मै शर्मा जी के साथ बैठा हुआ था उस दिन उनके घर में, एक पारिवारिक पार्टी थी, शर्मा जी ने ही रखी थी, मेरा इंतजाम सबसे अलग किया गया था, मेरे साथ एक मेरा साथी भी था जो कि आसाम से आया था, उसको आगे गुजरात जाना था तो दिल्ली में मेरे पास दो दिन रुका, तभी शर्मा जी का बुलावा भी आ गया! वो स्वयं हमे लेने आ गए! मेरा प्रबंध सबसे ऊपर के बने एक कमरे में किया गया था, वहाँ शर्मा जी बार-बार सामान ला रहे थे और ले भी जा रहे थे! मैंने शर्मा जी से कहा, "क्या बात है, सारा काम आप ही करोगे क्या? भाई हमारे साथ भी तो बैठो!"
"अभी बैठूँगा गुरुजी, बस थोडा काम और बाकी है!" वो ये कह के फिर बाहर चले गए!
थोड़ी देर बाद फिर आ गए! इस बार नया 'व्यंजन' लाये थे! खुशबू से ही पता चल रहा था कि बनाने वाले ने काफी मेहनत की है! उन्होंने सामान रखा और दूसरा 'सामान' ले आये! मेरा साथी बोला, "गुरु जी, वैसे आपने चेला सही पकड़ा है!"
मैंने उसको देखा और कहा, "देख असीमानन्द! शर्मा जी मेरे चेले नहीं हैं! वो मेरे से उम्र में काफी बड़े हैं और मैं उनकी उतनी ही इज्ज़त करता हूँ जितनी की वो मेरी, अब ऐसी बात दुबारा मुंह से नहीं निकालना समझे?"
"जी मै समझ गया" उसने झेंप कर ऐसा जवाब दिया!
शर्मा जी आये और एक पेग बनाने लगे! पहले असीमानंद को दिया, फिर मेरा गिलास भरा, मैंने कहा, "शर्मा जी, आपके साथ यहाँ बैठना है भाई! ये तो मै वहां भी कर लेता!"
"बस १० मिनट और दीजिये आप मुझे" उन्होंने कहा,
"१० मिनट करते करते पूरा घंटा हो गया! कहीं रात ही न निकल जाए!" मैंने हंस कर कहा ये!
"अभी आया गुरु जी, बस अभी आया!" ये कह के वो फिर बाहर चले गए!
नीचे काफी चहल-पहल थी, काफी लोग आये थे उनके यहाँ, इससे किसी व्यक्ति का सामाजिक अस्तित्व और उसकी महत्वता पता लगती है, असीमानंद खाने पर टूट के पड़ा था! मैंने उसको देखा और विचारा, प्रवर्ति कभी समाप्त नहीं होती!
थोड़ी देर बाद शर्मा जी आये, उन्होंने असीमानंद का गिलास भरा और मेरा भी! मैंने फिर टोका," श्रीमान आप अब आ जाइए यहाँ! आपके साथ भी एक-एक जाम लेना है हमने!"
शर्मा जी ने ये सुना और मेरे गिलास को मुंह पे लगाया और गटक गए मैंने गिलास लिया और दुबारा उसमे मदिरा डाल दी! अब वो मैंने पी ली! असीमानंद ये देख के विस्मित हो गया! दर-असल ऐसे लोग अपने चेलों के साथ दुर्व्यवहार तो करते ही हैं, परन्तु, अपने आप को श्रेष्ठ दिखाने के लिए ऐसे प्रपंच भी करते हैं। ये असीमानंद ऐसा ही प्राणी था!
मैंने एक टुकड़ा उठाया, आधा शर्मा जी को खिलाया और आधा स्वयं खा गया! असीमानंद की नज़रें मुझ पर ही गढ़ी रहीं
शर्मा जी फिर बाहर गए और बोले, "गुरु जी मै अपने कुछ रिश्तेदारों को आपसे मिलवाना चाहता हूँ, बस अभी आया" और नीचे उतर गए।
थोड़ी देर बाद ऊपर आये तो उनके साथ ४ लोग थे, उन्होंने नमस्कार किया और वहीं बैठ गए, बातें होती रहीं, मैंने शर्मा जी से कहा कि वो इनको भी 'प्रसाद' दें! शर्मा जी ने उनसे पूछा और सभी ने हाँ कह दी! हम कम से कम १ घंटा साथ-साथ बैठे! बड़े भले लोग थे वो सभी! उन्होंने मेरा नंबर माँगा तो मैंने उनको कहा कि कभी भी बात करनी हो तो वो शर्मा जी से बात कर लें क्यूंकि मै बिना उनके कोई काम नहीं करता! उन्होंने नमस्कार किया और नीचे चले गए, शर्मा जी भी उनके साथ नीचे चले गए! असीमानंद पर दारू का असर दिखाई देने लगा था! वो लेटने कि कोशिश कर रहा था, लेकिन मुझसे ज़ाहिर नहीं करना चाह रहा था! मैंने चुटकी ली, "असीमानंद! क्या हुआ? अभी तो सुरूर ही हुआ है! नशा नहीं हो रहा! और चाहिए क्या?"
उसने हाथ हिला के मना किया! मैं समझ गया! अब ये ढेर होने वाला है! मैंने उसे सामने वाले पलंग पर लेटने के लिए कह दिया! वो उठा, लडखडाया और बेड पर जा लेटा! थोड़ी देर में खर्राटे शुरू हो गए उसके!
अब शर्मा जी आये! बोले, "ये क्या, इस असीमा को क्या हुआ?"
"सालों को मुफ्त की जब मिलती है तो ऐसा ही करते हैं ये!" मैंने कहा
शर्मा जी हँसे!
"ये आसाम में रहता है, वहाँ कच्ची-पक्की पीता है, आज मिल गया गुड का पानी! रहा नहीं गया, टूट पड़ा और अब देखो आसाम में ही घूम रहा है!" मैंने कहा,
"सोने दो बेचारे को, कल जा रहा है ये वापिस, आज चलो दावत हो गयी इसकी आज!" शर्मा जी बोले,
"हाँ, मैंने भी सोचा चलो बेचारे की दावत हो जाए!" मैंने कहा
अब शर्मा जी जे जयी बोतल निकाली और हम दोनों हो गए शुरू!
शर्मा जी ने कहा, "गुरु जी? कोई कमी तो नहीं रह गयी आपकी खिदमत में?"
"क्या कह रहे हो यार तुम?" मैंने कहा,
"मैंने पूछा गुरु जी" शर्मा जी बोले,
"अगर दुबारा ऐसा पूछा तो मै आऊंगा नहीं कभी यहाँ!" मैंने कहा,
"अरे नहीं गुरु जी, नहीं कहूँगा मै ऐसा!" उन्होंने कहा,
"गुरु जी आज भरतपुर वाले का फ़ोन आया था, पूछ रहा था की कब आऊं" वो बोले,
"क्या कहा आपने?" मैंने पूछा,
"मैंने कहा, मै गुरु जी से पूछ के ही बताऊंगा" वो बोले,
"ठीक किया, मै अभी वहाँ नहीं जाना चाहता, पीछे पड़ गया है!" मैंने कहा,
हमने अपना काम ख़तम किया और फिर शर्मा जी सारे बर्तन उठाने लगे, मै भी बिस्तर पर अपनी टांगें ऊपर करके बैठ गया!
शर्मा जी फिर आये, बोले," कोई परेशानी हो तो मुझे कॉल कर देना, मै आ जाऊँगा!"
"अब तो सुबह की उठेंगे हम तो शर्मा जी! अच्छा! शुभ-रात्रि! शर्मा जी ने दरवाज़ा बंद किया और मैंने उठ के लाइट बंद कर दी! सोने से पहले अपना नियम किया और मै फिर बिस्तर पर लेट गया..
और फिर सुबह नहाने-धोने इत्यादी पश्चात् शर्मा जी मुझे और असीमानंद को वापिस मेरे स्थान पर छोड़ने चल दिए गत रात्रि नींद काफी अच्छी आई थी! शर्मा जी कुछ देर वहाँ ठहरे फिर दोपहर बाद आने को कह के वापिस चले गए! असीमानंद अपने आगे के मार्ग पर चलने के लिए तैयारी में जुट गया, आज वो जा रहा था गुजरात जहां उसको किसी कार्यवश जाना था!
दोपहर बाद शर्मा जी आ गए, असीमानंद तैयार था, उन्होंने असीमानंद को बिठाया और मैं भी बैठा, और चल दिए रेलवे स्टेशन असीमानंद को छोड़ने, स्टेशन पहुंचे और हमने असीमानंद को विदा किया! असीमानंद चला गया,
उसके बाद मै और शर्मा जी वापिस आ गए, असीमानंद आसाम से कुछ वस्तुएं लाया था, मै और शर्मा जी उसकी जांच-पड़ताल करने में लग गए, उसकी लायी हुई वस्तुएं बढ़िया थीं, उस तरह की वस्तुएं उत्तर भारत में मिलना मुश्किल ही होता है!
करीब 3 बजे शर्मा जी के फ़ोन पर उनमे से एक व्यक्ति का फोन आया, जिनसे मैं कल रात शर्मा जी के घर पर मिला था, इनका जाम जयराज था, उन्होंने फ़ोन किया था, शर्मा जी ने बातें की तो पता चला, जयराज के कोई रिश्तेदार परेशान थे काफी, उनकी बड़ी लड़की राधिका, शादीशुदा थी, २ बच्चे थे उसके, को कोई पुरानी भूत-बाधा थी, इसी वजह से लड़के वालों ने उसको उनके घर पर ही छोड़ रखा था, ताकि उसका इलाज आदि हो सके, इसको लेकर जयराज के ये रिश्तेदार काफी परेशान रहते थे, वो उसको लेकर हर जगह ले गए थे लेकिन समस्या ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रही थी, डेढ़ सालों से वो लड़की राधिका परेशान थी, डॉक्टर भी इलाज कर रहे थे उसका, इसमें में भी काफी खर्चा आ रहा था, शर्मा जी ने मुझसे पूछा, "गुरुजी यदि आज्ञा हो तो मै जयराज और उनके रिश्तेदार राजेंदर को यहाँ बुला लूँ? वो मिलने को कह रहे हैं"
"हाँ यहाँ बुला लीजिये, देख लेते हैं की आखिर उस लड़की के साथ समस्या क्या है?" मैंने कहा,
"ठीक है, मै अभी बात करता हूँ" वो बोले,
थोड़ी देर बाद शर्मा जी ने कहा, "गुरु जी मेरे वो रिश्तेदार जयराज यहीं दिल्ली के पास साहिबाबाद में रहते हैं, यहाँ कोई १ घंटे तक आ जायेंगे, उनके साथ लड़की का बाप राजेंदर भी आ रहा है" वो बोले,
"कोई बात नहीं, आने दो उनको, तफसील से बातें हो जायेंगी उनसे, जो मालूम करना होगा वो मालूम कर लेंगे" मैंने कहा,
अब तक चाय आ गयी थी, हमने चाय पी और उन लोगों का इंतज़ार करने लगे, एक घंटे के बाद शर्मा जी के फोन पर जयराज का फोन आया, वो लोग पहुंच गए थे और थोड़ी देर में ही यहाँ आने वाले थे,
१० मिनट के बाद ही उनकी गाडी रुकी, जयराज और राजेंदर पहुँच गए थे, नमस्कार आदि हुई और शर्मा जी ने उनको वहाँ बिठाया, शर्मा जी ने पूछा,
"राजेंदर जी, मुझे जयराज जी ने आपकी बेटी के बारे में बताया, क्या समस्या है उसकी? ज़रा विस्तार से बताइये"
"शर्मा जी, मैंने अपनी बेटी की शादी दिल्ली में आजादपुर में रहने वाले एक सधांत परिवार में आज से कोई ६ साल पहले की थी, मेरा जंवाई सरकारी नौकरी में है, भला आदमी है, अब दो बच्चे हैं उनके, आज से कोई डेढ़ साल पहले, मेरे पास फोन आया की राधिका को वहाँ के एक नर्सिंग होम में दाखिल कराया गया है, वजह कोई मानसिक परेशानी थी, पूछने पर पता चला की वो अपनी छोटी संतान को अपना नहीं कहती थी, अपने पति को पहचानती नहीं थी, सास-ससुर को गाली गलौज आदि करती थी, और स्वयं को चोट पहुँचाया करती थी,जब काफी हुआ तो उन्होंने उसका इलाज करवाया, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा, आखिर वो उसको हमारे यहाँ छोड़ के चले गये, हमने भी काफी इलाज करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं, उसका ऊपरी इलाज भी करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, आज वो मेरे घर में है, उसकी वजह से मेरे घर में भी कलेश रहता है, मेरी पुत्र-वधु से उसकी नहीं बनती, मै क्या करूँ? तभी मुझे जयराज जी ने आपके बारे में बताया, मेरी आशा बंधी है गुरु जी, मेरी मदद कीजिये, मै बहुत दुखी हूँ" राजेंदर ने बताया,
मैंने कुछ और बातें भी पूछी, जिसका जवाब राजेंदर ने दिया, तब मैंने उनको एक अभिमंत्रित जल दिया, कहा "ये जल उसको पिला देना, मै कुछ जांचना चाहता हूँ"
"ठीक है गुरु जी, जो होगा मैं सूचित कर दूंगा" वो बोले,
इसके बाद थोड़ी देर बाद वो वहां से चले गए.........
अगली सुबह मेरे पास शर्मा जी का फोन आया, शर्मा जी ने बताया की राजेंदर ने आज सुबह उसको जल पिलाया था, और जल पीते ही वो बेकाबू हो गयी है, तोड़-फोड़ मचा रही है, अजीब-अजीब सी भाषा बोल रही है,सारे कपडे फाड़ रही है, उसने अपनी माँ, अपने भाई की बीवी यानि अपनी भाभी के ऊपर हाथ उठाया है, और बार बार जब वो नीचे कूदने को भाग रही थी तो उसको काबू करने के लिए राजेंदर, उसके बेटे और उनके किरायेदारों की मदद से उसको बाँध के रखा गया है! वो लोग डर गए हैं! क्या किया जाए? ऐसा पूछ रहे हैं, मैंने कहा, "शर्मा जी, जो मै जानना चाहत था वो जान लिया, आप एक काम करो अगर वो उस लड़की को यहाँ ला सकते हों तो यहाँ ले आयें अगर नहीं ला सकते तो हम को वहाँ जाना होगा, आप उनसे एक बार पूछ लो!"
"ठीक है गुरु जी, मै अभी बात करके अभी आपको बताता हूँ" शर्मा जी ने ऐसा कह के फ़ोन रख दिया,
मैं समझ गया था, राधिका किसी झपट में थी, उसके अन्दर किसी का वास था, ये वास अब काफी पुराना हो गया था, और पुराना वास आराम से नहीं छूटता!
शर्मा जी का फोन आया, उन्होंने बताया की वो लोग राधिका को मेरे पास ला रहे हैं, और शर्मा जी स्वयं भी आ रहे हैं, वो आधे रास्ते में हैं, मै अन्दर गया और कुछ तैयारी की अब मै इस बाधा का सामना करने के लिए तैयार था!
शर्मा जी पहले आये, नमस्कार हुई, शर्मा जी ने राजेंदर को फोन किया, वो भी आधे रास्ते से ज्यादा आ चुके थे, मैंने शर्मा जी को कुछ बताया और वो वैसा ही करने चले गए।
कोई आधे घंटे के बाद राजेंदर, उनका बेटा और जयराज उस लड़की को वहाँ ले आये!
राधिका के दोनों हाथ पीछे कमर पर बांधे गए थे, और मुंह में एक चुन्नी से घेरा बना के सरके पीछे बाँधा गया था, मैंने उसको देखा, उसने मुझे खूंखार दृष्टि से! मैंने उनको बोला की वो उसको उतार के, उठाके मेरे अन्दर वाले कमरे में ले आइये! उन्होंने उसे उठाया और मेरे अन्दर वाले कमरे में ले आये! मैंने उनसे कहा, "आप इसका मुंह खोल दो, इसके हाथ भी खोल दो"
वो लोग डरे तो मैंने शर्मा जी को ऐसा करने का कहा, शर्मा जी आगे आये और उसके हाथ खोले, उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, फिर उन्होंने उसका मुंह खोला, उसने दोनों हाथों से अपने खुले बाल सँवारे और मेरी तरफ देख के मुंह से कुछ बडबड़ाई
मैंने उससे कहा, "देख अब तू यहाँ से निकलने से रही, मै अब तुझे जाने नहीं दूंगा, चल अब अपने बारे में बताना शुरू कर!"
"क्या जानेगा तू?" वो बोली,
"तेरा नाम, नाम बता पहले?" मैंने उसको कहा,
"मुझे नहीं पता अपना नाम!" उसने हंस के कहा,
"तो किसे पता है?" मैंने पूछा,
"रीना को पता है मेरा नाम!" वो बोली,
"कौन है ये रीना?" मैंने पूछा,
वो चुप हो गयी, कुछ नहीं बोली, काफी देर हो गयी, मैंने उससे कहा, "देख मै तुझसे जो भी पूछ रहा हूँ, उसका तू तोते की तरह से जवाब दे, ये तेरे लिए अच्छा रहेगा, नहीं तो मुझे दुसरे तरीके भी आते हैं."
"क्या करेगा? मारेगा? तेरे जैसे मैंने बहुत देखे हैं!" उसने अपने दोनों हाथ अपने घुटनों पर मारते हुए कहा,
"तो तू ऐसे बाज नहीं आने वाली, ठीक है" मैंने कहा,
मैंने शर्मा जी को इशारा किया, वो आगे आये, और उसके पास बैठ गए, वहाँ खड़े लोग डर के मारे ज़मीन में घुस जायेंगे ऐसे खड़े थे!
मैंने कहा, "सुन अपना नाम बता जल्दी"
वो चुप रही, मैंने शर्मा जी को एक इशारा किया, उन्होंने उसके बाल पकडे और एक तमाचा दिया! वो बिफर गयी, गाली गलौज करने लगी!
मैंने फिर कहा, "अपना नाम बता?"
वो चुप रही, तब मैंने शर्मा जी को इशारा किया, उन्होंने फिर से एक झापड़ दिया उसको, नीचे गिर गयी!! उठी, शर्मा जी को अपनी ऊँगली से 'तेरे को देख लूंगी मै जैसा इशारा किया!
मैंने फिर कहा, "सुन अब मै तेरे से आखिरी बार पूछंगा, अपना नाम बता?"
वो फिर चुप रही, अब मैंने अपनी शक्ति का आह्वान किया! शक्ति प्रकट हुई! शक्ति को देख कर राधिका पीछे हटी और दीवार से सट गयी! मै उठा, उसके पास गया, और कहा, "अब भी अपना नाम बता दे, मै तुझे बख्श दूंगा, अगर नहीं बोली तो तेरी शामत आई, अब जल्दी बता अपना जाम?"
"मैंने कहा न? रीना जानती है....... वो जानती है मेरा नाम!" उसने डर के मारे कहा,
तब मैंने राजेंदर से पूछा, " क्या आप जानते हैं ये रीना कौन है?
"नहीं जी मुझे तो मालूम नहीं? उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की,
"क्या इसकी ससुराल में कोई हो?" मैंने पूछा,
"जी अभी पूछ के बताता हूँ, एक मिनट ठहरिये" ये कह के वो बाहर चले गए,
तभी राधिका ने शर्मा जी की एक बाजू पकड़ी और बोली, " ऐ भाई, हमको बाहर ले जाओ, हमे डर लग रहा है"
"शर्मा जी, इससे कहो की आप ले जाओगे, अपना नाम बता दे बस!" मैंने कहा,
"हाँ, सुन अपना नाम बता दे, फिर मै तुझको ले जाऊँगा बाहरा" शर्मा जी बोले,
"हमको काठगोदाम बस-अड्डे पे छोड़ देना, हम चले जायेंगे" वो बोली,
"काठगोदाम? वहाँ क्या है, तेरा क्या लेना वहाँ से?" मैंने कहा,
अभी वो कुछ बोलती इतने में राजेंदर आये और बोले की रीना नाम की कोई औरत या लड़की वहाँ नहीं है!
मै फिर से राधिका की तरफ मुड़ा, मैंने कहा, "बता काठगोदाम में कौन है तेरा?"
"मेरा बेटा है, मेरी बेटी है" वो बोली,
"तुझे मिलना है उनसे?" मैंने कहा,
अब वो रो पड़ी, और रो रो के दो नाम बोलती रही, "अरे मेरे दीपक, अरे मेरी लड़की देवकी"
"कौन हैं ये?" मैंने पूछा,
"मेरा लड़का और मेरी लड़की" वो एक दम से शांत हो कर बोली,
"अच्छा, चल अपना नाम बता फिर, तभी तो पहचानेंगे उनको?" मैंने कहा,
"भाई, ऐ भाई, हमको अपना नाम नहीं मालूम,रीना को पता है मेरा नाम!" वो बोली,
"देख मै तेरे को बहुत खेल खिला चूका, अब या तो शराफत से बता दे नहीं तो तेरी आंतें खींच के तेरे मुंह से बाहर निकाल कर लटका दूंगा हार बना के तेरे गले में अब जल्दी बता अपना नाम?"
"भाई, मेरे भाई, मेरा नाम मुझे नहीं पता, मुझे मेरे बच्चों की सौगंध, रीना जानती है" उसने फिर कहा,
"तो ये रीना कौन है? इसके बारे में बता जल्दी?" मैंने कहा,
"मेरी सहेली है" वो बोली,
"कहाँ रहती है ये रीना?" मैंने पूछा,
"बहुत दूर, बहुत दूर रहती है वो" उसने कहा,
"कहाँ बहुत दूर?" ये बता
"नजफगढ़ में रहती है मेरी सहेली!" उसने मुस्कुरा के कहा!
"देख अगर तूने और पहेलियाँ बुझायीं तो समझ ले तेरे काम तमाम" मैंने उसको कहा,
"राजेंदर जी, ज़रा मालूम करो कोई इसका या आपका जानकार है नजफगढ़ में?" मैंने राजेंदरसे कहा,
"हाँ जी है, है वहाँ हमारे रिश्तेदार" उन्होंने कहा
"कौन है वहाँ आपका?" मैंने पूछा,
"जी मेरी बड़ी लड़की ब्याही है वहाँ" राजेंदर ने बोला,
"अच्छा, अब ज़रा फ़ोन करके ये पता करो की वहाँ कोई रीना नाम की औरत या कोई लड़की है?" मैंने पूछा,
"जी अभी फ़ोन करता हूँ" उन्होंने ऐसा कहा और बाहर चले गए,
थोड़ी देर बाद आये तो मुझसे बोले "हाँ जी है वहाँ एक रीना, मेरे बड़े जंवाई के छोटे भाई की बीवी है, पानीपत की रहने वाली है" उन्होंने बताया,
"अच्छा, यानि की ये सही कह रही है!" मैंने राधिका को देखते हुए कहा,
"ठीक है, आप रुकिए, मै पता करता हूँ की असली कहानी क्या है!" मैंने कहा,
मैंने तब शर्मा जी, राधिका के अतिरिक्त खड़े लोगों को वहाँ से बाहर जाने को कहा, वे लोग निकल गए,
मै वहाँ से उठा और शर्मा जी से बोला, "शर्मा जी, आप यहीं रहें, ये कुछ भी बोले, इसको बोलने देना, आप इससे बहस नहीं करना, मै अभी आ रहा हूँ"
"ठीक है गुरुजी आप आइये, मै तब तक इस पर नज़र रख लूँगा" वो बोले,
मै अपने एक अलग कमरे में गया, कारिन्दा हाज़िर किया! कारिन्दा आया, मैंने उसको वो बताया जो मै जानना चाहता था, कारिन्दा रवाना हुआ, मेरे इस कारिंदे का नाम है सुजान! बहुत काम का है मेरे लिए! पिछले १८ सालों से मेरे साथ है, पहले मेरे दादा श्री के लिए काम करता था, आज मेरे लिए करता है! करीब आधे घंटे के बाद वो कारिन्दा आया! एक हैरतंगेज़ खबर लेकर!
कारिंदे ने बताया--
राधिका की शादी अपनी बड़ी बहन की शादी के डेढ़ साल बाद हुई थी, उसके जीजा का एक छोटा भाई है राजन, उसका और राधिका का आपस में मेल-जोल अधिक हो गया था, दोनों एक दूसरे से बाहर भी मिला करते थे, लेकिन राजन उससे शादी के लिए तैयार नहीं
था, वो केवल उसके साथ प्रेम-जाल फैलाए बैठा था, और यहाँ राधिका उसको चाहती थी, उसको लगता था कि राजन अपने घर में बात करेगा और उन दोनों कि शादी हो जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ! राजन से पहले ही राधिका कि शादी दिल्ली में ही हो गयी आजादपुर, घर अच्छा था, रिश्ता छोड़ा नहीं जा सकता था, और वहाँ से राजन का ढुलमुल स्वभाव, आखिर राधिका का ब्याह हो गया, और उसके ब्याह के एक साल बाद राजन का, लेकिन प्रेम की,या यूँ कहो कि हवस की अग्नि राधिका और राजन की मंद तो हुई थी लेकिन बुझी नहीं थी, उनका मेलजोल चलता रहा, किसी न किसी बहाने! एक बार राजन की बीवी को ये पता चल गया, स्त्रियोचित गुणों के कारण वो अपने पति का विरोध करती थी, लेकिन राजन उस पर कोई ध्यान नहीं देता था, बल्कि वी उसको दकियानूसी खयालात वाली कहता था, इस तरह परेशान हो कर उसकी बीवी जब एक बार पानीपत आई तो उसकी भाभी ने उसको एक ओझा से मिलवाया, उस ओझा ने पैसे लेकर उसका काम कर दिया, राधिका मोहरा बन गयी, अपनी जिंदगी सुधारने के लिए किसी और की जिंदगी तबाह कर दी!
सारा राज ज़ाहिर हो गया था, ये मैंने शर्मा जी को बताया, और ये निश्चित किया की इस विषय में किसी को भी नहीं बताया जाए, न तो राजन या उसकी बीवी का नाम आये और न ही राधिका के बारे में उसके ससुराल में पता चले! अब काम था इस राधिका के शरीर में वास कर रही रूह का!
मैं वापिस राधिका के पास आया, तो शक्ति प्रहार किये, वो रूह निकली, मैंने उसको कैद किया, पता चला उसका नाम प्रेमा था, वो काठगोदाम में रहा करती थी, और वो ओझा पानीपत वाला भी यहीं का रहने वाला था, उसी ने प्रेमा को कैद करके राधिका के अन्दर प्रवेश कराया था, मैंने प्रेमा की रूह को बाद में मुक्त कर दिया, न जाने कोई और पकड़ ले उसको!
आज राधिका बिलकुल सही है, शर्मा जी ने व्यक्तिगत रूप से उस मिलकर सब-कुछ समझा दिया था!
------------------------------साधुवाद!----------------------------
