वर्ष २०११ शिमला की ...
 
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वर्ष २०११ शिमला की एक मार्मिक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण!! कुछ घटनाएं यकायक और अचानक ही घट जाया करती हैं! आपको अनुमान नहीं होता और आप उस समय वहाँ बस ताकते रह जाते हैं! स्पष्टीकरण मस्तिष्क उनका तनिक विलम्ब पश्चात् दिया करता है! आप समझ नहीं पाते! या तो आप शून्य में ताक़ रहे होते हैं, अपने किन्ही विचारों में खोये रहते हैं! अनामत्रित विचार निरंतर मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं! समय निर्बाध गति से चल रहा होता है, आगे बढ़ रहा होता है!

ये भी एक ऐसी ही घटना है मित्रो! मै अपने एक परिचित के लड़के के विवाह में शिमला आया हआ था, दिल्ली में गर्मी ने हद काट रखी थी! सोचा इसी बहाने थोडा ऋतु-परिवर्तन भी हो जाएगा! मै शर्मा जी के साथ वहाँ पहुंचा, विवाह में सम्मिलित हुआ, और फिर बाद में ४ दिनों तक ठहरा भी यहाँ मौसम खुशगवार था! समय बढ़िया व्यतीत हुआ यहाँ! उसके बाद उनसे विदा लेकर वापिस दिल्ली की ओर कूच कर गए!

प्राकृतिक सौंदर्य का अपना एक विशिष्ट महत्व होता है! आप एक दृश्य को कई पलों तक और कभी कभार कई घड़ियों तक निहारते रह सकते हैं! मै गाडी की अगली सीट पर बैठा ऐसा ही एक दृश्य निहार रहा था! नीला आकाश! उसमे घुमड़ते श्वेत बादल! और वृक्ष की चोटियाँ! जसे ये चोटियाँ बादलों से बात कर रही हों और आप उन्हें देख रहे हैं, ऐसा दोनों को विदित है!

मैंने तभी दृष्टि नीचे की तो सामने एक अजीब सी बात देखी! सड़क के बायीं तरफ पानी में भीगे एक औरत और मर्द वहाँ खड़े थे, उम्र कोई 30-३२ वर्ष रही होगी मर्द की और औरत यही कोई २६-२७ वर्ष, दोनों आपस में बातें करते हुए! मैंने शर्मा जी से गाडी बायीं तरफ धीरे-धीरे चलाने के लिए कहा, और जहां से खड़े थे दोनों वहाँ सड़क के पास गाडी रुकवा दी! यातायात सुचारू रूप से चले, अत: गाडी सड़क से नीचे मिट्टी में उतार दी,

शर्मा जी समझ गए थे कि कुछ अप्रत्याशित देखा है मैंने!

मैंने अन्दर से बैठे-बैठे ही उनको देखा! अब चूंकि उनकी परछाई भी भूमि पर नहीं पड़ रही थी तो मुझे बिना मंत्र-सहायता के ये पता लग गया कि वे दोनों प्रेतात्माएं हैं! मै गाडी से उतरा! उनके पास गया! उन दोनों ने मुझे देखा! उनकी आँखों में मुझे एक प्रार्थना का भाव दिखाई दिया!

मैंने उस मर्द से पूछा, "क्या नाम है तुम्हारा? कौन हो तुम लोग?"

वो कुछ नहीं बोला! डर के सहम गया वो! फिर मै उस औरत की तरफ पलटा, "कौन हो तुम? क्या नाम है तुम्हारा?"

उसने कोई जवाब नहीं दिया बस एक तरफ इशारा किया, जहां इशारा किया वो एक बरसाती नाला था, उस पर एक छोटा पुल भी बना था, मैंने वहाँ देखा तो औरत नीचे


   
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श्रीशः उपदंडक
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झाड़ियों में जाने लगी, मर्द वहाँ ठहर गया, औरत नीचे उतर गयी, और मर्द मेरे सामने खड़ा था! मैंने कहा, "मुझे जब तक तुम बताओगे नहीं तो मुझे कैसे पता चलेगा?"

"मेरा नाम रविंदर माथुर है" उसने कहा,

"अच्छा, और ये औरत कौन है?" मैंने पूछा,

"ये मेरी पत्नी है सरिता" उसने बताया,

"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" मैंने पूछा,

"मेरा बेटा खो गया है, हम उसको ढूंढ रहे हैं" उसने बताया,

"बेटा? यहाँ खो गया? कैसे?" मैंने हैरत से पूछा,

"गाडी गिर गयी थी, मै भी उठ गया और सरिता भी उठ गयी लेकिन वो नहीं उठा, मिला ही नहीं, लेकिन है वो यहीं" उसने बताया!

मित्रगण! मेरे हृदय में टीस सी उठ गयी! हृदय-विदीर्ण करने वाली टीस! आपको समूल झकझोर देने वाली टीस! ये बेचारे किसी दुर्घटना का शिकार हुए होंगे गाडी नीचे नाले में गिरी होगी, इनके लड़के की लाश पानी में बह गयी होगी, लाश नहीं मिली थी, कई कारण हो सकते हैं इसके, बह जाना, किसी जंगली जानवर द्वारा आहार बनाया जाना, आदि आदि कारण! ये बेचारे तब से उसको ढूंढ रहे हैं! ओह!

"क्या नाम है बेटे का?" मैंने पूछा,

"सनी" उसने बताया,

"ठीक है, मै ढूँढूँ उसे?" मैंने कहा, "हाँ! हाँ! आप ढूंढिए! आप ढूंढ सकते हैं! मेरा सनी मिल जाएगा मुझे" वो खुश होके बोला!

"ठीक है, मै देखता हूँ, कहाँ है आपका बेटा" मैंने कहा, मुझे बहुत तरस आया उन पर! इतनी देर में सरिता ऊपर आई और आ के मायूस खड़ी हो गयी! मैंने पूछा, "अच्छा, एक बात बताओ, कितनी तारीख को खोया था आपका बेटा?"

"30 जुलाई २००४ को" उसने बताया

यानि कि पूरे सात साल! सात साल ये ये एक निरर्थक खोज कर रहे हैं! अब जिसका कोई वजूद ही नहीं! अगर मै इनको बताता तो ये यकीन नहीं करते! मुझपे गुस्सा भी करते! अगर मै कुछ करता तो भाग जाते!

मैंने मन में एक मंत्र पढ़ा, ऐसा मंत्र किसी भी प्रेतात्मा से आँखें मिला के नहीं पढ़ा जाता! वो आपको भी अपनी तरह ही समझते हैं! उनमे से एक! वो जिसको दिखना चाहते हैं, देख सकता है, जिसको नहीं उसको कभी नहीं!

मैंने मंत्रोच्चार संपूर्ण किया और फिर उन दोनों को पकड़ लिया! वो डरे, सहमे लेकिन मंत्र अपना कार्य पूर्ण कर चुका था! मैंने उनको पकड़ के अपनी मान्दलिया में डाल लिया! और फिर अपनी जेब में!

मैं वापिस गाडी में बैठा, शर्मा जी ने गाडी स्टार्ट की और हम आगे बढ़ गए! मैंने रास्ते में इन दोनों के बारे में शर्मा जी को भी बता दिया! उन्हें भी बड़ा अफ़सोस हुआ!

खैर, हम वापिस दिल्ली आ गए! उस दिन यात्रा की थकान मिटाई! अगले दिन मैंने शर्मा जी को वहीं रोक लिया, आज उन दोनों को हाज़िर करना था! मैंने शाम के समय थोडा पूजन किया और अपने स्थान पर शर्मा जी के साथ बैठ गया! मैंने मान्दलिया खोली तो दोनों डरे, सहमे बाहर आ गए!

"घबराओ नहीं तुम दोनों मत घबराओ!" मैंने कहा,

"तुम हमे कहाँ ले आये हो?" रविंदर ने पूछा,

"कहीं नहीं! वहाँ हैं हम!" मैंने कहा,

"और मेरा सनी?" उसने पूछा,

"वो भी मिल जाएगा, मै पता लगा लूँगा" मैंने आश्वासन दिलाया,

"तुम लोग कहाँ के रहने वाले हो?" मैंने पूछा,

"अम्बाला के हैं हम, वहाँ रहते हैं" वो बोला,

"और घर में कौन कौन हैं?" मैंने पूछा,

"मेरे पिताजी हैं, माता जी हैं, एक बड़ा भाई है, एक छोटी बहन है, और मेरा बेटा है सनी" वो बोला,

"तुम लो अम्बाला से शिमला घूमने गए थे?" मैंने पूछा,

"शिमला में मेरी साली, यानि इनकी बड़ी बहन रहती है, उनके यहाँ गए थे,एक बच्चे का नाम-करण संस्कार था" उसने बताया,

"अच्छा, फिर तुम्हारा बेटा कैसे खो गया? वो तो तुम्हारे साथ ही था?" मैंने उनको जांचा, मतलब और जानना चाहा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जब हम वापिस आ रहे थे तो मै गाडी चला रहा था, सरिता आगे बैठी थी, और सनी पीछे बैठा था, अचानक मेरे सामने एक ट्रक आया, मैंने ब्रेक मारे, लेकिन मेरे पीछे से आती बसने मेरे पीछे से टक्कर मारी, गाडी नाले में गिर गयी, कोई नहीं आया, गाडी डूब गयी थी, मैंने सनी को टटोला वो वहाँ नहीं था, मैं खड़ा हुआ, सरिता भी खड़ी हुई, और मैंने सनी को ढूँढा, मै जानता हूँ वो वहीं है, वहीँ नाले के पास, आप मुझे वहाँ ले जाओ, हम ढूंढ लेंगे, मुझे सनी कि चिंता लगी है"

ये कहानी सुनने के बाद मैंने शर्मा जी को देखा, उनके चेहरे पर भी दुःख के भाव झलक रहे थे और मेरे हृदय में घोर पीड़ा भाव! मित्रगण! ऐसे ही घटिया स्तर के तांत्रिक ऐसी प्रेतात्माओं को कैद कर लेते हैं! उनसे अनैतिक कार्य करवाते हैं! ये बेचारे इसीलिए काम करते रहते हैं किये तांत्रिक एक दिन उनको उनके बेटे से मिलवा देगा! ये घोर पाप है! तंत्र इसका सदैव । बहिष्कार करता है! तंत्र का उद्देश्य परम-मोक्ष है, किसी अबोध को, मासूम को, ऐसी तड़पती, फंसी हुई, अटकी हुई, प्रेतात्माओं को प्रताड़ित करना नहीं!

"ठीक है, मै तलाश करता हूँ आपका सनी" मैंने कहा,

"आपका धन्यवाद होगा, मै आपको अपने घर  ले जाऊँगा!" रविंदर ने कहा!

"ठीक है रविंदर! मै चलूँगा आपके घर मै ढूढता हूँ सनी को!"

उसके बाद मैंने उनको आश्वासन देकर अपनी मान्दलिया में दुबारा डाल लिया!

मैंने शर्मा जी से कहा,"देखा शर्मा जी! क्या होता है इस संसार में!"

"हाँ गुरु जी, आश्चर्य की बात है! ये बेचारे, उफ्फ्फ! गुरु जी मदद करो इनकी!" वो बोले,

"मै गाडी से इसीलिए उतरा था शर्मा जी, न जाने कब से ये अपने सनी को तलाश कर रहे हैं और न जाने कब तक करते रहते!"

"कैसी लीला है ये ऊपरवाले की!" शर्मा जी ने कहा!

"शर्मा जी, मोह, लालच, प्रतिशोध ये तीन कारक हैं, जिनके कारण कोई भी प्रेतात्मा इस संसार से जुडी रहती है। उसके लिए क्या दिन, क्या वार, क्या सप्ताह, क्या महीना, क्या साल! कुछ नहीं! ना दिन ना रात! केवल उनका मोह, लालच और प्रतिशोध! ये उनको जोड़ के रखता है!"

"हाँ गुरु जी! अकाट्य तर्क है ये!" शर्मा जी बोले!

"शर्मा जी, कई जिज्ञासु लोग अक्सर पूछते हैं, कि जब किसी की हत्या होती है, तो वो अपने हत्यारों से प्रेत रूप में प्रतिशोध क्यूँ नहीं लेता?"

"हाँ गुरु जी!" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ये रविंदर और सरिता अपने सनी को ढूंढ रहे हैं, लेकिन जिस ड्राईवर की वजह से सजी इनसे बिछड़ गया, उसका इन्होने नाम भी नहीं लिया! जानते हो क्यूँ? मै बताता हूँ! जब किसी की हत्या होती है, तो वो व्यक्ति अपने अंतिम क्षण में अपने परिवारजनों से उनकी कुशल-मंगल भावना से जुड़ जाता है! कि मेरे बाद उनका क्या होगा? कौन देखेगा उनको? बस! इसी कारण से वो अपने परिवार के आसपास भटकता है! उसे अपने हत्यारे और हत्या के कारण का पता नहीं रहता! यही इनके साथ है!" मैंने बताया,

"हाँ गुरु जी, बेचारे!" वे बोले,

"हाँ शर्मा जी, ये बेचारे तो हैं, लेकिन अब नहीं रहेंगे! मै इनको मुक्त करूंगा!" मैंने कहा

"हाँ गुरुजी, पुण्य-संचरण में विलम्ब नहीं होना चाहिए" वे बोले,

"नहीं होगा!" मैंने कहा,

"अब क्या करना है गुरु जी?" उन्होंने पूछा,

"अब मुझे पता लगाना है सनी का, आखिर उसका क्या हुआ?" मैंने कहा,

मैंने तब शर्मा जी को बाहर जाने को कहा, खबीस को बुलाना था, मेरे अलावा अन्य किसी को भी अपना दुश्मन समझता है वो, इसीलिए बाहर भेजा!

मैंने खबीस बुलाया! उसको उसका भोग दिया और फिर उसके नाम और उसका काम बता कर रवाना कर दिया! १० मिनट के बाद वो हाज़ि रहा, उनसे बताया कि वहाँ दूर दूर तक कोई सनी नहीं है, सनी की मौत टक्कर के समय ही हो गयी थी! और अब वहाँ उसका कोई नामोनिशान बाकी नहीं है! इसके बाद मैंने खबीस को वापिस भेज दिया!

मित्रो! अब प्रश्न है कि सनी का क्या हुआ! मै यहाँ नहीं लिख सकता, ये इस फोरम में प्रतिबंधित है और नियमों का उल्लंघन में नहीं करूंगा! जो जानना चाहे वो व्यक्तिगत सन्देश में पूछ सकता है!

अब और दुविधा उत्पन्न हो गयी थी रविंदर और सरिता को ये कैसे समझाया जाए? उनकी इच्छा पूर्ण हुए बगैर वो मुक्त नहीं होना चाहेंगे! अब समस्या गहरा गयी थी! तब मैंने शर्मा जी को बुलाया उनको सारी समस्या बताई! वो भी दुविधा में फंस गए

"शर्मा जी, दुविधा उत्पन्न हो गयी है, कोई निदान तो बताइये?" मैंने कहा,

"क्या निदान बताऊँ गुरु जी! आपसे अच्छा निदान कौन बतायेगा?" वे बोले,

"ठीक है, एक चाल खेलते हैं हम! इसमें चूक की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए! मैं करता हूँ इस समस्या का निदान!" मैंने कहा,

"ठीक है, आप कीजिये निदान!" वे बोले,


   
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अब चाल ये थी कि उनको ये बताया जाए कि इस रेखा के पार उनको उनका सनी मिल जाएगा! उनको रेखा पार होते ही मुक्ति-क्रिया मै आरम्भ कर दूंगा! वे मुक्त हो जायेंगे! लेकिन उनको वो रेखा पार कराने के लिए मनाना होगा!

मैंने अगली रात को उनको मान्दलिया से बाहर निकाला, बाहर आते ही रविंदर ने पूछा, "क्या सनी मिला?"

"हाँ! मिल गया!" मैंने कहा!

उन दोनों ने एक दूसरे को देखा विस्मय से!

"कहाँ है? कहाँ है सनी?" उन्होंने पूछा,

"उसको कोई उठा के ले गया था, कल आ जाएगा वो यहाँ!" आप लोग चिंता ना करो! मिल जाएगा आपको आपका सनी!" मैंने कहा,

"हाँ! हाँ! मिल गया! मिल गया सनी! मेरा बेटा सनी!" अब सरिता बोली,

"हाँ हाँ! मिल गया है, उसको बुलवाया है, कोई लेके आर हा है?" मैंने कहा,

मैंने उनको विश्वास दिला दिया! वे खुश हो गए! मैंने उनको फिर मान्दलिया में डाल दिया!

अगले दो दिनों तक'कपाट बंद थे, अत: मैंने दो दिन रुकने का निर्णय किया! और अपने एक महाप्रेत से कहा कि वो सनी का रूप धरे, ठीक वैसा ही जैसा सनी उस समय था! उसको समझाया और वापिस भेज दिया! हालांकि खबीस भी ऐसा कर सकता था, लेकिन खबीस की गंध से वो बौखला जाते! हाँ, महाप्रेत ऐसी कोई गंध नहीं छोड़ता!

और फिर दो दिनों के बाद!

मैंने मुक्ति क्रिया का सारा प्रबंध कर दिया। उसके बाद मैंने भूमि पर एक सुई की मदद से एक रेखा खींची! इसको प्राण अभिमंत्रित किया! अपने महाप्रेत को उस पार खड़ा किया! उसी सनी के रूप में! इसको पार करते ही वे मुक्त हो जाने थे!

मैंने दोनों को मान्दलिया से बाहर निकाला! बाहर आते ही उन्होंने सनी के बार में पूछा! मैंने कहा," रुको मै अभी बुलाता हूँ!"

मैंने सनी को आवाज़ दी! महाप्रेत वहाँ खड़ा हो गया! दोनों चिल्लाए, "सनी!! कहाँ था तू!" ऐसा कह के वो सनी की तरफ भागे और रेखा लांघ गए! लांघते ही लोप हुए और संसार मुक्त हो गए! मेरा महाप्रेत अपने रूप में आया और अपना भोगले कर चला गया!

मैंने मुक्ति-क्रिया आरंभ की और आधे घंटे बाद! वो हमेशा हमेशा के लिए मुक्त हो गए मोह से मुक्तः एक नए पड़ाव की ओर प्रस्थान कर गए।


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैंजे बाहर आ कर शर्मा जी को बता दिया! वे बहुत खुश हुए! बहुत खुश! बस अब उनके नाम का एक दान करना था! वो दान अगले दिन कर दिया!

ये भले ही एक चाल थी! चलनी पड़ी! उनकी इच्छा पूर्ण हुई! और वे मुक्त हुए।

मैंने अपना कर्तव्य निभा दिया था!

शेष किसी और का निर्णय था!

------------------------------------------साधुवाद!--------------------------------------------


   
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