी माता जी ही उन सबसे अधिक जानती थीं! वो घर भूतिया है! बस!

उस से पहले, करीब दो महीने..........

रवि ने ये मकान खरीदा था अपना पुराना मकान बेच कर, परिवार में पढ़ने लिखने वाले बच्चे थे, ज़रूरतें बढती जा रही थीं, हालांकि रवि और उनकी पत्नी का चिकित्सीय पेश बढ़िया चल रहा था, फिर भी उनके पहले घर में इतना स्थान नहीं था, घर छोटा था, सो, उन्होंने उस को बेच कर नया घर खरीदने का निर्णय किया! उन्होंने अपना घर बेच दिया और ये नया घर ले लिया, घर बढ़िया था, उनके बेटे बेटी को घर पसंद आया था, स्थान पर्याप्त था, मकान के आसपास खाली जगह भी थी, जहां बागवानी भी की जा सकती थी, घर मुख्य आवासीय क्षेत्र से थोडा अलग था, परन्तु बसावट हो चली थी! आसपास भी अन्य घर बनने आरम्भ हो गए थे! रवि और उनकी पत्नी को अपने क्लिनिक जाने में भी अधिक समय नहीं लगता था, और ऐसे ही उनके बेटे बेटी को भी, हालांकि वे अभी छुट्टी आये हुए थे, दोनों ही, पर घर पसंद आया था उनको!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अभी कोई बीस दिन ही बीते होंगे, एक रात की बात है, रवि की धर्मपत्नी मीना रात्रि को उठीं, समय होगा कोई एक बजे का, नौकरानी अपने छोटे से कमरे सो रही थी, मीना गुसलखाने तक गयीं, बाहर से बत्ती जलाई, उन्होंने दरवाज़ा खोला, दरवाज़ा नहीं खुला, और ज़ोर लगाया, तब भी नहीं खुला! शायद जाम हो गया है, ये सोच उन्होंने कंधे से ज़ोर लगाया, दरवाज़ा नहीं खुला फिर भी! उन्होंने बाहर से देखा तो कुण्डी भी नहीं लगी थी, उन्होंने फिर से ज़ोर लगाया, कुछ नहीं, तभी अन्दर की बत्ती बंद हुई, गुसलखाने की और फिर एक क्षण में दवाज़ा खुल गया, अपने आप! उन्हें बड़ी हैरत हुई! उन्होंने अन्दर जाकर बल्ब उतारा, बल्ब ठीक था, लेकिन बाहर से बटन चालू था! फिर? शायद तारों में कोई गड़बड़ी है, ऐसा सोचा, उन्होंने बटन बंद किया और बल्ब लगाया, जैसे ही बल्ब लगाया, बल्ब जल उठा! शायद बटन में ही खराबी है, ऐसा सोचा! चलो सुबह किसी बिजलीवाले को बुलाकर दिखा देंगे! खैर, वो फारिग हुईं! और उन्होंने अन्दर से दरवाज़े की कुण्डी खोली, दरवाज़े को धकेला, लेकिन दरवाज़ा फिर से जाम! और बल्ब बंद! एक पल को घबरायीं वो! फिर अन्दर से ही आवाजें दी उन्होंने! आवाजें अपनी नौकरानी को और रवि को भी! लेकिन उनकी आवाज़ जैसे दरवाज़े के बाहर नहीं जा रही थी! उन्होंने दरवाजे पर अब हाथ मारे! कोई नहीं आया! वो चिल्लायीं अब! थोड़ी देर में उनकी नौकरानी आई वहां! उसने दरवाज़ा खोला!

"इतनी देर क्यूँ लगाईं आशा?" उन्होंने झुंझलाते हुए पूछा! "मैंने आपकी आवाज़ सुनी तो मै आई यहाँ, पर......." वो कहते कहते रुक गयी!

"क्या पर?" उन्होंने पूछा,

"ये दरवाजे की कुण्डी बाहर से कैसे बंद थी?" आशा ने कहा,

"क्या?" उन्होंने हैरत से पूछा!

"हाँ, दरवाजे की कुण्डी बाहर से बंद थी, मैंने खोली है आ कर" उसने कहा,

ये सुनकर बड़ा अजीब लगा उनको!

"घर में तो और कोई भी नहीं, फिर ऐसा कैसे?" उन्होंने पूछा,

"मै भी यही सोच रही हूँ" आशा बोली,

"चल सुबह बात करेंगे इस बारे में" उन्होंने कहा,

तभी गुसलखाने की बत्ती जल उठी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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चौंध पड़ी तो चौंकी दोनों! आशा ने बटन से बल्ब बंद कर दिया, अब चल पड़ी अपने अपने कमरे की तरफ दोनों! कमरे में आयीं वो तो नींद जैसे विदा ले चुकी थी उनसे, जो कुछ अभी हुआ था, उसका कोई सटीक कारण नज़र नहीं आया था उनको, और फिर वो कुण्डी? वो कौन बंद कर सकता है बाहर से? बल्ब का चलो समझ आताहै, बिजली के तारों में या बटन में गड़बड़ हो सकती है, लेकिन कुण्डी? ये समझ नहीं आया! कहीं ढीली तो नहीं? देखा जाए? वो फिर से उठी और फिर गुसलखाने तक गयीं! बत्ती अपने आप जल उठी! उन्होंने कुण्डी देखी, जाँच की, कोई गड़बड़ी नहीं दिखी उनको! तभी एक दम से बत्ती बंद हो गयी! उनको एक भय सा लगा और वो वापिस पलटी अपने कमरे की तरफ और फिर से बिस्तर पर लेट गयीं! पर, दिमाग उलझ गया था! नींद उड़ चुकी थी! इसी झंझावत में डूबे डूबे निंद्रा ने दया दिखाई और निन्द्रालीन हो गयीं वो!

सुबह हुई!

सुबह होते ही रात की सारी बात उन्होंने रवि को बताई! रवि को पहले तो इस बात में कोई गंभीरता नहीं दिखी, लेकिन कुण्डी वाली बात पर अटक गए वो!

"कुण्डी सच में ही बाहर से बंद थी?" उन्होंने पूछा,

"हाँ, सच में, आशा ने खोली" वे बोलीं,

"किसी की शरारत तो नहीं?" वे बोले,

"और कौन है घर में?" वे बोलीं,

"कुण्डी ख़राब तो नहीं?" वे बोले,

"मैंने जाँच लिया, वो ठीक है" वे बोलीं,

"कमाल है!" वे बोले,

"ऐसा कैसे हुआ?" उन्होंने पूछा,

"मुझे तो पता नहीं" वे बोले,

"चलिए, पहले वो तारें ठीक करवाइए" वे बोलीं,

"हाँ, बुलवा देता हूँ" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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इसके बाद अपने अपने कार्यों में मग्न हो गए दोनों!

दोपहर के समय बिजलीवाला आया, उसने गुसलखाने की दीवार में लगे बिजली के बोर्ड को खोला, जांचा, लेकिन तार तो सभी सही थे, फिर उसने बटन की जाँच की, वो भी सही, उस से बत्ती जल-बुझ रही थी, सही तरह! फिर भी उसने वो बटन बदल दिया, हो सकता है कोई अंदरूनी खराबी हो! उसने बल्ब को भी देखा और उसके होल्डर को भी, सभी सही तरह से काम कर रहे थे!

उसने अपना सामान बांधा और वापिस चला गया!

उस समय आशा घर में अकेली थी, करीब बारह बजे का समय हुआ होगा दिन का, आशा ने दोपहर का खाना बनाने की तैय्यारी शुरू की, और सब्जी काटने लग गयी, वो अपने कमरे में ही सब्जी ले गई थी काटने के लिए, गुनगुनाते हुए सब्जी काटने में मग्न थी! सहसा, रसोईघर से बर्तनों के खड़कने की आवाजें आईं, ऐसी आवाजें कि जैसे कोई बरतनों के ढेर में से कोई ख़ास बर्तन निकाल रहा हो! कुछ बर्तन नीचे भी गिरे थे! वो उठी अपने कमरे से और रसोईघर के तरफ बढ़ी, जैसे ही अन्दर प्रवेश किया आवाजें बंद! हाँ ज़मीन पर गिरे गिलास अभी तक हिल रहे थे! किसी न किसी ने तो गिराया ही था उनको! उसने नीचे गिरे गिलास उठाये और पोंछ कर फिर से बर्तनों में रख दिए, रसोईघर का दरवाज़ा बंद कर दिया, शायद कोई बिल्ली होगी, कह के खुद को समझाया!

अपने कमरे में आई, बैठी, सब्जी हाथ में ली, लें अब वहाँ छुरी नहीं! उसने आसपास छुरी ढूंढी तो भी नहीं मिली! यहीं तो रखी थी? कहाँ गयी? रसोईघर?? उनसे सोचा, और फिर चली रसोईघर के लिए! दरवाज़ा खोला, नीचे फर्श पर पड़ी थी छुरी! यहाँ कैसे आई ये? और फिर वो भी फर्श पर? ये क्या? उसने छुरी उठाई, साफ की और रसोईघर से बाहर आ, दरवाज़ा बंद किया, और फिर से अपने कमरे में चली गई, लेकिन उसके दिमाग में यही घूमने लगा कि जब छुरी यहाँ थी तो वहाँ कैसे पहुँच गयी? बहुत सोचा, आखिर में निष्कर्ष निकला कि गुनगुनाने की धुन में याद नहीं रहा होगा, छुरी उसके हाथ में ही रही होगी, गिलास उठाते समय वो नीचे रखी गयी होगी, शायद! नहीं, ऐसा ही हुआ होगा! यही सोचा उसने! खैर, सब्जी काटी उसने और चली रसोईघर!

करीब पौने दो, दो बजे खाना बन कर तैयार हुआ, रवि और मीना आने ही वाले थे घर, खाना खाने, सो उसने खाने की तैयारी करनी शुरू कर दी! तभी घर के मुख्य दरवाजे पर दस्तक हुई, वो भागी दरवाज़े पर कि आगे गए वे लोग, उसने दरवाज़ा खोला, खोला तो वहाँ कोई नहीं था! वो बाहर आई, आसपास देखा, वहाँ भी कोई नहीं? तो दरवाजे पर दस्तक किसने दी? बाहर गाड़ी भी नहीं खड़ी उनकी! वो तो


   
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श्रीशः उपदंडक
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आये ही नहीं हैं अभी तक! तो कौन था दरवाजे पर फिर? अभी वो सोच ही रही थी कि उसने सामने से मुडती हुई गाड़ी देखी, गाड़ी रवि की ही थी, उसने इंतज़ार किया और वे लोग अन्दर आ गए, आशा ने खाना लगा दिया! अब एक घंटे आराम करने के बाद फिर से जाना था क्लिनिक वापिस उन्हें!

"आशा?" मीना ने आवाज़ दी,

आशा आई,

"वो बिजलीवाला आया था?" उन्होंने पूछा,

"हाँ जी" उसने कहा,

"क्या बताया?" उन्होंने पूछा,

"उसने कहा कि सब ठीक है" आशा बोली,

"ठीक है?" उन्हें हैरत हुई!

"हाँ, उसने खोल कर सब देखा, तार भी ठीक हैं, बल्ब और होल्डर भी, फिर भी वो बटन बदल गया है" आशा ने बताया,

'अच्छा, चल ठीक है, एक काम कर कॉफ़ी बना के ले आ दो कप" वे बोलीं,

"जी, अभी लाती हूँ" आशा ने कहा और वापिस हुई,

अब वो रवि से मुखातिब हुईं!

"रात को तो सब खराब था?" वे बोलीं,

"हो सकता है कोई फॉल्ट हो बटन में" रवि ने उत्तर दिया,

"हाँ, हो सकता है" वे बोली और लेट गयीं!

थोड़ी देर में आशा कॉफ़ी ले आई बना कर, दे दी उन्हें!

"मै आज नहीं जा पाऊँगी क्लिनिक, आप चले जाना" मीना ने कहा,

"क्या हुआ?" रवि ने पूछा, कॉफ़ी का चूंट पीते हुए, .

"मन नहीं है" वे बोली,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"कोई बात नहीं" रवि बोले,

"और वैसे भी कोई अपॉइंटमेंट नहीं है आज" वे बोलीं,

"ठीक है" वे बोले,

दोनों ने कॉफ़ी ख़तम की अब! एक डेढ़ घंटा बीता, रवि उठे और चले अपनी क्लिनिक की ओर, मीना वहीं रह गयीं! जब रवि गए तो आशा आई और मीना से पूछ सारी बातें बता दी उनको, सुनकर बड़ी हैरान हुईं मीना!

"हाँ, सौ प्रतिशत" आशा ने बताया,

"ये हो क्या रहा है घर में?" उन्होंने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा,

"पता नहीं, न तो बिल्ली के जाने का रास्ता है वहाँ, वो छुरी और वो दरवाजे की दस्तक, मुझे तो डर सा लगने लगा है" आशा बोली,

"पागल! डरने की क्या बात है इसमें!" मीना बोलीं!

"ऐसी हरकतें तो ऊपरी ही होती हैं" आशा ने कहा,

इस बात ने मीना को सोच में डाला!

"अरे, ऐसी कोई बात नहीं है" मीना ने कहा,

"मुझे लगा तो मैंने बता दिया" आशा ने कहा,

"हमने तो पूजा-पाठ भी करवाई थी" मीना ने कहा,

दरअसल उनके अन्दर का जो 'आधुनिक-ज्ञान' था वो आड़े आ रहा था! उन्हें इस दकियानूस ख़याल-ओ-शक़ का कोई वजूद नहीं लगा!

"अच्छा, देखते हैं, जा अब" मीना ने कहा,

आशा ने कप उठाये और चल दी वापिस!

अब मीना उठीं और गुसलखाने तक गयीं, सबकुछ जांचा, सब सही था, दो तीन बार बत्ती जलाई-बुझाई, वो भी ठीक थी! दरवाज़ा देखा तो वो भी ठीक ढंग से खुल रहा था! वो अन्दर गयीं, जैसे ही दरवाज़ा बंद किया, कुण्डी लगाईं, बत्ती बुझ गयी! उन्होंने बल्ब को जैसे ही हाथ लगाया, वो जल उठा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब वो फ़ारिग हुईं, दरवाज़ा खोला तो आराम से खुल गया! उन्होंने बटन बंद किया बल्ब का, बटन बंद करने के बाद भी बल्ब ज्यों का त्यों जलता रहा!

"क्या खाक़ ठीक किया है उसने?" वो बुदबुदायीं

"आशा?" उन्होंने आशा को बुलाया,

आशा आई!

"ये देख, क्या ठीक किया है उसने?" मीना ने बटन बंद करके दिखाया!

अब मीना ने जैसे ही बंद किया, बल्ब बंद!

दोनों एक दूसरे को देखने लगी! हैरानी से!

"ये क्या गड़बड़ है?" मीना ने कहा,

"पता नहीं" आशा ने कहा,

तभी अचानक रसोईघर से बर्तन गिरने की आवाज़ आई! दोनों भागी उस तरफ! रसोई में मीना घुसीं तो हर तरफ अफरा-तफरी मची थी! बर्तन-भांडे नीचे गिरे थे! ना कोई आया, ना कोई गया, ये कैसे हुआ? बिल्ली ऐसा तो नहीं कर सकती? तो फिर? आशा नीचे झुक कर बर्तन उठाने लगी, मीना बाहर आ गयीं वहां से, दिमाग में हथौड़े घनघना उठे उनके!

अभी ऐसा सोच ही रही थीं वो की उनके कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से बंद हुआ! जैसे किसी ने गुस्से से धक्का देकर बंद किया हो! वो और आशा भागीं उस तरफ! दरवाज़ा खोलने की कोशिश की तो दरवाज़ा जाम! बहुत ज़ोर लगाया उन्होंने! दोनों ने! लेकिन दरवाज़ा जैसे सीमेंट से चीन दिया गया था!

"कौन? कौन है अन्दर?" मीना चिल्लायीं!

अन्दर से कोई आवाज़ नहीं आई!

"कौन है वहाँ?' मीना ने ज़ोर से पूछा,

कोई आवाज़ नहीं!

"बताओ? कौन है अन्दर?" मीना चिल्लायीं!

तभी दरवाज़ा खुला आहिस्ता से!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मीना अन्दर गयीं! आशा भी, सारा सामान सही था! कुछ बिखरा नहीं था! अब एक दो बार हो तो माना जाए, समझा जाए, यहाँ तो एक के बाद एक नए नए शगूफे खिल रहे थे!

"बीबी जी, मान लीजिये, यहाँ कोई संकट है" आशा ने चारों तरफ देखते हुए कहा,

"कैसा संकट?" मीना ने गंभीरता से पूछा,

"यहाँ है कोई" आशा ने कहा,

"कौन कोई?" मीना ने पूछा,

"कोई भूत, प्रेत, हवा" आशा ने कहा,

"कैसी पागलों जैसी बात करती है, ऐसा कुछ नहीं होता, सब वहम है और कुछ नहीं!" मीना ने कहा,

तभी मकान की छत पर ऐसी आवाज़ हुई जैसे कि कोई ज़ोर से कूदा हो और धम्म धम्म चहलकदमी कर रहा हो! आशा ने मीना की बाजू थाम ली! मीना ने बाजू हटाई, और ऊपर की चाबी लेकर चलीं ऊपर, दरवाज़ा खोला ऊपर का, भौंचक्की रह गयीं वो! छत की मुंडेर पर लगा उन्हें कि जैसे कोई आदमी खड़ा हुआ था और दरवाज़ा खुलते ही नीचे कूद गया! मीना भागी वहाँ, मुंडेर से नीचे झाँका, वहाँ कोई नहीं था! बस झाड़-झंखाड़! और कुछ नहीं! इतने से छोटे समय में, मात्र कुछ पलों में कोई आदमी कैसे भाग सकता है? कैसे कूद कर खड़ा हो भाग जायेगा? अब ठनका माथा उनका! आशा सच कहती है, है कोई ना कोई मुसीबत! डर के मारे नीचे आयीं! आशा से बातें कीं और पूछा, "आशा, क्या करें हम अब बता?"

"पूजा करवाइए घर में" आशा ने कहा,

मीना ने विचार किया!

"ठीक है, मै इनसे बात करती हूँ आज" मीना ने कहा,

"जी" आशा ने कहा और अपने कमरे में वापिस आ गयी, और मीना अपने कमरे में वापिस!

अब मीना ने फ़ोन लगाया रवि को, सारी बातें सिलसिलेवार बतायीं, रवि भी गंभीर हो गए! घर पर आकर बात करने को कह फ़ोन काट दिया उन्होंने!

शाम ढली, रात आई, रवि आये घर वापिस!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"सुनिए, घर में एक पूजा करवाइए" मीना ने कहा,

"ठीक है, मै कल बात करूँगा" वे बोले,

"तुमने उस आदमी को देखा था?" रवि ने पूछा,

"हाँ" मीना ने बताया,

"कैसा था?" उन्होंने पूछा,

"मैंने पीठ देखी थी, चेहरा नहीं" मीना ने कहा,

"हम्म! फिर भी, कैसे कपडे थे, कद-काठी?" उन्होंने पूछा,

"कपडे काले थे, होगा कोई छह सवा छह फीट" वो बोली,

"हम्म, तुमको वहम भी तो हो सकता है?" रवि ने कहा,

"हो सकता है, लेकिन वो धम्म की आवाज़? वो?" मीना ने पूछा,

"हम्म!" वे बोले,

"आशा कह रही थी कि संकट है कोई" मीना ना कहा,

"कैसा संकट?" उन्होंने पूछा,

"कोई भूत-प्रेत, हवा" वे बोलीं,

"कैसी बातें करती हो मीना तुम?" रवि ने हँसते हुए कहा!

"करना पड़ता है" मीना ने कहा,

"तुम्हारी मर्जी, मुझे ऐसा कुछ नहीं लगा अभी तक, लगता है ये भूत-प्रेत औरतों को ही डराते हैं, मर्दो को नहीं!" उन्होंने मजाक सा किया!

"मै झूठ बोल रही हूँ क्या?" मीना ने पूछा,

"मैंने कब कहा?" वे बोले,

"आप कल पूजा कराइये" मीना ने कहा,

"ठीक है" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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कुछ घंटे गुजरे, खाना खा लिया था, अब सोने का समय था! सो सभी सो गए, माता जी भी कल आने वाली थीं घर, वो रवि के छोटे भाई के पास रह रही थीं तब!

उस रात....................कोई तीन बजे............

मीना की आँख खुली, उसे लगा कि कोई मर्द रो रहा है! वो उठीं, बाहर देखने के लिए उन्होंने खिड़की का पर्दा हटाया, हटाते ही पीछे की तरफ धक्का खाया उन्होंने, उनके मकान में लगी सी.एफ.एल. लाइट की मद्धिम रौशनी में उन्होंने जो देखा, वही रवि को दिखाने के लिए आहिस्ता से पीछे जा कर रवि को धीरे से जगाया,

"क्या हुआ?" रवि जागे,

"शशशश......." उन्होंने मुंह पर ऊँगली राखी और खिड़की की तरफ इशारा किया, रवि खड़े हुए और खिड़की के पास गए! पर्दा एक ओट से धीरे से हटाया! और जो देखा! वो देख कर पेट में मरोड़ उठ गयी! आँखें चौड़ी हो गयीं! जुबान मुंह में ही कैद हो गयी!

बाहर दो औरतें लेटी थीं, साफ़ नहीं दिखाई दे रही थीं परन्तु इतना तो पता चलता था कि वो औरतें हैं, उनके पास एक मर्द घुटनों के बल बैठा हुआ रो रहा था! वो उन औरतों को हिलाता, हिलाता और फिर रो पड़ता!

रवि को जैसे होश आया! कोई सपना टूटा! भागे कमरे से बाहर! पीछे उनके मीना! बाहर पहुंचे, बत्ती जलाई, लेकिन वहाँ कोई नहीं था! कोई भी नहीं!

बस जलने की दुर्गन्ध!

अब तो जैसे बुखार चढ़ गया रवि को! उनके अन्दर का चिकित्सक सामान्य हो गया! आधुनिकता पर 'दकियानूसी ख़याल' हावी सा होने लगा! जो कुछ देखा था उन्होंने, वो ना कहीं सुना था और ना पढ़ा था! भूतप्रेत क्या होते हैं आज ये जान लिया था! उन्हें लगा कि आधुनिकता की दीवार चरमराने सी लगी है! किसी भी पल ढह जाएगी! सारी रात नींद ना आई सुबह तक! वो तीन भूत! और उस मर्द का रोना! फिर हवा में ही गायब हो जाना! और वो दुर्गन्ध! जलने वाली दुर्गन्ध! अभी तक नथुनों में बसी थी!

सुबह हुई और थोड़ा समय बीता, गुसलखाने में रवि गए तो मीना की वो बातें याद आयीं जो गुसलखाने में घटी थीं! नहा के आये तो चाय तैयार थी! आज पूजा-पाठ करानी थी, सो, चाय पीकर निकल गए घर से! पहुंचे एक आचार्य जी के पास, उन्होंने एक पंडित जी के पास भेजा, वहाँ पहुंचे, पंडित जी से बात


   
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हुई, सारी घटनाएं विस्तार से बतायीं! पंडित जी ने पूजा करने के लिए हामी भर दी! दो बजे का तय कर दिया समय, रवि ने पता लिखवाया और सामग्री के लिए पैसे भी दे दिए! आ गए घर वापिस रवि! मीना को बता दिया कि दो बजे पंडित जी आयेंगे और पाठ करेंगे, ये भूत अथवा प्रेतात्माएं शांत हो जायेंगी, या यहाँ से प्रस्थान कर जायेंगी! अब शान्ति मिली पूरे घर को! चलो आज पा जानी थी निजात इस विकट समस्या से!

और फिर बजे दो!

पंडित जी सही समय पर आ गए! वेदिका तैयार की और सभी लोग घर के बैठ गए चारों ओर! पाठ आरम्भ हुआ और आहूतियाँ भी! करीब दो घंटे लगे निबटने में! रवि ने पंडित जी को दक्षिणा दी और उनकी विदाई हुई!

"लो जी! हो गयी पूजा!" रवि ने कहा!

"हाँ, अब शांति मिली" मीना ने कहा,

"उम्मीद है अब कुछ नहीं होगा!" रवि ने कहा,

"ऐसा ही हो" मीना ने कहा,

और सच में मित्रगण! कुछ नहीं हुआ उसके बाद! रवि की माता जी आ चुकी थीं उसी शाम घर में, उनको उनका कमरा दे दिया गया था! हाँ क्या घटा था ये नहीं बताया था! नहीं तो बेवजह वो भी परेशान हो जातीं!

करीब बीस-बाइस दिन बीते, पारुल और उसका भाई सिद्धार्थ आये! छुट्टियाँ थीं तो घर ही आना था! घर उनको पसंद तो था ही, खाना खा सो गए अपने अपने कमरे में!

कोई तीन दिन और बीते!

एक रात की बात है, पारुल अपने कमरे में सो रही थी, समय होगा कोई रात दो बजे का, उसकी आँख खुली, लगा कमरे में कोई है, वो उठी और बत्ती जलाई, आसपास देखा, कोई ना था, ना बिल्ली ना चूहा! शायद वहम है, फिर से लेट गयी पारुल, कोई बीस मिनट के बाद फिर आँख खुल गयी, लगा कोई है वहाँ! उसने फिर से बत्ती जलाई! कोई ना था! थोड़ी देर बैठी और फिर सो गयी! फिर कोई आधे घंटे बाद उसकी नींद खुली! उसके चेहरे से कोई कपडा टकराया था! वो उठी और बत्ती जलाई! जो उसने देखा उसकी आवाज़ उसके गले में ही रुंध गयी! आँखें फट गयीं उसकी! उसके कमरे की सारी दराजें


   
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खुली पड़ी थीं! टेबल की, अलमारी की, सामने दीवार पर लगे लकड़ी के शोकेस की! उनका सामान बिखेर दिया गया था! उसको डर लगा! वो भागी वहाँ से, दरवाज़ा खोला और अपने मम्मी-पापा के कमरे पर जाके हाथ बजाये दरवाज़े पर! रवि ने हड़बड़ा कर दरवाज़ा खोला, मीना भी उठीं! अपनी मम्मी से चिपक गयी पारुल!

"क्या हुआ बेटा?" मीना ने कहा,

"मम्मी...मम्मी..." वो अटक अटक कर बोली!

"क्या हुआ? बता ना?" मीना ने पूछा,

अब तक खटर-पटर सुन सिद्धार्थ भी जाग गया था और आशा भी!

"मम्मी ............मेरे कमरे में देखो" उसने कहा,

"क्या हुआ वहाँ?" रवि ने कहा और पारुल के कमरे की ओर बढे! साथ में सिद्धार्थ और मीना भी! पीछे पीछे पारुल भी आ गयी, कमरे में घुसे तो होश उड़े! कमरे के सारे दराज़ खुले हुए थे! उनका सारा सामान बिखरा पड़ा

था!

"ये कैसे हुआ?" सिद्धार्थ ने पारुल से पूछा,

"पता नहीं भाई" पारुल ने कहा,

"पता नहीं? पर ऐसा हो कैसे सकता है?" सिद्धार्थ ने पूछा,

"मुझे नहीं मालूम" पारुल ने कहा,

"पापा? ऐसा कैसे संभव है?" सिद्धार्थ ने पूछा,

अब रवि क्या जवाब दें! वे तो जान भी चुके थे और मान भी चुके थे!

"कभी ऐसा पहले भी हुआ है पापा?" सिद्धार्थ ने पूछा,

अब रवि चुप!

"मम्मी? बताइये?" उसने पूछा,

"हाँ, हुआ है!" मीना ने कहा,


   
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"कब? कैसे?" उसने पूछा,

अब मीना ने कुण्डी वाली बात से आरम्भ कर जलने वाली दुर्गन्ध तक सब बता दिया! उनके चेहरे पर भयमिश्रित भाव आते गए!

"हमने पूजा-पाठ भी कराया था" मीना ने कहा,

"कोई लाभ हुआ?" सिद्धार्थ ने पूछा,

"हाँ हुआ, बीस-बाइस दिन कुछ नहीं हुआ, पर आज.........फिर" रवि बोले,

"वैसे पापा, अप मानने लगे कि ऐसा होता है?" सिद्धार्थ ने पूछा,

"सब कुछ तुम्हारे सामने है" रवि ने दराज़ दिखाते हुए कहा!

अब सिद्धार्थ चुप!

तभी एक ज़ोर की आवाज़ आई! जैसे किसी ने पानी भरा घड़ा ज़मीन पर दे मारा हो! रवि भागे बाहर की तरफ! आवाज़ घर की दहलीज़ से आई थी! उन्होंने ताला खोला! फिर दरवाज़ा! और सामने देखा तो वास्तव में एक सुराही टूटी पड़ी थी वहां! पानी बिखरा पड़ा था दहलीज़ पर! अब दिमाग ने गोते खाए भय के दरिया में! ये सुराही कहाँ से आई? घर में तो है नहीं? और रात को इतने बजे कौन शरारत करेगा?

"ये क्या है पापा?" सिद्धार्थ ने पूछा,

"मुझे नहीं पता बेटे" वे बोले,

तभी रवि की माता जी के चिल्लाने की आवाज़ आई अन्दर से, सभी भागे वहाँ! माता जी वहीं बैठी थीं, हतप्रभ!

"क्या हुआ?" रवि ने पूछा,

माता जी ने कुछ ना कहा!

"क्या हुआ दादी?" सिद्धार्थ ने पूछा,

माता जी ने एक ओर इशारा किया, वहाँ एक कपड़े की पोटली सी पड़ी थी, छोटी सी, रवि ने उठाया उसे, खोला, तो उसमे मिले जले हुए बाल! गुच्छे! बालों के गुच्छे! "ये कहाँ से आये यहाँ?" रवि ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"एक औरत ने मुझे गले से पकड़ के उठाया और मेरे हाथ में ये पोटली दी, मैंने फेंक दी" माता जी ने बताया!

अब तो जैसे भय ने अपने इक्के का पत्ता चल दिया था! सभी अवाक! मुंह फटे रह गए! एक औरत? कौन औरत?

उस रात तो जैसे वे संसार से कट गए थे! एक नया ही संसार उनके घर में घुस आया था, रवि का परिवार उस समय ऐसे महसूस कर रहा था कि केवल वे ही हैं जिन पर ये विपदा टूट पड़ी है! रवि ने वो पोटली वहाँ से उठाई और घर से बाहर फेंक दी! सभी डरे हुए थे, कि न जाने अगले पल क्या हो? सिद्धार्थ काफी संजीदा हो गया था ऐसा देखकर! घर सच में ही भूतिया था, जैसे कि उसने किस्से-कहानियों में सुना था! पूजा से कुछ रुकावट तो हुई थी परन्तु वो प्रेतात्माएं फिर से लौट आई थीं! सभी आकर रवि के कमरे में आ बैठे, उनकी माता जी भी आ गयीं वहाँ, आशा भी वहीं आ गयी! अब सुबह होने का इंतज़ार था सबको! और सुबह, सुबह जैसे रात के अंधकार से हार रही थी! बार बार!

"किसी को बुलाओ यहाँ" रवि की माता जी ने कहा,

"किस को?" रवि ने पूछा,

"किसी ओझा को" वो बोली,

"हाँ, सुबह देखता हूँ मै" रवि ने कहा,

"यहाँ कुछ न कुछ है ज़रूर" वो बोलीं,

रवि मुंह बिचका के रह गए! कुछ न कुछ तो है ही, इस से इनकार नहीं किया जा सकता था!

तभी छत पर फिर से धम्म की आवाज़ आई! जैसे कोई कूदा हो! सभी की आँखें छत पर टिक गयीं! सिद्धार्थ ने दरवाज़े के कुण्डी लगा दी अन्दर से! तभी लगा कि कोई छत पर चहल कदमी कर रहा है! और कोई भाग रहा है! अभी उनकी आँखें छत पर टिकी थीं कि छत से नीचे आने वाले जीने पर कोई उतरता हुआ सा लगा! सभी की आँखें टिक गयीं बंद दरवाजे पर! सन्नाटा पसर गया कमरे में! कुछ भयावह क्षण बीते! पारुल जा चिपकी अपनी माँ से! आशा नीचे बैठ गयी पलंग के पीछे, सिद्धार्थ और रवि सिमट गए एक छोटी से जगह पर पलंग पर!

दरवाजे पर दस्तक हुई! सभी की रूह कांपी अब! दस्तक हुई एक बार! दो बार! फिर आवाज़ आई दो औरतों की, जैसे कह रही हों 'रुको! रुको!' फुसफुसाहट! भय पसरा! पसीने भी ना आये डर के मारे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर से दस्तक हुई! लगा कोई तोड़ ही देगा दरवाज़ा! कुछ भयावह पल बीते! दस्तक बंद हुई! लेकिन कमरे की बत्ती हुई अब गुल! कमरे में लगी घड़ी के काँटों के चलने की ही आवाज़ आ रही थी! साँसें बंद सभी की! तभी बत्ती जल उठी! लगा कोई वापिस जा रहा है, जीने से ऊपर चढ़ते हुए! कुछ भय पीछे हटा अब! चलो, चले गए वो! और तभी फिर से दस्तक हुई दरवाज़े पर! भय कूदा फिर से उनकी गोद में! तभी मीना को ना जाने क्या हुआ! उठी और दरवाजे पर पहुंची! उनको देखा सभी के हलक सूखे!

"कौन है वहां?" वो चिलायीं!

दस्तक बंद हुई!

"बताओ?" मीना चिल्लायीं!

कोई आवाज़ नहीं हुई!

"क्यों तंग कर रहे हो हमें? क्या बिगाड़ा है हमने तुम्हारा?" मीना चिल्लायीं!

किसी ने उत्तर नहीं दिया!

तभी वो कुण्डी खोलने लगीं! उनकी हद पार हो चुकी थी अब!

सिद्धार्थ भागा उनको रोकने!

"मम्मी! मम्मी!" उसने कहा और उनका हाथ थामा! उनको पीछे घसीटा उसने! वो पीछे हुईं!

तभी फिर से दस्तक हुई! अब छलका उनका प्याला सब्र का! वो भागी दरवाज़े पर, कुण्डी खोली और खड़ी हो गयीं वहाँ सामने देखते हुए! पारुल जा चिपकी अपने पापा से! रवि के हाथ-पाँव फूल गए! सिद्धार्थ को माँ की चिंता सताई! आशा पलंग से चिपक गयी और माता जी भजन गाने लगीं!

"कौन है?" मीना चिल्लायीं!

सन्नाटा पसरा!

"कौन है, क्या चाहते हो?"

एक सर्द झोंका आया कमरे में! रोंगटे खड़े हो गए सबके!

"ये हमारा घर है, निकल जाओ यहाँ से?" मीना चिल्लायीं!


   
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