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वर्ष २०११ दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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"तो अब?" उन्होंने पूछा,

"अभी कारिंदा रवाना करता हूँ उसका अता-पता लगाने को, देखते हैं कहाँ है ये बाबा फक्कड़" मैंने कहा,

"ठीक है" वे बोले,

अब मैं उठा, क्रिया स्थल गया और वहाँ मैंने अपना कारिंदा सुजान हाज़िर किया! सुजान हाज़िर हुआ, सुजान को बाबा फक्कड़ का पता काढ़ने के लिए रवाना कर दिया, सुजान उड़ चला!

और फिर करीब दस मिनट में हाज़िर हुआ! वो सटीक पता लाया था! बाबा फक्कड़ अभी कोसीकलां में मौजूद था! बाबा नौबत के साथ! बाबा नौबत और बाबा फक्कड़ दोस्त थे दोनों!

मैंने पता लिख लिया और सुजान को उसका भोग देकर विदा कर दिया! मुस्कुराता हुआ सुजान चला गया!

अब मैं पता लेकर आ गया शर्मा जी के पास!

 

अब मुझे इंतज़ार था अनिल साहब का कि कब वो बात करें और कब मैं आगे बढूँ, एक दिन बीता, मेरी चिंता बढ़ी, समय बीतने का अर्थ था फक्कड़ को और समय देना, कहीं कोई बड़ी चीज़ भिड़ा दी तो और मुसीबत हो जायेगी, आखिर चिंता समाप्त हुई, दिलीप ने मिलना स्वीकार कर लिया और वो अनिल साहब के घर पर आ गया, खबर मिलते ही हम भी कूच कर गए अनिल के घर!

घर पहुंचे!

दिलीप की आँखें फटी की फटी रह गयीं रश्मि को देख कर! और जब अनिल ने उसको बातें बतायीं जो मैंने बतायी थीं तो उसके होश उड़ गए, अविश्वास का पर्दा उठ गया! बहुत गरमजोशी से मिला हमसे और अब हम साथ बैठे चाय पी रहे थे! रश्मि और ज्योति एक अलग कमरे में थीं,

"साहब, मान गया मैं" उसने हाथ जोड़ कर कहा,

"वो छोड़िये, आप मुझे इस फक्कड़ के बारे में बताइये" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मैं फक्कड़ को नहीं जानता, हाँ मैंने देखा है एक बाबा टाइप आदमी, वो पहले यही दिल्ली में ही रहता था किसी मकान में, किसी उसी के भक्त ने एक कमरा दिया हुआ था, जब हमने वो कब्जे किये हुआ ज़मीन का टुकड़ा अपने कब्ज़े में लिया था तो उस बाबा ने मुझे धमकी दी थी, अब यक़ीन हुआ कि वो ही है वो बाबा, फक्कड़ बाबा" उसने कहा,

"अब जानते हो वो कहाँ है?" मैंने पूछा,

"नहीं जी" उसने कहा,

"फक्कड़ कहता है दिलीप ने हमारी ज़मीन छीन ली, ये सच है क्या?" मैंने पूछा,

"मैंने बताया न आपको, वो एक प्लाट में बने एक कमरे में रहता था" वो बोला,

"अब आप कहते में हैं!" मैंने कहा,

मक्की का दाना सा उछला ताप पाकर!

"जी..?" उसने पूछा,

"अब रश्मि तो ठीक है, वहाँ कोई नहीं आएगा, लेकिन अब उसका निशाना आप हो!" मैंने कहा,

अब घबराया!

एक अविश्वासी पानी छोड़ने लगा हर शारीरिक छिद्र से!

"जी, आप हैं न?" उसने बचते बचाते कहा,

"अब हमे उस फक्कड़ को ढूंढना होगा!" मैंने कहा,

"फक्कड़ को?" उसने बोला और मुंह रहा खुला!

अब ये क्या? ये तो संजीवनी ढूंढने जैसा हो गया!

बहुत घबराया वो!

मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा!

उसकी हिम्मत बंधी!

"घबराओ मत! उसका पता है मेरे पास!" मैंने कहा,

मैंने कहा और भय की हवा उसके घबराते हुए शरीर रुपी गुब्बारे से बाहर निकली!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"कब चलना है?" मैंने पूछा,

"अभी चलिए?" वो तैयार हुआ और कहा!

"हाँ अनिल जी? चलें?" मैंने पूछा,

"जी गुरु जी" अनिल ने भी कहा,

और इस तरह हम चार चल पड़े कोसीकलां की तरफ!

बाबा फक्कड़ से मुलाक़ात करने!

अब तक तो जान गया होगा बाबा फक्कड़ कि कोई आ रहा है उस से मिलने! और किस विषय पर!

कोसीकलां दिल्ली से अधिक दूर नहीं, ढाई तीन घंटे का रास्ता है, हम रास्ते में एक जगह रुके, चाय पी और फिर सीधे निकले कोसीकलां की तरफ!

वहाँ पहुँच गए!

जहां हमको जाना था वो थोडा सा देहाती इलाका था, जंगल सा! खैर, जाना तो था ही, सो चल पड़े, धीरे धीरे! गाड़ी डगमगाते हुए बढ़ती रही आगे और आगे!

और जा पहुंचे एक देहाती क्षेत्र में!

 

ये एक देहाती सा क्षेत्र था, आबादी कम सी थी, कुछ झोंपड़ियां पड़ी थीं, सड़क से दूर और छोटी पहाड़ी सी, वहाँ जिस जगह का ज़िकर सूजन ने किया था वो मेरे सामने थी, वहाँ कोई नहीं था न आदमी न आदमी की जात, सन्नाटा पसरा था, तभी दो शराबी नज़र आये, दूर, मई और शर्मा जी चल पड़े उनके पास, हमे देख घबरा गए, शर्मा जी ने उनको समझाया और पूछा," यहाँ कोई फक्कड़ बाबा है क्या?"

"हाँ बाबू जी, एक है, लेकिन वो आगे हैं, पैदल का रास्ता है" वो बोला,

"कितना आगे?" उन्होंने पूछा,

"आगे बस थोड़ी सी दूर" वो बोला,

अब शर्मा जी गाड़ी तक गए और उन दोनों को वहीँ खड़ा रहने को कहा, वे डरे हुए थे, घिग्गी बंधी हुई थी, बिना आवाज़ किये हाँ कह दी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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और हम उधर चल पड़े जहां उन शराबियों ने रास्ता बताया था,

आगे बढे,

कुछ जंगली से पेड़ और कुछ झाड़ियाँ, पन्नियां बिखरी हुई, कुछ खाली थैलियां शराब की, ये स्वर्ग था शराबियों का शायद! एकांत सी जगह थी! तभी सामने एक झोंपड़ी सी दिखायी दी, झोंपड़ी क्या कोई झुग्गी सी थी, हम वहीँ चल पड़े!

वहाँ हमे एक आदमी सोए हुआ मिला, उम्र होगी करीब साठ साल, लम्बी दाढ़ी, और कान में चांदी के कुंडल पहने हुए, वो सो रहा था, मक्खियां भिनक रही थीं एक पास रखी थाली पर, शायद भोजन करके सोया होगा वो!

शर्मा जी ने जगाया उसको,

एक बार,

वो नहीं जागा,

शायद नशे में था बहुत,

फिर जगाया,

नहीं जागा!

फिर शर्मा जी ने उसको पकड़ के उठाया, वो उठ गया, और अधखुली आँखों से देखते हुए बोला, "कौन?"

"क्या नाम है बाबा आपका?" शर्मा जी ने पूछा,

"नौबत" उसने नशे की झोंक में बताया!

अच्छा!

नौबत बाबा तो मिल गया अब ढूंढना था फक्कड़ बाबा को!

"अरे बाबा ये फक्कड़ बाबा कहाँ है?" शर्मा जी ने पूछा,

"आ रहा है", गर्दन हिला कर बोला वो,

वो लेट गया!

नशा बहुत किया था उसने! बार बार थूके जा रहा था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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हमने इंतज़ार किया, और करीब आधे घंटे में एक लुंगी और कुरता पहने एक बूढा सा आदमी वहाँ आया, उसकी उम्र भी साथ के आसपास थी! हफ़्तों से शायद दाढ़ी भी नहीं बनायी थी उसने, उसको भी नशा था! झूमते झूमते आ गया वहाँ! मुझे देखा! फिर शर्मा जी को देखा!

"आदेश!" मैंने तांत्रिक कूट भाषा का प्रयोग किया!

"आदेश" उसने भी कहा,

"जय हो फक्कड़ बाबा की!" शर्मा जी ने हाथ जोड़कर कहा!

"कौन हो बाबू जी आप लोग?" उसने पूछा,

"भक्त हैं जी आपके" शर्मा जी ने कहा,

अब वो चाल भांपा!

"अच्छा, आपने ही धनी राम को पीटा था न? है न?" उसने पूछा,

"जी मैंने नहीं इन्होने" शर्मा जी ने कहा मेरी तरफ इशारा करते हुए!

उसने मुझे हाथ जोड़े!

"आ गए आप लोग!" फक्कड़ बोला,

"हाँ जी" शर्मा जी ने कहा,

"आओ, बैठो" उसने कहा और एक प्लास्टिक से बना बिछावन सा बिछा दिया! हम बैठ गए!

वहाँ खर्राटे बज रहे थे बाबा नौबत के!

"बाबा ऐसा क्यों किया?" मैंने पूछा,

कुछ देर चुप रहा!

"बेटी के हाथ पीले करने थे बिज्जे ने, एन वक़त पर आ गया ज़मीन खाली करवाने वो वहाँ जो गाड़ी में बैठा है" उसने कहा,

"फिर?" मैंने पूछा,

"अब घर नहीं रहा तो रिश्ता टूटना ही था, टूट गया, आदमी अच्छा था, बेघर हो गया, मुझे आसरा दिया था उसने" फक्कड़ ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब मै समझ गया!

रंजिश का कारण!

"लेकिन बाबा आपने दिलीप को छोड़ दिया, और उसकी पत्नी को लपेट दिया, क्यों?" मैंने पूछा,

"लपेटा, लेकिन मारा नहीं, इलाज में पैसे खरच करवाये उसके, उसको भी, परेशानी कैसी होती है, पता चलवाया" फक्कड़ ने कहा,

एक तरह से सही कहा बाबा फक्कड़ ने!

अब कुल्ला किया बाबा ने! फिर दांत में फंसा हुआ अन्न निकाला और फिर कुल्ला किया!

"वो आदमी गलत है बहुत, किसी की बहू बेटी नहीं छोड़ी उसने" बाबा ने कहा,

अब तो मुझे भी गुस्सा आया, कि मै किसकी मदद करने आ गया?

"बस कुछ दिनों बाद वो लड़की ठीक हो जाती और मै इसको लपेटता, फिर ये हरामज़ादा कबूल करता कि क्या किया है इसने, अपने मुंह से, अब आप लोग आ गए बीच में, अच्छा नहीं किया आपने" बाबा ने कहा और मुझे दुविधा में डाला!

 

नौबत बाबा ने करवट बदली तो खर्राटे बंद हुए! नहीं तो धौंकनी सी चल रही थी!

"मुझे नहीं पता था बाबा" मैंने कहा,

"मैं जानता हूँ" बाबा ने कहा,

"मुझे अफ़सोस है उस लड़की की शादी का, अब कहाँ रहती है वो और बिज्जै?" मैंने पूछा,

"फरीदाबाद की झुग्गियों में" बाबा ने कहा,

"ब्याह हुआ उसका?" मैंने पूछा,

"नहीं" बाबा ने कहा,

"ओह" मेरे मुंह से निकला,

अब मैंने शर्मा जी को देखा और हमारी आँखों ही आँखों में बात हुई!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बाबा अगर लड़की का ब्याह हो जाए?" मैंने कहा,

"बिन बसेरे के कौन करेगा?" कहा बाबा ने,

बात सही थी! भले ही किराये का हो!

बाबा ने अब सारी बात खुल के बतायी! मुझे बहुत गुस्सा आया दिलीप पर!

मैंने तभी तीन सौ रुपये दिए बाबा को और कहा, "बाबा अगर बसेरा भी हो जाए तो?"

बाबा समझ गए!

"आप अपना फ़ोन नंबर दे दो मुझे, मैं बिज्जै से बात करूँगा और फिर आपसे बात करूँगा" बाबा ने कहा और रुपये ले लिए!

शर्मा जी ने नंबर एक कागज़ पर लिख कर दे दिया! बाबा ने रख लिया!

"ठाक है बाबा" मैंने कहा

अब उठ गए हम वहाँ से!हम अब चले वहाँ से, रास्ते में शर्मा जी ने कहा, "अनिल से बात करते हैं, दिलीप के सामने, देखते हैं क्या होता है"

"हाँ, सारी बातें खोल दो" मैंने कहा,

"ठीक है" वे बोले,

और अब हम चल पड़े गाड़ी की तरफ!

दोनों बैठे हुए थे, गाड़ी में, हमारा इंतज़ार करते हुए!

बेसब्री से!

हमे देख बाहर आये,

हम फिर से गाड़ी में जा बैठे,

अब शर्मा जी ने प्रश्न करने आरम्भ किये.

"दिलीप?'' वे बोले,

"हाँ जी" वो बोला,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जहां से आपने जो ज़मीन खाली करवायी थी वहाँ कोई बिज्जै नाम का आदमी था?" उन्होंने पूछा,

"हाँ जी, वही लोग थे जिन्होंने कब्ज़ा किया था" वो बोला,

"बिज्जै ने तुमसे कहा था क्या कि लड़की की शादी हो जाने दो, उसके बाद वे चले जायेंगे?" उन्होंने पूछा,

"ये तो जी इन लोगों की चाल होती है" वो बोला,

"अच्छा, तो वो झूठ बोल रहा था?" उन्होंने पूछा,

"झूठ ही बोल रहा होगा" वो ढीठ इंसान बोला!

"तब मैं कोई मदद नहीं कर सकता" मैंने कहा,

कांच दरका एकदम!

"चलो अनिल जी, वापिस चलो दिल्ली" मैंने कहा,

"जी" अनिल ने कहा और गाड़ी स्टार्ट कर दी!

हवाइयां उड़ गयीं दिलीप के चेहरे पर!

"क्या हुआ साहब? कुछ तो बताओ?" वो बोला,

अब तक गाड़ी मुड़ चुकी थी,

हम चल पड़े दिल्ली की ओर!

"क्या हुआ गुरु जी?" दिलीप ने पूछा,

"कुछ नहीं" मैंने कहा,

साँसें अटक गयीं उसकी!

अब भुगतने दो परिणाम उसको!

रास्ते भर बहुत बेचैन रहा दिलीप! आखिरकार उसके सब्र का बाँध टूट गया! किसी अनहोनी के घटने की कल्पना कर उसके रोंगटे खड़े हो गए! छुओ तो बस रोने को तैयार वो!

"गुरु जी, बताइये, क्या हुआ?" उनसे पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अभी अनिल जी के यहाँ पहुँच जाएँ तो बताता हूँ" मैंने कहा,

"यहीं बता दीजिये" उसने कहा, उस से रहा नहीं गया!

"दिलीप साहब! बिज्जै ने गलत नहीं कहा था, उसकी लड़की का रिश्ता तय हो चुका था, बस कोई पंद्रह दिन बाद ब्याह था, लेकिन आपने उसके पिता को जहां बेघर किया वहीँ उस बेचारी लड़की का रिश्ता भी टूट गया, ये सब आपके कारण हुआ" मैंने कहा,

रुआंसा वो!

चेहरा फड़कने लगा, आंसू बहने लगे उसके!

कहीं न कही सोयी हुई इंसानियत जाग उठी उसके मुर्दाघर में, सांस पड़ गयी!

"अब?" उसने पूछा,

"और सुनो, उसने दो गरीब बाबाओं को अपने घर आसरा दिया था, वो दोनों तांत्रिक हैं, बाबा फक्कड़ को जब ये पता चला तो उसी दिन से आपके दिन खराब होने लगे, वो चाहता तो अब तक आपको मार सकता था, किसी को पता नहीं चलता, कोई भी गला घोंट देता आपका, या कोई दुर्घटना करा देता, लेकिन उसने आपको नहीं आपकी पत्नी को मोहरा बनाया, उसने उसको मारा नहीं, बस मानसिक रूप से विक्षिप्त कर दिया, दवा ने असर करना बंद कर दिया, आपके पैसे लगने लगे, आपको घमंड है न पैसे पर, तो उस फक्कड़ ने आपके पैसे ही खर्चवाए!" मैंने कहा,

"मुझे माफ़ कर दो" उसने कहा, रोते रोते!

"एमी कौन होता हूँ माफ़ करने वाला दिलीप साहब! अब वो आपके ऊपर क्रिया करेगा, न रहेगा बांस और न रहेगी बांसुरी, हाँ रश्मि अब बिलकुल ठीक है, अरे गरीब के पास पैसा नहीं इंसानियत तो है?? घबराइये नहीं, आपको मारेगा नहीं, लेकिन ज़िंदा भी नहीं छोड़ेगा, देखते हैं पैसा जीतता है या फिर वो बाबा फक्कड़, मुझे अभी से इस मामले से बाहर रखिये" मैंने साफ़ साफ़ कह दिया!

भविष्य की कल्पना करके वो घबरा गया! वो तो गाड़ी में छत थी नहीं तो रोते रोते उड़ ही जाता!

"मुझे बचा लो गुरु जी!" उसने अपना सर मेरे घुटनों में रख दिया! आंसू बह निकले! बुरी तरह से रोया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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आखिर मुझे भी तरस आ गया!

प्रायश्चित का भी स्थान है जीवन में!

"सुनो दिलीप?" मैंने कहा,

"जी गुरु जी?" वो बोला,

"अपनी गलती मानते हो?" मैंने कहा,

"हाँ गुरूजी" बुक्का फाड़ रोये वो!

"ठीक है, शर्मा जी बता दो इनको" मैंने कहा,

"सुनो दिलीप, तुम्हारी वजह से उस लड़की का ब्याह नहीं हुआ, बेघर हुए और उन दोनों बूढ़ों का हाल आज हमने देखा, सब तुम्हारी वजह से" वे बोले

"जी, मैं मानता हूँ" वो बोला रोते और खांसते हुए!

"उस कन्या का ब्याह हो जाए और उसके परिवार को एक जगह मिल जाए भले ही किराए पर, बिज्जै किराया भी दे देगा" शर्मा जी ने कहा,

"मैं किराया नहीं लूँगा, जब तक वो रहे!" रो रो के बुरा हाल!

"मंजूर है?" शर्मा जी ने पोछा,

"हाँ गुरु जी" वो बोला,

अब सारी बात बता दी शर्मा जी ने!

मित्रगण!

तीसरे दिन फ़ोन आ गया फक्कड़ बाबा का! हम मिलने चले गये! मैं, शर्मा जी, अनिल जी और दिलीप!

और फिर!

जाते ही पाँव में गिर पड़ा दिलीप फक्कड़ बाबा के! बाबा ने उठाया और माफ़ कर दिया! शर्मा जी ने सबकुछ बता दिया!

उसी दिन बिज्जै के रहने का प्रबंध करवा दिया दिलीप ने, उन दोनों बूढ़ों को भी जगह मिल गयी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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तीसरे महीने बिज्जै की लड़की का ब्याह हो गया! हम भी गए! हमने यथासम्भव कन्या-दान किया! हाँ, सारा खर्च दिलीप ने किया! ये उसका प्रायश्चित था!

लड़की अपने घर की हो गयी!

बिज्जै और उन दोनों को घर मिला,

रश्मि ठीक,

दिलीप को जीवन दान मिला!

अनिल जी और ज्योति खुश हुए!

और हमे मिला आत्मसुख!

और क्या चाहिए मित्रगण!

कर्त्तव्य से कभी न भागिए! कभी विमुख न होइए! निर्धन को कभी न सताइये! मजबूर का कभी लाभ न उठाइये बल्कि मदद कीजिये! स्व्यं भूखा रखकर बेज़ुबान और भूखे को भोजन कराइये! अपना जो वस्त्र मैला होता हो किसी निर्धन को छू कर तो ऐसा वस्त्र त्याग दीजिये! धन, शरीर, काया, रंग, जाति, वर्ण आदि पर कभी दम्भ न कीजिये! चिता भूमि में कुछ नहीं जाएगा! वहाँ आलीशान बिस्तर या गद्दा नहीं लकड़ियां मिलेंगी किसी लक्कड़हारे की काटी हुई! जिस प्रकार अग्नि किसी में भेद नहीं करती उसी प्रकार किसी से भेद नहीं कीजिये!

जो मेरा कर्त्तव्य था, वो निभा दिया!

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------

 


   
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