वर्ष २०११ मिर्ज़ापुर...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०११ मिर्ज़ापुर की एक घटना

71 Posts
1 Users
0 Likes
481 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"पर्णी?" मैंने कहा,

"हाँ?" उसने उत्तर दिया,

"हटो?" मैंने कहा,

उसने गर्दन हिला कर मना कर दिया!

"पर्णी, मुझे जाना है" मैंने कहा,

उसने फिर से गर्दन हिला कर मना कर दिया!

मैं जाल में उलझ गया!

छटपटा गया!

और मुझे ले पर्णी गिर पड़ी नीचे, नीचे चटाई पर! वो नीचे और मैं ऊपर!

मैंने बहुत कोशिश की, और छूट गया!

मैं छूटा और पिंजरे से आज़ाद चूहे के समान भाग छूटा!

कमरे से बाहर!

 

मैं भागा अपने कक्ष की ओर!

कक्ष में पहुंचा!

सभी ने संदेह की दृष्टि से देखा!

नज़रें बचायीं मैंने,

झेंप मिटाई

और उनके साथ बैठ गया!

बसंत नाथ हंसने लगा!

मैं समझ गया कि क्यों!

"बच आये?" उसने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"हाँ" बोलने से पहले परिस्थिति का जायज़ा अवश्य लिया!

"आइये, शुरू होते हैं" शर्मा जी ने भी चुटकी ली,

अभी एक पैग घाला ही था कि और मुसीबत आ गयी!

वही लड़की आ गयी थी बुलाने!

"जाइये" बसंत नाथ ने कहा,

शर्मा जी मुस्कुराये!

जाना पड़ा!

मैं चला वापिस, जैसे क़ैद में दुबारा जाना पड़े!

वहाँ पहुंचा, लड़की अपने कक्ष में चली गयी!

और मैं पर्णी के कक्ष में!

वी एक चादर लेकर ऐसे बैठी थी, जिसे न बैठना कहा जाए न लेटना ही!

मैं बैठ गया!

"कहाँ गए थे?" उसने मुस्कुरा के पूछा,

"ऐसे ही, अपने कक्ष में" मैंने कहा,

"सच में?" उसने पूछा,

"हाँ सच में" उसने कहा,

"झूठ" उसने कहा,

"नहीं तो" मैंने कहा,

"मुझसे भागे थे न?'' उसने पूछा,

अब सच तो यही था!

"नहीं" मैंने कहा,

"फिर से झूठ?" उसने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

छठा पैग!

गटक लिया!

चीरता हुआ गया सीने को ये वाला तो!

"आज रात्रि मेरे साथ ही रहना पड़ेगा!" उसने शरारती अंदाज़ में कहा!

मर गया!

अब क्या होगा?

ये परीक्षा भी तो नहीं!

तो फिर?

"घबरा गए?" उसने पूछा.

मेरा हाथ पकड़ते हुए!

उसके हाथ जैसे कोयला, दहकता हुआ!

सर्दी में अच्छा लगा!

अब वो बैठ गयी!

मेरी नज़र उसके गोर वक्ष-स्थल पर पड़ी!

उसको सर्दी? नाम मात्र को नहीं, और यहाँ मैं सिकुड़ता जा रहा था!

सातवां पैग!

"क्या चाहती हो पर्णी?" मैंने अब खेल से तौबा की!

"बता दूँ?" उसने कहा,

"हाँ" मैंने कहा,

"मानोगे?" उसने पूछा,

"यदि मान सका तो" मैंने कहा,

"अपने को दे दो एक रात के लिए, मौनिया हो कर" उसने ललचायी आखों से कहा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

समझ गया!

बहुत गहरी बात!

सब समझ गया!

सिद्धि-रात्रि!

सब समझ आ गया!

और आ गया अब मुझे में अहम्!

आना भी था!

 

"तो मैं आपका काम-पुरुष ठहरा, यही न?" मैंने पूछा,

"हाँ, यही" वो हंस के बोली,

"मैं समझ गया" मैंने कहा,

''अच्छा ही हुआ" वो बोली,

"लेकिन एक बात बताओ?" मैंने पूछा,

"पूछो", उसने कहा,

"बाबा लोमा में क्या कमी थी?" मैंने पूछा,

"वो रिक्त था" उसने बताया,

"हाह! अच्छा! तो और भी तो होंगे?" मैंने पूछा,

"मेरा वेग नहीं सम्भाल सकते" उसने उत्तर दिया, जैसे सारे उत्तर रट रखे हों उसने!

"वहुत वेग है तुम्हारा?" मैंने पूछा,

"आजमा के देखना चाहोगे?" उसने चटखोरी सी की!

मैं अटका अब!

अपने जाल में खुद गिरा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

या अपने खड्डे में खुद गिरा!

"नहीं" मैंने उत्तर दिया,

'एक बार?" उसने अब मेरा हाह खेंच के अपने सीने पर रख लिया, मुझे उसकी कम और अपनी धड़कनों की आवाज अधिक आयी!

उसके गुदाज अंग पर हाथ रखते ही मुझे अपने हाथ में पसीने का एहसास हुआ!

मैंने हाथ खींचा और उसने ब्लाउज़ उतार दिया,

मैं सन्न!

इतने विशाल स्तन!

मैंने नहीं देखे थे!

शायद इसीलिए विशाल लिख रहा हूँ!

मैं सन्न!

दिमाग भन्न!

वो मेरे सामने और मैं उसके सामने बैठे थे,

उसने अपना एक पाँव मेरी जांघों के बीच मेरे लिंग-स्थान पर रख दिया! लंगोट न होती तो......

"एक बार?" उसने अब याचना सी की,

मैं जड़वत!

वहीँ फंसा हुआ!

अटका हुआ! कब फल पके और टपके!

ऐसी विकट स्थिति!

"नहीं पर्णी" मैंने अब उसका नाम लिया!

"क्यों?" उसने पूछा,

"मैं तैयार नहीं" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

अब वो उठी और पूर्णतः निर्वस्त्र हो गयी!

मेरी आँखें चुंधिया सी गयी उसका गौर वर्ण देख कर!

"मैं अभी भी कच्ची हूँ!" उसने कहा,

और यहाँ मैं पक कर बस गिरने ही वाला था!

अब मैंने अपने बदन को सिमेटा, जिसे कोई छिपकली अपनी पूँछ को देखे!

ठण्ड के माहौल में भी गर्मी भर गयी!

"नहीं पर्णी" मैंने कहा,

वो नीचे बैठी,

मुझे पकड़ा और मेरे होठों पर चुम्बन अंकित करने लगी!

मैं जैसे रेत के बोरे के मानिंद रिसने लगा!

मैं कसमसाया!

वो उग्र हुई,

मेरे केश पकड़ लिए!

मुझे अपनी तरफ खींचे!

मैं हटूँ तो और बल लगाए!

मैं उसको छूऊँ तो मुझे आवेश हो!

कहाँ फंसा औघड़!

मैंने छूटने की कश्मकश की, तो इस कश्मकश में वो मेरे ऊपर आ लेति, मेरी भुजाएं पकड़ लीं!

क्या करूँ?

मार सकता नहीं, दांत सकता नहीं, फेंक सकता नहीं!

सोच! सोच औघड़!

अरे कुछ तो सोच!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

सोच लिया!

हां!

मैं भी समर्पण की मुद्रा में आ गया, उसके ऊपर आने की सोची, वो समझी, मुझे मौका मिला और मैं भाग खड़ा हुआ! नंगे पाँव!

अपने कक्ष में जा कर ही होश लिया!

बसंत नाथ समझ गया!

"आओ, लेट जाओ"

मैं लेटा तो नहीं हाँ, चौकड़ी मार कर बैठ गया!

उसके नाख़ून चुभोने के निशान हंस हंस के मेरा उपहास उड़ाने लगे!

मैंने अनदेखा कर दिया!

सो गया! सो क्या गया बड़ी मुश्किल से नींद आयी, पर्णी की छुअन और उसके ग्राम साँसें, सारी रात छिद्रण करती रही मेरा! मैं गए आगे और वो पीछे पीछे, कहीं छुप जाऊं तो पकड़ा जाऊं रंगे हाथ! उसका वो आवेग वाक़ई में भयानक था, हाँ, भयानक ही कहूंगा मैं, मैंने देखा था, रति ने अत्यंत कृपा बरसाई थी उस पर! ऐसे ऐसे सवाल और ऐसे इअसे ही जवाब! इधर करवट, कभी उधर करवट! ज़यादा हिलना भी ठीक नहीं, नहीं तो अभी बसंत नाथ कह देंगे भूखे पेट सोना अच्छी बात नहीं! सो किसी तरह नींद का एक झोंका आया मैं झपट्टा मार कर दबोच के बैठ गया उसको! नींद आ गयी!

सुबह हुई जी किसी तरह! अलसाया सा मैं उठा! सभी उठ चुके थे, मैं भी उठा

और स्नानादि से फारिग हुआ! वापिस आया, चाय आ चुकी थी सो चाय पी! तभी वो लड़की आ गयी बुलाने! मुसीबत! फिर से मुसीबत!

मुझे जाना पड़ा!

मैं अंदर गया!

स्नानादि से फारिग हो चुकी थी पर्णी!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

उसने मुझे देखा और मैंने उसे!

जैसे एक बार बचा हुआ चूहा फिर से आन पहुंचा हो उसी बिल्ली के सामने!

ऐसा मैं!

वो हंसी और मैं भी हंसा! मैंने खीझ मिटाई, उसने उपहास किया!

"नींद आयी रात को?" उसने पूछा,

"हाँ, खूब" मैंने कहा,

"लाओ वापिस करो?'' उसने हाथ के इशारे से माँगा,

मैं चक्कर में!

"क्या?" मैंने पूछा,

"नींद!" उसने कहा,

"नींद?" मुझे समझ नहीं आया,

"हाँ मेरी नींद" उसने कहा,

"कैसी नींद, मेरी तेरी क्या?" मैंने पूछा,

क्या पहेली?

"मेरी नींद, जो तुम ले गये और मुझे दे गए बेचानी, सारी रात न सोयी मैं!" उसने कहा,

ओह! अब मैं समझा!

"क्यों? नींद क्यों नहीं आयी?" मैंने पूछा,

"कैसे आती भला?" उसने कहा,

"क्यों?" मैंने पूछा,

"आग बिना बुझाये बुझती नहीं, भड़कती है!" उसने कहा,

डर गया मैं!

सच में!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

अब आग और आ गयी बीच में!

"पर्णी, मैं तैयार नहीं हूँ" मैंने कहा,

"कब होओगे?" उसने पूछा,

"पता नहीं" मैंने कहा,

वो खिलखिला कर हंसी!

मैंने सिर्फ होंठ हिलाए!

"आज वापिस जाना है, मिर्ज़ापुर" उसने कहा,

"हाँ आयोजन समाप्त हुआ यहाँ तो" मैंने कहा,

"और कुछ शुरुआत भी हुई, है न?" उसने तिरछी निगाह से देख कर ऐसा कहा!

"पता नहीं" मैंने कहा,

"झूठ! झूठ बहुत बोलते हो आप" उसने कहा,

मैं हंसा!

उसे क्या पता मेरे झूठ क्या हैं! और झूठ न बोलूं तो क्या करूँ!

"कब निकलना है?" मैंने पूछा,

"शाम को, मेरा भाई आएगा आज, उस से मिल लूँ फिर चलेंगे" उसने कहा,

"ठीक है" मैंने कहा,

"लेकिन एक काम करना हमारी गाड़ी में बैठना, बसंत नाथ के साथ नहीं" उसने कहा,

मैंने कुछ सोचा!

"ठीक है" मैंने कहा

और फिर शाम हुई, वो अपने भाई से मिली, मैंने शर्मा जी और बसंत नाथ को बता दिया कि मैं उनकी गाड़ी से जाऊँगा!

और बात तय हो गयी!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

शाम करीब साढ़े साथ बजे हम निकल लिए मिर्ज़ापुर के लिए!

 

कोई आधे घंटे का ही रास्ता होगा, हम पहुँच गए मिर्ज़ापुर, कारीब आठ सवा आठ बजे होंगे! मुझे सीधे अपनी कक्ष में ही ले गयी! और फिर मेरे लिए दूध मंगवाया! ऐसा लगा जैसे किसी मेढ़े को बाली देने से पूर्व जिस तरह से खिलाया-पिलाया जाता है वैसा हो रहा हो!

अब वो गम्भीर हुई और मुझसे बोली, "वज्र में किसकी शक्ति?" तप की!

"इच्छा किसकी?" उसने पूछा,

"स्वेच्छा" मैंने कहा,

"काम और रति भिन्न कैसे?" उसने पूछा,

"काम पुर्लिंग है और रति स्त्रीलिंग" मैंने कहा,

"ऊंचा कौन?" उसने पूछा,

"रति" मैंने कहा,

"क्रम यदि काम है तो व्युत्क्रम?" उसने पूछा,

"रति" मैंने कहा,

"महा-औघड़ में क्या वास करता है?" उसने पूछा,

"काम" मैंने कहा,

"शक्ति कौन?" उसने पूछा,

"रति" मैंने कहा,

"रति की भ्रामकता क्या?" उसने फिर पूछा,

"असृजन होना" मैंने कहा,

"काम सफल कब?" उसने पूछा,

"रति का चरम पर" मैंने कहा,

"काम किसके पास होता है?" उसने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"पुरुष के" मैंने कहा,

"सभी पुरुषों के?" उसने प्रश्न किया,

"नहीं" मैंने कहा,

"फिर किसके पास?'' उसने पूछा,

"काम के लिए रति आवश्यक है" मैंने कहा,

वो मुस्कुरायी!

"रति सफल कब?" उसने पूछा,

"सृजन पर" मैंने कहा,

"आनद किसका, काम का या रति का?" उसने पूछा,

कठोर प्रश्न!

'रति का" मैंने कहा,

"कामधन की प्राप्ति के लिए क्या आवश्यक है?" उसने पूछा,

"वाजीकरण" मैंने कहा,

"और रतिगुण के लिए?" उसने पूछा,

"स्तम्भन" मैंने कहा,

'अब काम स्तम्भन को कैसे भेदे?" उसने पूछा,

"विवशता से" मैंने कहा,

"किसकी?" उसने पूछा,

"रति की" मैंने उत्तर दिया,

उसने मेरा एक चक्कर लगाया!

मैं अभी तक चक्करों से बाहर था!

फिर सम्मुख आयी!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"धन शोषित या ऋण शोषित?" उसने प्रश्न किया!

"धन" मैंने कहा,

"बड़ा कौन?" उसने पूछा,

"ऋण" मैंने कहा,

"काम का प्रमुख सारथि कौन?" उसने पूछा,

"मन" मैंने कहा,

"उप-सारथि कौन?" उसने पूछा,

"दृष्टि, घ्राणेंद्री और स्पर्श-इंद्री"

"इनकी अधिष्ठाता कौन?" उसने और गहन किया प्रश्न!

"उपांगलिका" मैंने कहा,

"काम यम-स्वरुप कब होता है?" उसने पूछा,

"रति-रहित!" मैंने कहा,

"सुपोषित हो तुम साधक काम-रस से सुपोषित!" उसने कहा,

"काम सुखकारी अथवा दुःखकारी?" उसने पूछा,

"दुःखकारी" मैंने उत्तर दिया,

"सुखकारी कौन?" उसने पूछा,

"रति" मैंने कहा,

"रति कौन?" उसने पूछा,

"शक्ति" मैंने उत्तर दिया!

"तो पुरुष कौन?" उसने पूछा,

"काम का सारथि" मैंने कहा,

वो अवाक!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"रति का सुख क्या?" उसने पूछा,

"साथ घाटियों घटियों में चौबीस फल हैं" मैंने कहा,

"और सोलहवीं में क्या फल?" उसने पूछा,

"सिद्धि दायक" मैंने कहा,

मैंने कहा और उसका आशय स्पष्ट हुआ!

"रति किसको शक्ति प्रदान करे?" उसने पूछा,

"कामधारी को" मैंने कहा,

"अब समझे?" उसने पूछा,

"समझ गया!" मैंने कहा,

"अब दूध पी लो!" उसने हंस के कहा,

उसकी पारी समाप्त हुई!

और मेरी आरम्भ!

उसने आशय स्पष्ट कर दिया था!

मैं अच्छी तरह से समझ गया था!

 

वो बैठ गयी, थैले में से कुछ सामान निकालने, अब मैंने कहा, "पर्णी?"

"बोलो?" वो जैसे चौंकी!

"सबसे व्यापक कौन?" मैंने पूछा,

"दुःख" उसने कहा,

"सबसे अल्प क्या?" मैंने पूछा,

"ज्ञान" उसने कहा,

"सबसे क्षीण क्या?" मैंने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"यौवन" उसने कहा,

'सबसे कृशकाय क्या?" मैंने पूछा,

"सुख" उसने उत्तर दिया!

"सर्वोचित क्या?" मैंने पूछा,

"सत्य" उसने कहा,

"सबसे भार-रहित क्या?" मैंने पूछा,

"पुण्य" उसने उत्तर दिया,

"प्रकृति में सबसे उपयोगी कौन?" मैंने पूछा,

"जल" उसने कहा,

"सबसे अनावश्यक क्या?" मैंने पूछा,

"यश" उसने कहा,

"पुरुष और स्त्री में क्या भेद?" मैंने पूछा,

"स्त्री सदैव उच्च है" उसने कहा,

"पुरुष का क्या प्रयोग?" मैंने पूछा,

"स्त्री अन्तः है पुरुष बाह्य" उसने कहा,

"सर्वोपयोगी कौन?" मैंने पूछा,

"स्त्री" उसने कहा,

"पुरुष क्या है?" मैंने पूछा,

"सीढ़ी, शीला" उसने कहा,

"शक्ति को क्या आवश्यकता पुरुष की?" मैंने पूछा,

"धन और ऋण के बिना युग्म कहाँ?" उसने कहा,

बिलकुल ठीक कहा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

"आरूढ़ कौन?" मैंने पूछा,

"घमंड" उसने कहा,

"तिरस्कृत कौन?" मैंने पूछा,

"लोभ" उसने उत्तर दिया!

"ऊंचा कौन?" मैंने पूछा,

"लालच" उसने कहा,

"छोटा कौन?" मैंने पूछा,

"जीवन" उसने उत्तर दिया,

"ब्रह्मलीन कौन?" मैंने पूछा,

"ब्रह्मतुल्य" उसने कहा,

"यम का ग्रास कौन?" मैंने पूछा,

"तृष्णा-दास" उसने कहा,

"मुक्त कौन?" मैंने पूछा,

"तृष्णा-विहीन" उसने उत्तर दिया,

बिना अटके!

वाह!

"सरल क्या नहीं काटता?" मैंने पूछा,

"बंधन" उसने कहा,

"उच्च मोल की वास्तु क्या?" मैंने पूछा,

"प्रज्ञा!" उसने कहा,

"यम से भय किसे?" मैंने पूछा,

"प्राणमोही को" उसने कहा,


   
ReplyQuote
Page 2 / 5
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top