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वर्ष २०११ , हरियाणा रोहतक के पास की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मित्रो! जीवन में हमेशा कुछ न कुछ घटता रहता है, जिस हम समझ जाते हैं वो स्वीकार कर लेते हैं, जो नहीं समझ आता उसको नकार देते हैं, मेरा अर्थ ये है कि उसको समझने का प्रयास ही नहीं करते! इसी में ज्ञान का वो क्षण लुप्त हो जाता है! संसार में कोई भी घटना स्वतः नहीं होती, उसके पीछे उसका कोई कारण निहित रहता है!

ये भी एक ऐसी ही घटना है! वर्ष २०११ में ये घटना घटी थी रोहतक के पास एक गाँव के पास, हरियाणा में, मै शर्मा जी के किसी सम्बन्धी की लड़की के ब्याह में आया हुआ था, वहाँ शादी निबटाने के बाद हम लोग वापिस दिल्ली की ओर चले, शाम वहीँ हो गयी थी, उन लोगों ने हमको रोका, लेकिन हम रुके नहीं थे, अगले दिन मेरे पास असम से कोई मिलने आने वाला था, अतः इसीलिए हम जल्दबाजी कर रहे थे, खैर, खाना खाना पड़ा, उसके बाद हम करीब सात-साढ़े सात बजे वहाँ से निकल पड़े थे, गाँव का रास्ता जो बाहर तक आता था, बड़ा ही खराब और कीचड-काचड भरा था! किसी तरह हिलते-डुलते वहाँ से निकले हम! फिर मुख्य सड़क तक आ गए! यहाँ भी हालत खराब थी! यातायात का जाम लगा था! फंस गए थे अब हम! खैर, किसी तरह धीरे धीरे आगे रेंगते रहे हम!

रात के पौने दस बज गए, तब जाके थोडा सा खुला रास्ता मिला! ट्रक दौड़ रहे थे, एक के पीछे एक! कारें भागे जा रही थीं जैसे कोई स्पर्धा लगी हो! हम भी आराम आराम से चल रहे थे! एक जगह मदिरा का ठेका देखा! वहीँ लगा दी गाडी! खाने का सामान भी वहीँ था! सामान खरीदा और अपना मदिरापान करने लगे! हमारी देखा-देख और भी मदिरा-प्रेमी वहाँ आ गए! महफ़िल सज गयी! हमने भी अपना काम निबटाया और फिर से सवार हो आगे बढ़ चले! साढ़े दस से अधिक समय हो गया था!

अब मदिरापान के बाद आँखें खुल गयीं थीं! अलकत ख़तम हो गयी थी!

करीब कोई रात सवा ग्यारह की बात होगी, मैंने सड़क के एक तरफ खेत में किसी को देखा, मैंने शर्मा जी से गाडी रुकवाई, मैंने ध्यान से देखा, नीचे खेत में एक पेड़ के पास कोई दो साए खड़े थे, इंसानी साए और प्रेत के साए में बहुत अंतर होता है! मै समझ गया की ये प्रेत ही हैं! मैंने तभी कलुष-मंत्र पढ़ा और शर्मा जी के नेत्रों को पोषित किया! उन्होंने देखा तो उनको भी आश्चर्य हुआ! अब हम दोनों गाडी से उतरे! उन दोनों सायों को देखा, एक लड़की का था और एक और किसी बुज़ुर्ग का! लड़की अपने हाथों से ज़मीन खोदने के कोशिश करती थी, फिर खड़ी हो जाती थी! फिर वो बूढा आदमी उसको उठा देता! ऐसा क्रम मैंने करीब बीस बार देखा! गौर से देखा तो ये खेत भी नहीं था, दो खेतों के बीच में एक पेड़ था, शायद शीशम का एक बड़ा पेड़ रहा होगा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब हम नीचे उतर गए! वहाँ तक पहुंचे! तभी उस बूढ़े ने हमको देखा, और लड़की को उठा दिया, लड़की उठी और तेजी से हमारी तरफ बढ़ी! मेरे पास आके एक झटके से पीछे फिकी! वो मेरे तंत्राभूषण की चोट से पीछे फेंक दी गयी थी! वो हमें मारने आई थी दरअसल!

मैंने प्रेत-पाश फेंका! वे बंध गए! इस लड़की को मै सबक सिखाना चाह रहा था! इतनी हिम्मत कि हम पर हाथ उठाये! मैंने दोनों को पकड़ लिया!

उनको पकड़ के अपनी डिब्बी में डाल दिया! और वापिस गाडी में आ गए! गाडी स्टार्ट की और चलते बने! रास्ते में शर्मा जी ने पूछा, "बताओ हमारे से टकरा रही थी! नई नई जून ली है इसने प्रेत की!"

"हाँ! पहचान न सकी ये!" मैंने कहा,

"अब मंजवाओ इस से बर्तन और झाड़ू-बुहारी करवाओ शमशान की ज़मीन!" शर्मा जी बोले!

"देखते हैं, क्या ढूंढ रही थी ये! पता करूंगा इसका!" मैंने कहा,

"ये जो बूढा था, इसके मालूम था, तभी आगे नहीं आया!" शर्मा जी बोले,

"हाँ, वो जानता होगा, तभी नहीं आया आगे!"

उसके बाद और बातें हुई और देर रात हम अपने स्थान पहुँच ही गए!

 

हम वापिस आ गए थे, लेकिन थकावट हो गयी थी और फिर थोडा और भोग लगाने के पश्चात स्वयं भी मदिरापान कर लिया था, अतः उस रात्रि मैंने अपनी डिब्बी नहीं खोली, बस सोने चले गए थे, अगले दिन भी थोडा आराम किया, एक दो जानने वालों से मिला और दिन व्यतीत हो गया, रात्रि समय शर्मा जी, सामान ले आये थे, तो कर दिया कार्यक्रम आरम्भ! जब संचार हुआ शक्ति का तो फिर मुझे उस डिब्बी का ध्यान आया!

मैंने अलख उठायी और अलख-भोग दिया! भूमि कील दी और अपना एक खबीस प्रकट करा लिया! अब मैंने डिब्बी खोली तो दोनों गुस्से में उछल कर बाहर आ गए! लेकिन जैसे ही उन्होंने मेरे खबीस को देखा तो उनकी कंपकंपी छूट गयी! मैंने उस लड़की को देखा, पीले रंग के सूट-सलवार में थी, खुले बाल और मजबूत देह वाली लड़की थी वो, फिर उस बूढ़े को देखा, कोई अस्सी साल का बूढा होगा वो,

मैंने पहले उस लड़की को बुलाया, लड़की डर के मारे आई नहीं, मैंने कहा,"सुन लड़की, अगर मेरी बात नहीं मानेगी, तो ऐसी मार लगवाऊंगा कि तेरी आफत आ जायेगी!"


   
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श्रीशः उपदंडक
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लेकिन लड़की नहीं बोली कुछ भी! फिर मैंने उस बूढ़े को बुलाया, वो आ गया, मैंने उस से पूछा," कौन है तू? क्या नाम है तेरा?"

"मेरा नाम बादल है, मै यहीं का रहने वाला हूँ, रोहतक का" उसने बताया,

"ये लड़की कौन है?" मैंने पूछा,

"एक दुखिया है जी" उसने बताया,

"दुखिया? कैसी दुखिया?" मैंने पूछा,

"पता नहीं जी, मुझे तो अकेली बैठी मिली थी, तभी से इसके साथ हूँ" उसने बताया,

"अच्छा, चल पीछे हो जा, इस लड़की को भेज यहाँ" मैंने उस बूढ़े से गर्म लहजे में कहा,

उस बूढ़े ने उस लड़की को आगे भेजा, लड़की आगे आई, मैंने पूछा, "इस बादल ने कहा कि तू दुखयारी है? क्या दुख है तुझे, और हाँ, सबसे पहले नाम बता अपना, कहाँ की रहने वाली है तू?"

लड़की फिर चुप रही, कुछ न बोली! मुझे गुस्सा आ गया, मैंने उसको दो-चार गालियाँ सुनायीं और फिर कहा, "सुन ओ लड़की अब अगर जुबान ना खोली, तो ऐसी जगह फेंकूंगा तुझे, कि पूरा समय वहीँ क़ैद रहेगी, अब जल्दी बोल? तब तो तू झपट रही थी मुझ पर! अब जल्दी से जुबान खोल दे!" मैंने डांट कर कहा उसे!

अब वो घबराई, बूढ़े ने भी उसको समझाया,

"मेरा नाम अन्नू है, मै रोहतक के एक गाँव की रहने वाली हूँ" उसने बताया, और अपने माँ-बाप का नाम, घर का पता और अपने गाँव का नाम भी बता दिया!

"अच्छा, और बोल, बताती रह" मैंने कहा,

वो फिर कुछ नहीं बोली,

"तू ऐसे नहीं मानेगी लगता है, मै उठा तो वो दौड़ के बूढ़े के पास चली गयी! ना जाने क्यूँ मुझे उस पर दया सी आ गयी! मैं वापिस वहीँ बैठ गया!

अब मैंने बादल को बुलाया, "सुन ओ बादल? इधर आ"

वो दौड़ के आया, मैंने फिर कहा, "अपना पता बता, गाँव का नाम बता, और कोई औलाद हो तो उसका नाम भी बता"


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसने मुझे सब कुछ बता दिया!

"सुन बादल? उस दिन ये लड़की वहाँ क्या खोद रही थी? तू इसकी मदद कर रहा था?"

"जी इसने बताया कि वहाँ कुछ ज़रूरी सामान दबा हुआ है, मुझे बताती नहीं, आज तक भी नहीं बताया इसने, बस वहीँ जाके खोदती रहती है!" उसने बताया,

अब मै खुद ये जानना चाहता था कि माजरा क्या है? ऐसा कौन सा राज़ है? मैंने फिर उनको वापिस डिब्बी में डाल दिया! और खबीस को वापिस भेज दिया!

अब कारिन्दा हाज़िर किया और उसे जानकारी लाने के लिए भेज दिया! कारिन्दा रवाना हो गया! और जो खबर उसने मुझे सुनाई वो बेहद दयनीय कहानी थी दो प्रेमियों की! जिसमे, प्रेम था! और फिर एक जघन्य हत्या! हत्या व्यर्थ के मान-सम्मान के लिए हुई थी! मेरे कारिंदे ने बताया कि अन्नू का उसी गाँव के लड़के, आशीष, से प्रेम-प्रसंग था, जो कि खुद अन्नू का भी गाँव था, ये प्रेम-प्रसंग काफी अंतरंग था, ३ वर्षों से अधिक हो चुके थे, बाद में दोनों के घरवालों ने इस प्रेम-प्रसंग को अनुचित बताया, क्यूंकि दोनों ही विभिन्न जाति से सम्बन्ध रखते थे अतः ये उन परिवारवालों को सहन नहीं था, विवाह की मांग को अनुचित ठहरा कर सिरे से खारिज कर दिया गया था, परन्तु अन्नू और आशीष का प्रेम परवान चढ़ चुका था, पीछे हटने का प्रश्न ही नहीं था, अन्नू के घरवाले अच्छे रसूखदार लोग थे, जबकि आशीष के घरवाले एक मामूली किसान, एक दिन अन्नू और आशीष घर से निकल गए और कोर्ट-मैरिज कर ली, शादी महिना बाद पंजीकृत भी हो गयी, अब दोनों ने करीब तीन महीने के बाद अपने अपने घर लौटना निश्चित किया, दोनों घर लौटे, दोनों की गैर-हाजिरी में अन्नू के घरवालों ने, आशीष के घवालों को डराया-धमकाया था, अतः आशीष के घरवालों ने उसको वहाँ से चले जाने को कहा, आशीष और अन्नू वापिस शहर जाने के लिए निकल पड़े, रास्ते में अन्नू के तीन भाइयों और एक चाचा ने उनको रोका और समझा-बुझा कर अन्नू के घर ले आये, उनको बताया गया कि जब शादी हो ही गयी तो अब क्या किया जा सकता है, अब वो उस परिवार का दामाद है, वो उस रात वहीँ ठहरे, वो आशीष के घरवालों को भी बुला लेंगे और अपनी बेटी रिवाजों के अनुसार विदा कर देंगे, ये उनकी गहरी चाल थी, वो दोनों ये चाल समझ न सके, संध्या-समय अन्नू के भाइयों ने और चाचा ने कमरे बाहर खींच कर आशीष को एक दूसरी जगह ले गए, और अन्नू को कमरे के अन्दर ही बंद कर दिया, आशीष की मार-पिटाई की गयी, और अन्नू के चाचा ने आत्म-सम्मान का हवाला देते हुए, आशीष के सर पर कुल्हाड़ी का एक ज़ोरदार वार किया, सर फट गया, भेजा बाहर आ गया, कुछ देर तड़पने के बाद आशीष की मौत हो गयी, अब अन्नू के भाइयों ने और चाचा ने आशीष की लाश को ठिकाने लगाने की सोची, उन्होंने आशीष के सारे कपडे उतारे, उसका फ़ोन तोडा गया, घडी और पर्स आदि को एक गठरी में बाँधा गया, और


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसकी लाश को गाडी में लाद कर उसको फेंके ले गए, वे उसको एक दूर जगह ले गए, उसकी लाश को नीचे उतार और फिर सब्बल से पीट-पीट कर चेहरा क्षत-विक्षत कर दिया गया, फिर उसको लाश को एक नहर में फेंक दिया गया! उस गठरी को वहाँ एक जगह खेत के पास वाली जगह में गाड़ दिया गया, जहां मैंने इस लडकी और उस बूढ़े को देखा था! वे लोग वापिस घर आये! अन्नू को डराया धमकाया गया! उसको भी आशीष जैसा हश्र होने की धमकी दी गयी, बेचारी डर के मारे कुछ न बोल सकी, घर की औरतों ने भी उसको समझाया-बुझाया, लेकिन तब तक वो एक भयानक निर्णय ले चुकी थी, दो दिनों तक सामान्य व्यवहार कर उसने घरवालों का विश्वास जीता, और तीसरे दिन रात्रि समय फांसी लगा ली! समय बीता, अन्नू के भाई और चाचा को शक की बुनियाद पर और आशीष के घरवालों की शिकायत पर, पुलिस ने गिरफ्तार किया और पूछताछ की गयी और फिर बाद में उन्होंने अपना गुनाह क़ुबूल कर लिया, लाश एक गाँव के पास एक नहर की टक्कर के पास बरामद कर ली गयी थी. वो अब जेल में थे और मुक़द्दमा चल रहा था! ये थी वो वीभत्स कहानी जो मुझे पता चली! अपने प्रेमी और पति आशीष को देखने की लालसा उसके मन में रही और और वो अपनी इच्छा-पूर्ति हेतु प्रेतात्मा में तब्दील हो गयी!

अब मुझे इस लड़की पर दया आई! दया आना लाज़मी भी था, लेकिन मै पहले आशीष के बारे में भी जानना चाहता था, अतः मैंने एक बार फिर से आशीष का कोई नामोनिशान बाकी है कि नहीं, ये जांचने के लिए अपना खोजी-खबीस भेजा! इसको मै खोजा कहता हौं, खोजा गया और वापिस आया, आशीष की भी प्रेतात्मा थी परन्तु वो किसी की क़ैद में थी, जिसकी क़ैद में थी वो भी रोहतक का ही रहने वाला था, अगर उस से उसको छोड़ने को कहते तो वो नहीं मानता, वो अदल-बदल करता या एवज लेता, जीते जी न सही, मैं इन दोनों प्रेमियों को अगले चक्र में पुनः मिलन हेतु मुक्त करना चाहता था, अतः मैंने सारी कहानी से शर्मा जी को अवगत कराया, उनको भी बहुत खेद हुआ, अफ़सोस हुआ, हमने इन दोनों प्रेमियों की मदद करना अपना कर्त्तव्य समझा और फिर अगले दिन रोहतक जाने का कार्यक्रम बना लिया! हम अगले दिन रोहतक पहुँच गए, मैंने अपने खबीस से वहाँ का पता ले लिया था, सो वहीँ हम पहुंचे, जिस से मिलना था उसका नाम करन सिंह था, कोई गुनिया था, हम उसके पास ही पहुंचे, उसके स्थान पर कुछ औरतें नीचे चटाई पर बैठी थीं, हमारे वहाँ जाने पर वो वहाँ से उठ गयीं, २ कुर्सियां मंगवाई गयीं, हम बैठ गए वहाँ, ये गुनिया मुझे भला आदमी लग रहा था, पहली नज़र में तो कम से कम, फिर उसने चाय भी मंगवा ली, परिचय इस बीच हो ही चुका था,

मैंने कहा, "करन साहब, आपके पास एक चीज़ है, नाम आशीष है उसका" मैंने कहा,

"हाँ जी, है तो, गुज्जर बाबा ने दी है" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मै वही आपसे वापिस चाहता हूँ" मैंने कहा,

"किसलिए साहब?" उसने पूछा,

"है कोई काम, मुक्त करना है उसको" मैंने साफ़ ही कहा,

"कैसे तांत्रिक हो आप साहब! ऐसे अगर आज़ाद करते रहोगे, फिर तो चल पड़ा धंधा!" उसने हंस के कहा,

"मै एस कोई धंधा नहीं करता" मैंने कहा,

"आप और मै एक ही लाइन के हैं, हैं न, फिर ऐसा कैसे संभव है जी?" उसने कहा,

"नहीं करन साहब, मै आपकी लाइन का नहीं हूँ, और जो आपने कहा वो संभव है" मैंने कहा,

"बताइये कैसे?" उसने पूछा,

"आप देख रखते हैं?" मैंने पूछा,

"नहीं जी, गुज्जर बाबा रखते हैं, वो मेरे गुरु हैं" उसने बताया,

"तो अब कहाँ हैं आपके गुरु?" मैंने पूछा,

"अपने घेर में होंगे अभी तो" उसने कहा,

"चलिए फिर वहाँ" मैंने कहा,

"चलिए जी" उसने भी उठते हुए कहा,

फिर हम उसके गुरु गुज्जर बाबा के पास पहुँच गए, थोडा सा आगे ही रहता था ये बाबा, ये भी अपने चेलों-चपाटों से घिरा था, जाते ही करन सिंह ने उसके पाँव छुए और हमने नमस्कार की, फिर करन सिंह ने सारी बात अपने गुरु को बतायीं, गुरु ने कहा, "ना, ये तो संभव नहीं"

मैंने और शर्मा जी ने एक-दूसरे को देखा, और फिर मैंने कहा, "सुनिए, मुझे उसकी आवश्यकता है, आप दे दो तो अच्छा रहेगा" मैंने कहा,

"अरे! मुझे धमका रहे हो? मै गुज्जर बाबा हूँ, तुम जानते नहीं हो मुझे" उसने थोडा कडवे लहजे में बात की!

"अच्छा! एक बात बताओ, देख रखते हो?" मैंने कहा,

"हाँ, फिर?" उसने हैरत से पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ज़रा इसको देखो, कभी देखा है ये?" मैंने ऐसा कह के अपना इबु-खबीस हाज़िर कर दिया!

उसको देखते ही बाबा की सांस सीने में घुट के रह गयी! अपनी धोती अपने घुटनों में कस के दबा ली! चेहरे पर पसीना छलछला गया! अब मैंने इबु-खबीस को वापिस कर दिया!

"देखा कुछ?" मैंने कहा,

"भाई, मान गया आपको! कमाल है! ये तो खबीस था ना?" उसने पूछा,

"हाँ!" मैंने हंस के कहा,

"भाई ले जाओ, लेकिन हमे भी कुछ सिखा जाओ!" उसने कहा,

"मै नहीं सिखाता किसी को कुछ!" मैंने कहा,

"जैसी आपकी मर्जी! ठीक है ले जाओ भाई!" उसने कहा,

फिर वो उठा और अन्दर जाकर एक हंडिया ले आया छोटी सी और मुझे थमा दी, मै जान गया कि हंडिया में क्या है, इसमें अवश्य ही आशीष के अवशेष होंगे या होगा, इसने उसकी लाश से छेड़ाखानी की होगी, कोई अंग काट के फिर क्रिया करके उसकी रूह को क़ैद किया होगा, ये गुनिया लोग ऐसे ही करते हैं, और जब उसको बुलाना होता है तो उसके अवशेष पर ही क्रिया करते हैं और उसको हाज़िर करते हैं!

"ठीक है, अब हम चलते हैं, आपका धन्यवाद!" मैंने कहा,

"अच्छा जी" उसने कहा, उन्होंने हमारा नंबर, पता सब माँगा, लेकिन मैंने मना कर दिया! फिर हम वापिस गाडी में बैठे और उस स्थान की ओर चले जहां वो गठरी गढ़ी थी, वो वहाँ से करीब ३५ किलोमीटर दूर थी, हम वहीँ के लिए निकल गए! रास्ते में रुक कर ज़रा फिर से मदिरापान करने के लिए रुके! मदिरापान किया! अब मंत्र काम करना आरभ करने वाले थे, जैसे नज़रबंद, रिक्ताल और कुपाषा-मंत्र आदि आदि! हम उसी जगह पहुँच गए, उसी पेड़ के पास, मै दो मंत्र जागृत किये, एक नज़रबंद और एक रिक्ताल, नज़रबंद दूसरे की दृष्टि को रोकता है और रिक्ताल से दूसरों को पूरा भरा हुआ बैग, संदूक या गठरी भी खाली ही दिखाई देगी! मैंने गाडी से एक छोटा सब्बल निकाल कर वहाँ खोदने आरम्भ किया जहां वो लड़की खोदने के कोशिश कर रही थी! करीब ढाई-तीन फीट खोदने के बाद वहाँ मुझे एक पोटली मिल गयी, सड़ी-गली सी, उसमे टूटा हुआ मोबाइल, कपडे, और एक पर्स था, मैंने वो पोटली एक प्लास्टिक की थैली में डाली और गाडी में रख ली और अब हम दिल्ली की ओर कूच कर गए! शर्मा जी ने कहा, "मिला गया सामान बेचारे का?"


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ शर्मा जी, मिल गया उस अभागे का सामान" मैंने कहा,

"चलो अब इन दोनों का मिलन हो जायेगा, इस जन्म में ना सही तो अगले चक्र में एक हो जायेंगे" वे बोले,

"हाँ शर्मा जी, इन अभागों को मुक्ति अवश्य ही मिलनी चाहिए" मैंने कहा,

फिर हम बातें करते-करते दिल्ली पहुँच गए! मैंने सामान निकाल और एक जगह रख दिया, फिर मै स्नान करने चला गया, स्नान के पश्चात मैंने देर नहीं की, क्रिया में बैठ गया, अलख उठा दी, भोग दिया और फिर वो गुज्जर बाबा वाली पोटली खोली, इसमें उसके तीन दांत थे, सामने वाले, वो गुज्जर बाबा इन्ही पर क्रिया कर उसकी रूह को बुलाता था और ना जाने क्या क्या करवाता होगा! मैंने वो दांत निकाले, और मंत्रोच्चार कर उसकी रूह को प्रकट किया! वो प्रकट हो गया! मैंने उसको देखा, एक २६-२७ साल का लड़का, दरम्याने कद का, गेन्हुएं रंग का, सफ़ेद चेक की कमीज़ पहने, और जीन्स पहने, मुझे देख वो डर गया, सहम गया और मुझे देखने लगा!

मैंने उस से कहा,"घबराओ मत आशीष! घबराओ मत! मै सब जान गया हूँ"

उस बेचारे को कुछ मालूम नहीं, बस चुपचाप खड़ा रहा! फिर मैंने उस से कहा, "क्या हुआ था तुम्हारे साथ?"

"पिटाई की मेरी रंजीत, वेदपाल आर अजीत ने, संग में हवलदार भी था" उसने डर से कहा,

"फिर क्या हुआ?" मैंने उस से पूछा,

"मै बाहर आ गया फिर, मै उठा नहीं वहाँ से" उसने बताया,

बेचारा! मेरे मन में ख़याल आया! उस समय इसे दो चिंता एक साथ थीं! एक उसकी मौत का डर और दूसरा उसकी प्रेमिका की सलामती!

"मै तुम्हारी मदद करूंगा आशीष!" मैंने कहा,

"सुनिए, ज़रा मुझे बताइये अन्नू कैसी है?" उसने मुझसे पूछा,

मैंने उसको जांचा और पूछा, "कौन अन्नू?"

"आपको मालूम नहीं?" उसे हैरत हुई

"नहीं तो? तुम मुझे बताओ?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"वो मेरी पत्नी है, वो गर्भवती है" उसने कहा,

अब मुझे और झटका लगा! तीसरी भी जघन्य हत्या!

"कहाँ रहती है वो, तुम्हे पता है?" मैंने पूछा,

उसने मुझे सभी के नाम, पते, और गाँव का नाम बता दिया!

"मै तुम्हे कुछ दिखाता हूँ, पहचान लोगे?" मैंने पूछा,

"दिखाइये?" उसने कहा,

मैंने उसको वो पोटली दिखा दी, वो पहचान गया! बोल, "वो मेरा फ़ोन है और वो मेरे कपडे और वो मेरा पर्स, उसमे वो डॉक्टर की रिपोर्ट कि अन्नू गर्भवती है"

"क्या अन्नू ये जानती थी कि वो गर्भवती है?" मैंने उस से पूछा,

"नहीं मैंने उसको कहा था कि मेरे पास उसके लिए एक तोहफा है, मेरे पर्स में! वो मै उसको ८ दिनों के बाद दूंगा, ताकि वो ये जान जाए कि उसके तोहफे में हमारे प्यार की निशानी है" उसने कहा,

"८ दिनों के बाद ही क्यों?" मैंने पूछा,

"उसका जन्म-दिन था ८ दिनों के बाद" उसने बताया

ये सुन मेरे दिल में हूक उठ गयी! समझ में नहीं आया कि अब मै आगे इस से क्या प्रश्न करूँ?

फिर भी मैंने उसको कहा," तुम अन्नू के पास जाना चाहते हो?"

"हाँ! आपका उपकार होगा मुझ पर" वो ख़ुशी से बोला,

"वो भी यहीं है!" मैंने कहा!

"कहाँ? कहाँ है वो? मुझे मिलवा दो उस से, मिलवा दो" उसने बेचैन होकर कहा,

"अभी मिलवाऊंगा, अभी थोड़ी देर बस!" मैंने कहा,

"जल्दी कीजिये, मेरी विनती है आपसे" उसने कहा,

"चिंता ना करो, मै मिलवा दूंगा! निश्चिन्त रहो!" मैंने कहा मैंने वो डिब्बी उठायी! और फिर वो डिब्बी खोली! दोनों छिटक कर बाहर आये! बूढ़े को मैंने फिर से पकड़ के डिब्बी में डाल दिया! दोनों ने एक दूसरे को देखा! चीत्कार मारने लगे! करुण रुदन हुआ, वो दोनों सूक्ष्म-तत्व


   
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श्रीशः उपदंडक
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भावातिरेक में,और निश्चल प्रेम में एक होने हेतु तड़प रहे थे! काफी देर तक वो एक दूसरे को देखते रहे फिर आलिंगनबद्ध हो गए! उनको मिलते देख मुझे भी सुकून हुआ! दोनों ने मुझे देखा! मैंने कहा, "इस संसार की कुरीतियों ने तुमको मिलने नहीं दिया, लेकिन अब तुम इस मूर्त संसार से मुक्त हो! अब मै चाहता हूँ कि तुम इस संसार के बंधन से मुक्त हो जाओ और पुनः मिलन हेतु नए मार्ग पर अग्रसर हो जाओ, एक ऐसे धाम जहां कोई कुरीति नहीं है!!"

वो मेरा आशय समझ गए! मैंने अन्नू को वो गठरी दिखा दी, उसकी जिज्ञासा शांत हो गयी! और कह दिया वो आशीष को भी दिखा दी है! मै आज से ३ दिन बाद उनको इस संसार से मुक्त कर दूंगा!

मैंने उन दोनों को एक नए पात्र में डाल दिया और बूढ़े को निकाल कर उसको भी मुक्ति के लिए तैयार कर लिया! वो भी तैयार हो गया!

उसके बाद एक नियत पावन तिथि पर मैंने क्रिया कर उन दोनों को पुनः मिलन हेतु अगले पड़ाव पर भेज दिया! जहां कोई कुरीति, भेदभाव नहीं होता! वे दोनों खुश होकर मुक्त हो गए!

फिर मैंने उस वृद्ध को भी मुक्त कर दिया जो अकारण ही ३० वर्षों से भटक रहा था!

मुक्ति-कर्म संपन्न हुआ और यहाँ मेरा कर्त्तव्य भी!

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------

 


   
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